जिस्म की प्यास compleet

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raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 06 Dec 2014 22:15

जिस्म की प्यास--31

गतान्क से आगे……………………………………

ललिता के दिमाग़ में ये चलने लगा कि अगर मैं इससे चुदवाने की इच्च्छा जगाती हूँ तो मेरी ही बदनामी होगी और

अगर मैं ना चाहते हुए भी इससे चुद्वा लेती हूँ तो ना मेरी बदनामी होगी और मुझे चुदाई का मज़ा

भी मिल जाएगा..... ललिता ने अपनी आँखों के उपर नीचे कर इशारे में विजय मामा की बात मान ली...

विजय ने आराम से ललिता के मुँह से अपना हाथ हटाया और उसका दूसरा हाथ भी हड़बड़ी में ललिता की स्कर्ट से बाहर आ चुका था...

"कभी चुदाई का मज़ा लिया है " विजय ने ललिता टाँग को पकड़ते हुए कहा मगर ललिता ने कुच्छ नहीं बोला

विजय ने कस के ललिता की टाँग को पकड़ लिया और बोला "साली जवाब दे.. कभी चुदि है किसी"

ललिता ने झिझकते हुए कहा "ना....हीं"

"क्या नहीं?? मामा हूँ ना तेरा बोल नहीं मामा जी"

"नहीं मामा जी" ललिता ने आहिस्ते से कहा

विजय बोला "चल खड़ी हो जा मेरे सामने तेरा बदन तो ढंग से देखलू"

ललिता चुप चाप बिस्तर से खड़ी हो जाती है और विजय जी भर के उसके बदन को निहारकर बोलता है "चल मुदके दिखा"

ललिता धीरे से घूमती है और विजय उसके नितंब पे चॅटा मारकर हस्स पड़ता है....

उस चान्टे से ललिता की चूत और गरम हो जाती है मगर वो अभी एक बकरी की तरह अपने काटने का इंतजार कर रही है....

विजय ललिता को निहारते हुए बोला "ये दिल्ली वाले अपनी लड़कियों को कौनसी चक्की का आटा खिलाते है...

काफ़ी वज़नदार लग रही है तू... तेरी मामी तो काटे की तरह पतली है तो चुदाई तो दूर कुच्छ देखने में भी

मज़ा नहीं आता"

ललिता दिखावे के लिए बोलती है "मामा जी आप प्लीज़ हमारे रिश्ते की इज़्ज़त करिए"

"चुप कर छिनाल... जब बोलू बोलने के लिएकहु तब अपना मुँह खोलिओ" विजय गुर्राते हुए बोला.. और फिर उसने कहा चल अपना

ये गुलाबी टॉप उतार और अंदर अपना माल दिखा"

ललिता उपरी नाटक करते हुए अपना टॉप धीरे धीरे उतार देती है और ज़मीन पे गिरा देती है...

ललिता के मोटे बड़े स्तन उसके मामा के सामने होते है.... विजय अपना हाथ बढ़ाकर ललिता के स्तन को दबाता

है और फिर उसे बोलता है चल अपने स्तन को चाटके दिखा" ललिता अपनी ज़ुबान निकालकर अपने उल्टे स्तन को उपर

उठाती हुई उसे चाट्ती है मगर अपनी चुचि तक नहीं पहुच पाती....

विजय फिर बोला "चल बहुत हो गया अब ज़रा नीचे से नंगी हो"

ललिता दिखावा करते हुए बोली "मामा जी प्लीज़ मैं आपकी बहन की बेटी हूँ... प्लीज़ ऐसी हरकते ना करवाईए मुझसे"

ये सुनके विजय हंस पड़ता है और बोलता है "साली तुझे क्या पता कि तेरी बहन को मैने कितनी बारी छुप छुप के

नहाते हुए देखा है... नज़ाने कितनी बारी उसके बदन को छुआ है अंजान बन कर.... तू बिल्कुल अपनी मम्मी की तरह ही

दिखती है एक दम सेम बदन है तुम्हारा... उसको नहीं चोद पाया तो क्या हुआ उसकी बेटी तो है"

ललिता ये सुनके आश्चर्यचकित हो जाती है और अपनी स्कर्ट को दोनो कोने से पकड़ती हुई नीचे खीच देती है......

