तभी मेरी सहेली मुझे लेने आ गई और हम दोनों उस वक्त भी चुदाई कर रहे थे।
वो हमें देख कर हँसने लगी और कहा- अभी तक तुम दोनों का मन नहीं भरा ! ठीक है कर लो, मैं यही इन्तजार करती हूँ !
मुझे उसके सामने शर्म आ रही थी, पर मैं खुद को आज़ाद भी नहीं कर पा रही थी।
कुछ देर बाद हम दोनों फिर से झड़ गए। मैंने जल्दी से अपनी योनि को साफ़ किया कपड़े पहने और चली गई।
सुधा हँसते हुए बोली- काफी प्यासी लग रही हो, सुबह पता चलेगा रात की मस्ती का !
मैं शर्माते हुए जाने लगी।
अपने कमरे में जाते ही मैं कब सो गई पता ही नहीं चला और सुबह देर तक सोती रही।
अगले दिन मैं करीब 10 बजे उठी तो भाभी ने मुझे सुबह पूछा- इतनी देर तक सोती हो क्या तुम?
मैंने जवाब दिया- नहीं.. पर रात को नींद नहीं आ रही थी, तो देर से सोई हूँ इसलिए देर हो गई उठने में !
मैं जब बिस्तर से उठ रही थी, तो मेरे बदन में दर्द हो रहा था, जांघें अकड़ सी गई थीं, पेशाब करने गई, तो जलन महसूस हुई।
ये सब रात की कामक्रीड़ा का असर था। सुधा सच कह रही थी कि सुबह पता चलेगा।
मुझे मेरा पहला सहवास याद आ गया क्योंकि सुहागरात के दूसरे दिन यही सब मैंने महसूस किया था।
मैं मन ही मन मुस्कुराई और फिर अपना नहाना-धोना सब कर के तैयार हो गई।
दिन भर मैं घर में भाभी के कामों में हाथ बंटाती रही।
शाम को मेरी सहेली और विजय छत पर आए और मैं और भाभी भी गए।
हम सब काफी देर तक गप्पें करते रहे, फिर भाभी नीचे चली गईं और रात के खाने की तैयारी करने लगी।
हम तीनों वहीं बैठे बात करते रहे।
सुधा ने रात की बात को लेकर मुझे छेड़ना शुरू कर दिया। वो बिल्कुल बेशर्म हो गई थी और विजय उसका साथ दे रहा था।
ख मेरी जिंदगी में पहली बार था कि किसी की जानकारी में मैंने सम्भोग किया हो।
वो बार-बार मुझसे पूछ रही थी कि रात को क्या-क्या किया हमने.. पर मैं उसकी बात टाल दे रही थी।
अब काफी देर हो चुकी थी, सो मैं नीचे जाने लगी।
तब विजय ने कहा- तुम आज आओगी न?
मैंने कहा- अगर किसी को शक नहीं हुआ और सब ठीक लगा तो जरुर आऊँगी।
फिर मैं नीचे चली गई, सबको खाना खिलाया फिर मैं और भाभी खाना खा कर अपने-अपने कमरे में चले गए।
मैं पिताजी के पास गई, उन्हें अच्छे से सुला दिया और फिर अपने कमरे में आ गई।
अब मुझे उसके फोन का इन्तजार था। करीब 10 बजे फोन आया कि मैं सीधे गोदाम में चली आऊँ।
मैंने बाहर निकल कर देखा कहीं कोई देख तो नहीं रहा, फिर दबे पाँव गोदाम के तरफ चल दी।
मैंने अन्दर जा कर देखा विजय पहले से वहाँ मेरा इन्तजार कर रहा था।
मेरे दरवाजा बंद करते ही उसने अपने कपड़े उतार दिए और नंगा हो गया और मुझे भी कपड़े उतारने को कहा।
मैंने भी मुस्कुराते हुए अपने कपड़े उतार दिए और नंगी हो गई।
हमने एक-दूसरे के नंगे जिस्म को देखा और फिर मुस्कुराते हुए सामने आए फिर दोनों आपस में चिपक गए।
हमने एक-दूसरे के जिस्मों से खेलना शुरू कर दिया। पहले तो हमने जी भर के होंठों और जुबान को चूसा, फिर उसने मेरे स्तनों को बेरहमी से मसलना शुरू कर दिया।
मैं बस हाय-हाय करती रह गई।
उसने मुझे घुमा कर मेरे पीठ की तरफ से मुझे पकड़ा और मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया फिर मेरी पीठ को चूमता हुआ नीचे आने लगा।
फिर मेरी कमर और चूतड़ को प्यार से दबाने और चूमने लगा उन्हें सहलाने लगा।
मेरी योनि अब गीली होने लगी थी। मैं अब उत्तेजित हो रही थी। उसने मेरे चूतड़ों को हाथों से फैलाया और पीछे से मेरी योनि को चाटने लगा।
उसने अपनी जुबान को मेरी पंखुड़ियों के ऊपर फिराना शुरू कर दिया, फिर योनि को दो उंगलियों से फैला कर अपनी जुबान उसमें घुसाने की कोशिश करने लगा।
मुझे बहुत मजा आ रहा था। मैंने भी अब उसका लिंग चूसने का सोच लिया, पर उसके दिमाग में आज कुछ और ही था।
उसने मुझसे कहा- आज कुछ अलग करूँगा !
मैंने पूछा- क्या?
तब उसने एक बोतल निकाली, उसमें तेल था। उसने तेल मेरे पूरे बदन पर मलना शुरू कर दिया। गले से पाँव तक मुझे तेल में डुबो दिया।
मैंने पूछा- क्या कर रहे हो?
तो उसने कहा- मालिश कर रहा हूँ।
मैं मुस्कुराते हुए बोली- इतना तेल कोई लगाता है क्या..?
तब उसने कहा- बस तुम देखती जाओ।
मेरा पूरा बदन तेल की वजह से झलक रहा था। फिर उसने अपना बदन मेरे बदन से रगड़ना शुरू कर दिया।
थोड़ा और तेल लेकर उसने मुझे उसके बदन पर लगाने को कहा। मैंने भी प्यार से उसके बदन पर तेल लगा कर मालिश की। उसके लिंग को पूरी तरह से तेल में नहला दिया।
हम दोनों अब तेल में चमक रहे थे।
उसकी हरकत अब जाहिर कर रही थी कि वो अब पूरा गर्म हो चुका है और पूरे जोश में है।
उसने मुझे दीवार के एक कोने में ले जाकर कहा- तुम इन दो बोरियों के ऊपर अपनी दोनों टाँगें फैला कर खड़ी हो जाओ !
उन दो बोरियों के बीच करीब 2 फ़ीट की दूरी थी और ऊंचाई करीब 1 फिट थी। मैं खड़ी हो गई दोनों टाँगें फैला कर। मैं बेताब थी कि आखिर वो क्या करने जा रहा है !
उसने मेरी योनि पर थोड़ा तेल और लगाया और उंगली से अन्दर भी लगा दिया। फिर अपने लिंग पर भी लगा कर उसे हाथ से हिला कर और खड़ा किया।
अब वो मेरे पास आया और मेरी कमर को एक हाथ से पकड़ कर दूसरे हाथ से अपने लिंग को मेरी योनि पर रगड़ने लगा। मैंने भी उसको गले में हाथ डाल कर पकड़ लिया और अपनी योनि को उसके तरफ आगे कर दिया।
मेरी योनि बहुत गीली हो चुकी थी और मेरे अन्दर वासना की आग जल रही थी।
फिर उसने अपने लिंग को मेरी योनि की छेद पर टिका कर दोनों हाथों से मेरे दोनों चूतड़ों को कस कर पकड़ा और मेरे होंठों पर अपने होंठ रखते हुए मुझे चूम लिया।
फिर मेरे होंठों को चूसते और जुबान को जुबान से टकराते हुए धक्का दिया। पूरा का पूरा लिंग फिसलते हुए मेरी योनि की गहराई में उतरता हुआ मेरे बच्चेदानी से टकरा गया।
मैं सिसक गई… मजे में कराह उठी।
उसने मेरे चूतड़ों को दबाते हुए मुझे चोदना शुरू कर दिया, वो मुझे जोरों से धक्के मार रहा था, मैं हर धक्के पर उसका साथ दे रही थी। मेरे मुँह से अजीब-अजीब सी आवाज आने लगी थीं, साथ ही योनि में लिंग के घुसने और निकलने से ‘फच…फच’ की आवाज आ रही थी और जब उसका बदन मेरे से टकराता तो ‘थप-थप’ की भी आवाज निकल रही थी।
हम काफी देर तक ऐसे ही चुदाई करते रहे, फिर उसने मुझे जमीन पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया।
वो मुझे बार-बार एक ही बात कहता- बहुत मजा आ रहा है.. तुम्हारी बुर कितनी मुलायम और कसी हुई है !
मुझे अपनी तारीफ़ सुन कर अच्छा लग रहा था और मैं और जोश में आ रही थी और अपनी कमर उछाल कर उसके लिंग को अपनी योनि में और अन्दर तक लेने की कोशिश कर रही थी।
मेरी योनि से पानी रिस रहा था और उसका लिंग उसमें पूरी तरह भीग कर चिपचिपा हो गया था।
करीब 20 मिनट के बाद मैं झड़ गई और मेरे कुछ देर बाद वो भी मेरे अन्दर रस की पिचकारी मारते हुए झड़ गया।
हम हाँफते हुए एक-दूसरे से काफी देर तक लिपटे रहे। जब कुछ सामान्य हुए तो फिर से कुछ अलग करने की उसने कहा।
मैंने पूछा- और क्या करने का इरादा है?
उसने कहा- चुदाई तो आम बात है.. कुछ ऐसा करते हैं.. जो अलग हो !
फिर उसने कहा- जैसा फिल्मों में होता है वैसा।
मैंने पूछा- जैसे क्या?
उसने कहा- जैसे अलग-अलग पोजीशन में चोदना, कुछ गन्दी हरकतें करना, गन्दी बातें करना, एक साथ बहुत से लोगों के साथ चुदाई करना, खुले में चोदना, ये सब !
तब मैंने कहा- तुमने इन में से कुछ चीजें तो कर ली हैं, पर अब गन्दी चीजें करना, खुले में चोदना और बहुत से लोगों के साथ चोदना ही रहा गया है।
तब उसने कहा- आज रात मैं तुम्हें खुले में चोदना चाहता हूँ !
मैंने तुरंत कहा- यह नहीं हो सकता, यह गाँव है किसी ने देख लिया तो तुम्हें और मुझे जान से मार डालेंगे !
तब उसने कहा- गोदाम के पीछे तो जंगल सा है और अँधेरा है और इतनी रात को उधर कौन आएगा !
मैंने कहा- बिल्कुल नहीं.. उधर मुझे डर लगता है, कहीं कोई सांप-बिच्छू ने काट लिया तो?
तब उसने कहा- जीने का असली मजा तो डर में ही है।
और वो जिद करने लगा, रात काफी हो चुकी थी, करीब 12 बज चुके थे तो मैंने भी हार कर ‘हाँ’ कह दी।
हम दोनों अभी भी नंगे थे, उसने पहले निकल कर देखा कि कहीं कोई है तो नहीं, फिर मुझसे कहा- चलो !
मैंने अपने कपड़े साथ लेने की सोची, पर उसने मुझे नंगी ही चलने को कहा।
हम गोदाम के पीछे चले गए, उधर बहुत अँधेरा था और झाड़ियाँ भी थीं, 2-3 पेड़ भी थे।
पर अच्छी बात यह थी कि ज़मीन पर घास थी। हलकी रोशनी में उसने मुझे एक पेड़ के नीचे खड़ा कर दिया और मुझे लिपट कर मेरे बदन से खेलने लगा, मेरे स्तनों को जोर-जोर से मसलने लगा और मेरे होंठों को चूसने लगा।
मैं दर्द से कराह रही थी।
फिर मेरे स्तनों को मुँह लगा कर चूसने लगा, उसने कहा- इसमें दूध नहीं आता क्या?
मैंने कहा- आता था, पर कुछ महीनों से बंद हो गया है, क्या तुम मेरा दूध पियोगे अब !
उसने बच्चों की तरह चूसते हुए कहा- हाँ.. अगर निकलता तो जरुर पीता.. एक औरत के दूध में जो मजा है, वो और कहीं नहीं !
तब उसने बताया- सुधा का दूध अभी भी आता है। उसका आना बंद हो गया था, पर एक बार उसका बच्चा ठहर गया, तब से दुबारा आना शुरु हो गया।
मैंने उससे पूछा- क्या वो बच्चा तुम्हारा था?
तो उसने कहा- पता नहीं.. क्योंकि उस महीने उसने 4 लोगों के साथ बिना कॉन्डोम के चुदवाया था और एक रात मुझसे और मेरे एक दोस्त के साथ भी बिना कॉन्डोम के चुदी थी, हम दोनों ही उसकी बुर के अन्दर झड़ गए थे !
