संघर्ष

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rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 28 Dec 2014 09:21

संघर्ष--42

गतान्क से आगे..........

धन्नो की इस सलाह पर गुलाबी मुस्कुराते हुए बोली : “अरी सब बोलती हूँ री.....दो दिन पहले ही पोखरे पर ले जाकर उससे पुछि कि लंड देखी हो मर्द का...”

धन्नो: “तो....तो क्या बोली ..”

गुलाबी: “लज़ा गई....”

धन्नो: “कुच्छ बोली नहीं...?”

गुलाबी: “पहले तो चुप रही...फिर बड़ा पुच्छने पर ना बोली...लेकिन बाद मे हां बोली “

धन्नो: “क्या हाँ बोली ....”

गुलाबी: “यही कि लंड देखी है...और क्या..”

धन्नो: “किसका?”

गुलाबी: “अरी ऐसे ही वो बोली कि ....मुतते हुए लोंगो का लंड देखी है..”

धन्नो: “तू सच मे बड़ी छिनार है....” इतना कह कर धन्नो हँसने लगी

गुलाबी: “अब इसमे छिनार और बुरज़ार वाली कौन सी बात हो गई...?”

धन्नो: “तू ही तो कह रही थी कि जमुनिया फँस नही रही है...”

गुलाबी: “तो क्या कहूँ....हर बार लज़ा के रह जाती है...”

धन्नो: “तो क्या सीधे लंड खोर की तरह ठाकुर साहेब के लंड पे बैठ जाएगी.....अरी अभी नई नई है...थोड़ा और फुसला ले..गरम कर ले ...और जब लंड की बात करने लगे तो समझ ले उसे चुद्वाते देर नही लगेगी...”

गुलाबी: “मेरा भी यही अंदाज़ा है री”

धन्नो: “ना हो तो उसे खेतों की ओर ले जाकर खुद ही किसी से चुद्वा लिया कर...तुझे लंड खाते देखेगी तो मर्द का मतलब समझेगी.....”

गुलाबी: “वो साली खेतो की ओर जाती ही नही है....किसी तरह नहाने के बहाने पोखरे तक जाती है...”

धन्नो: “तुम्हारे घर मे आती है कि नही...”

गुलाबी: “घर मे पहले आती थी लेकिन वो सुक्खु की ग़लती से बिचुक गई...”

धन्नो: “वो तेरा प्रेमी क्या कर दिया”

गुलाबी: “तुम तो जानती हो ना कि सुक्खु कितना बड़ा चोदु है....चुचि पकड़ लिया जमुनिया का...”

धन्नो: “ऊ ....फिर क्या हुआ...”

गुलाबी: “वो मेरे घर आना छ्चोड़ दी....”

धन्नो: “तो तुझे सुक्खु बताया क्या...इसके बारे मे...”

गुलाबी: “नही...कोई मर्द भला अपने मुँह अपनी ग़लती क्यों बताएगा..”

धन्नो: “तो कैसे पता चला ये सब”

गुलाबी: “जब मेरे घर आना जाना छ्चोड़ दी ..तो उसे एक दिन अकेले मे खूब पुछि..”

धन्नो: “तो क्या बताई?”

गुलाबी: “पहले तो चुप रही...फिर यही बोली कि ...वो सुक्खु चाचा उसपर बुरी नज़र रखते हैं...”

धन्नो: “फिर आगे...क्या बोली...”

गुलाबी: “फिर चुप हो गई...और एकदम रोने जैसा मुँह बना ली...मानो रो देगी.....”

धन्नो: “सच मे...”

गुलाबी: “उसकी ये हाल देख के मैं तो सन्न रह गई...मुझे तो एक बार ऐसा लगा मानो सुक्खु ने उसका बाज़ा बजा दिया है...”

धन्नो: “सच मे क्या हुआ था...सुक्खु क्या किया था..”

गुलाबी: “जैसे ही उसका मुँह रोने जैसा हुआ... तो मैं झट से उसके सामने ही बुर खोल के बैठ गई और मूतने लगी...”

धन्नो: “फिर...”

