कायाकल्प - Hindi sex novel
Re: कायाकल्प - Hindi sex novel
ऐसी बाते करते हुए मैं संध्या को चूमते, सहलाते और दुलारते जा रहा था, जिससे उसका मन बहल जाए और वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करे।
मेरा मनाना न जाने कितनी देर तक चला, खैर, उसका कुछ अनुकूल प्रभाव दिखने लगा, क्योंकि संध्या ने अपने में सिमटना छोड़ कर अपने बाएँ हाथ को मेरे ऊपर से ले जाकर मुझे पकड़ लिया – अर्ध-आलिंगन जैसा। उसके ऐसा करने से उसका बायाँ स्तन मेरी ही तरफ उठ गया। मेरा मन तो बहुत हुआ की पुनः अपने कामदेव वाले बाण छोड़ना शुरू कर दूं, लेकिन कुछ सोच कर ठहर गया।
“अगर आप चाहें, तो हम लोग आज की रात ऐसे ही लेटे रह कर बात कर सकते हैं।”
उसने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
“ऐसा नहीं है की मैं आपके साथ सेक्स नहीं करना चाहता – अरे मैं तो बहुत चाहता हूँ। लेकिन आपको दुखाने के एवज़ में नहीं। जब तक आप खुद कम्फ़र्टेबल न हो जाएँ, तब तक मुझे नहीं करना है यह सब …”
मेरी बातो में सच्चाई भी थी। शायद उसने उस सच्चाई को देख लिया और पढ़ भी लिया।
“नहीं … आप मेरे पति हैं, और आपका अधिकार है मुझ पर। और हम भी आपको बहुत प्यार करते हैं और आपका दिल नहीं दुखाना चाहते। मैं डर गयी थी और बहुत नर्वस हो गयी थी।” उसकी आँखों से अब कोई आंसू नहीं आ रहे थे।
‘सचमुच कितनी ज्यादा प्यारी है यह लड़की!’ मैंने प्रेम के आवेश में आकर उसकी आँखें कई बार चूम ली।
“आई लव यू सो मच! और इसमें अधिकार वाली कोई बात नहीं है। हम दोनों अब लाइफ पार्टनर हैं – बराबर के। मैं आपके साथ कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता हूँ।”
“नहीं……….” वह थोडा रुकते हुए बोली, “आपको मालूम है की मैंने कभी शादी के बारे में सोचा ही नहीं था। सोचती थी, की खूब पढ़ लिख कर माँ, पापा और नीलम को सहारा दूँगी। माँ और पापा बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन यहाँ पहाड़ो में उस मेहनत का फल नहीं मिलता। …… लेकिन, फिर आप आये – और मेरी तो सुध बुध ही खो गयी। सब कुछ इतना जल्दी हुआ है की मैं खुद को तैयार ही नहीं कर सकी …”
मैंने समझते हुए कहा, “संध्या, मैंने आपसे पहले भी कहा है की मैं आपको पढने लिखने से नहीं रोकूंगा। मैं तो चाहता हूँ की आप अपने सारे सपने पूरे कर सकें। बस, मैं उन सारे सपनो का हिस्सा बनना चाहता हूँ।”
संध्या ने अपनी झील जैसी गहरी आँखों से मुझे देखा – बिना कुछ बोले। उसने अपनी उंगली से मेरे गाल को हलके से छुआ – जैसे छोटे बच्चे जब किसी नयी चीज़ को देखते हैं, तो उत्सुकतावश उसको छूते हैं। “आपसे एक बात पूछूँ?” आखिरकार उसने कहा।
“हाँ .. पूछिए न?”
“आपके जीवन में बहुत सी लड़कियां आई होंगी? … देखिये सच बताइयेगा!”
