रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -61
गतान्क से आगे...
मैने दर्द से अपनी आँखें बंद कर ली थी और मुँह खुल गया था. मेरे मुँह से चीख निकल रही थी. दोनो अपनी कामयाबी पर एक दूसरे को देखते हुए मुस्कुरा रहे थे.
“ इतनी ठुकाई के बाद भी काफ़ी टाइट है. मज़ा आ गया. लग रहा है किसी चक्की के पाटों के बीच मेरा लंड पीसा जा रहा है.” सत्या जी ने कहा.
“ बस अब कुच्छ देर मे तुझे भी आराम मिलने लगेगा.” कहकर राजेश जी ने मेरे होंठो को एक बार चूम लिया. मैने निढाल होकर अपने चेहरे को राजेश जी के चेहरे पर रख दिया और आँखे बंद रख कर उनकी चुदाई का मज़ा लेने की कोशिश करने लगी.
सत्या जी मेरे गुदा मे ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे मगर राजेश जी उतने खुश किस्मत नही रहे. हम दोनो के बोझ तले दबे वो अपने लंड को ज़ोर के धक्के नही दे पा रहे थे. वो तो हमारे साथ साथ ही उपर नीचे होने की कोशिश कर रहे थे. और तो और सत्या जी के धक्कों का पूरा मज़ा लेने के लिए अपने नितंब उपर की ओर उठाए तो राजेश जी का लंड ऑलमोस्ट पूरा ही बाहर आ गया. उसका सिर्फ़ सामने का हिस्सा ही मेरी योनि की फांको के बीच जकड़ा हुया था.
वो अपनी कमर को उठाने की पूरी कोशिश कर रहा था मगर हम दोनो के नीचे दबे होने की वजह से उनको सफलता नही मिल पा रही थी. कुच्छ देर तक कई तरह से कोशिश करने के बाद वो तक कर शांत हो गये. शायद अब उनको सत्या जी के झड़ने का इंतेज़ार था. अब वो इंतेज़ार कर रहे थे कि सत्या जी झाड़ कर मेरे उपर से हटें तो वो मुझे जी भर कर चोद सकें.
राजेश जी के धक्कों मे तेज़ी आती जा रही थी. मैं तो पता नही कितनी बार झड़ी. ऐसा लग रहा था मानो मेरी योनि से वीर्य का कोई बाँध टूट गया. सत्या जी चोद नही पाने की वजह से अपनी उत्तेजना मुझे चूम कर और मेरी चूचियो को मसल कर शांत करने की कोशिश कर रहे थे.
पंद्रह मिनिट की आस पास मेरे गुदा को घिस घिस कार लाल करने के बाद उन्हों ने एक ज़ोर के धक्के के साथ अपने लिंग को पूरा अंदर कर दिया और अपने लंड उसी अवस्था मे कई मिनिट तक दबाए रखे. उनके आख़िरी धक्के की ताक़त से मेरा मुँह खुल गया और मुँह से “ आआहह” की एक दबी दबी कराह निकली.
मैने उनके लिंग से गर्म गरम रस निकलता हुया महसूस किया. उनका पूरा नग्न बदन पसीने से लथपथ था. उनके जिस्म से पसीने की बूंदे मेरे बदन पर टपक रही थी.
वो अपने लंड को मेरी गांद मे डाले हुए “सस्सस्स….आआअहह…. उम्म्म्म…..ले.. ली…. मेरिइई राआनद लीई… और ले…….टेरिइई गाआंद सीए तेरी पीट तक भाअर दूंगाआ..” जैसी बे सिर पैर की बातें बॅड बड़ा रहे थे.
“ हाआन्न…..हाआअन्न…माऐइ प्याअसीईई हूऊं…..मीरीईई प्याआस बुझाअ डूऊ….आआआहह….. माआर डाालूओ मुझीईए….. उफफफफ्फ़ ईईए गाअरमीईिइ आब स्ाआहान नहिी होटिईईईईईई” मई भी उनके साथ बड़बड़ाती जा रही थी.
कुच्छ देर बाद वो मेरे उपर से हट गया और पास लेते लेते लंबी लंबी साँसे ले रहा था. उसके हटने के बाद राजेश जी ने मुझे पल भर भी आराम नही करने दिया उन्हों ने किसी गुड़िया की तरह मुझे उठाया और अपनी दोनो हथेलियों को मेरे दोनो बगलों के भीतर लगा कर मेरे पूरे बदन को अपने लिंग पर ऊपर नीचे करने लगे. मैं तो उनकी ताक़त की कायल हो गयी. मैने अपने टाँगों को उसकी कमर के दोनो ओर रख कर उसके लंड पर अपनी चूत को उपर नीचे करने लगी. मैने अपने चूत की मुस्सलेस से उसके लंड को जाकड़ रखा था जिससे उसके लंड को उल्टियाँ करने मे समय नही लगे.
और जैसा सोचा था वैसा ही हुया. मुश्किल से पाँच मिनिट टिक पाए होंगे. वो अपने जबड़ों को भींच कर पूरी कोशिश कर रहे थे और कुच्छ वक़्त टिक जाएँ. मगर मेरी कोशिशों ने उन्हे बहुत जल्दी अपने आगे नतमस्तक कर दिया. उन्हों ने मुझे खींच कर अपने सीने पर दबा लिया और मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी. मैने भी उनकी जीभ से अपनी जीभ सहलाने लगी. उनके जिस्म से वीर्य का एक रेला बहता हुया कॉंडम मे इकट्ठा होने लगा.
वो मुझे अपने सीने पर लिटाए ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रहे थे. जब उनका लंड सिकुड कर छ्होटा हो गया तब जा कर उनकी बाँहों का बंधन शिथिल हुया. मैं लुढ़क कर नीचे उतर गयी. कुच्छ देर तक अपनी सांसो को व्यवस्थित करने के बाद मैं उठी और उनके सिकुदे हुए लंड से कॉंडम को बिना एक बूँद भी अमृत व्यर्थ किए उतारा और उसमे इकट्ठा वीर्य को अपने लोटे मे भर लिया. लोटा उनके वीर्य से पूरा भर गया था. मैं उन दोनो के होंठों को चूम कर उठी और किसी तरह अपनी सांसो को काबू मे किया. फिर अपने कपड़े को पहन कर बाहर आ गयी.
बाहर रत्ना के साथ दो और युवतियाँ मेरे इंतेज़ार मे ही खड़ी थी. तीनो ने मुझे लपक कर सहारा दिया और मुझे सम्हालते हुए एक कमरे मे ले गये. उन मे से एक युवती ने मेरे हाथों से वो लोटा ले लिया था. तीनो मुझे एक आरामदेयः बिस्तर पर बिठा कर बाहर निकल गये.
अभी सूरज डूबने मे कुच्छ वक़्त बाकी था. उनकी आपसी बातों के हिसाब से आगे के कार्य क्रम सूरज ढलने के बाद होने थे. मैं आधे घंटे के करीब वहाँ लेटी आराम करती रही. आधे घंटे बाद माइक मे कुच्छ अनाउन्स्मेंट हुई.