मैंने तब पूछा- तुम दोनों एक साथ उसको चोद रहे थे?
तब उसने कहा- नहीं.. बारी-बारी से चोदा, एक साथ उसे अच्छा नहीं लगता, पर उस दिन उसकी हालत खराब हो गई थी। मैंने 3 बार और मेरे दोस्त ने 4 बार चोदा था उसको !
मैं ये सब सुनकर हैरान हो गई कि लोग ऐसा भी करते हैं।
तभी उसने कहा- क्या तुम एक या दो से अधिक मर्दों के साथ चुदवाना पसंद करोगी?
मैंने तुरंत कहा- नहीं !
तब उसने कहा- बहुत मजा आता है ऐसे और खासकर तब.. जब उतनी ही औरतें भी साथ हों ! कभी इसको तो कभी उसको चोदो पूरी रात.. धकापेल !
मैंने साफ़ मना कर दिया पर उसने कहा- कल हम तीनों साथ में चुदाई करेंगे !
तब मैंने कह दिया- ठीक है !
इसी तरह बातें करते और एक-दूसरे के जिस्मों से खेलते हम काफी गर्म हो चुके थे, उसका लिंग कड़क हो गया था, उसने मुझे पेड़ की तरफ मुँह करके झुक कर पेड़ को पकड़ने को कहा। फिर मेरी टाँगों को फैला कर मेरे पीछे आ गया। उसका लिंग मेरी योनि से रगड़ खा रहा था।
उसने मुझे पकड़ लिया और कहा- चलो पेशाब करो।
मैंने सोचा ‘अब यह क्या कर रहा है !’ फिर भी मैं कोशिश करने लगी पेशाब करने की।
कुछ जोर लगाने पर निकल गया, जो उसके लंड पर गिरने लगा।
तब उसने कहा- आ..हह.. कितना गर्म है.. बहुत सुकून मिल रहा है !
तभी उसने अपना लिंग मेरी योनि में घुसा दिया, तो मेरा पेशाब रुक गया।
उसने कहा- रुको मत.. तुम अपना पेशाब निकालती रहो.. मैं इसी तरह चोदूँगा !
पर इस तरह तो मुश्किल लग रहा था। फिर भी मैं जोर डालती तो थोड़ा-थोड़ा कर के निकलता, जो मेरी जाँघों और उसके लंड और अंडकोष से बहता हुआ नीचे जाने लगा।
तब मुझे समझ आया कि इस तरह की गन्दी-गन्दी चीजें करना उसे पसंद है।
कुछ देर बाद उसने मुझे जमीन पर लिटा कर चोदा।
फिर हम झड़ गए और वापस गोदाम में चले गए।
रात काफी हो चुकी थी और मैं थक गई थी क्योंकि आज मैंने खड़े-खड़े चुदवाया था, सो मुझे नींद आ रही थी। मैंने कपड़े पहने और वापस अपने कमरे में चुपके से आकर सो गई।
थकान के कारण नींद इतनी अच्छी आई कि सुबह नींद खुलने पर दुनिया का एहसास हुआ।
अगले दिन भी वैसे ही भाभी के साथ काम में हाथ बंटाती रही, फिर रात को सबके सोने के बाद मैं फिर छत पर गई।
मैंने देखा मेरी सहेली उसकी गोद में बैठ कर बातें कर रही थी।
मैंने कहा- तुम दोनों को डर नहीं लगता ऐसे खुले में इस तरह बैठे हो.. किसी ने देख लिया तो क्या होगा?
तब सुधा ने कहा- तुम बहुत डरती हो ! यहाँ कौन है जो देखेगा? और वैसे भी गांव में सब जल्दी सो जाते हैं !
फिर मैंने कहा- अब जल्दी चलो गोदाम में यहाँ कोई देख लेगा !
वो लोग मुस्कुराते हुए चलने लगे। हमने अन्दर जा कर दरवाजा बंद कर दिया।
दरवाजा बंद करते ही विजय ने मुझे पकड़ लिया और चूमना शुरू कर दिया।
उसने मेरे चूतड़ों को जोर से मसलते हुए कहा- क्या मस्त बड़े-बड़े चूतड़ हैं तुम्हारे !
मैं शरमा गई।
विजय ने मुझे पकड़ रखा था और हम दोनों खड़े-खड़े ही एक-दूसरे को चूमने और चूसने का काम कर रहे थे।
सुधा हम दोनों को देख मुस्कुरा रही थी, तभी वो पास आई और कहा- मुझे भी तो गर्म करो !
अब विजय ने मुझे छोड़ सुधा को पकड़ा और उसको चूमने लगा। मेरी सहेली भी उसका साथ देने लगी वो उसके जुबान को लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे सामने कोई ब्लू-फिल्म चल रही हो।
फिर उसने मुझे भी अपनी ओर खींच लिया और कभी मुझे तो कभी मेरी सहेली को चूमता चूसता।
ये सब मुझे बहुत रोमाँचित कर रहा था क्योंकि यह सच में मेरे साथ हो रहा था, इससे पहले मैंने सिर्फ फिल्मों में ही ऐसा देखा था।
धीरे-धीरे हमने उसके कपड़े उतार कर उसको नंगी कर दिया और उसने हम दोनों को। फिर हम तीनों बोरियों से बने बिस्तर पर चले गए।
उसने मुझे बिस्तर पर लेटने को कहा और मैं लेट गई, उसने मेरी टाँगें फैला दी और झुक कर मेरी योनि चाटने लगा।
तभी सुधा नीचे झुक कर उसके लिंग को हाथ से हिलाने लगी फिर चाटने लगी।
विजय अपनी कमर हिला कर उसके मुँह में अपने लिंग को अन्दर-बाहर कर रहा था जैसे कि वो चोदने के समय करता था।
मेरी योनि तो अब पानी-पानी होने लगी थी, मैं बुरी तरह से गर्म हो चुकी थी, अब मैं चाहती थी कि वो मुझे चोदे।
विजय ने मुझे छोड़ दिया और मेरी सहेली को मेरे बगल में लिटा कर उसकी योनि को चाटना शुरू कर दिया।
वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी और उसके आँखों में वासना झलक रही थी।
उसने तभी मेरी योनि को छुआ, मैं सहम गई और उसका हाथ हटाते हुए कहा- क्या कर रही हो?
उसने मुस्कुराते हुए कहा- देख रही हूँ कि दो रातों में तेरी बुर की गहराई कितनी हो गई है !
और फिर उसने दो उंगलियाँ अन्दर डाल दीं और अन्दर-बाहर करने लगी, मुझे उसके उंगलियों से भी मजा आ रहा था।
फिर विजय ने मुझसे कहा- मेरा लंड चूसो !
सो मैंने चूसना शुरू कर दिया।
काफी देर हम उसके अंगों से खेलते रहे और वो हमारे अंगों से खिलवाड़ करता रहा।
फिर उसने चोदने का मन बना लिया, उसने मुझे खड़े होने को कहा और खुद भी खड़ा हो गया, सुधा ने मेरी योनि पर थूक लगा दिया।
मुझसे विजय ने कहा- तुम मेरे लौड़े पर अपना थूक लगाओ !
मैंने लगा दिया।
सुधा ने नीचे बैठ कर मेरी एक टांग उठा दी। फिर विजय मेरे पास आकर मुझे पकड़ लिया और मैंने उसको।
अब सुधा उसका लिंग हाथ से पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ने लगी और फिर उसके लिंग को योनि के छेद पर टिका कर कहा- जोर लगाओ !
हल्के से धक्के में ही उसका लिंग ‘चप’ करता हुआ, मेरी योनि में घुस गया और मेरी बच्चेदानी से टकरा गया।
मैं सिसकार उठी।
पराये मर्द से सम्भोग compleet
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Re: पराये मर्द से सम्भोग
सुधा ने नीचे बैठ कर मेरी एक टांग उठा दी। फिर विजय मेरे पास आकर मुझे पकड़ लिया और मैंने उसको।
अब सुधा उसका लिंग हाथ से पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ने लगी और फिर उसके लिंग को योनि के छेद पर टिका कर कहा- जोर लगाओ !
हल्के से धक्के में ही उसका लिंग ‘चप’ करता हुआ, मेरी योनि में घुस गया और मेरी बच्चेदानी से टकरा गया।
मैं सिसकार उठी।
मैं एक टांग पर खड़ी थी, दूसरे को सुधा ने उठा कर सहारा दिया था और विजय एक हाथ से मेरी एक चूची को दबा रहा था, दूसरे हाथ से मेरे एक चूतड़ को और हमारे मुँह आपस में चिपके हुए थे।
कभी हम होंठों को तो कभी जुबान को चूसते और विजय जोर-जोर के धक्के मार कर मुझे चोद रहा था।
उधर मेरी सहेली कभी विजय के अंडकोष को सहलाती तो कभी अपनी योनि को।
कुछ देर बाद विजय ने मुझे छोड़ दिया और नीचे लेट गया। अब मेरी सहेली की बारी थी, उसने अपनी दोनों टाँगें उसके दोनों तरफ फैला कर उसके ऊपर चढ़ गई और मुझसे कहा- थोड़ा थूक उसकी चूत पर मल दो !
मैंने उसकी योनि में थूक लगा दिया और विजय के लिंग को पकड़ कर उसकी योनि के छेद पर टिका दिया।
अब उसने अपनी कमर नीचे की तो लिंग ‘सट’ से अन्दर चला गया, सुधा ने धक्के लगाने शुरू कर दिए।
कुछ ही देर में वो पूरी ताकत से धक्के लगाने लगी। मैं बगल में लेट गई और देखने लगी कि कैसे उसकी योनि में लिंग अन्दर-बाहर हो रहा है।
वो कभी मेरे स्तनों को दबाता या चूसता तो कभी मेरी सहेली के.. कभी मुझे चूमता तो कभी उसको!
उसने 2 उंगलियाँ मेरी योनि में घुसा कर अन्दर-बाहर करने लगा। मुझे इससे भी मजा आ रहा था।
सुधा ने कहा- मैं अभी तक दो बार झड़ चुकी हूँ।
मैंने पूछा- इतनी जल्दी कैसे?
तो उसने कहा- मैं जल्दी झड़ जाती हूँ।
तभी विजय ने कहा- मैं भी झड़ने वाला हूँ !
तब मेरी सहेली जल्दी से नीचे उतर गई, अब वो मेरे ऊपर आ गया, मैंने अपनी टाँगें फैला दीं, उसने बिना देर किए लिंग को मेरी योनि में घुसाया और मुझे चोदने लगा।
कुछ ही देर में मैं भी अपनी कमर उचका-उचका कर चुदवाने लगी। इस बीच मैं झड़ गई और मेरे तुरंत बाद वो भी झड़ गया।
उसने अपना सफ़ेद चिपचिपा रस मेरे अन्दर छोड़ दिया।
हम तीनों अब सुस्ताने लगे।
कुछ देर बाद हम फिर से चुदाई का खेल खेलने के लिए तैयार हो गए।
विजय ने कहा- आज मैं हद से अधिक गन्दी हरकतें और गन्दी बातें करना चाहता हूँ।
इस पर मेरी सहेली ने कहा- जैसी तुम्हारी मर्ज़ी हम दो तुम्हारी रानी हैं आज रात की।
मैं थोड़ी असहज सी थी, क्योंकि यह सब मैं पहली बार कर रही थी और मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी जिंदगी में ऐसा कुछ होगा।
उसने कहा- तुम दोनों बारी-बारी से मेरे लंड के ऊपर पेशाब करो !
और वो नीचे लेट गया। मेरी सहेली ने अपने दोनों पैर फैलाए और ठीक उसके लिंग के ऊपर बैठ गई।
फिर उसने धीरे-धीरे पेशाब की धार छोड़ दी।
मुझे यह बहुत गन्दा लग रहा था, पर अब देर हो चुकी थी, मैंने हद पार कर दी थी, मुझे भी करना पड़ा।
उसने उसके पेशाब से अपने लिंग को पूरा भिगा लिया। फिर मेरी बारी आई मैंने भी उसके लिंग पर पेशाब कर दिया।
इसके बाद विजय ने कहा- अब मेरी बारी है।
तब मेरी सहेली लेट गई और मुझसे कहा- मेरी योनि को दोनों हाथों से फैला कर छेद को खोल !
तो मैंने वैसा ही क्या।
फिर विजय बैठ गया और अपने लिंग को उसकी योनि के पास ले गया और उसके छेद में पेशाब करने लगा।
मैं तो ये सब देख कर हैरान थी।
तभी उसने मुझसे कहा- चलो अब तुम लेट जाओ।
मैंने कहा- नहीं.. मुझे ये पसंद नहीं है !
पर मेरी सहेली ने मुझे जबरदस्ती लिटा दिया और कहा- जीवन में हर चीज़ का मजा लेना चाहिए!
