कुँवारियों का शिकार compleet

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raj..
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Re: कुँवारियों का शिकार

Unread post by raj.. » 07 Nov 2014 15:38

कुँवारियों का शिकार--4
गतान्क से आगे..............

रास्ते में मैने प्रिया को पूछा कि उसने दीपक में ऐसा क्या देखा के उसके साथ ये सब करने को तैयार हो गयी. प्रिया ने अपनी नज़र झुका ली और कुच्छ नही बोली. मैने फिर पूछा और कहा कि अब तो हमारे बीच एक दोस्ती का रिश्ता बन चुका है इसलिए उससे बेजीझक सब कुच्छ बता देना चाहिए. प्रिया कुच्छ देर चुप रही और फिर बोली के उसे लगा के उसका मेद्स का प्री-बोर्ड ठीक नही हुआ था और वो दीपक को पटा के चाहती थी के वो थोड़ी देर के लिए उसकी आन्सर बुक उसे दिखा दे जिस से वो करेक्षन कर दे.

मैं चौंक गया के यह लड़की इतनी चालाक हो सकती है और कहा के ऐसा कैसे हो सकता है. वो बोली क्यों नही हो सकता, जब उसके पापा चेकिंग के लिए आन्सर शीट घर लाते तो वो मुझे फोन करके बता सकता था और मैं उसके घर चली जाती किसी बहाने से और कोई तरीकानिकाल लेते. प्रिया बोलती चली गयी कि दीपक तो डरपोक निकला और उसकी बात सुनते ही भाग गया उसे अकेला छोड़ के.

मैने हंसते हुए कहा कि मेरे लिए. प्रिया भी हंस दी. मैने रास्ते में केमिस्ट शॉप से उसके लिए मेडिसिन ली. फिर हम उसके घर के पास पहुँच गये और वो मुझे डाइरेक्षन बताने लगी, मैने उसे रोक दिया और कहा के मैं जानता हूँ. रेकॉर्ड चेक करते समय मैं देख चुका था कि वो मेरे बहुत पुराने दोस्त नरेश (बिट्टू) के बड़े भाई नरेन्दर की बेटी है.

मेरा पहले उनके घर बहुत आना जाना था कॉलेज के दिनों में. वो हैरानी से मुझे देखने लगी. उसका घर आ गया और मैने गेट के साथ ही कार रोक दी और उतर के उसकी तरफ आ गया और दरवाज़ा खोल के उससे बोला आओ, ज़रा ध्यान से. उसका स्कूल बॅग मैने ले लिया और आगे हो के कॉल बेल दबा दी. उसकी मैड ने गेट खोला और बोली बेबी आ गयी मैं तो आने वाली थी तुम्हे लेने. फिर वो मेरी तरफ देख के बोली, आप कौन हैं.

प्रिया ठीक ना होने का नाटक करते हुए कमज़ोर सी आवाज़ में बोली ये हमारे प्रिन्सिपल हेँ स्कूल के और मेरी तबीयत खराब होने की वजह से मुझे डॉक्टर को दिखा के और मेडिसिन दिलवा के लाए हेँ. मैड ने झट से बॅग मुझसे लिया और आइए कहती हुई तेज़ी से अंदर को जाने लगी. मैं भी प्रिया को सहारा देते अंदर बढ़ गया.

हमारे मैन डोर तक पहुँचते तक नरेन्दर भैया बाहर आ गये और क्या हुआ कहते हुए हमारी तरफ बढ़े. फिर मुझे देख कर रुक गये और पहचान कर बोले कि तुम राज शर्मा हो ना, तुम यहाँ क्या कर रहे हो. मैने हंसते हुए कहा के हां राज ही हूँ और अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने की कोशिश कर रहा हूँ, लो सांभलो अपनी बेटी को, एक ज़रा सा ब्रेड पकॉरा हाज़ाम नही कर पाती, क्या खिलाते हो इसको? फिर मैने तसल्ली दी और कहा के घबराने की कोई बात नही है थोड़ी असिडिटी हो गयी थी और हल्का सा स्टमक आचे हुआ था इसको.

