अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 11:12

अधूरा प्यार--28 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...........

"क्या हुआ? आप चुप क्यूँ हो?" नीरू ने चलते चलते रोहन को टोका...

"आ.. नही.. कुच्छ नही.. आगे कीचड़ है.. इसीलिए संभाल कर चल रहा हूँ..." रोहन ने नीरू के टोकने पर कहा.. ये पहली बार था जब वो दोनो अकेले थे.. और कोई नही था उनके साथ...

"नही आएगा.. आप आराम से चलते रहो!" नीरू ने चहकते हुए कहा...

"तुम्हे नही पता.. पिच्छली बार हमारी पॅंट घुटनो तक कीचड़ में सन गयी थी... एक बात पूच्छू...?" रोहन ने कहा...

"हुम्म.. कुच्छ भी पूच्छो.." नीरू उसी अंदाज में बोली...

"तुम्हे सच में डर नही लग रहा या तुम डर को च्चिपा रही हो...?" रोहन ने सवाल किया...

"नही.. डर नही लग रहा.. हमें डर क्यूँ लगेगा?" नीरू ने कहा...

" इतनी रात में हम यहाँ सुनसान रास्ते पर चल रहे हैं... तुम वैसे भी लड़की हो.. डर लगना तो लाजिमी है... अरे.. कीचड़ सच में नही मिला.. हम तालाब के पार पहुँच गये.." रोहन ने हैरत से कहा और अचानक उसको कुच्छ ध्यान आया..

वा तुरंत पिछे पलट कर खड़ा हो गया.. उसके रुकते ही नीरू भी एकदम वहीं खड़ी हो गयी...

"क्क्कऔन हो तुम?" रोहन उसको ग़ौर से देखता हुआ एक कदम पिछे हट गया...

नीरू मुस्कुराने लगी..," हम नीरू हैं.. और कौन? चलो भी अब!"

"नही.. क्कौनसी वाली नीरू? सच बताओ प्लीज़..." रोहन उसके मुँह से दो बार अपने लिए 'हम' शब्द सुन चुका था.. पहले तो नीरू ऐसे नही बोलती थी कभी... और उसने ये भी बता दिया कि कीचड़ नही मिलेगा... उसको अहसास हुआ शायद वो नीरू नही बुल्की 'प्रिया' है....

नीरू कुच्छ देर यूँही खड़ी मुस्कुराती रही फिर अचानक वह आगे बढ़ कर रोहन से लिपट गयी," हम आपकी नीरू हैं जान.. देव की प्रिया... और कौन?"

"नही... मतलब.. तुम.. आइ मीन.. तुम इस जनम वाली नीरू हो या.. प्रिया.." रोहन नीरू की इस हरकत से एकदम हड़बड़ा सा गया....

नीरू रोहन से यूँही लिपटी खड़ी रही.. उसने रोहन के सवाल का जवाब कुच्छ यूँ दिया," आप कैसे समझोगे..सदियों बाद मिले हो आप... कितने तडपे हैं आपके लिए.. कैसे बतायें...? क्या क्या नही किया! कहाँ कहाँ नही ढूँढा आपको! इस दुनिया के भी नियम तोड़े और उस दुनिया के भी... पर देख लो जान.. आख़िरकार हम आपके हो कर ही रहे.. हमने कहा था ना..आपके रहेंगे जनम जनम..! आपके ही रहे... हर जनम.. आपके सिवाय किसी के बारे में सोचा तक नही.. प्यार क्या होता है? मेरे शरीर ने जाना तक नही कभी... हमारा दिल यहीं तड़प्ता रहा.. आपके लिए.. यहाँ.. इस तन्हा वीराने में.. " बोलते हुए नीरू फफक फफक कर रोने लगी...

रोहन का गला भर आया.. उसने झिझकते हुए नीरू को अपनी बाहों में भर लिया....," आइ लव यू जान!" उसने नीरू को कसकर अपनी बाहों में भींच लिया...," ये सब तुम्हारे ही प्यार की वजह से हो पाया... मुझे तो कुच्छ याद ही नही था.. हां.. सब कहते थे.. तुम खोए खोए से लगते हो.. पर.. मैं.. मुझे कभी अहसास नही था कि मेरा क्या गुम हो रखा है.... हां.. ऐसा लगता था कि कुच्छ ढूँढ रहा है मंन... आज जाकर मंन शांत हुआ है..."