उसने मेरी टाँगें फैला दीं और दो उंगलियों से मेरी योनि को खोल दिया।
फिर विजय ने पेशाब करना शुरू कर दिया, मेरी योनि पर गर्म सा लगा, बिल्कुल वैसे ही जैसे मर्दों का वीर्य लगता है।
फिर हम लेट गए और चूसने और चाटने का खेल शुरू कर दिया।
हमने 4 बजे तक चुदाई की, कभी वो मुझे चोदता तो कभी मेरी सहेली को।
पर हर बार उसने अपना रस मेरे अन्दर ही गिराया।
इस रात में भी बहुत मजा आया और अगले दिन दोपहर को हमने नदी तट पर जाने की योजना बनाई।
फिर अपने-अपने कमरे में जा कर सो गए।
मैं अगले दिन उठी और अपने भाई और भाभी से कहा- आज दोपहर में मैं सुधा और विजय के साथ उनको गाँव दिखाने और गाँव के बारे में बताने के लिए जा रही हूँ तो देर हो जाएगी।
मैंने तौलिया और बाकी का सामान साथ ले लिया।
मैं घर से निकल ही रही थी कि मेरे पति का फोन आया और उन्होंने मुझसे कहा- घर जल्दी आ जाओ.. कुछ काम है !
मैंने कहा- ठीक है मैं कल आ जाऊँगी।
यह सुन कर मेरा दिल टूट सा गया क्योंकि पिछले 3 रातों से जो हो रहा था, उसमें मुझे बहुत मजा आ रहा था और ये सब अब खत्म होने वाला था।
मेरे पास बस आज भर का समय था। मैंने बहुत सालों के बाद ऐसा सम्भोग किया था और मेरा रोम-रोम इसकी गवाही दे रहा था।
मैंने ऐसा अमर के साथ बहुत पहले महसूस किया था और अब लगभग 6 साल बाद ऐसा हुआ था।
मुझे याद आ जाता कि कैसे अमर और मैंने 16 दिन तक लगातार सम्भोग किया था और किसी-किसी रोज तो दिन और रात दोनों मिलकर 5 से 7 बार हो जाता था।
मैं कभी नहीं भूल सकती वो दिन, जिस दिन अमर और मैंने 24 घंटे में 11 बार सम्भोग किया था।
मेरे जिस्म में दर्द था। मेरी योनि में भी दर्द हो रहा था पर जब भी मैं रात के मजे को याद करती, ये दर्द मुझे प्यारा लगने लगता और मैं फिर से इस दर्द को अपने अन्दर महसूस करने को तड़प जाती। मैं जब सोचती इस बारे मेरे अन्दर वासना भड़क उठती। मेरी योनि में नमी आ जाती, चूचुक सख्त हो जाते.. रोयें खड़े हो जाते !
बस यही सोचते हुए मैं निकल पड़ी, रास्ते में वो दोनों तैयार खड़े थे।
हम नदी की ओर चल पड़े, रास्ते में हम बातें करते जा रहे थे।
तभी विजय ने सुधा से पूछा- बताओ.. तुम्हें ऐसा कौन सा दिन अच्छा लगता है जिसको तुम अपने जीवन की सबसे यादगार सेक्स समझती हो !
तब मेरी सहेली कुछ सोचने के बाद बोली- मुझे सबसे यादगार दिन वो लगता है जिस दिन मैंने तुम्हारे और तुम्हारे दोस्त के साथ रात भर सेक्स किया था।
तब विजय बोला- अच्छा वो दिन.. उसमें ऐसी क्या खास बात थी, इससे पहले भी तो तुम दो और दो से अधिक मर्दों के साथ सेक्स कर चुकी हो !
उसने कहा- वो दिन इसलिए यादगार लगता है क्योंकि उस दिन मैं पूरी तरह से संतुस्ट और थक गई थी। दूसरी बात यह कि तुम दो मर्द थे और मैं अकेली फिर भी तुम दोनों थक कर हार गए थे, पर मैंने तुम दोनों का साथ अंत तक दिया।
ऐसा कह कर वो हँसने लगी।
फिर उसने कहा- मुझे तो ऐसा सेक्स पसंद है जिसमें इंसान बुरी तरह से थक के चूर हो जाए !
तब विजय ने भी कहा- हाँ.. मुझे भी ऐसा ही पसंद है, पर मुझे सम्भोग से ज्यादा जिस्म के साथ खेलना पसंद है !
‘जिस्म के साथ तब तक खेलो जब तक की तुम्हारा जिस्म खुद सेक्स के लिए न तड़पने लगे, फिर सेक्स का मजा ही कुछ और होता है !’
बातों-बातों में हम नदी के किनारे पहुँच गए, पर हम ऐसी जगह की तलाश करने लगे, जहाँ कोई नहीं आता हो और हम नदी में नहा भी सकें।
चलते-चलते हम पहाड़ी के पास पहुँच गए, जहाँ से जंगल शुरू होता था। थोड़ा अन्दर जाने पर ये हमें सुरक्षित लगा क्योंकि ये न तो पूरी तरह जंगल था, न ही यहाँ
कोई आता था।
छोटी सी पहाड़ी सी थी, जहाँ से झरना जैसा बह रहा था और नीचे पानी रुका सा था, तालाब जैसा.. जिसमें कुछ बड़े-बड़े पत्थर थे।
मेरी सहेली ने तब अपने बैग में से एक कपड़ा निकाला और मुझसे कहा- पहन लो।
मैंने देखा तो वो एक छोटी सी पैन्टी और ब्रा थी।
मैंने पूछा- ये क्या है.. मैंने तो पहले से पहनी हुई है।
तब उसने कहा- यह मॉडर्न टाइप की है, इसे बिकिनी कहते हैं ! लड़कियाँ समुन्दर में नहाने के टाइम पहनती हैं !
मैंने पूछा- क्या ये मुझे फिट होंगे?
तो उसने कहा- हाँ.. मेरे साइज़ का है।
मैंने साड़ी उठा कर पहले अपनी पैन्टी निकाल दी, फिर दूसरी पहनी फिर ब्लाउज निकाल कर ब्रा हटा कर दूसरी पहनी जिसको पहनने में मेरी सहेली ने मेरी मदद की, फिर मैंने अपनी साड़ी और पेटीकोट निकाल दिया।
विजय ने मुझे इस लिबास में बहुत गौर से देखा और कहा- तुम इसमें बहुत सेक्सी लग रही हो !
मैंने सुधा से पूछा- तुमने ऐसे क्यों नहीं पहनी?
तो उसने अपनी सलवार कमीज उतार दी और मुझे दिखाया बिल्कुल मेरी तरह का उसने भी पहले से पहन रखा था।
यह लिबास इतना छोटा था कि मुझे अजीब लग रहा था, पर खैर.. वहाँ हम तीनों के अलावा कोई नहीं आने वाला था।
ब्रा इतनी छोटी थी कि मेरे आधे से ज्यादा स्तन दिखाई दे रहे थे और पैन्टी तो बस नाम की थी। एकदम पतला धागे जैसी जिससे मेरी योनि ही सिर्फ ढकी थी बाकी मेरे कूल्हे तो साफ़ खुले दिख रहे थे।
मेरी सहेली को शायद इन सबकी आदत थी, तो उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा था। तभी विजय ने भी अपने कपड़े निकाल दिए और उसका पहनावा देख मुझे हँसी आने लगी, पर मैंने खुद को काबू में किया और हँसी रोक ली।
उसने जो अंडरवियर पहनी थी, वो बिल्कुल लड़कियों की पैन्टी की तरह थी और उसके चूतड़ साफ़ दिख रहे थे।
हम पानी में चले गए और नहाने लगे और एक-दूसरे के साथ छेड़खानी करने लगे। विजय कभी मेरे स्तनों को दबाता तो कभी मेरे चूतड़ों को या फिर मेरी सहेली के।
हम भी कभी उसके चूतड़ों पर चांटा मारते या उसे छेड़ते.. काफी मजा आ रहा था। तीनों पानी के अन्दर थे।
तभी विजय ने मुझसे पूछा- तुमने अब तक कितने लोगों के साथ सम्भोग किया है?
मैंने अनजान बनते हुए कहा- सिर्फ 3 लोगों से !
उसने मुझसे फिर पूछा- किसके-किसके साथ?
मैंने कहा- पति, अमर और तुम्हारे साथ !
हालांकि मैंने विजय से पहले और अमर के बाद एक और लड़के के साथ कुछ दिन सेक्स किया था, पर उस वक़्त बताना ठीक नहीं समझा।
फिर मेरी सहेली ने मुझसे पूछा- अमर कौन है?
मैंने उसको बताया- मैं उससे उड़ीसा में मिली थी और काफी दिन हमारे बीच सेक्स हुआ।
फिर मुझसे पूछा- मेरा यादगार दिन कौन सा है?
मैंने उस वक़्त कह दिया- सभी लोगों के साथ बिताए दिन यादगार हैं !
पर उन्होंने जोर दिया तो मैंने बता दिया- अमर के साथ।
तभी विजय ने मुझसे पूछा- ऐसा क्या था और कोई एक दिन ही यादगार होगा हर दिन नहीं।
तब मैंने उनको बताया- उसके साथ मैंने 16 दिन लगातार सम्भोग किया था, वो भी दिन में और रात में कई-कई बार और एक दिन 24 घंटे के अन्दर हमने 11 बार किया था।
वो लोग हैरान हो गए कि ऐसा कैसे किया !
तब मैंने बताया कि लगातार नहीं.. बल्कि बीच-बीच में रुक कर 24 घंटे में किया था।
फिर मैंने बताया कि अगले दिन मेरी हालत क्या थी, वो लोग उत्सुकता से मेरी बातें सुनने लगे।
मैंने उनको बताया- उस दिन पति एक दिन के लिए बाहर गए थे, अगले दिन आने वाले थे। तो करीब 11 बजे हमने एक बार किया फिर दोपहर को 3 बार, फिर शाम को 2 बार, फिर रात भर में 5 बार, सुबह 8 बजे आखिरी बार किया तो मेरी हालत ख़राब हो गई थी। न वो झड़ रहा था न मैं, मैं बार-बार उससे विनती कर रही थी कि मुझे छोड़ दे.. पर वो मानने को तैयार नहीं था। बस थोड़ी देर कह कह के मुझे बेरहमी से चोद रहा था। मेरी बुर में बहुत दर्द होने लगा था और खून निकल आया था। जब हम अलग हुए तो मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।
उसके जाने के बाद मैं वैसे ही नंगी पड़ी रही और जब आँख खुली तो देखा के बिस्तर पर खून लगा है और मेरी जाँघों और बुर में भी। मैं उठ कर साफ़ करने के लिए खड़ी हुई तो जाँघों में इतना दर्द था कि मैं लड़खड़ाते हुए गिर गई। 12 बज रहे थे मैंने उसको फोन करके बुलाया तो वो दफ्तर से छुट्टी लेकर आया और मुझे उठाकर बाथरूम ले गया। वहाँ मैंने खुद को साफ़ किया, फिर दिन भर सोई रही।
शाम को अमर ने बताया कि उसको मालूम नहीं था कि खून निकल रहा है और उसके लंड में भी इतना दर्द हो रहा था कि उसने चड्डी तक नहीं पहनी उस दिन।
ये सब सुनकर उनके होश उड़ गए और मेरी तरफ देखते हुए कहा- कमाल है, तुम्हारी सेक्सी देह किसी को भो जोश से भर देगी इसमें उस बेचारे का दोष नहीं !
हम अब यूँ ही खेलते हुए पानी में थोड़ी और गहराई में चले गए। वहाँ पानी करीब मेरे गले तक था और ऊपर से झरने जैसा पानी गिर रहा था, जो अधिक नहीं था।
पास में कुछ पत्थर थे, विजय एक पत्थर पर पीठ के बल खड़ा हो गया, फिर मुझे अपनी और खींच लिया।
मुझे पीठ के बल अपने से चिपका लिया और मेरे स्तनों को पकड़ कर मुझे भींच लिया। तभी सुधा ने नीचे पानी के अन्दर जाकर मेरी पैन्टी निकाल कर पत्थर पर रख दी, फिर ऊपर आकर मुझे चिपक गई।
अब मेरा और सुधा का चेहरा आमने-सामने था तथा विजय मेरे पीछे। विजय ने अपनी टाँगों से सुधा को जकड़ लिया और मैं उन दोनों के बीच में थी।
सुधा ने मेरे सिर को किनारे किया और अपने होंठों से विजय के होंठों को चूमने लगी। तब मैंने भी सुधा की पैन्टी निकाल दी।
विजय ने मेरे स्तनों को मसलते हुए मेरी ब्रा को निकाल कर अलग कर दिया, फिर सुधा की ब्रा को निकाल दिया।
हम दोनों औरतें अब नंगी थीं।
विजय ने अब सुधा को छोड़ दिया और मुझे अपनी और घुमा कर मेरे होंठों को चूसने लगा।
तब सुधा ने विजय का अंडरवियर निकाल दिया।
अब हम तीनों ही नंगे हो चुके थे।
मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था, क्योंकि दिन का समय था और हम खुले आसमान के नीचे थे।
विजय मुझे चूमते हुए कभी मेरे स्तनों को दबाता तो कभी चूतड़ों को। मैं भी उसके होंठों को चूसने और चूमने में मग्न हो गई।
मेरे हाथ भी हरकत करने लगे, मैंने उसके लिंग को पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया, कभी मैं उसके लिंग को सहलाती तो कभी उसके अन्डकोषों को।
तभी सुधा मेरे पीछे आ गई और मुझे पकड़ कर अपना हाथ मेरी योनि में लगा दिया।
मैंने कहा- क्या कर रही हो?