रत्ना और वही दोनो युवतियाँ आकर मुझे उठा कर अपने साथ बाहर ले आइ. बाहर एक हॉल के बीचों बीच फर्श पर एक काफ़ी बड़ी तश्तरी जैसा कुच्छ रखा हुआ था. तश्तरी का दिया कम से कम पाँच फीट होगा. उस तश्तरी के बीच एक काले पत्थर की एक फुट के करीब उँची देवता की प्रतिमा रखी हुई थी. उस प्रतिमा की घेराई करीब साढ़े तीन चार इंच होगी.
वो प्रतिमा बड़ी विचित्र थी उसमे उनका चेहरा सामने की ओर ना होकर आसमान की ओर था. प्रतिमा के मुँह से आधे इंच लंबी जीभ उपर की ओर निकली थी. दोनो मुझे लेकर उस तश्तरी के पास पहुँची.
“ चलो इस पर चढ़ जाओ. “ रत्ना ने कहा तो मैं उस तश्तरी के उपर चढ़ गयी. मैने देखा कमरे मे ढेर सारे मर्द शिष्य एवं अन्य लोग खड़े थे. सबके हाथों मे फूलों की एक एक टोकरी थी. जिसमे गुलाब के सुर्ख लाल फूलों की सिर्फ़ पंखुड़ीयाँ थी.
मैं तश्तरी पर चढ़ कर रुकी तो रत्ना ने मेरे बदन से कपड़ा हटा कर मुझे बिल्कुल नग्न अवस्था मे ला दिया. मैं पूरी नग्न अवस्था मे ढेर सारे मर्दों के बीच खड़ी थी.
“ अब इनके उपर बैठ जाओ.” रत्ना के साथ वाली एक युवती ने कहा. मैं उनके कहने का आशय नही समझ पाई और मैने उसकी ओर देखा.
“ इस तरह बैठो कि ये देवता की मूर्ति तुम्हारी योनि मे प्रवश् कर जाए.” मैं उसके कहे अनुसार करने मे अब भी झिझक रही थी.
रत्ना ने मेरी झिझक समझ कर मुझे अपनी टाँगें चौड़ी करने का इशारा किया. मैने वैसा ही किया और धीरे धीरे अपनी टाँगे मोड़ कर अपनी कमर को नीचे करने लगी. कमर को काफ़ी नीचे करने पर अचानक अपनी जांघों के बीच ठंडे पत्थर की चुअन महसूस की. रत्ना ने मुझे उसी अवस्था मे रुकने का इशारा किया. मैं उसी अवस्था मे रुक गयी.
एक युवती नीचे बैठ कर मेरी योनि की फांकों को अपनी उंगलियों से फैलाया. तभी दूसरी युवती ने देवता की मूर्ति को मेरी खुली हुई योनि के नीचे सेट किया. रत्ना ने अब मुझे बैठने का इशारा किया. मैने अपनी कमर को नीचे की ओर दबाया तो मेरी योनि को चीरता हुए वो पत्थर कि शीला मेरी योनि मे घुसने लगी. उसका सिरा इतना मोटा था कि मेरी योनि पूरी तरह फैल गयी थी मगर अब भी वो अंदर नही जा पा रही थी.
“ आअहह……काफ़ी मोटाआ है……ये अंदर नही जा पाएगा.” मैने कराहते हुए कहा.
“ सब चला जाएगा. नयी नवेली दुल्हनो की चूत मे घुस जाता है तो फिर तेरी चूत मे क्यों नही जा पाएगा.” रत्ना ने कहा.
“ नही……मैं इसे नही ले पाउन्गी” मैने अपने निचले होंठ को अपने दाँतों के बीच भींच कर वापस ज़ोर लगाया मगर फिर भी मेरी योनि ने उस पत्थर की शीला को अंदर प्रवेश करने का रास्ता नही दिया. हां दर्द से ज़रूर मेरा जबड़ा खुल गया और दबी दबी चीख निकल गयी. मैने आँखें बंद कर ली.
“ थोडा धीरज रखो.” रत्ना की आवाज़ सुनाई दी.
“ थोड़ा ताक़त और लगाओ. एक बार अंदर जाते ही सारा दर्द ख़त्म हो जायगा. बस कुच्छ ही पल की परेशानी है.” किसी महिला की आवाज़ कानो मे पड़ी. मैने अपनी आँखें खोली तो पाया रत्ना मेरे सामने घुटनो के बल झुक कर मेरी योनि के मुँह को अपनी एक हाथ की उंगलियों से चौड़ा कर रही है और दूसरे हाथ से उस मूर्ति के सिरे को मेरी योनि की फांकों के बीच सेट कर रही है. उसने अपनी दो उंगलियाँ अंदर डाल कर उन्हे मेरे योनि रस से सान कर उसे मूर्ति के उपर लगाया.
मैने भी हिम्मत नही हारी. पूरी हिम्मत को वापस जुटा कर मैने अपनी कमर को नीचे उस मूर्ति पर दबाया. पहले तो दो पल को थोड़ा दर्द हुआ और फिर “प्लुक” जैसी आवाज़ के साथ मूर्ति का मोटा सिरा मेरी योनि को पूरी तरह फैलाता हुया अंदर घुस गया. दिन भर की इतनी चुदाई के बाद भी मूर्ति के उस विशाल के सिर को अंदर लेने मे मेरे पसीने छ्छूट गये. मैं उसी अवस्था मे अपनी कमर को रोक कर लंबी लंबी साँसे लेने लगी. रत्ना मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी.
दो पल उसी तरह रुक कर मैने वापस एक लंबी साँस ली और अपनी कमर को नीचे किया. धीरे धीरे वो मूर्ति मेरी योनि की दीवारों को चीरती हुई अंदर प्रवेश होती गयी. मैं धाम से ज़मीन पर बैठ गयी और वो मूर्ति जड़ तक मेरी योनि मे घुस गयी. मैने अपनी उंगलियों को नीचे ले जा कर टटोल ; कर देखा कि मूर्ति के बेस के अलावा पूरी मूर्ति अब मेरी योनि मे थी. मैने अपने चारों ओर खड़े लोगों को देखा. सबके होंठों पर मुस्कुराहट थी.
मैं कुच्छ देर उसी तरह बैठी रही तभी अचानक. उस मूर्ति मे सरसराहट होने लगी. वो मूर्ति एक तरह से वाइब्रटर जैसी थी जिसका तार फर्श मे कहीं छिपा था. किसी ने उसका स्विच ऑन कर दिया था. उस मूर्ति मे कंपकंपी बढ़ने लगी और उसकी तरंगे मेरे पूरे वजूद को हिला कर रख दे रही थी.
क्रमशः............
रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -62
गतान्क से आगे...
मेरे बदन मे उत्तेजना भरने लगी. मैं दबी दबी सिसकारियाँ लेने लगी. रत्ना ने मेरे हाथों को पीछे कर एक पतली डोर से बाँध दिया. फिर हर आदमी एक एक टोकरी ले कर आया. सारी टोकरियाँ लाल गुलाब की पंखुड़ियों से भरी हुई थी. एक एक टोकरी मेरे उपर खाली करने लगे धीरे धीरे मेरा पूरा बदन लाल गुलाब की पंखुड़ियों मे धँस गया. इतना फूल मेरे उपर डाला गया कि मेरे चेहरे को छ्चोड़ कर पूरा जिस्म फूलों से ढक गया था. अब वहाँ एक लाल गुलाब की पंखुड़ियों के ढेर के उपर मेरा चेहरा ही नज़र आ रहा था.