विजय का इशारा समझते हुए वो अपनी पैंटी भी उतार देती है "रुक रुक अपनी कच्ची मुझे पकड़ा दे...

कल रात वाली तो मैं पूरी रात तक अपनी नाक पे लगाके लेटा रहा.... उससे मेरेको तेरा नशा चढ़ गया"

विजय के ये कहते हुए ललिता उसे अपनी पैंटी फैंकते हुए देती है और वो कुत्ते की तरह उसे सूँगने लगता है...

ललिता को वही चुप चाप खड़ी हुई देख विजय बोलता है "चल अब उपर नीचे कूदना शुरू कर.. और ज़ोर ज़ोर से गिनती गिनिओ"

ललिता उसका ये आदेश सुनकर मन ही मन सोचती है कि ये साला कुच्छ करेगा भी या ऐसे ही समय बर्बाद कर रहा है....

उसने कूदना शुरू करा तो उसके मम्मे बेदर्दी से हिलने लग गये जिन्हे देख कर विजय और भी ज़्यादा मचल गया....

ललिता गुज़ारिश करते हुए बोलती है "मामा जी दीदी आती ही होंगी... " इससे पहले वो कुच्छ और बोलती विजय बोलता

"अच्छा चुदाई की इतनी जल्दी है... इधर आ रांड़"

ललिता ये सुनके चौंक जाती है कि उसके मामा कैसे कैसे नाम से उसे बुला रहे है... वो चलकर विजय के

पास जाती है तो विजय उसे खीच कर उसे अपने घुटनो पे पेट के बल लिटा देता है.... विजय मचलते हुए ललिता

के नितंब पे एक चाँटा लगाता है और बोलता है "अँग्रेज़ी पिक्चरो में देखता था मैं और सोचता था

कि मैं किसके साथ करूँगा" ये कहते हुए वो एक और ज़ोर दार चाँटा नितंब पर जड़ देता है और ललिता दर्द

के मारे चिल्लाति है... विजय उसकी चीख से और उतावला होकर चांतो की बरसात करने लगता है और ललिता की

आँखो में सच्ची में आँसू टपक पड़ते है.. उन चॅटो की वजह से ललिता की गान्ड एक दम लाल

पड़ जाती है और विजय उसे ज़मीन पे बिठाकर बोलता है चल मेरे लंड को खुश कर्दे...

ललिता अपने मामा के लंड को पकड़ती है और धीरे धीरे उसे चूसना शुरू करती है....

विजय का लंड मोटा काला और लंबा था जैसा क़ि ललिता को पसंद था.... मुँह में जाकर ही ललिता के मुँह के

स्वाद नमकीन हो गया.... विजय ललिता के सिर को पकड़ते हुए आगे पीछे करने लगा और उसका लंड ललिता

के गले पे लगने लगा.... ललिता इतनी रफ़्तार और दर्द को झेल नहीं पाई और ख़ासने लगी मगर विजय ने

फिर से अपना लंड ललिता के मुँह में डाल दिया....

"आह कितना गरम मुँह है तेरा भांजी... मज़े आ गये" विजय खुश होके कहता है

फिर वो ललिता के मुँह को आज़ाद करके बोलता है "चल अब मैं तुझे घोड़े की सवारी कराता हूँ..