तो उसने जवाब दिया- तुझे तैयार कर रही हूँ, तुझे गर्म कर रही हूँ चुदवाने के लिए !
उसकी इस तरह की बातें मुझे अजीब तो लग रही थीं, पर एक तरफ से मुझे उत्तेजित भी कर रही थीं।
फिर सुधा ने मेरी योनि को सहलाते हुए 2 उंगलियाँ अन्दर डाल दीं और उसे अन्दर-बाहर करने लगी।
मैं गर्म होने लगी थी, उधर मेरे सहलाने की वजह से विजय का लिंग भी सख्त हो चुका था।
विजय ने तब मेरी टाँगों को फैला कर अपने कमर के दोनों तरफ कर मुझे गोद में उठा लिया। उसने मेरी दोनों जाँघों को पकड़ कर सहारा दिया और मैं उसके गले में दोनों हाथ डाल कर किसी बच्चे की तरह लटक गई।
फिर सुधा ने विजय का लिंग पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ना शुरू कर दिया, इससे मुझे बहुत मजा आ रहा था, मन कर रहा था कि जल्दी से उसे मेरी योनि में डाल दे।
मैं भी अपनी योनि को उसके ऊपर दबाते हुए विजय को चूमने लगी।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज एक चीज़ तुम दोनों को करना होगा मेरी खातिर !
मैंने पूछा- क्या?
अब सुधा उसका लिंग हाथ से पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ने लगी और फिर उसके लिंग को योनि के छेद पर टिका कर कहा- जोर लगाओ !
हल्के से धक्के में ही उसका लिंग ‘चप’ करता हुआ, मेरी योनि में घुस गया और मेरी बच्चेदानी से टकरा गया।
मैं सिसकार उठी।
मैं एक टांग पर खड़ी थी, दूसरे को सुधा ने उठा कर सहारा दिया था और विजय एक हाथ से मेरी एक चूची को दबा रहा था, दूसरे हाथ से मेरे एक चूतड़ को और हमारे मुँह आपस में चिपके हुए थे।
कभी हम होंठों को तो कभी जुबान को चूसते और विजय जोर-जोर के धक्के मार कर मुझे चोद रहा था।
उधर मेरी सहेली कभी विजय के अंडकोष को सहलाती तो कभी अपनी योनि को।
कुछ देर बाद विजय ने मुझे छोड़ दिया और नीचे लेट गया। अब मेरी सहेली की बारी थी, उसने अपनी दोनों टाँगें उसके दोनों तरफ फैला कर उसके ऊपर चढ़ गई और मुझसे कहा- थोड़ा थूक उसकी चूत पर मल दो !
मैंने उसकी योनि में थूक लगा दिया और विजय के लिंग को पकड़ कर उसकी योनि के छेद पर टिका दिया।
अब उसने अपनी कमर नीचे की तो लिंग ‘सट’ से अन्दर चला गया, सुधा ने धक्के लगाने शुरू कर दिए।
कुछ ही देर में वो पूरी ताकत से धक्के लगाने लगी। मैं बगल में लेट गई और देखने लगी कि कैसे उसकी योनि में लिंग अन्दर-बाहर हो रहा है।
वो कभी मेरे स्तनों को दबाता या चूसता तो कभी मेरी सहेली के.. कभी मुझे चूमता तो कभी उसको!
उसने 2 उंगलियाँ मेरी योनि में घुसा कर अन्दर-बाहर करने लगा। मुझे इससे भी मजा आ रहा था।
सुधा ने कहा- मैं अभी तक दो बार झड़ चुकी हूँ।
मैंने पूछा- इतनी जल्दी कैसे?
तो उसने कहा- मैं जल्दी झड़ जाती हूँ।
तभी विजय ने कहा- मैं भी झड़ने वाला हूँ !
तब मेरी सहेली जल्दी से नीचे उतर गई, अब वो मेरे ऊपर आ गया, मैंने अपनी टाँगें फैला दीं, उसने बिना देर किए लिंग को मेरी योनि में घुसाया और मुझे चोदने लगा।
कुछ ही देर में मैं भी अपनी कमर उचका-उचका कर चुदवाने लगी। इस बीच मैं झड़ गई और मेरे तुरंत बाद वो भी झड़ गया।
उसने अपना सफ़ेद चिपचिपा रस मेरे अन्दर छोड़ दिया।
हम तीनों अब सुस्ताने लगे।
कुछ देर बाद हम फिर से चुदाई का खेल खेलने के लिए तैयार हो गए।
विजय ने कहा- आज मैं हद से अधिक गन्दी हरकतें और गन्दी बातें करना चाहता हूँ।
इस पर मेरी सहेली ने कहा- जैसी तुम्हारी मर्ज़ी हम दो तुम्हारी रानी हैं आज रात की।
मैं थोड़ी असहज सी थी, क्योंकि यह सब मैं पहली बार कर रही थी और मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी जिंदगी में ऐसा कुछ होगा।
उसने कहा- तुम दोनों बारी-बारी से मेरे लंड के ऊपर पेशाब करो !
और वो नीचे लेट गया। मेरी सहेली ने अपने दोनों पैर फैलाए और ठीक उसके लिंग के ऊपर बैठ गई।
फिर उसने धीरे-धीरे पेशाब की धार छोड़ दी।
मुझे यह बहुत गन्दा लग रहा था, पर अब देर हो चुकी थी, मैंने हद पार कर दी थी, मुझे भी करना पड़ा।
उसने उसके पेशाब से अपने लिंग को पूरा भिगा लिया। फिर मेरी बारी आई मैंने भी उसके लिंग पर पेशाब कर दिया।
इसके बाद विजय ने कहा- अब मेरी बारी है।
तब मेरी सहेली लेट गई और मुझसे कहा- मेरी योनि को दोनों हाथों से फैला कर छेद को खोल !
तो मैंने वैसा ही क्या।
फिर विजय बैठ गया और अपने लिंग को उसकी योनि के पास ले गया और उसके छेद में पेशाब करने लगा।
मैं तो ये सब देख कर हैरान थी।
तभी उसने मुझसे कहा- चलो अब तुम लेट जाओ।
मैंने कहा- नहीं.. मुझे ये पसंद नहीं है !
पर मेरी सहेली ने मुझे जबरदस्ती लिटा दिया और कहा- जीवन में हर चीज़ का मजा लेना चाहिए!
उसने मेरी टाँगें फैला दीं और दो उंगलियों से मेरी योनि को खोल दिया।
फिर विजय ने पेशाब करना शुरू कर दिया, मेरी योनि पर गर्म सा लगा, बिल्कुल वैसे ही जैसे मर्दों का वीर्य लगता है।
फिर हम लेट गए और चूसने और चाटने का खेल शुरू कर दिया।
हमने 4 बजे तक चुदाई की, कभी वो मुझे चोदता तो कभी मेरी सहेली को।
पर हर बार उसने अपना रस मेरे अन्दर ही गिराया।
इस रात में भी बहुत मजा आया और अगले दिन दोपहर को हमने नदी तट पर जाने की योजना बनाई।
फिर अपने-अपने कमरे में जा कर सो गए।
मैं अगले दिन उठी और अपने भाई और भाभी से कहा- आज दोपहर में मैं सुधा और विजय के साथ उनको गाँव दिखाने और गाँव के बारे में बताने के लिए जा रही हूँ तो देर हो जाएगी।
मैंने तौलिया और बाकी का सामान साथ ले लिया।
मैं घर से निकल ही रही थी कि मेरे पति का फोन आया और उन्होंने मुझसे कहा- घर जल्दी आ जाओ.. कुछ काम है !
मैंने कहा- ठीक है मैं कल आ जाऊँगी।
यह सुन कर मेरा दिल टूट सा गया क्योंकि पिछले 3 रातों से जो हो रहा था, उसमें मुझे बहुत मजा आ रहा था और ये सब अब खत्म होने वाला था।
मेरे पास बस आज भर का समय था। मैंने बहुत सालों के बाद ऐसा सम्भोग किया था और मेरा रोम-रोम इसकी गवाही दे रहा था।
मैंने ऐसा अमर के साथ बहुत पहले महसूस किया था और अब लगभग 6 साल बाद ऐसा हुआ था।
मुझे याद आ जाता कि कैसे अमर और मैंने 16 दिन तक लगातार सम्भोग किया था और किसी-किसी रोज तो दिन और रात दोनों मिलकर 5 से 7 बार हो जाता था।
मैं कभी नहीं भूल सकती वो दिन, जिस दिन अमर और मैंने 24 घंटे में 11 बार सम्भोग किया था।
मेरे जिस्म में दर्द था। मेरी योनि में भी दर्द हो रहा था पर जब भी मैं रात के मजे को याद करती, ये दर्द मुझे प्यारा लगने लगता और मैं फिर से इस दर्द को अपने अन्दर महसूस करने को तड़प जाती। मैं जब सोचती इस बारे मेरे अन्दर वासना भड़क उठती। मेरी योनि में नमी आ जाती, चूचुक सख्त हो जाते.. रोयें खड़े हो जाते !
बस यही सोचते हुए मैं निकल पड़ी, रास्ते में वो दोनों तैयार खड़े थे।
हम नदी की ओर चल पड़े, रास्ते में हम बातें करते जा रहे थे।
तभी विजय ने सुधा से पूछा- बताओ.. तुम्हें ऐसा कौन सा दिन अच्छा लगता है जिसको तुम अपने जीवन की सबसे यादगार सेक्स समझती हो !
तब मेरी सहेली कुछ सोचने के बाद बोली- मुझे सबसे यादगार दिन वो लगता है जिस दिन मैंने तुम्हारे और तुम्हारे दोस्त के साथ रात भर सेक्स किया था।
तब विजय बोला- अच्छा वो दिन.. उसमें ऐसी क्या खास बात थी, इससे पहले भी तो तुम दो और दो से अधिक मर्दों के साथ सेक्स कर चुकी हो !
उसने कहा- वो दिन इसलिए यादगार लगता है क्योंकि उस दिन मैं पूरी तरह से संतुस्ट और थक गई थी। दूसरी बात यह कि तुम दो मर्द थे और मैं अकेली फिर भी तुम दोनों थक कर हार गए थे, पर मैंने तुम दोनों का साथ अंत तक दिया।
ऐसा कह कर वो हँसने लगी।
फिर उसने कहा- मुझे तो ऐसा सेक्स पसंद है जिसमें इंसान बुरी तरह से थक के चूर हो जाए !
तब विजय ने भी कहा- हाँ.. मुझे भी ऐसा ही पसंद है, पर मुझे सम्भोग से ज्यादा जिस्म के साथ खेलना पसंद है !
‘जिस्म के साथ तब तक खेलो जब तक की तुम्हारा जिस्म खुद सेक्स के लिए न तड़पने लगे, फिर सेक्स का मजा ही कुछ और होता है !’
बातों-बातों में हम नदी के किनारे पहुँच गए, पर हम ऐसी जगह की तलाश करने लगे, जहाँ कोई नहीं आता हो और हम नदी में नहा भी सकें।
चलते-चलते हम पहाड़ी के पास पहुँच गए, जहाँ से जंगल शुरू होता था। थोड़ा अन्दर जाने पर ये हमें सुरक्षित लगा क्योंकि ये न तो पूरी तरह जंगल था, न ही यहाँ
कोई आता था।
छोटी सी पहाड़ी सी थी, जहाँ से झरना जैसा बह रहा था और नीचे पानी रुका सा था, तालाब जैसा.. जिसमें कुछ बड़े-बड़े पत्थर थे।
मेरी सहेली ने तब अपने बैग में से एक कपड़ा निकाला और मुझसे कहा- पहन लो।
मैंने देखा तो वो एक छोटी सी पैन्टी और ब्रा थी।
मैंने पूछा- ये क्या है.. मैंने तो पहले से पहनी हुई है।
तब उसने कहा- यह मॉडर्न टाइप की है, इसे बिकिनी कहते हैं ! लड़कियाँ समुन्दर में नहाने के टाइम पहनती हैं !
मैंने पूछा- क्या ये मुझे फिट होंगे?