“हाँ … आई तो थीं। लेकिन मैंने उनके अन्दर जिस तरह की बेईमानी और अमानवता देखी है, उससे मेरा स्त्री जाति से मानो विश्वास ही उठ गया था। शुरू शुरू में मीठी मीठी बाते वाली लड़कियों की हकीकत पर से जब पर्दा हटता है, तो दिल टूट जाता है। फिर मैंने आपको देखा … आपको देखते ही मेरे दिल को ठीक वैसे ही ठंडक पहुंची, जैसे धूप से बुरी तरह तपी हुई ज़मीन को बरसात की पहली बूंदो के छूने से पहुंचती होगी। आपको देख कर मुझे यकीन हो गया की आप ही मेरे लिए बनी हैं – और आपका साथ पाने के लिए मैं अपनी पूरी उम्र इंतज़ार कर सकता था।” मेरे बोलने का तरीका और आवाज़ बहुत ही भावनात्मक हो चले थे।
यह सब सुन कर संध्या ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में ले लिया और मेरे होंठो पर एक छोटा सा मीठा सा चुम्बन दे दिया।
“आई लव यू ….” उसने बहुत धीरे से कहा, “…. मैं आपसे एक और बात पूछूं? …. आपने … आपने कभी…. पहले भी …. आपने कभी सेक्स किया है?” संध्या ने बहुत हिचकिचाते हुए पूछा।
“नहीं … मैंने कभी किसी के साथ सेक्स नहीं किया।”
यह बात आंशिक रूप से सच थी – ऐसा नहीं है की मैंने मेरी भूतपूर्व महिला मित्रों के साथ किसी भी तरह का कामुक सम्बन्ध नहीं बनाया था। मेरा यह मानना था की यदि किसी चीज़ में समय और धन का निवेश करो, तो कम से कम कुछ ब्याज़ तो मिलना ही चाहिए। इसलिए, मैंने कम से कम उन सभी के स्तनों का मर्दन और चूषण तो किया ही था। एक के साथ बात काफी आगे बढ़ गयी थी, तो उसके दोनों स्तनों के बीच में अपने लिंग को फंसा कर मैथुन का आनंद भी उठाया था, और एक अन्य ने मेरे लिंग को अपने मुंह में लेकर मुझे परम सुख दिया था। लेकिन कभी भी किसी भी लड़की के साथ योनि मैथुन नहीं किया।
मेरा मनाना न जाने कितनी देर तक चला, खैर, उसका कुछ अनुकूल प्रभाव दिखने लगा, क्योंकि संध्या ने अपने में सिमटना छोड़ कर अपने बाएँ हाथ को मेरे ऊपर से ले जाकर मुझे पकड़ लिया – अर्ध-आलिंगन जैसा। उसके ऐसा करने से उसका बायाँ स्तन मेरी ही तरफ उठ गया। मेरा मन तो बहुत हुआ की पुनः अपने कामदेव वाले बाण छोड़ना शुरू कर दूं, लेकिन कुछ सोच कर ठहर गया।
“अगर आप चाहें, तो हम लोग आज की रात ऐसे ही लेटे रह कर बात कर सकते हैं।”
उसने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
“ऐसा नहीं है की मैं आपके साथ सेक्स नहीं करना चाहता – अरे मैं तो बहुत चाहता हूँ। लेकिन आपको दुखाने के एवज़ में नहीं। जब तक आप खुद कम्फ़र्टेबल न हो जाएँ, तब तक मुझे नहीं करना है यह सब …”
मेरी बातो में सच्चाई भी थी। शायद उसने उस सच्चाई को देख लिया और पढ़ भी लिया।
“नहीं … आप मेरे पति हैं, और आपका अधिकार है मुझ पर। और हम भी आपको बहुत प्यार करते हैं और आपका दिल नहीं दुखाना चाहते। मैं डर गयी थी और बहुत नर्वस हो गयी थी।” उसकी आँखों से अब कोई आंसू नहीं आ रहे थे।
‘सचमुच कितनी ज्यादा प्यारी है यह लड़की!’ मैंने प्रेम के आवेश में आकर उसकी आँखें कई बार चूम ली।
“आई लव यू सो मच! और इसमें अधिकार वाली कोई बात नहीं है। हम दोनों अब लाइफ पार्टनर हैं – बराबर के। मैं आपके साथ कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता हूँ।”
“नहीं……….” वह थोडा रुकते हुए बोली, “आपको मालूम है की मैंने कभी शादी के बारे में सोचा ही नहीं था। सोचती थी, की खूब पढ़ लिख कर माँ, पापा और नीलम को सहारा दूँगी। माँ और पापा बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन यहाँ पहाड़ो में उस मेहनत का फल नहीं मिलता। …… लेकिन, फिर आप आये – और मेरी तो सुध बुध ही खो गयी। सब कुछ इतना जल्दी हुआ है की मैं खुद को तैयार ही नहीं कर सकी …”
मैंने समझते हुए कहा, “संध्या, मैंने आपसे पहले भी कहा है की मैं आपको पढने लिखने से नहीं रोकूंगा। मैं तो चाहता हूँ की आप अपने सारे सपने पूरे कर सकें। बस, मैं उन सारे सपनो का हिस्सा बनना चाहता हूँ।”
संध्या ने अपनी झील जैसी गहरी आँखों से मुझे देखा – बिना कुछ बोले। उसने अपनी उंगली से मेरे गाल को हलके से छुआ – जैसे छोटे बच्चे जब किसी नयी चीज़ को देखते हैं, तो उत्सुकतावश उसको छूते हैं। “आपसे एक बात पूछूँ?” आखिरकार उसने कहा।
“हाँ .. पूछिए न?”