स्कूल में डॉक्टर आज के दिन आता नही है और कोई और प्रबंध ना होने की वजह से मैं खुद ही प्रिया को डॉक्टर के पास ले गया और चेक अप करवा के मेडिसिन दिलवा दी है और साथ के लिए भी मेडिसिन दी है एहतियातन के लिए अगर सुबह तबीयत खराब हो तो मेडिसिन लेले और फिर उसे बता दें वो फोन पर ही बता देगा जो टेस्ट्स करवाने होंगे और अगर ठीक हो तो मेडिसिन लेने की कोई ज़रूरत नही है. वैसे घबराने की कोई बात नही है आंटॅसिड लेते ही प्रिया वाज़ फीलिंग बेटर.

raj..
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Re: कुँवारियों का शिकार

Unread post by raj.. » 07 Nov 2014 15:39



नरेन्दर के चेहरे पर चैन के भाव आए और उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर आने को कहा और अंदर ले जा कर मुझे बिठा दिया और बोला के कितने सालों के बाद आए हो हमारे घर. फिर वो तोड़ा सीरीयस हो कर बोला, ‘आइ आम सॉरी राज, आक्सिडेंट के समय मैं आउट ऑफ इंडिया था और अभी कुच्छ दिन पहले ही वापिस आया हूँ और सोच ही रहा था के तुम्हें मिलकर अफ़सोस करूँ और तुम खुद ही आ गये. बिट्टू तो यहीं था और तुम्हारे साथ ही था.’

मैने भी सीरीयस होकर कहा के हां बिट्टू तो पूरा समय मेरे साथ ही था और पूरे 20 दिन तक उसने मुझे अकेला नही होने दिया और मुझे तो कुच्छ होश ही नही था, पर बिट्टू ने सब ज़िम्मेदारी अपने ऊपेर लेके सारा अरेंज्मेंट बहुत सलीके से कर दिया था. इतने में मैड कोल्ड ड्रिंक लेकर आ गयी और नरेन्दर ने मुझे कहा के लो और मैने एक ग्लास उठा लिया और एक सीप लेकर टेबल पर रख दिया.

फिर 5-10 मिनट नरेन्दर मुझसे बात करता रहा और अपनी सहानुभूति जताता रहा. मैने अपना कोल्ड ड्रिंक ख़तम कर लिया था और फिर मैं उठ खड़ा हुआ और चलने की इजाज़त माँगी. नरिंदर भी खड़ा हो गया और मेरे साथ बाहर तक आया और थॅंक यू बोला तो मैने उससे थोड़ा सा डाँट कर कहा वाह भैया आपने तो मुझे गैर कर दिया मुझे भी थॅंक यू कहोगे. वो झेंपटे हुए बोला के नही रे तुम तो मेरे लिए बिट्टू जैसे ही हो. मैने मुस्कुराते हुए उसका हाथ पकड़ा और विदा लेकर वहाँ से चल दिया.

घर लौटते हुए मेरा ज़मीर मुझे धिक्कारने लगा के अब तू इन्सेस्ट पर भी उतर आया है. मेरे दिमाग़ ने कहा के नही मेरा प्रिया से कोई खूनका रिश्ता तो है नही फिर ये इन्सेस्ट कहाँ से होगा. प्रिया तो एक पका हुआ आम है अगर मैं उसे नही चोदुन्गा तो वो किसी और के हाथ लग जाएगी. बेहतर है के मैं ही उसकी पहली चुदाई करूँ. मैं भी खुश और वो भी खुश. वो आजकल की आज़ाद ख़याल लड़की है और अपनी मर्ज़ी से मेरे से चुदना चाहती है तो क्या बुरा है.

यही सब सोचते हुए मैं घर पहुँच गया. अब मुझे वेट करना था के प्रिया क्या और कैसे प्रोग्राम बनाती है. प्रिया के बारे में सोच-सोच कर मैं उत्तेजित हो रहा था. मैं इस उत्तेजना का आदि था और यह मुझे चुस्त, दुरुस्त और फुर्तीला रखती थी.

