लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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The Romantic
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 09:43

“भौजी…चलो कमरे में चलते हैं !”

“वो..वो…क.. कम्मो…?” मैं तो कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।

“ओह.. तुम उसकी चिंता मत करो उसे दाल बाटी ठीक से पकाने में पूरे दो घंटे लगते हैं।”

“क्या मतलब…?”

“वो.. सब जानती है…! बहुत समझदार है खाना बहुत प्रेम से बनाती और खिलाती है।” जगन हौले-हौले मुस्कुरा रहा था।

अब मुझे सारी बात समझ आ रही थी। कल वापस लौटते हुए ये दोनों जो खुसर फुसर कर रहे थे और फिर रात को जगन ने मंगला के साथ जो तूफानी पारी खेली थी लगता था वो सब इस योजना का ही हिस्सा थी। खैर जगन ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया तो मैंने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल दी। मेरा जिस्म वैसे भी बहुत कसा हुआ और लुनाई से भरा है। मेरी तंग चोली में कसे उरोज उसके सीने से लगे थे। मैंने भी अपनी नुकीली चूचियाँ उसकी छाती से गड़ा दी।

हम दोनों एक दूसरे से लिपटे कमरे में आ गए।

उसने धीरे से मुझे बेड पर लेटा दिया और फिर कमरे का दरवाजे की सांकल लगा ली। मैं आँखें बंद किये बेड पर लेटी रही। अब जगन ने झटपट अपने सारे कपड़े उतार दिए। अब उसके बदन पर मात्र एक पत्तों वाला कच्छा बचा था। कच्छा तो पूरा टेंट बना था। वो मेरे बगल में आकर लेट गया और अपना एक हाथ मेरी साड़ी के ऊपर से ही मेरी चूत पर लगा कर उसका छेद टटोलने लगा। दूसरे हाथ से वो मेरे उरोजों को मसलने लगा।

फिर उसने मेरी साड़ी को ऊपर खिसकाना शुरू कर दिया। मैंने अपनी जांघें कस लीं। मेरी काली पेंटी में मुश्किल से फंसी मेरी चूत की मोटी फांकों को देख कर तो उसकी आँखें ही जैसे चुंधिया सी गई।

उसने पहले तो उस गीली पेंटी के ऊपर से सूंघा फिर उस पर एक चुम्मा लेते हुए बोला,”भौजी.. ऐसे मज़ा नहीं आएगा ! कपड़े उतार देते हैं।”

मैं क्या बोलती। उसने खींच कर पहले तो मेरी साड़ी और फिर पेटीकोट उतार दिया। मेरे विरोध करने का तो प्रश्न ही नहीं था। फिर उसने मेरा ब्लाउज भी उतार फेंका। मैं तो खुद जल्दी से जल्दी चुदने को बेकरार थी। मेरे ऊपर नशा सा छाने लगा था और मेरी आँखें उन्माद में डूबने लगी थी। मेरा अंदाज़ा था वो पहले मेरी चूत को जम कर चूसेगा पर वो तो मुझे पागल करने पर उतारू था जैसे। अब उसने मेरी ब्रा भी उतार दी तो मेरे रस भरे गुलाबी संतरे उछल कर जैसे बाहर आ गए। मेरे उरोजों की घुन्डियाँ ज्यादा बड़ी नहीं हैं बस मूंगफली के दाने जितनी गहरे गुलाबी रंग की हैं। उसने पहले तो मेरे उरोज जो अपने हाथ से सहलाया फिर उसकी घुंडी अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। मेरी सीत्कार निकलने लगी। मेरा मन कर रहा था वो इस चूसा-चुसाई को छोड़ कर जल्दी से एक बार अपना खूंटा मेरी चूत में गाड़ दे तो मैं निहाल हो जाऊं।

बारी-बारी उसने दोनों उरोजों को चूसा और फिर मेरे पेट, नाभि और पेडू को चूमता चला गया। अब उसने मेरी पेंटी के अंदर बने उभार के ऊपर मुँह लगा कर सूंघा और फिर उस उभार वाली जगह को अपने मुँह में भर लिया। मेरे सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई और मुझे लगा मेरी छमिया ने फिर पानी छोड़ दिया।

फिर उसने काली पेंटी को नीचे खिसकाना शुरू कर दिया। मैंने दो दिन पहले ही अपनी झांटे साफ़ की थी इसलिए वो तो अभी भी चकाचक लग रही थी। आपको बता दूं कि मेरी ज्यादा चुदाई नहीं हुई थी तो मेरी फांकों का रंग अभी काला नहीं पड़ा था। मोटी मोटी फांकों के बीच चीरे का रंग हल्का भूरा गुलाबी था। मरी चूत की दोनों फांकें इतनी मोटी थी कि पेंटी उनके अंदर धंस जाया करती थी और उसकी रेखा बाहर से भी साफ़ दिखती थी। उसने केले के छिलके की तरह मेरी पेंटी को निकाल बाहर किया। मैंने अपने चूतड़ उठा कर पेंटी को उतारने में पूरा सहयोग किया। पर पेंटी उतार देने के बाद ना जाने क्यों मेरी जांघें अपने आप कस गई।

अब उसने अपने दोनों हाथ मेरी केले के तने जैसी जाँघों पर रखे और उन्हें चौड़ा करने लगा। मेरा तो सारा खजाना ही जैसे खुल कर अब उसके सामने आ गया था। वो थोड़ा नीचे झुका और फिर उसने पहले तो मेरी चूत पर हाथ फिराए और फिर उस पतली लकीर पर उंगुली फिराते हुए बोला,”भौजी.. तुम्हारी लाडो तो बहुत खूबसूरत है। लगता है उस गांडू गणेश ने इसका कोई मज़ा नहीं लिया है।”

मैंने शर्म के मारे अपने हाथ अपने चहरे पर रख लिए। अब उसने दोनों फांकों की बालियों को पकड़ कर चौड़ा किया और फिर अपनी लपलपाती जीभ उस झोटे की तरह मेरी लाडो की झिर्री के नीचे से लेकर ऊपर तक फिर दी। फिर उसने अपनी जीभ को 3-4 बार ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फिराया। मेरी लाडो तो पहले से ही काम रस से लबालब भरी थी। मैंने अपने आप ओ रोकने की बहुत कोशिश की पर मेरी सीत्कार निकलने लगी। कुछ देर जीभ फिराने के बाद उसने मेरी लाडो को पूरा का पूरा मुँह में भर लिया और जोर जोर से चूसने लगा। मेरे लिए यह किसी स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था।

गणेश को चूत चाटने और चूसने का बिलकुल भी शौक नहीं है। एक दो बार मेरे बहुत जोर देने पर उसने मेरी छमिया को चूसा होगा पर वो भी अनमने मन से। जिस तरह से जगन चुस्की लगा रहा था मुझे लगा आज मेरा सारा मधु इसके मुँह में ही निकल जाएगा। उसकी कंटीली मूंछें मेरी लाडो की कोमल त्वचा पर रगड़ खाती तो मुझे जोर की गुदगुदी होती और मेरे सारे शरीर में अनोखा रोमांच भर उठता।

