“गोली कब मारनी है वो मैं डिसाइड करूँगा भाभी अभी आपको मेरे कुछ सवालो का जवाब देना है” --- वो हाथ में पिस्टल उठा कर बोला.
“मेरे पास तुम्हारे इन बे-हुदा सवालो का कोई जवाब नही है. मैं जा रही हूँ, गोली मारना चाहते हो तो मार दो, आइ आम रेडी टू डाइ” ----- मैने उसकी और देख कर गुस्से में कहा
ये कह कर मैं कार का दरवाजा खोलने की कोशिस करने लगी, पर वो नही खुला, शायद अंदर से लॉक था.
“भाभी कहा जा रही हो, मेरी मर्ज़ी के बीना आप कहीं नही जाएँगी, आज आप मेरी मेहमान है.बहुत मज़े ले लिए लोगो ने आपके साथ, आज मेरी बारी है. चलिए मैं आपको अपने होटेल ले चलता हूँ. आपकी हवश भी मिट जाएगी और मेरी सालो की तमन्ना भी पूरी हो जाएगी” ---- विवेक ने हंसते हुवे कहा
मेरे पर्स में मेरा मोबाइल था, मैं ये सोच रही थी कि चुपचाप किसी तरह पोलीस को 100 नो पर फोन कर देती हूँ, पर उसका पूरा ध्यान मेरे उपर ही था. उपर से उसने मेरी तरफ पिस्टल तान रखी थी.
अचानक मैने देखा की उसका ध्यान दूसरी तरफ है, मैने फॉरन मोबाइल निकाला और 100 नंबर पर डाइयल किया.
पर मैने अभी डाइयल किया ही था की उसने मोबाइल छीन कर काट दिया और बोला, “ग़लत बात… भाभी, आप मुझे भी धोका दे रही है, लगता है, धोका देने में एक्सपर्ट हो गयी है आप. संजय ने तो कुछ नही कहा आपको पर मैं आपको आज सज़ा दूँगा. ये सज़ा इस बात की होगी कि आपने मुझे इग्नोर करके दूसरे लोगो को अपनी जवानी के मज़े दिए और मैं यू ही आपको दूर से देख देख कर अपना डिक मसलता रहा. आज वक्त आ गया है कि आपके होल्स को मैं भी चेक कर लूँ, देखूं तो सही की कितने गहरे होल है आपके. वैसे मैं एक बात बता दूं कि मेरा डिक बड़ा है और आपके जैसी स्लट के लिए ही बना है.
मेरे सबर का बाँध टूट गया और मैने गुस्से में उशके गाल पर इतनी ज़ोर से चाँटा मारा कि उसका चेहरा लाल हो गया. उसके हाथ में जो पिस्टल थीउसकी भी मैने कोई परवाह नही की. ज़्यादा से ज़्यादा वो क्या करता, मुझे गोली ही मारता. ऐसी जींदगी से मुझे मौत ज़्यादा प्यारी नज़र आ रही थी
“यू बिच, तुम्हारी इतनी हिम्मत मैं प्यार से बात कर रहा था और तुमने चाँटा मार दिया, अब तुम नही बचोगी, बहुत हो गयी प्यार से बाते” --- वो गुस्से में झल्ला कर बोला.
ये कह कर उसने मेरी कनपटी पर पिस्टल रख दी और बोला, “बता देती है क्या आराम से या फिर तेरा रेप करूँ. आज मैं किशी भी हद तक जा सकता हूँ”
मैने पिस्टल पकड़ कर कहा मारो गोली विवेक, तुम वेट किश बात का कर रहे हो, भूल जाओ कि मैं तुम्हारे जैसे नीच के झाँसे में आउन्गि. कम ऑन डू इट” मैने चील्ला कर कहा
पता नही मुझे क्या हो गया था. मैं मौत के डर से आज़ाद हो गयी थी. किशी ने सच ही कहा है कि जब इंशान मौत के डर को भुला देता है तो कुछ भी कर सकता है. ऐसा ही कुछ मेरे साथ हो रहा था.