वो मूर्ति मेरे जिस्म के अंदर उथल पुथल मचा रही थी. मैं दो बार स्खलित भी हो चुकी थी. मुझे इसी अवस्था मे रख कर सारे मर्द और युवतियाँ मुझे घेर कर खड़े हो गये. मैं बार बार अपने सूखे होंठों पर अपनी जीभ फिरा रही थी.
तभी स्वामी त्रिलोका नंद जी कमरे मे पधारे सारे शिष्य सिर झुका कर खड़े हो गये. वो मुस्कुराते हुए आकर मेरे सामने खड़े हो गये.
एक युवती आगे बढ़ कर उनके हाथ मे एक लोटा पकड़ा दी. ये लोटा मेरे वाले लोटे से अलग था. स्वामी त्रिलोकनंद ने अपने दोनो हाथों से लोटे को थाम कर उँचा किया.
“ सबसे पहले तेरा दुग्ध स्नान होगा. ये ताज़ा दूध हमारे आश्रम की ही एक महिला के स्तनो का दूध है. मानव दूध सर्वोत्तम होता है. इससे तुम्हारे जिस्म पर चढ़े सारे कीटाणुओं का नाश होकर तुम्हारी त्वचा निर्मल और सूद्ढ़ हो जाएगी.
ये कह कर उन्हों ने उस लोटे का दूध एक पतली धार के रूप मे मेरे सिर पर उधलने लगे. दूध सफेद धाराओं के रूप मे बहती हुई नीचे जाने लगी. मेरा जिस्म तो पहले से ही उत्तेजित था उस वाइब्रटर के कंपन की वजह से उपर से इस तरह का रोमॅंटिक स्नान मुझे और उत्तेजित कर रहा था. सारा दूध ख़तम हो जाने पर स्वामी जी ने उस खाली लोटे को वापस उसी युवती को दे दिया.
उसके बाद एक दूसरी युवती नेआगे बढ़ कर उनके हाथ मे एक दूसरा लोटा दिया. स्वामी जी ने वापस उस लोटे को उपर कर के कहा,
“ अब तुम्हारा स्नान विलुप्त और बहुत ही दुर्लाब जड़ी बूटियों के रस से किया जाएगा. इस स्नान से तुम्हारे जिस्म मे एक अद्भुत कांती आ जाएगी. तुम्हारे जिस्म के एक एक रोएँ मे कामग्नी भर जाएगी. तुम्हारे जिस्म मे काम की भूख कई गुना बढ़ जाएगी. तुम्हारे जिस्म मे एक अबूझ प्यास उत्पन्न होगी. तुम रति सच के लिए पागल हो जाओगी.” कहकर उन्हों ने उस मे भरा तरल प्रदार्थ मेरे सिर पर धीरे धीरे उधेलना शुरू किया.
वहाँ मौजूद सारी युवतियाँ आगे बढ़ कर फूलों के ढेर के भीतर अपने हाथ डाल कर उस तरल औस्धी को मेरे बदन पर लगाने लगी. कुच्छ देर बाद वो लोटा भी ख़तम हो गया.
एक युवती तभी वही कलश लाकर उनके हाथों मे थमाया. स्वामी जी ने उस कलश को अपने हाथों मे थामा और उसे पहले अपने सिर से च्छुअया.
“ यही अमृत है. जीवन अमृत….इसकी एक बूँद से एक नया जीवन शुरू होता है. इस अमृत के बिना जीवन एक रेगिस्तान की तरह हो जाती है. इस अमृत के बिना औरत बांझ और मर्द नमार्द कहलाता है और उसके लिए विषपान के अलावा कोई चारा नही बचता है. इसलिए ही ये अमृत कहलाता है. देवी आज तुम्हारे जिस्म के अंदर अमृत भरने से पहले तुम्हारे जिस्म को अमृत स्नान भी करवाना पड़ेगा. तुम्हारे जिस्म को भीतर और बाहर से अमृत का लेप लगाना पड़ेगा.” उसने कहा और उस कलश को मेरे होंठों से च्छुआ कर कहा,” लो इसमे से एक घूँट ले लो जिससे ये अमृत तुम्हारे जिस्म के अंदर प्रवेश कर जाए और तुम्हारी धमनियों मे खून के साथ एक एक कोशिका तक पहुँच जाए.”
मैने अपने होंठ खोल कर उस कलश को अपने होंठों के बीच दबाया. मेरे नथुनो मे वीर्य की महक भरती चली गयी. मैने उस कलश से एक घूँट लिया. फिर स्वामी जी ने उस कलश को मेरे होंठों पर से हटा लिया.
“ अब तुम्हारा अमृत स्नान होगा. जिससे तुम्हारा जिस्म पवित्र हो जाए.” कह कर उन्हों ने उस कलश को मेरे सिर के उपर कर एक पतली धार के रूप मे उसमे भरा वीर्य मेरे सिर पर उधलने लगे. गाढ़ा गाढ़ा वीर्य मेरे बालों से टपकता हुया मेरे नग्न बदन को चूमता हुया नीचे की ओर बह रहा था. मैने अपनी आँखें बंद कर रखी थी लेकिन मेरी पलकें वीर्य से भीग चुकी थी. मेरी नाक मेरे गाल सब वीर्य से सन चुके थे.
फॉरन वाहा मौजूद युवतिओ ने वीर्य को मेरे पूरे बदन पर मसलना चालू कर दिया था. मेरे एक के अंग को उन सबने वीर्य से सान दिया था. आस पास मौजूद हर व्यक्ति बहुत ही धीमी आवाज़ मे कुच्छ बुदबुदा रहा था.
कुच्छ देर तक यूँ ही बैठे रहने के बाद स्वामी जी ने मेरे नग्न बदन को धन्पे गुलाब की पंखुड़ियों को हटाना शुरू कर दिया. जब मेरा पूरा बदन फूलों से बाहर आ गया तो स्वामी जी मेरे सामने आ खड़े हुए. उन्हों झुक कर मेरे गीले होंठों को एक बार चूमा.
उन्हों ने अपनी बाँहें मेरे बगलों मे पिरो कर मुझे उठाया. पहले मुझे भी उठने मे कुच्छ ज़ोर लगाना पड़ा और वो मूर्ति “प्लॉप” की एक आवाज़ के साथ मेरी योनि से निकल गयी. मुझे ऐसा लगा मानो मेरी योनि के रास्ते मेरे जिस्म से सब कुछ बाहर निकल गया हो. और मेरा जिस्म खाली हो गया हो. उस मूर्ति के बाहर निकलते ही ऐसा लगा मानो कोई बाँध टूट गया हो और वीर्य की एक धार तेज़ी से निकल कर मेरी टाँगों से बहती हुई घुटनो के नीचे पहुँच गयी. धीरे धीरे ढेर सारा वीर्य फर्श पर इकट्ठा होने लगा.
