Police daughter sex story
Re: Police daughter sex story
अपने रूम में जाकर उन्होने चेंज किया और अपनी लूँगी बनियान में वो आराम से बोतल लेकर अपनी सीट पर आ बैठे
मैं दरवाजे के पीछे से चुप कर उन्हे ही देख रही थी
वो लूँगी में बंद अपने बुर्ज खलीफा पर हाथ रखकर उसे सहला रहे थे और धीरे-2 ग्लास से सीप ले रहे थे
मैं अंतर्यामी तो नही थी पर इस वक़्त उनके मन में क्या चल रहा था मैं ये जरूर बता सकती थी
मेरी ड्रेस और सैक्सी बदन को देखकर वो मुझे किस तरह दबोचे यही उनके दिलो दिमाग़ में चल रहा था इस वक़्त
कभी वो मेरे रूम की तरफ देखते और कभी वो मोबाइल उठा कर कुछ देखने लगते
शायद कोई पॉर्न वीडियो देख रहे थे
ऐसे ही करते- 2 उन्होने 2 पेग निपटा दिए दिए
और वो पल भी आने वाला था जिसका इंतजार मैं कब से कर रही थी
तीसरा पेग उन्होने बनाया और उसे लेकर उठ खड़े हुए और मेरे कमरे की तरफ आने लगे
अब उन्हे सर्प्राइज़ देने का टाइम आ चूका था
जिसके लिए मुझे बहुत हिम्मत की ज़रूरत थी
पर आगे कुछ करना था तो हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी ना
वरना कब तक उनके नशे में जाने का वेट करू और उनके लॅंड से अकेली ही खेलती रहूं
उनका भी तो हक बनता है ना
मैं जल्दी से अपनी पोज़िशन लेकर बेड पर लेट गयी
और जैसे ही धीरे से दरवाजा खुलने की आवाज़ आई , मैने अपने हाथ में पकड़ा मोबाइल अपने कान से लगाया और उसपर बात करने का नाटक करने लगी
मैं : “यार श्रुति…..ये कैसे होगा….मुझे तो अभी तक समझ नही आ रहा है….यार….ऐसे मैं कैसे कर सकती हूँ ….मेरी चूत का पानी निकले ही जा रहा है…”
मेरे मुँह से चूत शब्द सुनते ही पापा के कान खड़े हो गये और वो वहीं छुपकर मेरी बाते सुनने लगे
बस यही तो मैं चाहती थी
मैने कमरे की लाइट बुझा रखी थी और सिर्फ़ एक नाइट बल्ब जल रहा था
उस रौशनी में उन्हे तो मेरा जिस्म आँखो पर ज़ोर लगाने से
पर मुझे वो दरवाजे के बाहर खड़े सॉफ दिखाई पड़ रहे थे..
मैं आगे बोली : “तू पागल हो गयी है क्या…..वहां उंगली डालूंगी तो मेरा कुँवारापन चला जाएगा….याद है ना स्कूल में मेडम ने एक बार चैप्टर में पढ़ाया था ये की हमारी हाइमन की परत फटने से वी आर नो लोंगर वर्जिन”
अब पापा भी शायद समझने लगे थे की मैं और मेरी सहेली के बीच क्या बातचीत हो रही है
और इस वक़्त मैं मोरनी बनकर बैठी थी अपने बेड पर
अपनी नन्ही सी गांड दरवाजे की तरफ फेलाए हुए
पेट पर तकिया लगाकर
घुटने मोड़कर
अपनी स्कर्ट को नीचे खिसकाकर
और इस पोज़ में पापा मेरी नंगी गांड सॉफ देख पा रहे थे
मैने पीछे की तरफ चेहरा करके उन्हे देखा, उन्हे तो अपनी आँखो पर विश्वास ही नही हो पा रहा था की वो क्या देख रहे है, अपनी जवान बेटी की नंगी गांड
और वो भी इतने करीब से
सिर्फ़ 5 फीट का ही तो फासला था बीच में
2 कदम आगे आकर वो सीधा मेरी गांड सूंघ सकते थे
इतने करीब थे वो
और शायद वो भी यही चाह रहे थे इस वक़्त
पर अपनी जवान बेटी की जवानी की इस हरकत को वो छुप कर पूरा देखने का मन बना चुके थे
उन्हे भी पता था शायद की इस उम्र में हर किसी का ये मन करता है
अपने अंगो को छूने का
उन्हे मसलने का
मास्टरबेट करने का
जो की इस उम्र मे नॉर्मल है
