कायाकल्प - Hindi sex novel

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sexy
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 02 Oct 2015 08:14

“संध्या?”

“जी?”

“आपको इंग्लिश आती है?”

“थोड़ी-थोड़ी … आपने क्यों पूछा?”

“बिकॉज़, आई वांट टू सी यू नेकेड” मैंने उसके कान के बहुत पास आकर फुसफुसाती आवाज़ में कहा।

“जी?” उसकी बहुत ही भयभीत आवाज़ आई।

“मैं आपको बिना कपड़ो के देखना चाहता हूँ” मैंने वही बात हिन्दी में दोहरा दी, और उसको आँखें गड़ा कर देखता रहा। वह बेचारी घबराहट और शर्म के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। मैंने कहना जारी रखा, “मैं आपके सारे कपड़े उतार कर, आपके निप्पल्स चूमूंगा, आपके बम और ब्रेस्ट्स को दबाऊँगा और फिर आपके साथ ज़ोरदार सेक्स करूंगा…”

मेरी खुद की आवाज़ यह बोलते बोलते कर्कश हो गयी, और मेरे शिश्न में उत्थान आना शुरू हो गया।

“ज्ज्ज्जीईई .. म्म्म मुझे बहुत डर लग रहा है” बड़े जतन से वह सिर्फ इतना ही बोल पाई।

“आई कैन अंडरस्टैंड दैट डिअर। मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप रेडी नहीं हैं।”

संध्या ने समझते हुए बहुत धीरे से सर हिलाया। कुछ कहा नहीं।

मैंने उसकी लाल गोटेदार साड़ी का पल्लू उसकी छाती से हटा दिया। लाल रंग के ही ब्लाउज में कैद उसके युवा स्तन, उसकी तेज़ी से चलती साँसों के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे थे। मेरा बहुत मन हुआ की उसके कपड़े उसके शरीर से चीर कर अलग कर दूँ, लेकिन मेरे अन्दर उसके लिए प्यार और जिम्मेदारी के एहसास ने मुझे ऐसा करने से रोक लिया। लिहाज़ा, मेरी गति बहुत ही मंद थी। वैसे मेरे खुद के हाथ कांप रहे थे, लेकिन मैंने यह निश्चय किया था की इस परम सुंदरी परी को आज मैं प्यार कर के रहूँगा।

मैंने उसकी साड़ी को उसकी कमर में बंधे पेटीकोट से जैसे तैसे अलग कर दिया और उसके शरीर से उतार कर नीचे फेंक दिया। इस समय वह सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में बैठी हुई थी। मेरी अगली स्वाभाविक पसंद (उतारने के लिए) उसका ब्लाउज थी। कितनी ही बार मैंने कल्पना कर कर के सोचा था की मेरी जान के स्तन कैसे होंगे, और इस समय मुझे बहुत मन हो रहा था की उसके स्तनों के दर्शन हो ही जाएँ। मैं कांपते हुए हाथ से उसके ब्लाउज के बटन धीरे-धीरे खोलने लगा। करीब तीन बटन खोलने के बाद मुझे अहसास हुआ की उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी है।

“आप ब्रा नहीं पहनती?” मैंने बेशर्मी से पूछ ही लिया।

संध्या घबराहट और शर्म के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। उसका चेहरा नीचे की तरफ झुका हुआ था, मानो वह उसके ब्लाउज के बटन खोलते मेरे हाथों को देख रही हो। उसकी तेज़ी से चलती साँसे और भी तेज़ होती जा रही थी। उसने उत्तर में सिर्फ न में सर हिलाया – और वह भी बहुत ही हलके से। खैर, यह तो मेरे लिए अच्छा था – मुझे एक कपड़ा कम उतारना पड़ता। मैंने उसकी ब्लाउज के बचे हुए दोनों बटन भी खोल दिए। उसकी त्वचा शर्म या उत्तेजना के कारण लाल होती जा रही थी। मैंने अंततः उसके ब्लाउज के दोनों पट अलग कर दिए, और मुझे उसके स्तनों के दर्शन हो गए।

संध्या के स्तन अभी भी छोटे थे – मध्यम आकार के सेब जैसे, और ठोस। उसकी त्वचा एकदम दोषरहित थी। उन पर गहरे भूरे रंग के अत्यंत आकर्षक स्तनाग्र (निप्पल्स) थे, जिनका आकार अभी छोटा लग रहा था। महिलाओं के स्तन बढती उम्र, मोटापे, अक्षमता और गुरुत्व के मिले जुले कारणों से बड़े हो जाते हैं, और कई बार दुर्भाग्यपूर्ण तरीक से नीचे लटक से जाते हैं। लेकिन संध्या इन सब प्रभावों से दूर, अभी अभी यौवन की दहलीज़ पर आई थी। लिहाज़ा, उसके स्तनों पर गुरुत्व का कोई प्रभाव नहीं था, और उसके निप्पल्स भूमि के सामानांतर ही सामने की ओर निकले हुए थे। संध्या के स्तन उसकी तेज़ी से चलती साँसों के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे थे। यह सारा नज़ारा देख कर मुझे नशा सा आ गया – वाकई इन स्तनों को किसी भी ब्रा की ज़रुरत नहीं थी।