फिर उन्हों ने जो किया उसे देख कर मैं उनकी ताक़त का लोहा मान गयी. उन्हों ने एक झटके मे मुझे अपनी बाँहों मे उठा लिया. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार डाल दिया और उनके जिस्म से लिपट गयी. वो मुझे अपनी बाँहों मे उठाए उस कमरे से बाहर आ गये. इतनी उम्र मे भी वो मुझे उठा कर चलते हुए मुझे आश्रम के बीच बने उसी कुंड पर लेकर आए जहाँ से आज सुबह मैने शुरुआत की थी. मुझे कमरे से वहाँ लाते हुए वो एक बार भी नही लड़खड़ाए. आच्छे अच्छे मर्द मे इतनी ताक़त नही होती.
कुंड भी अब लाल गुलाब की पंखुड़ियों से अटा पड़ा था. उन्हों ने मुझे उस कुंड मे उतार दिया. मैने पानी मे उतर कर एक डुबकी लगाई. पानी मे इत्र घुला हुआ था पूरा बदन रोमांचित था. जीवन मे इतना मज़ा कभी नही आया था. मैं पानी के उपर आइ तो मैने देखा की स्वामी जी ने अपने कमर मे लिपटे वस्त्रा को उतार दिया और वो भी बिल्कुल नग्न हो चुके थे. सारे मर्द और युवतियाँ उनके लिंग को अपने हाथों मे लेकर चूम रहे थे. सेक्स का ऐसा खेल कभी किसी पिक्चर मे भी नही देखने को मिला था.
वो बिल्कुल नग्न अवस्था मे उस कुंड मे उतर गये. कुंड मे गर्देन तक पानी था. सारे शिष्य और शिष्याएँ उस कुंड को घेर कर खड़े हो गये.
त्रिलोका नंद जी कुंड मे उतर कर मेरे नग्न जिस्म से लिपट गये. मैने भी उनकी गर्देन के इर्द गिर्द अपनी बाँहें लप्पेट दी. इससे पहले की वो कुच्छ करते मैने अपने प्यासे होंठ उनके होंठो पर रख दिए और अपने सीने को उनके सीने पर दबा दिया. उनके खड़े हो चुके लिंग की ठोकर मैं अपनी जांघों के बीच महसूस कर रही थी.
मैने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर उनके लिंग को सहलाया और उसे अपनी जांघों के बीच रख कर दोनो जांघों से उसे दबा दिया. उनके हाथ मेरे स्तनो को सहला रहे थे. फिर उन्हों ने नीचे झुक कर मेरे दोनो निपल्स को चूमा और अपने दाँतों के बीच लेकर कुरेदा.
मैने अपनी उंगलियाँ उनके बालों मे धंसा दी और उनके चेहरे को अपने स्तनो पर भींच लिया. उन्हों ने अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर पहले मेरे नितंबों को सहलाया फिर उनके हाथ मेरी जांघों के बीच मेरी योनि को सहलाने लगे. दो उंगलियों ने मेरी योनि के अंदर प्रवेश कर सहलाना शुरू कर दिया.
उनके होंठ मेरे जिस्म पर उपर से नीचे तक फिसल रहे थे. ऐसा करते हुए वो पानी के भीतर डुबकी लगा कर मेरी योनि को चूमने लगे. मैने भी पानी के भीतर घुस कर उनके लंड को चूमा और अपने मुँह मे लेकर उसे दो बार चूसा.
फिर र्वो मुझे साथ लेकर कुंड के पानी मे अठखेलिया करने लगे. महॉल इतना रोमॅंटिक था कि मैं तो मदहोश ही हो चुकी थी. सब कुच्छ एक दम नशीला नशीला सा लग रहा था.
वो मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहे थे और मैं किसी मच्चली की तरह उनकी गिरफ़्त से बचती जा रही थी. इस खेल मे कभी मैं उनके किसी अंग को चूमती तो कभी उनसे लिपट जाती. ऐसे वक़्त वो खुद मेरी गिरफ़्त से निकल जाते. ऐसा लग रहा था कि वो कोई 20 – 30 साल के नौजवान हों. उनकी हरकतों, उनकी चपलता को देख कर अच्छे मर्द अपनी दाँतों तले उंगलियाँ दबा सकते थे.
बाहर खड़े लोग हमारे उपर पुष्प वर्षा कर रहे थे. तभी त्रिलोकनंद जी ने मुझे टाँगों से पकड़ कर उनको कुच्छ उपर किया और अपने कंधे पर रख दिया. तैरते हुए मेरा पूरा बदन पानी के उपर था. उन्हों ने अपने चेहरे को मेरी जांघों के बीच रख कर मेरी क्लाइटॉरिस को अपने दाँतों से कुरेदने लगे. मैं उनके ऐसा करने से तड़प उठी. टाँगे स्वतः ही भींच गयीं. उन्हों ने कुच्छ देर तक मेरे क्लिट को अपनी जीभ से और अपने दाँतों से कुर्दने के बाद मेरी योनि मे अपनी जीभ डाल कर चाटने लगे.
“ आआआहह……गुरुउुऊउदीएव……..माआई माअर जवँगिइिईई…….उफफफफफ्फ़….प्ाअनीिइ मईए भी बदान जाल रहाआ हााईयईईई” मैं तड़प रही थी संभोग के लिए. मन कर रहा था स्वामी जी मेरे एक एक अंग को मोड़ तोड़ कर रख दें. इसी हालत मे मेरा एक स्खलन हो गया. कुच्छ देर तक जब गुरुदेव ने नही छ्चोड़ा तो मैं ही उनसे दूर भाग गयी.
वो मेरी ओर झपते. उन्हों ने पीछे से पकड़ कर कुंड की दीवार से टीका दिया. मैने अपनी बाँहें किनारों पर रख कर सहारा लिया. वो मेरे जिस्म से पीछे की ओर से लिपट गये. उन्हों ने मेरी बगलों के नीचे से अपनी बाँहें निकाल कर मेरे स्तनो को थाम लिया और पीछे की तरफ से अपने लिंग को मेरे नितंबों के बीच फँसा दिया.
मैने अपनी हथेली पीछे कर उनके लिंग को थामा और फिर अपने कमर को कुच्छ पीछे कर उनके लिंग को नितंबों की दरार पर नीचे की ओर सरकाया. फिर अपनी टाँगें फैला कर उनके लिंग को अपनी योनि के मुहाने पर ले गये. बाकी कुच्छ भी करने की ज़रूरत नही हुई.
उन्हों ने अपनी कमर को आगे की ओर धकेला. मेरी योनि का मुँह दिन भर की चुदाई से इतना खुल गया था कि कोई परेशानी ही नही हुई उनके उस शानदार लंड को जड़ तक घुस जाने मे. फिर मुझे उसी तरह पकड़ कर चोद्ते रहे. जब वो अपने लंड को खींच कर बाहर निकालते तो कुंड का ठंडा पानी उनकी जगह लेने के लिए मेरी योनि मे घुस जाता और फिर अगले धक्के के साथ अंदर का पानी पिचकारी के रूप मे बाहर आ जाता था. इस अनोखी चुदाई मे खूब मज़ा आ रहा था.