तो उसने कहा- हाँ.. मेरे साइज़ का है।
मैंने साड़ी उठा कर पहले अपनी पैन्टी निकाल दी, फिर दूसरी पहनी फिर ब्लाउज निकाल कर ब्रा हटा कर दूसरी पहनी जिसको पहनने में मेरी सहेली ने मेरी मदद की, फिर मैंने अपनी साड़ी और पेटीकोट निकाल दिया।
विजय ने मुझे इस लिबास में बहुत गौर से देखा और कहा- तुम इसमें बहुत सेक्सी लग रही हो !
मैंने सुधा से पूछा- तुमने ऐसे क्यों नहीं पहनी?
तो उसने अपनी सलवार कमीज उतार दी और मुझे दिखाया बिल्कुल मेरी तरह का उसने भी पहले से पहन रखा था।
यह लिबास इतना छोटा था कि मुझे अजीब लग रहा था, पर खैर.. वहाँ हम तीनों के अलावा कोई नहीं आने वाला था।
ब्रा इतनी छोटी थी कि मेरे आधे से ज्यादा स्तन दिखाई दे रहे थे और पैन्टी तो बस नाम की थी। एकदम पतला धागे जैसी जिससे मेरी योनि ही सिर्फ ढकी थी बाकी मेरे कूल्हे तो साफ़ खुले दिख रहे थे।
मेरी सहेली को शायद इन सबकी आदत थी, तो उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा था। तभी विजय ने भी अपने कपड़े निकाल दिए और उसका पहनावा देख मुझे हँसी आने लगी, पर मैंने खुद को काबू में किया और हँसी रोक ली।
उसने जो अंडरवियर पहनी थी, वो बिल्कुल लड़कियों की पैन्टी की तरह थी और उसके चूतड़ साफ़ दिख रहे थे।
हम पानी में चले गए और नहाने लगे और एक-दूसरे के साथ छेड़खानी करने लगे। विजय कभी मेरे स्तनों को दबाता तो कभी मेरे चूतड़ों को या फिर मेरी सहेली के।
हम भी कभी उसके चूतड़ों पर चांटा मारते या उसे छेड़ते.. काफी मजा आ रहा था। तीनों पानी के अन्दर थे।
तभी विजय ने मुझसे पूछा- तुमने अब तक कितने लोगों के साथ सम्भोग किया है?
मैंने अनजान बनते हुए कहा- सिर्फ 3 लोगों से !
उसने मुझसे फिर पूछा- किसके-किसके साथ?
मैंने कहा- पति, अमर और तुम्हारे साथ !
हालांकि मैंने विजय से पहले और अमर के बाद एक और लड़के के साथ कुछ दिन सेक्स किया था, पर उस वक़्त बताना ठीक नहीं समझा।
फिर मेरी सहेली ने मुझसे पूछा- अमर कौन है?
मैंने उसको बताया- मैं उससे उड़ीसा में मिली थी और काफी दिन हमारे बीच सेक्स हुआ।
फिर मुझसे पूछा- मेरा यादगार दिन कौन सा है?
मैंने उस वक़्त कह दिया- सभी लोगों के साथ बिताए दिन यादगार हैं !
पर उन्होंने जोर दिया तो मैंने बता दिया- अमर के साथ।
तभी विजय ने मुझसे पूछा- ऐसा क्या था और कोई एक दिन ही यादगार होगा हर दिन नहीं।
तब मैंने उनको बताया- उसके साथ मैंने 16 दिन लगातार सम्भोग किया था, वो भी दिन में और रात में कई-कई बार और एक दिन 24 घंटे के अन्दर हमने 11 बार किया था।
वो लोग हैरान हो गए कि ऐसा कैसे किया !
तब मैंने बताया कि लगातार नहीं.. बल्कि बीच-बीच में रुक कर 24 घंटे में किया था।
फिर मैंने बताया कि अगले दिन मेरी हालत क्या थी, वो लोग उत्सुकता से मेरी बातें सुनने लगे।
मैंने उनको बताया- उस दिन पति एक दिन के लिए बाहर गए थे, अगले दिन आने वाले थे। तो करीब 11 बजे हमने एक बार किया फिर दोपहर को 3 बार, फिर शाम को 2 बार, फिर रात भर में 5 बार, सुबह 8 बजे आखिरी बार किया तो मेरी हालत ख़राब हो गई थी। न वो झड़ रहा था न मैं, मैं बार-बार उससे विनती कर रही थी कि मुझे छोड़ दे.. पर वो मानने को तैयार नहीं था। बस थोड़ी देर कह कह के मुझे बेरहमी से चोद रहा था। मेरी बुर में बहुत दर्द होने लगा था और खून निकल आया था। जब हम अलग हुए तो मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।
उसके जाने के बाद मैं वैसे ही नंगी पड़ी रही और जब आँख खुली तो देखा के बिस्तर पर खून लगा है और मेरी जाँघों और बुर में भी। मैं उठ कर साफ़ करने के लिए खड़ी हुई तो जाँघों में इतना दर्द था कि मैं लड़खड़ाते हुए गिर गई। 12 बज रहे थे मैंने उसको फोन करके बुलाया तो वो दफ्तर से छुट्टी लेकर आया और मुझे उठाकर बाथरूम ले गया। वहाँ मैंने खुद को साफ़ किया, फिर दिन भर सोई रही।
शाम को अमर ने बताया कि उसको मालूम नहीं था कि खून निकल रहा है और उसके लंड में भी इतना दर्द हो रहा था कि उसने चड्डी तक नहीं पहनी उस दिन।
ये सब सुनकर उनके होश उड़ गए और मेरी तरफ देखते हुए कहा- कमाल है, तुम्हारी सेक्सी देह किसी को भो जोश से भर देगी इसमें उस बेचारे का दोष नहीं !
हम अब यूँ ही खेलते हुए पानी में थोड़ी और गहराई में चले गए। वहाँ पानी करीब मेरे गले तक था और ऊपर से झरने जैसा पानी गिर रहा था, जो अधिक नहीं था।
पास में कुछ पत्थर थे, विजय एक पत्थर पर पीठ के बल खड़ा हो गया, फिर मुझे अपनी और खींच लिया।
मुझे पीठ के बल अपने से चिपका लिया और मेरे स्तनों को पकड़ कर मुझे भींच लिया। तभी सुधा ने नीचे पानी के अन्दर जाकर मेरी पैन्टी निकाल कर पत्थर पर रख दी, फिर ऊपर आकर मुझे चिपक गई।
अब मेरा और सुधा का चेहरा आमने-सामने था तथा विजय मेरे पीछे। विजय ने अपनी टाँगों से सुधा को जकड़ लिया और मैं उन दोनों के बीच में थी।
सुधा ने मेरे सिर को किनारे किया और अपने होंठों से विजय के होंठों को चूमने लगी। तब मैंने भी सुधा की पैन्टी निकाल दी।
विजय ने मेरे स्तनों को मसलते हुए मेरी ब्रा को निकाल कर अलग कर दिया, फिर सुधा की ब्रा को निकाल दिया।
हम दोनों औरतें अब नंगी थीं।
विजय ने अब सुधा को छोड़ दिया और मुझे अपनी और घुमा कर मेरे होंठों को चूसने लगा।
तब सुधा ने विजय का अंडरवियर निकाल दिया।
अब हम तीनों ही नंगे हो चुके थे।
मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था, क्योंकि दिन का समय था और हम खुले आसमान के नीचे थे।
विजय मुझे चूमते हुए कभी मेरे स्तनों को दबाता तो कभी चूतड़ों को। मैं भी उसके होंठों को चूसने और चूमने में मग्न हो गई।
मेरे हाथ भी हरकत करने लगे, मैंने उसके लिंग को पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया, कभी मैं उसके लिंग को सहलाती तो कभी उसके अन्डकोषों को।
तभी सुधा मेरे पीछे आ गई और मुझे पकड़ कर अपना हाथ मेरी योनि में लगा दिया।
मैंने कहा- क्या कर रही हो?
तो उसने जवाब दिया- तुझे तैयार कर रही हूँ, तुझे गर्म कर रही हूँ चुदवाने के लिए !
उसकी इस तरह की बातें मुझे अजीब तो लग रही थीं, पर एक तरफ से मुझे उत्तेजित भी कर रही थीं।
फिर सुधा ने मेरी योनि को सहलाते हुए 2 उंगलियाँ अन्दर डाल दीं और उसे अन्दर-बाहर करने लगी।
मैं गर्म होने लगी थी, उधर मेरे सहलाने की वजह से विजय का लिंग भी सख्त हो चुका था।
विजय ने तब मेरी टाँगों को फैला कर अपने कमर के दोनों तरफ कर मुझे गोद में उठा लिया। उसने मेरी दोनों जाँघों को पकड़ कर सहारा दिया और मैं उसके गले में दोनों हाथ डाल कर किसी बच्चे की तरह लटक गई।
फिर सुधा ने विजय का लिंग पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ना शुरू कर दिया, इससे मुझे बहुत मजा आ रहा था, मन कर रहा था कि जल्दी से उसे मेरी योनि में डाल दे।
मैं भी अपनी योनि को उसके ऊपर दबाते हुए विजय को चूमने लगी।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज एक चीज़ तुम दोनों को करना होगा मेरी खातिर !
मैंने पूछा- क्या?
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Re: पराये मर्द से सम्भोग
विजय ने तब मेरी टाँगों को फैला कर अपने कमर के दोनों तरफ कर मुझे गोद में उठा लिया। उसने मेरी दोनों जाँघों को पकड़ कर सहारा दिया और मैं उसके गले में दोनों हाथ डाल कर किसी बच्चे की तरह लटक गई।
फिर सुधा ने विजय का लिंग पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ना शुरू कर दिया, इससे मुझे बहुत मजा आ रहा था, मन कर रहा था कि जल्दी से उसे मेरी योनि में डाल दे।
मैं भी अपनी योनि को उसके ऊपर दबाते हुए विजय को चूमने लगी।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज एक चीज़ तुम दोनों को करना होगा मेरी खातिर !
मैंने पूछा- क्या?
तब उसने कहा- तुम दोनों को आपस में चूमना होगा, साथ ही एक-दूसरे की बुर को चूसना होगा !
यह बात सुनते ही मैं चौंक गई, मुझे ऐसा लगा कि यह क्या पागलपन है।
तभी सुधा खुशी से बोली- हाँ.. क्यों नहीं.. बहुत मजा आएगा !
पर मैं इसके लिए तैयार नहीं थी, पर सुधा और विजय जिद पर अड़ गए और विजय ने मुझे कस कर पकड़ लिया। फिर सुधा ने मेरे सिर को थामा और मेरे होंठों से होंठ लगा कर मेरे होंठों चूमने लगी।
मैं बार-बार मना कर रही थी, पर उन पर कोई असर नहीं हुआ। तब मैं गुस्से में आ गई तो उन दोनों ने मुझे छोड़ दिया।
मैं गुस्से से जाने लगी तब उन दोनों ने मुझसे माफ़ी माँगी और फिर हम वैसे ही अपनी काम-क्रीड़ा में लग गए।
सुधा के लिए शायद ये सब नया नहीं था क्योंकि वो ऐसी पार्टियों में जाया करती थी।
पर मेरे लिए ये सब नया था तो मैं सहज नहीं थी।
तब सुधा ने मुझसे कहा- सारिका, तुम्हें मजे लेने चाहिए क्योंकि ऐसा मौका हमेशा नहीं मिलता !
मैंने कह दिया- मुझे इस तरह का मजा नहीं चाहिए… मैं बस अपनी यौन-तृप्ति चाहती थी इसलिए तुम लोगों की हर बात ना चाहते हुए भी माना, पर अब हद हो गई है !
तब विजय ने मुझसे कहा- ठीक है, जैसा तुम चाहो वैसा ही करेंगे।
तब उन्होंने कहा- दो औरतें अगर एक-दूसरे का अंग छुए और खेलें तो खेल और भी रोचक हो जाता है।
पर मैंने मना कर दिया, तब उसने कहा- ठीक है मत करो ! तुम पर सुधा को करने दो उसे कोई दिक्कत नहीं।
मैंने कुछ देर सोचा फिर आधे मन से ‘हाँ’ कर दी।
अब विजय ने सुधा को पकड़ा और उसे पागलों की तरह चूमने, चूसने लगा। सुधा भी उसका जवाब दे रही थे।
दोनों काफी गर्म हो गए थे, तब विजय ने मुझसे कहा- तुम दोनों मेरा लंड चूसो !