गुलाबी: “मेरी बुर को देखते ही वो अपने मुँह दूसरी ओर फेर ली...फिर मूतने के बाद उससे खूब फुसला फुसला कर पुछि कि सुक्खु क्या क्या किया था...”

धन्नो: “क्या बताई...?”

गुलाबी: “वो बोली कि...एक दिन वो मुझे खोजते हुए घर मे आई तो कोई नही था...और अकेले मे सुक्खु उसे पकड़ लिया...”

धन्नो: “क्या पकड़ लिया...?”

गुलाबी: “मर्द भला क्या पकड़ेगा किसी लड़की का...अरी जमुनिया बोली कि सुक्खु उसकी चूची पकड़ लिया...”

धन्नो: “बस चूची ही पकड़ा कि चोद डाला...”

गुलाबी: “अरी नही री...एक बार तो उसका रोने जैसा मुँह देख कर शक़ हुआ कि कही चोद ना दिया हो लेकिन ...सच मे वो बस दोनो चुचिओ को मीस दिया था...”

धन्नो: “कैसे पता कि चोदा नही होगा अकेले मे...”

गुलाबी: “मैं सुक्खु से खुद पुछि थी..”

धन्नो: “तो क्या बताया...?”

गुलाबी: “हां वो भी बताया कि एक दिन दोपहर मे कोई नही था तो जमुनिया उसे खोजते आई थी..”

धन्नो: “तो क्या सुक्खु ने किया उसके साथ?”

गुलाबी: “वो जब सुक्खु से मेरे बारे मे पुछि तो वो बोला कि कोठरी मे अंदर है...और जैसे ही वो अंदर घुसी कि सुक्खु भी पीछे से उसे पकड़ लिया...सुक्खु ने उसकी दोनो चुचिओ को पकड़ के मीस दिया...”

धन्नो: “ऊ...और क्या किया...?”

rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 28 Dec 2014 09:22

गुलाबी: “मैं उससे पुछि कि सच सच बता और क्या किया..तो बताया कि बस चुचि को फ्रॉक के उपर से ही मीस दिया और नीचे चढ्ढि मे हाथ घुसा कर जैसे ही बुर की फांकों को मसला और बुर की छेद मे उंगली घुसाने की कोशिस की तो जमुनिया चिल्ला उठी...और सुक्खु उसे छोड़ दिया और वो भाग गई...”

धन्नो: “उंगली घुसा दिया था कि नही....”

गुलाबी: “सुक्खु बताया कि उंगली बस घुसाने की कोशिस कर रहा था कि वो चिल्ला उठी...”

धन्नो: “फिर....”

गुलाबी: “सुक्खु ही बताया कि बुर मे उंगली घुस ही नही रही थी....मानो एक दम कुँवारी बुर थी...”

धन्नो: “हाँ तो जमुनिया कुँवारी है ...”

गुलाबी: “मैने ये बात ठाकुर साहेब को भी बताई कि सुक्खु उसकी बुर मे उंगली घुसाने की कोशिस किया था और उसकी बुर एकदम कसी है...और उसकी उंगली भी घुस नही पाई..एक दम कुँवारी बुर की तरह...”

धन्नो: “तभी ठाकुर साहेब कुँवारी बुर के सपने देख रहे हैं...”

गुलाबी: “ठाकुर साहेब रोज़ जमुनिया के बारे मे पुछ्ते हैं...”

धन्नो: “चोद्वा दे साली को ...ठाकुर के मोटे लंड से...”

गुलाबी: “हां री ...मैं भी सोचती हूँ कि कब हरजाई की बुर मे ठाकुर साहेब का लंड धन्सेगा”

धन्नो: “मुझे तो लगता है कि....अब चुद्वा लेगी..”

गुलाबी: “हां री....मैने भी ठाकुर साहेब से बोली हूँ कि सब्र करिए ...जमुनिया की सील आप ही तोड़ोगे..”

धन्नो: “ठाकुर साहेब ये सुनकर मस्त गये होंगे....”

गुलाबी: “मत पुच्छ....अपने लंड पे रोज़ तेल मालिश करवाते हैं....जमुनिया की सील बंद बुर को चोद्ने का ख्वाब देख देख कर....”

