कायाकल्प - Hindi sex novel

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sexy
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 13 Oct 2015 10:00

सीईई! आह! यह क्या!’ ऐसी निर्दयता से मत मसलो मेरे साजन! ये कोमल कलियाँ है, ज़रा बचा कर!

रूद्र पिछले कोई 10 मिनट से मेरे स्तनों की मालिश किये ही जा रहे हैं, और इस बीच उन्होंने उनको न जाने कितनी ही बार मसला, दबाया और रगड़ा होगा! सिर्फ इतना ही नहीं, बीच बीच में वो मेरे स्तनों को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर अपने दूसरे हाथ की हथेली से मेरे चुचकों पर फिराते तो मेरी सिस्कारियां ही निकल जाती। रूद्र कुछ कुछ कह भी रहे हैं! क्या कह रहे हैं, कुछ भी समझ नहीं आ रहा है! मुझे तो लगता है की मेरे होश ही उड़ गए हैं! लेकिन उनकी बातो पर कुछ तो प्रतिक्रिया करनी ही पड़ेगी न! इसलिए मैं बेसुध सी आँखें बंद किये, हाँ… हूँ… और सिस्कारियां ले रही थी। मेरी साँसों की गति बहुत बढ़ गई है और मेरे स्तन भी उन्ही के ताल पर तेजी से ऊपर-नीचे हो रहे है!

रूद्र ने मेरे होंठों पर अपने होंठ लगा दिए हैं! उनके चुम्बन लेने का तरीका कितना अनोखा है! उनके होंठ और जीभ मेरे पूरे मुख की टोह ले डालते है! मुझे बहुत आनंद आता है और मैं भी उनके चुम्बनों का मज़ा लेने से नहीं चूकती… उन्होंने इस समय मेरे स्तन छोड़ रखे थे और एक हाथ से मेरी नंगी पीठ सहला रहे थे और दूसरे हाथ से मेरे बाल सहला रहे थे। आंखें बंद किये मैं उनके होंठों को चूमती और चूसती रही, और उनको जैसा जी चाहे करने देती रही। इस प्रकार के प्रेम-प्रसंग में जब भी मेरी आँखें खुलती हैं, तो मुझे बहुत लज्जा आती है। उनकी आँखों के वासना के लाल डोरे साफ़ दिख रहे हैं और चेहरे पर शरारती भाव स्पष्ट थे। उस अन्तरंग चुम्बन के बाद उन्होंने मेरी गर्दन पर हमला किया – यह संभवतः पहली बार था! एक दो मधुर चुम्बनों के बाद उन्होंने मेरी गर्दन पर अपने दांत ही गड़ा दिए – लेकिन ऐसे नहीं की मुझे कोई नुकसान हो… बल्कि ऐसे जिससे मेरे शरीर की आग और भी बढ़ जाय!

मेरी साँसें इस समय बहुत तेज़ चल रही थी और आँखों में खुमार सा आने लग गया। रूद्र ने मुझे अपनी बांहों में भर कर बिस्तर से उठा लिया, तो मैं भी अपनी बाहें उनके गले में डाल कर उनके आलिंगन में झूल सी गई। अनजाने ही सही, ऐसा करके मैंने उनके सामने अपने स्तन परोस दिए और उनको भोज का निमंत्रण भी दे दिया। और रुद ऐसे तो नहीं है की इस प्रकार के भोज निमंत्रण तो ठुकरा दें। उन्होंने मुझे एक हाथ (बाएँ) से पकड़ कर सम्हाला, और दूसरे (दाहिने) से मेरे बाएँ स्तन को पकड़ कर थोड़ा दबाया। ऐसा करने से मेरा निप्पल एकदम से बाहर निकल आया। उन्होंने उसको कुछ देर ऐसे निहारा जैसे की उसका मूल्यांकन कर रहे हों और फिर धीरे से अपने होंठ उस पर लगा दिए।