विवेक ने अचानक मेरे सर पर ज़ोर से वार किया और मैं चक्कर खा कर बेहोश हो गयी. बेहोश होते होते मैने अपने सर पर हाथ लगा कर देखा. मेरे सर से खून बह रहा था. अगले ही पल मैं गहरी नींद में सो गयी.
जब मेरी आँख खुली तो मैने खुद को विवेक के हाथो में झूलते हुवे पाया. वो मुझे दोनो हाथो में उठा कर चले जा रहा था. मैने चारो तरफ देखा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गये. हर तरफ झाड़िया ही झाड़िया थी. वो मुझे किशी जंगल में ले आया था.
मैने चील्ला कर कहा, “छ्चोड़ो मुझे विवेक, ये कहा ले आए मुझे, जल्दी छ्चोड़ो वरना मुझ से बुरा कोई नही होगा”
“ये जंगल है भाभी, यहा चारो तरफ झाड़िया ही झाड़िया है, आपको तो झाड़ियों में मरवाने का बड़ा शॉंक है ना, अपने घर के पीछे झाड़ियों में ही तो करवा रही थी उस दिन आप उन लोगो से. इसलिए मैं आपको जंगल में ले आया. क्या पता आपका मन बन जाए. देख लीज़िए और अपनी मन पसंद झाड़िया चुन लीज़िए, वही जाकर आपकी चूत मारूँगा” ---- वो चलते-चलते हंसते हुवे बोला.
मैं उसकी बाहों में ज़ोर ज़ोर से छटपत्ता रही थी.पर उसकी भुजाओ में काफ़ी बल था. वो बड़ी मजबूती से मुझे थामे हुवे था.
उस वक्त मुझे बहुत डर लग रहा था. मेरे हाथ पाँव काँप रहे थे. ये सब इसलिए था क्योंकि मैं नही चाहती थी कि मेरे साथ रेप हो.
रेप किसी भी लड़की के लिए मौत से भी बड़ी सज़ा होती है. रेप के बाद औरत की डिग्निटी और उशके औरत होने का गर्व उसकी जींदगी से छीन जाता है.
मैने कभी सपने में भी नही सोचा था कि मेरे साथ रेप होगा, पर मैं उस वक्त ऐसे हालात में थी कि मेरा बचना नामुमकिन नज़र आ रहा था.
विवेक ने मुझे एक घनी झाड़ी के पीछे ले जा कर पटक दिया. मेरा मूह सीधा ज़मीन पर लगा. ज़मीन पर घास नही थी और चारो तरफ मिट्टी ही मिट्टी थी. जैसे ही मेरा मूह ज़मीन पर लगा मेरी आँखो में मिट्टी घुस्स गयी.
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
शाम का वक्त था, अंधेरे की चादर चारो तरफ फैलने लगी थी. बस हल्की हल्की रोशनी बाकी थी. उपर से शुनशान जंगल की वो बड़ी बड़ी झाड़ियाँ. ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी हॉरर मूवी का डरावना सीन चल रहा हो. इतना भयानक सीन मैने जींदगी में नही देखा था.
पर मैने मन ही मन में हिम्मत ना हारने का फैंसला किया. मैं आखरी दम तक लड़ना चाहती थी. रेप मुझे किसी भी हालत में मंजूर नही था.
मैने उपर की और करवट ली तो देखा की विवेक अपनी पॅंट उतार रहा है.
जैसे ही उसने अपनी पॅंट उतार कर एक तरफ रखी मैने अपनी राइट लेग से ज़ोर से उशके टेस्टिकल पर परहार किया.
“ऊऊहह, साली कामिनी, कुतिया तेरी इतनी हिम्मत, आज तक किसी की मेरे साथ ऐसा करने की हिम्मत नही हुई” ---- वो दर्द से चील्लते हुवे बोला और मेरे बाल पकड़ लिए.