धन्नो: “बड़ा भारी है री....मोटा बूमपीलाट लंड ठाकुर साहेब का...”

गुलाबी: (रास्ते मे रुक कर सावित्री की ओर देखकर मुस्कुराते हुए ) “ये तो सावित्री ही बताएगी कि कैसा है”

धन्नो: “रोज़ तू लंड खाती है...और सावित्री क्या बताएगी....” धन्नो हंसते हुए बोली.

गुलाबी: “आज तो ये भी पूरी निगल गई थी अपनी बुर मे...तो क्या मालूम नही चला होगा इसे...”

धन्नो: “तो पुच्छ ले इससे....बता दे री कैसा लगा ठाकुर साहेब का ओंज़ार....”

इतनी बात सुनते ही सावित्री लज़ा गई और रास्ते पर खड़ी हो कर उसकी ओर देख रही धन्नो और गुलाबी से नज़रें छुपाते हुई दूसरी ओर देखने लगी. मानो कुच्छ जबाव देना नही चाह रही थी. तभी धन्नो सावित्री की एक चुचि को हाथ मे पकड़ते बोली “बोल रीए...बोलती क्यों नही...बोल कैसा रहा लंड का स्वाद...हे हे हे” दूसरे ही पल सावित्री धन्नो के हाथ को अपनी चुचि पर से हटाते कुच्छ गुस्से से नखड़ा करते बोली “धत्त....चाची...चलो..”

धन्नो: “बोल री...कैसा रहा लंड....”

सावित्री: (अपने मुँह को दूसरी ओर फेरते हुए ) “मैं कुच्छ नही जानती...”

गुलाबी: “बुर चीरवा कर लंड खा ली...और अब सब भूल गई...”

सावित्री: “छ्चीए ....मैं नही बोलूँगी...”

धन्नो: “बोल री....कौन दूसरे से बोल रही है...हामी दोनो तो हैं और कौन तीसरा है...”

गुलाबी: “हां और क्या..अब लाज़ कैसा हरजाई...देख कितना मज़ा आया तुझे...”

धन्नो: “अच्च्छा ....बस ये बता दे कि मज़ा आया कि नही”

सावित्री कुच्छ पल के लिए चुप रही फिर मुस्कुरा दी. जिसे देख कर धन्नो बोली “बस ये बता दे मज़ा मिला कि नही ठाकुर साहेब के साथ...”

सावित्री : (मुस्कुराते हुए) “..हूँ..”

गुलाबी: “क्या...?”

सावित्री: “कुच्छ नहीं...”

धन्नो: “आरीए रंडी ....क्या लज़ा रही है मानो ससुर भसुर खड़ा है आगे...बोल दे..कैसा लगा”

सावित्री: “ठीक लगा”

गुलाबी: “क्या ठीक लगा?”

सावित्री: “वही..”

धन्नो: “क्या यही क्या वही....हरजाई बोल ना खोल के...मज़ा आया कि नही..?”

सावित्री: “बोली तो.”

धन्नो: “तो वही खोल के बोल..”

सावित्री: “कह तो रही हूँ...म मज़ा आया...” इतनी बात बोलते हुए सावित्री का बदन सिहर उठा

फिर गुलाबी और धन्नो दोनो रास्ते पर चलने लगीं और सबसे पीछे सावित्री भी चलने लगी. सुनसान खेतों के बीच पतले रास्ते पर चलते हुए आगे बातें करते हुए ...

गुलाबी: “मोटा लगा...”

सावित्री: “हूँ”

धन्नो: “धक्का तो ज़ोर ज़ोर से मार रहे थे.....कैसा लगा...”

सावित्री: (कुच्छ भी नही बोली और पीछे चुप चाप चल रही थी)

गुलाबी: “धक्का पसंद आया...ठाकुर साहेब का..”

सावित्री: “अब मैं कुच्छ नही बोलूँगी...”

धन्नो: “बस ये बता दे कि धक्का पसंद आया कि नही...”

सावित्री: “चलो पसंद आया लेकिन अब चाची कुच्छ मत पुछो....”