तकरीबन पंद्रह मिनिट तक मेरी चूत को ठोकने के बाद उन्हों ने मुझे घुमा कर सीधा कर लिया. उनकी मदद से मैं उनकी कमर तक उठ कर अपनी टाँगें उनकी कमर के इर्द गिर्द डाल कर उन्हे अपनी टाँगों की गॉश मे क़ैद कर लिया. उनका लंड वापस मेरी योनि मे घुस गया था. मैं अपनी बाँहे कुंड के किनारों पर रख कर उनके कमर की सवारी कर रही थी. उनके हर धक्के के साथ मेरी पीठ उस कुंड की दीवार से रगड़ खा रही थी. हल्का सा छिल भी गया था. मगर ऐसी चुदाई पाने के बाद किसे परवाह रहती है छ्होटे मोटे दर्द की.
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -63
गतान्क से आगे...
उस अवस्था मे भी मुझे पाँच सात मिनिट चोद्ते रहे. मैं उत्तेजित हो कर सिसकारियाँ ले रही थी.
“आआहह….म्म्म्ममम…..ऊऊओह माआ……हाआनन्न छ्छूऊओदूऊ…. और्र्रर जूऊर सीए…..उफफफफफफफ्फ़ आआअपनईए मुझीए पगाआल बनाआ दियाआअ…. स्शह….आआआहह….कितनीईीई तापाअश्याअ कििई त्ीईिइ इसीई चुदाईईईई कीए लिईई. ….ऊऊओह गुरुउउउदीएव……मुऊऊुझीई अपनईए सीई दूऊवर माअट करणाा ……उउईईईईइइम्म्म्माआ……….माआईयईईई पाआअगााल्ल्ल हूओ जाआवँगिइिईईई……”
“ हाआँ देविीई…हम्म्फफ्फ़….हम्फफ्फ़…. आज सीए तुम मेरि च्चात्रा छ्चाअया मईए रहोगिइ…. बोलूऊ… जब काहूँगाअ आओगिइइई नाआ” स्वामी जी भी पूरे मूड मे आ चुके थे.
“ हाँ…हाआँ….आप जब बुलाऊओगीए माइइ साब छ्चोड़ड़ कार आ जावँगिइइई…साआब कूच…जूओ काहूगीए माइ कारूँगीइिईई.” मैने अपनी कमर को उनके लिंग पर दाब दिया. और उसके हर झटके के साथ अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी. मुझे इतना मज़ा आया कि उसका शब्दों मे वर्णन नही कर सकती. काफ़ी देर तक इसी अवस्था मे चोदने के बाद गरम गरम वीर्य मेरी योनि मे उधेल दिया. काफ़ी देर तक उनके लिंग से रस निकलता ही रहा. स्वामीजी इतनी जड़ी बूटियों का सेवन करते हैं और इतनी नियमित दिन चरया का पालन करते हैं कि उनमे सेक्स की जबरदस्त पॉवेर है.
उनके सेक्स की शक्ति के आगे अच्छे अच्छे फैल हो जाएँ. मैं तो पहली मुलाकात मे ही उनकी कायल हो गयी. मैं उनकी गुलाम हो कर रह गयी. जब उनका लंड पूरी तरह कमजोर होकर बाहर निकल आया तब जाकर उन्हों ने मुझे अपने बंधन से आज़ाद किया.
हम उस कुंड से बाहर निकल आए. स्वामी जी ने अपनी कमर पर तहमद लप्पेट ली और सारी युवतियाँ मुझे सारी पहना कर वहाँ से एक कमरे मे ले गयी. उस कमरे मे ले जाकर मेरा अद्भुत शृंगार किया गया.
ऐसा लग रहा था मानो मेरी दूसरी शादी हो रही हो. मुझे किसी नयी नवेली दुल्हन की तरह सजाया गया. सबसे पहले पूरे बदन पर इत्र और जड़ी बूटियों से मालिश की गयी. जड़ी बूटियों की मालिश से जिस्म मे एक अद्भुत उउतेज्ना का संचार होने लगा. जिस्म मे सेक्स की भूख बढ़ने लगी. हर एक अंग फदक रहा था मर्द की चुअन के लिए.
एक काफ़ी भारी सारी पहनाई गयी. मुझे ढेर सारे सोने के गहनो से लाद दिया गया. फूलों से शृंगार किया गया. चेहरे पर गहरा मेक अप किया. बालों को एक युवती ने किसी ब्यूटीशियन की तरह संवार कर उस पर अनगिनत मोती पिरो दिए.
मुझे पूरी तरह तैयार करने मुश्किल से उन्हे घंटा भर लगा. फिर मुझे लेकर एक युवती एक आदमकद आईने के सामने ले आइ. मैं अपना अक्स उस आईने मे देख कर चौंक गयी. मैं अपनी शादी के वक़्त भी इतनी खूबसूरत नही लग रही थी जितनी खूबसूरत अब लग रही थी.
फिर दो युवतियाँ मेरे अगल बगल मे आ खड़ी हुई और मुझे अपने साथ लेकर स्वामी जी के कमरे मे ले आइ. स्वामी जी का कमरा आज तो किसी परी लोक की तरह सज़ा हुया था. एक नाइट बल्ब की हल्की सी रोशनी मे सब कुच्छ नशीला नशीला लग रहा था. मुझे ले जाकर उन्हों ने बिस्तर पर बिठा दिया. बिस्तर इतना नरम था मानो मैं किसी रूई के बादल पर बैठी हौं. मैं समझ गयी कि वो वॉटर बेड था जिसमे गद्दे मे स्पंज की जगह पानी भरा होता है.
मुझे वहाँ बिठा कर दोनो युवतियाँ बाहर चली गयी. कुच्छ देर बाद एक युवती अंदर आकर मुझे एक शरबत पीने के लिए दी. मैने पूरा ग्लास एक ही साँस मे खाली कर दिया.
“ तुम यहीं बैठी रहना स्वामी जी महाराजा कुच्छ ही देर मे आने वाले हैं.” कह कर वो युवती कमरे से निकल गयी. जाते हुए उसने अपने पीछे कमरे के दरवाज़ों को भिड़ा दिया.
मैं वहाँ दुल्हन के लिबास मे बैठी अपने प्रियतम अपने गुरु देव का इंतेज़ार करने लगी. मेरे बदन मे उत्तेजना बढ़ने लगी तो मैने अपनी टाँगों को एक दूसरे से रगड़ना शुरू कर दिया. मगर जब इस पर कोई आराम नही मिला तो मेरे हाथ सारी के भीतर प्रवेश कर अपने स्तनो को दबाने लगे. मेरी जीभ बार बार सूखते हुए होंठों पर फिर रहे थे. मेरे मुँह से दबी दबी सिसकारियाँ निकल रही थी. मैने अपनी सीकरियों को दबाने के लिए अपने होंठों को बार बार अपने दन्तो के बीच दबा रही थी.
मुझे एक एक पल एक एक घंटे जैसा लंबा लग रहा था. मैने अपनी जांघों को भी एक दूसरे पर रगड़ना शुरू कर दिया. मेरे हाथ ब्लाउस के अंदर घुस कर मेरे स्तनो को मसल रहे थे. मैने अपना दूसरा हाथ जांघों के बीच रख कर अपनी योनि को सारी के उपर से दबाने लगी.
बार बार मेरी नज़रें दरवाजे की तरफ उठ जा रही थी. मुझे लग रहा था कि शायद स्वामी जी मुझे जान बूझ कर उत्तेजना के चरम पर ले जा रहे थे. इतना आगे की मेरा अपने जिस्म पर से अपने मन पर से अपने दिमाग़ पर से कंट्रोल हट जाए और मैं सेक्स की एक भूखी मशीन बन कर रह जाऊ.