वो किनारे पर आ गया, जहाँ पानी घुटनों तक था। सुधा और विजय आपस में चूमने लगे और मैं झुक कर घुटनों के बल खड़ी होकर उसके लिंग को प्यार करने लगी।
मैंने उसके लिंग को पहले हाथ से सहलाया, जब मैं उसके लिंग को आगे की तरफ खींचती तो ऊपर का चमड़ा उसके सुपाड़े को ढक देता पर जब पीछे करती तो उसका सुपाड़ा खुल कर बाहर आ जाता।
मैं दिन के उजाले में उसका सुपाड़ा पहली बार इतने करीब से देख रही थी, एकदम गहरा लाल.. किसी बड़े से चैरी की तरह था।
मैंने उसके सुपाड़े के ऊपर जीभ फिराई और फिर उसको अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। कुछ देर में विजय भी अपनी कमर को हिलाने लगा और अपने लिंग को मेरे मुँह में अन्दर बाहर करने लगा।
थोड़ी देर में सुधा भी घुटनों के बल आ गई और फिर वो भी लिंग को चूसने लगी। दोनों के लार और थूक से उसका लिंग तर हो गया था।
विजय ने अब कहा- चलो चट्टान के ऊपर चलते हैं।
फिर उसने सुधा को कहा- क्या तुम मेरे लिए सारिका की बुर चाटोगी !
उसने मुस्कुराते हुए सर हिलाया फिर मुझे चट्टान के ऊपर लेट जाने को कहा। मुझे अजीब लग रहा था क्योंकि पहली बार कोई औरत मेरी योनि के साथ ऐसा करने वाली थी।
उसने मेरी टाँगें फैला दीं और झुक कर मेरे टाँगों के बीच अपना सर रख दिया।
फिर उसने मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए कहा- अब तुम्हें बहुत मजा आएगा !
फिर उसने मेरी दोनों जाँघों को चूमा, फिर योनि के किनारे फिर अपनी जुबान को मेरी योनि में लगा कर नीचे से ऊपर ले आई।
उसने मेरी योनि को चाटना शुरू कर दिया।
काफी देर के बाद विजय सुधा के पीछे चला गया और झुक कर उसकी योनि को चाटने लगा। इधर सुधा मेरी योनि से तरह-तरह से खिलवाड़ करने लगी, कभी जुबान को योनि के ऊपर फिराती, तो कभी योनि में घुसाने की कोशिश करती, कभी दोनों हाथों से मेरी योनि को फैला देती और उसके अन्दर थूक कर दुबारा चाटने लगती या उंगली डाल देती।
कभी मेरी योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियों को दांत से पकड़ कर खींचती। मुझे इससे काफी उत्तेजना हो रही थी। मैं अब काफी गर्म हो कर तैयार थी, पर उन दोनों को तो खेलने में ज्यादा रूचि थी।
तभी विजय मेरे पास आकर लेट गया। मैंने उसको पकड लिया और चूमने लगी, साथ ही उसके लिंग को सहलाने लगी।
सुधा ने फिर मुझे छोड़ दिया और विजय के लिंग को पकड़ कर चूसा, फिर अपनी दोनों टाँगें फैला कर उसके कमर के दोनों तरफ कर उसके लिंग के ऊपर आ गई। मैंने उसके लिंग को उसकी योनि में रगड़ा और उसकी छेद पर टिका दिया। इस पर सुधा ने दबाव दिया, लिंग अन्दर चला गया।
अब सुधा ने धक्के लगाने शुरू कर दिए और विजय मुझे चूमने, चूसने में मग्न हो गया। वो मेरे स्तनों को पूरी ताकत से दाबता और चूसता तो कभी सुधा के आमों को चूसता।
करीब 10 मिनट के बाद सुधा सिसकी लेते हुए हांफने लगी और विजय के ऊपर गिर गई। मेरे लिए यह खुशी का पल था क्योंकि मैं खुद विजय का लिंग अपने अन्दर लेने को तड़प रही थी।
सुधा विजय के ऊपर से अलग हुई तो उसकी योनि में गाढ़े चिपचिपे पानी की तरह लार की तरह वीर्य लगा हुआ था।
विजय मेरे ऊपर आ गया तो मैंने अपनी टाँगें फैला दीं और ऊपर उठा दीं। उसने झुक मेरे दोनों स्तनों को चूमा, चूसा फिर मेरे होंठों को चूसने लगा।
मैंने हाथ से उसका लिंग पकड़ लिया और अपनी योनि के छेद पर टिका कर उसका सुपाड़ा अन्दर कर लिया। फिर मैंने अपनी कमर उठा दी। यह देख उसने जोश में जोर का धक्का मारा तो उसका लिंग मेरी बच्चेदानी से टकरा गई।
मैं चिहुंक उठी, मेरे मुँह से अकस्मात निकल गया- उई माँ… धीरे.. चोदो !
तब उसने 3-4 और जोर के धक्के लगाते हुए कहा- आज कुछ धीरे नहीं होगा !
उसका इतना जोश में आना, मुझे पागल कर रहा था… उसने जोर-जोर से मुझे चोदना शुरू कर दिया था।
मैं इतनी गर्म हो चुकी थी कि कुछ ही देर में मैं झड़ गई।
मैंने पूरी ताकत से विजय को पकड़ लिया।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज इतनी जल्दी झड़ गई तुम !
मैंने उसको कहा- तुम्हें इससे कोई परेशानी नहीं होगी.. तुम जितना चाहो चोद सकते हो, मैं साथ दूँगी तुम्हारा !
यह सुन उसने धक्कों का सिलसिला जारी रखा कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं दुबारा झड़ जाऊँगी, सो मैंने उसको कस के बांहों में भर लिया। अपनी टाँगें उसके कमर के ऊपर रख उसको जकड़ लिया।
विजय की गति अब दुगुनी हो गई थी, उसकी साँसें और तेज़ हो गईं, मैं समझ गई कि अब वो भी झड़ने को है।
हमारे होंठ आपस में चिपके हुए थे और हम दोनों ने एक-दूसरे को यूँ पकड़ रखा था जैसे एक-दूसरे में समा जायेंगे। सिर्फ विजय का पेट हिल रहा था। वो मेरी योनि में लिंग अन्दर-बाहर तेज़ी से करके चोद रहा था।
अचानक मेरे शरीर की नसें खिंचने लगी और मैं झड़ गई।
ठीक उसी वक़्त विजय ने भी पूरी ताकत से धक्के मारते हुए मेरे अन्दर अपना रस छोड़ दिया।
हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे से काफी देर लिपटे रहे। थोड़ा सुस्ताने के बाद हम वापस पानी में चले गए और फिर पानी में ही दो बार उसने मुझे और सुधा को चोदा।
हम तीनों काफी थक चुके थे, फिर हमने खुद को पानी से साफ़ करके कपड़े पहने और वापस घर को आ गए।
रास्ते में मैंने उनको बताया, “मेरे पति ने मुझे कल वापस बुलाया है।”
इस पर विजय को दु:ख हुआ क्योंकि वो मेरे साथ कुछ समय और बिताना चाहता था।
पर उसने कहा- मैं रात को मिलूँ, पर मेरी हालत इन 4 दिनों में ऐसी हो गई थी कि मेरा मन नहीं हो रहा था।
फिर भी मैंने कहा- मैं कोशिश करुँगी !
फिर हम अपने-अपने घर चले गए।
मैं घर जाकर थोड़ी देर सोई रही, फिर शाम को घरवालों को बताया- मुझे कल वापस जाना है।
इस पर मेरी भाभी मुझे शाम को बाज़ार ले गईं और एक नई साड़ी दिलवाई। फिर करीब 7 बजे हम घर लौटे।
रास्ते भर मुझे विजय फोन करता रहा पर मैंने भाभी की वजह से फोन नहीं उठाया।
रात को सबके सोने के बाद मैंने उसको फोन किया तो उसने जिद कर दी कि मैं उसको छत पर मिलूँ !
काफी कहने पर मैं चली गई पर मैंने कहा- मुझसे और नहीं हो पाएगा।
हम छत पर बातें करने लगे। काफी देर बातें करने के बाद मैंने कहा- मुझे जाना है.. सुबह बस पकड़नी है !
पर उसने शायद ठान ली थी और मुझे पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया। मैंने उससे विनती भी की कि मुझे छोड़ दे, मेरी हालत ठीक नहीं है.. मेरे पूरे बदन में दर्द हो रहा है पर उसका अभी भी मुझसे मन नहीं भरा था।
शायद इसलिए मुझसे मेरे कानों में मुझे चूमते हुए कहा- मैं तुम्हें कोई तकलीफ नहीं दूँगा, क्या तुम्हें अभी तक मुझसे कोई परेशानी हुई !
मैं उसकी बातों से पिघलने लगी और उसकी बांहों में समाती चली गई। उसने मुझे वहीं पड़ी खाट पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया।
मैंने एक लम्बी सी मैक्सी पहनी थी। उसे उसने उतारना चाहा, पर मैंने ने मना कर दिया।
तब उसने मेरे मैक्सी के आगे के हुक को खोल कर मेरे स्तनों को बाहर कर दिया और उनको प्यार करने लगा। उसने इस बार बहुत प्यार से मेरे स्तनों को चूसा, फिर कभी मेरे होंठों को चूमता या चूसता और कभी स्तनों को सहलाता।
तभी उसने मेरी मैक्सी को ऊपर पेट तक उठा दिया और मेरी जाँघों को सहलाने लगा। इतनी हरकतों के बाद तो मेरे अन्दर भी चिंगारी भड़कने लगी। सो मैंने भी नीचे हाथ डाल कर उसके लिंग को सहलाना शुरू कर दिया।
उसका एक हाथ नीचे मेरी जाँघों के बीच मेरी योनि को सहलाने लगा।
मैं गीली होने लगी तभी विजय मुझे चूमते हुए मेरी जाँघों के बीच चला गया और मेरी एक टांग को खाट के नीचे लटका दिया। अब उसने मेरी योनि को चूसना शुरू कर दिया पर इस बार अंदाज अलग था। वो बड़े प्यार से अपनी जीभ को मेरी योनि के ऊपर और बीच में घुमाता, फिर दोनों पंखुड़ियों को बारी-बारी चूसता और जीभ को छेद में घुसाने की कोशिश करता।
मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि मुझे लगा अब मैं झड़ जाऊँगी। पर तभी उसने मेरे पेट को चूमते हुए नाभि से होता हुआ मेरे पास आ गया। मेरे होंठों को चूमा और अपना पजामा नीचे सरका दिया।
मैंने उसके लिंग को हाथ से पकड़ कर सहलाया, थोड़ा आगे-पीछे किया, फिर झुक कर चूसने लगी। उसका लिंग इतना सख्त हो गया था जैसे कि लोहा और काफी गर्म भी था। वो मेरे बालों को सहला रहा था और मैं उसके लिंग को प्यार कर रही थी।
तभी उसने मेरे चेहरे को ऊपर किया और कहा- अब आ जाओ मुझे चोदने दो !
मैंने सोचा था कि जैसा अब व्यवहार कर रहा है, वो इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं करेगा, पर मैं भूल गई थी कि वासना के भूखे सब भूल जाते हैं।
मुझे अब यह बात ज्यादा पहले की तरह बैचैन नहीं कर रहे थे, क्योंकि इन 4 दिनों में मैं खुद बेशर्म हो चुकी थी।
उसने मुझे चित लिटा दिया। मेरी टाँगों को फैला कर अपनी जाँघों पर चढ़ा दिया। फिर झुक गया और मेरे ऊपर आ गया। उसका लिंग मेरी योनि से लग रहा था। सो मैंने हाथ से उसे पकड़ा और फिर अपनी योनि में उसका सुपाड़ा अन्दर कर दिया।
इसके बाद विजय मेरे ऊपर अपना पूरा वजन दे कर लेट गया फिर उसने मुझे चूमते हुए कहा- कुछ कहो !
मैं समझ गई कि वो क्या चाहता है, सो मैंने उसको कहा- अब देर मत करो.. चोदो मुझे !
उसने मुझे मुस्कुराते हुए देखा और मेरे होंठों को चूमते हुए धक्का दिया। उसका लिंग मेरी योनि में अंत तक चला गया। मेरी योनि में तो पहले से ही दर्द था, तो इस बार लिंग के अन्दर जाते ही मैं दर्द से कसमसा गई।
मेरी सिसकी सुनकर वो और जोश में आने लगा और बड़े प्यार से मुझे धीरे-धीरे धक्के लगाता, पर ऐसा लगता था जैसे वो पूरी गहराई में जाना चाहता हो। पता नहीं मैं दर्द को किनारे करती हुई उसका साथ देने लगी।
जब वो अपनी कमर को ऊपर उठाता, मैं अपनी कमर नीचे कर लेती और जब वो नीचे करता मैं ऊपर !
इसी तरह हौले-हौले हम लिंग और योनि को आपस में मिलाते और हर बार मुझे अपनी बच्चेदानी में उसका सुपाड़ा महसूस होता। वो धक्कों के साथ मेरे पूरे जिस्म से खेलता और मुझे बार-बार कहता- कुछ कहो!
काफी देर बाद उसने मुझे ऊपर उठाया और अपनी गोद में बिठा लिया और मुझसे कहा- सारिका, अब तुम चुदवाओ !