उन्होने भी किया होगा शायद
हर कोई करता है इस उम्र में
पर ऐसे किसी का बाप शायद ही देख पाता होगा अपनी बेटी को ये सब करते हुए
वो तो अपने आप को भाग्यशाली समझ रहे थे की उन्हे ये देखने का अवसर मिला
इसलिए किसी बागड़ बिल्ले की तरह
बिना कोई आहत किए वो दम साधे मेरे इस खेल को देख रहे थे
और अपने हाथ में पकड़े ग्लास से सीप-2 करके दारू पी रहे थे
और दूसरे हाथ से अपनी लुंगी के सांप का फ़न मसल रहे थे
शराब और शबाब का संगम जब होता है तो मज़ा वैसे ही दुगना हो जाता है
उन्हे तो शायद ऐसा फील हो रहा था जैसे वो किसी क्लब में बैठकर कमसिन लड़की को नंगा देख रहे है दारू पीते हुए
और मैं इस वक़्त जो बोल रही थी उस से मैं पापा को ये दिखना चाहती थी की मुझे तो इन सबके बारे में कुछ भी पता नही है
उंगली डालने से क्या होगा
मास्टरबेट क्या होता है
कैसा मज़ा मिलेगा
ये इम्प्रेशन मैं देना चाहती थी पापा को अपनी तरफ से की मुझे इन सबके बारे में कुछ नही पता
मैं फिर बोली : “अच्छा रुक….डालती हूँ …..उम्म्म्मम……यार वहां तो बिल्कुल चिपचिपा सा कुछ निकल रहा है…..हाँ, पहले भी निकलता था पर मैने ज़्यादा ध्यान नही दिया…..ओके …..उम्म्म्म….हां …डाल दी…उफफफफ्फ़……..”
और ये काम मैं सच में कर रही थी
बातें भले ही झूठी थी फोन पर
लेकिन फीलिंग्स सच्ची थी कसम से
अपनी उंगली को मैं अपनी चूत में धकेल कर धीरे-2 अंदर बाहर कर रही थी
जिसे पीछे खड़े पापा भी सॉफ देख पा रहे थे
कम रोशनी की वजह से वो शायद मेरी चूत को सॉफ-2 नही देख पा रहे थे
पर चिकने घड़े के नीचे मेरे हाथ को अंदर बाहर होते हुए वो सॉफ देख पा रहे थे
मेरी तो आँखे खुद ब खुद बंद होने लगी और जैसा की आजकल मैं मास्टरबेट करते हुए पापा का नाम लेती हूँ अक्सर
वहां भी मेरे मुँह से अचानक उन्ही का नाम निकलने लगा
“उम्म्म्मममममममममममममम…….ओह पााअ………”
पर पा बोलते ही मेरी चूत के बाल एकदम से खड़े हो गये
मैने जल्दी से बात संभाली
“पानी ssssss यार…..श्रुति……पानी बहुत निकल रहा है……..अहह….इतना पानी पीकर तो किसी की भी प्यास बुझ जाएगी…..हीही”
फिर कुछ देर बाद मैं बोली
“पागल है क्या…..लड़के भला क्यो पिएँगे वहां का पानी….गंदा होता है ना…..”
फिर कुछ देर तक फोन सुनने का नाटक करने के बाद
“अच्छा …सच में ….रुक मैं टेस्ट करती हूँ तू कहती है तो……उम्म्म्मममम…..अहह….ये तो सच में काफ़ी टेस्टी है………उम्म्म्ममम……सड़प-२ ”
इतना कहते-2 मैने अपनी सारी उंगलिया पापा को दिखाते हुए अपने मुँह में लेकर चूस डाली
मैने कनखियो से देखा तो पापा ये सब देखकर बावले से हो चुके थे
वो भी अपनी उंगलिया शराब के ग्लास में डुबोकर उन्हे चूस रहे थे
ठीक मेरी तरह
मानो वो शराब नही मेरी चूत का रस चाट रहे है अपनी उंगलियो से
ओले ओले
मेले प्यारे पापा
उन्हे इस हालत में देखकर मेरा तो दिल ही पसीज गया
एक बार तो मन किया की उन्हे अंदर बुलवा कर आज ही सब कुछ करवा लूँ
पर ये सब करने मे जो रोमांच महसूस हो रहा था उसका कोई मुकाबला नही था
और मैं ये भी जानती थी की वो जितना तड़पेंगे, बाद में मुझे उतनी ही शिद्दत से तड़पा - कर चोदेगे भी
इसलिए अभी के लिए ऐसे ही चलते रहने देती हूँ