दोनो ना जाने कितनी देर यूँही खड़े रहे.. खामोश... अब सिर्फ़ उनके दिल धड़क रहे थे.. साँसें बात कर रही थी.... और वक़्त मानो वहीं ठहर सा गया था...

"अब क्या करें? " रोहन ने कुच्छ देर बाद चुप्पी तोड़ी...

"कुच्छ मत बोलो अभी.. हमें शादियों बाद ऐसा सुकून मिला है.. इस लम्हे को अपनी साँसों में समेट लेने दो..." नीरू रोहन से यूँही चिपकी खड़ी रही...

कुच्छ देर बाद वह नज़रें झुकाए उस'से दूर हटकर खड़ी हो गयी.. सिर्फ़ थोड़ी सी दूर...

"वापस चलें क्या?" रोहन ने पूचछा...

"नही.. वो लॉकेट लाना है.. जो आप मुझे पहना कर गये थे.. इसीलिए तो आपको यहाँ बुलाया था...." नीरू ने जवाब दिया....

"पर.. तुम तो.. मतलब नीरू ने सपने में देखा था कि लॉकेट उस.. कुँवरपाल ने भत्ति में फैंक दिया था.. वो जला नही क्या?" रोहन ने पूचछा...

"नही.. वो जल जाता तो हम यहाँ किसके सहारे रहते... वो तो शादियों से यूँही आसमान के सितारे की भाँति दमक रहा है... वो देखो.." नीरू ने रोशनी की ओर इशारा किया...

"क्या? वो.. लॉकेट है? वो तो किसी बल्ब की भाँति चमक रहा है.. और वो जगह तो हमें कभी मिली ही नही.... हमने उस दिन कितना ढूँढा था उसको...!" रोहन आस्चर्य से रोशनी की तरफ देखता हुआ बोला.....

"मिल जाएगा आज.. हम आपके साथ हैं ना.. चलो तो सही..." नीरू ने उसकी बाँह पकड़ी और आगे बढ़ गयी.....

उन्ही अंजानी सी गलियों से आगे बढ़ते हुए वो रोशनी की तरफ कुच्छ कदम आगे बढ़े थे कि रोहन को वही बच्चा खुशी से उच्छलता आता दिखाई दिया...

"दीदी.. मुझे ले चलो ना साथ!" उसने कहा और पास आकर खड़ा हो गया... उसके चेहरे पर वैसी ही मासूमियत थी.. वैसा ही सूनापन....

"ये कुमार दीक्षित था.. हमारा छ्होटा भाई.. आज इसकी मुक्ति का समय आ गया है... इसका हाथ पकड़ लो.. और दूसरे हाथ से मेरा हाथ थामे रहो..." नीरू ने कहा...

रोहन ने अचरज से उसकी और देखते हुए खुश होकर अपना हाथ उसकी और बढ़ा दिया... बच्चा भाग कर आया और रोहन से बोला," चलो.. आप भी हमारे साथ रहोगे क्या?"

रोहन मुस्कुरा दिया.. उसको अब लेशमात्रा का भी डर नही लग रहा था...," हाथ पकड़ लो मेरा....!"

"पकड़ा हुआ है इसने.." नीरू ने कहा और चलती रही...

पीपल के उस पेड़ तक पहुँचने में आज उनको उतना ही टाइम लगा जितना नितिन को दिन में आने पर उसके पास जाने में लगा था... रोहन आस्चर्य से पीपल की एक उँची शाखा पर किसी तारे की तरह चमक रहे लॉकेट को देखने लगा कि अचानक चौंक पड़ा..," वो.. बच्चा कहाँ गया... सॉरी.. तुम्हारा भाई..."

नीरू मुस्कुरकर बोली," चला गया वो.. उसको रास्ता मिल गया.. इस जहाँ से रुखसत होने का.. कितने सालों से भटक रहा था बेचारा... " नीरू आँखों से आँसू पौंचछते हुए बोली...," जाओ.. उस लॉकेट को उतार कर ले आओ अब!"

