nonveg story - लौड़ा साला गरम गच्क्का - lund ak dum garam

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Re: nonveg story - लौड़ा साला गरम गच्क्का - lund ak dum gara

Unread post by admin » 09 Jan 2016 11:38

"उईईईई ....मेरी चूची .....मम्मी मर गई में ...सी sssssssss "

उस सुने बाग़ में तनु की चीखे सुनने वाला कोई नहीं था जो था वो अपनी लोली को सहला कर उसकी चुदाई देखने के

मजे ले रहा था !

और तनु की दर्द भरी चीखें शास्त्री को और उत्तेजित कर रही थी वो वेसे ही धक्के मारते मारते अपना मंत्र

बोल रहा था -

"चुतर चिक्कन चूत बा ठस्सा .....छेद घचाघच घचमघच्चा .."

"चभक के चापे तो निकले बच्चा ...."

आई मम्मी .....मेरे निकल रहा हे री .....अरे में झड जाउंगी ......आआआअ ....ह्ह्ह्ह्ह ....

में झड गई ...सी sssssss बस .....अब मत करो .....जलन हो रही हे ...."

तनु चूत -चोदु मंत्र को सुनकर और उसके मूसल जेसे लंड से चूत का रेशा रेशा खोल देने वाली चुदाई से खुद

झड़ने से ज्यादा देर रोक नहीं पाई और शास्त्री की कमर में अपने पेरों की केंची मार कर उससे कस के लिपट गई !

योनि से छूटते गरम गरम पानी की बूंदे और योनि का संकुंचन जो की उसके लिंग को पकड़ और छोड़ रहा था

उसे महसूस कर शास्त्री भी ज्यादा देर नहीं टिका रह सका !

और ...

" चभक चभक के चोद चोदाउल .....मार भोसड़ी छोड़ दे छर्रा ..."

और फिर शास्त्री किसी हांफते हुए कुत्ते की तरह एक चूची को मुह में भर कर उसकी घुंडी को दांतों से चिभलाते

हुए तनु की योनि में अपना पंद्रह साल का इकठ्ठा किया हुआ वीर्य मूतने लगा !

लिंग को अपनी योनि में फूलता पिचकता महसूस कर तनु और कस कर शास्त्री की चौड़ी नंगी छाती से चिपक गई

मानो उसका एक एक बूँद वीर्य अपनी योनि में भर लेना चाहती हो !

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Re: nonveg story - लौड़ा साला गरम गच्क्का - lund ak dum gara

Unread post by admin » 09 Jan 2016 11:39

सिर्फ दो मिनिट ही शास्त्री से बेल की तरह चिपके रहने के बाद ही तनु की मानसिकता बदलने लगी !

उसने शास्त्री को धक्का देकर अपने से अलग किया और जल्दी जल्दी अपने कपडे

पहनने लगी !

शास्त्री चारपाई पर लेटा अभी भी किसी भेंसे की तरह हांफ रहा था !

उसका मोटा लौड़ा अब किसी मरे हुए मोटे चूहे की तरह उसके विशाल आंदों पर पड़ा था

और अभी भी हल्का हल्का पानी छोड़ रहा था !

तनु ने वितरसना से शास्त्री को उसके मूत्र और उसके वीर्य से भरे बिस्तर को देखा और झोंपड़े का

दरवाज़ा खोल कर तनु बाहर निकल गई !

शास्त्री किसी कुत्ते की तरह हांफता बिस्तर पर पड़ा रहा !

उसमे जेसे शक्ति ही नहीं रही थी !

वो बेजान सा तनु को जाते हुए देखता रहा !

अब उसे भी फिलहाल उसकी जरुरत नहीं थी उसके टट्टे पूरी तरह से खाली हो गए थे !

इधर कार के भीतर -

"तुम क्यूँ नहीं ?..." तनु ने जलती हुई निगाहों से मन को देखा !

पता नहीं ...गाड़ी का दरवाज़ा केसे लोक हो गया था ...खुला ही नहीं .....आई एम् .सोरी ...आई लव यु तनु ..."

"शटअप और ....यहाँ से चलो ..आज के बाद मुझसे दुबारा ये सब करने के लिए मत कहना ..."

तनु का गुस्सा देख कर मन की कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई !

उसने चुपचाप गाड़ी आगे बढ़ा दी ..!

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लगभग चार दिन के बाद ....

रात के तकरीबन वही बज रहे थे ....

वहीँ झोंपड़ी ....

वहीँ लालटेन की पीली रौशनी ....

सिहरती और कांपती हुई ....

वहीँ कार निश्ब्द्ता में ठहरी हुई ...

पर इस बार मौन इतना मौन भी नहीं था ...


खिड़की की झिर्रियों से कुछ धव्नि बाहर तेर रही थी ....


"लौड़ा साला गरम गच्क्का ....गांड मार फाड़ बिल भोक्का "

" आआह्ह्ह्ह्ह ...उह्ह्ह सी स्स्स्स ...बस ..इतना ही डालो .....'

पर इस बार ये मादा की आवाज़ नहीं थी ...!.......


और ये कार और ये आवाज़े हर दुसरे तीसरे दिन आ जाती थी !
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लगभग एक महीने के बाद ....

रात के तकरीबन वही बज रहे थे ....

वहीँ झोंपड़ी ....

वहीँ लालटेन की पीली रौशनी ....

सिहरती और कांपती हुई ....

वहीँ कार निश्ब्द्ता में ठहरी हुई ...

पर इस बार मौन इतना मौन भी नहीं था ...

खिड़की की झिर्रियों से कुछ धव्नि बाहर तेर रही थी ....


" लौड़ा साला गरम गच्क्का ......मार सटा -सट सटम सटा "

बूरिया साली ...चेदबा खाली ...मार हचाह्च हच्चम हच्चा .."



आअह्ह्ह ...मजा आ रहा हे ...और हुमच कर पेलो ......

मन देखो केसे सटासट लौड़ा मेरी बूर में जा रहा हे ......तुम भी चिंता मत करो .....


चाचा तुम्हे भी मजा देंगे ...."

चाँद की रौशनी ने झोंपड़े के अन्दर देखा ...


मादा ऊँची टाँगे किये हुए नंगी शास्त्री से चुद रही थी ......और मन

शास्त्री के मोटे मूसल को ललचाते हुए देख रहा था वो भी बिलकुल नंगा था .....

और अपनी गांड पर ट्यूब से जेली को दो अँगुलियों पर भर भर कर उन्हें अन्दर बाहर कर शास्त्री के लौड़े के लिए

सुगम आवागमन का रास्ता बना रहा था !

थोड़ी देर बाद अन्दर का गीत बदल गया था -


"लौड़ा साला गरम गच्क्का ....गांड मार फाड़ बिल भोक्का "

" आआह्ह्ह्ह्ह ...उह्ह्ह सी स्स्स्स ...बस ..इतना ही डालो .....'


और मादा मजे से अपने मन की गांड में शास्त्री के लौड़े को घुसता हुआ देख रही थी !



....................समाप्त केसी लगी ...............!

खास कर इस कहानी का अंत !

प्लीज रिप्लाई हो हे कई दोस्तों को ये अंत पसंद नहीं आये ........

पर जो मेरे मन में था मेने लिख दिया .......

धन्यवाद .........

कमला ...भाटी ..........!

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