काफ़ी देर इंतेज़ार के बाद स्वामी जी के कदमो की आहट दरवाजे के बाहर आकर रुके. मैने अपनी नज़र उठा कर देखा. दरवाजा धीरे धीर खुला और स्वामी जी एक रेशमी तहमद पहने अंदर प्रवेश किए.
दरवाजे को खोल कर स्वामी जी अंदर परवेश किए. मैने उठ कर उनके चरण च्छुए तो उन्हों ने मुझे आशीर्वाद देते हुए अपने गले से लगा लिया. उन्हों ने मुझे अपनी बाँहो मे भर लिया. मैं किसी कमजोर लता की तरह उनके जिस्म से लिपट गयी. मैने उनके गले मे अपनी बाँहें डाल कर अपनी ओर से पूर्ण समर्पण का संकेत दिया. उन्हों ने मेरे चेहरे को अपने हाथों मे थाम कर उपर उठाया तो मेरे होंठ उनके होंठों को पाने के लिए काँप रहे थे.
मैने अपनी आँखें बंद कर अपने होंठ उनकी ओर बढ़ा दिए. मगर उन्हे मेरे होंठो की प्यास बुझाने की इतनी जल्दी नही थी. उनकी गर्म सांसो का अहसास मुझे अपनी माँग पर हुआ और अगले पल उनके गर्म होंठ मेरे माथे से लग गये. उन्हों ने मेरे माथे को चूमते हुए अपने होंठ मेरी दोनो आँखों के बीच तक ले आए.
फिर उनकी आँखें पहले एक फिर दूसरे पलक पर फिरी. मेरी आँखें बंद थी मगर ऐसा लग रहा था मानो उनके होंठो से निकलती हुई गर्मी मेरे पलकों से होते हुए मेरी आँखो तक पहुँच रही हों. उन्हों ने अपने होंठों को थोड़ा सा अलग किया और अपनी जीभ थोड़ी सी बाहर निकाल कर मेरे बंद पलकों पर फिराई. मेरे बदन मे सिहरन सी उठने लगी.
फिर उनके होंठ नीचे फिसलते हुए मेरे गाल्लों पर आए. गाल्लों पर उन्हों ने अपने दांतो को गढ़ा दिए. मैं कराह उठी,”अयाया”. अब उनके होंठ मेरे कानो को बारी बारी चूमने लगे. उनकी लंबी सी जीभ मेरे कानोके उपर फिरने लगी. उन्हों ने मेरे कानो मे अपनी जीभ फेरते हुए मेरे कान की छेद को कुरेदा. फिर अपने दांतो से मेरे कान की लो को हल्के हल्के से काटने लगे. कान भी किसी महिला के सबसे ज़्यादा उत्तेजक अंगों मे से एक होते हैं. जब उनकी गर्म साँसे उन पर पड़ रही थी तो मैं अपने जबड़े को बुरी तरह से भींच कर अपनी उत्तेजना को काबू मे करने की कोशिश कर रही थी.
उनके होंठ कान से होते हुए मेरी ठुड्डी पर जा कर दो पल रुके. फिर उन्हों ने अपने होंठ खोल कर मेरी ठुड्डी की कुच्छ देर इस तरह चूसा मानो किसी रसीले फल का रस चूस रहे हों. उन्हों ने अपने दन्तो से मेरी ठुड्डी को कुरेदना शुरू कर दिया. ऑफ रश्मि…….तुझे क्या बताऊ आज भी उस मिलन की बात सोच सोच कर मेरी योनि गीली होने लगती है. अया क्या अद्भुत प्यार करने का उनका तरीका. तू मानेगी नही जब तक उनका लिंग मेरी योनि मे प्रवेश हुआ तब तक तो मैं तीन चार बार झाड़ चुकी थी.
मैने उनकी हरकतों से परेशान होकर उनके सिर को अपने चेहरे पर दाब लिया. वो किसी ना समझ बच्चे की तरह मेरी ठुड्डी को चूसे जा रहे थे. हार कर मुझे उनके सिर को पकड़ कर अपने चेहरे से हटाना पड़ा.
उन्हों ने मुझे अपनी जगह पर घुमा कर मेरे पीछे आ गये. उन्हों ने मेरे बालों को थाम कर सामने की ओर कर दिए जिससे उनके कार्य मे वो किसी तरह का विघ्न पैदा नही कर सकें.
उनकी जीभ मेरी रीढ़ की हड्डी के उपर मेरे कमर से गर्देन तक फिर रही थी. मैं अपने हाथ पीछे ले जाकर उनके लिंग को टटोलने की कोशिश कर रही थी उन्हों ने मेरी मनसा भाँप कर अपना कमर पीछे की ओर कर ली जिससे मैं अपने मकसद मे कामयाब ना हो सकूँ.
उनकी गर्म साँसे अब मैं अपनी गर्देन के पीछे की ओर पा रही थी. उनकी सांसो की गर्माहट मेरी पूरे वजूद को पिघला देने के लिए काफ़ी थी. वो भली भाँति जानते थे कि किसी महिला के उत्तेजना को शिखर तक पहुँचा देने वाले पोइट्स कौन कौन से हैं. मैं अब अपनी उत्तेजना को काबू मे नही कर पा रही थी. और उनकी हरकतों से परेशान हो कर बॅड बड़ा रही थी.
“ ऊऊऊऊओह…….हाआऐययईईई…..म्म्म्ममम…….. मुझीईए आआओउूर माआट तरसााूऊ……ऊऊओह माआआआ माआर जावँगिइिईईईई……आआआः गुऊुरूऊओजीीइईईईईई…….माआऐयइ पाअगाआल हो गइई हूऊं………माआआअ…. ऊऊऊऊओह उईईईईईईईई माआ……….”
उनके दांतो का हल्का हल्का दबाव मैं अपने गर्देन के पीछे महसूस कर रही थी. मेरे पूरे जिस्म से चिंगारियाँ निकलने लगी. उनकी जीभ मेरी पीठ पर इस तरह घूम रही थी मानो कोई रूई से मेरी पीठ सहला रहा हो. मेरे पति के साथ सेक्स मे कभी मुझे इतना मज़ा नही मिला था जितना आज मुझे इनके साथ मिल रहा था. मेरे पति प्रेसेक्श एग्ज़ाइट्मेंट के मामले मे एक दम ज़ीरो हैं. उन्हे तो सिर्फ़ एक बात ही आती है की बिस्तर पर पटक कर औरत को अपने लिंग से धक्के मारने के अलावा दुनिया मे सेक्स का और कोई नाम
नही है.
उन्हों ने मेरी सारी के आँचल को कंधे से नीच लुढ़का दिया. उन्हों ने मुझे कंधे से थाम कर अपनी ओर घुमाया. फिर ऊपर से नीचे तक मुझे कुच्छ देर तक निहारते रहे. मैं अपनी नज़रें झुकाए उनकी हर हरकत का मूक रह कर समर्थन कर रही थी.
उन्हों ने मेरे दोनो स्तनो के ऊपर ब्लाउस के उपर से ही अपना हाथ फिराया और हल्के से उन्हे दबाया. फिर एक एक करके मेरे ब्लाउस के सारे बटन्स खोल डाले. एक एक बटन खोलते जाते और मेरे सीने का जितना हिस्सा सामने आता उसे अपने होंठों से अपनी जीभ से चूमते जाते.
