सीता --एक गाँव की लड़की--34 end
काफी देर तक यूं ही नंगी मैं पांडे को अपने सीने से चिपकाए पड़ी थी...फिर पांडे कसमसाते हुए हिले और आहिस्ते से उठ गए...मैं उन्हें उठने के लिए अपनी पकड़ ढ़ीली कर दी...
मैं अभी भी पड़ी थी...आँखें खोली तो मैं सीधी दूसरी तरफ की बेंच पर नजर दौड़ाई जहाँ अभी कुछ देर पहले कोई लेडिज चुद रही थी...वहाँ देखी तो अचानक से झटके खा गई...
वहाँ पर अब एक नहीं बल्कि तीन मर्द थे और तीनों उस लेडिज की एक साथ हर छेदों में अपना लंड डाल पेले जा रहा था और वो भी मस्ती में किसी कुतिया की तरह कूं-कूं करती चुद रही थी...
मैं झट से उठ के बैठ गई और इस नजारे को फटी आँखों से निहारने लगी...एक चूत तीन लंड...शुक्र है कि ऊपर वाले ने और जगह छेद बना दिए वरना यहाँ हर औरत की चूत चूत नहीं रह जाती, गुफा बन जाती...
मेरी कैप्री अभी भी घुटने तक थी और टीशर्ट गले तक...बूर नीचे खुली हवा ले रही थी और चुची ऊपर सुबह की ताजी हवा से खुद को तरोताजा कर रही थी..मैंने बगल में खड़े पांडे जी की तरफ देखी तो वे अभी भी नंगे मुझे निहारे जा रहे थे...
मेरी नजर उनसे मिलते ही मुस्कुरा दी और फिर टीशर्ट नीचे करने के ख्याल से हाथ रखी ही थी टीशर्ट पर कि तभी किसी ने पीछे से मेरे हाथ पकड़ लिए...
मैं चौंक उठी और तेजी से पीछे की तरफ पलटी...ओफ्फ्फ्फ...पीछे मुड़ते ही मेरी नाक एक तगड़े लंड से जा टकराई...मैं आँखें बंद कर सिसकारी भर ली और फिर नजर ऊपर की तो....
यहाँ तो एक नहीं चार मर्द बिल्कुल नंगे खड़े थे..मैं हौरान रह गई...तभी उनमें से एक बोला,"क्यों पांडे जी, आपने इन्हें बताया नहीं कि यहाँ पहली बार आने पर स्वागत समारोह भी आयोजित की जाती है..." और वो सब एक साथ हल्के से मुस्कुरा पड़े...
पांडे: " अरे यार, इन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होगी...आप लोग बस अपने काम में लग जाओ...काफी गरम माल है..." कहते हुए पांडे मेरे निकट आए और मेरी टीशर्ट को पकड़ ऊपर गर्दन से हो बाहर कर दिया....
मैं अब बस यही सोच रही थी कि क्या करेंगे सब...कौन सा काम करेंगे मेरे साथ ये...कहीं सब मिल के चुदाई तो नहीं करेंगे...ओहहहहह...मैं ग्रुप चुदाई की अभी सोच ही रही थी और मेरी मनोकामना इतनी जल्द पूरी होती नजर आने लगी...
मैं अंदर ही अंदर काफी रोमांचित सी हो गई...तभी किसी ने मेरी कैप्री को घुटने से अलग करने लगा..मैं नीचे झुके व्यक्ति की तरफ देखी तो ये मर्द नहीं कोई लेडिज थी...मैं चुपचाप अपने पैर बारी-2 से उठा दी और वो कैप्री बाहर कर खड़ी हुई...
उनसे नजर मिलते ही मैं शॉक हो गई...ये तो कोमल आंटी की सहेली थी जो उनके साथ पार्लर में काम करती थी...मैं उन्हें हैरानी से देखने लगी...वो मुझे ऐसे देख मुस्कुराती हुई बोली,"वेलकम सीता, हैरानी की कोई बात नहीं है यहाँ...मैं यहीं पास में रहती हूँ और यहाँ रोज आती हूँ...और ये बात तो जानती ही हो कि यहाँ की बात सिर्फ यहाँ तक ही रहती है..."