"हुम्म. अभी चढ़ता हूँ..." रोहन का उत्साह देखते ही बन रहा था... वह बिना डरे पीपल के पेड़ पर चढ़ा और लॉकेट के पास जाकर उसको निहारने लगा... लॉकेट किसी हीरे की तरह लग रहा था... रोहन ने टहनियों में अटकी हुई उसकी डोर सुलझाई और उसको लेकर नीचे आ गया...," ले आया मैं.. अपना लॉकेट... अब इसको पहन लूँ क्या?"

नीरू हँसने लगी," इसको आप हमें भेंट कर चुके हो.. याद नही है क्या..?" नीरू ने कहा और लॉकेट को देखने लगी...

"तो क्या करूँ इसका ?" रोहन ने पूचछा....

"हमें पहना दो.. और क्या करोगे....?" नीरू मुस्कुराती हुई बोली.. और फिर अचानक अपना हाथ उठा दिया....," हमें ले चलना यहाँ से.. कहीं यहाँ छ्चोड़ कर भाग जाओ...!"

रोहन उसकी और देख कर प्यार से मुस्कुराया और किसी वरमाला की तरह उसके गले में लॉकेट पहना दिया.... लॉकेट पहनते ही पहले से ही उसके हाथ पकड़ कर खड़ी नीरू उसकी बाहहों में झूल गयी....

रोहन एक पल के लिए तो घबरा ही गया था... अचानक उसको नीरू की कही बात याद आ गयी.. रोहन ने उसको बाँहों में उठाया और वापस चल पड़ा....

नीरू को अपने कंधे पर उठाए जैसे ही रोहन रवि और ऋतु को दिखाई दिया.. दोनों भय और आशंका के मारे उच्छल पड़े...," क्या हो गया?" दोनों के मुँह से एक साथ निकला....

रोहन के पास आने पर जब उन्होने उसको मुस्कुराता हुआ देखा तो दोनो की जान में जान आई...

"क्या हो गया भाई, भाभी जी को?" रवि ने पूचछा...

"कुच्छ नही.. ठीक है.. पर अब तक तो होश आ जाना चाहिए था..." रोहन ने कहा..," ज़रा बोलना इसको..."

"नीरू.. नीरू.. आए शीनू..." ऋतु ने उसके गालों को थपथपा कर देखा," क्या हो गया इसको?" ऋतु एक बार फिर घबरा गयी....

"कुच्छ नही.. हो जाएगी ठीक.." रोहन ने कहा.. पर अब उसको भी चिंता होने लगी थी," चलो.. जल्दी.. गाड़ी में चल कर देखेंगे..." रोहन उसको यूँही अपने कंधों पर डाले रहा.....

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गाड़ी तक पहुँचते पहुँचते रोहन की साँस फूल गयी थी...," ज़रा अंदर की लाइट ऑन करना.. मैं इसको पिछे लिटाता हूं.." रोहन ने रवि की तरफ चाबियाँ उच्छाल दी...

लॉक खुलते ही रोहन ने दरवाजा खोला और नीरू को अंदर लिटा दिया... चिंता में उसके चेहरे की ओर देखते हुए रोहन ने जैसे ही उसके गाल थपथपाए.. नीरू की हँसी छ्छूट गयी और उसने बैठ कर अपना चेहरा छिपा लिया....

उसके हंसते ही सबके चेहरे खिल गये.. ऋतु भी दूसरी तरफ से दरवाजा खोल अंदर आ चुकी थी," तुम ठीक तो हो ना....!"

नीरू की रेशमी लतें रोहन से उसका चेहरा च्छुपाए हुए थी.. उसने शर्मकार ऋतु की तरफ देखा," हां.. ठीक हूँ.. मुझे क्या हुआ है....?"

"तुझे नही पता? तू बेहोश हो गयी थी... रोहन तुझे कंधे पर उठाकर यहाँ तक लाया है.. 4-5 किलोमीटर तो होगा ही..." ऋतु ने कहा....

"हां.. पता है..!" नीरू ने जवाब दिया...

"क्या पता है...?" ऋतु ने फिर पूचछा....