उसने कोई 5-6 मिनट तो जरुर चूसा होगा। मेरी लाडो ने कितना शहद छोड़ा होगा मुझे कहाँ होश था। पता नहीं यह चुदाई कब शुरू करेगा। अचानक वो हट गया और उसने भी अपने कच्छे को निकाल दिया। 8 इंच काला भुजंग जैसे अपना फन फैलाए ऐसे फुन्कारें मार रहा था जैसे चूत में गोला बारी करने को मुस्तैद हो। उसने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ लिया और 2-3 बार उसकी चमड़ी ऊपर नीचे की फिर उसने नीचे होकर मेरे होंठों के ऊपर फिराने लगा। मैंने कई बार गणेश की लुल्ली चूसी थी पर यह तो बहुत मोटा था। मैंने उसे अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों में पकड़ लिया। आप उस की लंबाई और मोटाई का अंदाज़ा बखूबी लगा सकते हो कि मेरी दोनों मुट्ठियों में पकड़ने के बावजूद भी उसका सुपारा अभी बाहर ही रह गया था। मैंने अपनी दोनों बंद मुट्ठियों को 2-3 बार ऊपर नीचे किया और फिर उसके सुपारे पर अपनी जीभ फिराने लगी तो उसका लण्ड झटके खाने लगा।

“भौजी इसे मुँह में लेकर एक बार चूसो बहुत मज़ा आएगा।”

मैंने बिना कुछ कहे उसका सुपारा अपने मुँह में भर लिया। सुपारा इतना मोटा था कि मुश्किल से मेरे मुँह में समाया होगा। मैंने उसे चूसना चालू कर दिया पर मोटा होने के कारण मैं उसके लण्ड को ज्यादा अंदर नहीं ले पाई। अब तो वो और भी अकड़ गया था। जगन ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ कर सीत्कार करने लगा था। मुझे डर था कहीं उसका लण्ड मेरे मुँह में ही अपनी मलाई ना छोड़ दे। मैं ऐसा नहीं चाहती थी। 3-4 मिनट चूसने के बाद मैंने उसका लण्ड अपने मुँह से बाहर निकाल दिया। मेरा तो गला और मुँह दोनों दुखने लगे थे।

अब वो मेरी जाँघों के बीच आ गया और मेरी चूत की फांकों पर लगी बालियों को चौड़ा करके अपने लण्ड का सुपारा मेरी छमिया के छेद पर लगा दिया। मैं डर और रोमांच से सिहर उठी। हे झूले लाल…. इतना मोटा और लंबा मूसल कहीं मेरी छमिया को फाड़ ही ना डाले। मुझे लगा आज तो मेरी लाडो का चीरा 4 इंच से फट कर जरुर 5 इंच का हो जाएगा। पर फिर मैंने सोचा जब ओखली में सर दे ही दिया है तो अब मूसल से क्या डरना।

अब उसने अपना एक हाथ मेरी गर्दन के नीचे लगा लिया और दूसरे हाथ से मेरे उरोजों को मसलने लगा। फिर उसने अपनी अंगुली और अंगूठे के बीच मेरे चुचूक को दबा कर उसे धीरे धीरे मसलने लगा। मेरी सिसकारी निकल गई। मेरी छमिया तो जैसे पीहू पीहू करने लगी थी। उसका मोटा लण्ड मेरी चूत के मुहाने पर ठोकर लगा रहा था। मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी यह अपना मूसल मेरी छमिया में डाल कर उसे ओखली क्यों नहीं बना रहा। मेरा मन कर रहा था कि मैं ही अपने नितंब उछाल कर उसका लण्ड अंदर कर लूँ। मेरा सारा शरीर झनझना रहा था और मेरी छमिया तो जैसे उसका स्वागत करने को अपना द्वार चौड़ा किये तैयार खड़ी थी।

अचानक उसने एक झटका लगाया और फिर उसका मूसल मेरी छमिया की दीवारों को चौड़ा करते हुए अंदर चला गया। मेरी तो मारे दर्द के चीख ही निकल गई। धक्का इतना जबरदस्त था कि मुझे दिन में तारे नज़र आने लगे थे। मुझे लगा उसका मूसल मेरी बच्चेदानी के मुँह तक चला गया है और गले तक आ जाएगा। मैं दर्द के मारे कसमसाने लगी। उसने मुझे कस कर अपनी अपनी बाहों में जकड़े रखा। उसने अपने घुटने मोड़ कर अपनी जांघें मेरी कमर और कूल्हों के दोनों ओर ज्यादा कस ली। मैं तो किसी कबूतरी की तरह उसकी बलिष्ट बाहों में जकड़ी फड़फड़ा कर ही रह गई। मेरे आंसू निकल गए और छमिया में तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे तीखी छुरी से चीर दिया है। मुझे तो डर लग रहा था कहीं वो फट ना गई हो और खून ना निकलने लगा हो।

कुछ देर वो मेरे ऊपर शांत होकर पड़ा रहा। उसने अपनी फ़तेह का झंडा तो गाड़ ही दिया था। उसने मेरे गालों पर लुढ़क आये आंसू चाट लिए और फिर मेरे अधरों को चूसने लगा। थोड़ी देर में उसका लण्ड पूरी तरह मेरी चूत में समायोजित हो गया। मुझे थोड़ा सा दर्द तो अभी भी हो रहा था पर इतना नहीं कि सहन ना किया जा सके। साथ ही मेरी चूत की चुनमुनाहट तो अब मुझे रोमांचित भी करने लगी थी। अब मैंने भी सारी शर्म और दर्द भुला कर आनंद के इन क्षणों को भोगने का मन बना ही लिया था। मैंने उसकी जीभ अपने मुँह में भर ली और उसे ऐसे चूसने लगी जैसे उसने मेरी छमिया को चूसा था। कभी कभी मैं भी अपनी जीभ उसके मुँह में डालने लगी थी जिसे वो रसीली कुल्फी की तरह चूस रहा था।

उसने हालांकि मेरी छमिया की फांकों और कलिकाओं को बहुत कम चूसा था पर जब वो कलिकाओं को पूरा मुँह में भर कर होले होले उनको खींचता हुआ मुँह से बाहर निकालता था तो मेरा रोमांच सातवें आसमान पर होता था। जिस अंदाज़ में अब वो मेरी जीभ चूस रहा था मुझे बार बार अपनी छमिया के कलिकाओं की चुसाई याद आ रही थी।

ओह… मैं भी कितना गन्दा सोच रही हूँ। पर आप सभी तो बहुत गुणी और अनुभवी हैं, जानते ही हैं कि प्रेम और चुदाई में कुछ भी गन्दा नहीं होता। जितना मज़ा इस मनुष्य जीवन में ले लिया जाए कम है। पता नहीं बाद में किस योनि में जन्म हो या फिर कोई गणेश जैसा लोल पल्ले पड़ जाए।