मैं उन्हें अब भी लगातार घूरे जा रही थी...फिर वो मेरी कैप्री के साथ पांडे से ले चुकी टीशर्ट दिखाते हुए बोली,"जाते वक्त पहन लेना..." और फिर वो दूर एक कोने में मेरे कपड़े फेंक दिए...मैं अपने ड्रेस हवा में लहराती दूर जाती देखती रही...
वैसे भी यहाँ पर सिर्फ मैं ही नंगी नहीं थी जो कुछ बोलती...अब जो होना है वो तो होगी ही सो बस मैं सोच ली कि बेवजह क्यों परेशान होऊं...मजे करती हूँ...यही सोच मैं उनकी तरफ देख हौले से मुस्कुरा पड़ी...
तभी सब मर्द आगे आए और मुझे चारों तरफ से घेर लिए और सब अपने-2 लंड हिलाने लगे...मैं उन सबको देखने लगी...
"बैठ जाओ सीता.."कभी कोमल की दोस्त बोली जिसे सुन मैं आहिस्ते से बैठ गई...अब मेरी आँखों के चारों तरफ सिर्फ लंड ही लंड थे...
आउच्च्च्च्च...पीछे वाले मेरे बाल पकड़ के पीछे की तरफ जोर से खींच डाले...मैं तड़प कर पीछे की तरफ सिर कर ली और दर्द से आहहह भरने लगी...
तभी सामने वाले ने मेरे गालों को जोर से दबाते हुए मेरे मुँह को खोल रखा और नीचे झुकते हुए ढ़ेर सारा थूक मेरे मुँह में भर दिया...मैं घिन्न सी होती आँखें बंद कर ली...
फिर बारी-2 से सबने थूकते हुए मेरे मुँह को ही भर दिया....मैं सीधी हो उन्हे बाहर करना चाहती थी पर उन लोगों ने होने नहीं दिया...कुछ देर तक यूँ ही रहने के बाद मैं विवश हो सारा थूक गटक ली...
थूक गटकते ही उसने मुझे छोड़ा और अगले ही पल लंड ठूस दिया...लंड की आदी तो हो ही चुकी थी..सो लंड पड़ते ही मैं चूसने लग गई...कुछ ही देर तक चूसी कि बगल वाले ने जबरदस्ती मुझे उस लंड को छुड़ा अपना लंड ठूस दिया....
फिर तीसरी, चौथी.....इसी तरह मैं सब एक-2 कर लंड डालने लगे...मैं अब समझ गई कि सभी को एक साथ चूसना है....
बस मैं अपने आगे दो लंड को नजदीक की और बगल में दो लंड को हाथों से हिलाती हुई चूसने लगी...1-2-3-4 सब की...दो बिना पकड़े ही चूसती तो दो पकड़ के चूसती...
कुछ ही पलो में मैं पूरी मग्न हो गई लंड चुसाई में...एक साथ चार-चार लंड चूस के खुद को जन्नत के द्वार पर खड़ी महसूस कर रही थी...काफी गरम हो गई थी तो बीच बीच मैं एक हाथ से अपनी चूत भी रगड़ लेती...
पर जिसे लंड की जरूरत हो वो भला हाथ की सुनती थोड़ी...जबकि वे चारों मस्ती में झूम रहे थे...काफी देर तक लंड से खेली...जब बर्दाश्त नहीं हुई तो लंड को छोड़ ऊपर की तरफ मुँह कर उन सभी से आँखों से ही कह दी कि ,"प्लीज, अब तो चोद दो..."
तभी उन सब के बीच में कोमल आंटी की दोस्त आई और बोली,"शाली, बहुत गरमी हो रही है चूत में...तो ये डाल ले क्योंकि ये सब आज तुझे चोदेने वाले नहीं है...बस आज तो वेलकम करेंगे सब...समझी.." और फिर उन्होंने लकड़ी की मोटी और चिकनी बिल्कुल लंड की माफिक नीच झुकते हुए एक ही झटके में मेरी बुर में उतार दिए...