मैने फिर से अपनी उंगलियाँ अपनी चूत में खोंसि और जोरों से उसे मसलने लगी
कुछ देर पहले तक मैं अंजान बनने का जो नाटक कर रही थी
उसके बाद मैं एकदम से कैसे परफेक्शन के साथ मास्टरबेट करने लगी, ये शायद पापा भी नही जान पाए
वरना मेरी चालाकी वहीं पकड़ी जाती
वो तो उन्हे शराब और मेरे नंगे जिस्म का सरूर चढ़ चूका था वरना पॉलिसिआ नज़र से मैं कैसे बचती भला
मेरी चूत से फुव्वारे निकल रहे थे आनंदमयी बूँदो के
और उन्हे हवा में उछलता देखकर पापा की जीभ लपलपा रही थी
मैने एक गहरी साँस लेते हुए अपने जिस्म को निढाल छोड़ दिया
और फिर से अपनी उंगलियो को चाटते हुए फोन पर बात करने लगी
“यार….तू सही कह रही थी….इस खेल में तो सच में बहुत मज़ा आता है….काश कोई होता जिसके साथ मैं ये सब कर पाती…”
कुछ देर रुक कर
“पागल है क्या….तू पापा को जानती है ना, मैं किसी लड़के से बात भी करूँगी तो उन्हे पता चल जाएगा… ना बाबा ना….मैं ऐसा कुछ भी नही करने वाली…दोस्ती अलग चीज़ है, ये काम तो मैं शादी के बाद अपने हस्बैंड के साथ ही करूँगी बस….या फिर ऐसे अकेले में खुद के साथ ही ही, चल अब तू सो जा…मुझे भी पापा को खाना गर्म करके देना है….गुड नाइट…”
फ़ोन रखने के बाद मैंने पास पड़े कपडे से अपनी चूत को अच्छे से साफ़ किया और उन कड़क लिप्स को एक आखिरी बार अपनी उँगलियों से थिरकाते हुए पापा को दिखाया ताकि उनकी आँखों को भी चैन आ जाए
मैं दरवाजे के पीछे से चुप कर उन्हे ही देख रही थी
वो लूँगी में बंद अपने बुर्ज खलीफा पर हाथ रखकर उसे सहला रहे थे और धीरे-2 ग्लास से सीप ले रहे थे
मैं अंतर्यामी तो नही थी पर इस वक़्त उनके मन में क्या चल रहा था मैं ये जरूर बता सकती थी
मेरी ड्रेस और सैक्सी बदन को देखकर वो मुझे किस तरह दबोचे यही उनके दिलो दिमाग़ में चल रहा था इस वक़्त
कभी वो मेरे रूम की तरफ देखते और कभी वो मोबाइल उठा कर कुछ देखने लगते
शायद कोई पॉर्न वीडियो देख रहे थे
ऐसे ही करते- 2 उन्होने 2 पेग निपटा दिए दिए
और वो पल भी आने वाला था जिसका इंतजार मैं कब से कर रही थी
तीसरा पेग उन्होने बनाया और उसे लेकर उठ खड़े हुए और मेरे कमरे की तरफ आने लगे
अब उन्हे सर्प्राइज़ देने का टाइम आ चूका था
जिसके लिए मुझे बहुत हिम्मत की ज़रूरत थी
पर आगे कुछ करना था तो हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी ना
वरना कब तक उनके नशे में जाने का वेट करू और उनके लॅंड से अकेली ही खेलती रहूं
उनका भी तो हक बनता है ना
मैं जल्दी से अपनी पोज़िशन लेकर बेड पर लेट गयी
और जैसे ही धीरे से दरवाजा खुलने की आवाज़ आई , मैने अपने हाथ में पकड़ा मोबाइल अपने कान से लगाया और उसपर बात करने का नाटक करने लगी
मैं : “यार श्रुति…..ये कैसे होगा….मुझे तो अभी तक समझ नही आ रहा है….यार….ऐसे मैं कैसे कर सकती हूँ ….मेरी चूत का पानी निकले ही जा रहा है…”
मेरे मुँह से चूत शब्द सुनते ही पापा के कान खड़े हो गये और वो वहीं छुपकर मेरी बाते सुनने लगे
बस यही तो मैं चाहती थी
मैने कमरे की लाइट बुझा रखी थी और सिर्फ़ एक नाइट बल्ब जल रहा था
उस रौशनी में उन्हे तो मेरा जिस्म आँखो पर ज़ोर लगाने से
पर मुझे वो दरवाजे के बाहर खड़े सॉफ दिखाई पड़ रहे थे..
