रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -67
गतान्क से आगे...
सेक्स के मामले मे भी उनकी सानी नही थी वो ऐसी ऐसी जड़ी बूटियों का सेवन करते थे कि उनका लिंग कई कई घंटो तक किसी खंबे की तरह खड़ा रहता था. आच्छि अच्छि रांड़ भी उनके सामने पानी भरने लगती थी.
खैर हम दोनो एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे. मैं उनको चित लिटा कर उनके सीने पर लेट गयी और उनके चेहरे को अपनी अंजूरी मे भर कर चूमने लगी. उनके हाथ मेरी पीठ पर फिर रहे थे. उनके हाथ गर्देन से फिसलते हुए नितंबों तक जा कर रुक रहे थे.
उनका हाथ मेरी पीठ पर इतनी आहिस्ता से फिर रहा था की मुझे सिहरन सी होने लगी थी.
तभी उनके हाथ मेरे नितंबों पर जा कर रुक गये. अब वो मेरे दोनो नितंबों को अच्छि तरह सहला कर दोनो नितंबों के बीच की दरार मे एक उंगली डाल कर मेरे गुदा द्वार को सहलाने लगे. कुच्छ देर तक यूँ ही सहलाने के बाद उनकी उंगली नीचे खिसक कर मेरी योनि को छू गये. मैने अपनी टाँगे दोनो ओर फैला कर उनकी उंगली का स्वागत किया. उनकी उंगली अब मेरी योनि के होंठों से खेलने लगे.
मैने अपने सिर को उठाया और अपने दोनो कोहनियो स्वामी जी की छाती पर रख कर अपने चेहरे को दोनो हथेलियों पर सहारा दिया. मैं उन्हे निहारने लगी. स्वामी जी अब आपमे हाथ को उपर लाकर पहले सामने लटक रहे मेरे बालों को पीछे किया और फिर उनकी उंगलियाँ मेरे माथे से सरकते ही छतियो के इर्दगिर्द घूमने लगी.
मैने महसूस किया की मुझे निहारते हुए वापस उनके लिंग मे कठोरता आने लगी. है मैने अपना एक हाथ उनकी जांघों के बीच ले जाकर उनके लिंग को टटोला.
“ हाहाहा…..ये बदमाश तो फिर खड़ा होने लगा है.” मैने हंसते हुए उनसे कहा.
“ तुम्हारे जैसी खूबसूरत सहेली पाकर तो ये जिंदगी भर खड़ा रहने को तैयार है.” कहकर उन्हों ने एक झटके से मुझे बिस्तर पर पटका और दूसरे ही पल वो मेरे उपर सवार थे.
“ अरे..अरे क्या कर रहे हैं. इतना उतावला पन अच्च्छा नही है.” मैने उन्हे रोकते हुए कहा जबकि मन से मैं उन्हे रोकना ही नही चाहती थी.
“ हा…..” एक झटके मे उन्हों ने वापस मेरी योनि मे अपना लिंग डाल दिया और फिर शुरू हुआ दूसरा दौर. इस बार कई तरह के आसनो से लगभग आधे घंटे तक मेरी चुदाई की. कभी मैने धक्के लगाए तो कभी उन्हों ने. दोनो की मानो एक दूसरे को हराने की होड़ लगी हो. मगर अंत तक दोनो ही जीत गये. मेरे बदन का निचला हिस्सा उनके वीर्य से लत्पथ था. दूसरे दौर के बाद कुच्छ देर तक दोनो एक दूसरे के आलिंगन मे बँधे अपनी साँसे व्यस्त करने मे जुटे रहे.
कुच्छ देर बाद रात के खाने का बुलावा आ गया. स्वामी जी उठ खड़े हुए और अपने कपड़ों को दुरुस्त किया. मैं उसी नंगी हालत मे बिस्तर पर पड़ी उनको निहारती रही. जब वो तैयार हो गये तो मैने अपना एक हाथ उठा कर उठने मे मदद करने को कहा. इतनी चुदाई से मेरे बदन मे अब जान ही नही बची थी.
स्वामी जी की मजबूत बाँहों ने मुझे उठने के लिए सहारा दिया. मैं लड़खड़ाते हुए उठी. अचानक ज़ोर से चक्कर आ गया तो मैं कुच्छ दे बिस्तर पर चुप चाप बैठी रही. स्वामीजी ने मुझे पानी पिलाया. जब वापस मेरी हालत कुच्छ नॉर्मल हुई मई उठ कर खड़ी हो गयी. स्वामी जी ने मुझे कपड़ों को पहनने मे मुझे मदद की.
मैं उनका सहारा लेकर लड़खड़ाती हुई डाइनिंग हॉल मे आइ. वहाँ मौजूद हर नज़र मेरा पीछा कर रही थी. मैं शरमाती सकुचती खाना खा कर वापस अपने कमरे मे आ गयी.
वापस आकर मैने देखा पूरे कमरे का नक्शा ही कुच्छ देर मे बदल दिया गया है.
बिस्तर से गुलाबी चादर को चेंज कर एक सफेद सिल्क की चादर बिच्छा दिया गया था. बिस्तर के चारों कोनो पर रजनीगंधा के ढेर सारे स्टिक्स लगा दिए गये थे. पूरे बिस्तर पर लाल गुलाब की पंखुड़ीयान बिछि हुई थी. सिरहाने रखे टेबल पर शरबत के ग्लास भरे हुए थे और एक बास्केट मे ढेर सारे मेवे रखे हुए थे.
हम दोनो वापस बिस्तर पर आकर निवस्त्रा हो गये. उनका लिंग अभी भी तनाव मे खड़ा था. मैं बिस्तर पर नग्न लेट कर उनका इंतेज़ार करने लगी. वो शेल्फ से एक बॉटल लेकर आए और उसे साइड टेबल पर रख कर अपने बदन से इकलौती धोती को हटा दिया. उनका एक फूटा लंड मुझे ललकार्ते हुए झटके खा रहा था.
मैने उनके स्वागत के लिए अपनी टाँगें फैला दी. अपने हाथों को उनकी ओर उठा कर उनमे समा जाने का न्योता दिया. उन्हों ने वापस मेरी कमर को उँचा किया और चौपाया हो कर अपने घुटनो को मेरे कंधे के दोनो ओर रख कर मेरी योनि की ओर झुके. उन्हों ने उस बॉटल से मेरी योनि पर कुच्छ टपकाना शुरू किया. मैने देखा कि वो मेरी योनि पर पतली शहद की धार गिरा रहे थे और फिर उसे अपनी जीभ से चाट चाट कर सॉफ करने लगते. मुझे ये सब बहुत ही अद्भुत लग रहा था. मेरी योनि और उसके इर्द गिर्द हल्के रेशमी बाल सब चिपक गये थे.
योनि को लगातार कई मिनिट तक जीभ से छेड़े जाने की वजह से मेरा कई बार वीर्य निकल गया. उन्हों ने मुझे उठा कर बैठा दिया. फिर उन्हों ने अपने लिंग को मुझे चाटने को कहा. मैने अपनी जीभ निकाल कर उनके लिंग को चाटने लगी तो वो अपने लिंग पर बूँद बूँद शहद टपकाते जा रहे थे जो की जाहिर है मुझे चाट कर सॉफ करना था. वीर्य और शहद का मिश्रण बड़ा ही टेस्टी लग रहा था. कुच्छ देर तक उनके लिंग को और अंडकोषों को चाटने के बाद मैं अपने मुँह को खोल कर उनके लिंग को अपने मुँह के अंदर लेकर चूसने लगी. उनके लिंग को चूस्ते वक़्त मैं अपनी जीभ से उन्हे छेड़ती भी जा रही थी. ज़ोर ज़ोर से चूसने की वजह से कुच्छ ही देर मे उन्हों ने मेरे सिर को अपने लिंग पर दाब कर ढेर सारा वीर्य मेरे मुँह मे भर दिया.
लिंग को गले मे दबा देने की वजह से मेरी साँस रुक गयी. फिर इतना सारा वीर्य मेरे गले मे उधेला की कुच्छ वीर्य मेरे गले मे अटक गया और एक ज़ोर की खाँसी के साथ मेरे नाक से बह निकला. जब तक उनका लिंग ढीला नही पड़ गया तब तक उसे मेरे मुँह से बाहर नही निकाला.