“आपके जीवन में बहुत सी लड़कियां आई होंगी? … देखिये सच बताइयेगा!”
“हाँ … आई तो थीं। लेकिन मैंने उनके अन्दर जिस तरह की बेईमानी और अमानवता देखी है, उससे मेरा स्त्री जाति से मानो विश्वास ही उठ गया था। शुरू शुरू में मीठी मीठी बाते वाली लड़कियों की हकीकत पर से जब पर्दा हटता है, तो दिल टूट जाता है। फिर मैंने आपको देखा … आपको देखते ही मेरे दिल को ठीक वैसे ही ठंडक पहुंची, जैसे धूप से बुरी तरह तपी हुई ज़मीन को बरसात की पहली बूंदो के छूने से पहुंचती होगी। आपको देख कर मुझे यकीन हो गया की आप ही मेरे लिए बनी हैं – और आपका साथ पाने के लिए मैं अपनी पूरी उम्र इंतज़ार कर सकता था।” मेरे बोलने का तरीका और आवाज़ बहुत ही भावनात्मक हो चले थे।
यह सब सुन कर संध्या ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में ले लिया और मेरे होंठो पर एक छोटा सा मीठा सा चुम्बन दे दिया।
“आई लव यू ….” उसने बहुत धीरे से कहा, “…. मैं आपसे एक और बात पूछूं? …. आपने … आपने कभी…. पहले भी …. आपने कभी सेक्स किया है?” संध्या ने बहुत हिचकिचाते हुए पूछा।
“नहीं … मैंने कभी किसी के साथ सेक्स नहीं किया।”
यह बात आंशिक रूप से सच थी – ऐसा नहीं है की मैंने मेरी भूतपूर्व महिला मित्रों के साथ किसी भी तरह का कामुक सम्बन्ध नहीं बनाया था। मेरा यह मानना था की यदि किसी चीज़ में समय और धन का निवेश करो, तो कम से कम कुछ ब्याज़ तो मिलना ही चाहिए। इसलिए, मैंने कम से कम उन सभी के स्तनों का मर्दन और चूषण तो किया ही था। एक के साथ बात काफी आगे बढ़ गयी थी, तो उसके दोनों स्तनों के बीच में अपने लिंग को फंसा कर मैथुन का आनंद भी उठाया था, और एक अन्य ने मेरे लिंग को अपने मुंह में लेकर मुझे परम सुख दिया था। लेकिन कभी भी किसी भी लड़की के साथ योनि मैथुन नहीं किया।
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मैंने कहना जारी रखा, “…… कुछ एक के साथ मैं क्लोस था, लेकिन उनके साथ भी ऐसा कुछ नहीं किया है। मेरा यह मानना है की फर्स्ट-टाइम सेक्स को एक स्पेशल दिन और एक स्पेशल लड़की के लिए बचा कर रखना चाहिए।”
……….. संध्या चुप रही … लेकिन उसके चेहरे पर एक गर्व का भाव मुझे दिखा।
“और मैं सोच रहा था की वह स्पेशल दिन आज है …. क्या मैं सही सोच रहा हूँ?” मैंने अपनी बात जारी रखी।
संध्या ने कुछ देर सोचा और फिर धीरे से कहा, “जी …..? हाँ … लेकिन .. लेकिन मुझे लगता नहीं की ‘ये’ मेरे अन्दर आ पायेगा।”
“वह मुझ पर छोड़ दो … बस यह बताइए की क्या हम आगे शुरू करें ..?” मैंने पूछा, तो उसने सर हिला कर हामी भरी।
मेरा मन ख़ुशी के मारे नाच उठा। बीवी तो तैयार है, लेकिन मुझे सावधानी से आगे बढ़ना पड़ेगा। इसके लिए मुझे इसके सबसे संवेदनशील अंग को छेड़ना पड़ेगा, जिससे यह खुद भी उतनी कामुक हो जाए की मना न कर सके। इसके लिए मैंने संध्या के स्तनों पर अपना दाँव फिर से लगाया। जैसा की मैंने पहले भी बताया है की संध्या के स्तन अभी भी छोटे थे – मध्यम आकार के सेब जैसे और उन पर गहरे भूरे रंग के अत्यंत आकर्षक स्तनाग्र थे। वाकई उसके स्तन बहुत प्यारे थे …. खास तौर पर उसके निप्पल्स। इतने प्यारे और स्वादिष्ट, जैसे कस्टर्ड भरी कटोरी पर चेरी सजा दी गयी हो। उसके स्तनों को अगर पूरी उम्र भर चूसा और चूमा जाए, तो भी कम है।
