कुछ दिनो बाद रचना की शादी वहीं पास के एक फॉरेस्ट ऑफीसर अरुण से हो गयी. रचना यू.पी. से बिलॉंग करती थी. अरुण बहुत ही हँसमुख और रंगीन मिज़ाज आदमी था. उसकी पोस्टिंग हमारे हॉस्पिटल से 80 किमी दूर एक जंगल मे थी. शुरू शुरू मे तो हर दूसरे दिन भाग आता था. कुछ दिनों बाद हफ्ते मे दो दिन के लिए आने लगा. हम चारों आपस मे काफ़ी खुले हुए थे. अक्सर आपस मे रंगीले जोक्स और द्वियार्थी संवाद करते रहते थे. उसकी नज़र शुरू से ही मुझ पर थी. मगर ना तो मैने उसे कभी लिफ्ट दिया ना ही उसे ज़्यादा आगे बढ़ने का मौका मिला. होली के समय ज़रूर मौका देख कर रंग लगाने के बहाने मुझसे लिपट गया था और मेरे कुर्ते मे हाथ डाल कर मेरी चुचियों को कस कर मसल दिया था. इससे पहले कि वो और आगे बढ़ता मैं उसके चंगुल से निकल कर भाग गयी थी. उसकी इस हरकत पर किसी की नज़र नहीं पड़ी थी इसलिए मैने भी चुप रहना बेहतर समझा. वरना बेवजह हम सहेलियों मे दरार पड़ जाती. मैं उससे ज़रूर अब कुछ कतराने लगी थी. मगर वो मेरे निकट ता के लिए मौका खोजता रहता था.
क्रमशः........................
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राधा का राज compleet
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Re: राधा का राज
राधा का राज --4
गतान्क से आगे....................
रचना को शादी के साल भर बाद ही मयके जाना पड़ गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी. अब अरुण कम ही आता था. आकर भी उसी दिन ही वापस लौट जाता था. अचानक एक दिन दोपहर को पहुँच गया. उसके पास एक सूमो थी जो इस तरह के जंगल और उबड़खाबाड़ सड़को के लिए एक वरदान है.उसके साथ मे एक और उसका साथी था जिसका नाम उसने मुकुल बताया. उनका कोई आदमी पेड से गिर पड़ा था. बक्कबोन मे इंजुरी थी. उस जॉगल से हॉस्पिटल का रास्ता खराब था इसलिए उसे लेकर नहीं आपाये.
उन्हों ने मुझसे हेल्प माँगी. मेरे पास उनके साथ जाने के अलावा कोई चारा भी नही था. हालत काफ़ी नाज़ुक थी इसलिए वो मुझे साथ ले जाने के लिए ही आए थे. मैने झटपट हॉस्पिटल मे इनफॉर्म किया और राज को बता कर अपना समान ले कर निकल गयी. निकलते निकलते दो बज गये थे. 80 किमी का फासला कवर करते करते हमे ढाई घंटे लग गये. रास्ता काफ़ी खराब था. बरसात के दिनो मे वैसे ही असम जैसी जगह बरसात की अधिकता से रास्तों की हालत बुरी हो जाती है.
हम तीनो सूमो मे आगे की सीट पर बैठे थे. दोनो के बीच मे मैं फँसी हुई थी. रास्ता बहुत उबर खाबड़ था. हिचकोले लग रहे थे. हम एक दूसरे से भिड़ रहे थे. मैं बीच मे बैठी थी इसलिए कभी अरुण के उपर गिरती तो कभी मुकुल के ऊपर. मौका देख कर अरुण बीच बीच मे मेरे एक स्तन को कोहनी से दाब देता. कभी जांघों पर हाथ रख देता था. मुझे तब लगा कि मैने सामने बैठ कर ग़लती की थी. एक बार तो मेरी दोनो जांघों के बीच भींच अपना हाथ रख कर मसल दिया. मैने शर्म से उनके हाथ को वहाँ से हटाने के अलावा कोई हरकत नही की. मुकुल हम दोनो के बीच इस तरह के खेल को गोर से देख रहा था. मैने महसूस किया कि वो भी मुझ से सॅट गया है और दोनो ने मुझे सॅंडविच की तरह अपने बीच जाकड़ रखा है.