थकान की वजह से खाना खाने के बाद से ही मेरा बदन टूटने लगा था उसके बाद मेरी योनि से इतना वीर्य पात मुझे बुरी तरह थका दिया था. मेरी आँखें इतनी भारी हो गयी थी की उन्हे अब खोले रखना मुश्किल हो रहा था. बहुत कोशिशों के बाद भी आँखें मूंडने लगी थी. जैसे ही उन्हों ने मेरे सिर को छ्चोड़ा मैं भाड़ से बिस्तार पर गिर पड़ी और जैसी गिरी थी उसी हालत मे मेरी आँखें मूंद गयी.
स्वामी जी मेरी अवस्था भाँप चुके थे. वो बिस्तर से नीचे उतर कर मुझे अपनी गोद मे उठाया और बाथरूम की ओर ले चले. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार पहना दिया. उन्हों ने मुझे ले जाकर शवर के नीचे खड़ा कर दिया. बदन पर पानी की ठंडी बूंदे अपना असर दिखाने लगी. मेरे बदन मे ताज़गी का संचार होने लगा. मेरे बदन मे ताज़गी आते ही वापस हवस का भूत अपना असर दिखाने लगा.
वो शवर के नीचे मुझ से लिपटे हुए मेरे बदन को सहला रहे थे मैं वापस उत्तेजित होकर उनसे बुरी तरह से लिपट गयी. मैं कूद कर उनकी कमर के चारों ओर अपने पैरों को लपेट दिया और उनके गले मे बाँहे डाल कर झूल गयी. मैने अपने दाँत उनके कंधे पर गढ़ा दिए. मैं अपनी नंगी चूचियाँ बेतहासा उनके सीने से रगड़ रही थी. मेरी हालत किसी भूखी शेरनी जैसी हो गयी थी जो किसी भी कीमत पर अपने शिकार को हाथ से निकलने नही देना चाहती हो.
स्वामी जी ने अपनी पीठ दीवार से सटा दी और एक हाथ से अपने खड़े लिंग को मेरी योनि की फांकों को खोल कर अंदर किया. मैं उनके गले से लिपटे लिपटे ही अपनी कमर को कुच्छ नीचे सर्काई और…..वाआहह….म्म्म्ममम…..उनका तगड़ा लिंग वापस मेरी योनि के अंदर था मेरी खाज को मिटाने के लिए.
उन्हों ने अपनी हथेलियों को मेरे बगलों के नीचे लगा कर मेरे बदन को उपर नीचे होने मे सहयता करने लगे. उन्हों ने मेरे जिस्म को ऐसे उठा रखा था मानो मैं को औरत नही बल्कि रूई की गुड़िया हूँ.
उनकी ताक़त, उनका बाल उनकी एक एक चीज़ की मैं कायल हो गयी थी. मैं जानती थी कि मैं अब वापस पहले जैसी जिंदगी नही जी सकती थी. ये एक तरह का नशा था जिसकी मैं आदि बनती जा रही थी. मेरा कोई परिचित मुझे इस हालत मे देखता तो विस्वास ही नही करता. इतनी सुंदर, इतनी शुशील और उच्च मान मर्यादाओं वाली एक घरेलू महिला किसी निंफो की तरह भी हरकतें कर सकती है इसे कोई नही मानता.
मैने अपने पंजों को स्वामीजी के पीछे दीवार पर रख दिया और उनके गले का सहारा लेकर अपनी कमर को उनके लिंग पर आगे पीछे करने लगी. उन्होंने अपनी हथेलियों को मेरे नितंबों पर रख कर मेरे बदन को हवा मे संहाल रखा था. उनके साथ मैने ऐसे ऐसे आसनो का मज़ा लिया जिन आसनो के बारे मे मैं कभी सोच भी नही सकी थी.
सिर पर गिरती पानी की बूंदे भी हमारे बदन मे लगी आग को बुझाने मे असमर्थ थे बल्कि वहाँ का नशीला वातावरण पानी मे आग लगाता हुआ महसूस हो रहा था.
कुच्छ देर तक इसी तरह चोदने के बाद उन्हों ने मुझे अपनी कमर से नीचे उतार दिया. मैने शवर के नीचे खड़ी होकर दीवार पर अपनी दोनो हथेलिया रख कर उनकी ओर अपनी कमर को आगे कर दिया.
“ आअहह…..आऊओ…..आआजाऊओ….” मैने अपनी टाँगों को कुच्छ फैला कर अपने नितंबों के नीचे से अपनी योनि की ओर इशारा किया. स्वामी जी मेरे जिस्म से पीठ की ओर से सॅट गये. मैने खुद अपनी हथेलियों से उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि मे डाल लिया. उनके दोनो हाथ मेरे स्तनो को थाम कर उनको बुरी तरह मसल्ने लगे थे. बीच बीच मे उनके हाथ फिसलते हुए पेट के उपर से होते हुए मेरी योनि तक भी जाते.
वो मुझे धक्के लगाने लगे. कुच्छ देर तक तो मैं उनके धक्को को अपनी हथेलियों से झेलती रही मगर जब मेरी बाजुओं ने जवाब दे दिया तो मेरी कोहनियाँ मूड गयी और मेरे पेट से उपर का हिस्सा दीवार से चिपक गया. मेरे बड़े बड़े स्तन सपाट दीवार पर दब कर फैल गये.
उन्हों ने भी अपने हाथ दीवार पर रख कर मुझे ज़ोर ज़ोर के धक्को से हिला कर रख दिया, मैं मस्ती मे अया ऊ करती जा रही थी. बीच बीच मे अपनी उंगलिओ से उनके खंबे को छ्छू कर उसके अंदर बाहर होने का अहसास कर रही थी.
कुच्छ देर तक लगातार इसी तरह से चोदने के बाद उन्होने शवर को बंद कर दिया दोनो की साँसे अब फूलने लगी थी. मैने उनको फर्श पर लेटने का इशारा किया तो वो बिना कुच्छ कहे फर्श पर लेट गये और मैं उन पर सवार हो कर उन्हे चोदने लगी. हम दोनो साथ साथ ही झाड़ गये.
क्रमशः............
रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -68
गतान्क से आगे...
हमने उठ कर एक दूसरे के बदन को तौलिए से पूंच्छा. हम उसी अवस्था मे वापस बेडरूम मे आ गये. मैने घड़ी पर निगाह डाली. रात के दस बज चुके थे. अभी तो पूरी रात बाकी थी अभी तो बहुत खेल बाकी था. देखना था कि मैं स्वामी जी को हरा देती या खुद उनसे रहम की भीख माँगने लगती.
स्वामी जी के चेहरे पर थकान का कोई नामो निशान भी नही दिखाई दे रहा था. वो पूरी रात बिना रुके मुझे चोद सकने की हिम्मत रखते थे. मैं ही दिन भर की चुदाई से पस्त हो गयी थी.
दोनो वापस बिस्तर पर आकर लेट गये. स्वामी जी मुझसे लिपट कर लेट गये. मैं भी उनसे इस तरह लिपट गयी मानो कोई कमजोर लता अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश मे मजबूत पेड का सहारा लेता हो.
हम दोनो एक दूसरे को सहला रहे थे और चूम रहे थे. मैं उनके बलों भरे सीने पर अपनी उंगलियाँ फिर रही थी तो वो मेरे चिकने सीने को सहला रहे थे, उनके चेहरे पर उगी लंबी दाढ़ी उनके अस्तित्व को और ज़्यादा रोमॅंटिक बना रही थी. मैं अपने गाल्लों को उनकी दाढ़ी पर घिसने लगी. इससे बदन मे एक गुदगुदी सी दौड़ने लगी.
मैं कुच्छ ही देर मे गहरी नींद मे डूब गयी. पता नही कितनी देर तक वो मुझे प्यार करते रहे. मैं उनकी हरकतों से बेख़बर सो रही थी. पता नही कब उनका लंड वापस उत्तेजी हो कर खड़ा हो गया. जब उन्हों ने मुझे सीधा कर के मेरी योनि मे अपने लंड डाल दिया तो मेरी नींद खुल गयी.
उन्हों ने मेरी दोनो टाँगों को अपने कंधे पर रख लिया था. अपने दोनो हाथों मे मेरे दोनो स्तन थाम रखे थे. उनका ही सहारा लेकर वो मेरे उपर झुक कर मुझे चोद रहे थे. उनके हर धक्के के साथ मेरा पूरा बदन बुरी तरह हिल रहा था. मैं काफ़ी देर तक यूँ ही बिना किसी आवेग के बिल्कुल निस्चल पड़ी रही. ऐसा लग रहा था मानो जिस्म मे अब जान ही नही बची हो. मेरा मुँह खुला हुआ था और मेरे सीने धोक्नि की तरह उपर नीचे गिर रहे थे.