अपने शरीर के किसी अंग को किसी और के मुख में ऐसे कामुक ढंग से लीले जाते हुए देखना अत्यंत रोमांचक होता है। मेरे चूचक से एक काम की एक मीठी धारा निकली और वहां से होते हुए पूरे शरीर में बहने लगी। लज्जा और रोमांच के कारण मेरी आँखें मुंद गईं! रूद्र मेरे स्तन की धीरे-धीरे चुस्की लगा रहे थे और साथ ही साथ स्तन को मुँह में भरते भी जा रहे थे। कुछ ही देर में मेरे स्तन का ज्यादातर हिस्सा उनके मुँह में समां गया। कामोन्माद ने मुझे पूरी तरह से बेबस कर दिया था… मैं अब क्या कर रही थी, उस पर मेरा कोई भी नियंत्रण नहीं था।

मैं उनका सर अपने हाथों से पकड़ कर अपनी छाती की तरफ दबाने लगी। रूद्र ने भी ठीक उसी अनुरूप अपना आभार प्रकट किया। वे अब बारी बारी से मेरे दोनों स्तनों को चूम और चूस रहे थे – कभी वो उनको अपने मुँह में पूरा भर लेते तो कभी चूसते हुए मेरे चूचक अपने दांतों से हल्के से काट लेते! उनकी इन हरकतों से मेरी कराह, सिसकियाँ, किलकारी – या जो भी कुछ है – निकल जाती!

आश्चर्य की बात है की प्रहार मेरे स्तनों पर हो रहा था और प्रभाव मेरी योनि पर पड़ रहा था। कामरस की बारिश से बिस्तर पर बिछा चद्दर गीला हो चला था। रूद्र मेरे दोनों स्तनों पर प्रयोग पर प्रयोग किये जा रहे थे – वो कभी उनको चूमते, कभी मेरे चूचकों पर जीभ फिराते, कभी चाटते, कभी मसलते तो कभी दबाते। और तो और वो बीच-बीच में स्तनों को छोड़ कर मेरे होंठों पर जोरदार और अन्तरंग चुम्बन लेटे और फिर वापस अपने काम पर लग जाते। रूद्र को स्तनपान कराने की मेरे अन्दर ऐसी तीव्र इच्छा थी की मन में बस यही आया की मेरे दोनों स्तन मीठे मीठे दूध से भर जाएँ, और रूद्र जीवन भर उनका पान कर सकें! रूद्र के स्पर्श में वह जादू था की वो मुझे कुछ ही पलों में मतवाला बना देते। मैं इस कदर रोमांचित हो चली थी कि मैं उनकी गोद में ही उछलने लगी।

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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 13 Oct 2015 10:00

संध्या की आँखें एक झटके से खुली।

‘कैसा सपना देखा! कितना कामुक! और कितना वास्तविक!’

इतना वास्तविक सपना की उसको अपने निप्पलों पर अभी भी मीठी मीठी पीड़ा महसूस हो रही थी। उसका हाथ उनको सहलाने के लिए अपनी छाती पर गया।

‘अरे! ये तो खुले हुए हैं!! और ये बाएँ तरफ?’ सोचते हुए संध्या का ध्यान अपने बाएँ स्तन पर गया। इस निप्पल को चूसते हुए मैं सो गया था।

‘अच्छा, तो यह सब इन जनाब की कारस्तानी है! कोई सपना वपना नहीं था – सब हकीकत थी। लेकिन वह तेल…?’ सोचते हुए संध्या ने अपने स्तनों की त्वचा पर उंगली फिराई, ‘नहीं.. यहाँ कोई तेल-वेल नहीं लगा है! सपने में क्या क्या सोच लिया मैंने!’ सोचते हुए संध्या ने अपने शरीर का और जायजा लिया, लेकिन इतने ध्यान से की मेरी नींद न टूटे।