मेरी मीठी सीत्कार अपने आप निकलने लगी थी। मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब जगन ने होले होले धक्के भी लगाने शुरू कर दिए थे। मुझे कुछ फंसा फंसा सा तो अनुभव हो रहा था पर लण्ड के अंदर बाहर होने में कोई दिक्कत नहीं आ रही थी। वो एक जोर का धक्का लगता और फिर कभी मेरे गालों को चूम लेता और कभी मेरे होंठों को। कभी मेरे उरोजों को चूमता मसलता और कभी उनकी घुंडियों को दांतों से दबा देता तो मेरी किलकारी ही गूँज जाती। अब तो मैं भी नीचे से अपने नितम्बों को उछल कर उसका साथ देने लगी थी।

हम दोनों एक दूसरे की बाहों में किसी अखाड़े के पहलवानों की तरह गुत्थम गुत्था हो रहे थे। साथ साथ वो मुझे गालियाँ भी निकाल रहा था। मैं भला पीछे क्यों रहती। हम दोनों ने ही चूत भोसड़ी लण्ड चुदाई जैसे शब्दों का भरपूर प्रयोग किया। जितना एक दूसरे को चूम चाट और काट सकते थे काट खाया। जितना उछल-कूद और धमाल मचा सकते थे हमने मचाई। वो कोशिश कर रहा था कि जितना अंदर किया जा सके कर दे। इतनी कसी हुई चूत उसे बहुत दिनों बाद नसीब हुई थी। मैंने अपनी जांघें जितनी चौड़ी की जा सकती थी कर ली ताकि वो ज्यादा से ज्यादा अंदर डाल सके। मुझे तो लगा मैं पूर्ण सुहागन तो आज ही बनी हूँ। सच कहूं तो इस चुदाई जैसे आनंद को शब्दों में तो वर्णित किया ही नहीं जा सकता।

वो लयबद्ध ढंग से धक्के लगता रहा और मैं आँखें बंद किये सतरंगी सपनों में खोई रही। वो मेरा एक चूचक अपने मुँह में भर कर चूसे जा रहा था और दूसरे को मसलता जा रहा था। मैं उसके सर और पीठ को सहला रही थी। और उसके धक्कों के साथ अपने चूतड़ भी ऊपर उठाने लगी थी। इस बार जब मैंने अपने चूतड़ उछाले तो उसने अपना एक हाथ मेरे नितंबों के नीचे किया और मेरी गांड का छेद टटोलने लगा।

पहले तो मैंने सोचा कि चूत से निकला कामरज वहाँ तक आ गया होगा पर बाद में मुझे पता चला कि उसने अपनी तर्जनी अंगुली पर थूक लगा रखा था। तभी मुझे अपनी गांड पर कुछ गीला गीला सा लगा। इससे पहले कि मैं कुछ समझती उसने अपनी थूक लगी अंगुली मेरी गांड में डाल दी। उसके साथ ही मेरी हर्ष मिश्रित चीख सी निकल गई। मुझे लगा मैं झड़ गई हूँ।

“अबे…ओ…बहन के टके…भोसड़ी के…ओह…”

“अरे मेरी छमिया… तेरी लाडो की तरह तेरी गांड भी कुंवारी ही लगती है ?”

“अबे साले….. मुफ्त की चूत मिल गई तो लालच आ गया क्या ?” मैंने अपनी गांड से उसकी उंगुली निकालने की कोशिश करते हुए कहा।

“भौजी.. एक बार गांड मार लेने दो ना ?” उसने मेरे गालों को काट लिया।

“ना…बाबा… ना… यह मूसल तो मेरी गांड को फाड़ देगा। तुमने इस चूत का तो लगता है बैंड बजा दिया है, अब गांड का बाजा नहीं बजवाऊंगी।”

मेरे ऐसा कहने पर उसने अपना लण्ड मेरी चूत से बाहर निकाल लिया। मैंने अपना सर उठा कर अपनी चूत की ओर देखा। उसकी फांकें फूल कर मोटी और लाल हो गई थी और बीच में से खुल सी गई थी। मुझे अपनी चूत के अंदर खालीपन सा अनुभव हो रहा था। मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी उसने बीच में ही चुदाई क्यों बंद कर दी।

“भौजी एक बार तू घुटनों के बल हो जा !”

“क..क्यों…?” मैंने हैरान होते हुए पूछा।

हे झूले लाल ! कहीं यह अब मेरी गांड मारने के चक्कर में तो नहीं है। डर के मारे में सिहर उठी। मैं जानती थी मैं इस मूसल को अपनी गांड में नहीं ले पाउंगी।

“ओहो… एक बार मैं जैसा कहता हूँ करो तो सही…जल्दी…”

“ना बाबा मैं गांड नहीं मारने दूंगी। मेरी तो जान ही निकल जायेगी..”

“अरे मेरी बुलबुल ! तुम्हें मरने कौन साला देगा। एक बार गांड मरवा लो जन्नत का मज़ा आ जाएगा तुम्हें भी। सच कहता हूँ तुम्हारी कसी हुई कुंवारी गांड के लिए तो मैं मरने के बाद ही कब्र से उठ कर आ जाऊँगा..”

“न… ना… आज नहीं…. बाद में…” मैं ना तो हाँ कर सकती थी और ना ही उसे मन कर सकती थी। मुझे डर था वो कहीं चुदाई ही बंद ना कर दे। इसलिए मैंने किसी तरह फिलहाल उससे पीछा छुड़ाया।

“अरे मेरी सोन-चिड़ी ! मेरी रामकली ! एक बार इसका मज़ा लेकर तो देखो तुम तो इस्सस …. कर उठोगी और कहोगी वंस मोर… वंस मोर…?”

“अरे मेरे देव दास इतनी कसी हुई चूत मिल रही है और तुम लालची बनते जा रहे हो ?”

“चलो भई कोई बात नहीं मेरी बिल्लो पर उस आसान में चूत तो मार लेने दो…?”

“ओह… मेरे चोदू-राजा अब आये ना रास्ते पर !” मेरे होंठों पर मुस्कान फिर से लौट आई।

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 09:44

चौथे भाग से आगे :

“अरे मेरी सोन-चिड़ी ! मेरी रामकली ! एक बार इसका मज़ा लेकर तो देखो तुम तो इस्सस …. कर उठोगी और कहोगी वंस मोर… वंस मोर…?”

“अरे मेरे देव दास इतनी कसी हुई चूत मिल रही है और तुम लालची बनते जा रहे हो ?”

“चलो भई कोई बात नहीं मेरी बिल्लो पर उस आसन में चूत तो मार लेने दो…!”

“ओह… मेरे चोदू-राजा अब आये ना रास्ते पर !” मेरे होंठों पर मुस्कान फिर से लौट आई।

मैं झट से अपने घुटनों के बल (डॉगी स्टाइल में) हो गई। अब वो मेरे पीछे आ गया। उसने पहले तो अपने दोनों हाथों से मेरे नितंबों को चौड़ा किया और फिर दोनों नितंबों को बारी बारी चूम लिया। फिर उसने उन पर थपकी सी लगाई जैसे किसी घोड़ी की सवारी करने से पहले उस पर थपकी लगाई जाती है। फिर उसने अपने लण्ड को मेरी फांकों पर घिसना चालू कर दिया। मैंने अपनी जांघें चौड़ी कर ली। उसने अपना लण्ड फिर छेद पर लगाया और मेरी कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगाया। एक गच्च की आवाज़ के साथ पूरा लण्ड अंदर चला गया। धक्का इतना तेज था कि मेरा सर ही नीचे पड़े तकिये से जा टकराया।

“उईईईईई…. मा…. म… मार डा…ला…रे…मादर चो…!!”