काफ़ी देर तक इसी तरह चोदने के बाद जब उन्हों ने मुझे उल्टा किया तो मैं अपने हाथों और पैरों मे ज़ोर नही ला सकी. मैं बिस्तर पर किसी लाश की तरह पसरी रही. स्वामी जी मुझे इतनी जल्दी छ्चोड़ने वाले थे नही उन्हों ने मेरी कमर के नीचे दो तकिये लगा कर वापस मेरे नितंबों को उँचा किया और इस बार उनका हमला मेरी योनि की जगह मेरा गुदा रहा उन्हों ने बिना किसी चिकनाई के ईक दम से मेरे नितंबों को चौड़ा कर अपने लंड को मेरी गंद मे थेल दिया. मैं दर्द से च्चटपटा उठी. मुझे ज़ोर से चक्कर आया और मैं अंधेरो मे डूबती चली गयी.
पता नही कितनी देर मैं बेहोश पड़ी रही. और स्वामी जी मेरे जिस्म को कितनी देर नोचते रहे कुच्छ पता नही चला. सुबह पाँच बजे स्वामी जी ने मेरे चेहरे पर पानी के छिंट डाल कर मुझे होश मे लाया.
वो मुझ पर झुके हुए थे. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार डाल दिया.
“ सॉरी गुरुजी मैं आपको बीच मे ही छ्चोड़ कर चली गयी थी. पता नही मुझे ज़ोर से चक्कर आया और फिर मुझे कुच्छ भी होश नही रहा.”
“ कोई बात नही पहले पहले ऐसा ही होता है. धीरे धीरे तुम सेक्स की इतनी आदि हो जाओगी कि हर वक़्त तुम्हारी योनि मे एक आग जलती रहे गी. हर पल सिर्फ़ सेक्स और सेक्स ही सूझेगा.” स्वामी जी ने कहा.
“मुझे अब नित्य कर्म के लिए निकलना है उसके बाद पूजा पाठ योगा इन सब मे दोपहर हो जाएगी तुम इस दौरान आराम कर लेना.” स्वामी जी ने कहा.
“ जाने से पहले एक बार……..” मैने अपनी बात अधूरी ही रख दी. कहने को कुच्छ नही था दोनो समझ रहे थे बात का मर्म.
मैने अपनी टाँगें हवा मे उँची कर छत की ओर तान दी और अपनी उंगलियों से अपनी योनि को फैला कर उन्हे न्योता दिया. स्वामी जी मेरे न्योते को स्वीकार कर मेरे हवा मे उठी टाँगो को थाम लिया और उन्हे फैला कर मेरी खोली योनि की फांको को एक बार सहलाया. वो मुझे तडपा रहे थे. मैं उत्तेजित हो कर उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि की ओर खींचा और साथ साथ अपनी कमर को उनकी ओर उठा दिया.
उन्हों ने मेरी टाँगो को छ्चोड़ कर अपनी हथेलियों को मेरे कंधे की बगल मे रख कर सहारा लिया और एक बार फिर हम सेक्स के आनंद मे डूब गये. मेरी थकान अब काफ़ी हद तक कम हो चुक्का था इसलिए मैने भी खूब एंजाय किया. काफ़ी लंबी चुदाई के बाद हम दोनो एक साथ स्खलित हो गये.
मैं निढाल होकर वापस बिस्तर पर गिर गयी. मगर इस उम्र मे भी उनके जिस्म मे किसी तरह की शिथिलता नही थी. मैं टकटकी मारे उनको देखती रह गयी. स्वामी जी मेरे माथे पर अपना हाथ फेरते हुए कमरे से बाहर निकल गये.
उनके जाने के कुच्छ देर बाद तीन युवतियाँ कमरे मे आई. मैं बिस्तर पर पसरी हुई थी मेरी दोनो टाँगे फैली हुई थी और योनि मुख पर एवं आस पास जांघों पर सफेद सफेद वीर्य के थक्के लगे हुए थेऊन्होन ने मेरे पूरे जिस्म की सुगंधित तेल से और जड़ी बूटियों से मालिश की. फिर तीनो ने मुझे अपने साथ बाथरूम मे ले जाकर खूब नहलाया. फिर बाहर आकर उन्हों ने मुझे कमरे के बीच खड़ा कर पूरे बदन पर बहुत ही भीनी खुश्बू वाला इत्र लगाया. फिर उन्हों ने एक बहुत ही झीनी सी नाइटी मुझे पहनाई. वो मेरे हाथों को थामे बेड तक ले आए. बेड के साइड टेबल पर एक तश्तरी भर सूखे मेवे रखे और फल रखे थे. उन्हों ने मुझे उनका नाश्ता कराया.
“ अब आप आराम कर लें. वरना स्वामी जी के साथ सहवास का पूरा मज़ा लेने से आप वंचित रह जाएँगी. किसी भी तरह की सेवा की ज़रूरत हो तो पलंग पर लगी इस घंटी को दबा दीजिएगा.” एक ने मुझे कहा और फिर सारे मुझे उस कमरे मे अकेला छ्चोड़ कर बाहर निकल गयी. मैं भी बुरी तरह थॅकी होने की वजह से लेट गयी और लेट ते ही नींद आ गयी. मैं जिस हालत मे सोई थी. घंटो तक बिना हीले दुले उसी हालत मे सोती रही.
दोपहर को भोजन के वक़्त मुझे उन्ही युवतियों ने आकर उठाया. कुच्छ ही देर मे स्वामी जी भी आ गये. हम दोनो ने कमरे मे ही खाना खाया. खाना खाते वक़्त मैं उनकी एक जाँघ पर बैठी हुई थी और उस अवस्था मे हम दोनो ने एक दूसरे को खाना खिलाया. खाना ख़तम होने के बाद उसे नशीले शरबत का हम दोनो ने सेवन किया.
खाना खाने के बाद हमारे बीच एक और राउंड चला . इस बार ये खेल तकरीबन एक घंटे तक चला. इस बीच उन्हों ने दो बार अपने वीर्य की बौच्हर मेरी कोख मे की और मैं तीन बार स्खलित हुई. फिर हम दोनो लिपट कर सो गये.
इसी तरह रोज पाँच सात बार चुदाई हो ही जाती थी. गुरु जी के बल का उनकी पवर का मैने तो लोहा मान लिया था. किसी भी नॉर्मल 25-30 साल के मर्द के लिए भी रोज पाँच सात बार स्खलन करना नामुमकिन काम था. और ऐसा भी नही की जल्दी झाड़ जाते हों. पंद्रह मिनिट से पहले तो कभी उनका रस नही निकला.
मैं चुदाई की इतनी आदि हो गयी थी की हर वक़्त मेरी चूत मे खुजली चलती रहती थी. दिन मे कई कई बार चुदवा कर भी मेरा मन नही भरता था. स्वामी जी ने चोद चोद कर मेरी सारी खाज मिटाने का जिम्मा ले रखा था.
चार दिन ऐसे ही बीत गये. पाँचवे दिन स्वामीजी ने कहा कि कोई मिनिस्टर आने वाला है. उन्हों ने उस मिनिस्टर से आश्रम की ज़मीन मुफ़्त मे हासिल की थी. बदले मे उन्हे आश्रम के इनऑयरेशन मे चीफ गेस्ट बनाया था. चीफ गेस्ट बनने को राज़ी होना तो बस एक दिखावा था. असल मे उन्हे आश्रम मे भरपूर सेक्स का आनंद लेने के लिए बुलाया गया था. स्वामी जी ने भी उन्हे भरपूर मौज मस्ती का अस्वासन दिया था. मंत्री जी को भी रोज रोज नयी औरत की ज़रूरत होती थी.
“ मंत्री जी का स्वागत तुम करोगी. उनके साथ जो चेले चपाते होंगे उनका ख्याल रखने के लिए आश्रम की दूसरी शिष्याएँ हैं. तुम सिर्फ़ मंत्री जी का ख़याल रखोगी. उनकी पूरे तन मन से सेवा करना. उनको किसी तरह की शिकायत का मौका मत देना. उनसे मुझे और भी कई काम निकलवाने हैं.”
मैं राज़ी हो गयी.
