प्यार हो तो ऐसा compleet

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rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 01 Nov 2014 15:55

“भैया मेरे प्यार को समझते हैं, वो मुझे कभी किसी बात के लिए मज़बूर नहीं करेंगे”

“देख साधना, मैं तो कल चली जाउन्गि, कल तेरे जीजा जी मुझे लेने आ रहे हैं, कल से मैं तुम्हे मज़बूर नही करूँगी, हाँ पर इतना ज़रूर कहूँगी की जींदगी आगे बढ़ने का नाम है ना की पीछे चलने का, बाकी अब तुम जवान हो गयी हो, अपना भला बुरा समझ सकती हो” ---- सरिता ने कहा

बाते करते करते वो कब मदन की खटिया के पास पहुँच गये उन्हे पता ही नही चला

“अरे भैया आज कैसे उठ गये, बड़ी अजीब बात है ?” ---- साधना ने हैरानी में कहा

“तुमने क्या मदन को कुंभकारण समझ रखा है”

“वो तो ठीक है पर भैया है कहाँ”

“अरे होगा यहीं कहीं”

“क्या हुवा सरिता” ---- गुलाब चाँद ने पूछा

“कुछ नही पिता जी, मदन को ढूंड रहे हैं, आज वो बड़ी जल्दी उठ गया” --- सरिता ने जवाब दिया

“बड़ी अजीब बात है, उशे तो रोज साधना बड़ी मुस्किल से उठाती है, आज अपने आप कैसे उठ गया वो, चलो अछा ही है, जल्दी उतना सेहत के लिए अछा होता है” --- गुलाब चंद ने कहा

“पर पिता जी भैया है कहाँ ?” – साधना ने पूछा

“अरे होगा यहीं कहीं, चलो ढूंड-ते हैं” --- सरिता ने जवाब दिया

तीनो बाप बेटी मदन को ढूंड-ने निकल पड़ते हैं

“दीदी एक बात अजीब नही है ?” – साधना ने पूछा

“क्या हुवा अब ?”

“भैया के बिस्तर को देख कर तो ऐसा लग रहा था कि उस पर कोई सोया ही ना हो”

“अरे मदन ने उठ कर बिस्तर ठीक कर दिया होगा, तू भी बस बेकार की बाते सोचती रहती है” --- सरिता ने जवाब दिया

पर सरिता ये बात नही जानती थी कि साधना बेकार की नही बड़ी काम की बात कर रही थी, जिस पर ध्यान देने की बहुत ज़रूरत थी.

“दीदी ये देखो !!”

“अरे ये तो खून जैसा लग रहा है, इतना लहू यहा किसका बह गया” ---- सरिता ने हैरानी में कहा

“दीदी मुझे तो कुछ अजीब लग रहा है”

“अरे डर मत मदन ने ज़रूर किसी जानवर को लाठी मार कर यहा से भगाया होगा, ये किसी जानवर का खून लगता है”

तभी उन्हे सामने से उनके पिता जी आते हुवे दीखाई देते हैं

“क्या हुवा, दीखाई दिया कहीं मदन ?” गुलाब चंद ने पूछा

“नही पिता जी, हमने यहा चारो तरफ देख लिया है, पर भैया यहा कहीं नही हैं, और ये देखिए, यहा इतना सारा खून बीखरा पड़ा है, मुझे तो डर लग रहा है” ---- साधना ने हड़बड़ा कर कहा

डरने वाली बात ही थी, गुलाब चंद भी पूरा खेत छान आया था, पर मदन का कहीं आता पता नही था, उसे भी इतना खून देख कर घबराहट हो रही थी.

इधर पिछली रात को वर्षा के घर का दृश्या

“हमें दर्द होता है…….आप धीरे से नही कर सकते क्या”

“चुप कर साली दर्द होता है…… अभी नोच कर कच्चा चबा जाउन्गा” --- वीर ने रेणुका के उभारो को बुरी तरह मसल्ते हुवे कहा

“आप हमसे कौन से जनम का बदला ले रहे हैं” --- रेणुका ने पूछा

“लगता है आज फिर तुम्हारा दीमाग चल गया है, कुत्ते की दूम कभी सीधी नही होती”

“हमसे इतनी नफ़रत है तो आप हमें मार क्यों नही देते”

“चुप कर साली, वरना सच में मार देंगे”

ये कह कर वीर ने रेणुका के उभारो पर अपने दाँत गढ़ा दिए

“आहह” --- रेणुका कराह कर रह गयी

rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 01 Nov 2014 15:55

“चल उल्टी हो जा… आज तेरे पीचवाड़े की बारी है”