धन्नो: “अरी रंडी....इसी सब मे तो मज़ा आता है..”

सावित्री: “किस मे “

गुलाबी: “चोदा चोदि की बात मे...”

धन्नो: “पेला पेली की बात करेगी तो खूब मज़ा आएगा....”

गुलाबी: “इसी लिए तो पुच्छ रही हूँ...और तू लज़ा रही है..”

धन्नो: “देख हम दोनो का, मतलब मेरे और गुलाबी मे सब चलता है ....गरमा गरम बातें “

गुलाबी: “और क्या”

धन्नो: “देख गुलाबी अपने यार सुक्खु से कैसे कैसे चोद्वाती है...सब बताती है...”

गुलाबी: “और ये भी बता दे कि मेरे सामने ही तू भी सुक्खु से गांद उच्छाल उच्छाल के चोद्वाति है....”

धन्नो: “लाज़ कैसा रे...चोद्वाति हूँ तो चोद्वाति हूँ...मैं क्यों लजाउन्गि री.....”

गुलाबी: “अरी तो धन्नो ...ज़रा सुक्खु के लंड के बारे मे इसे बता दे...”

धन्नो: “लंड के बारे मे क्या करेगी सुनकर....अब कोई कुँवारी थोड़ी है ...जब चाहे सुक्खु का लंड मरवा ले अपनी बुर मे....”

सावित्री: “...छ्ची चाची....बस भी करो...”

धन्नो: “बस क्या रे ....यही जवानी की उमर है...खूब लूट ले मज़ा....ससुराल जाते ही बच्चे पैदा करने की मशीन बन जाओगी....”

गुलाबी: “और...चार छे बच्चे बियाने के बाद ......मौका नही मिलेगा चोद्वाने के लिए...”

धन्नो: “और बुर की लासम भी ख़त्म हो जाएगी...जो इस जवानी मे है..”

गुलाबी: “देख आज ठाकुर साहेब कितना चाव से तेरी चुदाई किए ....”

इस तरीके से बाते करती हुई तीनो सुनसान खेतों के बीच वाले रास्ते पर चलते एक छ्होटे से बगीचे के पास पहुँच गईं. जो गुलाबी के गाँव के बाहर कुच्छ ही दूरी पर था. तभी गाँव की ओर से एक 35-36 साल की औरत आ रही थी. लाल साड़ी मे, अच्छी कद काठी, माथे पर बिंदिया, माँग मे सिंदूर और पैर मे एक हवाई चप्पल था. हाथ मे एक खन्चोलि और उस खन्चोलि मे घास काटने वाला खुरपा था. गुलाबी उसे अपनी ओर आते देख धन्नो से धीमी आवाज़ मे बोली “वो देख ....मेरे गाँव के रामदास की औरत है..तीन बज गये ना...चल दी घास काटने...”

धन्नो: “घास काटने...अकेली ही जाती है क्या...”

गुलाबी: “अरे....ये भी नई खिलाड़ी निकल रही है...इसे जाने दे तब कहानी बताती हूँ....”

rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 28 Dec 2014 09:23

इतना सुनकर धन्नो आगे कुच्छ नही बोली. वो औरत धीरे धीरे अपनी चल से चलते हुए करीब आ गयी. ठीक आमने सामने आने के बाद सभी उस रास्ते पर एक जगह खड़ी हो गईं. वो औरत तीनो पर एक सरसरी नज़र दौड़ाई फिर गुलाबी की ओर देखते मुस्कुरा कर बोली “आरीए दीदी ...कहाँ से पूरी बारात ले कर आ रही हो ..”

गुलाबी: “अरी..ये बगल के गाँव की धन्नो है मेरी पुरानी सहेली..तू तो देखी होगी....लज्जो”

.लज्जो: “हाँ...अक्सर देखिति हूँ ....आते जाते...लेकिन इधेर कहाँ से...”

गुलाबी: “इसे घुमाने ले गई थी ठाकुर साहेब का खेत ...और ये है सावित्री....इसे काम चाहिए...सो ठाकुर साहेब के खेत पर लगा दूँगी..”

