कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और compleet

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raj..
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Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून

Unread post by raj.. » 05 Dec 2014 15:03

31

गतान्क से आगे…………………………………..

ड्रेसिंग रूम मे उपर जब मैं तैयार होने लगी तो मुझे नीचे जो बाते जेठानी जी ने बताई थी, वो याद आने लगी. मेने शीशे मे अपनी इमेज देखी, और मुझे लगा कि कैसे मेरी ननदो ने अपने मन मे उनकी एक इमेज बनाई और उस इमेज मे उन्हे खुद, जैसे मेले मे कही मेने देखा था हॉल ऑफ मिरर्स चारो ओर शीशे और आप पता नही कर सकते कि आप जो अक्स देख रहे है वो आप के अक्स का अक्स है या आप का अक्स,

और जो आप कर रहे है और शीशे मे जो देख रहे है वो आप का अक्स आप को कॉपी कर रहा है या आप अपने अक्स को कॉपी कर रहे है. और यहाँ तो दूसरे जो आपका अक्स देख रहे थे, और आपको मजूबार कर रह थे, उस अक्स की तरह बुत बने रहने के लिए.. शीशे मे देख के फाउंडेशन लगाते हुए मेने सोचा कोई बात नही, मैं आ गयी हू ना आप को इन शीशो से आज़ाद करने के लिए, भले ही मुझे शीशे तोड़ने क्यो ना पड़े,

भले ही इसमे मैं क्यो ने ज़ख्मी हो ना जाउ. फिर मेरे मन ने टोका कि तुमको भी तो एक शर्मीली दुल्हन के अक्स से बाहर आना पड़ेगा. मेने मुस्करा के खुद से कहा,

आउन्गि. मुझे मालूम है सब मालूम पड़ गया है कि तुम्हे क्या अच्छा लगता है मेरे नादान बलमा अब देखना जितना तुमने सोचा भी ना होगा ना उससे भी ज़्यादा तुम भूल जाओगे 'मस्त राम' को. रच रच के मैं श्रीनगर कर रही थी. लंबे बालो मे रंग बिरंगी चोटी और चेहरे पे मचलती दो लटे, तिरछी घनी भोन्हे, बड़ी बड़ी पलको पे हल्का सा मास्कारा, रतनेरी आँखो मे काजल की रेखा, हाबोन्स को थोड़ा और हाइलाइट कर के गोरे गोरे गालो पे हल्की सी रूज की लाली, और जब लिपस्टिक के बाद मेने नीचे देखा तो मुझे याद आ गया कि मेरी एक सहेली ने जब मेने उसे इनकी बर्थ डेट बताई तो वो बोली, काँसेरियाँ वो तो तेरे उपर लट्टू रहेगा, थे लाइक बस्टी वॉएन (वो हर काम लिंडा गुड मे से पूछ के करती थी) और जो मेने पढ़ा था,एक दम ठीक था.

मुझे मालूम है कि वो जब पकड़ेगा तो छोड़ेगा नही लेकिन अगर अपने शेल मे घुस गया तो बाहर नही निकलेगा. वो लेन कही पढ़ी थी वो मुझे अभी तक याद है,

"आ वोन वो ईज़ एस्पेशली मदर्ली इन बिल्ड अट्रॅक्ट्स देम लाइक मॅजिक, वेदर दिस क्वालिटी ईज़ ड्यू टू हर मदर्ली नेचर ओर पेरसोनेलिटी, ओर बाइ फिज़िकल रेप्रेज़ेंटेशन्स ऑफ मोतेर्लिनएस्स लाइक आ लार्ज बोसो, वाइड हिप्स, ओर प्लंपनेस... यू विल फाइंड कॅन्सर टू बी अफ्फेकटिओनेटे, र्ोआंतिक, सिंपतेटिक, इमगिनेटिवे, आंड क्वाइट सेडक्टिव फॉर दा कॅन्सर मेल, लव आंड सेक्स आर वन आंड दा सेम. हे कॅन बे क्वाइट सेक्षुयली क्रियेटिव थिंग्स कॅन गेट प्रेटी स्टीमी इन तेरे"

मेने एक गुलाबी बनारसी साड़ी पहनी और एक सतरंगी रेशमी चोली कट ब्लाउस. अपने पैरो मे एक चौड़ी चाँदी की खूब घुघरुओ वाली पायल बाँध के जब मैं अपनी पतली सी कमर मे सोने की करधन पहन रही थी, तभी अंजलि आई. पास मे बैठ के कुछ रुक के बोली,

"भाभी, मैं.. ई आम सॉरी."

मेने उसे पकड़ के अपने पास खींच लिया और उसके गाल सहलाती बोली,

"अरी बुद्धू, जो लोग छोटी होते है वो सॉरी नही बोलते, काहे की सॉरी."

"नही भाभी मुझे मालूम है आप जो भी सज़ा देगी मुझे मंजूर है."

मुझे शरारत सूझी. मेने टॉप के उपर से उसके बूब्स हल्के से दबाते बोली,

"सच्ची बोला मैं जो भी कहुगी मंजूर?"

"हाँ भाभी एकदम पूरा मंजूर."

"तो कल जब संजय आएगा ना तेरा यार और मेरा भाई वो जो भी माँगेगा देना पड़ेगा",

मेने छेड़ा.

"एक दम भाभी लेकिन माँगना उसे पड़ेगा. आपका भाई तो लड़कियो से भी ज़्यादा शर्मिला है." बड़ी अदा से वो बोली. उसके निपल्स टॉप के उपर से पिंच करते हुए मैं बोली,

"माँगना तो उसे पड़ेगा, ये तो तेरा हक बनता है. पहले नाक रगड़वाना फिर देना."

