मेरी शादी करवा दो - kamukta se bhari kahani

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
User avatar
sexy
Platinum Member
Posts: 4069
Joined: 30 Jul 2015 19:39

Re: मेरी शादी करवा दो - kamukta se bhari kahani

Unread post by sexy » 01 Nov 2015 16:30

मैं बल खाकर सीधी हो गई। उसका लण्ड गाण्ड से बाहर निकल आया।

“उफ़्फ़ विवेक… तुम कितने अच्छे हो… जान निकाल दी मेरी…”

विवेक ने धीरे से अपनी एक टांग मेरी कमर पर रख दी और जैसे उसे कस कर मेरी कमर से जकड़ लिया। फिर वो सरक कर मेरे ऊपर आ गया। उसने मेरी चूचियाँ कठोरता से थाम ली। तभी मुझे अपनी चूत पर उसका सख्त लण्ड महसूस हुआ।

“ओह्ह… मेरे जानू… जरा प्यार से…”

उसका सुपारा मेरी चूत में घुसने कोशिश करने लगा। विवेक के चेहरे पर कठोरता सी झलक आई। उसने अपने दोनों हाथों पर अपना वजन उठा लिया और कमर से थोड़ा सा ऊपर उठ गया। उसका लण्ड लोहे की छड़ जैसा तना हुआ चूत के ऊपर धार पर रखा हुआ था।

उसने जोर लगाया… वो डण्डा चूत में घुसता चला गया…। कितना गरम लण्ड था… तभी मुझे तेज जलन सी हुई…
“अरे जरा धीरे से… लग रही है…”

उसने लण्ड जरा सा पीछे खींचा और आहिस्ते से वापिस अन्दर घुसाने लगा…

“उफ़्फ़… क्या फ़ाड़ डालोगे… दुखता है ना।”

“बस हो गया रानी…”

वो जोर लगाता ही चला गया… मेरी तो दर्द के मारे आँखें ही फ़टने लगी…

“बस थोड़ा सा ओर… बस हो गया…”

मेरे मुख पर हाथ रख कर उसने अन्तत: एक जोर से शॉट मार ही दिया। मेरी चीख मुख में ही दब सी गई… विवेक अब धीरे से मुझ पर लेट गया।

“चीख निकल जाती तो… मर ही जाते… ! और वो परदा… गया काम से… !”

“जब जानती हो तो अब कोई तकलीफ़ नहीं है…”

मेरा दर्द शनै: शनै: कम होता जा रहा था। वो अपना लण्ड अब धीरे धीरे से चलाने लग गया था। मुझे भी अब भीतर से गुदगुदी उठने लगी थी। उसने एक बार लण्ड बाहर निकाला और गिलास के पानी से रुमाल भिगोया और पूरी चूत का खून साफ़ कर दिया। उसने जब फिर से लण्ड घुसेड़ा तो एक मीठी सी गुदगुदी उठने लगी। मेरी चूत तो अपने आप ही चलने लगी… तज तेज… और तेज… फिर लय में एक समां बन्ध गया। उसने खूब चोदा मुझे… एकाएक उसकी तेजी बढ़ सी गई। उसने अपना लण्ड बाहर निकाला और जोर की एक पिचकारी छोड़ दी… उसने मेरा चेहरा वीर्य से भर दिया… मेरी चूचियाँ गीली हो गई चिपचिपी सी हो गई… फिर बचा-खुचा वीर्य उसने मेरी चूत पर गिरा कर उसे मेरी चूत पर लिपटा दिया।

“छी: ! यह क्या कर रहे हो… घिन नहीं आती तुम्हें?”

“यही तो झड़ने का मजा है…। नहा लेना इसमें ! क्या है?”

“अरे मैं तो जाने कितनी बार झड़ गई… बस करो अब…”

मैंने पहली बार यह सब किया था सो मुझे ये सब करने के बाद नींद आ गई। फिर अचानक रात को ना जाने कब विवेक मुझे फिर से चोद रहा था। पहले तो मुझे दर्द सा हुआ… फिर मुझे भी तेज चुदने की लग गई। उस रात हमने तीन बार चुदाई की। सवेरे होते होते वो चला गया था। मैंने दूसरी चादर बदल ली थी। फिर तो मुझे ऐसी नींद आई कि स्कूल के समय में भी मेरी नींद नहीं खुली। मम्मी पापा ने जानकर नहीं जगाया। उस दिन मुझे छुट्टी लेनी पड़ी।

रात होते होते मन फिर से जलने लगा… विवेक का लण्ड मुझे नजर आने लगा… चूत में, चूचियों में दर्द तो था ही… पर चूत की ज्वाला कैसे रोकती, वो तो भड़कने लगी थी। रात आई… फिर वही जबरदस्त चुदाई… पर इस बार वो रात के एक बजे चला गया था। खूब चुद कर मैं सो गई… पर सवेरे मेरी नींद समय पर खुल गई। मैंने फिर से बस में जाना शुरू कर दिया। दिन भर मैं विवेक से दूर रहती… और रात को मैं उससे खूब चुदवाती। तीन दिन बाद ही रजनी अपने माँ के यहाँ से वापस आ गई थी।

अब मुझे कौन चोदता? रात बड़ी लगने लगी… चूत में आग भरने लग जाती… दिल तड़पने लगता… फिर पेन या पेन्सिल… बैंगन… मोमबती… उफ़्फ़ क्या क्या काम लाती… लण्ड जैसा तो कुछ भी नहीं है… मुझे तो विवेक की बहुत याद आती थी। पर मन मार कर रह जाती… जाने कब मौका मिलेगा।

पर मेरी माँ कितनी खराब है… आप देखिये ना… मेरी शादी ही नहीं कराती है… प्लीज आप ही उन्हे कह दीजिये ना… अब नहीं रहा जाता है।

उफ़्फ़्फ़… क्या करूँ?

THE END...

Post Reply