मैने अगले दिन ऑफीस में पहुँचते ही प्रिया का मेद्स का पेपर निकाला और चेक करने लगा. मैं खुद एक मेद्स टीचर भी हूँ. एम.एससी. मेद्स में और एम.ईडी. किया हुआ है मैने. एक अलग काग़ज़ पर मैने उसके मार्क्स लगाने शुरू किए और आख़िर में टोटल किया तो हैरान रह गया के उसके 100 में से 87 नंबर थे, जो के बहुत ज़्यादा तो नही तहे मेद्स के लिए पर फिर भी ठीक थे, वो फैल तो नही हुई थी जैसा वो सोच रही थी. स्कूल की छुट्टी होने के बाद मैने उसको फोन करके बता दिया के वो बेकार ही फिकर कर रही थी और वो बहुत खुश हो गयी और बोली के इसका इनाम वो मुझे बहुत जल्दी देगी.

मैं आपको यह बताना उचित समझता हूँ के मेरा घर स्कूल की बिल्डिंग के बिल्कुल साथ ही है केवल एक सर्विस लेन है बीच में. मेरा मकान 3-साइड ओपन है. बॅक और साइड में सर्विस लेन है और सामने छ्होटी रोड है और रोड के उस पार एक छ्होटा सा पार्क है. एक छ्होटा गेट मकान के साइड में भी है और उसके सामने स्कूल की बाउंड्री वॉल में भी एक छ्होटा दरवाज़ा लगा हुआ है जिसकी चाबी केवल मेरे पास होती है.

8-10 दिन बाद दोपहर को स्कूल से लौटने के बाद मैं आराम कर रहा था के मेरे प्राइवेट वाले मोबाइल की घंटी बजी. यह प्रिया का फोन था.

मैने फोन रिसीव किया और बोला के हां प्रिया बोलो. प्रिया की बहुत धीमी आवाज़ मेरे कान में पड़ी के मैने प्रोग्राम बना लिया है और पापा से पर्मिशन भी ले ली है फ्रेंड्स के साथ साकेत माल में घूमने की और उसके बाद फिल्म देखने की, जिस शो का प्रोग्राम बनाया है वो 7 बजे ख़तम होगा और मुझे 7-30 तक वापिस घर पहुँचना है. क्या इतना टाइम काफ़ी होगा? मैने बिना देर किए कहा कि हां. फिर वो बोली के मैं अब से ठीक 45 मिनट बाद साकेत माल पहुँचुँगी. मैने कहा के मैं वहीं तुम्हारा वेट करूँगा.

उसने कहा के पार्किंग में मेरा वेट करना मैं वहीं मिलूंगी. मैने कहा ओके, बाइ और फोन काट दिया. मैं दिल में प्रिया की तारीफ कर रहा था के क्या प्लॅनिंग की है उसने. फिर मैं आराम से तैयार हुआ और कार निकाल कर साकेत माल की तरफ चल पड़ा. फिर मैने वहाँ पहुँचते ही प्रिया को फोन किया और उसको अपनी कार की पोज़िशन बताई के मैं पार्किंग में किस लेवेल पर और किस लिफ्ट के पास उसका वेट कर रहा हूँ. उसने कहा के बस 5 मिनट में वहीं आ रही है.

raj..
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Re: कुँवारियों का शिकार

Unread post by raj.. » 07 Nov 2014 15:40


ठीक 5 मिनट बाद मेरी कार का पिछला दरवाज़ा खुला और वो अंदर आ गयी. चलो, उसने कहा और मैने कार स्टार्ट की और बाहर को चल दिया. मैने शीशे में देखा प्रिया बिल्कुल स्वर्ग की अप्सरा लग रही थी. उसने ब्लॅक कलर की ऑफ दा शोल्डर ड्रेस पहन रखी थी, यानी उसकाएक कंधा बिल्कुल बेपर्दा था और ड्रेस घुटनों के थोड़ा ही नीचे तक थी. बैठने के कारण थोड़ा ऊँची हो गयी थी और घुटनों तक उसकी गोरी टांगे दमक रही थी.

मैं रोड पर आते ही मैने कार की स्पीड तेज़ करदी और अपने फार्म हाउस की तरफ जाने लगा. वहाँ पहुँचने पर प्रिया पहले की तरह सीट के नीचे दुबक गयी और हम अंदर मेन डोर तक पहुँच गये. फिर मैं निकला और मेन डोर खोला, मेन डोर के खुलते ही प्रिया बाहर आ गयी और तेज़ी से अंदर चली गयी. मैने अंदर आकर डोर लॉक किया और प्रिया को लेकर अपने बेडरूम में आ गया.