"हाँ भाभी नाक तो रगड़वाउंगी ही."

"सिर्फ़ नाक रगड़वाएगी या कुछ और भी." अब उसके शरमाने की बारी थी.

"प्रॉमिस भाभी आप नाराज़ तो नही है ना" कह के उसने हाथ बढ़ाया और मेने हाथ थाम लिया.

"ये बोल आज मैं तुम्हे खुल के चुन चुन के जबरदस्त गालिया सुनाने वाली हू. तू तो नही बुरा मानेगी." मेने पूछा.

"अरे नही भाभी, हाँ अगर आप गाली नही सुनाती तो मैं ज़रूर बुरा मान लेती." वो हंस के बोली.

तब तक गुड्डी मुझे बुलाने आ गयी. अंजलि ने उसके कंधे पे हाथ रख के कहा,

"भाभी ये तो मेरी पक्की सहेली है, इसको भी मत बख़्शिएगा."

"अरे तेरी सहेली है तो मेरी तो ननद ही लगेगी, फिर तो इसको मैं क्यो छोड़ने वाली."

उधर अंजलि बाहर गयी इधर ये अंदर आए. बिना ये सोचे कि अंजलि अभी दरवाजे पे ही है और गुड्डी सामने, मेने इन्हे रिझाते हुए एक चक्कर लगाया और आँचल ठीक करने के बहाने आँचल ढलका के बोली, " बोलो मैं कैसी लगती हू."

"आज किसको घायल करने का इरादा है. " मुस्करा के उन्होने पूछा.

"है कोई प्यारा सा, हॅंडसम सा" मेने झटक के गालो पे लटकती हुई लाटो को एक जुम्बिश दी और अपने नित्म्बो को मटकाती, पायल झन्काति कमरे से बाहर चल दी.

बाहर सब लोग आ गये थे ज़्यादातर औरते ही थी, घर की मुहल्ले की, कुछ काम करने वालिया और एक दो लोग जैसे मेरे ननदोइ अश्विनी. हाँ क्यो कि प्रोग्राम छत पे ही था और मुझे मालूम था कि वो कान लगा बैठे होंगे, इसलिए उन्हे भी सब कुछ साफ साफ सुनाई देने वाला था.

सासू जी ने मुझे पकड़ के बहुत प्यार से अपने पास बैठाया. सबसे पहले और लोगो ने कुछ कुछ गाया. लेकिन दुलारी ने जब , मुझे चिढ़ाते हुए सुनाया,

"तनी धीरे धीरे डाला, बड़ा दुखेला राजौ.

तनिक भरे के कान चैदौलि, तानिको ना दुखयाल,

कँहे धँसावत बता भला बड़ा दुखेला राजौ.

पकड़िके दोनो जुबने रात भर घुसवेला,

तनिक हल्के से धकेला बड़ा दुखेला राजौ."


raj..
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Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून

Unread post by raj.. » 05 Dec 2014 15:03

जैसे कवि सम्मेलन मे मे इंपॉर्टेंट कवि को सबसे अंत मे बुलाया जाता है, उसी तरह मेरा नंबर सबसे बाद मे आया लेकिन बहुत जल्दी. हर कोई नई बहू को सुनना चाहता था, और मेरी सासू भी चाहती थी कि सारी औरते सुने और और तारीफ करे कि वो कितनी अच्छी बहू लाई है.

मेने एक भजन से शुरू किया,


"ठुमक चलत (जेठानी जी ने बता दिया था कि ये सासू जु का फेवुरेट भजन है)." और फिर एक दो और भजन गये तो नेंदोई जी बोले अरे कोई फिल्मी गाने तो सूनाओ. मेने शुरुआत की,

"माँग के साथ तुम्हारा माँग लिया संसार,

दिल कहे दिलदार मिला, हम कहे हमे प्यार मिला प्यार मिला हमे यार मिला एक नेया संसार मिला मिल गया के सहारा, ओ ओ माँग के साथ तुम्हारा

मैं समझ रही थी कि मैं किस के लिए गा रही हू और 'कोई कमरे मे बैठ के' सुन समझ रहा था.

"मुझे जा ना कहो मेरी जा " दूसरा गाना मेने शुरू किया (मुझे मालूम था कि गीता दत्त उनकी फेवुरेट है.) और फिर ,

"तुम जो हुए मेरे हम सफ़र रास्ते बदल गये लाखो दिए मेरे प्यार की राहो मे जल गये.

और फिर हे दिल मुझे बता दे तू किस पे आ गया है."


जब मैं चुप हुई तो सब लोग एक दम शांत मंत्रमुग्ध होके मेरी आवाज़ सुन रहे थे.

जैसे बीन की धुन पे जहरीले से जहरीले साँप भी शांत हो जाते है, मेरी सारी ननदे भी मेरी आवाज़ के जादू मे खो गयी थी. एक दो मिनेट तक सब चुप रहे लेकिन जैसे ही उसका असर थोड़ा कम हुआ, सब लोगो ने इतनी तारीफ शुरू की और सबसे ज़्यादा मेरी सास खुश हुई. लेकिन तभी एक औरत बोली,

"बहू की आवाज़ तो बहुत अच्छी है. लेकिन बहू कुछ लोक गीत घरेलू गाने भी भी आते है,' " अरे सब कुछ शादी बन्ने बन्नि गाली सब कुछ सुना दे बहू." सासू जी बोली.

मैं जानती थी ये मेरा आसिड टेस्ट है. मेरी जेठानी ने कहा भी था कि तुम बोलती बंद कर सकती हो खास तौर से अपनी सास को मुट्ठी मे कर सकती हो, अगर ये 'राउंड' तुमने पार कर लिया. सबसे पहले मेने शादी के एक दो गाने सुनाए फिर और रस्मो के,

लेकिन सुनना तो सब कुछ और चाहते थे और देखने भी क्या मैं 'हिम्मत कर सकती हू. फिर दुलारी ने एक गाली सुनाई, सिर्फ़ मुझे ही नही मेरी सारी जेठनियो को भी.