“ ये दवा जब मंत्री जी आए तो ले लेना” स्वनी जी ने मुझे एक टॅबलेट देते हुए कहा.
मैने जिगयसा वश उनकी तरफ देखा तो उन्हों ने आगे कहा,” ये दवा लेने के बाद तुम फ्री होकर सेक्स कर सकती हो 24 घंटे ये दवा काम करती है इस दौरान तुम्हे प्रेग्नेन्सी नही होगी. ये शुक्राणु को निष्टेज करता है.”
मैने चुपचाप उनसे दवा ले ली.
अगले दिन शाम को स्वामी जी उन्हे ले कर आए. उनकी एक झलक देखते ही मुझे उनसे नफ़रत हो गयी. नफ़रत के ही लायक थे वो. सवा सौ किलो का बोझ था वो धरती पर. आगे से पेट किसी गुब्बारे की तरह फूला हुआ था. एक दम भैंस की तरह काली रंगत और चेहरा उतना ही कुरूप. पूरे चेहरे पर चेचक के दाग थे.
हर वक़्त मुँह मे गुटखा चबाते रहते थे. होंठों के कोने हल्के से फटे हुए थे जिन पर गुटके के दाने निकल आते थे. मुझे घिंन आ गयी उनके पास जाने मे. बिल्कुल जुगली करता हुआ कोई भैंसा प्रतीत हो रहा था.
मैने स्वामी जी की दवा उत्तेजक शरबत के साथ ले ली. मैं उनक संपर्क मे आने से पहले अपने मन मस्तिष्क को उत्तेजना से भर देना चाहती थी जिससे किसी तरह का कोई विरोध, कोई नफ़रत या झिझक के लिए जगह नही रहे.
मैं स्वामी जी के कमरे मे सिर्फ़ एक पतली सारी बदन पर लपेटे रहती थी. इसके अलावा बदन पर और कुच्छ भी पहनने को स्वामी जी ने मना कर दिया था. मेरे बड़े बड़े बूब्स मेरी हर चाल के साथ हिलने लगते थे. सामने से मेरे दोनो स्तनो की भरपूर झलक मिलती थी और पीछे से मेरे नितंब साफ नज़र आते थे.
दोनो आकर कमरे मे सोफे पर बैठ गये. स्वामी जी ने मुझे बुलाया.
क्रमशः............
गतान्क से आगे...
हमने उठ कर एक दूसरे के बदन को तौलिए से पूंच्छा. हम उसी अवस्था मे वापस बेडरूम मे आ गये. मैने घड़ी पर निगाह डाली. रात के दस बज चुके थे. अभी तो पूरी रात बाकी थी अभी तो बहुत खेल बाकी था. देखना था कि मैं स्वामी जी को हरा देती या खुद उनसे रहम की भीख माँगने लगती.
स्वामी जी के चेहरे पर थकान का कोई नामो निशान भी नही दिखाई दे रहा था. वो पूरी रात बिना रुके मुझे चोद सकने की हिम्मत रखते थे. मैं ही दिन भर की चुदाई से पस्त हो गयी थी.
दोनो वापस बिस्तर पर आकर लेट गये. स्वामी जी मुझसे लिपट कर लेट गये. मैं भी उनसे इस तरह लिपट गयी मानो कोई कमजोर लता अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश मे मजबूत पेड का सहारा लेता हो.
हम दोनो एक दूसरे को सहला रहे थे और चूम रहे थे. मैं उनके बलों भरे सीने पर अपनी उंगलियाँ फिर रही थी तो वो मेरे चिकने सीने को सहला रहे थे, उनके चेहरे पर उगी लंबी दाढ़ी उनके अस्तित्व को और ज़्यादा रोमॅंटिक बना रही थी. मैं अपने गाल्लों को उनकी दाढ़ी पर घिसने लगी. इससे बदन मे एक गुदगुदी सी दौड़ने लगी.
मैं कुच्छ ही देर मे गहरी नींद मे डूब गयी. पता नही कितनी देर तक वो मुझे प्यार करते रहे. मैं उनकी हरकतों से बेख़बर सो रही थी. पता नही कब उनका लंड वापस उत्तेजी हो कर खड़ा हो गया. जब उन्हों ने मुझे सीधा कर के मेरी योनि मे अपने लंड डाल दिया तो मेरी नींद खुल गयी.
उन्हों ने मेरी दोनो टाँगों को अपने कंधे पर रख लिया था. अपने दोनो हाथों मे मेरे दोनो स्तन थाम रखे थे. उनका ही सहारा लेकर वो मेरे उपर झुक कर मुझे चोद रहे थे. उनके हर धक्के के साथ मेरा पूरा बदन बुरी तरह हिल रहा था. मैं काफ़ी देर तक यूँ ही बिना किसी आवेग के बिल्कुल निस्चल पड़ी रही. ऐसा लग रहा था मानो जिस्म मे अब जान ही नही बची हो. मेरा मुँह खुला हुआ था और मेरे सीने धोक्नि की तरह उपर नीचे गिर रहे थे.
काफ़ी देर तक इसी तरह चोदने के बाद जब उन्हों ने मुझे उल्टा किया तो मैं अपने हाथों और पैरों मे ज़ोर नही ला सकी. मैं बिस्तर पर किसी लाश की तरह पसरी रही. स्वामी जी मुझे इतनी जल्दी छ्चोड़ने वाले थे नही उन्हों ने मेरी कमर के नीचे दो तकिये लगा कर वापस मेरे नितंबों को उँचा किया और इस बार उनका हमला मेरी योनि की जगह मेरा गुदा रहा उन्हों ने बिना किसी चिकनाई के ईक दम से मेरे नितंबों को चौड़ा कर अपने लंड को मेरी गंद मे थेल दिया. मैं दर्द से च्चटपटा उठी. मुझे ज़ोर से चक्कर आया और मैं अंधेरो मे डूबती चली गयी.
पता नही कितनी देर मैं बेहोश पड़ी रही. और स्वामी जी मेरे जिस्म को कितनी देर नोचते रहे कुच्छ पता नही चला. सुबह पाँच बजे स्वामी जी ने मेरे चेहरे पर पानी के छिंट डाल कर मुझे होश मे लाया.
वो मुझ पर झुके हुए थे. मैने उनके गले मे अपनी बाँहों का हार डाल दिया.
“ सॉरी गुरुजी मैं आपको बीच मे ही छ्चोड़ कर चली गयी थी. पता नही मुझे ज़ोर से चक्कर आया और फिर मुझे कुच्छ भी होश नही रहा.”
“ कोई बात नही पहले पहले ऐसा ही होता है. धीरे धीरे तुम सेक्स की इतनी आदि हो जाओगी कि हर वक़्त तुम्हारी योनि मे एक आग जलती रहे गी. हर पल सिर्फ़ सेक्स और सेक्स ही सूझेगा.” स्वामी जी ने कहा.
“मुझे अब नित्य कर्म के लिए निकलना है उसके बाद पूजा पाठ योगा इन सब मे दोपहर हो जाएगी तुम इस दौरान आराम कर लेना.” स्वामी जी ने कहा.
“ जाने से पहले एक बार……..” मैने अपनी बात अधूरी ही रख दी. कहने को कुच्छ नही था दोनो समझ रहे थे बात का मर्म.
मैने अपनी टाँगें हवा मे उँची कर छत की ओर तान दी और अपनी उंगलियों से अपनी योनि को फैला कर उन्हे न्योता दिया. स्वामी जी मेरे न्योते को स्वीकार कर मेरे हवा मे उठी टाँगो को थाम लिया और उन्हे फैला कर मेरी खोली योनि की फांको को एक बार सहलाया. वो मुझे तडपा रहे थे. मैं उत्तेजित हो कर उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि की ओर खींचा और साथ साथ अपनी कमर को उनकी ओर उठा दिया.
उन्हों ने मेरी टाँगो को छ्चोड़ कर अपनी हथेलियों को मेरे कंधे की बगल मे रख कर सहारा लिया और एक बार फिर हम सेक्स के आनंद मे डूब गये. मेरी थकान अब काफ़ी हद तक कम हो चुक्का था इसलिए मैने भी खूब एंजाय किया. काफ़ी लंबी चुदाई के बाद हम दोनो एक साथ स्खलित हो गये.