मैं आगे बोली : “तू पागल हो गयी है क्या…..वहां उंगली डालूंगी तो मेरा कुँवारापन चला जाएगा….याद है ना स्कूल में मेडम ने एक बार चैप्टर में पढ़ाया था ये की हमारी हाइमन की परत फटने से वी आर नो लोंगर वर्जिन”
अब पापा भी शायद समझने लगे थे की मैं और मेरी सहेली के बीच क्या बातचीत हो रही है
और इस वक़्त मैं मोरनी बनकर बैठी थी अपने बेड पर
अपनी नन्ही सी गांड दरवाजे की तरफ फेलाए हुए
पेट पर तकिया लगाकर
घुटने मोड़कर
अपनी स्कर्ट को नीचे खिसकाकर
और इस पोज़ में पापा मेरी नंगी गांड सॉफ देख पा रहे थे
मैने पीछे की तरफ चेहरा करके उन्हे देखा, उन्हे तो अपनी आँखो पर विश्वास ही नही हो पा रहा था की वो क्या देख रहे है, अपनी जवान बेटी की नंगी गांड
और वो भी इतने करीब से
सिर्फ़ 5 फीट का ही तो फासला था बीच में
2 कदम आगे आकर वो सीधा मेरी गांड सूंघ सकते थे
इतने करीब थे वो
और शायद वो भी यही चाह रहे थे इस वक़्त
पर अपनी जवान बेटी की जवानी की इस हरकत को वो छुप कर पूरा देखने का मन बना चुके थे
उन्हे भी पता था शायद की इस उम्र में हर किसी का ये मन करता है
अपने अंगो को छूने का
उन्हे मसलने का
मास्टरबेट करने का
जो की इस उम्र मे नॉर्मल है
उन्होने भी किया होगा शायद
हर कोई करता है इस उम्र में
पर ऐसे किसी का बाप शायद ही देख पाता होगा अपनी बेटी को ये सब करते हुए
वो तो अपने आप को भाग्यशाली समझ रहे थे की उन्हे ये देखने का अवसर मिला
इसलिए किसी बागड़ बिल्ले की तरह
बिना कोई आहत किए वो दम साधे मेरे इस खेल को देख रहे थे
और अपने हाथ में पकड़े ग्लास से सीप-2 करके दारू पी रहे थे
और दूसरे हाथ से अपनी लुंगी के सांप का फ़न मसल रहे थे
शराब और शबाब का संगम जब होता है तो मज़ा वैसे ही दुगना हो जाता है
उन्हे तो शायद ऐसा फील हो रहा था जैसे वो किसी क्लब में बैठकर कमसिन लड़की को नंगा देख रहे है दारू पीते हुए
और मैं इस वक़्त जो बोल रही थी उस से मैं पापा को ये दिखना चाहती थी की मुझे तो इन सबके बारे में कुछ भी पता नही है
उंगली डालने से क्या होगा
मास्टरबेट क्या होता है
कैसा मज़ा मिलेगा
ये इम्प्रेशन मैं देना चाहती थी पापा को अपनी तरफ से की मुझे इन सबके बारे में कुछ नही पता
मैं फिर बोली : “अच्छा रुक….डालती हूँ …..उम्म्म्मम……यार वहां तो बिल्कुल चिपचिपा सा कुछ निकल रहा है…..हाँ, पहले भी निकलता था पर मैने ज़्यादा ध्यान नही दिया…..ओके …..उम्म्म्म….हां …डाल दी…उफफफफ्फ़……..”
और ये काम मैं सच में कर रही थी
बातें भले ही झूठी थी फोन पर
लेकिन फीलिंग्स सच्ची थी कसम से
अपनी उंगली को मैं अपनी चूत में धकेल कर धीरे-2 अंदर बाहर कर रही थी
जिसे पीछे खड़े पापा भी सॉफ देख पा रहे थे
कम रोशनी की वजह से वो शायद मेरी चूत को सॉफ-2 नही देख पा रहे थे
पर चिकने घड़े के नीचे मेरे हाथ को अंदर बाहर होते हुए वो सॉफ देख पा रहे थे
मेरी तो आँखे खुद ब खुद बंद होने लगी और जैसा की आजकल मैं मास्टरबेट करते हुए पापा का नाम लेती हूँ अक्सर
वहां भी मेरे मुँह से अचानक उन्ही का नाम निकलने लगा
“उम्म्म्मममममममममममममम…….ओह पााअ………”
पर पा बोलते ही मेरी चूत के बाल एकदम से खड़े हो गये
मैने जल्दी से बात संभाली
“पानी ssssss यार…..श्रुति……पानी बहुत निकल रहा है……..अहह….इतना पानी पीकर तो किसी की भी प्यास बुझ जाएगी…..हीही”
फिर कुछ देर बाद मैं बोली
“पागल है क्या…..लड़के भला क्यो पिएँगे वहां का पानी….गंदा होता है ना…..”