अतः मैंने यही कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया। मैंने पहले संध्या के बाएं निप्पल को अपनी जीभ से कुछ देर चाटा, और फिर उसको मुंह में भर लिया। संध्या के मुह से हलकी सिसकारी निकल पड़ी। मैं बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को चूसता जा रहा था। जब मैं एक स्तन को अपने होंठो और जीभ से दुलारता, तो दूसरे को अपनी उँगलियों से। साथ ही साथ मैंने अपने खाली हाथ को संध्या की योनि को टटोलने भेज दिया। संध्या के समतल पेट से होते ही मेरा हाथ उसकी योनि स्थल पर जा पहुंचा। उसकी योनि पर बाल तो थे, लेकिन वह अभी घने बिलकुल भी नहीं थे। योनि पर हाथ जाते ही कुछ गीलेपन का एहसास हुआ। कुछ देर तक मैंने उसकी योनि के दोनों होंठों, और उसके भगनासे को सहलाया, और फिर अपनी उंगली संध्या की योनि में धीरे से डाल दी। मेरे ऐसा करते ही संध्या हांफ गयी। उंगली मुश्किल से बस एक इंच जितनी ही अन्दर गयी होगी, लेकिन उसके यौवन का कसाव इतना अधिक था, की संध्या को हल्का सा दर्द महसूस हुआ। उसके गले से आह निकल गयी।
मैंने अपनी उंगली रोक ली, लेकिन उसको योनि से बाहर नहीं निकलने दिया। साथ ही साथ उसके स्तनों का आनंद उठाता रहा। कोई एक दो मिनट में मैंने महसूस किया की संध्या अब तनाव-मुक्त हो गयी है। मैंने धीरे धीरे अपनी उंगली को उसकी योनि के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया। इन सभी क्रियाओं का सम्मिलित असर यह हुआ की संध्या अब काफी निश्चिन्त हो गयी थी और उसकी योनि कामरस की बरसात करने लगी। मेरी उंगली पूरी तरह से भीग चुकी थी और आसानी से अन्दर बाहर हो पा रही थी।
उंगली अन्दर बाहर होते हुए मुश्किल से दो मिनट हुए होंगे की इतने में ही संध्या ने पहली बार चरमसुख प्राप्त कर लिया। उसकी सांस एक पल को थम गयी, और जब आई तो उसके गले से एक भारी और प्रबल आह निकली। मुझे पक्का यकीन है की बाहर अगर कोई बैठा हो या जाग रहा हो, तो उसने यह आह ज़रूर सुनी होगी। फिर वह निढाल होकर बिस्तर पर गिर गयी और गहरी गहरी साँसे भरने लगी। मैंने उंगली की गति धीमी कर दी, जिससे उसकी योनि का उत्तेजन ख़तम न हो।
“जस्ट रिलैक्स! अभी ख़तम नहीं हुआ है। असली काम तो बाकी है।” मैंने प्यार से बोला।
लगता है अभी अभी मिले आनंद से वह प्रोत्साहित हो गयी थी, लिहाजा उसने हाँ में सर हिलाया।
मैं उठ कर बैठ गया, और थोड़ा सुस्ताने लगा। थोड़ी देर के आराम के बाद मैंने उसकी दोनों जांघो को फैला दिया, जिससे उसकी योनि के होंठ खुल गए थे। उसकी योनि के बाहर का रंग उसके निप्पल के जैसा ही था, लेकिन योनि के अन्दर का रंग ‘सामन’ मछली के रंग के जैसा था। मेरा मन हुआ की कुछ देर यहीं पर मुख-मैथुन किया जाए, लेकिन मेरी खुद की दशा ऐसी नहीं थी की इतनी देर तक अपने आपको सम्हाल पाता। मुझे यह भी डर लग रहा था की कहीं शीघ्रपतन जैसी समस्या न आ खड़ी हो। मेरा लिंग अब वापस खड़ा हो चुका था, और अपने गंतव्य को जाने को व्याकुल हो रहा था। एक गड़बड़ थी – मेरा लिंग उसकी योनि के मुकाबले बहुत विशाल था, और अगर मैं जरा सी भी जबरदस्ती करता, या फिर अगर लिंग अन्दर डालने में कोई गड़बड़ हो जाती तो यह लड़की पूरी उम्र भर मुझसे डरती रहती।
……….. संध्या चुप रही … लेकिन उसके चेहरे पर एक गर्व का भाव मुझे दिखा।
“और मैं सोच रहा था की वह स्पेशल दिन आज है …. क्या मैं सही सोच रहा हूँ?” मैंने अपनी बात जारी रखी।
संध्या ने कुछ देर सोचा और फिर धीरे से कहा, “जी …..? हाँ … लेकिन .. लेकिन मुझे लगता नहीं की ‘ये’ मेरे अन्दर आ पायेगा।”