“मेरी जान अब देखना कितना मज़ा आएगा।”

कह कर उसने उसने दनादन धक्के लगाने शुरू कर दिए।

“अबे बहन चोद जरा धीरे… आह….”

“बहनचोद नहीं भौजी चोद बोलो…”

“ओह… आह…धीरे… थोड़ा धीरे…”

“क्यों…?”

“मुझे लगता है मेरे गले तक आ गया है…”

“साली बहन की लौड़ी… नखरे करती है…यह ले… और ले…” कह कर वो और तेज तेज धक्के लगाने लगा।

यह पुरुष प्रवृति होती है। जब उसे अपनी मन चाही चीज़ के लिए मना कर दिया जाए तो वो अपनी खीज किसी और तरीके से निकालने लगता है। जगन की भी यही हालत थी। वो कभी मेरे नितंबों पर थप्पड़ लगाता तो कभी अपने हाथों को नीचे करके मेरे उरोजों को पकड़ लेता और मसलने लगता। ऐसा करने से वो मेरे ऊपर कुछ झुक सा जाता तो उसके लटकते भारी टट्टे मेरी चूत पर महसूस होते तो मैं तो रोमांच में ही डूब जाती। कभी कभी वो अपना एक हाथ नीचे करके मेरे किशमिश के दाने को भी रगड़ने लगाता। मैं तो एक बार फिर से झड़ गई।

हमें इस प्रकार उछल कूद करते आधा घंटा तो हो ही गया होगा पर जगन तो थकने का नाम ही नहीं ले रहा था। वो 3-4 धक्के तो धीरे धीरे लगाता और फिर एक जोर का धक्का लगा देता और साथ ही गाली भी निकलता हुआ बड़बड़ा रहा था। पता नहीं क्यों उसकी मार और गालियाँ मुझे दर्द के स्थान पर मीठी लग रही थी। मैं उसके हर धक्के के साथ आह…. ऊंह…. करने लगी थी। मेरी चूत ने तो आज पता नहीं कितना रस बहाया होगा पर जगन का रस अभी नहीं निकला था।

मैं चाह रही थी कि काश वक्त रुक जाए और जगन इसी तरह मुझे चोदता रहे। पर मेरे चाहने से क्या होता आखिर शरीर की भी कुछ सीमा होती है। जगन की सीत्कारें निकलने लगी थी और वो आँखें बंद किये गूं..गूं… या… करने लगा था। मुझे लगा अब वो जाने वाला है। मैंने अपनी चूत का संकोचन किया तो उसके लण्ड ने भी अंदर एक ठुमका सा लगा दिया। अब उसने मेरी कमर कस कर पकड़ ली और जोर जोर से धक्के लगाने लगा।

“मेरी प्यारी भौजी… आह… मेरी जान… मेरी न.. नीर…ररर..रू….”

मुझे भी कहाँ होश था कि वो क्या बड़बड़ा रहा है। मेरी आँखों में भी सतरंगी सितारे झिलमिलाने लगे थी। मेरी चूत संकोचन पर संकोचन करने लगी और गांड का छेद खुलने बंद होने लगा था। मुझे लगा मेरा एक बार फिर निकलने वाला है।

इसके साथ ही जगन ने एक हुंकार सी भरी और मेरी कमर को कस कर पकड़ते हुए अपना पूरा लण्ड अंदर तक ठोक दिया और मेरी नितंबों को कस कर अपने जाँघों से सटा लिया। शायद उसे डर था कि इन अंतिम क्षणों में मैं उसकी गिरफ्त से निकल कर उसका काम खराब ना कर दूँ।

“ग….इस्सस्सस्सस……. मेरी जान……”

और फिर गर्म गाढ़े काम-रस की फुहारें निकलने लगी और मेरी चूत लबालब उस अनमोल रस से भरती चली गई। जगन हांफने लगा था। मेरी भी कमोबेश यही हालत थी। मैंने अपनी चूत को एक बार फिर से अंदर से भींच लिया ताकि उसकी अंतिम बूँदें भी निचोड़ लूँ। एक कतरा भी बाहर न गिरे। मैं भला उस अमृत को बाहर कैसे जाने दे सकती थी।

अब जगन शांत हो गया। मैं अपने पैर थोड़े से सीधे करते हुए अपने पेट के बल लेटने लगी पर मैंने अपने नितंब थोड़े ऊपर ही किये रखे। मैंने अपने दोनों हाथ पीछे करके उसकी कमर पकड़े रखी ताकि उसका लण्ड फिसल कर बाहर ना निकल जाए। अब वो इतना अनाड़ी तो नहीं था ना। उसने मेरे दोनों उरोजों को पकड़ लिया और हौले से मेरे ऊपर लेट गया। उसका लण्ड अभी भी मेरी चूत में फंसा था। अब वो कभी मेरे गालों को चूमता कभी मेरे सर के बालों को कभी पीठ को। रोमांच के क्षण भोग कर हम दोनों ही निढाल हो गए पर मन बही नहीं भरा था। मन तो कह रहा था ‘और दे….और दे….’

थोड़ी देर बाद हम दोनों उठ खड़े हुए। मैं कपड़े पहन कर बाहर कम्मो को देखने जाना चाहती थी। पर जगन ने मुझे फिर से पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने भी बड़ी अदा से अपनी बाहें उसके गले में डाल कर उसके होंठों पर एक जोर का चुम्मा ले लिया।

उसके बाद हमने एक बार फिर से वही चुदाई का खेल खेला। और उसके बाद 4 दिनों तक यही क्रम चलता रहा। कम्मो हमारे लिए स्वादिस्ट खाना बनाती पर हमें तो दूसरा ही खाना पसंद आता था। कम्मो मेरे गालों और उरोजों के पास हल्के नीले निशानों को देख कर मन्द-मन्द मुस्कुराती तो मैं मारे शर्म के कुछ बताने या कहने के बजाय यही कहती,”कम्मो तुम्हारे हाथ का यह खाना मुझे जिंदगी भर याद रहेगा।”

अब वो इतनी भोली भी नहीं थी कि यह ना जानती हो कि मैं किस मजेदार खाने की बात कर रही हूँ। आप भी तो समझ गए ना या गणेश की तरह लोल ही हैं ?