मझली ननद ने कहा, अब ज़रा अपनी बहू से कहिए जवाब दे ना. जेठानी जी ने भी मुझे उकसाया और मेने ढोलक अपनी ओर खींची फिर अंजलि और रजनी की ओर देख के शुरू कर दिया,


"अरे बार बार ननदी दरवाजे दौड़ी जाए कहने ना माने रे

हलवाया का लड़का तो ननदी जी का यार रे,

अरे अंजलि जी अरे रजनी का यार रे

वो तो लड्डू पे लड्डू खिलाए चला जाए,

अरे बार बार ननदी दरवाजे दौड़ी जाए

अरे दरजी का लड़का तो ननदी जी का यार रे, वो तो अंजलि साली का यार रे,

अरे वो तो चोली पे चोली अरे बड़ी पे बड़ी सिलाए चला जाय कहना ना माने रे,

अरे प्यारा सा भैया तो सब ननदो का यार रे,

उनको तो मज़ा लूटे चला जाय अरे मेरी सासू जी का लड़का तो अंजलि रानी का यार रे

सेजो पे मौज उड़ाए चला जाय कहना ना माने रे"


"क्यो कैसा लगा " मेने पूछा."

"मजेदार , रजनी बोली. "लेकिन मसाला थोड़ा हल्का था." अंजलि बोली. अच्छा, कान खोल के रखो, अब मसालेदार सुनाती हू,और अब की बार गुड्डी को भी नही छोड़ा मेने,


"ननदी तेरी बु ननदी तेरी बु गुड्डी तेरी बू अच्छी लगे बू तेरे बूंदे कान के अच्छे लगे रे

हो ननदी तेरी भो ननदी तेरी भो अंजलि तेरी भोो अंजलि तेरी.. भो हो अंजलि की फैल गयी भो
(अरे साफ साफ अंजलि का भोंसदा क्यो नही बोलती, चमेली भाभी से नही रहा गया)

हो अंजलि की फैल गयी भोली आँखे हो देख के खेला मदारी का.

हो ननदी तेरी चू हो ननदी तेरी चू हो रजनी तेरी चू.हो रजनी तेरी चू.

हो रजनी की फॅट गयी चू हो रजनी तेरी फॅट गयी चू.


(अरे इस उमर मे ही फॅट गयी ना बोला. दूसरी जेठानी ने जोड़ा अरे चौदह की तो हो गयी तो चुद गयी तो क्या बात है) अरे मेरी प्यारी ननदी की , प्यारी रजनी किफ़त गयी चुननी फँस के काँटे से.

हो ननदी तेरी झा हो ननदी तेरी झा हो ननदी की दिख गयी झाँकी खिड़की से."

अब तो सब औरतो ने इतनी तारीफ की कि मेरी सास का सीना गज भर का हो गया. लेकिन मझली ननद तारीफ तो उन्होने भी की लेकिन ये भी बोल दिया कि कोटा ख़तम हो गया क्या. मेरी जेठानी क्यो चुप रहती. उन्होने बोला अरे तेरी ननदो का मन नही भरा,

अरे ज़रा एक दो और सुना दे. हाँ और बिना कैंची चलाए मझली ननद ने जोड़ा. सब लोग हँसने लगे. मेने खूब हिम्मत की और एक अपनी भाभी की फेवुरेट सुनानी शुरू कर दी.


"छोटी बूँदी वाली चोलिया गजब बनी छोटी बूँदी वाली,

अरे वो चोलिया पहने हमारी बांकी ननदी,

वो चोलिया चमके, चोली के भीतर जोबान झलके,

मीजाववत चमके, दबावावत चमके,

अरे छोटी घुघर वाला बिछुआ गजब बने, छोटी घुघर वाला,

वो बिछुआ पहने हमारे सैया की बहने, अंजलि छिनारो,

अरावट बजे, करवट बजे, लाड़िका के दूध पियावत बजे,

अरे हमारे सैया से रोज चुदावत बजे,

बुरिया मे लॅंड लियावत बजे, अरे छोटी दाने वाला"


और उसके बाद जो मेरी झिझक खुल गयी तो फिर तो सबको यहाँ तक कि जेठानी और सास का, अपने नेंदोई की बहनो और अम्मा को भी लेकिन सबसे ज़्यादा,अंजलि और रजनी और फिर गुड्डी की भी. गाने की समाप्ति सोहर से होती है और ये दुल्हन को ही गाना पड़ता है. माना ये जाता है कि इससे दुल्हन जल्द ही सोहर गाने का मौका देगी (और 'पिल' के पॉपुलर होने के पहले, 9 महीने के बाद हो भी जाता था.) मेने सोहर मे भी अपनी ननदो को नही छोड़ा और खास कर अंजलि को.

"दिल खोल के माँगो ननदी, माँगन की बहार है

अरे दिल खोल के अरे चोली मत माँगो ननदी,

तन का सिंगर रे अरे ज़ुबना का सिंगार रे,

कहे सुने जो चोली दूँगी , बंद लूँगी काट रे,

अरे दिल खोल के माँगो ननदी (अरे घोड़ा मत माँगो ननदी, चढ़ने का व्यापार से, कहे सुने जो घोड़ा दूँगी, लौंडा लूँगी काट रे चमेली भाभी ने जोड़ा) अरे दिल खोल के माँगो ननदी माँगन की बहार रे,

अरे सैया मत माँगो ननदी, सेज का सिंगार रे,

अरे सैया के बदले भैया दूँगी अरे संजय को दूँगी,

चोदे चूत तुम्हार रे, अरे बुर खोल के माँगो ननदी माँगन की बहार रे."