“विवेक जो तुम चाहते हो, वो मैं कभी नही होने दूँगी” ----- मैने ज़ोर से चील्ला कर कहा.
हां हां तुझे तो बस वो कमीना बिल्लू ही चाहिए. बिल्लू मर चुका है मेरी जान, आओ ना अब मैं तुम्हारी प्यास भुजाता हूँ. ख़ुसी से नही दोगि तो ज़बरदस्ती दोगि, देनी तो तुम्हे पड़ेगी ही, सोच लो कैसे देना चाहती हो.
मैने उसके मूह पर थूक दिया
और अगले ही पल उसने मेरे चेहरे पर थप्पड़ बर्शाने शुरू कर दिए.
वो बहुत देर तक मेरे गाल पर ठप्पड़ो की बोछार करता रहा.
उसने मुझे इतना मारा कि मैं चक्कर खा कर गिर गयी.
उसने मुझे घुमा कर अपने नीचे उल्टा कर दिया.
मैं पेट के बल मिट्टी पर पड़ी थी, और वो मेरे उपर खड़ा था.
उसने मेरी जीन्स के बटन खोल कर उसे नीचे सरका दिया और मेरे नितंबो पर ज़ोर से थप्पड़ मार कर बोला, “पहले तुम्हारी गांद ही मारता हूँ,……. आई मुझ पर थूकने वाली”
मेरा शरीर जवाब दे चुका था पर फिर भी मैने उठने की कोशिस की पर उसने मेरी पीठ पर एक लात मारी और मैं धदाम से ज़मीन पर वापस गिर गयी.
इस बार मेरा माथा सीधा धूल भरी ज़मीन से जा टकराया और मेरी आँखो में और ज़्यादा मिट्टी भर गयी.
ऐसा लग रहा था कि अब मेरा रेप हो कर रहेगा.
मैने मन ही मन में कहा, हे भगवान अगर ये मेरे पापो की सज़ा है तो सच कहती हूँ कि बहुत बड़ी सज़ा है, मुझे नही लगता कि किसी को भी ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए.
विवेक मेरे उपर लेट गया और मेरे बालो को पकड़ कर खींचते हुवे बोला, लात मारती है मेरे लंड पर हूउ……, देख मैं तेरी गांद कैसे फाड़ता हूँ.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि अब क्या करूँ. मैं बस वाहा पड़े पड़े छटपटा रही थी.
मैने एक आखरी कोशिस की.
मैने उससे रोते हुवे अपील की, “विवेक प्लीज़ रुक जाओ, ऐसा मत करो, तुम तो ऐसे नही थे, तुम्हे आज क्या हो गया है, तुम मुझे गोली मार दो पर ये सब मत करो प्लीज़, मैं मानती हूँ मैने संजय को धोका दिया है, पर….”
उसके बाद कुछ ऐसा हुवा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी. मुझे वाहा किसी और की आवाज़ शुनाई दी
“ये ऐसा ही है ऋतु, तुम इस हरामी को नही जानती ये ऐसा ही है”
ये आवाज़ सुन कर मैं एक दम से चोंक गयी, क्योंकि वो मुझे जानी पहचानी सी लगी. मैं मन ही मन में सोच रही थी कि जिसकी ये आवाज़ है उसका वाहा होना नामुमकिन है.
“कौन हो तुम छ्चोड़ो मुझे वरना” --- ये विवेक की आवाज़ थी. वो गिड़गिदा रहा था.
अचानक मुझे महसूष हुवा कि विवेक मेरे उपर नही है. उसे मेरे उपर से खींच लिया गया था.
फिर मैने महसूष किया कि कोई मेरी जीन्स उपर चढ़ा रहा है.
मुझे बचाने वाहा जंगल में कौन आ गया, यही सवाल मेरे मन में घूम रहा था.