नीरू उसके कान के पास अपने होन्ट लेकर गयी," यही कि ये मुझे इतनी दूर से उठाकर लाया है.. मुझे वहीं होश आ गया था.. हे हे हे" नीरू ने कहा और खिलखिला कर हंस पड़ी....

"हैं? पता था तो बोली क्यूँ नही? हम कितने डरे हुए थे.. तुझे पता है.. और रोहन बेचारा कितनी दूर से तुम्हे गोद में लेकर आया है... ये परेशान नही हुआ होगा क्या?" ऋतु ने राज बनाकर कान में कही गयी बात का खुल्लम खुल्ला ढिंढोरा पीट दिया... नीरू ने शर्मकार फिर से अपना मुँह छिपा लिया.. रोहन से!

"ले बेटा... अपने बड़े सही कहकर गये हैं.. आदमी शादी के बाद गधा बन जाता है.. हा हा हा.. तू तो पहले ही भाभी जी को ढोने लगा..." रवि भला मिला हुआ मौका कैसे छ्चोड़ता....

पर रोहन तो दूसरी ही दुनिया में खोया हुआ था... गाड़ी चलाते हुए वह सोच रहा था.. 'काश! गाड़ी थोड़ी और आगे खड़ी होती'

"तुम बोली क्यूँ नही पहले..? ऋतु ने बनावटी गुस्से से कहा और हँसने लगी...

"मुझे शर्म आ रही थी.. नीन्चे उतारने की कहते हुए..." नीरू ने ये बात भी उसके कान में कही....

"अब बताओ! क्या हुआ वहाँ?" रवि ने पूचछा...

"नही.. वो सब बाद में पूच्चेंगे.... श्रुति का घर आ गया है.. पहले उनके घर चलो..." ऋतु ने कहा.....

"पर इस वक़्त.. रात के 1:30 बजे...?" रवि ने कहा....

"हां हां.. क्या पता हमें कल ही वापस जाना पड़े.. नीरू के पापा आ रहे हैं ना...!" ऋतु ने कहा....

रोहन ने थोड़ी देर सोच कर गाड़ी श्रुति के घर के बाहर ही खड़ी कर दी... सब नीचे उतरे और दरवाजे पर जाकर खड़े हो गये....

रोहन सबसे आगे था.. उसने दरवाजा खटखटाया.. पर कोई जवाब नही मिला....

2 - 4 बार और दरवाजा खटखटने पर अंदर से श्रुति के पिता जी की आवाज़ आई," आता हूँ भाई.. कौन है?"

रोहन के मुँह से आवाज़ निकल ही नही पाई...

"नमस्ते अंकल जी!" जैसे ही छर्ररर की आवाज़ के साथ दरवाजा खुला.. सबने प्रणाम किया...

"कौन?" श्रुति के पिता जी ने ध्यान से देखा तो वह रोहन को पहचान गया," अरे आओ आओ.. बेटा.. आज फिर इतनी रात को...? आओ.. अंदर आ जाओ..."

रोहन को कुच्छ कहते सुनते ही नही बन रहा था.. अब कहे भी तो क्या कहे.. इतनी पुरानी बात को फिर से ताज़ा करके वह श्रुति के पिता जी के ज़ख़्मों पर नमक च्चिड़कना नही चाहता था....

"ये.. बच्चियाँ कौन हैं..?" उन्होने पूचछा और अंदर जाकर कमरे का दरवाजा खटखटा कर बोला," श्रुति बेटी.. ज़रा उठना एक बार !!!!!!!!!!!!!

"श्रुति!" सबके मुँह से अचानक एकसाथ निकला....

"हां.. मेरी बेटी है.. ये..." अंकल जी ने नाम याद करते हुए कहा," रोहन तो जानता है..." अंकल जी ने शायद ध्यान ने दिया कि सबसे पहले आसचर्या से उसी के मुँह से नाम निकला था.....

तभी दरवाजा खुला और बला की हसीन श्रुति अंगड़ाई सी लेते हुए बाहर निकली.. पर 2 लड़कों को सामने खड़ा देख शर्मा गयी और अचानक अपने हाथ नीचे कर लिए.. उनमें से एक को वा अच्च्ची तरह जानती थी......