मैं निढाल होकर वापस बिस्तर पर गिर गयी. मगर इस उम्र मे भी उनके जिस्म मे किसी तरह की शिथिलता नही थी. मैं टकटकी मारे उनको देखती रह गयी. स्वामी जी मेरे माथे पर अपना हाथ फेरते हुए कमरे से बाहर निकल गये.
उनके जाने के कुच्छ देर बाद तीन युवतियाँ कमरे मे आई. मैं बिस्तर पर पसरी हुई थी मेरी दोनो टाँगे फैली हुई थी और योनि मुख पर एवं आस पास जांघों पर सफेद सफेद वीर्य के थक्के लगे हुए थेऊन्होन ने मेरे पूरे जिस्म की सुगंधित तेल से और जड़ी बूटियों से मालिश की. फिर तीनो ने मुझे अपने साथ बाथरूम मे ले जाकर खूब नहलाया. फिर बाहर आकर उन्हों ने मुझे कमरे के बीच खड़ा कर पूरे बदन पर बहुत ही भीनी खुश्बू वाला इत्र लगाया. फिर उन्हों ने एक बहुत ही झीनी सी नाइटी मुझे पहनाई. वो मेरे हाथों को थामे बेड तक ले आए. बेड के साइड टेबल पर एक तश्तरी भर सूखे मेवे रखे और फल रखे थे. उन्हों ने मुझे उनका नाश्ता कराया.
“ अब आप आराम कर लें. वरना स्वामी जी के साथ सहवास का पूरा मज़ा लेने से आप वंचित रह जाएँगी. किसी भी तरह की सेवा की ज़रूरत हो तो पलंग पर लगी इस घंटी को दबा दीजिएगा.” एक ने मुझे कहा और फिर सारे मुझे उस कमरे मे अकेला छ्चोड़ कर बाहर निकल गयी. मैं भी बुरी तरह थॅकी होने की वजह से लेट गयी और लेट ते ही नींद आ गयी. मैं जिस हालत मे सोई थी. घंटो तक बिना हीले दुले उसी हालत मे सोती रही.
दोपहर को भोजन के वक़्त मुझे उन्ही युवतियों ने आकर उठाया. कुच्छ ही देर मे स्वामी जी भी आ गये. हम दोनो ने कमरे मे ही खाना खाया. खाना खाते वक़्त मैं उनकी एक जाँघ पर बैठी हुई थी और उस अवस्था मे हम दोनो ने एक दूसरे को खाना खिलाया. खाना ख़तम होने के बाद उसे नशीले शरबत का हम दोनो ने सेवन किया.
खाना खाने के बाद हमारे बीच एक और राउंड चला . इस बार ये खेल तकरीबन एक घंटे तक चला. इस बीच उन्हों ने दो बार अपने वीर्य की बौच्हर मेरी कोख मे की और मैं तीन बार स्खलित हुई. फिर हम दोनो लिपट कर सो गये.
इसी तरह रोज पाँच सात बार चुदाई हो ही जाती थी. गुरु जी के बल का उनकी पवर का मैने तो लोहा मान लिया था. किसी भी नॉर्मल 25-30 साल के मर्द के लिए भी रोज पाँच सात बार स्खलन करना नामुमकिन काम था. और ऐसा भी नही की जल्दी झाड़ जाते हों. पंद्रह मिनिट से पहले तो कभी उनका रस नही निकला.
मैं चुदाई की इतनी आदि हो गयी थी की हर वक़्त मेरी चूत मे खुजली चलती रहती थी. दिन मे कई कई बार चुदवा कर भी मेरा मन नही भरता था. स्वामी जी ने चोद चोद कर मेरी सारी खाज मिटाने का जिम्मा ले रखा था.
चार दिन ऐसे ही बीत गये. पाँचवे दिन स्वामीजी ने कहा कि कोई मिनिस्टर आने वाला है. उन्हों ने उस मिनिस्टर से आश्रम की ज़मीन मुफ़्त मे हासिल की थी. बदले मे उन्हे आश्रम के इनऑयरेशन मे चीफ गेस्ट बनाया था. चीफ गेस्ट बनने को राज़ी होना तो बस एक दिखावा था. असल मे उन्हे आश्रम मे भरपूर सेक्स का आनंद लेने के लिए बुलाया गया था. स्वामी जी ने भी उन्हे भरपूर मौज मस्ती का अस्वासन दिया था. मंत्री जी को भी रोज रोज नयी औरत की ज़रूरत होती थी.
“ मंत्री जी का स्वागत तुम करोगी. उनके साथ जो चेले चपाते होंगे उनका ख्याल रखने के लिए आश्रम की दूसरी शिष्याएँ हैं. तुम सिर्फ़ मंत्री जी का ख़याल रखोगी. उनकी पूरे तन मन से सेवा करना. उनको किसी तरह की शिकायत का मौका मत देना. उनसे मुझे और भी कई काम निकलवाने हैं.”
मैं राज़ी हो गयी.
“ ये दवा जब मंत्री जी आए तो ले लेना” स्वनी जी ने मुझे एक टॅबलेट देते हुए कहा.
मैने जिगयसा वश उनकी तरफ देखा तो उन्हों ने आगे कहा,” ये दवा लेने के बाद तुम फ्री होकर सेक्स कर सकती हो 24 घंटे ये दवा काम करती है इस दौरान तुम्हे प्रेग्नेन्सी नही होगी. ये शुक्राणु को निष्टेज करता है.”
मैने चुपचाप उनसे दवा ले ली.
अगले दिन शाम को स्वामी जी उन्हे ले कर आए. उनकी एक झलक देखते ही मुझे उनसे नफ़रत हो गयी. नफ़रत के ही लायक थे वो. सवा सौ किलो का बोझ था वो धरती पर. आगे से पेट किसी गुब्बारे की तरह फूला हुआ था. एक दम भैंस की तरह काली रंगत और चेहरा उतना ही कुरूप. पूरे चेहरे पर चेचक के दाग थे.
हर वक़्त मुँह मे गुटखा चबाते रहते थे. होंठों के कोने हल्के से फटे हुए थे जिन पर गुटके के दाने निकल आते थे. मुझे घिंन आ गयी उनके पास जाने मे. बिल्कुल जुगली करता हुआ कोई भैंसा प्रतीत हो रहा था.
मैने स्वामी जी की दवा उत्तेजक शरबत के साथ ले ली. मैं उनक संपर्क मे आने से पहले अपने मन मस्तिष्क को उत्तेजना से भर देना चाहती थी जिससे किसी तरह का कोई विरोध, कोई नफ़रत या झिझक के लिए जगह नही रहे.
मैं स्वामी जी के कमरे मे सिर्फ़ एक पतली सारी बदन पर लपेटे रहती थी. इसके अलावा बदन पर और कुच्छ भी पहनने को स्वामी जी ने मना कर दिया था. मेरे बड़े बड़े बूब्स मेरी हर चाल के साथ हिलने लगते थे. सामने से मेरे दोनो स्तनो की भरपूर झलक मिलती थी और पीछे से मेरे नितंब साफ नज़र आते थे.
दोनो आकर कमरे मे सोफे पर बैठ गये. स्वामी जी ने मुझे बुलाया.
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -69
गतान्क से आगे...
“ ये हैं मंत्री जी. रतिंदर सिंग चीमा. नाम सुना है इनका?” स्वामी जी ने उनका इंट्रोडक्षन करवाया. मैने उनका अभिवादन मुस्कुरा कर अपने दोनो हाथों को जोड़ कर किया. उन्हों ने मेरी ठुड्डी के नीचे अपना हाथ लगा कर मेरे चेहरे को उपर उठाया.
“ अद्भुत स्वामी……कैसे इस हूर को फाँस लिया. ये तो तेरे स्टॅंडर्ड से बहुत उपर की चीज़ है.” उनका इस तरह का बेबाक कथन सुन कर हम दोनो सकपका गये.
वो मुझे देख कर भद्दी तरह से हंस पड़े. उनकी चील जैसी नज़रें अपने शिकार का सिर से पैर तक मुआयना कर रही थी. मैं जानती थी की मेरा उन्मुक्त योवन उस बारीक सारी के ओट से बड़े ही उत्तेजक तरीके से नज़र आ रहा होगा. मेरी पतली कमर, भरे और भारी नितंब, सपाट कसा हुआ पेट और बड़ी बड़ी चूचियाँ देख कर तो उनकी जीभ उनके काले मोटे होंठों पर फिरने लगी.
