मैंने कहा- सील और शक्ल याद करके बने संबंध कुछ दिन के ही होते हैं, असली संबंध तो हम एक दूसरे से मानसिक रूप से कितना जुड़ते हैं, उससे होते हैं और न तुम अरुण को बदल पाईं न अरुण खुद को इसलिए यह संबंध तो स्थायी था ही नहीं।
राजश्री के घर नासिक हम लोग शाम 8 बजे पहुँच गए। घंटी बजने पर माँ ने दरवाज़ा खोला, माँ बहुत कमजोर हो रही थी, सुरेखा रो पड़ी, वो मुझे पहचान गई और बोली- राकेश तुम? मैंने कहा- हाँ मैं !
सुरेखा को देखकर उनके भी आंसू आए और बोलीं- मैं इसे घर मैं नहीं आने दूँगी, इसके पापा कितने हंसमुख थे 4 साल पहले, अब तो मुरझा गए हैं, छोटी बहन की भी शादी नहीं हो पा रही है। मैंने कहा- मेरी पत्नी को भी अंदर नहीं आने दोगी?
उनके चेहरे पर असमंजस के भाव आ गए। उन्होंने मुझे और सुरेखा को अंदर बुला लिया सुरेखा उनकी गोद में रोते हुए गिर पड़ी।
दस मिनट बाद मैंने सारी कहानी उन्हें बता दी। साथ साथ ही साथ यह भी बता दिया कि मेरी माँ तभी सुरेखा को अपनाएगी जब आप उसे अपना लेंगीं।
सुरेखा के पिताजी भी आ गए, मैं थोड़ी देर के लिए घर से बाहर चला गया। मैं 9 बजे वापस आ गया, राजश्री की माँ ने मेरे फ़ोन से रुंधे हुए गले से घर मेरी माँ को फ़ोन किया और रोते हुए सिर्फ एक ही बात बोल पाईं- दीदी, राजश्री को अपने घर में जगह दे दो।
उसके बाद वो 10 मिनट तक फ़ोन पर रोती रहीं।
मैंने उनसे फ़ोन ले लिया, मेरी माँ बोली- बेटा, कल हम नासिक आ रहे हैं। अगले दिन मेरे माँ बाप आ गए मेरी और सुरेखा की शादी दोनों परिवार की सहमति से हो गई।
शादी के 15 दिन बाद सब सामान्य हो गया, हम दोनों पूना आ गए। सुरेखा रोज़ रात को पहले की तरह नंगी होकर मेरी गोद में बैठने लगी, सुरेखा से छुपकर मैंने एक कैमरा बाथरूम में लगा दिया ताकि जब वो नहाने जाए तो उसकी नंगी चूचियाँ और चूत नहाते हुए देख सकूं।
आज तक सुरेखा को यह बात नहीं पता चली कि मैं सुबह उसकी नंगी चूत और चूची के दर्शन करता हूँ।




