‘बस कुरता ही उतारा है – शलवार तो ज्यों की त्यों बंधी हुई है! लेकिन यह कुरता इन्होने उतारा कैसे की मुझे पता ही नहीं चला?! और… वहां तो जम कर गीलापन है! बदमाश…!!’ सोचते हुए संध्या लजा गई, और प्यार से मेरे बालों में उँगलियों से सहलाने लगी। उसके इस संकेत पर मैं सोते हुए ही कुनमुनाया और पुनः उसके निप्पल का चूषण करने लगा। पांच छः बार चूसने के बाद पुनः मैं गहन निद्रा में लीन हो गया। मुझको ऐसे अबोधपन से ऐसी बदमाशी भरा काम करते देख कर संध्या हौले से हँस दी और मुझे प्यार से अपने स्तन पर भींच कर पुनः सो गयी।

मेरे निर्देशों के अनुसार, मेनेजर ने सवेरे 6 बजे मुझको जगा लिया और साथ ही साथ नहाने का पानी भी पेश किया। कोई साढ़े सात बजते बजते संध्या और मैं नहा धो कर और हल्का नाश्ता कर के आगे की यात्रा पर निकल गए। अगर सब ठीक रहा तो ग्यारह बजे से पहले हम लोग देहरादून में होंगे।

इतने सवेरे यात्रा करने का यह लाभ होता है की सड़क खाली मिल जाती हैं, इस कारण से हमारी रफ़्तार भी काफी तेज़ रही। आज संध्या मुझसे कुछ ज्यादा खुलकर बाते हर रही थी। रास्ते में उसने बताया की वो पहले भी दो बार देहरादून आ चुकी है। यह भी पता चला की उनका परिवार हरिद्वार से आगे कभी नहीं गया। मैंने भी उसको अपने बारे में इधर उधर की काफी बाते बतायी – ऐसे तो मुझे घूमने का कोई ख़ास अनुभव नहीं था, लेकिन काम को लेकर देश-विदेश में काफी घूम चुका हूँ। संध्या विदेश के बारे में सुनकर काफी आश्चर्यचकित हुई। संछेप में कहा जाय तो आज की यात्रा बहुत अच्छे से हो रही थी। बिना रुके हम लोग साढ़े दस पर ही देहरादून पहुँच गए। वहां पहुँच कर मैंने अपनी SUV को उसके असली मालिक को सौंप दिया और हिसाब-किताब बराबर कर के एक रेस्त्राँ में खाने पहुंचे।

“आप क्या लेंगी?” मैंने मेन्यू देखते हुए पूछा।

“आप क्या लेंगे?”

“आज तो हम वही लेंगे जो आप लेंगी।“

इस प्रकार की पहले आप – पहले आप होटल/रेस्त्राँ के बैरा लोगो के लिए रोज़ की ही बात होती है, लिहाज़ा वो बेचारा पूरी धीरता के साथ हमारे आर्डर का इंतज़ार करता रहा। खैर, हमने रोटी-सब्ज़ी और मीठा मंगाया। कोई पौने एक बजे हम दोनों एक किराए की गाड़ी में बैठ कर हवाई-अड्डे पहुँच गए। संध्या के लिए आज एक नया ही अनुभव होने वाला था। न तो उसने कभी इस प्रकार से सड़क यात्रा करी थी, और न ही कभी हवाई यात्रा। मुझे संदेह था की हवाई अड्डे पर संध्या को लेकर कुछ ज्यादा पूछ-ताछ हो सकती है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। खैर, मैं यहाँ पर ‘मेरी पहली हवाई यात्रा’ पर कोई निबंध तो लिखने बैठा नहीं हूँ, और न ही आप उसको पढने! कोई चार घंटे की यात्रा के बाद, हम लोग बैंगलोर पहुँच गए और वहां से कोई डेढ़ घंटे बाद (करीब आठ बजे रात को) अपने घर पहुँच गए। लेकिन संध्या ने ऐसी बदहवासी अपने पूरे जीवन में कभी नहीं देखी – इतनी भीड़, इतने सारे वाहन, इतना प्रदूषण, इतना शोर, इतनी गंदगी, और इतनी अराजकता – उसके लिए एकदम नया भी था, और थोड़ा डरावना भी। अच्छी बात यह रही की गाड़ी की खिड़कियाँ बंद थीं, और वातानुकूलन चल रहा था… नहीं तो मुझे पूरा शक था की उसको खाँसी हो जाती। उसको तभी राहत मिली जब हम अपनी हाउसिंग सोसाइटी के दायरे में आ गए।

अरे! मैंने आपको मेरी हाउसिंग सोसाइटी के सेक्रेटरी के बारे में कुछ बताया ही नहीं!