क्रमशः............
गतान्क से आगे...
उस अवस्था मे भी मुझे पाँच सात मिनिट चोद्ते रहे. मैं उत्तेजित हो कर सिसकारियाँ ले रही थी.
“आआहह….म्म्म्ममम…..ऊऊओह माआ……हाआनन्न छ्छूऊओदूऊ…. और्र्रर जूऊर सीए…..उफफफफफफफ्फ़ आआअपनईए मुझीए पगाआल बनाआ दियाआअ…. स्शह….आआआहह….कितनीईीई तापाअश्याअ कििई त्ीईिइ इसीई चुदाईईईई कीए लिईई. ….ऊऊओह गुरुउउउदीएव……मुऊऊुझीई अपनईए सीई दूऊवर माअट करणाा ……उउईईईईइइम्म्म्माआ……….माआईयईईई पाआअगााल्ल्ल हूओ जाआवँगिइिईईई……”
“ हाआँ देविीई…हम्म्फफ्फ़….हम्फफ्फ़…. आज सीए तुम मेरि च्चात्रा छ्चाअया मईए रहोगिइ…. बोलूऊ… जब काहूँगाअ आओगिइइई नाआ” स्वामी जी भी पूरे मूड मे आ चुके थे.
“ हाँ…हाआँ….आप जब बुलाऊओगीए माइइ साब छ्चोड़ड़ कार आ जावँगिइइई…साआब कूच…जूओ काहूगीए माइ कारूँगीइिईई.” मैने अपनी कमर को उनके लिंग पर दाब दिया. और उसके हर झटके के साथ अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी. मुझे इतना मज़ा आया कि उसका शब्दों मे वर्णन नही कर सकती. काफ़ी देर तक इसी अवस्था मे चोदने के बाद गरम गरम वीर्य मेरी योनि मे उधेल दिया. काफ़ी देर तक उनके लिंग से रस निकलता ही रहा. स्वामीजी इतनी जड़ी बूटियों का सेवन करते हैं और इतनी नियमित दिन चरया का पालन करते हैं कि उनमे सेक्स की जबरदस्त पॉवेर है.
उनके सेक्स की शक्ति के आगे अच्छे अच्छे फैल हो जाएँ. मैं तो पहली मुलाकात मे ही उनकी कायल हो गयी. मैं उनकी गुलाम हो कर रह गयी. जब उनका लंड पूरी तरह कमजोर होकर बाहर निकल आया तब जाकर उन्हों ने मुझे अपने बंधन से आज़ाद किया.
हम उस कुंड से बाहर निकल आए. स्वामी जी ने अपनी कमर पर तहमद लप्पेट ली और सारी युवतियाँ मुझे सारी पहना कर वहाँ से एक कमरे मे ले गयी. उस कमरे मे ले जाकर मेरा अद्भुत शृंगार किया गया.
ऐसा लग रहा था मानो मेरी दूसरी शादी हो रही हो. मुझे किसी नयी नवेली दुल्हन की तरह सजाया गया. सबसे पहले पूरे बदन पर इत्र और जड़ी बूटियों से मालिश की गयी. जड़ी बूटियों की मालिश से जिस्म मे एक अद्भुत उउतेज्ना का संचार होने लगा. जिस्म मे सेक्स की भूख बढ़ने लगी. हर एक अंग फदक रहा था मर्द की चुअन के लिए.
एक काफ़ी भारी सारी पहनाई गयी. मुझे ढेर सारे सोने के गहनो से लाद दिया गया. फूलों से शृंगार किया गया. चेहरे पर गहरा मेक अप किया. बालों को एक युवती ने किसी ब्यूटीशियन की तरह संवार कर उस पर अनगिनत मोती पिरो दिए.
मुझे पूरी तरह तैयार करने मुश्किल से उन्हे घंटा भर लगा. फिर मुझे लेकर एक युवती एक आदमकद आईने के सामने ले आइ. मैं अपना अक्स उस आईने मे देख कर चौंक गयी. मैं अपनी शादी के वक़्त भी इतनी खूबसूरत नही लग रही थी जितनी खूबसूरत अब लग रही थी.
फिर दो युवतियाँ मेरे अगल बगल मे आ खड़ी हुई और मुझे अपने साथ लेकर स्वामी जी के कमरे मे ले आइ. स्वामी जी का कमरा आज तो किसी परी लोक की तरह सज़ा हुया था. एक नाइट बल्ब की हल्की सी रोशनी मे सब कुच्छ नशीला नशीला लग रहा था. मुझे ले जाकर उन्हों ने बिस्तर पर बिठा दिया. बिस्तर इतना नरम था मानो मैं किसी रूई के बादल पर बैठी हौं. मैं समझ गयी कि वो वॉटर बेड था जिसमे गद्दे मे स्पंज की जगह पानी भरा होता है.
मुझे वहाँ बिठा कर दोनो युवतियाँ बाहर चली गयी. कुच्छ देर बाद एक युवती अंदर आकर मुझे एक शरबत पीने के लिए दी. मैने पूरा ग्लास एक ही साँस मे खाली कर दिया.
“ तुम यहीं बैठी रहना स्वामी जी महाराजा कुच्छ ही देर मे आने वाले हैं.” कह कर वो युवती कमरे से निकल गयी. जाते हुए उसने अपने पीछे कमरे के दरवाज़ों को भिड़ा दिया.
मैं वहाँ दुल्हन के लिबास मे बैठी अपने प्रियतम अपने गुरु देव का इंतेज़ार करने लगी. मेरे बदन मे उत्तेजना बढ़ने लगी तो मैने अपनी टाँगों को एक दूसरे से रगड़ना शुरू कर दिया. मगर जब इस पर कोई आराम नही मिला तो मेरे हाथ सारी के भीतर प्रवेश कर अपने स्तनो को दबाने लगे. मेरी जीभ बार बार सूखते हुए होंठों पर फिर रहे थे. मेरे मुँह से दबी दबी सिसकारियाँ निकल रही थी. मैने अपनी सीकरियों को दबाने के लिए अपने होंठों को बार बार अपने दन्तो के बीच दबा रही थी.
मुझे एक एक पल एक एक घंटे जैसा लंबा लग रहा था. मैने अपनी जांघों को भी एक दूसरे पर रगड़ना शुरू कर दिया. मेरे हाथ ब्लाउस के अंदर घुस कर मेरे स्तनो को मसल रहे थे. मैने अपना दूसरा हाथ जांघों के बीच रख कर अपनी योनि को सारी के उपर से दबाने लगी.
बार बार मेरी नज़रें दरवाजे की तरफ उठ जा रही थी. मुझे लग रहा था कि शायद स्वामी जी मुझे जान बूझ कर उत्तेजना के चरम पर ले जा रहे थे. इतना आगे की मेरा अपने जिस्म पर से अपने मन पर से अपने दिमाग़ पर से कंट्रोल हट जाए और मैं सेक्स की एक भूखी मशीन बन कर रह जाऊ.