“ मंत्री जी ये है हमारी खास शिष्या है दिशा. हमारे आश्रम की एक शिष्या है. या कहें हमारे आश्रम का कोहिनूर है. ये अभी नयी नयी आए है. इसलिए आपने इसे पहली बार ही देखा होगा. इसे ख़ास आपकी सेवा के लिए बुलाया है.” फिर मेरी ओर मूड कर उन्हों ने मुझे आदेश दिया “दिशा आज हमारे इन ख़ास अतिथि की सेवा मे कोई कमी नही रहनी चाहिए. इनके लिए हमारे आश्रम का वो ख़ास शरबत ले कर आओ.”
“ स्वामी मंगवा उस शरबत को साला शिलाजीत भी आजकल कोई असर नही कर पाती. एक काम और करना एक बॉटल भर कर मेरी गाड़ी मे रखवा देना. अक्सर ज़रूरत पड़ती रहती है. कहाँ से लाया है इसे? हाहाहा….” वो एक बार फिर एक भद्दी सी हँसी हंसा.
स्वामी जी ने मंत्री जी की ओर मूड कर कहा “रतिंदर जी ये शरबत बहुत ही ख़ास है. संभोग से पहले इसका सेवन करने से आदमी मे किसी घोड़े की तरह ताक़त आ जाती है. फिर तो तू घंटों तक बिना किसी कमज़ोरी के संभोग कर सकता है. बीस साल लगे इसका फ़ॉर्मूला तैयार करने मे. ढेर सारी जड़ी बूटियाँ डाली हैं इनमे. कई बार स्खलन के बाद भी लिंग की उत्तेजना कम नही होती है. इसे एक तरह से हमारा देसी वियाग्रा कह सकते हो.” अब स्वामी जी भी मंत्री जी से इस तरह बात करने लगे मानो बरसों की पहचान हो.
मैं फ्रिड्ज से दो ग्लास शरबत का भर कर ले आई. दोनो पुरुष लंबे वाले सोफे पर बैठे थे. मैं झुक कर उनको शरबत देने लगी तो स्वामी जी ने मेरे हाथ से ट्रे ले लिया और उसे सामने की टेबल पर रख कर मेरी कलाई पकड़ ली.
“ स्वामी इसके मम्मे तो काफ़ी बड़े और अच्छे कसे हुए लग रहे हैं. साली की चूत भी काफ़ी कसी हुई होगी. तूने इसे चोद चोद कर ढीली तो नही कर दिया ना?” मंत्री जी फिर गंदी तरीके से हँसने लगे.
“ आओ हमारे बीच बैठ कर हमे शरबत का सेवन करा ओ.” मैं उनके हाथों मे अपना हाथ रखे उनके बीच आकर बैठ गयी. मैं दोनो को अलग अलग ग्लास से शरबत पिलाने लगी. जब मैं ग्लास लेने को झुकी तो मेरी सारी का आँचल नीचे हो गया और मेरे झूलते हुए स्तन नज़र के सामने आ गये. स्वामी जी ने मंत्री जी का एक हाथ थाम कर उसे मेरे स्तनो पर रखा. तो मंत्री जी मेरे एक स्तन को हल्के से सहलाते हुए मसल दिए.
स्वामी जी ने मेरे कंधे पर टिकी सारी का आँचल नीचे कर दिया. मेरे दोनो दूधिया स्तन बाहर निकल आए.
“ देखिए मंत्री जी कैसी लगी हमारी ये छ्होटी सी भेंट? ”
“ जबरदस्त माल है. भाई स्वामी जी आपने तो हमे खुश कर दिया.” मंत्री जी की आवाज़ किसी फटे बाँस की तरह थी. स्वामी जी ने अपनी एक हथेली मेरे स्तन पर रखी और दूसरे हाथ से मंत्री जी का हाथ लेकर मेरे दूसरे स्तन पर रख दिया.
“ छ्छू कर तो देखिए ऐसी चिकनी और मुलायम है मानो संगमरमर की तराशि हुई कोई मूरत हो. और ऐसी मुलायम मानो मक्खन की डाली.” स्वामी जी मेरे एक स्तन को बुरी तरह मसल्ने लगे थे.
दूसरे स्तन को रतिंदर जी की उंगलिया आटे की तरह गूँथ रही थी. अचानक रतिंदर ने अपनी तरफ वाले निपल को अपनी उंगलियों से मसल्ते हुए अपने मुँह मे भर लिया. और उसे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगे. उनका एक हाथ मेरी सारी की प्लीट्स पर उलझ रहा था. उसे देख कर स्वामी जी ने एक झटके मे मेरी सारी के प्लीट्स खोल दिए अब सारी जांघों पर से हटने के लिए तैयार थी. मैं पेटिकोट और पॅंटी नही होने की वजह से सारी को एक बार कमर के इर्द गिर्द लप्पेट कर गाँठ लगा लेती थी जिससे सारी को पहनने मे कोई दिक्कत नही आए. स्वामी जी ने मेरे कमर पर लगी गाँठ को खोल कर मुझे पूरी तरह से नंगी कर दिया.
अब रतिंदर जी एक हाथ से मेरे स्तन को मसल्ते हुए उसे चूस रहे थे और दूसरे हाथ की उंगलियों से मेरी योनि को सहला रहे थे. मैने अपनी टाँगें फैला दी जिससे उन्हे किसी तरह की कोई परेशानी नही हो. उनकी उंगलिया मेरी योनि की फांको को अलग करती हुई अंदर चली गयी.
उन्हों ने मेरे निपल को और स्तन को चाट चाट कर गीला कर दिया था. गुटखे के कई दाने भी मेरे निपल के इधर उधर लगे हुए थे. मुझे बड़ी घिंन आई मगर कुच्छ कर नही सकती थी. मैं तो उस वक़्त उन दोनो के बीच किसी कठपुतली की तरह नाच रही थी. वो मुझसे जैसा भी चाहते थे करवा रहे थे. मैने अपने हाथ से उन गुटके के दानो को पोंच्छ दिया.
वो मेरे आशय को समझ गये थे. उन्हे मेरी ये हरकत काफ़ी बुरी लगी कि एक लौंडिया इस तरह उनका अपमान करे. इसलिए अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मेरे स्तनो को बुरी तरह काटने और निपल को दन्तो से चबाने लगे. मैं दर्द से बुरी तरह च्चटपटाने लगी. उनके काटने से मैं ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी. मेरी आँखे आँसुओं से भर गयी थी.
मैं जानती थी कि स्वामी जी का कमरा पूरी तरह साउंड प्रूफ हैं इसलिए मेरी दर्द भारी चीखों का उस कमरे मे ही दम घुट जाना था. किसी को पता भी नही चला कि उस मोटे हाथी स्वरूप मंत्री ने मुझे किस बुरी तरह कुचला.
जब काफ़ी देर तक यही दौर चलता रहा तो स्वामी जी ने ही उनको हटाया.
“ रतिंदर जी अब तो छ्चोड़ दो बेचारी को कई जगह से खून छलक आया है. औरत है कोई बेजान पुतला तो है नही. बेचारी मर जाएगी.” उन्हों ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा. तब जा कर रतिंदर जी ने मेरे स्तनो को छ्चोड़ कर अपना सिर उठाया. मैने देखा की उत्तेजना से उनकी आँखें लाल हो गयी हैं. वो इस वक़्त बहुत ही ख़तरनाक कोई आदमख़ोर जानवर की तरह लग रहे थे.
मैने देखा मेरे दोनो स्तनो पर अनगिनत दांतो के निशान पड़ गये थे. कई जगह तो घाव भी हो गया था और उनसे हल्का हल्का खून निकल रहा था. वो आदमी नही पूरा जानवर था. ऐसा व्यवहार तो कोई किसी रांड़ से भी नही करता. उसकी हरकतें किसी वहशी की तरह थी,
“ चल उठ यहाँ से. उठ कर खड़ी हो जा. देखूं स्वामी का माल कैसा है. “ उन्हों ने कहा. मैं उठ कर खड़ी हो गयी. वो मेरे बदन को उपर से नीचे तक घूरते हुए किसी सौदेबाज की तरह परख रहे थे. उनकी आँखों की रंगत और सुर्ख हो गयी.
“ अपने हाथ सिर के उपर कर और फिर टाँगे फैला.” मैने वैसा ही किया.
“ अब इसी अवस्था मे घूम कर पीछे हो जा.” मैं हाथ उठाए हुए पीछे की ओर घूम गयी.