फिर कुछ देर तक फोन सुनने का नाटक करने के बाद
“अच्छा …सच में ….रुक मैं टेस्ट करती हूँ तू कहती है तो……उम्म्म्मममम…..अहह….ये तो सच में काफ़ी टेस्टी है………उम्म्म्ममम……सड़प-२ ”
इतना कहते-2 मैने अपनी सारी उंगलिया पापा को दिखाते हुए अपने मुँह में लेकर चूस डाली
मैने कनखियो से देखा तो पापा ये सब देखकर बावले से हो चुके थे
वो भी अपनी उंगलिया शराब के ग्लास में डुबोकर उन्हे चूस रहे थे
ठीक मेरी तरह
मानो वो शराब नही मेरी चूत का रस चाट रहे है अपनी उंगलियो से
ओले ओले
मेले प्यारे पापा
उन्हे इस हालत में देखकर मेरा तो दिल ही पसीज गया
एक बार तो मन किया की उन्हे अंदर बुलवा कर आज ही सब कुछ करवा लूँ
पर ये सब करने मे जो रोमांच महसूस हो रहा था उसका कोई मुकाबला नही था
और मैं ये भी जानती थी की वो जितना तड़पेंगे, बाद में मुझे उतनी ही शिद्दत से तड़पा - कर चोदेगे भी
इसलिए अभी के लिए ऐसे ही चलते रहने देती हूँ
मैने फिर से अपनी उंगलियाँ अपनी चूत में खोंसि और जोरों से उसे मसलने लगी
कुछ देर पहले तक मैं अंजान बनने का जो नाटक कर रही थी
उसके बाद मैं एकदम से कैसे परफेक्शन के साथ मास्टरबेट करने लगी, ये शायद पापा भी नही जान पाए
वरना मेरी चालाकी वहीं पकड़ी जाती
वो तो उन्हे शराब और मेरे नंगे जिस्म का सरूर चढ़ चूका था वरना पॉलिसिआ नज़र से मैं कैसे बचती भला
मेरी चूत से फुव्वारे निकल रहे थे आनंदमयी बूँदो के
और उन्हे हवा में उछलता देखकर पापा की जीभ लपलपा रही थी
मैने एक गहरी साँस लेते हुए अपने जिस्म को निढाल छोड़ दिया
और फिर से अपनी उंगलियो को चाटते हुए फोन पर बात करने लगी
“यार….तू सही कह रही थी….इस खेल में तो सच में बहुत मज़ा आता है….काश कोई होता जिसके साथ मैं ये सब कर पाती…”
कुछ देर रुक कर
“पागल है क्या….तू पापा को जानती है ना, मैं किसी लड़के से बात भी करूँगी तो उन्हे पता चल जाएगा… ना बाबा ना….मैं ऐसा कुछ भी नही करने वाली…दोस्ती अलग चीज़ है, ये काम तो मैं शादी के बाद अपने हस्बैंड के साथ ही करूँगी बस….या फिर ऐसे अकेले में खुद के साथ ही ही, चल अब तू सो जा…मुझे भी पापा को खाना गर्म करके देना है….गुड नाइट…”
फ़ोन रखने के बाद मैंने पास पड़े कपडे से अपनी चूत को अच्छे से साफ़ किया और उन कड़क लिप्स को एक आखिरी बार अपनी उँगलियों से थिरकाते हुए पापा को दिखाया ताकि उनकी आँखों को भी चैन आ जाए
Re: Police daughter sex story
फिर मैं उठकर बाथरूम की तरफ चल दी, पापा भी समझ गये की कुछ ही देर में मैं बाहर निकलने वाली हूँ , इसलिए वो भी दरवाजा वापिस बंद करके दबे पाँव अपनी सीट पर जाकर बैठ गये और एक ही बार में अपना पेग खींच डाला और अपनी मूँछो पर ताव देते हुए वो मेरे आने की प्रतीक्षा करने लगे
मैं फ्रेश होकर बाहर आई और पापा से बोली : “पापा , आपका हो गया हो तो मैं खाना लगा दूँ आपका…”
पापा अब थोड़ी मस्ती के मूड में आ चुके थे
शायद औरत के जिस्म में जो हलचल होती है, उसका असर कितनी देर तक रहता है , वो अच्छे से जानते थे
इसलिए उन्होने मुझे अभी के लिए रोक दिया और अपने पास बुलाया और बड़े ही प्यार से मुझे अपनी गोद में बिठा लिया
हे भगवान……ये क्या है….