मैने गर्दन घुमा कर देखा. अभी तक पूरी तरह से अंधेरा नही हुवा था और रोशनी एक तरह से ठीक ठाक थी. पर मेरी आँखो में इतनी मिट्टी घुस्सी हुई थी कि, मई ठीक से देख ही नही पाई के वाहा विवेक के अलावा दूसरा कौन है
मुझे बस इतना ही दीखा कि कोई विवेक को बुरी तरह मार रहा है. विवेक मेरे पास ही पड़ा हुवा मार खा रहा था.
आअहह नो….विवेक की चीन्ख पूरे जंगल में गूँज रही थी.
“साले तेरी इतनी हिम्मत आज तुझे जींदा नही छ्चोड़ूँगा मैं” --- फिर से वही आवाज़ आई
मैं इतनी उत्शुक हो रही थी कि फॉरन हिम्मत करके वाहा से उठी और मैने अपनी आँखो पर से मिट्टी हटा कर देखने की कोशिश की.
जो मैने देखा उस पर विश्वास करना मुश्किल था.
मेरी आँखो के सामने बिल्लू, विवेक को बुरी तरह मार रहा था.
उसे वाहा देख कर मुझे अपनी आँखो पर विश्वास नही हो रहा था. मैं बस उसे एक टक देखे जा रही थी.
वो जींदा कैसे है ? वो वाहा कैसे आया ? मुंबई में वो क्या कर रहा है ?
ये कुछ ऐसे सवाल थे जो मेरे दिमाग़ में बिल्लू को वाहा देख कर एक दम से घूम गये
यही कल की सबसे चोंकाने वाली घटना थी।
क्रमशः........................
.........
पर मैने मन ही मन में हिम्मत ना हारने का फैंसला किया. मैं आखरी दम तक लड़ना चाहती थी. रेप मुझे किसी भी हालत में मंजूर नही था.
मैने उपर की और करवट ली तो देखा की विवेक अपनी पॅंट उतार रहा है.
जैसे ही उसने अपनी पॅंट उतार कर एक तरफ रखी मैने अपनी राइट लेग से ज़ोर से उशके टेस्टिकल पर परहार किया.
“ऊऊहह, साली कामिनी, कुतिया तेरी इतनी हिम्मत, आज तक किसी की मेरे साथ ऐसा करने की हिम्मत नही हुई” ---- वो दर्द से चील्लते हुवे बोला और मेरे बाल पकड़ लिए.
“विवेक जो तुम चाहते हो, वो मैं कभी नही होने दूँगी” ----- मैने ज़ोर से चील्ला कर कहा.
हां हां तुझे तो बस वो कमीना बिल्लू ही चाहिए. बिल्लू मर चुका है मेरी जान, आओ ना अब मैं तुम्हारी प्यास भुजाता हूँ. ख़ुसी से नही दोगि तो ज़बरदस्ती दोगि, देनी तो तुम्हे पड़ेगी ही, सोच लो कैसे देना चाहती हो.
मैने उसके मूह पर थूक दिया
और अगले ही पल उसने मेरे चेहरे पर थप्पड़ बर्शाने शुरू कर दिए.
वो बहुत देर तक मेरे गाल पर ठप्पड़ो की बोछार करता रहा.
उसने मुझे इतना मारा कि मैं चक्कर खा कर गिर गयी.
उसने मुझे घुमा कर अपने नीचे उल्टा कर दिया.
मैं पेट के बल मिट्टी पर पड़ी थी, और वो मेरे उपर खड़ा था.
उसने मेरी जीन्स के बटन खोल कर उसे नीचे सरका दिया और मेरे नितंबो पर ज़ोर से थप्पड़ मार कर बोला, “पहले तुम्हारी गांद ही मारता हूँ,……. आई मुझ पर थूकने वाली”
मेरा शरीर जवाब दे चुका था पर फिर भी मैने उठने की कोशिस की पर उसने मेरी पीठ पर एक लात मारी और मैं धदाम से ज़मीन पर वापस गिर गयी.