“ वाह क्या गांद हैं तेरी…….एक दम तरबूज की तरह. खूब रसीले होंगे. अब अपने हाथों से गांद चौड़ी कर.” वो मुझे ऐसे आदेश दे रहे थे मानो मैं उनकी खरीदी हुई गुलाम हू. स्वामी जी की खातिर मैं चुप रही और जैसा उसने कहा मैने वैसा ही किया.
“ स्वामी तेरा माल तो पटाखा है. साली को रगड़ रगड़ कर चोदने मे मज़ा आ जाएगा. ये रांड़ आज खूब मज़े देगी. आज रात भर साली को कुतिया की तरह चोदुन्गा.”उन्हों ने बड़े ही भद्दे तरीके से कहा. मैने स्वामी जी की ओर देखा तो स्वामी जी ने आँखों के इशारे से मुझे अपने उपर संयम रखने को कहा.
“ चल रंडी मेरे सामने बैठ कर मेरा लंड चूस.” उन्हों ने पॅंट के उपर से अपने मोटे लिंग को दबाते हुए कहा.
स्वामी जी मेरे संग कर रहे बर्ताव से थोड़े विचलित हो उठे.
“ मंत्री जी पूरी रात पड़ी है थोड़ा प्यार से इसके साथ खेलना तो ये भी आपका साथ देगी नही तो आप इसे रेप करते रहेंगे और ये दर्द से बिलखती रहेगी. कोई मज़ा नही आएगा.” स्वामी जी ने मेरा बचाव करते हुए कहा.
“ अबे स्वामी तूने मुझे यहा मज़े के लिए बुलाया है या अपना भाषण सुनाने. चल उठ और फुट यहाँ से. दफ़ा हो जा तुरंत.” उन्हों ने स्वामी जी को फटकार लगाई.
“लेकिन…” स्वामी जी ने कुच्छ विरोध करना चाहा.
“ लगता है स्वामी ज़मीन मिलते ही तुझ पर चर्बी कुच्छ ज़्यादा चढ़ गयी है. मैं मंत्री हूँ ऐसा चार्ज लगाउन्गा की ज़मीन तो हाथ से जाएगी ही तू भी धोखे से सरकारी ज़मीन हड़पने के इल्ज़ाम मे जैल की रोटियाँ तोड़ेगा. अब भेजा मत खराब कर और भाग यहाँ से. हां जाते हुए दरवाजा बाहर से बंद कर देना जिससे ये मच्चली मेरे चंगुल से भाग नही सके. सुबह आकर ले जाना तेरी इस तितली को.” स्वामी जी कुच्छ समंजस भाव लिए मुझे देखते रहे. मैने याचना भरी आँखो से उन्हे रुकने का इशारा किया.
“ क्यों बे तेरी समझ मे नही आ रहा है क्या?” अब तो वो पूरी नग्नता पर उतर आए थे. स्वामीजी जिन्हे हम इतना आदर सम्मान देते हैं वो उन्हे गाली गलोच करके बुलाने लगा.
स्वामी जी ने हताशा से अपने कंधे उचकाय और उठ कर किसी अपराधी की तरह भारी मन से कमरे से बाहर निकल गये.
मैने उन्हे रोकने के लिए हाथ बढ़ाया मगर उसे उन्हों ने अनदेखा कर दिया. फिर दरवाजा बंद होने की और कुण्डी लगने की आवाज़ से मेरी आँखें दोबारा छलक आई. मैं अब किसी पर कटी चिड़िया की तरह पिंजरे मे फँसी हुई थी और सामने मुझे नोच खाने के लिए बिल्ला तैयार था.
क्रमशः............
गतान्क से आगे...
“ ये हैं मंत्री जी. रतिंदर सिंग चीमा. नाम सुना है इनका?” स्वामी जी ने उनका इंट्रोडक्षन करवाया. मैने उनका अभिवादन मुस्कुरा कर अपने दोनो हाथों को जोड़ कर किया. उन्हों ने मेरी ठुड्डी के नीचे अपना हाथ लगा कर मेरे चेहरे को उपर उठाया.
“ अद्भुत स्वामी……कैसे इस हूर को फाँस लिया. ये तो तेरे स्टॅंडर्ड से बहुत उपर की चीज़ है.” उनका इस तरह का बेबाक कथन सुन कर हम दोनो सकपका गये.
वो मुझे देख कर भद्दी तरह से हंस पड़े. उनकी चील जैसी नज़रें अपने शिकार का सिर से पैर तक मुआयना कर रही थी. मैं जानती थी की मेरा उन्मुक्त योवन उस बारीक सारी के ओट से बड़े ही उत्तेजक तरीके से नज़र आ रहा होगा. मेरी पतली कमर, भरे और भारी नितंब, सपाट कसा हुआ पेट और बड़ी बड़ी चूचियाँ देख कर तो उनकी जीभ उनके काले मोटे होंठों पर फिरने लगी.
“ मंत्री जी ये है हमारी खास शिष्या है दिशा. हमारे आश्रम की एक शिष्या है. या कहें हमारे आश्रम का कोहिनूर है. ये अभी नयी नयी आए है. इसलिए आपने इसे पहली बार ही देखा होगा. इसे ख़ास आपकी सेवा के लिए बुलाया है.” फिर मेरी ओर मूड कर उन्हों ने मुझे आदेश दिया “दिशा आज हमारे इन ख़ास अतिथि की सेवा मे कोई कमी नही रहनी चाहिए. इनके लिए हमारे आश्रम का वो ख़ास शरबत ले कर आओ.”
“ स्वामी मंगवा उस शरबत को साला शिलाजीत भी आजकल कोई असर नही कर पाती. एक काम और करना एक बॉटल भर कर मेरी गाड़ी मे रखवा देना. अक्सर ज़रूरत पड़ती रहती है. कहाँ से लाया है इसे? हाहाहा….” वो एक बार फिर एक भद्दी सी हँसी हंसा.
स्वामी जी ने मंत्री जी की ओर मूड कर कहा “रतिंदर जी ये शरबत बहुत ही ख़ास है. संभोग से पहले इसका सेवन करने से आदमी मे किसी घोड़े की तरह ताक़त आ जाती है. फिर तो तू घंटों तक बिना किसी कमज़ोरी के संभोग कर सकता है. बीस साल लगे इसका फ़ॉर्मूला तैयार करने मे. ढेर सारी जड़ी बूटियाँ डाली हैं इनमे. कई बार स्खलन के बाद भी लिंग की उत्तेजना कम नही होती है. इसे एक तरह से हमारा देसी वियाग्रा कह सकते हो.” अब स्वामी जी भी मंत्री जी से इस तरह बात करने लगे मानो बरसों की पहचान हो.
मैं फ्रिड्ज से दो ग्लास शरबत का भर कर ले आई. दोनो पुरुष लंबे वाले सोफे पर बैठे थे. मैं झुक कर उनको शरबत देने लगी तो स्वामी जी ने मेरे हाथ से ट्रे ले लिया और उसे सामने की टेबल पर रख कर मेरी कलाई पकड़ ली.
“ स्वामी इसके मम्मे तो काफ़ी बड़े और अच्छे कसे हुए लग रहे हैं. साली की चूत भी काफ़ी कसी हुई होगी. तूने इसे चोद चोद कर ढीली तो नही कर दिया ना?” मंत्री जी फिर गंदी तरीके से हँसने लगे.
“ आओ हमारे बीच बैठ कर हमे शरबत का सेवन करा ओ.” मैं उनके हाथों मे अपना हाथ रखे उनके बीच आकर बैठ गयी. मैं दोनो को अलग अलग ग्लास से शरबत पिलाने लगी. जब मैं ग्लास लेने को झुकी तो मेरी सारी का आँचल नीचे हो गया और मेरे झूलते हुए स्तन नज़र के सामने आ गये. स्वामी जी ने मंत्री जी का एक हाथ थाम कर उसे मेरे स्तनो पर रखा. तो मंत्री जी मेरे एक स्तन को हल्के से सहलाते हुए मसल दिए.
स्वामी जी ने मेरे कंधे पर टिकी सारी का आँचल नीचे कर दिया. मेरे दोनो दूधिया स्तन बाहर निकल आए.
“ देखिए मंत्री जी कैसी लगी हमारी ये छ्होटी सी भेंट? ”
“ जबरदस्त माल है. भाई स्वामी जी आपने तो हमे खुश कर दिया.” मंत्री जी की आवाज़ किसी फटे बाँस की तरह थी. स्वामी जी ने अपनी एक हथेली मेरे स्तन पर रखी और दूसरे हाथ से मंत्री जी का हाथ लेकर मेरे दूसरे स्तन पर रख दिया.