बस और क्या कहूँ चने के खेत में चौड़ी होने की यही कहानी है। मैंने उन 4 दिनों में जंगल में मंगल किया और जो सुख भोगा था वो आज तक याद करके आहें भरती रहती हूँ। उसने मुझे लगभग हर आसान में चोदा था। हमने चने और सरसों की फसल के बीच भी चुदाई का आनंद लिया था। मैं हर चुदाई में 3-4 बार तो जरुर झड़ी होऊंगी पर मुझे एक बात का दुःख हमेशा रहेगा मैंने जगन से अपनी गांड क्यों नहीं मरवाई। उस बेचारे ने तो बहुत मिन्नतें की थी पर सच पूछो तो मैं डर गई थी। आज जब उसके मोटे लंबे लण्ड पर झूमता मशरूम जैसा सुपारा याद करती हूँ तो दिल में एक कसक सी उठती है। बरबस मुझे यह गाना याद आ जाता है :

सोलहा बरस की कुंवारी कली थी

घूँघट में मुखड़ा छुपा के चली थी

हुई चौड़ी चने के खेत में….

काश मुझे दुबारा कोई ऐसा मिल जाए जिसका लण्ड खूब मोटा और लंबा हो और सुपारा आगे से मशरूम जैसा हो जिसे वो पूरा का पूरा मेरी गांड में डाल कर मुझे कसाई के बकरे की तरह हलाल कर दे तो मैं एक बार फिर से उन सुनहरे पलों को जी लूँ।

मेरे लिए आमीन……. तो बोल दो कंजूस कहीं के…..

बस दोस्तों ! आज इतना ही। पर आप मुझे यह जरूर बताना कि यह कहानी आपको कैसी लगी

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 09:47

मधुर प्रेम मिलन


मेरी प्यारी पाठिकाओ,

मधुर की एक बात पर मुझे कई बार गुस्सा भी आता है और बाद में हंसी भी आती है। वो अक्सर बाथरूम में जब नहाने के लिए अपने सारे कपड़े उतार देती है तब उसे तौलिये और साबुन की याद आती है। अभी वो बाथरूम में ही है और आज भी वो सूखा तौलिया ले जाना भूल गई है। अन्दर से उसकी सुरीली आ रही है :

पालकी पे हो के सवार चली रे …

मैं तो अपने साजन के द्वार चली रे

अचानक बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला और मधुर ने अपनी अपनी मुंडी बाहर निकलकर मुझे अलमारी से नया तौलिया निकाल कर लाने को कहा। मुझे पता है आज वो मुझे अपने साथ बाथरूम के अन्दर तो बिलकुल नहीं आने देगी और कम से कम एक घंटा तो बाथरूम में जरूर लगाएगी क्योंकि पिछली रात हमने 2.00 बजे तक प्रेम युद्ध जो किया था। आप सोच रहे होंगे ऐसा क्या था पिछली रात में। ओह … आप नहीं जानते 10 नवम्बर हमारी शादी की वर्षगाँठ आती है तो हम सारी रात एक दूसरे की बाहों में लिपटे प्रेम युद्ध करते रहते हैं।

अलमारी खोल कर जैसे ही मैंने दूसरे कपड़ों के नीचे रखे तौलिये को बाहर खींचा तो उसके नीचे दबी एक काले जिल्द वाली डायरी नीचे गिर पड़ी। मुझे बड़ी हैरानी हुई, मैंने पहले इस डायरी को कभी नहीं देखा। मैंने उत्सुकतावश उसका पहला पृष्ठ खोला।

अन्दर लिखा था “मधुर प्रेम मिलन” और डायरी के बीच एक गुलाब का सूखा फूल भी दबा था।

मैं अपने आप को कैसे रोक पाता । मैंने उस डायरी को अपने कुरते की जेब में डाल लिया और मधुर को तौलिया पकड़ा कर ड्राइंग रूम में आ गया। मैंने धड़कते दिल से उस डायरी को पुनः खोला। ओह … यह तो मधुर की लिखावट थी। पहले ही पृष्ठ पर लिखा था मधुर प्रेम मिलन 11 नवम्बर, 2003 ओह… यह तो हमारी शादी के दूसरे दिन यानी सुहागरात की तारीख थी। मैंने कांपते हाथों से अगला पृष्ठ खोला। लिखा था :

11 नवम्बर, 2003

दाम्पत्य जीवन में मिलन की पहली रात को सुहागरात कहते हैं। वर और वधू दोनों के मन में इस रात के मिलन की अनेक रंगीन एवं मधुर कल्पनाएँ होती हैं जैसे पहली रात अत्यंत आनंदमयी, गुलाबी, रोमांचकारी मिलन की रात होगी। फूलों से सजी सेज पर साज़ श्रृंगार करके अपने प्रियतम की प्रतीक्षा में बैठी नव वधू अपने प्रियतम के बाहुपाश में बांध कर असीम अलौकिक आनंद का अनुभव करेगी। जैसे हर लड़की के ह्रदय में विवाह और मधुर मिलन (सुहागरात) को लेकर कुछ सपने होते हैं मेरे भी कुछ अरमान थे।

ओह … पहले मैंने अपने बारे में थोड़ा बता दूँ। मैं मधुर उम्र 23 साल। 10 नवम्बर, 2003 को मेरी शादी प्रेम माथुर से हुई है। और आज मैं प्रेम की बाहों में आकर कुमारी मधुर शर्मा से श्रीमती मधुर माथुर बन गई हूँ। प्रेम तो मेरे पीछे ही पड़े हैं कि मैं हमारे मधुर मिलन के बारे में अपना अनुभव लिखूं । ओह…. मुझे बड़ी लाज सी आ रही है। अपने नितांत अन्तरंग क्षणों को भला मैं किसी को कैसे बता सकती हूँ। पर मैंने निश्चय किया है कि मैं उन पलों को इस डायरी में उकेरूंगी जिसे कोई दूसरा नहीं जान पायेगा और जब हम बूढ़े हो जायेंगे तब मैं प्रेम को किसी दिन बहाने से यह डायरी दिखाऊँगी तो वो मुझे अपनी बाहों में जकड़ लेंगे और एक बार फिर से हम दोनों इन मधुर स्मृतियों में खो जाया करेंगे।

मैं सोलह श्रृंगार किए लाल जोड़े में फूलों से सजी सुहाग-सेज पर लाज से सिमटी बैठी उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। कमरे में मध्यम प्रकाश था। भीनी-भीनी मोगरे, गुलाब और चमेली की सुगंध फैली थी। सुहागकक्ष तो मेरी कल्पना से भी अधिक सुन्दर सजा था। पलंग के ठीक ऊपर 5-6 फुट की ऊंचाई पर गुलाब और गैंदे के फूलों की झालरें लगी थी। बिस्तर पर सुनहरे रंग की रेशमी चादर के ऊपर गुलाब और मोगरे की पत्तियाँ बिछी थी और चार मोटे मोटे तकिये रखे थे। पलंग के बगल में छोटी मेज पर चांदी की एक तश्तरी में पान, दूसरी में कुछ मिठाइयाँ, एक थर्मस में गर्म दूध और पास में दो शीशे के ग्लास रखे थे। दो धुले हुए तौलिये, क्रीम, वैसलीन, तेल की शीशियाँ और एक लिफ़ाफ़े में फूल मालाएं (गज़रे) से रखे थे। पलंग के दूसरी और एक छोटी सी मेज पर नाईट लैम्प मध्यम रोशनी बिखेर रहा था और उसके पास ही एक गुलाब के ताज़ा फूलों का गुलदान रखा था। मेरी आँखें एक नए रोमांच, कौतुक और भय से बंद होती जा रही थी। पता नहीं वो आकर मेरे साथ कैसे और क्या-क्या करेंगे।ऐसा विचार आते ही मैं और भी सिकुड़ कर बैठ गई।

बाहर कुछ हँसने की सी आवाज ने मेरा ध्यान खींचा। अचानक दरवाजा खुला और मीनल और उसकी एक सहेली के साथ प्रेम ने अन्दर प्रवेश किया। प्रेम तो खड़े रहे पर ये दोनों तो मेरे पास ही आकर बैठ गई।

फिर उन्होंने प्रेम को संबोधित करते हुए कहा,”भाभी को ज्यादा तंग ना करियो प्रेम भैया !”