पहले दर्द होगा मगर जब तू पूरी तरह सवार हो जाएगी तब मज़े आने लगेंगे" ये कहकर उसने ललिता को अपने

पेट पर बिठा दिया... फिर उसे उठाकर अपना लंड उसकी गीली चूत में डाल दिया.... "आआआययययीी मा" ललिता ज़ोर से चीखी

विजय बोला "कुँवारियों का शिकार करने में यही तो मज़ा है..." उसने ललिता के दोनो हाथ को जाकड़ लिया ताकि वो

भाग ना पाए और अपना लंड उसकी चूत में मारने लगा.... ललिता दर्द के मारे ऊओ आहह आईईई आवाज़

करने लगी और इससे विजय का जुनून बढ़ता गया... थकने के बाद वो ललिता को लंड पर कूदने के

लिए कहता है और वो बिना इनकार करें उसपे उच्छलने लगती है.... ललिता की खुशी का अहसास उसकी चूत अपना पानी

बहते हुए दिखा रही थी...

फिर विजय ललिता को रोक कर बिस्तर से उठता है और बोलता है "तुझे पता है यहाँ की औरते अपनी गान्ड नहीं मरवाती

मगर दिल्ली की लड़किया कुच्छ ज़्यादा है मॉडर्न है और तेरी गान्ड भी बड़ी बड़ी है... तो तू कुतिया की तरह

बिस्तर पे बैठ आज तेरी गान्ड भी चुदेगि"

विजय ज़बरदस्ती ललिता को कुतिया की तरह बिठाता है और उसकी गान्ड पे दो-तीन बारी थुक्ते हुए अपना लंड

उसपे हिलाने लगता है और फिर एक ही झटके में अपना लंड उसमें डाल देता है....

"साली कुतिया कितनी टाइट है तेरी गान्ड मज़ा आ गया" ये कहकर वो अपना लंड अंदर बाहर अंदर बाहर अंदर

बाहर करने लगता है.... ललिता को हद्द से ज़्यादा दर्द होने लगता है मगर अगले ही पल वो दर्द मज़े

में बदल जाता है... विजय उसके दोनो हाथो को अपने हाथो में ले लेता है और बिना सहारे उसकी गान्ड

मारने लगता है..... कुच्छ देर बाद उसे आज़ाद करके वो उसे बिस्तर पे लिटा देता है... ललिता की सीधी

टाँग को हवा में उठाकर विजय अपना लंड उसकी चूत में डाल देता है.... ललिता के सीधे पैर की उंगलिओ

को चूस्कर विजय उसकी चूत को ठोकने लगता है..... ललिता का दिमाग़ चुदाई के नशे में झूलने लगता है..

उसे अब किसी और बात की चिंता नहीं थी... वो बस अपने मामा के काले भैंसे से चुद्ना चाहती है.....

चुद चुद करकर ललिता बेहोश होने का नाटक करती है और बिस्तर पर ही अपनी आँखें बंद कर लेती...

विजय तब भी अपनी रफ़्तार कम नहीं करता और अपना सारा वीर्य अपनी भांजी की चूत में डाल देता है....

नोट:

(विजय गया तो ज़रूर था नारायण के साथ मगर उसने घर की एक और चाबी अपने पास रख ली थी... वो बस स्टॅंड से

सीधा घर की तरफ बढ़ गया था और उसके दिमाग़ में सिर्फ़ ललिता का नंगा जिस्म था जिसको वो किसी भी तरह चोद्ना चाहता था)

जब नारायण स्कूल के दरवाज़े पे पहुचा तो वहाँ 1 पोलीस की गाड़ी खड़ी थी और एक इनस्पेक्टर

डंडा लिए खड़ा था.... नारायण ने गाड़ी स्कूल के मैन दरवाज़े के पास ही खड़ी करी और इनस्पेक्टर उसके

पास चलकर आया.... नारायण के कुच्छ बोलने से पहले ही उस पोलीस इनस्पेक्टर ने कहा

"यू आर अंडर अरेस्ट मिस्टर. नारायण"

नारायण के पसीने छूट गये और उसने घबराते हुए पूछा "किस...किस जुर्म में"

इनस्पेक्टर ने बोला "अब ये भी बताना पड़ेगा आपको?? एक मासूम लड़की का कयि बारी बलात्कार और हत्या के

जुर्म में"

नारायण बोला "ये क्या बकवास कर रहे है आप... मैने किसी की हत्या नहीं करी"

इनस्पेक्टर बोला " सच की जानकारी करना हमारा काम है आप हमारे साथ थाने चलिए"

दो हवलदारो ने नारायण के बाजुओ का पकड़ा और उसे सीधा पोलीस जीप में बिठा दिया और गाड़ी पोलीस थाने ले गये..