“ छ्छू कर तो देखिए ऐसी चिकनी और मुलायम है मानो संगमरमर की तराशि हुई कोई मूरत हो. और ऐसी मुलायम मानो मक्खन की डाली.” स्वामी जी मेरे एक स्तन को बुरी तरह मसल्ने लगे थे.
दूसरे स्तन को रतिंदर जी की उंगलिया आटे की तरह गूँथ रही थी. अचानक रतिंदर ने अपनी तरफ वाले निपल को अपनी उंगलियों से मसल्ते हुए अपने मुँह मे भर लिया. और उसे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगे. उनका एक हाथ मेरी सारी की प्लीट्स पर उलझ रहा था. उसे देख कर स्वामी जी ने एक झटके मे मेरी सारी के प्लीट्स खोल दिए अब सारी जांघों पर से हटने के लिए तैयार थी. मैं पेटिकोट और पॅंटी नही होने की वजह से सारी को एक बार कमर के इर्द गिर्द लप्पेट कर गाँठ लगा लेती थी जिससे सारी को पहनने मे कोई दिक्कत नही आए. स्वामी जी ने मेरे कमर पर लगी गाँठ को खोल कर मुझे पूरी तरह से नंगी कर दिया.
अब रतिंदर जी एक हाथ से मेरे स्तन को मसल्ते हुए उसे चूस रहे थे और दूसरे हाथ की उंगलियों से मेरी योनि को सहला रहे थे. मैने अपनी टाँगें फैला दी जिससे उन्हे किसी तरह की कोई परेशानी नही हो. उनकी उंगलिया मेरी योनि की फांको को अलग करती हुई अंदर चली गयी.
उन्हों ने मेरे निपल को और स्तन को चाट चाट कर गीला कर दिया था. गुटखे के कई दाने भी मेरे निपल के इधर उधर लगे हुए थे. मुझे बड़ी घिंन आई मगर कुच्छ कर नही सकती थी. मैं तो उस वक़्त उन दोनो के बीच किसी कठपुतली की तरह नाच रही थी. वो मुझसे जैसा भी चाहते थे करवा रहे थे. मैने अपने हाथ से उन गुटके के दानो को पोंच्छ दिया.
वो मेरे आशय को समझ गये थे. उन्हे मेरी ये हरकत काफ़ी बुरी लगी कि एक लौंडिया इस तरह उनका अपमान करे. इसलिए अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मेरे स्तनो को बुरी तरह काटने और निपल को दन्तो से चबाने लगे. मैं दर्द से बुरी तरह च्चटपटाने लगी. उनके काटने से मैं ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी. मेरी आँखे आँसुओं से भर गयी थी.
मैं जानती थी कि स्वामी जी का कमरा पूरी तरह साउंड प्रूफ हैं इसलिए मेरी दर्द भारी चीखों का उस कमरे मे ही दम घुट जाना था. किसी को पता भी नही चला कि उस मोटे हाथी स्वरूप मंत्री ने मुझे किस बुरी तरह कुचला.
जब काफ़ी देर तक यही दौर चलता रहा तो स्वामी जी ने ही उनको हटाया.
“ रतिंदर जी अब तो छ्चोड़ दो बेचारी को कई जगह से खून छलक आया है. औरत है कोई बेजान पुतला तो है नही. बेचारी मर जाएगी.” उन्हों ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा. तब जा कर रतिंदर जी ने मेरे स्तनो को छ्चोड़ कर अपना सिर उठाया. मैने देखा की उत्तेजना से उनकी आँखें लाल हो गयी हैं. वो इस वक़्त बहुत ही ख़तरनाक कोई आदमख़ोर जानवर की तरह लग रहे थे.
मैने देखा मेरे दोनो स्तनो पर अनगिनत दांतो के निशान पड़ गये थे. कई जगह तो घाव भी हो गया था और उनसे हल्का हल्का खून निकल रहा था. वो आदमी नही पूरा जानवर था. ऐसा व्यवहार तो कोई किसी रांड़ से भी नही करता. उसकी हरकतें किसी वहशी की तरह थी,
“ चल उठ यहाँ से. उठ कर खड़ी हो जा. देखूं स्वामी का माल कैसा है. “ उन्हों ने कहा. मैं उठ कर खड़ी हो गयी. वो मेरे बदन को उपर से नीचे तक घूरते हुए किसी सौदेबाज की तरह परख रहे थे. उनकी आँखों की रंगत और सुर्ख हो गयी.
“ अपने हाथ सिर के उपर कर और फिर टाँगे फैला.” मैने वैसा ही किया.
“ अब इसी अवस्था मे घूम कर पीछे हो जा.” मैं हाथ उठाए हुए पीछे की ओर घूम गयी.
“ वाह क्या गांद हैं तेरी…….एक दम तरबूज की तरह. खूब रसीले होंगे. अब अपने हाथों से गांद चौड़ी कर.” वो मुझे ऐसे आदेश दे रहे थे मानो मैं उनकी खरीदी हुई गुलाम हू. स्वामी जी की खातिर मैं चुप रही और जैसा उसने कहा मैने वैसा ही किया.
“ स्वामी तेरा माल तो पटाखा है. साली को रगड़ रगड़ कर चोदने मे मज़ा आ जाएगा. ये रांड़ आज खूब मज़े देगी. आज रात भर साली को कुतिया की तरह चोदुन्गा.”उन्हों ने बड़े ही भद्दे तरीके से कहा. मैने स्वामी जी की ओर देखा तो स्वामी जी ने आँखों के इशारे से मुझे अपने उपर संयम रखने को कहा.
“ चल रंडी मेरे सामने बैठ कर मेरा लंड चूस.” उन्हों ने पॅंट के उपर से अपने मोटे लिंग को दबाते हुए कहा.
स्वामी जी मेरे संग कर रहे बर्ताव से थोड़े विचलित हो उठे.
“ मंत्री जी पूरी रात पड़ी है थोड़ा प्यार से इसके साथ खेलना तो ये भी आपका साथ देगी नही तो आप इसे रेप करते रहेंगे और ये दर्द से बिलखती रहेगी. कोई मज़ा नही आएगा.” स्वामी जी ने मेरा बचाव करते हुए कहा.
“ अबे स्वामी तूने मुझे यहा मज़े के लिए बुलाया है या अपना भाषण सुनाने. चल उठ और फुट यहाँ से. दफ़ा हो जा तुरंत.” उन्हों ने स्वामी जी को फटकार लगाई.
“लेकिन…” स्वामी जी ने कुच्छ विरोध करना चाहा.
“ लगता है स्वामी ज़मीन मिलते ही तुझ पर चर्बी कुच्छ ज़्यादा चढ़ गयी है. मैं मंत्री हूँ ऐसा चार्ज लगाउन्गा की ज़मीन तो हाथ से जाएगी ही तू भी धोखे से सरकारी ज़मीन हड़पने के इल्ज़ाम मे जैल की रोटियाँ तोड़ेगा. अब भेजा मत खराब कर और भाग यहाँ से. हां जाते हुए दरवाजा बाहर से बंद कर देना जिससे ये मच्चली मेरे चंगुल से भाग नही सके. सुबह आकर ले जाना तेरी इस तितली को.” स्वामी जी कुच्छ समंजस भाव लिए मुझे देखते रहे. मैने याचना भरी आँखो से उन्हे रुकने का इशारा किया.
“ क्यों बे तेरी समझ मे नही आ रहा है क्या?” अब तो वो पूरी नग्नता पर उतर आए थे. स्वामीजी जिन्हे हम इतना आदर सम्मान देते हैं वो उन्हे गाली गलोच करके बुलाने लगा.
स्वामी जी ने हताशा से अपने कंधे उचकाय और उठ कर किसी अपराधी की तरह भारी मन से कमरे से बाहर निकल गये.
मैने उन्हे रोकने के लिए हाथ बढ़ाया मगर उसे उन्हों ने अनदेखा कर दिया. फिर दरवाजा बंद होने की और कुण्डी लगने की आवाज़ से मेरी आँखें दोबारा छलक आई. मैं अब किसी पर कटी चिड़िया की तरह पिंजरे मे फँसी हुई थी और सामने मुझे नोच खाने के लिए बिल्ला तैयार था.
क्रमशः............