मास्टरजी को प्रगति की यही अदाएं लुभाती थीं। उन्होंने उसकी पीठ और सिर पर हाथ फेर कर उसका हौसला बढ़ाया और उसकी मालिश करने में जुट गए।
गर्म तेल की मालिश से प्रगति को बहुत चैन मिल रहा था। कल के मुकाबले आज मास्टरजी ज़्यादा निश्चिंत हो कर हाथ चला रहे थे। उन्हें प्रगति के भयभीत हो कर भाग जाने का डर नहीं था क्योंकि आज तो वह सब कुछ जानते हुए भी अपने आप उनके घर आई थी। मतलब, उसे भी इस में मज़ा आ रहा होगा। मास्टरजी ने सही अनुमान लगाया।
थोड़ी देर के बाद मास्टरजी ने प्रगति के ऊपर घुड़सवारी सा आसन जमा लिया और अपना कुर्ता उतार दिया। अब वे सिर्फ लुंगी पहने हुए थे। लुंगी को उन्होंने घुटनों तक चढ़ा लिया था अपर उनका लिंग अभी भी लुंगी में छिपा था।
इस अवस्था में उन्होंने प्रगति के पिछले शरीर पर ऊपर से नीचे, यानि कन्धों से कूल्हों तक मालिश शुरू की। जब वे आगे की तरफ जाते तो जान बूझ कर अपनी लुंगी से ढके लिंग को प्रगति के चूतड़ों से छुला देते। कपड़े के छूने से प्रगति को जहाँ गुलगुली होती, मास्टरजी के लंड की रगड़ से उसे वहीं रोमांच भी होता। मास्टरजी को तो अच्छा लग ही रहा था, प्रगति को भी मज़ा आ रहा था। मास्टरजी ने अपने आसन को इस तरह तय किया कि जब वे आगे को हाथ ले जाएँ, उनका लंड प्रगति के चूतड़ों के बीच में, किसी हुक की मानिंद, लग जाये और उन्हें और आगे जाने से रोके। एक दो ऐसे वारों के बाद प्रगति ने अपनी टाँगें स्वयं थोड़ी खोल दीं जिससे उनका लंड अब प्रगति की गांड के छेद पर आकर रुकने लगा। जब ऐसा होता, प्रगति को सरसराहट सी होती और उसके रोंगटे से खड़े होने लगते। उधर मास्टरजी को प्रगति की इस व्यवस्था से बड़ा प्रोत्साहन मिला और उन्होंने जोश में आते हुए अपनी लुंगी उतार फेंकी।
अब वे दोनों पूरे नंगे थे। मास्टरजी ने प्रगति के हाथ उसकी आँखों पर से हटा कर बगल में कर दिए। अब वह एक तरफ से कुछ कुछ देख सकती थी। मास्टरजी ने अपने वार जारी रखे जिसके फलस्वरूप उनका लंड तन कर प्रबल और विशाल हो गया और प्रगति की गांड पर व्यापक प्रभाव डालने लगा।
मास्टरजी आपे से बाहर नहीं होना चाहते थे सो उन्होंने झट से अपने आप को नीचे की तरफ सरका लिया और प्रगति की टांगों पर ध्यान देने लगे। उनके हाथ प्रगति की जांघों के बीच की दरार में खजाने को टटोलने लगे। प्रगति से गुदगुदी सहन नहीं हो रही थी। वह हिलडुल कर बचाव करने लगी पर मास्टरजी के हाथों से बच नहीं पा रही थी। जब कुछ नहीं कर पाई तो करवट ले कर सीधी हो गई। अपनी टाँगें और आँखें बंद कर लीं और हाथों से स्तन ढक लिए। मास्टरजी इसी फिराक़ में थे। उन्होंने प्रगति के पेट, पर हाथ फेरते हुए प्रगति के हाथ उसके वक्ष से हटा दिए।
तेल लगा कर अब वे उसकी छाती की मालिश कर रहे थे। प्रगति के उरोज दमदार और मांसल लग रहे थे। उसकी चूचियां उठी हुई थीं और वह जल्दी जल्दी साँसें ले रही थी। मास्टरजी का लंड प्रगति की नाभि के ऊपर था और कभी कभी उनके लटके अंडकोष उसकी योनि के ऊपरी भाग को लग जाते। प्रगति बेचैन हो रही थी। उसमें वासना की अग्नि प्रज्वलित हो चुकी थी और उसकी योनि प्रकृति की अपार गुरुत्वाकर्षण ताक़त से मजबूर मास्टरजी के लिंग के लिए तृषित हो रही थी। सहसा उसकी योनि से द्रव्य पदार्थ रिसने लगा।