पहली बारी ज़िंदगी में नारायण को जैल की चार दीवारी में आना पड़ा था वो भी उस जुर्म के लिए जिसका

उसे कोई अंदाज़ा भी नहीं था.... इनस्पेक्टर राजीव हाथ में पोलीस का डंडा लिए नारायण के पास आया और बोला

"अब सीधे सीधे कबूल करोगे या फिर हम दूसरे हथकंडे अपनाए जिससे आपको ही तकलीफ़ होगी"

"सर मुझे कुच्छ समझ नहीं आ रहा है आप मेरा जुर्म तो बताइए" नारायण इस बारी थोड़े गुस्से में बोला

इनस्पेक्टर राजीव ने नारायण के चेहरे पे एक तस्वीर फेकि और बोला "देखो इसमे इस लड़की को... देखो और बताओ अब कुच्छ याद आया?"

नारायण ने उस तस्वीर को उठाके देखा तो वो तस्वीर नवरीत की थी...

इनस्पेक्टर राजीव ने कहा "हमारे पास कयि सारे सबूत है जिससे ये सॉफ ज़ाहिर होता है कि हत्या तुमने ही करी है...

जैसे ये शूसाइड नोट जोकि नवरीत के कमरे से मिला जिसमें सॉफ तुम्हारा नाम लिखा हुआ है या फिर

तुम्हारे कमरे में लगे हिडन कमेरे जिसमें नवरीत के साथ बलात्कार हो रहा है"

नारायण इनस्पेक्टर की बात सुनके एक दम घबरा उठा और बोला "इनस्पेक्टर साहब ये साज़िश है मेरे खिलाफ..

अब मेरा यकीन मानिए"

इनस्पेक्टर बोला "अच्च्छा कौन कर रहा है साज़िश.. मरी हुई नवरीत?"

नारायण कुच्छ देर रुक के बोला "मैं आपको पूरा सच नहीं बता सकता मगर ये सच है कि ना मैने रीत का बलात्कार करा है और ना मैने उसकी हत्या करी है"

"राजीव सर" एक छोटे पद का इनस्पेक्टर राजीव को बुलाता है

राजीव उस इनस्पेक्टर के साथ बाहर चले जाता है.... नारायण अपना पसीना पौछ कर लंबी साँस लेता है...

शायद ये कोई ग़लत फ़हमी है तभी वो छोटा इनस्पेक्टर राजीव को यहाँ से लेके गया है ऐसा सोचके

राजीव अपने आपको सांतावना दे रहा है

कुच्छ देर बाद राजीव गुस्से में आता है और नारायण की कुर्सी पे ज़ोर से लात मारता है और नारायण ज़मीन पे

गिर पड़ता है..... राजीव गुस्से में बोलता "साले हमारे शहर मे आके गंदगी फैलाता है...

इन दिल्ली वालो का यहीं काम है... साले हरामी अपनी बेटी का भी तूने बलात्कार करके गॅला घोंट के मार दिया.... "

ये सुनके नारायण चौक कर बोलता है "क्या??? किसने मार दिया मेरी बेटी को... मैं सुबह ही तो घर से निकला था"

राजीव नारायण का कॉलर पकड़के बोलता है "उसका बलात्कार भी सुबह ही हुआ है... और उसकी लाश अभी भी तेरे घर

में पड़ी हुई है"

नारायण बोला "सर मैं ताला लगाके सुबह निकल गया था... मुझे उसके बाद का कुच्छ नहीं पता है"

राजीव बोला "घर का दरवाज़ा नहीं टूटा हुआ, ना खिड़की टूटी या खुली थी तो किसने आके तेरी बेटी को मार डाला?? किसने???"