लज्जो: (सावित्री को सर से पाँव तक देखती हुई) “...हाँ ठीक है...अब पापी पेट है जो ना कराए...”

गुलाबी की इस झूठी बात ने सावित्री के मन मे एक बेचैनी दौड़ा दी. लेकिन वो खड़ी खड़ी अपने चेहरे को दूसरी ओर मोड़ कर खेतो की ओर देखने लगी. फिर लज्जो की ओर देखते हुए गुलाबी आगे बोली “.....अरी अपने बता रे लज्जो ...कहाँ की तैयारी है...ये खुरपा खांची ले कर...”

लज्जो: “कहाँ जाउन्गि....यही जो मेरे ससुर एक भैंस दरवाजे पर बाँध दिए...उसी के लिए..”

गुलाबी: “अरी दूध के तो मज़े होंगे..खूब.”

लज्जो: “...ना दीदी...अभी तो बियाने वाली है....”

गुलाबी: “तब तो बहुत बढ़िया है....कितने दिन बाद बिया जाएगी..”

लज्जो: “दीदी...वो मवेशी का डाक्टेर आया था....देख कर बोला ...एक हफ्ते का समय है..”

गुलाबी: (कुच्छ मज़ाक के लहजे मे ) “चुवा रही है कि नही......”

लज्जो: (कुच्छ लज़ाते हुए) “कई दिनो से तो....चू रही है...”( फिर अपने मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगी)

धन्नो हँसते हुए) “तब मवेशी डाक्टेर वही देख कर बोला होगा...”

लज्जो: “पता नही...”

गुलाबी: “अच्च्छा तू अपना बता....तू चू रही है कि नही...”

लज्जो: “बक्क दीदी...कुच्छ तो लाज़ किया करो....मैं जाती हूँ देर हो रही है...” इतना कहते हुए लज्जो हंस पड़ी और तेज़ी से बगल से होते हुए जाने लगी. फिर गुलाबी और धन्नो भी हंस पड़ी. तब रास्ते पर फिर चलने के पहले गुलाबी फिर जा रही लज्जो की ओर देखते पुछि “और सब तो ठीक है ना लज्जो...” तब लज्जो पलट कर देखते बोली “हां दीदी सब ठीक है...” और फिर अपने रास्ते पर चलने लगी.

उसके जाते ही तीनो फिर रास्ते पर चलने लगी. गुलाबी रास्ते पर चलते हुए धीरे से बोली “ये...साली नई चुड़क्कड़ निकल रही है मेरे गाँव की...”

धन्नो: “लेकिन बड़ी सीधी लगती है ये...”

गुलाबी: “लंड सबको अच्च्छा लगता है...देख इसका गाडिवान भी आता होगा...”

धन्नो: “किससे फँसी है?”

गुलाबी: “मेरे गाँव का एक आवारा है ...बद्री ...एक नंबर का चोदु है...”

धन्नो: “लेकिन देखने मे तो शरीफ लगती है...मानो एक दम पतिबरता”

गुलाबी: “अरी...वो बद्री ....स्साला इतना चोदु है कि ...कुच्छ ही दिनो मे इसे एक नंबर का लंडखोर बना देगा.”

धन्नो: “कितने साल का होगा? “

गुलाबी: “अरी ..तू उसे देखी तो है...वो जब एक बार हम दोनो खेत की ओर जा रहे थे तो रास्ते मे इसी बगीचे के पास मज़ाक कर रहा था..”

धन्नो: “अच्च्छा हाँ...वो जो 36-37 साल का आदमी था...जो तुझे कह रहा था कि ...ठाकुर से मन नही भर रहा है क्या भौजी..”

गुलाबी: “हां वही....बहुत चोदु है...गाँव मे एक नंबर का हरामी है...”

गुलाबी: “हाँ री...बड़ा गंदा मज़ाक करता है...और वो भी खुलेआम...”

धन्नो: “देवर तो लगेगा...तेरा “

गुलाबी: “कोई सगा देवर थोड़ी है...”

धन्नो: “गाँव का तो है ना...देवर तो देवर....मज़ाक तो करेगा ही ना...”