रोहन और रवि को तो जैसे अपनी आँखों पर विस्वास ही नही हुआ.... ," ययए.. यहाँ... कैसे आई....?"

श्रुति के साथ ही चौंक कर पिता जी ने भी रवि को देखा..," सपना देख रहे हो क्या बेटा... रात को ये अपने घर पर नही तो कहाँ होगी... !" तुम अंदर बैठो.. मैं आता हूँ.. बेटा.. कुच्छ खाना वाना....?"

"जी बापू... अभी बना देती हूँ... " कहकर वो रसोई घर की ओर चल दी... ऋतु और नीरू भी हैरत से कुच्छ जाने को उत्सुक होकर उसके साथ ही चली गयी....

रवि से अंदर बैठे ना रहा गया...," एक मिनिट अंकल जी... मैं अभी आता हूँ..." कहकर वो बाहर निकला और लड़कियों की आवाज़ सुनकर रसोई में ही घुस गया....

अब तक खिलखिला रही श्रुति रवि को देखते ही एकदम चुप हो गयी... ऋतु और नीरू रवि की ओर देखने लगी...

"एक मिनिट... तुम्हे छ्छू कर देख लूँ क्या?" रवि ने मरा सा मुँह बनाकर कह दिया....

श्रुति ने चौंक कर उसकी ओर देखा... वह उसकी बात का मतलब नही समझ पाई...

पर इतनी देर रवि को शांति कहाँ होती... उसने उंगली से श्रुति के हाथ को च्छुआ और आस्चर्य से बोला..," तुम तो.. बतला....?" कहकर वो चुप हो गया...

"बतला? क्या कह रहा है ये?" श्रुति ने नीरू की ओर देख कर धीरे से पूचछा....

"तुम जाओ.. हम बात कर लेंगे...!" ऋतु ने कहा और रवि की ओर घूर कर देखा...

रवि तो उसस्पर बतला से ही फिदा हो गया था...," तुम्हारी शादी हो चुकी है क्या?" उसने ऋतु की बात पर गौर नही किया....

श्रुति हंस पड़ी..,"क्या बोल रहे हो? मुझे कुच्छ नही पता...!"

"नही... मैं भी कुँवारा हूँ.. इसीलिए..." रवि अपनी बात को पूरी कर भी नही पाया था कि ऋतु ने उसको धक्का देकर रसोई से बाहर निकाल दिया....

"ये मुझे हाथ लगाकर क्यूँ देख रहा था..?" श्रुति ने मुस्कुराते हुए पूचछा....

"वो तो हमने भी लगाकर देखा था.. तुमने ध्यान नही दिया होगा..." ऋतु ने कहा," बहुत अजीब कहानी है .. तुम्हे विश्वास नही होगा....!"

"क्या? क्या हो गया?" श्रुति ने पूचछा....

ऋतु को जितनी कहानी पता थी.. उसने श्रुति को सुना डाली... और फिर बोली," ज़रूर वो तुम्हारी कोई हमशकाल होगी....."

ऋतु की आँखों से नितिन के साथ बिताई वो रात याद करके भर आई...," हां.. वो कमीना मुझे ज़बरदस्ती बतला ले जा रहा था, यही सब करवाने के लिए... और मजबूरी थी.. मुझे जाना भी था.. पर खुसकिस्मती से जाने कैसे वो मुझे नही ले गया.... उसने जहाँ मुझे बुलाया था.. वहाँ मैं 1 घंटा इंतजार करके वापस आ गयी.... वो नही आया... मैं तो 3-4 दिन तक डरी डरी कॉलेज जाती रही.. कि कहीं वो हरमज़दा फिर ना आ जाए....!" श्रुति ने अपने आँसू पौच्छे....

"तो.. तो फिर वो कौन थी...?" नीरू और ऋतु के मुँह आस्चर्य से खुले के खुले रह गये......

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"अंकल जी!" सुबह रोहन ने हिचकते हुए बात शुरू की....

"हां.. बेटा.. बोलो?"

"ववो... आप कह रहे थे मुझे... वो.. कि अगर श्रुति के लिए कोई अच्च्छा.. रिश्ता मिले तो बताउ..." रोहन ने रवि के ज़ोर डालने पर बात कह ही डाली....