“वह मुझ पर छोड़ दो … बस यह बताइए की क्या हम आगे शुरू करें ..?” मैंने पूछा, तो उसने सर हिला कर हामी भरी।
मेरा मन ख़ुशी के मारे नाच उठा। बीवी तो तैयार है, लेकिन मुझे सावधानी से आगे बढ़ना पड़ेगा। इसके लिए मुझे इसके सबसे संवेदनशील अंग को छेड़ना पड़ेगा, जिससे यह खुद भी उतनी कामुक हो जाए की मना न कर सके। इसके लिए मैंने संध्या के स्तनों पर अपना दाँव फिर से लगाया। जैसा की मैंने पहले भी बताया है की संध्या के स्तन अभी भी छोटे थे – मध्यम आकार के सेब जैसे और उन पर गहरे भूरे रंग के अत्यंत आकर्षक स्तनाग्र थे। वाकई उसके स्तन बहुत प्यारे थे …. खास तौर पर उसके निप्पल्स। इतने प्यारे और स्वादिष्ट, जैसे कस्टर्ड भरी कटोरी पर चेरी सजा दी गयी हो। उसके स्तनों को अगर पूरी उम्र भर चूसा और चूमा जाए, तो भी कम है।
अतः मैंने यही कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया। मैंने पहले संध्या के बाएं निप्पल को अपनी जीभ से कुछ देर चाटा, और फिर उसको मुंह में भर लिया। संध्या के मुह से हलकी सिसकारी निकल पड़ी। मैं बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को चूसता जा रहा था। जब मैं एक स्तन को अपने होंठो और जीभ से दुलारता, तो दूसरे को अपनी उँगलियों से। साथ ही साथ मैंने अपने खाली हाथ को संध्या की योनि को टटोलने भेज दिया। संध्या के समतल पेट से होते ही मेरा हाथ उसकी योनि स्थल पर जा पहुंचा। उसकी योनि पर बाल तो थे, लेकिन वह अभी घने बिलकुल भी नहीं थे। योनि पर हाथ जाते ही कुछ गीलेपन का एहसास हुआ। कुछ देर तक मैंने उसकी योनि के दोनों होंठों, और उसके भगनासे को सहलाया, और फिर अपनी उंगली संध्या की योनि में धीरे से डाल दी। मेरे ऐसा करते ही संध्या हांफ गयी। उंगली मुश्किल से बस एक इंच जितनी ही अन्दर गयी होगी, लेकिन उसके यौवन का कसाव इतना अधिक था, की संध्या को हल्का सा दर्द महसूस हुआ। उसके गले से आह निकल गयी।
मैंने अपनी उंगली रोक ली, लेकिन उसको योनि से बाहर नहीं निकलने दिया। साथ ही साथ उसके स्तनों का आनंद उठाता रहा। कोई एक दो मिनट में मैंने महसूस किया की संध्या अब तनाव-मुक्त हो गयी है। मैंने धीरे धीरे अपनी उंगली को उसकी योनि के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया। इन सभी क्रियाओं का सम्मिलित असर यह हुआ की संध्या अब काफी निश्चिन्त हो गयी थी और उसकी योनि कामरस की बरसात करने लगी। मेरी उंगली पूरी तरह से भीग चुकी थी और आसानी से अन्दर बाहर हो पा रही थी।
उंगली अन्दर बाहर होते हुए मुश्किल से दो मिनट हुए होंगे की इतने में ही संध्या ने पहली बार चरमसुख प्राप्त कर लिया। उसकी सांस एक पल को थम गयी, और जब आई तो उसके गले से एक भारी और प्रबल आह निकली। मुझे पक्का यकीन है की बाहर अगर कोई बैठा हो या जाग रहा हो, तो उसने यह आह ज़रूर सुनी होगी। फिर वह निढाल होकर बिस्तर पर गिर गयी और गहरी गहरी साँसे भरने लगी। मैंने उंगली की गति धीमी कर दी, जिससे उसकी योनि का उत्तेजन ख़तम न हो।
“जस्ट रिलैक्स! अभी ख़तम नहीं हुआ है। असली काम तो बाकी है।” मैंने प्यार से बोला।
लगता है अभी अभी मिले आनंद से वह प्रोत्साहित हो गयी थी, लिहाजा उसने हाँ में सर हिलाया।