हम शाम तक वहाँ पहुँच गये. मरीज को चेक अप करने मे शाम के सिक्स ओ'क्लॉक हो गये. वहाँ मौजूद लकड़ी और खपच्चियों से उसके ट्रॅक्षन का इंतज़ाम किया था. कुछ सेडेटिव्स और पेन किलर्स देकर उनको बताया कि उसे बिल्कुल भी हिलने ना दें. जख्म गहरा नही है. बस लिगमेट मे कुछ टूटफूट थी जो कुछ दिन के रेस्ट से ठीक हो जाएगा.
यहाँ शाम कुछ जल्दी हो जाती है. नवेंबर का महीना था मौसम बहुत रोमॅंटिक था. मगर धीरे धीरे बदल घिरने लगे थे मैं जल्दी अपना काम निपटा कर रात तक घर लौट जाना चाहती थी. "इतनी जल्दी क्या है? आज रात यहीं रुक जाओ मेरे झोपडे मे." अरुण ने कहा,"घबराओ मत राज की याद नही आने दूँगा." मगर मेरे गुस्से मे भर कर देखने पर वो चुप हो गया.
"जीजू अपने गंदे विचारों को समहालो. रचना ने तुम्हे इस तरह बातें करते सुना तो सिर पर एक भी बाल नही छोड़ेगी. चलो मुझे घर छोड़ आओ."मैने कहा
"चल रे मुकुल, मेडम को घर छोड़ आएँ. मेडम इस जंगल मे रहने को तैयार नहीं हैं."
हम वापस सूमो मे वैसे ही बैठ गये जिस तरह पहले बैठे थे. मैं दोनो के बीच फँसी हुई थी. मैं पीछे बैठने लगी थी कि अरुण ने रोक दिया.
"कहाँ पीछे बैठ रही हो. सामने आ जाओ. बातें करते हुए रास्ता गुजर जाएगा. और कोई हसीन साथी हो तो सफ़र का पता ही नही चलता है"
"लेकिन तुम अपनी हरकतों पर काबू रखोगे वरना मैं रचना से बोल दूँगी." मैने उसे चेताया.
"अरे उस हिट्लर को कुछ उल्टा सीधा मत बताना नहीं तो वो मेरी अच्छी ख़ासी रॅगिंग ले लेगी."
मैं उसकी बात सुन कर हँसने लगी. और सूमो मे चढ़ कर उनके बगल मे बैठ गयी. वो जान बूझ कर मेरी तरफ खिसक कर बैठा था जिससे मुझे बैठने के लिए जगह कम मिले और मजबूरन उनसे सॅट कर बैठना पड़े. उसने अपना हाथ उठा कर मेरे कंधे पर रख दिया. मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों से फँस गयी. हमारी रिटर्न जर्नी शुरू हो गयी.
अचानक मूसलाधार बेरिश शुरू हो गयी. जंगल के अंधेरे रस्तो मे ऐसी बरसात मे गाड़ी चलाना भी एक मुश्किल काम था. चारों ओर सुनसान था सिर्फ़ हवा की साआ साअ और जानवरों की आवाज़ों के अलावा
कही कोई आवाज़ नही थी.
अचानक गाड़ी जंगल के बीच मे झटके खाकर रुक गयी. अरुण टॉर्च लेकर नीचे उतरा. उसने बुनट उठा कर कुछ देर गाड़ी चेक किया मगर कोई खराबी पकड़ मे नहीं आई. कुछ देर बाद वापस आ गया.वो पूरी तरह भीग चुका था. उसने अपने गीले शर्ट को उतार कर पीछे फेंक दिया और हतासा मे हाथ हिलाए.
"कुछ नहीं हो सकता." उसने कहा"चलो नीचे उतर कर धक्का लगाओ. हो सकता है कि गाड़ी चल जाए."
"मगर….बरसात… "मैं बाहर देख कर कुछ हिचकिचाई.
"नहीं तो जब तक बरसात ना रुके तब तक इंतेज़ार करो"उसने कहा"अब इस बरसात का भी क्या भरोसा. हो सकता है सारी रात बरसता रहे. इसीलिए ही तो तुम्हें रात को वहाँ रुकने को कहा था."
गतान्क से आगे....................