काफ़ी देर इंतेज़ार के बाद स्वामी जी के कदमो की आहट दरवाजे के बाहर आकर रुके. मैने अपनी नज़र उठा कर देखा. दरवाजा धीरे धीर खुला और स्वामी जी एक रेशमी तहमद पहने अंदर प्रवेश किए.
दरवाजे को खोल कर स्वामी जी अंदर परवेश किए. मैने उठ कर उनके चरण च्छुए तो उन्हों ने मुझे आशीर्वाद देते हुए अपने गले से लगा लिया. उन्हों ने मुझे अपनी बाँहो मे भर लिया. मैं किसी कमजोर लता की तरह उनके जिस्म से लिपट गयी. मैने उनके गले मे अपनी बाँहें डाल कर अपनी ओर से पूर्ण समर्पण का संकेत दिया. उन्हों ने मेरे चेहरे को अपने हाथों मे थाम कर उपर उठाया तो मेरे होंठ उनके होंठों को पाने के लिए काँप रहे थे.
मैने अपनी आँखें बंद कर अपने होंठ उनकी ओर बढ़ा दिए. मगर उन्हे मेरे होंठो की प्यास बुझाने की इतनी जल्दी नही थी. उनकी गर्म सांसो का अहसास मुझे अपनी माँग पर हुआ और अगले पल उनके गर्म होंठ मेरे माथे से लग गये. उन्हों ने मेरे माथे को चूमते हुए अपने होंठ मेरी दोनो आँखों के बीच तक ले आए.
फिर उनकी आँखें पहले एक फिर दूसरे पलक पर फिरी. मेरी आँखें बंद थी मगर ऐसा लग रहा था मानो उनके होंठो से निकलती हुई गर्मी मेरे पलकों से होते हुए मेरी आँखो तक पहुँच रही हों. उन्हों ने अपने होंठों को थोड़ा सा अलग किया और अपनी जीभ थोड़ी सी बाहर निकाल कर मेरे बंद पलकों पर फिराई. मेरे बदन मे सिहरन सी उठने लगी.
फिर उनके होंठ नीचे फिसलते हुए मेरे गाल्लों पर आए. गाल्लों पर उन्हों ने अपने दांतो को गढ़ा दिए. मैं कराह उठी,”अयाया”. अब उनके होंठ मेरे कानो को बारी बारी चूमने लगे. उनकी लंबी सी जीभ मेरे कानोके उपर फिरने लगी. उन्हों ने मेरे कानो मे अपनी जीभ फेरते हुए मेरे कान की छेद को कुरेदा. फिर अपने दांतो से मेरे कान की लो को हल्के हल्के से काटने लगे. कान भी किसी महिला के सबसे ज़्यादा उत्तेजक अंगों मे से एक होते हैं. जब उनकी गर्म साँसे उन पर पड़ रही थी तो मैं अपने जबड़े को बुरी तरह से भींच कर अपनी उत्तेजना को काबू मे करने की कोशिश कर रही थी.
उनके होंठ कान से होते हुए मेरी ठुड्डी पर जा कर दो पल रुके. फिर उन्हों ने अपने होंठ खोल कर मेरी ठुड्डी की कुच्छ देर इस तरह चूसा मानो किसी रसीले फल का रस चूस रहे हों. उन्हों ने अपने दन्तो से मेरी ठुड्डी को कुरेदना शुरू कर दिया. ऑफ रश्मि…….तुझे क्या बताऊ आज भी उस मिलन की बात सोच सोच कर मेरी योनि गीली होने लगती है. अया क्या अद्भुत प्यार करने का उनका तरीका. तू मानेगी नही जब तक उनका लिंग मेरी योनि मे प्रवेश हुआ तब तक तो मैं तीन चार बार झाड़ चुकी थी.
मैने उनकी हरकतों से परेशान होकर उनके सिर को अपने चेहरे पर दाब लिया. वो किसी ना समझ बच्चे की तरह मेरी ठुड्डी को चूसे जा रहे थे. हार कर मुझे उनके सिर को पकड़ कर अपने चेहरे से हटाना पड़ा.
उन्हों ने मुझे अपनी जगह पर घुमा कर मेरे पीछे आ गये. उन्हों ने मेरे बालों को थाम कर सामने की ओर कर दिए जिससे उनके कार्य मे वो किसी तरह का विघ्न पैदा नही कर सकें.
उनकी जीभ मेरी रीढ़ की हड्डी के उपर मेरे कमर से गर्देन तक फिर रही थी. मैं अपने हाथ पीछे ले जाकर उनके लिंग को टटोलने की कोशिश कर रही थी उन्हों ने मेरी मनसा भाँप कर अपना कमर पीछे की ओर कर ली जिससे मैं अपने मकसद मे कामयाब ना हो सकूँ.
उनकी गर्म साँसे अब मैं अपनी गर्देन के पीछे की ओर पा रही थी. उनकी सांसो की गर्माहट मेरी पूरे वजूद को पिघला देने के लिए काफ़ी थी. वो भली भाँति जानते थे कि किसी महिला के उत्तेजना को शिखर तक पहुँचा देने वाले पोइट्स कौन कौन से हैं. मैं अब अपनी उत्तेजना को काबू मे नही कर पा रही थी. और उनकी हरकतों से परेशान हो कर बॅड बड़ा रही थी.
“ ऊऊऊऊओह…….हाआऐययईईई…..म्म्म्ममम…….. मुझीईए आआओउूर माआट तरसााूऊ……ऊऊओह माआआआ माआर जावँगिइिईईईई……आआआः गुऊुरूऊओजीीइईईईईई…….माआऐयइ पाअगाआल हो गइई हूऊं………माआआअ…. ऊऊऊऊओह उईईईईईईईई माआ……….”
उनके दांतो का हल्का हल्का दबाव मैं अपने गर्देन के पीछे महसूस कर रही थी. मेरे पूरे जिस्म से चिंगारियाँ निकलने लगी. उनकी जीभ मेरी पीठ पर इस तरह घूम रही थी मानो कोई रूई से मेरी पीठ सहला रहा हो. मेरे पति के साथ सेक्स मे कभी मुझे इतना मज़ा नही मिला था जितना आज मुझे इनके साथ मिल रहा था. मेरे पति प्रेसेक्श एग्ज़ाइट्मेंट के मामले मे एक दम ज़ीरो हैं. उन्हे तो सिर्फ़ एक बात ही आती है की बिस्तर पर पटक कर औरत को अपने लिंग से धक्के मारने के अलावा दुनिया मे सेक्स का और कोई नाम
नही है.
उन्हों ने मेरी सारी के आँचल को कंधे से नीच लुढ़का दिया. उन्हों ने मुझे कंधे से थाम कर अपनी ओर घुमाया. फिर ऊपर से नीचे तक मुझे कुच्छ देर तक निहारते रहे. मैं अपनी नज़रें झुकाए उनकी हर हरकत का मूक रह कर समर्थन कर रही थी.
उन्हों ने मेरे दोनो स्तनो के ऊपर ब्लाउस के उपर से ही अपना हाथ फिराया और हल्के से उन्हे दबाया. फिर एक एक करके मेरे ब्लाउस के सारे बटन्स खोल डाले. एक एक बटन खोलते जाते और मेरे सीने का जितना हिस्सा सामने आता उसे अपने होंठों से अपनी जीभ से चूमते जाते.
क्रमशः............