मैं उठ कर बैठ गया, और थोड़ा सुस्ताने लगा। थोड़ी देर के आराम के बाद मैंने उसकी दोनों जांघो को फैला दिया, जिससे उसकी योनि के होंठ खुल गए थे। उसकी योनि के बाहर का रंग उसके निप्पल के जैसा ही था, लेकिन योनि के अन्दर का रंग ‘सामन’ मछली के रंग के जैसा था। मेरा मन हुआ की कुछ देर यहीं पर मुख-मैथुन किया जाए, लेकिन मेरी खुद की दशा ऐसी नहीं थी की इतनी देर तक अपने आपको सम्हाल पाता। मुझे यह भी डर लग रहा था की कहीं शीघ्रपतन जैसी समस्या न आ खड़ी हो। मेरा लिंग अब वापस खड़ा हो चुका था, और अपने गंतव्य को जाने को व्याकुल हो रहा था। एक गड़बड़ थी – मेरा लिंग उसकी योनि के मुकाबले बहुत विशाल था, और अगर मैं जरा सी भी जबरदस्ती करता, या फिर अगर लिंग अन्दर डालने में कोई गड़बड़ हो जाती तो यह लड़की पूरी उम्र भर मुझसे डरती रहती।
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मेरे पास अपने लिंग को चिकना करने के लिए कुछ भी नहीं था ….. ‘एक सेकंड … मैं अपने लिंग को ना सही, लेकिन उसकी योनि को तो अच्छे से चिकना कर सकता हूँ न!’ मेरे दिमाग में अचानक ही यह विचार कौंध गया।
मैंने उसकी योनि पर हाथ फिराया – संध्या की सिसकारी छूट पड़ी। उसके शरीर के सबसे गुप्त और महफूज़ स्थान में आज सेंध लगने जा रही थी। यहाँ छूना कितना आनंददायक था – कितना कोमल .. कितना नरम! मैं वासना में अँधा हुआ जा रहा था .. मैंने उसके भगोष्ठ के होंठों को अपनी उँगलियों से पुनः जांचना आरम्भ कर दिया। मैंने उसकी योनि से रस निकलता हुआ देखा, और समझ गया की अब यह सही समय है।
मैंने बिस्तर पर लेटी संध्या के नग्न रूप का पुनः अवलोकन किया। उसकी आँखें बंद थी, लेकिन लिंग प्रवेश की स्थिति में होने वाली पीड़ा की घबराहट में उसके शरीर की विभिन्न माँस-पेशियाँ कसी हुई थी। उसको पूरी तरह शांत और शिथिल करने के लिए मैंने उसके कान को चूमना आरम्भ किया। ऐसे करते करते, धीरे धीरे उसकी ठोढ़ी की तरफ बढ़ते हुए मैं उसके होंठो को चूम रहा था, और गले से होते हुए शरीर के ऊपरी भाग को चूमना और हलके हलके चाटना जारी रखा। कुछ देर ऐसे ही करते हुए, इस समय मैं संध्या के निप्पल्स को चूम और चूस रहा था। संध्या की आहें छूट पड़ीं और मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ गई। चूसते चूसते मैंने उसके स्तन पर दांत से हल्का सा काट लिया और उसकी सिसकी निकल गयी। संध्या अब मूड में आने लग गयी थी – उसकी साँसे भारी हो गयी थी, बढ़ते रक्त-संचालन के कारण उसके गोरे शरीर में लालिमा आ गयी थी। लेकिन अभी मैं उसको अभी छोड़ने के मूड में नहीं था, और लगातार उसके शरीर के साथ लगातार छेड़-छाड़ करता जा रहा था।
संध्या को चूमते, चाटते और छेड़ते हुए जब मैं उसके योनि क्षेत्र पर पहुंचा तो उसने योनि द्वार को दो तीन बार चाटा और फिर उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चूमने और चाटने लगा। संध्या वापस अपनी उत्तेजना के चरम बिंदु पर पहुच चुकी थी। मैं कभी उसकी जांघों, तो कभी उसकी योनि को चूमता-काटता जा रहा था। संध्या का शरीर अब थर थर कांप रहा था और साँसे भारी हो गयी। लेकिन फिर भी मैं अगले दो तीन मिनट तक उसकी योनि के साथ खिलवाड़ करता रहा। उसकी आँखें अब बंद थी और शरीर बुरी तरह थरथरा रहा था।
यह मेरे लिए सकते था की अब वाकई सही समय आ गया है। मैंने उसकी टांगो को फैला दिया। उसकी योनि का खुला हुआ मुख काम-रस से भीगने के कारण चमक रहा था।