मैं चिहुंक कर चिल्ला उठी पर अगले ही पल एक लंड ने मेरी चीख को दबा दी...
कुछ देर तक बूर में लकड़ी का टुकड़ा डाले लंड चूसती रही कुतिया की तरह...बीच बीच में मुझे क्लिक की आवाज आ रही थी जैसे कोई मेरी पिक्स ले रही हो पर मैं अब इन सब की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही थी...
जब ओखल में सर डाल ही दी तो मूसल से डर कैसी...तभी एक ने अपने लंड को जोर में मेरे मुँह में दबाते हुए चीखने लगा और फिर उसके गरम पानी मेरे गले में उतरने लगी...मैं भी पानी की गरमी पाते ही जीभ और दांत से उसके लंड को कुरेद कर और पानी निकालने लगी...
जैसे ही वो शांत हुआ दूसरे ने भी पानी की बौछार कर दी...वो बाहर ही था जिसे मैं तेजी से मुरझाए लंड को बाहर कर उस लंड के सामने मुँह खोल दी और प्रसाद ग्रहण करने लगी...
वो अभी पूरा झड़ा भी नहीं था कि तीसरी नल भी खुल गई...और फिर चौथी भी...मैं सबके अमृत को अंदर करने की भरकस प्रयास की पर नाकामयाब रही...फलस्वरूप जितनी वीर्य लेनी की क्षमता थी वो तो ले ही पर बाकी वीर्य ने मेरे चांदरूपी चेहरे को पूरी तरह ढ़क दी...
गोरी चमडी पर बर्फरूपी लंडरस बिछ गई थी और मैं बिल्कुल किसी कुतिया की तरह बूर से पानी बहा रही थी...तभी एक आवाज मेरे कानों में गूँजी जिसे सुन मैं स्तब्ध रह गई...
"जरा रूकिए तो एक मिनट...सीता की ऐसी पिक्स मेरे लिए काफी फायदेमंद रहेगी.." मैं नजरें ऊठा कर देखी तो सामने कोमल आंटी कैमरा लिए मुस्काते हुअ लगातार पिक्स खींची जा रही थी...
मेरे चेहरे की काफी क्लोज पिक्स ली..फिर बोली,"डोंट वरी सीता, मैं यहाँ की लीडर हूँ...और ये पिक्स मैं अपने एलबम के लिए ली हूँ...जो एलबम तुम देखी थी उसमें सिर्फ फेस की तस्वीरें थी पर ये पिक्स जिस एलबम में डालूँगी उसमें सबकी चुदाई के ही पिक्स होते हैं...अब तो आएगी ही तो देख लेना...और बधाई भी नई जॉब के लिए..."
मैं बस उन्हें देखती रही...कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी...बस झटके पे झटके खा रही थी कि कौन कहाँ होता है,पता नहीं...खैर अब तो कोमल आंटी की सेक्स वर्कर बनने के सिवा कोई चारा नहीं थी....
इसमें मेरी विवशता या मजबूरी नहीं थी...ये तो मैं भी चाहती थी कि रोज मैं चुदूँ पर कोई कभी खुल के सामने नहीं आ रही थी...पर आज पांडे जी की वजह से सब दिक्कतें दूर हो गई...
तभी मेरी चुची पर एक जोर की पैरों से किक पड़ी और मैं धम्म से पीछे की तरफ जमीन पर गिर पड़ी...थोड़ी सर में चोट भी लग गई जिससे मैं आहह कर कराह पड़ी...पर ये चोट ऐसी हालत में मायने नहीं रखती थी...
कोमल आंटी एक तरफ हो नेक्सट पिक्स लेने लगी...तभी चारों ने एक साथ अपने मुरझाए लंड से दूसरी टोंटी खोल दी...पेशाब की सीधी धार मेरे चेहरे को भिंगोने लगी...
मैं आँखें बंद करती सर को दूसरी तरफ मोड़ ली कि तभी कोमल आंटी की दोस्त ने आगे बढ़ अपने पैरों से मेरे चेहरे को पुनः सीधी कर दी...मैं समझ गई कि ये सब यही चाहती है तो दूसरी बार हटाने की कोशिश नहीं की...