फिर तो मेरी सास इतनी खुश अगर उस समय मैं उनसे कुछ भी मांगती. एक खूब चौड़ी सी कमर बंद बहुत ही खूबसूरत, ट्रडिशनल, भारी सी शायद उनकी सास ने उन्हे दी थी. उन्होने ये भी कहा कि मैं उन्हे पहन के दिखाऊ. साड़ी तो मेने कमर के भी नीचे पहन रखी थी, मेरे कुल्हो पे बलकी. इसलिए वो भी उसी के उपर वही बाँधी.

कम से कम चार अंगुल चौड़ी रही होगी, और खूब काम दार. लेकिन यही तक नही, उस मे आगे पीछे चाँदी के झब्बे से जिसमे खूब बड़े बड़े घुघरू, पीछे वाले झब्बे तो सीधे मेरे हिप्स पे और आगे वाले सीधे 'वहाँ' तक धक रहे थे. लेकिन उसकी सबसे खास बात थी उसमे सोने की पतली सी चेन से चार काले मोटी, दो छोटी छोटी साइड मे और दो बड़े, आगे पीछे. सासू जी भी आज एकदम मूड मे थी. उन्होने अपने हाथ से उसे सेट किया तो पीछे वाला तो सीधे मेरे चौड़े नितंबो की दरार के बीच और आगे वाला भी ठीक लेकिन मैं जो चाहती थी उन्होने बिना माँगे ही दे दिया. जब मेने उनका पैर छुआ तो वो बोली, बहू देर रात हो गयी है, अब तुम जाओ सोने. और हाँ तुम्हारी जेठानी कह रही थी, कि तुम लौट के सीधे मायके जाना चाहती हो, होली वही तो वैसे तो हमारे यहा रिवाज है कि बहू की पहली होली ससुराल मे ही होती है , लेकिन वो कह रही थी कि होली के हफ्ते दस दिन बाद तुम्हारा बोर्ड का इम्तहान भी है तो फिर तो तुम ये होली मायके मे ही मना लो और अगली होली ससुराल मे. मेरी मझली ननद बेचारी, वो बीच मे बोली आज तक तो ऐसा हुआ नही कि बहू की पहली होली मायके मे हुई हो, अरे इम्तहान के पहले चली जाय. सासू जी ने उनकी बात काट के फ़ैसला सुना दिया, अरे यहाँ रही तो हो चुकी पढ़ाई, जिंदगी भर तो ससुराल मे ही रहने है 8*10 दिन से क्या, फिर मेरे सर पे हाथ फेर के सब की ओर देखती हुई बोली, अरे नई बात तो है ही. इतनी प्यारी बहू आई तब कभी, इतनी सुंदर, गुनी, गाने जानने वाली आज कल की जो है फिल्मी गाने सुन लो, एक दो बन्ने बन्नी गाएँगी, वो भी फिल्मी तर्ज पे और उसके बाद फूसस.

क्रमशः……………………………………
शादी सुहागरात और हनीमून--31

gataank se aage…………………………………..

dressing roo me upar jab main taiyaar hone lagi to mujhe niche jo baate jethani ji ne batayi thi, wo yaad ane lagi. mene shishe me apni image dekhi, aur mujhe laga ki kaise meri nanado ne apne man me unki ek image banaai aur us image me unhe khud, jaise mele me kahi mene dekha tha hall of mirrors charo or shishe aur aap pata nahi kar sakate ki aap jo aks dekh rahe hai wo aap ke aks ka aks hai ya aap ka aks,

aur jo aap kar rahe hai aur shishe me jo dekh rahe hai wo aap ka aks aap ko copy kar raha hai ya aap apne aks ko copy kar rahe hai. aur yaha to dusare jo apka aks dekh rahe the, aur apako majubar kar rah the, us aks ki tarah but bane rahane ke liye.. shishe me dekh ke foundation lagate huye mene socha koi baat nahi, main aa gayi hu ne aap ko in shisho se ajad karane ke liye, bhale hi mujhe shishe todane kyo ne pade,

bhale hi isme main kyo ne jakhmi ho ne jaum. phir mere man ne toka ki tumko bhi to ek sharmili dulhan ke aks se bahar ane padega. mene muskara ke khud se kaha,

aungi. mujhe malum hai sab malum pad gaya hai ki tumhe kya achcha lagta hai mere nedan balamab dekhane jitane tumane socha bhi ne hoga ne usase bhi jyaada tum bhul jaoge 'mast ram' ko. rach rach ke main shringar kar rahi thi. lambe balo me rang birangi choti aur chehare pe machalati do latem, tirachi ghani bhahuem, badi badi palako pe halka sa maskara, rataneri aankho me kajal ki rekha, haibons ko thoda aur hailait kar ke gore gore galo pe halki si ruj ki lali, aur jab lipstik ke baad mene niche dekha to mujhe yaad aa gaya ki meri ek saheli ne jab mene use inki barth det batayi to wo boli, canceriyan wo to tere upar lattu rahega, the like busty woen (wo har kaam linda gud me se puch ke karati thi) aur jo mene padha tha,ek dam thik tha.

mujhe malum hai ki wo jab pakadega to chodega nahi lekin agar apne shell me ghus gaya to bahar nahi nikalega. wo laine kahi padhi thi wo mujhe abhi tak yaad hai,

"a woan wo is especially motherly in build attracts them like magic, whether this quality is due to her motherly neture or personelity, or by physical representations of motherliness like a large boso, wide hips, or plumpness... you will find cancer to be affectionete, roantic, sympathetic, imaginetive, and quite seductive for the cancer male, love and sex are one and the same. he can be quite sexually creative things can get pretty steamy in there"

mene ek gulabi banerassi di pahani aur ek satarangi reshami choli cut blouse. apne pairo me ek chaudi chandi ki khub ghugharuo vali paayal band ke jab main apni patali si kamar me sone ki karadhan pahan rahi thi, tabhi anjali ayi. paas me baith ke kuch ruk ke boli,

"bhabhi, main.. i am sorry."

mene use pakad ke apne paas khinch liya aur uske gaal sahalati boli,

"ari buddhu, jo log choti hote hai wo sorry nahi bolate, kahe ki sorry."