“जस्ट ट्राई टू रिलैक्स! ओके?” कह कर मैंने एक हाथ से उसकी योनि को थोडा और फैलाया और अपने लिंग को उसकी योनि मुख से सटा कर धीरे-धीरे आगे की तरफ जोर लगाया, जिससे मेरा लिंग अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा। मेरे लिंग का सुपाड़ा, लिंग के बाकी हिस्सों से बड़ा है, अतः संध्या को सबसे अधिक पीड़ा शुरू के एक दो इंच से ही होनी चाहिए थी। लेकिन यह लड़की अभी भी छोटी थी, और उसके शरीर की बनावट परिपक्वता की तरफ भी अग्रसर थी। यह बात मुझसे छिपी हुई नहीं थी। इसलिए मैंने सुपाड़े का बस आधा हिस्सा ही अन्दर डाला और उसकी योनि से निकलते रस से उसको अच्छी तरह से भिगो लिया। सबसे खतरनाक बात यह थी की मुझमें अब इतना धैर्य नहीं बचा हुआ था। मुझे लग रहा था की अगर कुछ देर मैंने यह क्रिया जारी रखी तो इसी बिस्तर पर स्खलित हो जाऊँगा। न जाने क्यों, संध्या के अन्दर अपना वीर्य डालना मुझे इस समय दुनिया का सबसे ज़रूरी कार्य लग रहा था।
मेरा लिंग तैयार था। मैंने एकदम से जोरदार धक्का लगाया और मेरा आधा लिंग संध्या की योनि में समा गया।
“आआह्ह्ह …” संध्या की गहरी चीख निकल गयी। मुझे तो मानो काटो तो खून नहीं! मैं एकदम से सकपका गया, ‘कहीं इसको चोट तो नहीं लग गयी?’ मैंने एक दो पल ठहर कर संध्या की प्रतिक्रिया भांपी – लेकिन भगवान् की दया से उसने आगे कुछ नहीं कहा। बाहर लोगों ने सुना तो ज़रूर होगा …
‘भाड़ में जाएँ सुनने वाले! लड़की के साथ यह तो होना ही है आज तो…’ मैंने रुकने का कोई उपक्रम नहीं किया। मैंने अपना लिंग संध्या की योनि से बाहर निकालना शुरू किया, लेकिन पूरा नहीं निकाला … इसके बाद पुनः थोडा सा और अन्दर डाला और पुनः निकाल लिया।
ऐसे ही मैंने कम से कम पांच छः बार किया। संध्या चीख तो नहीं थी, लेकिन मेरी हर हरकत पर कराह ज़रूर रही थी। लेकिन इस समय मेरे पास इन सब के बारे में सोचने का धैर्य बिलकुल भी नहीं था। मैंने अपना लिंग संध्या के अन्दर और भीतर तक घुसा दिया और सनातन काल से प्रतिष्ठित पद्धति से काम-क्रिया आरम्भ कर दी। संध्या का चेहरा देखने लायक था – उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन मुंह पूरा खुला हुआ था। इस समय उसके लिए साँसे लेने, हिचकियाँ लेने और सिसकियाँ निकालने का यही एकमात्र साधन और द्वार था। मेरे हर धक्के से उसके छोटे स्तन हिल जाते। और नीचे का हिस्सा, जहाँ पेट और योनि मिलते हैं, मेरे पुष्ट मांसल लिंग के कुटाई से लाल होता जा रहा था।
मैंने उसकी योनि पर हाथ फिराया – संध्या की सिसकारी छूट पड़ी। उसके शरीर के सबसे गुप्त और महफूज़ स्थान में आज सेंध लगने जा रही थी। यहाँ छूना कितना आनंददायक था – कितना कोमल .. कितना नरम! मैं वासना में अँधा हुआ जा रहा था .. मैंने उसके भगोष्ठ के होंठों को अपनी उँगलियों से पुनः जांचना आरम्भ कर दिया। मैंने उसकी योनि से रस निकलता हुआ देखा, और समझ गया की अब यह सही समय है।
मैंने बिस्तर पर लेटी संध्या के नग्न रूप का पुनः अवलोकन किया। उसकी आँखें बंद थी, लेकिन लिंग प्रवेश की स्थिति में होने वाली पीड़ा की घबराहट में उसके शरीर की विभिन्न माँस-पेशियाँ कसी हुई थी। उसको पूरी तरह शांत और शिथिल करने के लिए मैंने उसके कान को चूमना आरम्भ किया। ऐसे करते करते, धीरे धीरे उसकी ठोढ़ी की तरफ बढ़ते हुए मैं उसके होंठो को चूम रहा था, और गले से होते हुए शरीर के ऊपरी भाग को चूमना और हलके हलके चाटना जारी रखा। कुछ देर ऐसे ही करते हुए, इस समय मैं संध्या के निप्पल्स को चूम और चूस रहा था। संध्या की आहें छूट पड़ीं और मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ गई। चूसते चूसते मैंने उसके स्तन पर दांत से हल्का सा काट लिया और उसकी सिसकी निकल गयी। संध्या अब मूड में आने लग गयी थी – उसकी साँसे भारी हो गयी थी, बढ़ते रक्त-संचालन के कारण उसके गोरे शरीर में लालिमा आ गयी थी। लेकिन अभी मैं उसको अभी छोड़ने के मूड में नहीं था, और लगातार उसके शरीर के साथ लगातार छेड़-छाड़ करता जा रहा था।