नारायण पूरा बौखलाया हुआ बोला "सर सर मेरी एक और.. मेरी एक और बेटी है डॉली वो अपनी सहेली नाज़िया की पार्टी

में गयी थी और उसे इस समय तक घर आजना चाहिए था तो आप उससे पुच्छ सकते है कि मैं

अपनी छोटी बेटी के बारे में ऐसा सोच भी नहीं सकता हूँ"

राजीव बोला "और नवरीत?? वो तेरी बेटी नहीं थी तो उसके बारे में सोच सकता है"

नारायण दो मिनट शांत होकर बोला "सर मैं आपको सब सच सच बताता हूँ"

क्रमशः…………………..


raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 06 Dec 2014 22:17

जिस्म की प्यास--32

गतान्क से आगे……………………………………

नारायण ने रश्मि और रीत के साथ वो चुदाई की शाम के बारे में पूरी बात बताई और किस तरह से

रश्मि ने रीत और उसे ब्लॅकमेल करा वो सारी बात भी बताई... उसने ये भी बताया कि कमरे में कॅमरा

रश्मि ने लगाए थे.....

"रश्मि?? वो तुम्हारी स्कूल की स्क्रेटरी?? उसने ये सारा जुर्म कबूल कर लिया है और तभी हमने तुम्हे पकड़ा है...

अब वो इस केस में सरकारी गवाह बनेगी" राजीव ने नारायण से कहा

कुच्छ देर के लिए राजीव नारायण को उसके हाल पे छोड़के चला गया.... नारायण अभी भी ज़मीन पे बैठा हुआ

सोच में पड़ गया कि ये उसकी ज़िंदगी में कैसा सैलाब आ गया है?? उसके कुच्छ समझ में नहीं आ रहा था...

पूरी दोपहर बीत गयी थी और इनस्पेक्टर राजीव का कोई पता नहीं था.... नारायण से किसी ने खाना या पानी

के लिए भी नहीं पुछा था.... एक मोटा सा हवलदार जोकि नारायण के सेल के बाहर ही घूम रहा था

नारायण को इशारा करके बुलाने लगा.... नारायण जल्दी से जैल की सलाखो की तरफ आया उस

हवलदार की बात सुनने के लिए.. हवलदार ने नारायण के कान में कहा " उस लड़की का बलात्कार करने में

ज़्यादा मज़ा आया था या फिर अपनी बेटी का" ये बोलके वो हँसने लगा और नारायण ने उस हवलदार का कॉलर

पकड़ लिया.... किसी तरह वो हवलदार नारायण की गिरफ़्त से छूटा और वहाँ से चला गया...

नारायण ज़मीन पर अपना माथा पकड़ के बैठा हुआ था तब इनस्पेक्टर राजीव वाहा आया और नारायण के सेल को

खोलकर अंदर गया... नारायण उसे देख कर खड़ा हुआ और बोला "इनस्पेक्टर साहब कुच्छ पता चला आपको"

इनस्पेक्टर बोला "तुम्हारी बेटी जोकि अपनी सहेली के घर गयी थी अभी तक वापस नहीं लौटी है..

उसके मोबाइल पर कॉल करने की कोशिश करी है मगर वो मिल नहीं रहा है.. मोबाइल को ट्रेस करने की कोशिश

करी है और वो भी नहीं हो रहा है तो शायद उसके मोबाइल को बॅटरी के साथ नष्ट कर दिया है...

तुमने कहा था कि तुम्हारी कल रात को गयी थी तो उसके बाद तुमने उसको कॉल करा था?"