“नही ऐसे ही कर लीजिए ना”

“घूमती है कि नही या फिर मारु एक थप्पड़”

रेणुका सुबक्ते हुवे लेते-लेते घूम जाती है

“साली हमेशा बात-बात पर नखरे करती है, तेरे मा-बाप ने क्या तुझे कुछ तमीज़ नही सीखाई”

“मेरे मा-बाप ने आपका क्या बिगाड़ा है जो बात बात पर उन्हे बीच में ले आते हैं, जो कहना है मुझे कहिए”

“साली फिर ज़ुबान लड़ाती है” --- वीर ने रेणुका के बाल खींचते हुवे कहा

“आहह………. आप क्यों मेरे मा-बाप के पीछे पड़े हैं फिर” --- रेणुका ने कराहते हुवे कहा

“तेरे बाप के कारण, यहा की ज़मींदारी हाथ से चली गयी कुतिया…वरना आज मैं जाने कहा होता”

“इसमें उनकी कोई ग़लती नही थी”

“अभी बता-ता हूँ तुझे, ये जाएगे ना अंदर तो पता चलेगा तुझे”

वीर अपने लिंग पर हल्का सा थूक लगा कर रेणुका के गुदा द्वार में समा जाता है

“आअहह……..नही…. धीरे से कीजिए ना, हमें बहुत दर्द हो रहा है”

“आ गयी अकल ठीकाने, मुझ से ज़बान लड़ाती है… हा…. आगे से मेरे साथ बकवास की ना तो तेरी फाड़ कर रख दूँगा ?”

रेणुका सर को तकिये पर रख कर सूबक-सूबक कर रोने लगती है, पर वीर उसकी परवाह किए बिना उसके साथ सहवास जारी रखता है

ये है वीर प्रताप सिंग, वर्षा का बड़ा भाई और रुद्र प्रताप सिंग का बड़ा बेटा. रेणुका से वीर की शादी कोई एक साल पहले ही हुई है, पर उनकी शादी शुदा जींदगी में इस सब के अलावा और कुछ नही है.

वीर अपनी हवश की प्यास भुजा कर सो चुका है पर रेणुका अभी भी करवट लिए सूबक रही है.

अचानक उसे बाहर से कोई चीन्ख सुनाई देती है, जिशे सुन कर वो घबरा जाती है और वीर से लिपट जाती है

वीर हड़बड़ा कर उठ जाता है

“क्या बात है” --- वियर रेणुका को डाँट कर पूछता है

“आप को कुछ सुन रहा है क्या ?”

“क्या है…….. सो जाओ आराम से”

“अरे आपको कुछ सुनाई नही दे रहा क्या ?”

“रेणुका चुपचाप सोती हो या नही, या फिर दूं एक थप्पड़ गाल पे” --- वीर प्रताप ने रेणुका को डाँट कर कहा

रेणुका बिना कुछ कहे करवट ले कर लेट जाती है और अपनी किस्मत को रोने लगती है. वो सोच रही है कि उसकी जींदगी में शायद पति का प्यार है ही नही

रेणुका को कब नींद आ जाती है उसे पता ही नही चलता

पर वो रोजाना की तरह सुबह जल्दी उठ जाती है.

जैसे ही वो अपने कमरे से बाहर निकलती है उसे जीवन प्रताप सिंग मिल जाता हैं

“चाचा जी सुप्रभात” --- रेणुका पाँव छूते हुवे कहती है

“अरे रेणुका बेटी पाँव मत छुवा करो”

“क्या हुवा चाचा जी”

“कुछ नही-कुछ नही, अछा ये बता वीर ने फिर तो कुछ नही कहा”

“जी….. नही” --- रेणुका ने सोचते हुवे कहा. वो और कहती भी क्या

पीछले दिन जीवन ने वीर को रसोई में रेणुका के मूह पर थप्पड़ मारते हुवे देख लिया था. उस वक्त जीवन ने आकर वीर को समझाया था कि बहू पर इस तरह हाथ उठाना अछा नही होता.