"nahi bhabhi mujhe malum hai aap jo bhi saja degi mujhe manjur hai."

mujhe shararat sujhi. mene top ke upar se uske boobs halke se dabaate boli,

"sachchi bola main jo bhi kahugi manjur?"

"ha bhabhi ekdam pura manjur."

"to kal jab sanjay ayega ne tera yaar aur mera bhai wo jo bhi maangega dene padega",

mene cheda.

"ek dam bhabhi lekin maangana use padega. apka bhai to ladakiyo se bhi jyaada sharmila hai." badi ada se wo boli. uske nipals top ke upar se pinch karate huye main boli,

"maangane to use padega, ye to tera hak baneta hai. pahale naak ragadavane phir dene."

"ha bhabhi naak to ragadavaungi hi."

"sirph naak ragadvaayegi ya kuch aur bhi." ab uske sharamane ki baari thi.

"promise bhabhi aap naraaj to nahi hai na" kah ke usne hath badhaya aur mene hath tham liya.

"ye bol aaj main tumhe khul ke chun chun ke jabardast galiya sunene vali hu. tu to nahi bura manegi." mene pucha.

"are nahi bhabhi, ha agar aap gali nahi suneti to main jarur bura man leti." wo hans ke boli.

thi tak guddi mujhe bulane aa gayi. anjali ne uske kandhe pe hath rakh ke kaha,

"bhabhi ye to meri pakki saheli hai, isako bhi mat bakhshiyega."

"are teri saheli hai to meri to nanad hi lagegi, phir to isako main kyo chodane vali."

udhar anjali bahar gayi idhar ye andar aye. bina ye soche ki anjali abhi daravaje pe hi hai aur guddi samane, mene inhe rijhate hue ek chakkar lagaya aur anchal thik karane ke bahane anchal dhalaka ke boli, " bolo main kaisi lagati hu."

"aaj kisako ghayal karane ka irada hai. " muskara ke unhone pucha.

"hai koyi pyara sa, handsoe sa" mene jhatak ke galo pe latakati huyi lato ko ek jumbish di aur apne nitmbo ko matakati, paayal jhanekati kamare se bahar chal di.

bahar sab log aa gaye the jyaadatar aurate hi thi, ghar ki muhalle ki, kuch kaam karane valiya aur ek do log jaise mere nanadoi ashvini. ha kyo ki program chat pe hi tha aur mujhe malum tha ki wo kan pare baithe honge, isaliye unhe bhi sab kuch saph saph sunaai dene vala tha.

sasu ji ne mujhe pakad ke bahut pyar se apne paas baithaya. sabase pahale aur logo ne kuch kuch gaya. lekin dulari ne jab , mujhe chidhate huye suneya,

"tani dhire dhire dala, bada dukhela rajau.

tanik bhare ke kan chaidauli, taniko ne dukhayal,

kamhe dhansavat bata bhala bada dukhela rajau.

pakadike dono jubane rat bhar ghusavela,

tanik halke se dhakela bada dukhela rajau."

jaise kavi sammelan me me important kavi ko sabase ant me bulaya jata hai, usi tarah mera number sabase baad me aya lekin bahut jaldi. har koyi neyi bahu ko sunene chahata tha, aur meri sasu bhi chahati thi ki sari aurate sune aur aur tariph kare ki wo kitani achchi bahu layi hai.

mene ek bhajan se shuru kiya,

"thumak chalat (jethani ji ne bata diya tha ki ye sasu ju ka fawourite bhajan hai)." aur phir ek do aur bhajan gaye to nendoyi ji bole are koyi filmi gane to sunaao. mene shuruat ki,

"maang ke sath tumhara maang liya sansar,

dil kahe diladar mila, ham kahe hame pyar mila pyar mila hame yaar mila ek neya sansar mila mil gaya ke sahara, o o maang ke sath tumhara main samajh rahi thi ki main kis ke liye ga rahi hu aur 'koyi kamare me baith ke' sun samajh raha tha.

"mujhe ja ne kaho meri ja " dusara gane mene shuru kiya (mujhe malum tha ki gita datt unki fawourite hai.) aur phir ,

"tum jo hue mere ham saphar raste badal gaye lakho diye mere pyar ki raho me jal gaye.

aur phir he dil mujhe bata de tu kis pe aa gaya hai."

jab main chup huyi to sab log ek dam shant mantramugdh hoke mere avaj sun rahe the.

jaise bin ki dhun pe jaharile se jaharile samp bhi shant ho jate hai, meri sari nanade bhi meri avaj ke jadu me kho gayi thi. ek do minet tak sab chup rahe lekin jaise hi usaka asar thoda kam hua, sab logo ne itani tariph shuru ki aur sabase jyaada meri saas khush huyi. lekin tabhi ek aurat boli,

"bahu ki avaj to bahut achchi hai. lekin bahu kuch lok git gharelu gane bhi bhi ate hai,' " are sab kuch shadi banne banni gali sab kuchasune de bahu." sasu ji boli.