"हां.. कोई हो तो ज़रूर बताओ बेटा.. अब तो श्रुति भी शादी करने को मान गयी है....

"मैं हूँ!" रवि रोहन के सोच कर टुकूर टुकूर बोलने का इंतजार कर ही नही पाया...

"हूंम्म..." अंकल जी की समझ में नही आया कि अचानक दागे हुए इस गोले का जवाब कैसे दे..," मैं पूच्छ कर बताता हूँ बेटा......" कहा और बाहर चला गया...

अंकल जी के जाते ही रोहन ने खींच कर रवि के कान के नीचे बजा डाला..," तुझे ये भी नही पता की कौनसी बात कब करते हैं.. मेरी भी इन्सल्ट करवा दी.. मैं बात कर रहा था ना....."

"अच्च्छा.. साले.. मतलब निकलते ही अपने आपको प्यार का पीएच.डी. मानने लग गया.. कल तक तो फट रही थी तेरी.... देख लेना.. वो जवाब हां में ही देगी......!" रवि बत्तीसी निकाल कर बोला....

कुच्छ देर में श्रुति के पिता जी वापस आ गये...," बेटा.. हम ग़रीब लोग हैं.. लेने देने को तो कुच्छ खास होगा नही.. सिर्फ़ मेरी बेटी के अलावा...!"

"कैसी बात कर रहे हो पापा.. ( ) .. मेरा तो इसीमें जीवन धन्य हो जाएगा.... दहेज के तो मैं एकदम... बिल्कुल... पूरा खिलाफ हूँ.." रवि चहक कर बोला.....

"ठीक है बेटा.. श्रुति को कोई ऐतराज नही है.. मैं तुम्हारे घर आ जाता हूँ रिश्ता लेकर.... वो मान तो जाएँगे ना..." अंकल जी ने पूचछा...

"आप चिंता मत करो पापा.. उनको तो मैं आपके आने से पहले ही मना कर रखूँगा... कहो तो मैं ही आ जाउ.. उनको लेकर..." रवि भी रवि था....

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"तुम्हे गाड़ी चलानी आती है क्या?" नीरू ने रवि से पूचछा...

"हां.. आपके शहर में ही सीखी है.. अमन भाई से.... क्यूँ?" रवि ने पूचछा...

"तो तुम क्यूँ नही चलते...." नीरू ने उसको कहा...

"ठीक है.. मैं चला लेता हूँ... नो प्राब्लम..." रवि ने रोहन के हाथ से चाबी छ्चीन ली....

"तुम्हे इसका पता नही है.. चलते हुए भी पिछे देखता रहेगा बात करते हुए.. कहीं भी घुसा देगा..." रोहन ने नीरू की तरफ देख कर कहा....

"तू चुपचाप बैठ जा.. भाभी जी ने क्या कहा है.. सुना नही क्या?" रवि ने कहा और खिड़की खोल कर धम्म से ड्राइविंग सीट पर जा बैठा... बेचारा रोहन साथ वाली सीट पर बैठ गया... ऋतु और नीरू के बैठते ही वो श्रुति और अंकल जी को बाइ करके निकल लिए.....

कुच्छ ही दूर गये होंगे.. अचानक रोहन को अपनी शर्ट खींचती हुई महसूस हुई... उसने पिछे देखा.. नीरू उसकी शर्ट को पिछे खींच रही थी....

"हूंम्म..." रोहन ने प्यार से उसकी और देखते हुए पूचछा....

नीरू ने उसको आँखों ही आँखों में कुच्छ इशारा किया..

"सॉरी मैं समझा नही..." रोहन ने जवाब दिया.....

नीरू के होन्ट धीरे से हीले.. पर वो बात भी रोहन के कानों के उपर से गुजर गयी....

"पता नही क्या कह रही हो.... ज़ोर से बोलो ना....!" रोहन ने थोड़ा तेज बोला.....

नीरू अंदर की बात को लीक होते देख गुस्सा हो गयी....," चुपचाप पिछे आ जाओ.. ऋतु बैठ जाएगी आगे...!"

समाप्त

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