इस बार मेरा माथा सीधा धूल भरी ज़मीन से जा टकराया और मेरी आँखो में और ज़्यादा मिट्टी भर गयी.
ऐसा लग रहा था कि अब मेरा रेप हो कर रहेगा.
मैने मन ही मन में कहा, हे भगवान अगर ये मेरे पापो की सज़ा है तो सच कहती हूँ कि बहुत बड़ी सज़ा है, मुझे नही लगता कि किसी को भी ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए.
विवेक मेरे उपर लेट गया और मेरे बालो को पकड़ कर खींचते हुवे बोला, लात मारती है मेरे लंड पर हूउ……, देख मैं तेरी गांद कैसे फाड़ता हूँ.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि अब क्या करूँ. मैं बस वाहा पड़े पड़े छटपटा रही थी.
मैने एक आखरी कोशिस की.
मैने उससे रोते हुवे अपील की, “विवेक प्लीज़ रुक जाओ, ऐसा मत करो, तुम तो ऐसे नही थे, तुम्हे आज क्या हो गया है, तुम मुझे गोली मार दो पर ये सब मत करो प्लीज़, मैं मानती हूँ मैने संजय को धोका दिया है, पर….”
उसके बाद कुछ ऐसा हुवा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी. मुझे वाहा किसी और की आवाज़ शुनाई दी
“ये ऐसा ही है ऋतु, तुम इस हरामी को नही जानती ये ऐसा ही है”
ये आवाज़ सुन कर मैं एक दम से चोंक गयी, क्योंकि वो मुझे जानी पहचानी सी लगी. मैं मन ही मन में सोच रही थी कि जिसकी ये आवाज़ है उसका वाहा होना नामुमकिन है.
“कौन हो तुम छ्चोड़ो मुझे वरना” --- ये विवेक की आवाज़ थी. वो गिड़गिदा रहा था.
अचानक मुझे महसूष हुवा कि विवेक मेरे उपर नही है. उसे मेरे उपर से खींच लिया गया था.
फिर मैने महसूष किया कि कोई मेरी जीन्स उपर चढ़ा रहा है.
मुझे बचाने वाहा जंगल में कौन आ गया, यही सवाल मेरे मन में घूम रहा था.
मैने गर्दन घुमा कर देखा. अभी तक पूरी तरह से अंधेरा नही हुवा था और रोशनी एक तरह से ठीक ठाक थी. पर मेरी आँखो में इतनी मिट्टी घुस्सी हुई थी कि, मई ठीक से देख ही नही पाई के वाहा विवेक के अलावा दूसरा कौन है
मुझे बस इतना ही दीखा कि कोई विवेक को बुरी तरह मार रहा है. विवेक मेरे पास ही पड़ा हुवा मार खा रहा था.
आअहह नो….विवेक की चीन्ख पूरे जंगल में गूँज रही थी.
“साले तेरी इतनी हिम्मत आज तुझे जींदा नही छ्चोड़ूँगा मैं” --- फिर से वही आवाज़ आई
मैं इतनी उत्शुक हो रही थी कि फॉरन हिम्मत करके वाहा से उठी और मैने अपनी आँखो पर से मिट्टी हटा कर देखने की कोशिश की.
जो मैने देखा उस पर विश्वास करना मुश्किल था.
मेरी आँखो के सामने बिल्लू, विवेक को बुरी तरह मार रहा था.
उसे वाहा देख कर मुझे अपनी आँखो पर विश्वास नही हो रहा था. मैं बस उसे एक टक देखे जा रही थी.
वो जींदा कैसे है ? वो वाहा कैसे आया ? मुंबई में वो क्या कर रहा है ?
ये कुछ ऐसे सवाल थे जो मेरे दिमाग़ में बिल्लू को वाहा देख कर एक दम से घूम गये
यही कल की सबसे चोंकाने वाली घटना थी।
क्रमशः........................