मुझे तो ऐसा लगा जैसे मैं किसी पाइप्लाइन के उपर बैठ गयी हूँ
मेरी गांड के नीचे उनका खड़ा लॅंड था
उनका हाथ मेरे पेट पर था और वो मुझसे इधर उधर की बाते पूछने में लगे थे
सॉफ जाहिर था की उन बातों से उन्हे कोई मतलब नही था
वो तो बस ताज़ा झड़ी चूत की खुश्बू करीब से लेना चाहते थे बस
बीच -२ में वो मेरे हाथों को प्यार से सेहला देते और बातों- २ में उन्हें चूम भी लेते
कोई और मौका होता तो ये बाप बेटी का प्यार ही समझती मैं
पर इस वक़्त तो डेड़ु ठरकी मेरी उन उँगलियों को सूंघ रहे थे जो कुछ देर पहले तक मेरी चूत में थी
मेरे पेट पर उनका दूसरा हाथ किसी नाग की तरह रेंग रहा था
मैं तो मदहोश सी होने लगी थी
पिछले कुछ दिनों से जितना कुछ मैने अपने पापा के बारे में सोचा था
उनके लॅंड को मुँह में लेकर चूसा था
उन्हे चुदाई करते हुए देखा था
उसके बाद ऐसी मदहोशी का आना तो स्वाभाविक ही था
मैं अपनी उम्र के किसी भी लड़के से मज़े ले सकती थी
पर पता नही ये कैसा नशा था की मैं पापा की तरफ आकर्षित होती जा रही थी
और उसी का परिणाम था की उन्हे रिझाने के लिए मैने आज अपने रूम में वो फोन पर बात करने और मास्टरबेट करने का स्वांग रचा
और उसी का असर था की पापा मुझे इस वक़्त अपनी बेटी से ज़्यादा एक जवान लड़की के रूप में देख रहे थे
एक ऐसी जवान हो चुकी लड़की , जिसे अपने जवान शरीर के बारे में कुछ नही पता था
कैसे मज़े लेने है उसका भी अंदाज़ा नही था इस लड़की को
और शायद पापा को ये बात समझ आ चुकी थी
इसलिए आज उनके अंदर का पापा एक अध्यापक बनकर मुझे सैक्स का पाठ सिखाने वाले थे
इधर उधर की बातों के बाद पापा बोले : “देखो बेटा…अब तुम जवान हो रही हो, तुम्हारे अंदर काफ़ी चेंजेस आ रहे होंगे…जिनके बारे में तुम खुलकर मुझसे बात कर सकती हो…या पूछ सकती हो….”
मैने हैरानी से उन्हे देखने लगी, किसी मासूम की तरह
हालाँकि मुझे पता था की ऐसा काम अक्सर माँ करती है अपनी बेटियों के साथ , पर पापा को तो अपनी मस्ती से मतलब था
मैने भी हिम्मत जुटाने का नाटक किया और बोली : “वो…वो पापा….आजकल ना….रात को पता नही क्यों ….मेरी सूसू वाली जगह से…कुछ -2 निकलता है…..चिपचिपा सा….”
पापा एकदम से परेशानी वाले मोड में आ गये, जैसे पता नही क्या बीमारी हो गयी हो मुझे
“अर्रे अर्रे….ये कब से हो रहा है….”
मैं : “काफ़ी दिन हो गये पापा…आज तो मैने श्रुति से भी पूछा था….तो उसने ….उसने…”
मैं शर्मा सी गयी
पापा : “हाँ हाँ बोलो….क्या बोला उसने…”
मैं : “उसने कहा की ये तो आम बात है इस उम्र में …मुझे अंदर फिंगर डालने को कहा….और जब मैने डाली तो ….तो…बहुत सारा पानी निकला….और …और मुझे मज़ा भी आया…”
पापा : “यही तो नासमझ बच्चो की परेशानी है….उसने जो कहा तुमने मान लिया….”
मैं : “तो क्या पापा….उसने ग़लत कहा था….मुझे तो सही लगा…. ”
पापा भी मेरी बात पर मंद-२ मुस्कुरा दिए
पापा : “देखो, हर चीज़ का एक तरीका होता है…..तुमने जो खुद से किया, सही किया या ग़लत, ये कैसे पता…ये तो किसी समझदार इंसान की देख रेख में करना था तुम्हे…”
मैं : “पर पापा…मैं कैसे कहूं किसी को….मम्मी को भी मैने बताने की कोशिश की पर उन्होने मुझे डांट दिया…तभी मैने श्रुति से पूछा था आज….अब मैं क्या करू पापा…किसी लेडी डॉक्टर को दिखाऊं क्या ? ”
पापा : “तुम्हारी माँ तो निरि नासमझ है….उसे कैसे पता की बच्चों को कैसे हॅंडल करते है…पर तुम फ़िक्र मत करो मेरी बच्ची , मेरे होते हुए तुम्हे कोई फ़िक्र करने की ज़रूरत नही है….”