बेडरूम में आते ही प्रिया मुझसे लिपट गयी और बोली के मैने बहुत मुश्किल से ये दिन काटे हैं. मैने भी उसको अपनी बाहों में कसते हुए कहा के इंतेज़ार के बाद जब मनचाही वास्तु मिलती है तो उसका मज़ा ही कुच्छ और होता है.

प्रिया को मैने अपनी बाहों में भर लिया और उसका मुँह ऊपेर उठा कर चूमने लगा. उसका निचला होंठ बहुत ही प्यारा था मैने उसे अपने होंठों में लेकर चूसना शुरू किया और साथ ही उस पर अपनी जीभ फेरने लगा. प्रिया मेरी बाहों में मचलने लगी और ज़ोर लगाकर मुझसे अलग हो गयी. मैने चौंकते हुए पूछा के क्या हुआ. तो वो मचलते हुए बोली के अब और इनेज़ार नहीं होता.

मैने कहा के धीरज रखो जल्दबाज़ी में कुच्छ मज़ा नही आता. आज मैं तुमको लड़की से औरत बना दूँगा. तुमको चोदुन्गा ज़रूर पर पूरी मस्ती के साथ ताकि तुम्हारी पहली चुदाई तुम्हारे लिए एक यादगार रहे. आइ प्रॉमिस के तुम्हे इतना मज़ा आएगा के तुम अबतक के सारे मज़े भूल जाओगी. उसकी आँखों में झाँकते हुए मैने कहा के ठीक है चलो अपने कपड़े उतारो और बिल्कुल नंगी हो जाओ.

और मैने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए और एक एक करके सारे कपड़े उतार दिए और उनको फोल्ड करके एक चेर पर रख दिया.तब तक प्रिया ने अपना ड्रेस और लेगैंग्स उतार दी थी और अपनी ब्रा खोल रही थी. ब्रा के खुलते ही उसके मम्मों को देखकर मेरी धड़कनें तेज़ हो गयी और मेरा लंड उत्तेजना के मारे ऊपेर नीचे होने लगा.

यह देखकर प्रिया की हँसी निकल गयी और बोली के देखो यह कैसे उछल रहा है. मैने भी हंसते हुए उससे कहा के यह भी तुम्हारी चूत में जाने के लिए बेताब है और सलामी दे रहा है. प्रिया ने अपनी ब्रा कुर्सी पर फेंकी और अपनी पॅंटी उतारने लगी. मैने उसकी ड्रेस फोल्ड करके एक हॅंगर में डाल दी और कपबोर्ड में टाँग दी. जैसे ही मैं पलटा मेरी आँखें उसका रूप देख कर चौंधिया गयीं. वो तो बिल्कुल किसी अप्सरा की तरह लग रही थी और उसका शरीर कुंदन की तरह दमक रहा था. मैं मंत्रमुग्ध सा उसके पास गया और उसको बाहों में उठा कर बेड पर ले गया और अपने ऊपेर लिटा लिया.

मेरे हाथ उसके बदन पर कोमलता से फिरने लगे. उसके शरीर पर गूस बंप्स उभर आए और वो आ…ह, उ...ह की आवाज़ें निकालने लगी. थोड़ी ही देर में वो अत्यधिक उत्तेजित हो उठी और च्चटपटाने लगी. अब मैने ज़्यादा देर करना उचित नही समझा और उसको बाहों में लिए हुए ही पलट गया और उसको बेड पर चित्त लिटा दिया. अपना एक घुटना उसकी टाँगों के बीच में देकर उसकी जांघों को रगरना शुरू किया और एक मम्मे को मुँह में भरकर चूसने लगा. उसका दूसरा मम्मा मेरे हाथ में था और मेरी उंगलियों और अंगूठे की छेड़-छाड़ से एकदम कड़क हो रहा था. मेरी अपनी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी और मेरा लंड अकड़ कर स्टील रोड हो गया था. दोस्तो कहानी कैसी लग रही है ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा

क्रमशः.

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