.........
Re: छोटी सी भूल
गतांक से आगे ...................
बिल्लू को वाहा देख कर मैं गहरे शॉक में थी. यही सवाल मन में उठ रहा था कि आख़िर वो बच कैसे गया.
मैं सोच रही थी कि अगर वो जींदा है तो वो कौन थे जो नेहा के अनुशार अशोक के साथ मारे गये थे.
खैर वो मेरी आँखो के सामने था और विवेक को बुरी तरह मार रहा था.
कोई भी अगर ऐसे हालात में आपकी इज़्ज़त बचाएगा तो आप उसका अह्शान मानेंगे
पर आप क्या कहेंगे उस इंशान को जो पहले तो आपको बर्बाद करता है और फिर आपकी इज़्ज़त बचाने आ जाता है.
समझ नही आ रहा था कि बिल्लू को वाहा देख कर मैं कैसे रिक्ट करूँ. उशके कारण मेरा सब कुछ बर्बाद हो चुका था. और अब वो मेरे सामने मेरा रेप करने की कोशिस करने वाले विवेक को मार रहा था.
अगर विवेक मेरे शरीर का रेप करना चाहता था तो, बिल्लू उस से भी बढ़ कर मेरे चरित्र का रेप पहले ही कर चुका था.इश्लीए मैं बिल्लू को अपना रखवाला कैसे मान सकती थी.
आख़िर वही तो था वो, जिसने बड़ी चालाकी से मुझे पाप के दलदल में फँसाया था.
वाहा खड़े खड़े, मुझे याद आया कि कैसे उसने एक दिन अपने पाँव में चिकन का ब्लड लगा कर मुझे बड़ी चालाकी से मेरे घर के पीछे बुलाया था. कह रहा था पाँव में चोट लगी है, खून बह रहा है, कुछ करो ना. और फिर उशके बाद उसकी वो एमोशनल बातें.
खुद तो उसने मुझे जैसे तैसे फँसा कर मेरे साथ किया ही, फिर मुझे बड़ी चालाकी से अशोक के सामने भी परोश दिया. और फिर उस दिन, अशोक और राजू को भी साथ ले आया . क्या कुछ नही किया था उसने मेरे साथ. उसने जो मेरे साथ किया था वो मेरे शरीर का रेप ना सही पर मेरे कॅरक्टर का रेप ज़रूर था. अगर बिल्लू मेरी जींदगी में ना आता तो ना तो मुझे अशोक का शिकार होना पड़ता, ना उस साइकल वाले की भद्दी बाते सुन-नि पड़ती और ना ही विवेक की इतनी हिम्मत होती कि मुझ से इतनी बेहूदा बाते करे और मेरा रेप करने की कोशिश करे. इन सब बातो के कारण मुझे बिल्लू का वाहा होना कुदरत का एक घिनोना मज़ाक लग रहा था.
मैने देखा कि बिल्लू और विवेक में बहुत तगड़ी हाथा-पाई चल रही थी. कभी विवेक हावी होता दीखता था तो कभी बिल्लू. दौनो एक दूसरे से बुरी तरह उलझ रहे थे.
“साले तू बच गया हां, पर आज मेरे हाथो से नही बचेगा” ---- विवेक ने बिल्लू के पेट में लात मारते हुवे कहा.
अगले ही पल विवेक नीचे पड़ा था और बिल्लू फिर से उसकी धुनाई कर रहा था.
अचानक मेरी नज़र ज़मीन पर पड़ी पिस्टल पर गयी. वो विवेक की पॅंट के पास ही पड़ी थी.
मैं लड़खड़ाते हुवे पिस्टल के पास पहुँची और काँपते हाथो से पिस्टल उठा ली.
मैने पिस्टल को दोनो हाथो में पकड़ा और उन दौनो की तरफ तान दी. मैने किसी की और निशाना नही लगाया बस गोली चला दी…….. मैं सोच रही थी कि किसी को भी लग जाए, दौनो मेरे लिए एक समान है.