मैं : “पापा…..आप…..पर….आप कैसे…..आई मीन….आप तो ….एक मर्द…हो”
पापा : “मर्द हूँ , पर उस से पहले तुम्हारा पापा हूँ ….मेरी बच्ची को इतनी बड़ी तकलीफ़ हो और मैं कुछ ना करू, ये नही हो सकता, तुम फ़िक्र मत करो, ये बात हम दोनो के बीच ही रहेगी, किसी डॉक्टर के पास जाने की भी ज़रूरत नही है, ये काम कैसे करना है , मैं अच्छे से जानता हूँ ….तुम बस मुझपर भरोसा रखो और ये बात मम्मी को भी नही बताना…समझे…”
पापा का हाथ अब मेरी जाँघो पर रेंग रहा था
चालू तो वो बहुत थे
मेरे वीक पॉइंट के उपर अपने सख़्त हाथों से मसाज करके वो मुझसे हाँ करवाना चाहते थे
और वो समझ रहे थे की उन्होने मुझे अपनी चिकनी चुपड़ी बातों मे फँसा लिया है
जबकि, ऐसा मैने किया था
अपनी शानदार एक्टिंग से उन्हे अपनी बॉटल में उतार लिया था
अब पापा वो सब करने वाले थे
जैसा मैं चाहती थी
जो मैं उनसे चाहती थी
मैं और इंतजार नही कर सकती थी
इसलिए मैने धीरे से उनके कान में गर्म साँसे छोड़ते हुए कहा : “ओके पापा…जैसा आपको ठीक लगे…”
ऐसा करते हुए मैने जान बूझकर अपने गीले होंठो से उनके कानो को छू लिया
जिसकी तरंगे उनके पूरे शरीर में दौड़ती हुई महसूस की मैने….उनके लॅंड तक
आवेश में आकर उन्होंने मुझे अपने गले से लगा लिया
मेरे नंगे बूब्स उनकी चौड़ी छाती में पीसकर आमलेट बनकर रह गए
अब पापा की पाठशाला शुरू होने वाली थी
जिसके लिए मैने ये सब जतन किए थे
मैं फ्रेश होकर बाहर आई और पापा से बोली : “पापा , आपका हो गया हो तो मैं खाना लगा दूँ आपका…”
पापा अब थोड़ी मस्ती के मूड में आ चुके थे
शायद औरत के जिस्म में जो हलचल होती है, उसका असर कितनी देर तक रहता है , वो अच्छे से जानते थे
इसलिए उन्होने मुझे अभी के लिए रोक दिया और अपने पास बुलाया और बड़े ही प्यार से मुझे अपनी गोद में बिठा लिया
हे भगवान……ये क्या है….
मुझे तो ऐसा लगा जैसे मैं किसी पाइप्लाइन के उपर बैठ गयी हूँ
मेरी गांड के नीचे उनका खड़ा लॅंड था
उनका हाथ मेरे पेट पर था और वो मुझसे इधर उधर की बाते पूछने में लगे थे
सॉफ जाहिर था की उन बातों से उन्हे कोई मतलब नही था
वो तो बस ताज़ा झड़ी चूत की खुश्बू करीब से लेना चाहते थे बस
बीच -२ में वो मेरे हाथों को प्यार से सेहला देते और बातों- २ में उन्हें चूम भी लेते
कोई और मौका होता तो ये बाप बेटी का प्यार ही समझती मैं
पर इस वक़्त तो डेड़ु ठरकी मेरी उन उँगलियों को सूंघ रहे थे जो कुछ देर पहले तक मेरी चूत में थी
मेरे पेट पर उनका दूसरा हाथ किसी नाग की तरह रेंग रहा था
मैं तो मदहोश सी होने लगी थी
पिछले कुछ दिनों से जितना कुछ मैने अपने पापा के बारे में सोचा था
उनके लॅंड को मुँह में लेकर चूसा था
उन्हे चुदाई करते हुए देखा था
उसके बाद ऐसी मदहोशी का आना तो स्वाभाविक ही था
मैं अपनी उम्र के किसी भी लड़के से मज़े ले सकती थी
पर पता नही ये कैसा नशा था की मैं पापा की तरफ आकर्षित होती जा रही थी
और उसी का परिणाम था की उन्हे रिझाने के लिए मैने आज अपने रूम में वो फोन पर बात करने और मास्टरबेट करने का स्वांग रचा
और उसी का असर था की पापा मुझे इस वक़्त अपनी बेटी से ज़्यादा एक जवान लड़की के रूप में देख रहे थे
एक ऐसी जवान हो चुकी लड़की , जिसे अपने जवान शरीर के बारे में कुछ नही पता था
कैसे मज़े लेने है उसका भी अंदाज़ा नही था इस लड़की को
और शायद पापा को ये बात समझ आ चुकी थी
इसलिए आज उनके अंदर का पापा एक अध्यापक बनकर मुझे सैक्स का पाठ सिखाने वाले थे
इधर उधर की बातों के बाद पापा बोले : “देखो बेटा…अब तुम जवान हो रही हो, तुम्हारे अंदर काफ़ी चेंजेस आ रहे होंगे…जिनके बारे में तुम खुलकर मुझसे बात कर सकती हो…या पूछ सकती हो….”