“संध्या … यू आर सो प्रीटी! आप मेरे लिए दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की हैं!” यह सब कहना स्वयं में ही कितना उत्तेजनापूर्ण था – खास तौर पर तब, जब यह सारी बातें सच थी।

मुझसे अब और रहा नहीं जा रहा था। उसके जवान, ठोस स्तनों पर मैंने अपने मुंह से हमला कर दिया। मेरा सबसे पहला एहसास उसके स्तनों की महक का था – आड़ू जैसी महक! उसके चिकने निप्पल्स पहले मुलायम थे, लेकिन मेरे चूसे और चुभलाए जाने से कड़े होते जा रहे थे। मेरे इस क्रिया कलाप का सकारात्मक असर संध्या पर भी पड़ रहा था, क्योंकि उसके हाथों ने मेरे सर को उन्मादित होकर पकड़ लिया था। मैंने कुछ देर तक उसके स्तनों को ऐसे ही दुलार किया – लेकिन इतना होते होते संध्या और मेरा, दोनों का ही, गला एकदम शुष्क हो गया। मैंने रुक कर पास ही रखे गिलास से पानी पिया और संध्या को भी पिलाया। उसके बाद मैंने उसके ब्लाउज को उसके शरीर से अलग कर के ज़मीन पर फेंक दिया। ऐसा होते ही मेरी जान अपने में ही सिमट गयी और अपने हाथो से अपनी नग्नावस्था को छुपाने की कोशिश करने लगी। चूड़ियों और मेहंदी से भरे हाथो से ऐसा करते हुए वह और भी प्यारी लग रही थी। मैंने उसके हाथ हटाने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके होंठों पर एक गहरा चुम्बन दिया, और फिर सिलसिलेवार तरीके से चुम्बनों की बौछार कर दी।

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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 02 Oct 2015 08:15

शुरू में उसका शरीर, होंठ, चेहरा – सब कुछ – एकदम से कड़ा हो गया, शायद नर्वस होने से … लेकिन चुम्बनों की संख्या बढ़ते रहने से वह भी धीरे-धीरे शांत होने लगी। उसने मेरी आँखों में देखा, और फिर आँखें बंद कर के चुम्बन में यथासंभव सहयोग देने लगी। उसके होंठ गर्म और मुलायम थे – एकदम शानदार! चुम्बन करते हुए मैं अपनी जीभ को उसके मुंह में डालने का प्रयास करने लगा। संभवतः उसको यह बात समझ में आ गयी – उसने अपने होंठ ज़रा से खोल दिए। मैंने बहुत सावधानीपूर्वक अपनी जीभ उसके मुंह में प्रविष्ट कर दी। एक बात और हुई, उसने अपने हाथ अपने सीने से हटा कर, मुझे अपनी बाहों में भर लिया। संध्या के मुंह का स्वाद बहुत अच्छा था – हलकी सी मिठास लिए हुए। मैं बयान नहीं कर सकता की यह अनुभव कितना बढ़िया था। यह एक कामुक चुम्बन था, जिसके उन्माद में अब हम दोनों ही बहे जा रहे थे। मेरे हाथ उसके चेहरे से हट कर उसकी कमर पर चले गए और वहां से धीरे धीरे उसके नितम्बों पर। मेरी उत्तेजना मुझे संध्या को अपनी तरफ भींचने को मजबूर कर रही थी। मैंने उसको अपनी तरफ खीच लिया – मुझे अपने सीने पर संध्या के स्तनों का एहसास होने लगा। इस तरह से संध्या को चूमना और भी सुखद लग रहा था।