मैं समझ रही थी कि वो ऐसा इसलिए कह रहा था ताकि मैं भी उसी तरह के शब्द उसको बोलूँ।
मैंने भी उसकी खुशी के लिए उससे ऐसी बातें करनी शुरू कर दीं।
मैंने कहा- तुम भी चोदो मुझे.. नीचे से मैं भी धक्के लगाती हूँ !
यह सुन कर उसने अपनी कमर को उछालना शुरू कर दिया। मैंने भी धक्के तेज़ कर दिए। करीब 20 मिनट हो चुके थे, पर हम दोनों में से कोई अभी तक नहीं झड़ा था।
फिर उसने मुझे खाट के नीचे उतरने को कहा और मुझसे कहा कि मैं घुटनों के बल खड़ी होकर खाट पर पेट के सहारे लेट जाऊँ।
मैं नीचे गई और वैसे ही लेट गई।
विजय मेरे पीछे घुटनों के सहारे खड़ा हो गया फिर मेरी मैक्सी को मेरे चूतड़ के ऊपर उठा कर मेरे कूल्हों को प्यार किया, दबाया, चूमा फिर उन्हें फैला कर मेरी योनि को चूमते हुए कहा- तुम्हारी गांड और बुर कितनी प्यारी है !
फिर उसने अपना लिंग मेरी योनि से लगा कर धक्का दिया।
कुछ देर बाद शायद उसे मजा नहीं आ रहा था तो मुझसे कहा- तुम अपनी टाँगों को फैलाओ और चूतड़ ऊपर उठाओ !
मैंने वैसा ही किया इस तरह मेरी योनि थोड़ी ऊपर हो गई और अब उसका लिंग हर धक्के में पूरा अन्दर चला जाता, कभी-कभी तो मेरी नाभि में कुछ महसूस होता।
करीब दस मिनट और इसी तरह मुझे चोदने के बाद उसने मुझे फिर सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया। उसने मेरी एक टांग को अपने कंधे पर चढ़ा दिया और मुझे चोदने लगा। करीब 5 मिनट में मेरी बर्दाश्त से बाहर होने लगा, सो मैंने अपनी टांग उसके कंधे से हटा कर उसको दोनों टाँगों से उसकी कमर जकड़ ली।
मेरी योनि अब रस से भर गई और इतनी चिपचिपी हो गई थी कि उसके धक्कों से ‘फच-फच’ की आवाज आने लगी थी। मैं अब चरमसुख की तरफ बढ़ने लगी। धीरे-धीरे मेरा शरीर सख्त होने लगा और मैंने नीचे से पूरी ताकत लगा दी।
उधर विजय की साँसें भी तेज़ होती जा रही थीं और धक्कों में भी तेज़ी आ गई थी। उसने अपनी पूरी ताकत मुझ पर लगा दी थी।
मैंने उसके चेहरे को देखा उसके माथे से पसीना टपक रहा था और चेहरा मानो ऐसा था जैसे काफी दर्द में हो। पर मैं जानती थी कि ये दर्द नहीं बल्कि एक असीम सुख की निशानी है।
उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ लिया और मैंने उसको। वो धक्कों की बरसात सा करने लगा और मैंने भी नीचे से उसका साथ दिया। इसी बीच मैं कराहते हुए झड़ गई। मेरे कुछ देर बाद वो भी झड़ गया। उसके स्खलन के समय के धक्के मुझे कराहने पर मजबूर कर रहे थे।
हम काफी देर तक यूँ ही लेटे रहे। करीब रात के 1 बज चुके थे। मैंने खुद के कपड़े ठीक किए फिर मैंने विजय को उठाया, पर वो सो चुका था।
मैंने चैन की सांस ली कि वो सो गया क्योंकि अगर जागता होता तो मुझे जाने नहीं देता सो मैंने दुबारा उठाने की कोशिश नहीं की।
मैंने उसका पजामा ऊपर चढ़ा दिया और दबे पाँव नीचे अपने कमरे में चली आई। दिन भर की थकान ने मेरा पूरा बदन चूर कर दिया था।
अगली सुबह मैं जल्दी से उठी। नहा-धो कर तैयार हुई और बस स्टैंड जाने लगी। रास्ते भर मेरी जाँघों में दर्द के वजह से चला नहीं जा रहा था।
उसी रात पति को भी सम्भोग की इच्छा हुई। पर राहत की बात मेरे लिए ये थी कि वो ज्यादा देर सम्भोग नहीं कर पाते थे, सो 10 मिनट के अन्दर सब कुछ करके सो गए।
अगले महीने मेरी माहवारी नहीं हुई, मैं समझ गई कि मेरे पेट में बच्चा है। पर अब ये मुश्किल था तय करना कि किसका बच्चा है।
फिर भी मुझे कोई परेशानी नहीं थी और तीसरा बच्चा भी लड़का ही हुआ।
मेरी ये कहानी कैसी लगी।
फिर सुधा ने विजय का लिंग पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ना शुरू कर दिया, इससे मुझे बहुत मजा आ रहा था, मन कर रहा था कि जल्दी से उसे मेरी योनि में डाल दे।
मैं भी अपनी योनि को उसके ऊपर दबाते हुए विजय को चूमने लगी।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज एक चीज़ तुम दोनों को करना होगा मेरी खातिर !
मैंने पूछा- क्या?
तब उसने कहा- तुम दोनों को आपस में चूमना होगा, साथ ही एक-दूसरे की बुर को चूसना होगा !
यह बात सुनते ही मैं चौंक गई, मुझे ऐसा लगा कि यह क्या पागलपन है।
तभी सुधा खुशी से बोली- हाँ.. क्यों नहीं.. बहुत मजा आएगा !
पर मैं इसके लिए तैयार नहीं थी, पर सुधा और विजय जिद पर अड़ गए और विजय ने मुझे कस कर पकड़ लिया। फिर सुधा ने मेरे सिर को थामा और मेरे होंठों से होंठ लगा कर मेरे होंठों चूमने लगी।
मैं बार-बार मना कर रही थी, पर उन पर कोई असर नहीं हुआ। तब मैं गुस्से में आ गई तो उन दोनों ने मुझे छोड़ दिया।
मैं गुस्से से जाने लगी तब उन दोनों ने मुझसे माफ़ी माँगी और फिर हम वैसे ही अपनी काम-क्रीड़ा में लग गए।
सुधा के लिए शायद ये सब नया नहीं था क्योंकि वो ऐसी पार्टियों में जाया करती थी।
पर मेरे लिए ये सब नया था तो मैं सहज नहीं थी।
तब सुधा ने मुझसे कहा- सारिका, तुम्हें मजे लेने चाहिए क्योंकि ऐसा मौका हमेशा नहीं मिलता !
मैंने कह दिया- मुझे इस तरह का मजा नहीं चाहिए… मैं बस अपनी यौन-तृप्ति चाहती थी इसलिए तुम लोगों की हर बात ना चाहते हुए भी माना, पर अब हद हो गई है !
तब विजय ने मुझसे कहा- ठीक है, जैसा तुम चाहो वैसा ही करेंगे।
तब उन्होंने कहा- दो औरतें अगर एक-दूसरे का अंग छुए और खेलें तो खेल और भी रोचक हो जाता है।
पर मैंने मना कर दिया, तब उसने कहा- ठीक है मत करो ! तुम पर सुधा को करने दो उसे कोई दिक्कत नहीं।
मैंने कुछ देर सोचा फिर आधे मन से ‘हाँ’ कर दी।
अब विजय ने सुधा को पकड़ा और उसे पागलों की तरह चूमने, चूसने लगा। सुधा भी उसका जवाब दे रही थे।
दोनों काफी गर्म हो गए थे, तब विजय ने मुझसे कहा- तुम दोनों मेरा लंड चूसो !
वो किनारे पर आ गया, जहाँ पानी घुटनों तक था। सुधा और विजय आपस में चूमने लगे और मैं झुक कर घुटनों के बल खड़ी होकर उसके लिंग को प्यार करने लगी।
मैंने उसके लिंग को पहले हाथ से सहलाया, जब मैं उसके लिंग को आगे की तरफ खींचती तो ऊपर का चमड़ा उसके सुपाड़े को ढक देता पर जब पीछे करती तो उसका सुपाड़ा खुल कर बाहर आ जाता।
मैं दिन के उजाले में उसका सुपाड़ा पहली बार इतने करीब से देख रही थी, एकदम गहरा लाल.. किसी बड़े से चैरी की तरह था।
मैंने उसके सुपाड़े के ऊपर जीभ फिराई और फिर उसको अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। कुछ देर में विजय भी अपनी कमर को हिलाने लगा और अपने लिंग को मेरे मुँह में अन्दर बाहर करने लगा।
थोड़ी देर में सुधा भी घुटनों के बल आ गई और फिर वो भी लिंग को चूसने लगी। दोनों के लार और थूक से उसका लिंग तर हो गया था।
विजय ने अब कहा- चलो चट्टान के ऊपर चलते हैं।
फिर उसने सुधा को कहा- क्या तुम मेरे लिए सारिका की बुर चाटोगी !
उसने मुस्कुराते हुए सर हिलाया फिर मुझे चट्टान के ऊपर लेट जाने को कहा। मुझे अजीब लग रहा था क्योंकि पहली बार कोई औरत मेरी योनि के साथ ऐसा करने वाली थी।
उसने मेरी टाँगें फैला दीं और झुक कर मेरे टाँगों के बीच अपना सर रख दिया।
फिर उसने मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए कहा- अब तुम्हें बहुत मजा आएगा !
फिर उसने मेरी दोनों जाँघों को चूमा, फिर योनि के किनारे फिर अपनी जुबान को मेरी योनि में लगा कर नीचे से ऊपर ले आई।
उसने मेरी योनि को चाटना शुरू कर दिया।
काफी देर के बाद विजय सुधा के पीछे चला गया और झुक कर उसकी योनि को चाटने लगा। इधर सुधा मेरी योनि से तरह-तरह से खिलवाड़ करने लगी, कभी जुबान को योनि के ऊपर फिराती, तो कभी योनि में घुसाने की कोशिश करती, कभी दोनों हाथों से मेरी योनि को फैला देती और उसके अन्दर थूक कर दुबारा चाटने लगती या उंगली डाल देती।
कभी मेरी योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियों को दांत से पकड़ कर खींचती। मुझे इससे काफी उत्तेजना हो रही थी। मैं अब काफी गर्म हो कर तैयार थी, पर उन दोनों को तो खेलने में ज्यादा रूचि थी।
तभी विजय मेरे पास आकर लेट गया। मैंने उसको पकड लिया और चूमने लगी, साथ ही उसके लिंग को सहलाने लगी।
सुधा ने फिर मुझे छोड़ दिया और विजय के लिंग को पकड़ कर चूसा, फिर अपनी दोनों टाँगें फैला कर उसके कमर के दोनों तरफ कर उसके लिंग के ऊपर आ गई। मैंने उसके लिंग को उसकी योनि में रगड़ा और उसकी छेद पर टिका दिया। इस पर सुधा ने दबाव दिया, लिंग अन्दर चला गया।
अब सुधा ने धक्के लगाने शुरू कर दिए और विजय मुझे चूमने, चूसने में मग्न हो गया। वो मेरे स्तनों को पूरी ताकत से दाबता और चूसता तो कभी सुधा के आमों को चूसता।
करीब 10 मिनट के बाद सुधा सिसकी लेते हुए हांफने लगी और विजय के ऊपर गिर गई। मेरे लिए यह खुशी का पल था क्योंकि मैं खुद विजय का लिंग अपने अन्दर लेने को तड़प रही थी।
सुधा विजय के ऊपर से अलग हुई तो उसकी योनि में गाढ़े चिपचिपे पानी की तरह लार की तरह वीर्य लगा हुआ था।
विजय मेरे ऊपर आ गया तो मैंने अपनी टाँगें फैला दीं और ऊपर उठा दीं। उसने झुक मेरे दोनों स्तनों को चूमा, चूसा फिर मेरे होंठों को चूसने लगा।
मैंने हाथ से उसका लिंग पकड़ लिया और अपनी योनि के छेद पर टिका कर उसका सुपाड़ा अन्दर कर लिया। फिर मैंने अपनी कमर उठा दी। यह देख उसने जोश में जोर का धक्का मारा तो उसका लिंग मेरी बच्चेदानी से टकरा गई।
मैं चिहुंक उठी, मेरे मुँह से अकस्मात निकल गया- उई माँ… धीरे.. चोदो !
तब उसने 3-4 और जोर के धक्के लगाते हुए कहा- आज कुछ धीरे नहीं होगा !
उसका इतना जोश में आना, मुझे पागल कर रहा था… उसने जोर-जोर से मुझे चोदना शुरू कर दिया था।
मैं इतनी गर्म हो चुकी थी कि कुछ ही देर में मैं झड़ गई।
मैंने पूरी ताकत से विजय को पकड़ लिया।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज इतनी जल्दी झड़ गई तुम !