और दोनों खिलखिला कर जोर जोर से हंसने लगी।

“ओह…. मीनल अब तुम दोनों जाओ यहाँ से !”

“अच्छाजी … क्यों … ? ऐसी क्या जल्दी है जी ?” वो दोनों तो ढीठ बनी हंसती रही, जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।

प्रेम क्या बोलता। उनकी हालत देख कर मीनल उठते हुए बोली,”चलो भाई, अब हमारा क्या काम है यहाँ। जब तक मंगनी और शादी नहीं हुई थी तब तक तो हमारा साथ बहुत प्यारा लगता था, अब हमें कौन पूछेगा ? चल नेहा हम कबाब में हड्डी क्यों बनें ? इन दोनों को कबाब खाने दो … मेरा मतलब …. प्रेम मिलन करने दे ! देखो बेचारे कैसे तड़फ रहे हैं !”

दोनों खिलखिला कर हंसती हुई बाहर चली गई। मीनल वैसे तो मेरी चचेरी बहन है पर रिश्ते में प्रेम की भी मौसेरी बहन लगती है। प्रेम के साथ मेरी शादी करवाने में मुख्य भूमिका इसी की रही थी। सुधा भाभी तो अपनी छोटी बहन माया (माया मेम साब) के साथ करवाना चाहती थी पर मीनल और चाची के जोर देने पर मेरा रिश्ता इन्होंने स्वीकार कर लिया था। दरअसल एक कारण और भी था।

मीनल बताती है कि प्रेम को बिल्लौरी आँखें बहुत पसंद हैं। अगर किसी लड़की की ऑंखें बिल्लोरी हों तो वो उसे बिल्लो रानी या सिमरन कह कर बुलाते हैं। आप तो जानते ही हैं काजोल और करीना कपूर की ऑंखें भी बिल्लोरी हैं और काजोल का तो एक फिल्म में नाम भी सिमरन ही था। भले ही माया के नितम्ब पूरे आइटम लगते हों पर मेरी बिल्लौरी आँखों और पतली कमर के सामने वो क्या मायने रखती थी। सच कहूं तो मेरी कजरारी (अरे नहीं बिल्लौरी) आँखों का जादू चल ही गया था। प्रेम से सगाई होने के बाद माया ने एक बार मुझे कहा था,”दगडू हलवाई की कसम, अगर यह प्रेम मुझे मिल जाता तो मैं एक ही रात मैं उसके पप्पू को पूरा का पूरा निचोड़ लेती !”

“छी … पागल है यह माया मेम साब भी !” ओह ! मैं भी क्या बातें ले बैठी मैं तो अपनी बात कर रही थी।

मधुर मिलन (सुहागरात) को लेकर मेरे मन में उत्सुकता और रोमांच के साथ साथ डर भी था मुझे ज्यादा तो पता नहीं था पर पति पत्नी के इस रिश्ते के बारे में काम चलाऊ जानकारी तो थी ही। मीनल तो मुझे छेड़ती ही रहती थी। प्रेम के बारे में बहुत सी बातें बताती रहती थी कि वो बहुत रोमांटिक है देखना तुम्हें अपने प्रेम से सराबोर कर देगा। एक बार मैंने मीनल से पूछा था कि पहली रात में क्या क्या होता है तो उसने जो बताया आप भी सुन लें :

“अरे मेरी भोली बन्नो ! अगर किसी आदमी से पूछा जाए कि तुम जंगल में अकेले हो और तुम्हारे सामने कोई शेर आ जाये तो तुम क्या करोगे ? तो वो बेचारा क्या जवाब देगा ? वो तो बस यही कहेगा ना कि भाई मै क्या करूँगा, जो करेगा वोह शेर ही करेगा । सुहागरात में भी यही होता है जो भी करना होता है वो पति ही करता है तुम्हें तो बस अपनी टांगें चौड़ी करनी हैं !”

कितना गन्दा बोलती है मीनल भी। और सुधा भाभी ने भी ज्यादा नहीं समझाया था। बस इतना कहा था कि “सुहागरात जीवन में एक बार आती है, मैं ज्यादा ना-नुकर ना करूँ वो जैसा करे करने दूँ। उसका मानना है कि जो पत्नी पहली रात में ज्यादा नखरे दिखाती है या नाटक करती है उनकी जिन्दगी की गाड़ी आगे ठीक से नहीं चल पाती।”

“रति मात्र शरीर व्यापार नहीं है। स्त्री पुरुष के सच्चे यौन संबंधों का अर्थ मात्र दो शरीरों का मिलन नहीं बल्कि दो आत्माओं का भावनात्मक रूप से जुड़ना होता है। स्त्री पुरुष का परिणय सूत्र में बंधना एक पवित्र बंधन है। इस बंधन में बंधते ही दोनों एक दूसरे के सुख-दुःख, लाभ-हानि, यश-अपयश के भागीदार बन जाते हैं। विवाह की डोर कई भावनाओं, संवेदनाओं और असीम प्रेम से बंधी होती है। विवाह नए जीवन में कदम रखने जा रहे जोड़े की उम्मीदों, चाहनाओं, ख़्वाहिशों और खुशियों को मनाने का समय होता है और विवाह की प्रथम रात्रि दोनों के गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का प्रथम सोपान होती है। इसलिए इस मिलन की रात को आनंदमय, मधुर और रोमांचकारी बनाना चाहिए।

सम्भोग (सेक्स) अपनी भावनाओं को उजागर करने का बहुत अच्छा विकल्प या साधन होता है ये वो साधन है जिससे हम अपने साथी को बता सकते हैं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हु। यह तो तनाव मुक्ति और जिन्दगी को पूर्णता प्रदान करने का मनभावन साधन है। यह क्रिया दोनों में नजदीकी और गहरा प्रेम बढ़ाती है। और पत्नी के दिल में उस रिक्तता को भरता है जो माता पिता से बिछुड़ने के बाद पैदा होती हे। यही परिवार नामक संस्था जीवन में सुरक्षा और शान्ति पूर्णता लाती है।

भाभी की बातें सुनकर मैंने भी निश्चय कर लिया था कि मैं इस रात को मधुर और अविस्मरणीय बनाउंगी और उनके साथ पूरा सहयोग करुँगी। उन्हें किसी चीज के लिए मन नहीं करूंगी।

“मधुर, आप ठीक से बैठ जाएँ !”