फिर पेशाब की धार मेरे चेहरे से हट नीचे की तरफ बढ़ने लगी...और कुछ ही पल में मैं पूरी नहा गई थी...उनके पेशाब की धार जब खत्म हुई तो सबने एक साथ मिल के ताली बजा दी...
मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी...सच पुरूषों को सेक्स में जितनी गंदी करने दो वो उतने ही खुश होते हैं...कुछ देर तक पड़ी रहने के मैं आँख खोली और उठ कर बैठ गई....
सब वहाँ पर खड़े हो मेरी तरफ ही घूरे जा रहे थे और मुस्कुरा रहे थे...मैं उन सभी को को देख हल्की मुस्कान दे दी...मतलब मैं खुश हूँ,उनको बता दी...
मेरे शरीर से पेशाब और वीर्य की बू आ रही थी, पर अब ये हमें तनिक भी बुरी नहीं लग रही थी...एक अलग ही कामुकता पैदा कर रही थी...तभी मेरी नजरें मेरी बूर पर पड़ी जहाँ अभी भी लकड़ी घुसी थी...
मैं आहिस्ते से हाथ बढ़ा लकड़ी को पकड़ी और नचाती हुई बाहर कर दी...फिर मैं लकड़ी फेंकने के लिए हाथ ऊपर की ही कि फिर मैं रूक गई और कोमल आंटी की तरफ कामुकता से देखती हुई उस लकड़ी पर लगी मेरी बुर के रस को चाटने लगी...
जिसे देख सभी वहां पर हँस पड़े...मैं भी चेहरे पर हंसी लाते हुए नॉनस्टॉप चाटती रही...जब पूरी तरह चाट ली तो फिर साइड में रख दी...तभी कोमल आंटी ने अपने कैमरे को पांडे की तरफ बढ़ा दी...
और फिर कंधे में टंगी बैग से कुथ पेपर निकाले और बेंच पर रखती हुई बोली,"लो सीता, पढ़ के साइन कर दो..आज से तुम मेरे लिए काम करोगी और साथ ही यहाँ की मेंबरशिप भी...यहाँ आने वाले सभी मर्द से तुम अब चुद सकती हो..."
मैं अब क्या सोचती? बस मुस्कुरा पड़ी और बेंच की तरफ खिसक कर आई और कोमल आंटी से पेन ली...फिर उनकी तरफ हंसती हुई साइन करने लगी...
"अरे, पढ़ तो लो एक बार..."कोमल आंटी ने मुझे एक बारगी से बिना पढ़े साइन करते देख बोल पड़ी...
"अब इसे पढ़ के क्या करनी...जब करनी ही है तो करनी है..."मैं साइन करती हुई बोली..
"हम्म्म...ओके पर ये मत सोचना कि ब्लैकमेल कर रही हूँ...पर हाँ एक बात याद रखना और इसमें लिखी भी है कि जब तक तुम इस शहर में हो और जब तक मैं चाहूँ तुम कभी मना नहीं करोगी आने से...किसी वजह से बाहर चली गई या शहर छोड़ दी तो उस स्थिति में तुम्हें वजह बतानी होगी..."कोमल आंटी समझाते हुए बोली..
"मतलब अगर पति का ट्रांसफर हो गया तो तुम पर कोई प्रेशर नहीं...बस बिना वजह तुम मना नहीं कर पाओगी और हाँ सप्ताह में कम से कम 2 दिन तो आना ही होगा...उससे आगे तुम्हारी मर्जी और तुम्हारा कमीशन हैंड टू हैंड...ठीक है..."कोमल आंटी शार्ट कट में पूरी कंडीशन बतला दी...
मैं उनकी बात सुन हामी भर दी "मुझे मंजूर है..." कहती हुई पेपर उनकी तरफ बढ़ा दी...वो हंसती हुई पेपर बैग में डाल ली...
समाप्त
सीता --गाँव की लड़की शहर में compleet
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