मैंने उसको कहा- तुम्हें इससे कोई परेशानी नहीं होगी.. तुम जितना चाहो चोद सकते हो, मैं साथ दूँगी तुम्हारा !
यह सुन उसने धक्कों का सिलसिला जारी रखा कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं दुबारा झड़ जाऊँगी, सो मैंने उसको कस के बांहों में भर लिया। अपनी टाँगें उसके कमर के ऊपर रख उसको जकड़ लिया।
विजय की गति अब दुगुनी हो गई थी, उसकी साँसें और तेज़ हो गईं, मैं समझ गई कि अब वो भी झड़ने को है।
हमारे होंठ आपस में चिपके हुए थे और हम दोनों ने एक-दूसरे को यूँ पकड़ रखा था जैसे एक-दूसरे में समा जायेंगे। सिर्फ विजय का पेट हिल रहा था। वो मेरी योनि में लिंग अन्दर-बाहर तेज़ी से करके चोद रहा था।
अचानक मेरे शरीर की नसें खिंचने लगी और मैं झड़ गई।
ठीक उसी वक़्त विजय ने भी पूरी ताकत से धक्के मारते हुए मेरे अन्दर अपना रस छोड़ दिया।
हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे से काफी देर लिपटे रहे। थोड़ा सुस्ताने के बाद हम वापस पानी में चले गए और फिर पानी में ही दो बार उसने मुझे और सुधा को चोदा।
हम तीनों काफी थक चुके थे, फिर हमने खुद को पानी से साफ़ करके कपड़े पहने और वापस घर को आ गए।
रास्ते में मैंने उनको बताया, “मेरे पति ने मुझे कल वापस बुलाया है।”
इस पर विजय को दु:ख हुआ क्योंकि वो मेरे साथ कुछ समय और बिताना चाहता था।
पर उसने कहा- मैं रात को मिलूँ, पर मेरी हालत इन 4 दिनों में ऐसी हो गई थी कि मेरा मन नहीं हो रहा था।
फिर भी मैंने कहा- मैं कोशिश करुँगी !
फिर हम अपने-अपने घर चले गए।
मैं घर जाकर थोड़ी देर सोई रही, फिर शाम को घरवालों को बताया- मुझे कल वापस जाना है।
इस पर मेरी भाभी मुझे शाम को बाज़ार ले गईं और एक नई साड़ी दिलवाई। फिर करीब 7 बजे हम घर लौटे।
रास्ते भर मुझे विजय फोन करता रहा पर मैंने भाभी की वजह से फोन नहीं उठाया।
रात को सबके सोने के बाद मैंने उसको फोन किया तो उसने जिद कर दी कि मैं उसको छत पर मिलूँ !
काफी कहने पर मैं चली गई पर मैंने कहा- मुझसे और नहीं हो पाएगा।
हम छत पर बातें करने लगे। काफी देर बातें करने के बाद मैंने कहा- मुझे जाना है.. सुबह बस पकड़नी है !
पर उसने शायद ठान ली थी और मुझे पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया। मैंने उससे विनती भी की कि मुझे छोड़ दे, मेरी हालत ठीक नहीं है.. मेरे पूरे बदन में दर्द हो रहा है पर उसका अभी भी मुझसे मन नहीं भरा था।
शायद इसलिए मुझसे मेरे कानों में मुझे चूमते हुए कहा- मैं तुम्हें कोई तकलीफ नहीं दूँगा, क्या तुम्हें अभी तक मुझसे कोई परेशानी हुई !
मैं उसकी बातों से पिघलने लगी और उसकी बांहों में समाती चली गई। उसने मुझे वहीं पड़ी खाट पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया।
मैंने एक लम्बी सी मैक्सी पहनी थी। उसे उसने उतारना चाहा, पर मैंने ने मना कर दिया।
तब उसने मेरे मैक्सी के आगे के हुक को खोल कर मेरे स्तनों को बाहर कर दिया और उनको प्यार करने लगा। उसने इस बार बहुत प्यार से मेरे स्तनों को चूसा, फिर कभी मेरे होंठों को चूमता या चूसता और कभी स्तनों को सहलाता।
तभी उसने मेरी मैक्सी को ऊपर पेट तक उठा दिया और मेरी जाँघों को सहलाने लगा। इतनी हरकतों के बाद तो मेरे अन्दर भी चिंगारी भड़कने लगी। सो मैंने भी नीचे हाथ डाल कर उसके लिंग को सहलाना शुरू कर दिया।
उसका एक हाथ नीचे मेरी जाँघों के बीच मेरी योनि को सहलाने लगा।
मैं गीली होने लगी तभी विजय मुझे चूमते हुए मेरी जाँघों के बीच चला गया और मेरी एक टांग को खाट के नीचे लटका दिया। अब उसने मेरी योनि को चूसना शुरू कर दिया पर इस बार अंदाज अलग था। वो बड़े प्यार से अपनी जीभ को मेरी योनि के ऊपर और बीच में घुमाता, फिर दोनों पंखुड़ियों को बारी-बारी चूसता और जीभ को छेद में घुसाने की कोशिश करता।
मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि मुझे लगा अब मैं झड़ जाऊँगी। पर तभी उसने मेरे पेट को चूमते हुए नाभि से होता हुआ मेरे पास आ गया। मेरे होंठों को चूमा और अपना पजामा नीचे सरका दिया।
मैंने उसके लिंग को हाथ से पकड़ कर सहलाया, थोड़ा आगे-पीछे किया, फिर झुक कर चूसने लगी। उसका लिंग इतना सख्त हो गया था जैसे कि लोहा और काफी गर्म भी था। वो मेरे बालों को सहला रहा था और मैं उसके लिंग को प्यार कर रही थी।
तभी उसने मेरे चेहरे को ऊपर किया और कहा- अब आ जाओ मुझे चोदने दो !
मैंने सोचा था कि जैसा अब व्यवहार कर रहा है, वो इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं करेगा, पर मैं भूल गई थी कि वासना के भूखे सब भूल जाते हैं।
मुझे अब यह बात ज्यादा पहले की तरह बैचैन नहीं कर रहे थे, क्योंकि इन 4 दिनों में मैं खुद बेशर्म हो चुकी थी।
उसने मुझे चित लिटा दिया। मेरी टाँगों को फैला कर अपनी जाँघों पर चढ़ा दिया। फिर झुक गया और मेरे ऊपर आ गया। उसका लिंग मेरी योनि से लग रहा था। सो मैंने हाथ से उसे पकड़ा और फिर अपनी योनि में उसका सुपाड़ा अन्दर कर दिया।
इसके बाद विजय मेरे ऊपर अपना पूरा वजन दे कर लेट गया फिर उसने मुझे चूमते हुए कहा- कुछ कहो !
मैं समझ गई कि वो क्या चाहता है, सो मैंने उसको कहा- अब देर मत करो.. चोदो मुझे !
उसने मुझे मुस्कुराते हुए देखा और मेरे होंठों को चूमते हुए धक्का दिया। उसका लिंग मेरी योनि में अंत तक चला गया। मेरी योनि में तो पहले से ही दर्द था, तो इस बार लिंग के अन्दर जाते ही मैं दर्द से कसमसा गई।
मेरी सिसकी सुनकर वो और जोश में आने लगा और बड़े प्यार से मुझे धीरे-धीरे धक्के लगाता, पर ऐसा लगता था जैसे वो पूरी गहराई में जाना चाहता हो। पता नहीं मैं दर्द को किनारे करती हुई उसका साथ देने लगी।
जब वो अपनी कमर को ऊपर उठाता, मैं अपनी कमर नीचे कर लेती और जब वो नीचे करता मैं ऊपर !
इसी तरह हौले-हौले हम लिंग और योनि को आपस में मिलाते और हर बार मुझे अपनी बच्चेदानी में उसका सुपाड़ा महसूस होता। वो धक्कों के साथ मेरे पूरे जिस्म से खेलता और मुझे बार-बार कहता- कुछ कहो!
काफी देर बाद उसने मुझे ऊपर उठाया और अपनी गोद में बिठा लिया और मुझसे कहा- सारिका, अब तुम चुदवाओ !
मैं समझ रही थी कि वो ऐसा इसलिए कह रहा था ताकि मैं भी उसी तरह के शब्द उसको बोलूँ।
मैंने भी उसकी खुशी के लिए उससे ऐसी बातें करनी शुरू कर दीं।
मैंने कहा- तुम भी चोदो मुझे.. नीचे से मैं भी धक्के लगाती हूँ !
यह सुन कर उसने अपनी कमर को उछालना शुरू कर दिया। मैंने भी धक्के तेज़ कर दिए। करीब 20 मिनट हो चुके थे, पर हम दोनों में से कोई अभी तक नहीं झड़ा था।
फिर उसने मुझे खाट के नीचे उतरने को कहा और मुझसे कहा कि मैं घुटनों के बल खड़ी होकर खाट पर पेट के सहारे लेट जाऊँ।
मैं नीचे गई और वैसे ही लेट गई।
विजय मेरे पीछे घुटनों के सहारे खड़ा हो गया फिर मेरी मैक्सी को मेरे चूतड़ के ऊपर उठा कर मेरे कूल्हों को प्यार किया, दबाया, चूमा फिर उन्हें फैला कर मेरी योनि को चूमते हुए कहा- तुम्हारी गांड और बुर कितनी प्यारी है !
फिर उसने अपना लिंग मेरी योनि से लगा कर धक्का दिया।
कुछ देर बाद शायद उसे मजा नहीं आ रहा था तो मुझसे कहा- तुम अपनी टाँगों को फैलाओ और चूतड़ ऊपर उठाओ !
मैंने वैसा ही किया इस तरह मेरी योनि थोड़ी ऊपर हो गई और अब उसका लिंग हर धक्के में पूरा अन्दर चला जाता, कभी-कभी तो मेरी नाभि में कुछ महसूस होता।
करीब दस मिनट और इसी तरह मुझे चोदने के बाद उसने मुझे फिर सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया। उसने मेरी एक टांग को अपने कंधे पर चढ़ा दिया और मुझे चोदने लगा। करीब 5 मिनट में मेरी बर्दाश्त से बाहर होने लगा, सो मैंने अपनी टांग उसके कंधे से हटा कर उसको दोनों टाँगों से उसकी कमर जकड़ ली।
मेरी योनि अब रस से भर गई और इतनी चिपचिपी हो गई थी कि उसके धक्कों से ‘फच-फच’ की आवाज आने लगी थी। मैं अब चरमसुख की तरफ बढ़ने लगी। धीरे-धीरे मेरा शरीर सख्त होने लगा और मैंने नीचे से पूरी ताकत लगा दी।
उधर विजय की साँसें भी तेज़ होती जा रही थीं और धक्कों में भी तेज़ी आ गई थी। उसने अपनी पूरी ताकत मुझ पर लगा दी थी।
मैंने उसके चेहरे को देखा उसके माथे से पसीना टपक रहा था और चेहरा मानो ऐसा था जैसे काफी दर्द में हो। पर मैं जानती थी कि ये दर्द नहीं बल्कि एक असीम सुख की निशानी है।
उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ लिया और मैंने उसको। वो धक्कों की बरसात सा करने लगा और मैंने भी नीचे से उसका साथ दिया। इसी बीच मैं कराहते हुए झड़ गई। मेरे कुछ देर बाद वो भी झड़ गया। उसके स्खलन के समय के धक्के मुझे कराहने पर मजबूर कर रहे थे।
हम काफी देर तक यूँ ही लेटे रहे। करीब रात के 1 बज चुके थे। मैंने खुद के कपड़े ठीक किए फिर मैंने विजय को उठाया, पर वो सो चुका था।
मैंने चैन की सांस ली कि वो सो गया क्योंकि अगर जागता होता तो मुझे जाने नहीं देता सो मैंने दुबारा उठाने की कोशिश नहीं की।
मैंने उसका पजामा ऊपर चढ़ा दिया और दबे पाँव नीचे अपने कमरे में चली आई। दिन भर की थकान ने मेरा पूरा बदन चूर कर दिया था।
अगली सुबह मैं जल्दी से उठी। नहा-धो कर तैयार हुई और बस स्टैंड जाने लगी। रास्ते भर मेरी जाँघों में दर्द के वजह से चला नहीं जा रहा था।
उसी रात पति को भी सम्भोग की इच्छा हुई। पर राहत की बात मेरे लिए ये थी कि वो ज्यादा देर सम्भोग नहीं कर पाते थे, सो 10 मिनट के अन्दर सब कुछ करके सो गए।
अगले महीने मेरी माहवारी नहीं हुई, मैं समझ गई कि मेरे पेट में बच्चा है। पर अब ये मुश्किल था तय करना कि किसका बच्चा है।
फिर भी मुझे कोई परेशानी नहीं थी और तीसरा बच्चा भी लड़का ही हुआ।
मेरी ये कहानी कैसी लगी।