main janeti thi ye mera acid test hai. meri jethani ne kaha bhi tha ki tum bolati band kar sakati ho khas taur se apni saas ko mutthi me kar sakati ho, agar ye 'round' tumane paar kar liya. sabase pahale mene shadi ke ek do gane suneye phir aur rasmo ke,

lekin sunene to sab kuch aur chahate the aur dekhane bhi kya main 'himmat kar sakati hu. phir dulari ne ek gali suneyi, sirph mujhe hi nahi meri sari jethaniyo ko bhi.

majhali nanad ne kaha, ab jara apni bahu se kahiye javab de ne. jethani ji ne bhi mujhe ukasaya aur mene dholak apni or khinchi phir anjali aur rajani ki or dekh ke shuru kar diya,

"are baar bar nanadi daravaje daudi jaye kahane ne mane re halavaiya ka ladaka to nanadi ji ka yaar re, are anjali ji are rajani ka yaar re wo to laddu pe laddu khilaye chala jaye, are baar bar nanadi daravaje daudi jaye are daraji ka ladaka to nanadi ji ka yaar re, wo to anjali salli ka yaar re,

are wo to choli pe choli are badi pe badi silaye chala jay kahane ne mane re,

are pyara sa bhaiya to sab nanado ka yaar re, uneko to maja lutay chala jay are meri sasu ji ka ladaka to anjali rani ka yaar re sejo pe mauj udaye chala jay kahane ne mane re"

"kyo kaisa laga " mene pucha."

"majedar , rajani boli. "lekin masala thoda halka tha." anjali boli. achcha, kan khol ke rakho, abhki masaledar suneti hu,aur abhki guddi ko bhi nahi choda mene,

"nanadi teri buho nanadi teri buho guddi teri buachchi lage bu tere bunde kaan ke achche lage re ho nanadi teri bhoho nanadi teri bhoho anjali teri bhoho anjali teri.. bho ho anjali ki phail gayi bho (are saph saph anjali ka bhonsada kyo nahi bolati, chameli bhabhi se nahi raha gaya) ho anjali ki phail gayi bholi aankhe ho dekh ke khela madari ka.

ho nanadi teri chu ho nanadi teri chuho rajani teri chu.ho rajani teri chu.

ho rajani ki phat gayi chuho rajani teri phat gayi chu.

(are is umar me hi phat gayiek ne bola. dusari jethani ne joda are chaudah ki to ho gayi to chud gayi to kya baat hai) are meri pyari nanadi ki , pyari rajani kiphat gayi chunni phans ke kamte se.

ho nanadi teri jha ho nanadi teri jhamho nanadi ki dikh gayi jhamki khidaki se."

ab to sab aurato ne itani tariph ki ki meri saas ka sine gaj bhar ka ho gaya. lekin majhali nanad tariph to unhone bhi ki lekin ye bhi bol diya ki kota khatam ho gaya kya. meri jethani kyo chup rahti. unhone bola are teri nanado ka man nahi bhara,

are jara ek do aur sune de. ha aur bina kaimchi chalaye majhali nanad ne joda. sab log hansane lage. mene khub himmat ki aur ek apni bhabhi ki fawourite suneni shuru kar di.

"choti bumdi vali choliya gajabe bani choti bundi vali,

are wo choliya pahane hamari bamki nanadi,

wo choliya chamake, choli ke bhitar jobane jhalake,

mijavavat chamake, dabavavat chamake,

are choti ghughar vala bichua gajab bane, choti ghughar vala,

wo bichua pahane hamare semya ki bahane, anjali chinaaro,

aravat baje, karavat baje, ladika ke dudh piyavat baje,

are hamare saiya se roj chudavat baje,

buriya me land liyavat baje, are choti dane vala"

aur uske baad jo meri jhijhak khul gayi to phir to sabko yaha tak ki jethani aur saas ka, apne nendoyi ki bahano aur amma ko bhi lekin sabase jyaada,anjali aur rajani aur phir guddi ki bhi. gane ki samapti sohar se hoti hai aur ye dulhan ko hi gane padata hai. mane ye jata hai ki isase dulhan jald hi sohar gane ka mauka degi (aur 'pil' ke popular hone ke pehale, 9 mahine ke baad ho bhi jata tha.) mene sohar me bhi apni nanado ko nahi choda aur khas kar anjali ko.

"dil khol ke maango nanadi, maangan ki bahar hai are dil khol ke are choli mat maango nanadi, tan ka singar re are jubane ka singar re, kahe sune jo choli dungi , band lundgi kaat re, are dil khol ke maango nanadi (are ghoda mat maango nanadi, chadhane ka vyapar se, kahe sune jo ghoda dungi, launda lundgi kaat reye chameli bhabhi ne joda) are dil khol ke maango nanadi maangan ki bahar re,

are saiya mat maango nanadi, sej ka singar re,

are saiya ke badale bhaiya dungi are sanjay ko dungi,

chode choot tumhar re, are bur khol ke maango nanadimaangan ki bahar re."

phir to meri saas itani khush agar us samay main unse kuch bhi maangati. ek khub chaudi si kamar band bahut hi khubasurat, traditionel, bhari si shayad unki saas ne unhe di thi. unhone ye bhi kaha ki main une pahan ke dikhaum. sadi to mene kamar ke bhi niche pahan rakhi thi, mere kulho pe bki. isaliye wo bhi usi ke upar vahi bandi.