गुलाबी: “अरी ऐसा भी कोई मज़ाक करता है...एक दम खुल्लम खुल्ला बोल देता है...”

तभी रास्ते पर चल रही गुलाबी की नज़र तेज़ी से आ रहे बद्री के उपर पड़ गई. वह एक पल के लिए ठिठक गई. फिर पीछे धन्नो की ओर मूड कर बोली “देख ...राच्छस का नाम ली नही कि हाजिर...”

धन्नो: “कौन?”

गुलाबी: “वही री..बद्री...वो आ रहा है...साला जा रहा है उसे चोद्ने के लिए...”

धन्नो: “देख आज तुझे क्या बोलता है...तेरा देवर...”

गुलाबी: “आज तो मैं भी नही छ्चोड़ूँगी..”

धन्नो: “तू भी दे दे गाली कस के .......”

गुलाबी: “आज तो बोलेगा तो जबाव मैं भी दूँगी ...”

फिर रास्ते पर गाँव की ओर से बद्री तेज़ी से नज़दीक आ रहा था. गुलाबी और धन्नो दोनो चुपचाप रास्ते पर गाँव की ओर चल रहीं थीं. बद्री की नज़र जैसे ही तीनो पर पड़ी की गुलाबी से बोला “क्या री भौजी...कौन सा मेला देख कर आ रही है...” फिर बद्री रास्ते पर सामने ही खड़ा हो गया और तीनो भी रुक गईं.

गुलाबी: “कौन मेला...कैसा मेला...बद्री बाबू...क्या हो गया है तुम्हे...”

बद्री: “तो तीन तीन लोग इस दोपहरिया मे इधेर कहाँ से...”

गुलाबी: “अरी ठाकुर साहेब के खेत से ....और कहाँ से..”

बद्री: “तो मेला नही बल्कि केला खाने गई थी ठाकुर साहेब का...हा हा “

गुलाबी: “और तुम कहाँ जा रहे हो...मालूम है..”

बद्री: “अरी.का मालूम है भौजी...”

गुलाबी: “आगे आगे नई कुतिया गई है.. .जाओ और चोदो उसे.......” कुच्छ गुस्सा दीखाती बोली.

बद्री: “अरी भौजी ...कौन सी कुतिया...किस कुतिया की बात कर रही हो...सच कहूँ तो कुतिया तो तुम हो भौजी...तेरी बुर को..ठाकुर साहेब और सुक्खु, दोनो ने अपना मूसल डाल के चौड़ा कर दिए है..” इतना सुनते ही धन्नो अपने मुँह को साड़ी मे ढँक कर हंसते हुए लज़ाने का नाटक करने लगी.

गुलाबी: “..जाओ उस लज्जो को चोदो...गई है घास करने ना....खूब मालूम है ...कौन सी घास कर रही है....”

बद्री: “एक बात बोलूं भौजी...”

गुलाबी: “बोलो...”

बद्री: “ तुम कब दोगि मुझे....”

गुलाबी: (सावित्री की ओर देखते हुए) “अरी...तू पागल हो गया है क्या.....आज लज्जो का मिल रहा है तो जाओ और थूक लगा के चोदो.....”

बद्री: “लेकिन भौजी ...तुम्हारी कब मिलेगी ये बता...”

गुलाबी सावित्री और धन्नो की ओर देखते हुए ) “थोड़ा तो शरम किया कर बद्री...तू मुझे भौजी कहता है सो कुच्छ नही बोलती...दूसरा कोई होता तो जान ले लेती..”

बद्री: “भौजी...तू तो जानती है ना कि देवर भौजाई का रिश्ता ही ऐसा होता है....”

गुलाबी: (कुच्छ गुस्सा दीखाते हुए) “बद्री बाबू..देवर भौजाई से मज़ाक के बहाने बुर मे उंगली थोड़ी पेलता है...मज़ाक मज़ाक की तरह होता है...”

बद्री: “अरी भौजी ...मैं उंगली कहाँ पेल रहा हूँ...मैं तो ये लंड पेलने की बात कर रहा हूँ..”

क्रमशः………………………………………..

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