खैर, ऐसे ही कुछ देर चूमने के बाद हम दोनों के मुंह अलग हुए। मैंने संध्या की कमर पर नज़र डाली – उसके पेटीकोट का नाड़ा ढूँढने के लिए। नाड़ा उसकी कमर से बाएं तरफ था, जिसको मैंने तुरंत ही खीच कर ढीला कर दिया। अब पेटीकोट उसके शरीर पर नाम-मात्र के लिए ही रह गया। इसलिए मैंने उसको उतारने में ज़रा भी देर नहीं की। लेकिन मेरी इस जल्दबाजी में संध्या बिस्तर पर चित होकर गिर गयी। पेटीकोट के उतरते ही उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया – शायद अब उसको अपने स्तनों के प्रदर्शन पर उतना ऐतराज़ नहीं था, लेकिन ऐसी नग्नावस्था में वह मुझे अपना चेहरा नहीं दिखाना चाहती थी। मेरी आशा के विपरीत, संध्या ने चड्ढी पहनी हुई थी। उसका रंग काला था। उसमे कुछ भी उल्लेखनीय नहीं था – बस रोज़मर्रा पहनी जाने वाली सामन्य सी चड्ढी थी – हाँ एक बात है – चड्ढी नयी थी। सामने से देखने पर उसकी चड्ढी अंग्रेजी के “V” जैसी, कमर की तरफ फैलाव लिए और वहां, जहाँ पर उसकी योनि थी, एक सौम्य उभार लिए हुए थी। संध्या के नितम्ब स्त्रियोचित फैलाव लिए हुए प्रतीत होते थे, लेकिन उसका कारण यह था की उसकी कमर पतली थी। उसके शरीर का आकर वस्तुतः एक कमसिन, छरहरी और तरुण लड़की जैसा था।

मैंने और नीचे नज़र डाली। संध्या के दोनों पाँव भी मेहंदी से आलिंकृत थे। दोनों ही टखनों में चांदी की पायलें थीं। उसके पैरों में मैंने ही बिछिया पहनाई थी। उसके दोनों पाँव की निचली परिधि लाल रंग से रंगे हुए थे। मेरी दृष्टि वापस उसके योनि क्षेत्र पर चली गयी। मेरा मन हुआ की उसकी चड्ढी भी उतार दी जाए – मेरे लिंग का स्तम्भन और कसाव बढ़ता ही जा रहा था, और मैं अब संध्या के अन्दर समाहित होने के लिए व्याकुल हुआ जा रहा था। लेकिन मुझे अभी कुछ और देर उसके साथ खेलने का मन हो रहा था। मैंने पलंग पर संध्या के काफी पास अपने घुटने पर बैठ कर, अपना कुरता उतार दिया। अब मैंने सिर्फ चूड़ीदार पजामा और उसके अन्दर स्लिम फिट चड्ढी पहनी हुई थी।

“संध्या ..?” मैंने उसको आवाज़ लगाई।

“जी?” बहुत देर बाद उसने अपना चेहरा ढके हुए ही बोला।

“आपको मेरा एक काम करना होगा ….” मेरे आगे कुछ न बोलने पर उसने अपने चेहरे से हाथ हटा कर मेरी तरफ देखा।

“जी … बोलिए?” मेरे कसरती शरीर को देख कर उसको और भी लज्जा आ गयी, लेकिन इस बार उसने छुपने का प्रयास नहीं किया।

“अपने हाथ मुझे दीजिये” उसने थोडा सा हिचकते हुए अपने हाथ आगे बढ़ाए, जिनको मैंने अपने हाथों में थाम लिया, और फिर अपने पजामे के कमर के सामने वाले हिस्से पर रख दिया।

“यह पजामा आपको उतारना पड़ेगा। आपके कपडे उतार-उतार कर मैं थक गया।” मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा।

उसने पहले तो थोड़ा सा संकोच दिखाया, लेकिन फिर मेरी बात मान कर इस काम में लग गयी। उसने बहुत सकुचाते हुए मेरे पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया और मेरे पजामे को धीरे से सरका दिया। मेरी चड्ढी के अन्दर मेरा लिंग बुरी तरह कस जा रहा था, और अब मेरा मन था की लिंग को मेरी चड्ढी के बंधन से अब मुक्त कर संध्या के नरम, गरम और आरामदायक गहराई में समाहित कर दिया जाए। मेरी चड्ढी के वस्त्र को बुरी तरह से धकेलते मेरे लिंग को संध्या भी बड़े कौतूहल से देख रही थी।

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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 02 Oct 2015 08:15

“इसे भी …” मैंने उसको उकसाया।

संध्या को फिर से घबराहट होने लग गयी.. उसने न में सर हिलाया। यह देख कर मैंने उसके हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपनी चड्ढी की इलास्टिक पर रख दिया और उसको नीचे की तरफ खीच दिया। और इसके साथ ही मेरा अति-उत्तेजित लिंग मुक्त हो गया।

“बाप रे!” संध्या के मुंह से निकल ही गया, “इतना बड़ा!”