श्री देवरामनी और उनकी पत्नी अत्यंत सज्जन लोग थे, और बुजुर्ग भी। वो सेना के सेवानिवृत अधिकारी थे, और बहुत ही जिंदादिल और मजाकिया किस्म के इंसान थे। उनकी एकमात्र संतान, उनका पुत्र था, जो विवाह कर के सपत्नीक अमेरिका में ही बस गए थे। वो दोनों मेरे फ्लैट के बगल वाले 3 कमरे वाले फ्लैट में रहते थे। इसलिए उनसे अच्छी जान-पहचान थी, और इसीलिए मैंने उनको अपने घर की चाबी भी सौंपी थी। उनको मालूम था की हम लोग इस समय पर उपस्थित हो जायेंगे, इसलिए उन्होंने और उनकी धर्मपत्नी ने पहले ही सारे इंतजाम कर रखे थे। मैंने देखा की वो दोनों मेरे घर ही विराजमान हैं, और अन्दर से काफी सारे फूलों की महक आ रही है, तो तुरंत ही समझ में आ गया की माजरा क्या है। उनकी पत्नी ने हम दोनों को तिलक लगाया; हम दोनों ने उनका आशीर्वाद लिया। उसके बाद उन्होंने संध्या को अन्दर आने को कहा। दरवाज़े पर एक चावल भरा कलश रखा था। संध्या को मानो इसका सहज ज्ञान हो – उसने अपने दाहिने पांव से उस कलश को आगे की तरफ धकेल दिया। उसके साथ ही एक परात में गुलाबी-लाल रंग का घोल करके रखा हुआ था। संध्या ने उसमे दोनों पांव रख कर घर की फर्श पर निशान बनाए, और वहीँ बैठक में खड़ी हो गई।

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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by sexy » 13 Oct 2015 10:01

श्रीमती देवरामनी ने ही उसको पकड़ कर सोफे पर बैठाया और स्वयं भी सभी बैठ गए। इस समय मेरा महत्व लगभग नगण्य था, क्योंकि वो दोनों ही मेरी पत्नी से बात करने में मगन थे। अब चूंकि श्री और श्रीमती देवरामनी को हिंदी का ज्ञान बहुत ही कम था और वो लोग सहज नहीं थे, इसलिए आगे की बातें सब अंग्रेजी में हुईं!

श्रीमती देवरामनी ने श्री देवरामनी से कहा, “Is she not a thing of beauty! (कितनी सुन्दर हैं यह, है न?)”

श्री देवरामनी: “Oh she is! Such a lovely child! What is your good name, my child? (ओह बिलकुल! बहुत प्यारी बच्ची है! तुम्हारा शुभ नाम क्या है बेटे?)”

“जी, संध्या!”

श्री देवरामनी: “Such a beautiful name – as precious as you are! (कितना सुन्दर नाम! ठीक तुम्हारे जैसा!)” फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर, “You married a child, you old goat! (तुमने एक बच्चे से शादी कर ली!?)” इस बात पर मेरे चेहरे पर उठने वाले भावों को देख कर उनको खूब हंसी आई। उन्होंने मेरी और खिंचाई करते हुए आगे कहा, “Are you sure that she is of legal age to wed? (पक्का, यह बालिग़ ही है न?)”