kam se kam char amgul chaudi rahi hogi, aur khub kaam dar. lekin yahi tak nahi, us me age piche chandi ke jhabbe se jisame khub bade bade ghugharu, piche vale jhabbe to sidhe mere hips pe aur age vale sidhe 'vaham' tak dhak rahe the. lekin usaki sabase khas baat thi usme sone ki patali si chen se char kale moti, do choti choti side me aur do bade, age piche. sasu ji bhi aaj ekdam mud me thi. unhone apne hath se use set kiya to piche vala to sidhe mere chaude nitambo ki darar ke bich aur age vala bhi thik lekin main jo chahati thi unhone bina maange hi de diya. jab mene unka pair chua to wo boli, bahu der rat ho gayi hai, ab tum jao sone. aur ha tumhari jethani kah rahi thi, ki tum laut ke sidhe mayake jane chahati ho, holi vahimto vaise to hamare yaha rivaj hai ki bahu ki pahali holi sasural me hi hoti hai , lekin wo kah rahi thi ki holi ke haphte das din baad tumhara bord ka imtahan bhi hai to phir to tum ye holi mayake me hi mane lo aur agali holi sasural me. meri majhali nanad bechari, wo bich me boli aaj tak to aisa hua nahi ki bahu ki pahali holi mayake me hui ho, are imtahan ke pahale chali jay. sasu ji ne unki baat kaat ke phaisala sune diya, are yaha rahi to ho chuki padhayi, jindagi bhar to sasural me hi rahane hai 8*10 din se kya, phir mere sar pe hath pher ke sab ki or dekhati huyi boli, are nei baat to hai hi. itani pyari bahu ayi thi kabhi, itani sundar, guni, gane jaanane vali aaj kal ki jo hai filmi gane sun lo, ek do banne banni gayengi, wo bhi filmi tarj pe aur uske baad phuss.

kramashah……………………………………




raj..
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Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून

Unread post by raj.. » 05 Dec 2014 15:04

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गतान्क से आगे…………………………………..

मैं तो हवा मे उड़ने लगी. जब सब औरते जाने लगी तो मैं भी कमरे की ओर ओर मूडी. मझली ननद भूनभुना रही थी, और करे 'बच्ची' से शादी, अभी 12 वे का इम्तहान देने जाना है,

फिर ग्रॅजुयेशन करेंगी कब ग्रहस्ती सॅम्हालंगी अरे मैं इतनी अच्छी पढ़ी लिखी लड़की मेने अनसुना कर दिया. मेरी सास मुझसे खुश, जेठानी खुश और मेरे सैया खुश.

सैया तो मेरे इतने बेताब, जैसे मैं कमरे मे घुसी वो पलंग पर पहले से तैयार.

(नई करधन की घुघरुओ की आवाज़ ने उन्हे पहले ही मेरे आने का संकेत दे दिया था) मेने दरवाजा बंद कर के दरवाजे के पास ही खड़े हो अपना आँचल लहरा अपना इरादा जाता दिया. पलंग के पास आ के उन्हे दिखाते हुए मेने साड़ी धीरे धीरे खोली और ड्रेसिंग रूम की ओर मूडी पर उन्होने पलंग पे मुंझे अपने उपर खींच लिया.

"हे चेंज तो कर लेने दो ना अभी आती हू ना, बस दो मिनेट ." मैं बोली.

"उँहू आज ऐसे ही बस आ जाओ ना." उन्होने मनुहार की.

मैं कौन होती थी मना करने वाली और करने से ही कौन छूट जाती. उन्होने अपनी बाँहो मे कस के भींच रखा था. मेने अपने पेटिकोट के उपर से ही, पाजामे को फाड़ते उनके 'खुन्टे' का प्रेशर महसूस किया. उनका तंबू पूरी तरह तन चुका था.

मुझे बहुत अच्छा लगा. मेने उसे हल्के से दबाया और चोली से छलकते हुए जोबन उनके चेहरे पे रगड़ के बोली,

"आज मेरा बालम बहुत बेसबरा हो रहा है"

उन्होने कस के चोली के उपर से ही मेरे दोनो जोबन कस कस के चूम लिए. और बोले आज तुमने बहुत अच्छा गाया. मैं बोली कि अच्छा तो जनाब यहा कमरे मे बैठ के चुप के सुन रहे थे. वो बोले लेकिन साफ साफ सुनाई नही दे रहा था. एक बार फिर से सुनाओ ना. मैं समझ गयी कि वो खुल के मेरे मूह से क्या सुनना चाह रहे थे, लेकिन मैं चिढ़ाते हुए बोली. क्या सुनाऊ भक्ति संगीत, फिल्मी या लोक संगीत मेने तो तीनो सुनाए थे. वो बिचारे , बोले लोक संगीत. मेने फिर पूछा, शादी के गाने या सोहर उनके मूह पे अपनी चोली रगड़ते हुए मैं बोली, अरे साफ साफ क्यो नही कहते अपनी बहनो का हाल सुनने का मन है. उनके उपर लेटे ही लेटे मेने सुनाना शुरू किया पहले,

"छोटी दाने वाला बिछुआ अजब बने वो बिछुआ पहने हमारे सैया की बहने, अंजलि छिनारो,

अरे हमारे सैया से रोज चुदवत बजे, और फिर,

सुनो सारे लोगो हमारे सैया की बड़ाई,

अरे उनकी बहने अरे हमारी ननदी बड़ी हर जाई,

हमारे सैया से वो अंखिया लड़ावे, अंखिया लड़वाई, जोबन मीसववाई,

अरे सुनो सारे लोगो हमारे सैया की बड़ाई,

कचहरी रोड मे दी है गवाही अरे अंजलि साली बड़ी हरजाई,

रजनी छिनारो बड़ी हरजाई,

हमारे सैया से, अरे अपने भैया से खूब चुदवाइ,

चुचि दबावाए और बुर मरवाए अंजलि छिनारो खूब चुदवाये,

पाजामे के अंदर उनका खुन्टा पत्थर का हो गया था. मेने उपर से ही कस के उसे अपनी जघो के बीच रगड़ा. मेरे ब्लाउस के बटन अब तक खुल चुके थे. उस से छलकते उभार मेने उनके उत्तेजित चेहरे पे मले और अगली गाली शुरू कर दी.