नारायण बोला "नहीं सर मैने नहीं करा मगर आप प्लीज़ मेरी बेटी का पता करिए"

राजीव बोला "वो तो हम कर ही रहे है"

फिर एक और इनस्पेक्टर सेल में घुसकर राजीव के कानो में कुच्छ बोलता है जिससे देख कर नारायण घबराकर

पुछ्ता है "क्या हुआ?? मुझे भी बताइए क्या खबर है मेरी बेटी के बार एमें"

राजीव बोलता "तुम्हारी बेटी का कुच्छ नहीं पता चला मगर तुम्हारी बीवी,साली और बेटे की लाश मिली है तुम्हारे

दिल्ली वाले घर में" ये सुनकर नारायण रोने लगता है... ना जाने किसकी बुर्री नज़र लगी है उसके परिवार

को सब इस तरह नष्ट हो रहा है... राजीव को नारायण की हालत देख तरस आता है मगर वो अपने अंदर

के इंसान को बाहर आने नहीं देता और सेल से चले जाता है"

नारायण के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे कि उसके कानो ने एक ऐसा सच सुन लिया जिसका वो यकीन ही नही कर पाया... दो हवलदरो को उसने बात करते हुए सुना कि चेतन के आकांक्षा (उसकी साली) और शन्नो (उसकी बीवी)

के साथ नाजायज़ संबंध थे.... वो हवलदार नारायण के कुच्छ ही कदम दूर बैठा हुए उसके परिवार के बारे

में घटिया बातें कर रहे थे और नारायण कुच्छ नही कह पा रहा था....

वो रात नारायण ही जानता है कि उसने कैसे काटी थी.... अगली सुबह हवलदार ने उसे उठाके कहा कि कुच्छ

ही देर में तुम्हे कोर्ट लेके जाएँगे.. पैशी है.... नारायण ने उस बात का कोई जवाब नहीं दिया और ज़मीन

पर ही बैठा रहा... कुच्छ देर बाद इनस्पेक्टर राजीव नारायण को कोर्ट जाने के लिए उठने को कहता है मगर

वो अपने आप खड़ा नहीं होता... राजीव के कहने पर दो हवलदार अंदर गये नारायण को उठाने के

लिए और उसको सेल के बाहर लेकर आए... जैसी ही नारायण राजीव के पास पहुचता है वो उसकी जैंब में रखी

पिस्टल को निकालकर अपने को दो गोलिया मार देता है और कुच्छ ही सेकेंड में वही मर जाता है...

रीत की आत्म हत्या के बाद सुधीर के कहने पर रश्मि ने पोलीस वालो को आधा सच बता दिया था...

वो सरकारी गवाह इसलिए बन गयी थी ताकि उसके प्यार सुधीर पर कोई आच ना आए... ये सारा खेल सुधीर का ही

रचाया हुआ था क्यूंकी उसे स्कूल का प्रिंसिपल बनना था जिसमें उसे सफलता भी मिल गयी

डॉली की लाश के बारे में किसी को पता नहीं चलता है क्यूंकी राज और उसके दोस्तो ने उसको उसी फार्म हाउस में दफ़ना दिया था...

विजय ने ललिता का गला घोंट के हत्या करदी थी क्यूंकी उसे डर था कि वो पोलीस के पास ना चली जाए....

ललिता के हवस के खेल ने ही उसकी जान लेली

जिस्म की प्यास की वजह से एक हस्ता खेलता परिवार जुर्म और मौत के अंधकार में डूब गया....

किसीने ये नहीं सोचा था कि कुच्छ घंटो के फास्लो में एक पूरे परिवार की मौत हो जाएगी मगर ज़िंदगी का कुच्छ कहा नहीं जा सकता तो दोस्तो इस तरह इस कहानी का अंत इतना भयानक होगा ऐसा किसी ने सोचा भी नही होगा इसीलिए तो कहा है वासना को इतना ज़्यादा मत बढ़ाओ कि वो परिवार की बरबादी का कारण बने !!!

दा एंड

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