“Shut up old man! (तुम चुप करो)” ये श्रीमती देवरामनी की मीठी झिड़की थी, “Stop teasing him! (बहुत हो गयी इसकी खिचाई)” फिर उन्होंने संध्या को देख कर कहा, “But yes, she is so beautiful, and I am so happy for you both. (लेकिन हाँ, बहु बहुत सुन्दर है, और मैं तुम दोनों के लिए बहुत ख़ुश हूँ)”

खैर, मैंने ही उनको बताया की संध्या अभी बारहवीं में पढ़ रही है, और जैसे ही वो शादी लायक हुई, मैंने उसको लपक लिया। फिर मैंने उन दोनों को मेरी ससुराल के बारे में बताया। मैं उन सबसे कैसे मिला, यह भी बताया। मेरी बातें सुनने के बाद श्री देवरामनी ने मुझसे कहा,

“You are a lucky fellow, my boy! And oh yes we are very happy for both of you! And I must tell you young man that you are going to take good care of this little doll. (तुम बहुत ही भाग्यशाली हो बेटा! और हाँ, हम दोनों ही तुम्हारे लिए बहुत ख़ुश हैं… और एक बात, इस गुड़िया जैसी लड़की का ठीक से ख़याल रखना!)”

श्री देवरामनी ने मुझे हिदायद दी, “… for us you are like a son, but she is now our daughter too. (तुम हमारे बेटे जैसे ही हो, लेकिन यह अब हमारी बेटी है)”

फिर संध्या की तरफ मुखातिब होकर, “My dear child, you heard what I just said. Treat us as your own parents. We will not let you feel alone, when this nocturnal, workaholic husband of yours is away slogging. If you need anything at all, you come to us. Okay? (बच्चे, तुमने सुना की मैंने अभी क्या कहा? हमको अपने माता-पिता जैसा ही समझना। जब भी ये तुम्हारा पति ऑफिस में मेहनत कर रहा हो, हमारे पास आ जाना – हम तुमको कभी भी अकेला नहीं महसूस होने देंगे! कुछ भी ज़रुरत हो, तो तुरंत आ जाना। ओके?”

संध्या को न जाने कितना समझ आया, लेकिन उसने सर हिला कर हामी भरी।

“Very well then, both of you on your feet. Clean up and get ready… Tonight’s dinner is with us. So, if you have any other plans for dinner, scrap them. (बहुत अच्छा! अब चलो, जल्दी से फ्रेश होकर तैयार हो जाओ – आज का खाना हमारे साथ हैं। अगर बाहर जाकर खाने का कोई प्लान था, तो भूल जाओ।)”

और यह कह कर दोनों उठ कर अपने घर को चल दिए। मैंने सबसे पहले संध्या को अपना घर दिखाया – यह 2 कमरे का फ्लैट था, जिसमें बैठक कक्ष, रसोई घर, भोजन करने के लिए जगह, 2 स्वच्छता घर और एक बालकनी भी थी। मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगा की श्री और श्रीमती देवरामनी ने घर की अच्छी तरह से साफ़ सफाई करवा दी थी और बड़े शयनकक्ष को फूलों की वेणियों से सजा दिया था – आज एक और सुहागरात होने वाली है, ऐसा सोच कर मैं मन ही मन मुस्कुरा दिया। खैर, घर दिखाने के बाद, मैंने संध्या के घर फोन लगाया और सबसे बात करके संध्या को फोन पकड़ाया, और हाथ मुँह धोने गुसलखाने में चला गया।

अगले आधे घंटे में हम दोनों श्री और श्रीमती देवरामनी के घर प्रीतिभोज करने पहुँच गए। आज तक किसी के घर इतना विस्तृत भोज मैंने कभी नहीं देखा था। विभिन्न प्रकार के सुस्वाद भोज्य थाली में परोसे गए, और हमारे मेजबानों ने इतने प्रेम और आग्रह से खिलाया की हम दोनों ने आवश्यकता से अधिक खा लिया। चलने से पहले श्रीमती देवरामनी ने संध्या को सोने की चेन भेंट में दी। कुछ देर और बात-चीत करने के बाद, हम अपने घर वापस आ गए।

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