अरे नीली सी घोड़ी गज नीम से बंदी चलो देख तो लो

अरे देखने गयी हमारी ननदी छिनार, जिनके दस दस भरतार,

वो तो चढ़ गयी अटूट, उनकी दिख गयी चूत,

चलो देख तो लो अरे देखने गये अरे अंजलि छिनार जिनके मेरे सैया यार ,

जिनके मेरे भैया यार वो तो चढ़ गई खजूर उनकी दिख गयी बुर चलो देख तो लो.

अब तक उनकी हालत खराब हो गयी थी. एक झटके मे उन्होने मेरी ब्रा उतार के फेंक दी और नीचे की ओर सरक के बोले. पहले अब मैं तेरी बुर देखता हू. मेरा पेटिकोट और पैंटी पल भर मे अलग हो गयी. 'वो'भी उनके लंड के धक्का खा खा के गीली हो चुकी थी.

पहले तो उन्होने 'उसे' मुट्ठी मे भर के दबोच लिया और मसल दिया, फिर दो उगलियो के बीच मेरी गुलाबी पुट्तियो को कस के मसल दिया. उनका दूसरा हाथ मेरे चूतड़ के नीचे तकिये रख के उसे अच्छी तरह उभर रहा था. मेरी दोनो जंघे अपने आप फैल गयी थी. उनके चुंबन से अचानक मैं उछल पड़ी, सीधे वही पर और पूरी ताक़त से. उनके होंठ हट गये लेकिन अब उनकी ज़ुबान ने पहले तो हल्के से मेरे भागोश्ठो के बाहर से फिर हल्के से उसे फैला के वो अंदर घुसी, और थोड़ा अंदर तक चाटते हुए.पेलना शुरू किया. मैं मचल रही थी तड़प रही थी . उनकी सिर्फ़ जीभ मेरी देह के सम्पर्क मे थी और वो भी सिर्फ़ टिप मेरे अंदर घुसी, वो भी मेरी तरह,

मेरे अंदर मचल रही थी, तड़प रही थी. एक पल के लिए उन्होने जीभ बाहर निकाली और पूछा बोल कैसा लग रहा है.

उमौंह..उमूहमहममाओह उंह मेरी आवाज़े बता रही थी कि मुझे कैसा लग रहा है.

फिर क्या था, उन्होने ज़ुबान तो बाहर निकाल ली लेकिन अब उपर से कस कस के चापद चपड मेरी चिकनी चूत चटाना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर मे वो क्लिट के ठीक नीचे से शुरू कर के पीछे वाले छेद तक मैं कमर हिला रही थी पटक रही थी. लेकिन ये तो सिर्फ़ शुरू आत थी. कुछ ही देर मे मेरी कसी किशोर बुर , उनके होंठो के बीच थी और जीभ जो मज़ा, पिछली रातो मे उनका लंड ले रहा था, अंदर बाहर अंदर बाहर. पाँच * दस मिनेट मे ही मेरी हालत खराब थी. वो कस कस के मेरी चूत चूस रहे थे और हचा हच उनकी जीभ मेरी चूत चोद रही थी. मेर मन कर रहा था बस वो करें. जब उन्होने जीभ बाहर निकाली तो मुझे लगा कि अब वो शुरू करेंगे पर जीभ की जगह उनकी दो लंबी उंगलियो ने ली, वैसलीन मे अच्छी तरह लिथाडी चुपड़ी. एक बार मे ही उंगलिया जड़ तक अंदर. पहले तो वो खचाखच अंदर बाहर होती रही और फिर गोल गोल चारो ओर मेरी चूत के अंदर घुस के, उसे चौड़ा करती, उसकी दीवालो को रगड़ती वैसलीन लेप रही थी. उनकी जीभ मेरी डॉक्टर भाभी ने तो शादी के पहले ही मेरी क्लिट का घुघाट उघाड़ दिया था अब उत्तेजना के मारे वो खूब गुलाबी कड़ी मस्त. उनकी जीभ ने उसे हल्के से छू भर दिया तो मुझे लगा मेरी देह मे 440 वॉल्ट का करेंट लग गया.

लेकिन जीभ उसे रुक रुक के सहलाती रही, छेड़ती रही. उनके रस लेने मे एक्सपर्ट होंठो ने भी मेरी क्लिट भींच ली और उसे हल्के हल्के चूस रही थी.

"ओह ओह ओह और करो ना अब नही रहा जाता" मैं बेशरम हो के बोल रही थी. उन्होने मेरी क्लिट और कस के चूसना शुरू कर दिया.

"डालो ना ओह प्लीज़ डाल दो बस बस अब अओह्ह " मैं झड़ने के कगार पे थी. अब मूह उठा के उन्होने पूछा,

"बोल ना क्या डाल दू क्या करूँ. बोल ने साफ साफ." और फिर कस के क्लिट चूसने लगे.

"ओह ..ओह ओह्ह डाल दो अपना वो अपना लंड डाल दे..डाल."

"अरे लंड डाल का क्या करू मे री जान कहाँ डालूं" ये बोल के वो फिर से और अब के उन्होने मेरी क्लिट ह्ल्की सी होंठो से दबा भी दी.

मैं चूतड़ पटक रही थी. पूरी देह मे तरंग दौड़ रही थी. कस के उनके बाल पकड़ के भींच के बोली,

"अरे डाल डाल दो अपना लंड मेरी चूत मे ओह्ह चोद दो चोद मुझे ओह्ह."

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