पर गोली किसी को नही लगी, पता नही कहा चली गयी.
हां इतना ज़रूर हुवा कि एक पल को दौनो रुक गये.
“भाभी रूको, गोली मत चलाओ,आइ अम सॉरी, मैं बहक गया था, आप सच कह रही थी, मैं आज होश में नही हूँ” ---- विवेक मेरी और गिड़गिदा कर बोला.
अगले ही पल बिल्लू ने उसके उपर लातो की बोछार कर दी और बोला, “साले तू कब होश में रहता है”
मैने एक और फाइयर किया और बिल्लू लड़खड़ा कर गिर गया.
“भाभी अछा किया, बहुत अछा किया, एक और गोली मारो इस साले को” ---- विवेक मेरी ओर गिड़गिदा कर बोला.
“शूट अप यू बस्टर्ड” ---- मैने चील्ला कर कहा और विवेक की तरफ पिस्टल कर के गोली चला दी.
“आहह…. नो… भाभी प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो मैं बहक गया था” ------ विवेक दर्द से चील्ला कर बोला.
गोली शायद विवेक के पेट में लगी थी. गोली लगते ही वो भी बिल्लू के पास गिर गया.
“ऋतु, बंदूक मुझे दो, मैं इसका खेल ख़तम करता हूँ” ---- बिल्लू मेरी और देख कर बोला.
बिल्लू अपनी टाँग पकड़े पड़ा था.
तब मैने सोचा, “अछा इसकी टाँग में गोली लगी है, इसके तो सर में गोली लगनी चाहिए थी.”
और मैने इस बार बिल्लू की ओर फाइयर किया
लेकिन ये निशाना मैं चूक गयी.
पर एक दम से विवेक ने फुर्ती से मेरी और बढ़ कर मेरे हाथ से पिस्टल छीन ली और मेरे मूह पर एक चाँटा मारा, जिसके कारण मैं लड़खड़ा कर गिर गयी.
बिल्लू को वाहा देख कर मैं गहरे शॉक में थी. यही सवाल मन में उठ रहा था कि आख़िर वो बच कैसे गया.
मैं सोच रही थी कि अगर वो जींदा है तो वो कौन थे जो नेहा के अनुशार अशोक के साथ मारे गये थे.
खैर वो मेरी आँखो के सामने था और विवेक को बुरी तरह मार रहा था.
कोई भी अगर ऐसे हालात में आपकी इज़्ज़त बचाएगा तो आप उसका अह्शान मानेंगे
पर आप क्या कहेंगे उस इंशान को जो पहले तो आपको बर्बाद करता है और फिर आपकी इज़्ज़त बचाने आ जाता है.
समझ नही आ रहा था कि बिल्लू को वाहा देख कर मैं कैसे रिक्ट करूँ. उशके कारण मेरा सब कुछ बर्बाद हो चुका था. और अब वो मेरे सामने मेरा रेप करने की कोशिस करने वाले विवेक को मार रहा था.
अगर विवेक मेरे शरीर का रेप करना चाहता था तो, बिल्लू उस से भी बढ़ कर मेरे चरित्र का रेप पहले ही कर चुका था.इश्लीए मैं बिल्लू को अपना रखवाला कैसे मान सकती थी.
आख़िर वही तो था वो, जिसने बड़ी चालाकी से मुझे पाप के दलदल में फँसाया था.
वाहा खड़े खड़े, मुझे याद आया कि कैसे उसने एक दिन अपने पाँव में चिकन का ब्लड लगा कर मुझे बड़ी चालाकी से मेरे घर के पीछे बुलाया था. कह रहा था पाँव में चोट लगी है, खून बह रहा है, कुछ करो ना. और फिर उशके बाद उसकी वो एमोशनल बातें.