अचानक उनकी आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई। मेरा हृदय जोर जोर से धड़कने लगा। मैं तो अपने विचारों में ही डूबी थी। मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब प्रेम ने दरवाजे की सिटकनी (कुण्डी) लगा ली थी और मेरे पास आकर पलंग पर बैठे मुझे अपलक निहार रहे थे।

मैं लाज के मारे कुछ बोलने की स्थिति में ही नहीं थी बस थोड़ा सा और पीछे सरक गई। कई बार जब लाज से लरजते होंठ नहीं बोल पाते तो आँखें, अधर, पलकें, उंगलियाँ और देह के हर अंग बोलने लगते हैं। मेरे अंग अंग में अनोखी सिहरन सी दौड़ रही थी और हृदय की धड़कने तो जैसे बिना लगाम के घोड़े की तरह भागी ही जा रही थी।

“ओह … मधुर, आप घबराएँ नहीं। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जो आपको अच्छा ना लगे !”

“म … मैं ठीक हूँ !” मेरे थरथराते होंटों से बस इतना ही निकला।

“ओह…. बहुत बहुत धन्यवाद।”

” ?…? ” मैंने अब चौंकते हुए उनकी ओर देखा।

उन्होंने सुनहरे रंग का कामदार कुरता और चूड़ीदार पायजामा पहना था। गले में छोटे छोटे मोतियों की माला पहनी थी। उन्होंने बहुत ही सुगन्धित सा इत्र लगा रखा था। वो तो जैसे पूरे कामदेव बने मेरी ओर देखे ही जा रहे थे। मैं तो बस एक नज़र भर ही उनको देख पाई और फिर लाज के मारे अपनी मुंडी नीचे कर ली। मैं तो चाह रही थी कि प्रेम अपनी आँखें बंद कर लें और फिर मैं उन्हें आराम से निहारूं।

“शुक्र है आप कुछ बोली तो सही। वो मीनल तो बता रही थी कि आप रात में गूंगी हो जाती हैं ?”

मैंने चौंक कर फिर उनकी और देखा तो उनके होंठों पर शरारती मुस्कान देख कर मैं एक बार फिर से लजा गई। मैं जानती थी मीनल ने ऐसा कुछ नहीं बोला होगा, यह सब उनकी मनघड़ंत बातें हैं।

फिर उन्होंने अपनी जेब से एक ताज़ा गुलाब का फूल निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा,”हमारा दाम्पत्य जीवन इस गुलाब की तरह खुशबू बिखेरता रहे !”

मैंने कहीं पढ़ा था गुलाब प्रेम का प्रतीक होता है। यह प्रेमी और प्रेमिकाओं के आकर्षण का केंद्र होता है। लाल गुलाब की कलि मासूमियत का प्रतीक होती हैं और यह सन्देश देती हैं कि तुम बहुत सुन्दर और प्यारी हो, मैं तुम्हें अथाह प्रेम करता हूँ।

मैंने उस गुलाब के फूल को उनके हाथों से ले लिया। मैं तो इसे किसी अनमोल खजाने की तरह जीवन भर सहेज कर अपने पास रखूंगी।

“मधुर आपके लिए एक छोटी सी भेंट है !”

मैंने धीरे से अपनी मुंडी फिर उठाई। उनके हाथों में डेढ़ दो तोले सोने का नेकलेस झूल रहा था। गहनों के प्रति किसी भी स्त्री की यह तो स्त्री सुलभ कमजोरी होती है, मैंने अपना हाथ उनकी ओर बढ़ा दिया। पर उन्होंने अपना हाथ वापस खींच लिया।

“नहीं ऐसे हाथ में नहीं ….!”

मैंने आश्चर्य से उनकी और देखा।

“ओह … क्षमा करना … आप कहें तो मैं इसे आपके गले में पहना दूं ….” वो मेरी हालत पर मुस्कुराये जा रहे थे। अब मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ।

फिर वो उस नेकलेस को मेरे गले में पहनने लगे। मेरी गर्दन पर उनकी अँगुलियों के रेंगने का अहसास मुझे रोमांचित करने लगा। उनकी आँखें तो बस मेरी कुर्ती के अन्दर झांकते अमृत कलशों की गहरी घाटी में ही अटकी रह गई थी। मुझे उनके कोमल हाथों का स्पर्श अपने गले और फिर गर्दन पर अनुभव हुआ तो मेरी सारी देह रोमांच के मारे जैसे झनझना ही उठी। मेरे ह्रदय की धड़कने तो जैसे आज सारे बंधन ही तोड़ देने पर उतारू थी। उनकी यह दोनों भेंट पाकर मैं तो मंत्र मुग्ध ही हो गई थी।

मैंने भी अपना जेब-खर्च बचा कर उनके लिए एक ब्रासलेट (पुरुषों द्वारा हाथ में पहनी जाने वाली चैन) बनवाई थी। मैंने अपना वैनिटी बैग खोल कर ब्रासलेट निकला और उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा “यह मेरी ओर से आपके लिए है !”

“ओह … बहुत खूबसूरत है …” वो हंसते हुए बोले “पर इसे आपको ही पहनाना होगा !”

मैं तो लाज के मारे छुईमुई ही हो गई। मेरे हाथ कांपने लगे थे। पर अपने आप पर नियंत्रण रख कर मैंने उस ब्रासलेट को उनकी कलाई में पहना दिया। मैंने देखा मेरी तरह उन्होंने भी अपने हाथों में बहुत खूबसूरत मेहंदी लगा रखी थी।

“मधुर ! इस अनुपम भेंट के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !” कहते हुए उन्होंने उस ब्रासलेट को चूम लिया। मैं एक बार फिर लजा गई।

“मधुर आप को नींद तो नहीं आ रही ?”

अजीब प्रश्न था। मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा।

“ओह … अगर आप कहें तो मैं आपके बालों में एक गज़रा लगा दूँ ? सच कहता हूँ आपके खूबसूरत जूड़े पर बहुत सुन्दर लगेगा !”

हे भगवान् ! ये प्रेम भी पता नहीं मेरी कितनी परीक्षा लेंगे। इनका नाम तो प्रेम माथुर नहीं प्रेमगुरु या कामदेव होना चाहिए। मैं सर नीचे किये बैठी रही। मेरा मन तो चाह रहा था कि वो कुछ प्रेम भरी बातें बोले पर मैं भला क्या कर सकती थी।

उन्होंने अपना हाथ बढ़ा कर मेज पर रखा पैकेट उठाया और उसमें से मोगरे के फूलों का एक गज़रा निकाला और मेरे पीछे आकर मेरी चुनरी थोड़ी सी हटा कर वेणी (जूड़े) में गज़रे लगाने लगे। अपनी गर्दन और पीठ पर दुबारा उनकी रेंगती अँगुलियों का स्पर्श पाकर मैं एक बार फिर से रोमांच में डूब गई। उन्होंने एक कविता भी सुनाई थी। मुझे पूरी तो याद नहीं पर थोड़ी तो याद है :

एक हुश्न बेपर्दा हुआ और ये वादियाँ महक गई

चाँद शर्मा गया और कायनात खिल गई

तुम्हारे रूप की कशिश ही कुछ ऐसी है

जिसने भी देखा बस यही कहा :

ख़्वाबों में ही देखा था किसी हुस्न परी को,

किसे खबर थी कि वो जमीन पर भी उतर आएगी

किसी को मिलेगा उम्र भर का साथ उसका

और उसकी तकदीर बदल जायेगी….