मैने हैरानी से उन्हे देखने लगी, किसी मासूम की तरह
हालाँकि मुझे पता था की ऐसा काम अक्सर माँ करती है अपनी बेटियों के साथ , पर पापा को तो अपनी मस्ती से मतलब था
मैने भी हिम्मत जुटाने का नाटक किया और बोली : “वो…वो पापा….आजकल ना….रात को पता नही क्यों ….मेरी सूसू वाली जगह से…कुछ -2 निकलता है…..चिपचिपा सा….”
पापा एकदम से परेशानी वाले मोड में आ गये, जैसे पता नही क्या बीमारी हो गयी हो मुझे
“अर्रे अर्रे….ये कब से हो रहा है….”
मैं : “काफ़ी दिन हो गये पापा…आज तो मैने श्रुति से भी पूछा था….तो उसने ….उसने…”
मैं शर्मा सी गयी
पापा : “हाँ हाँ बोलो….क्या बोला उसने…”
मैं : “उसने कहा की ये तो आम बात है इस उम्र में …मुझे अंदर फिंगर डालने को कहा….और जब मैने डाली तो ….तो…बहुत सारा पानी निकला….और …और मुझे मज़ा भी आया…”
पापा : “यही तो नासमझ बच्चो की परेशानी है….उसने जो कहा तुमने मान लिया….”
मैं : “तो क्या पापा….उसने ग़लत कहा था….मुझे तो सही लगा…. ”
पापा भी मेरी बात पर मंद-२ मुस्कुरा दिए
पापा : “देखो, हर चीज़ का एक तरीका होता है…..तुमने जो खुद से किया, सही किया या ग़लत, ये कैसे पता…ये तो किसी समझदार इंसान की देख रेख में करना था तुम्हे…”
मैं : “पर पापा…मैं कैसे कहूं किसी को….मम्मी को भी मैने बताने की कोशिश की पर उन्होने मुझे डांट दिया…तभी मैने श्रुति से पूछा था आज….अब मैं क्या करू पापा…किसी लेडी डॉक्टर को दिखाऊं क्या ? ”
पापा : “तुम्हारी माँ तो निरि नासमझ है….उसे कैसे पता की बच्चों को कैसे हॅंडल करते है…पर तुम फ़िक्र मत करो मेरी बच्ची , मेरे होते हुए तुम्हे कोई फ़िक्र करने की ज़रूरत नही है….”
मैं : “पापा…..आप…..पर….आप कैसे…..आई मीन….आप तो ….एक मर्द…हो”
पापा : “मर्द हूँ , पर उस से पहले तुम्हारा पापा हूँ ….मेरी बच्ची को इतनी बड़ी तकलीफ़ हो और मैं कुछ ना करू, ये नही हो सकता, तुम फ़िक्र मत करो, ये बात हम दोनो के बीच ही रहेगी, किसी डॉक्टर के पास जाने की भी ज़रूरत नही है, ये काम कैसे करना है , मैं अच्छे से जानता हूँ ….तुम बस मुझपर भरोसा रखो और ये बात मम्मी को भी नही बताना…समझे…”
पापा का हाथ अब मेरी जाँघो पर रेंग रहा था
चालू तो वो बहुत थे
मेरे वीक पॉइंट के उपर अपने सख़्त हाथों से मसाज करके वो मुझसे हाँ करवाना चाहते थे
और वो समझ रहे थे की उन्होने मुझे अपनी चिकनी चुपड़ी बातों मे फँसा लिया है
जबकि, ऐसा मैने किया था
अपनी शानदार एक्टिंग से उन्हे अपनी बॉटल में उतार लिया था
अब पापा वो सब करने वाले थे
जैसा मैं चाहती थी
जो मैं उनसे चाहती थी
मैं और इंतजार नही कर सकती थी
इसलिए मैने धीरे से उनके कान में गर्म साँसे छोड़ते हुए कहा : “ओके पापा…जैसा आपको ठीक लगे…”
ऐसा करते हुए मैने जान बूझकर अपने गीले होंठो से उनके कानो को छू लिया
जिसकी तरंगे उनके पूरे शरीर में दौड़ती हुई महसूस की मैने….उनके लॅंड तक
आवेश में आकर उन्होंने मुझे अपने गले से लगा लिया
मेरे नंगे बूब्स उनकी चौड़ी छाती में पीसकर आमलेट बनकर रह गए
अब पापा की पाठशाला शुरू होने वाली थी
जिसके लिए मैने ये सब जतन किए थे