खुद तो उसने मुझे जैसे तैसे फँसा कर मेरे साथ किया ही, फिर मुझे बड़ी चालाकी से अशोक के सामने भी परोश दिया. और फिर उस दिन, अशोक और राजू को भी साथ ले आया . क्या कुछ नही किया था उसने मेरे साथ. उसने जो मेरे साथ किया था वो मेरे शरीर का रेप ना सही पर मेरे कॅरक्टर का रेप ज़रूर था. अगर बिल्लू मेरी जींदगी में ना आता तो ना तो मुझे अशोक का शिकार होना पड़ता, ना उस साइकल वाले की भद्दी बाते सुन-नि पड़ती और ना ही विवेक की इतनी हिम्मत होती कि मुझ से इतनी बेहूदा बाते करे और मेरा रेप करने की कोशिश करे. इन सब बातो के कारण मुझे बिल्लू का वाहा होना कुदरत का एक घिनोना मज़ाक लग रहा था.
मैने देखा कि बिल्लू और विवेक में बहुत तगड़ी हाथा-पाई चल रही थी. कभी विवेक हावी होता दीखता था तो कभी बिल्लू. दौनो एक दूसरे से बुरी तरह उलझ रहे थे.
“साले तू बच गया हां, पर आज मेरे हाथो से नही बचेगा” ---- विवेक ने बिल्लू के पेट में लात मारते हुवे कहा.
अगले ही पल विवेक नीचे पड़ा था और बिल्लू फिर से उसकी धुनाई कर रहा था.
अचानक मेरी नज़र ज़मीन पर पड़ी पिस्टल पर गयी. वो विवेक की पॅंट के पास ही पड़ी थी.
मैं लड़खड़ाते हुवे पिस्टल के पास पहुँची और काँपते हाथो से पिस्टल उठा ली.
मैने पिस्टल को दोनो हाथो में पकड़ा और उन दौनो की तरफ तान दी. मैने किसी की और निशाना नही लगाया बस गोली चला दी…….. मैं सोच रही थी कि किसी को भी लग जाए, दौनो मेरे लिए एक समान है.
पर गोली किसी को नही लगी, पता नही कहा चली गयी.
हां इतना ज़रूर हुवा कि एक पल को दौनो रुक गये.
“भाभी रूको, गोली मत चलाओ,आइ अम सॉरी, मैं बहक गया था, आप सच कह रही थी, मैं आज होश में नही हूँ” ---- विवेक मेरी और गिड़गिदा कर बोला.
अगले ही पल बिल्लू ने उसके उपर लातो की बोछार कर दी और बोला, “साले तू कब होश में रहता है”
मैने एक और फाइयर किया और बिल्लू लड़खड़ा कर गिर गया.
“भाभी अछा किया, बहुत अछा किया, एक और गोली मारो इस साले को” ---- विवेक मेरी ओर गिड़गिदा कर बोला.
“शूट अप यू बस्टर्ड” ---- मैने चील्ला कर कहा और विवेक की तरफ पिस्टल कर के गोली चला दी.
“आहह…. नो… भाभी प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो मैं बहक गया था” ------ विवेक दर्द से चील्ला कर बोला.
गोली शायद विवेक के पेट में लगी थी. गोली लगते ही वो भी बिल्लू के पास गिर गया.
“ऋतु, बंदूक मुझे दो, मैं इसका खेल ख़तम करता हूँ” ---- बिल्लू मेरी और देख कर बोला.
बिल्लू अपनी टाँग पकड़े पड़ा था.
तब मैने सोचा, “अछा इसकी टाँग में गोली लगी है, इसके तो सर में गोली लगनी चाहिए थी.”
और मैने इस बार बिल्लू की ओर फाइयर किया
लेकिन ये निशाना मैं चूक गयी.
पर एक दम से विवेक ने फुर्ती से मेरी और बढ़ कर मेरे हाथ से पिस्टल छीन ली और मेरे मूह पर एक चाँटा मारा, जिसके कारण मैं लड़खड़ा कर गिर गयी.