संध्या को चूमते, चाटते और छेड़ते हुए जब मैं उसके योनि क्षेत्र पर पहुंचा तो उसने योनि द्वार को दो तीन बार चाटा और फिर उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चूमने और चाटने लगा। संध्या वापस अपनी उत्तेजना के चरम बिंदु पर पहुच चुकी थी। मैं कभी उसकी जांघों, तो कभी उसकी योनि को चूमता-काटता जा रहा था। संध्या का शरीर अब थर थर कांप रहा था और साँसे भारी हो गयी। लेकिन फिर भी मैं अगले दो तीन मिनट तक उसकी योनि के साथ खिलवाड़ करता रहा। उसकी आँखें अब बंद थी और शरीर बुरी तरह थरथरा रहा था।
यह मेरे लिए सकते था की अब वाकई सही समय आ गया है। मैंने उसकी टांगो को फैला दिया। उसकी योनि का खुला हुआ मुख काम-रस से भीगने के कारण चमक रहा था।
“जस्ट ट्राई टू रिलैक्स! ओके?” कह कर मैंने एक हाथ से उसकी योनि को थोडा और फैलाया और अपने लिंग को उसकी योनि मुख से सटा कर धीरे-धीरे आगे की तरफ जोर लगाया, जिससे मेरा लिंग अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा। मेरे लिंग का सुपाड़ा, लिंग के बाकी हिस्सों से बड़ा है, अतः संध्या को सबसे अधिक पीड़ा शुरू के एक दो इंच से ही होनी चाहिए थी। लेकिन यह लड़की अभी भी छोटी थी, और उसके शरीर की बनावट परिपक्वता की तरफ भी अग्रसर थी। यह बात मुझसे छिपी हुई नहीं थी। इसलिए मैंने सुपाड़े का बस आधा हिस्सा ही अन्दर डाला और उसकी योनि से निकलते रस से उसको अच्छी तरह से भिगो लिया। सबसे खतरनाक बात यह थी की मुझमें अब इतना धैर्य नहीं बचा हुआ था। मुझे लग रहा था की अगर कुछ देर मैंने यह क्रिया जारी रखी तो इसी बिस्तर पर स्खलित हो जाऊँगा। न जाने क्यों, संध्या के अन्दर अपना वीर्य डालना मुझे इस समय दुनिया का सबसे ज़रूरी कार्य लग रहा था।
मेरा लिंग तैयार था। मैंने एकदम से जोरदार धक्का लगाया और मेरा आधा लिंग संध्या की योनि में समा गया।
“आआह्ह्ह …” संध्या की गहरी चीख निकल गयी। मुझे तो मानो काटो तो खून नहीं! मैं एकदम से सकपका गया, ‘कहीं इसको चोट तो नहीं लग गयी?’ मैंने एक दो पल ठहर कर संध्या की प्रतिक्रिया भांपी – लेकिन भगवान् की दया से उसने आगे कुछ नहीं कहा। बाहर लोगों ने सुना तो ज़रूर होगा …
‘भाड़ में जाएँ सुनने वाले! लड़की के साथ यह तो होना ही है आज तो…’ मैंने रुकने का कोई उपक्रम नहीं किया। मैंने अपना लिंग संध्या की योनि से बाहर निकालना शुरू किया, लेकिन पूरा नहीं निकाला … इसके बाद पुनः थोडा सा और अन्दर डाला और पुनः निकाल लिया।
ऐसे ही मैंने कम से कम पांच छः बार किया। संध्या चीख तो नहीं थी, लेकिन मेरी हर हरकत पर कराह ज़रूर रही थी। लेकिन इस समय मेरे पास इन सब के बारे में सोचने का धैर्य बिलकुल भी नहीं था। मैंने अपना लिंग संध्या के अन्दर और भीतर तक घुसा दिया और सनातन काल से प्रतिष्ठित पद्धति से काम-क्रिया आरम्भ कर दी। संध्या का चेहरा देखने लायक था – उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन मुंह पूरा खुला हुआ था। इस समय उसके लिए साँसे लेने, हिचकियाँ लेने और सिसकियाँ निकालने का यही एकमात्र साधन और द्वार था। मेरे हर धक्के से उसके छोटे स्तन हिल जाते। और नीचे का हिस्सा, जहाँ पेट और योनि मिलते हैं, मेरे पुष्ट मांसल लिंग के कुटाई से लाल होता जा रहा था।