संध्या की दृष्टि मेरे कस के तने हुए लिंग पर जमी हुई थी।

जैसा की मैंने पहले भी उल्लेख किया है, मेरा शरीर शरीर इकहरा और कसरती है। और उसमें से इतने गर्व से बाहर निकले हुए मेरा लिंग (गाढ़े भूरे रंग का एक मोटा स्तंभ, जिसकी लम्बाई सात इंच और मोटाई संध्या की कलाई से भी ज्यादा है) देखकर वह निश्चित रूप से घबरा गयी थी। चड्ढी नीचे सरकाने की क्रिया में मेरे लिंग का शिश्नग्रछ्छद स्वयं ही थोड़ा पीछे सरक गया और लिंग के आगे का गुलाबी चमकदार हिस्सा कुछ-कुछ दिखाई देने लगा। संध्या को मेरे लिंग को इस प्रकार देखते हुए देख कर मेरा शरीर कामाग्नि से तपने लग गया – संभवतः संध्या भी इसी तरह की तपन खुद भी महसूस कर रही थी।

उसको अचानक ही अपनी कही हुई बात, अपनी स्थिति, और अपने साथ होने वाले क्रिया कलाप का ध्यान हो आया। उसने लज्जा से अपना मुंह तकिये में छुपा लिया। लेकिन उसका हाथ मुक्त था – मैंने उसको पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया। उसकी हथेली मेरे लिंग के गिर्द लिपट गई। घेरा पूरा बंद नहीं हुआ। मेरा संदेह सही था – संध्या का हाथ तप रहा था। उसके हाथ को पकडे-पकडे ही मैंने अपने लिंग को घेरे में ले लिया और ऐसे ही घेरे हुए अपने हाथ को तीन चार बार आगे पीछे किया, और अपना हाथ हटा लिया। संध्या अभी भी मेरे लिंग को पकडे हुए थी, हाँलाकि वह आगे पीछे वाली क्रिया नहीं कर रही थी। मेरे लिंग की लम्बाई का कम से कम आधा हिस्सा उसके हाथ की पकड़ से बाहर निकला हुआ था। लेकिन इस तरह से सजे हुए कोमल हाथ से घिरा हुआ मेरा लिंग मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।

“जी…. हमें शरम आती है” उसने अंततः तकिये से अपना चेहरा अलग करके कहा। उसकी आवाज़ पहले जैसी मीठी नहीं लगी – उसमे अब एक तरह की कर्कशता थी – मैंने सोचा की शायद वह खुद भी उत्तेजित हो रही है। लिहाजा मैंने इस तथ्य को नज़रंदाज़ कर दिया।

“अपने पति से शर्म? ह्म्म्म … चलिए, आपकी शर्म दूर कर देते हैं।” कहते हुए मैंने उसकी चड्ढी को नीचे सरका दी। मेरी इस हरकत से संध्या शरम से दोहरी होकर अपने में ही सिमट गयी। कहाँ मैंने उसकी शरम मिटानी चाही थी, और कहाँ यह तो और भी अधिक शरमा गयी। कोई दो पल बाद ही मुझे उसका शरीर थिरकता हुआ लगा – ठीक वैसे ही जैसे सुबकने या सिसकियाँ लेते समय होता है। मारे गए….. संभवतः मेरी हरकतों ने उसकी भावनाओ को किसी तरह से ठेस पंहुचा दी थी।

“संध्या …”

कोई उत्तर नहीं! मेरे मन में अब उधेड़बुन होने लगी – ‘क्या यार! सब कचरा हो गया। एक तो यह एक छोटी सी लड़की है, और ऊपर से इतने धर्म-कर्म मानने वाले परिवार से। इसको आज तक शायद ही किसी लड़के ने छुआ हो। मेरी जल्दबाजी और जबरदस्ती ने सारा मज़ा खराब कर दिया।’

सारा मज़ा सचमुच ख़राब हो चला था – मेरा लिंगोत्थान तेज़ी से घटने लग गया। खैर अभी इस बात की चिंता नहीं थी। चिंता तो यह थी, की जिस लड़की को मैं प्रेम करता हूँ, वह मेरे ही कारण दुखी हो गयी थी। अब यह मेरा दायित्व था की मैं उसको मनाऊँ, और अगर किस्मत ने साथ दिया तो संभवतः सेक्स भी किया जा सके। मैं संध्या के बगल ही लेट गया, और प्यार से उसको अपनी बाहों में भर लिया। थोड़ी देर पहले उसका तपता शरीर अपेक्षाकृत ठंडा लग रहा था। अच्छा, एक बात बताना तो भूल ही गया – मैं पलंग पर अपने बाएं करवट पर लेटा हुआ था, और संध्या मेरे ही तरफ मुंह छुपाए लेटी हुई थी।

“संध्या … मेरी बात सुनिए, प्लीज!”

उसने मेरी तरफ देखा – मेरा शक सही था, उसकी आँखों में आँसू उमड़ आये थे, और उसके काजल को अपने साथ ही बहाए ले जा रहे थे।

“श्ह्ह्ह्ह …. प्लीज मत रोइये। मेरा आपको ठेस पहुचाने का कोई इरादा नहीं था। आई ऍम सो सॉरी! ऑनेस्ट! मैंने आपको प्रोमिस किया था की मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप रेडी नहीं हैं। शायद इसके लिए आप रेडी नहीं हैं। मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, और आपको कभी दुखी नहीं देख सकता।”

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