पता नहीं ये प्रेम के कौन कौन से रंग मुझे दिखाएँगे। मेरा मन भी कुछ गुनगुनाने को करने लगा था :

वो मिल गया जिसकी हमने तलाश थी

बेचैन सी साँसों में जन्मों की प्यास थी

जिस्म से रूह में हम उतरने लगे ….

इस कदर आपसे हमको मोहब्बत हुई

टूट कर बाजुओं में बिखरने लगे

आप के प्यार में हम सँवरने लगे …..

पर इस से पहले कि मैं कुछ कहूं वो बोले,”मधुर मैं एक बात सोच रहा था !”

“क … क्या ?” अनायाश मेरे मुंह से निकल गया।

“वो दर असल मीनल बहुत से गज़रे ले आई थी अगर आप कहें तो इनका सदुपयोग कर लिया जाए ?”

सच कहूं तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया। मैंने उत्सुकतावश उनकी ओर देखा। मुझे तो बाद में समझ आया कि वो मुझे सहज करने का प्रयास कर रहे थे।

“वो…. वो अगर आप कहें तो मैं आपकी कलाइयों पर भी एक एक गज़रा बांध दूं ?”

ओह…. उनकी बच्चों जैसे मासूमियत भरे अंदाज़ पर तो मैं मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी। मुझे मुस्कुराते हुए देख और मेरी मौन स्वीकृति पाकर उनका हौसला बढ़ गया और इससे पहले कि मैं कुछ बोलती उन्होंने तो मेरा एक हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे धीरे उस पर गज़रा बांधने लगे। मैंने अपनी कलाइयों में कोहनी से थोड़ी नीचे तक तो लाल चूड़ियाँ पहन रखी थी सो उन्होंने मेरी दोनों बाजुओं पर गज़रे बाँध दिए तो अनायास मुझे दुष्यंत की शकुंतला याद हो आई। उनके हाथों की छुवन से तो जैसे मेरा रोम रोम ही पुलकित होने लगा।

मैं तो सोच रही थी कि गज़रे बाँध कर वो मेरा हाथ छोड़ देंगे पर उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लिए ही रखा। फिर मेरी बंद सी मुट्ठी को खोलते हुए मेरे हाथों में लगी मेहंदी देखने लगे। मीनल और भाभी ने विशेष रूप से मेरे दोनों हाथों में बहुत खूबसूरत मेहंदी लगवाई थी। आप तो जानते ही होंगे कि जयपुर में बहुत अच्छी मेहंदी लगाने का रिवाज़ है। मैंने कहीं सुना था कि नववधु के हाथों में जितनी गहरी मेहंदी रचती है उसका पति उस से उतना ही अधिक प्रेम करता है।

वो पहले तो मेरी हथेली सहलाते रहे फिर होले से कुछ देखते हुए बोले,”मधुर एक काम आपने सरासर गलत किया है !”

“क … क्या ?” मैंने चौंकते हुए उनकी ओर देखा।

“देखो आपने एक हथेली में मधुर लिखा है और दूसरी हथेली में इतनी दूर प्रेम लिखा है !” कह कर वो हंसने लगे।

मैं पहले तो कुछ समझी नहीं बाद में मेरी भी हंसी निकल गई,”वो मीनल ने लिख दिया था !”

“यह मीनल भी एक नंबर की शैतान है अगर दोनों नाम एक साथ लिखती तो कितना अच्छा लगता। चलो कोई बात नहीं मैं इन दोनों को मिला देता हूँ !” कह कर उन्होंने मेरे दोनों ही हाथों को अपने हाथों में भींच लिया।

“मधुर मैंने तो अपने दोनों हाथों में आपका ही नाम लिखा है !”

कहते हुए उन्होंने अपनी दोनों हथेलियाँ मेरी और फैला दी। उनके हाथों में भी बहुत खूबसूरत मेंहंदी रची थी। बाईं हथेली में अंग्रेजी में “एम” लिखा था और दाईं पर “एस” लिखा था। “एम” तो मधुर (मेरे) के लिए होगा पर दूसरी हथेली पर यह “एस” क्यों लिखा है मेरी समझ में नहीं आया।

“यह “एस” किसके लिए है ?”

“वो…. वो…. ओह … दरअसल यह “एस” मतलब सिमरन … मतलब स्वर्ण नैना !” वो कुछ सकपका से गए जैसे उनका कोई झूठ पकड़ा गया हो।

“कौन स्वर्ण नैना ?”

“ओह … मधुर जी आप की आँखें बिल्लोरी हैं ना तो मैं आपको स्वर्ण नैना नहीं कह सकता क्या ?” वो हंसने लगे।

पता नहीं कोई दूसरी प्रेमिका का नाम तो नहीं लिख लिया। मैं तो अपने प्रेम को किसी के साथ नहीं बाँट पाउंगी। मुझे अपना प्रेम पूर्ण रूप से चाहिए। सुधा भाभी तो कहती है कि ये सभी पुरुष एक जैसे होते हैं। किसी एक के होकर नहीं रह सकते। स्त्री अपने प्रेम के प्रति बहुत गंभीर होती है। वो अपने प्रेम को दीर्घकालीन बनाना चाहती है। पुरुष केवल स्त्री को पाने के लिए प्रेम प्रदर्शित करता है पर स्त्री अपने प्रेम को पाने के लिए प्रेम करती है। पुरुष सोचता है कि वो एक साथ कई स्त्रियों से प्रेम कर सकता है पर स्त्री केवल एक ही साथी की समर्पिता बनना पसंद करती है।

खैर कोई बात नहीं मैं बाद में पूछूंगी। एक बात तो है जहाज का पक्षी चाहे जितनी दूर उड़ारी मारे सांझ को लौट कर उसे जहाज़ पर आना ही होगा। ओह…. मैं भी क्या व्यर्थ बातें ले बैठी।

“मधुर …?”

“जी ?”

मैं जानती थी वो कुछ कहना चाह रहे थे पर बोल नहीं पा रहे थे। आज की रात तो मिलन की रात है जिसके लिए हम दोनों ने ही पता नहीं कितनी कल्पनाएँ और प्रतीक्षा की थी।

“मधुर, क्या मैं एक बार आपके हाथों को चूम सकता हूँ ?”

मेरे अधरों पर गर्वीली मुस्कान थिरक उठी। अपने प्रियतम को प्रणय-निवेदन करते देख कर रूप-गर्विता होने का अहसास कितना मादक और रोमांचकारी होता है, मैंने आज जाना था। मैंने मन में सोचा ‘पूरी फूलों की डाली अपनी खुशबू बिखरने के लिए सामने बिछी पड़ी है और वो केवल एक पत्ती गुलाब की मांग रहे हैं !’

मैंने अपने हाथ उनकी ओर बढ़ा दिए।

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