“क्या मंदिर जा रही हो बेटी” --- जीवन प्रताप ने पूछा

“जी चाचा जी, वर्षा के साथ मंदिर जाउन्गि, अभी देखती हूँ कि वो उठी है या नही”

“हाँ-हाँ जाओ बेटा…जाओ ”

rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 01 Nov 2014 15:56

रेणुका सीढ़ियाँ चढ़ कर वर्षा के कमरे के बाहर पहुँच जाती है, और उसे आवाज़ लगाती है --- “वर्षा उठ गयी क्या, चलो मंदिर चलते हैं”

पर अंदर से कोई जवाब नही आता

वो अंदर जा कर देखती है तो पाती है कि वर्षा कमरे में नही है

रेणुका मन ही मन सोचती है “अरे वर्षा क्या आज फिर अकेली मंदिर चली गयी, ये मेरा इंतेज़ार क्यों नही करती. इस घर में चाचा जी ही हैं जो मुझ से ठीक से बात करते हैं, वरना हर कोई अपनी दुनिया में गुम है”

वो इस बात से अंजान है कि आख़िर क्यों जीवन चाचा उसके साथ इतने प्यार से बात करता है.

रेणुका अकेली ही मंदिर जाती है. पर मंदिर पहुँच कर वो देखती है कि वर्षा मंदिर में भी नही है

“अरे ये वर्षा कहा है, मंदिर का रास्ता तो एक ही है, वो मंदिर आई थी तो कहा गयी…. हो सकता है वो घर पर ही हो” ---- रेणुका सोचती है और मंदिर में हाथ जोड़ कर वापस घर की तरफ चल देती है.

रेणुका जब घर पहुँचती है तो पूरे घर में, हर तरफ वर्षा को ढूंडती है, पर वो उसे कहीं नही मिलती

तभी उसे सामने से रुद्र प्रताप सिंग आता हुवा दीखाई देता है

“सुप्रभात पिता जी” ---- रेणुका अपने ससुर के पाँव छू कर कहती है

“जीती रहो बहू, वर्षा कहा है ?”

“पिता जी मैं भी उसे ही ढूंड रही हूँ, पर वो जाने कहा है”

“क्या बकवास कर रही हो ?”

रेणुका काँप उठती है

“जाओ बुला कर लाओ उसे, आज उसे देखने लड़के वाले आ रहे हैं”

“जी पिता जी मैं फिर से देखती हूँ, वो यहीं कहीं होगी”

पर रेणुका को वर्षा घर में कहीं नही मिलती

“भैया… सुप्रभात”

“सुप्रभात जीवन… आओ,…. तुमने वर्षा को देखा है क्या” – रुद्र प्रताप ने पूछा

“नही भैया ? क्यों क्या हुवा ?”

“कुछ नही बहू कह रही थी कि वो कहीं नही दीख रही”

“होगी यहीं कहीं भैया, कहा जाएगी”

तभी रेणुका वाहा आती है और अपने ससुर को कहती है, “पिता जी मैने फिर से देख लिया वर्षा घर में नही है”

“अरे तुम तो मंदिर गयी थी ना उसके साथ” – जीवन ने रेणुका से पूछा

“जी चाचा जी, जाना तो वर्षा के साथ ही था पर मैं जब वर्षा के कमरे में गयी थी तो वो वाहा थी ही नही, इश्लीए मैं अकेली ही मंदिर चली गयी”

“क्या मतलब….. तुम कहना क्या चाहती हो ?” रुद्र प्रताप ने गुस्से में कहा

“कुछ नही पिता जी….. मैं तो बस ये कह रही थी कि वर्षा ना जाने सुबह-सुबह कहा चली गयी” --- रेणुका ने दबी आवाज़ में कहा

“मंदिर के अलावा वो कहा जा सकती है, वो वहीं होगी” --- रुद्र प्रताप ने कहा

“जी… पर मुझे वो मंदिर में भी नही मिली” --- रेणुका ने कहा

“ठीक है-ठीक है जाओ अपना काम करो” --- रुद्र प्रताप ने कहा

“जी पिता जी” --- रेणुका ने कहा और चुपचाप वाहा से चली गयी.

“बहुत ज़ुबान लड़ाती है ये लड़की” --- रुद्र गुस्से में बोला

“अभी नादान है भैया धीरे धीरे समझ जाएगी” --- जीवन ने कहा

इधर खेत में साधना, सरिता और गुलाब चंद ज़मीन पर बीखरे खून को देख कर डरे, सहमे खड़े हैं

अचानक साधना को सामने मक्की के खेतो में कुछ दीखता है

“वो..वो कौन है वाहा” --- साधना हड़बड़ा कर कहती है

“कहा पर साधना” --- सरिता ने पूछा

“अभी-अभी वाहा सामने की फसलों से कोई झाँक रहा था”

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