रचना को शादी के साल भर बाद ही मयके जाना पड़ गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी. अब अरुण कम ही आता था. आकर भी उसी दिन ही वापस लौट जाता था. अचानक एक दिन दोपहर को पहुँच गया. उसके पास एक सूमो थी जो इस तरह के जंगल और उबड़खाबाड़ सड़को के लिए एक वरदान है.उसके साथ मे एक और उसका साथी था जिसका नाम उसने मुकुल बताया. उनका कोई आदमी पेड से गिर पड़ा था. बक्कबोन मे इंजुरी थी. उस जॉगल से हॉस्पिटल का रास्ता खराब था इसलिए उसे लेकर नहीं आपाये.
उन्हों ने मुझसे हेल्प माँगी. मेरे पास उनके साथ जाने के अलावा कोई चारा भी नही था. हालत काफ़ी नाज़ुक थी इसलिए वो मुझे साथ ले जाने के लिए ही आए थे. मैने झटपट हॉस्पिटल मे इनफॉर्म किया और राज को बता कर अपना समान ले कर निकल गयी. निकलते निकलते दो बज गये थे. 80 किमी का फासला कवर करते करते हमे ढाई घंटे लग गये. रास्ता काफ़ी खराब था. बरसात के दिनो मे वैसे ही असम जैसी जगह बरसात की अधिकता से रास्तों की हालत बुरी हो जाती है.
हम तीनो सूमो मे आगे की सीट पर बैठे थे. दोनो के बीच मे मैं फँसी हुई थी. रास्ता बहुत उबर खाबड़ था. हिचकोले लग रहे थे. हम एक दूसरे से भिड़ रहे थे. मैं बीच मे बैठी थी इसलिए कभी अरुण के उपर गिरती तो कभी मुकुल के ऊपर. मौका देख कर अरुण बीच बीच मे मेरे एक स्तन को कोहनी से दाब देता. कभी जांघों पर हाथ रख देता था. मुझे तब लगा कि मैने सामने बैठ कर ग़लती की थी. एक बार तो मेरी दोनो जांघों के बीच भींच अपना हाथ रख कर मसल दिया. मैने शर्म से उनके हाथ को वहाँ से हटाने के अलावा कोई हरकत नही की. मुकुल हम दोनो के बीच इस तरह के खेल को गोर से देख रहा था. मैने महसूस किया कि वो भी मुझ से सॅट गया है और दोनो ने मुझे सॅंडविच की तरह अपने बीच जाकड़ रखा है.
हम शाम तक वहाँ पहुँच गये. मरीज को चेक अप करने मे शाम के सिक्स ओ'क्लॉक हो गये. वहाँ मौजूद लकड़ी और खपच्चियों से उसके ट्रॅक्षन का इंतज़ाम किया था. कुछ सेडेटिव्स और पेन किलर्स देकर उनको बताया कि उसे बिल्कुल भी हिलने ना दें. जख्म गहरा नही है. बस लिगमेट मे कुछ टूटफूट थी जो कुछ दिन के रेस्ट से ठीक हो जाएगा.
यहाँ शाम कुछ जल्दी हो जाती है. नवेंबर का महीना था मौसम बहुत रोमॅंटिक था. मगर धीरे धीरे बदल घिरने लगे थे मैं जल्दी अपना काम निपटा कर रात तक घर लौट जाना चाहती थी. "इतनी जल्दी क्या है? आज रात यहीं रुक जाओ मेरे झोपडे मे." अरुण ने कहा,"घबराओ मत राज की याद नही आने दूँगा." मगर मेरे गुस्से मे भर कर देखने पर वो चुप हो गया.
"जीजू अपने गंदे विचारों को समहालो. रचना ने तुम्हे इस तरह बातें करते सुना तो सिर पर एक भी बाल नही छोड़ेगी. चलो मुझे घर छोड़ आओ."मैने कहा
"चल रे मुकुल, मेडम को घर छोड़ आएँ. मेडम इस जंगल मे रहने को तैयार नहीं हैं."
हम वापस सूमो मे वैसे ही बैठ गये जिस तरह पहले बैठे थे. मैं दोनो के बीच फँसी हुई थी. मैं पीछे बैठने लगी थी कि अरुण ने रोक दिया.
"कहाँ पीछे बैठ रही हो. सामने आ जाओ. बातें करते हुए रास्ता गुजर जाएगा. और कोई हसीन साथी हो तो सफ़र का पता ही नही चलता है"
"लेकिन तुम अपनी हरकतों पर काबू रखोगे वरना मैं रचना से बोल दूँगी." मैने उसे चेताया.
"अरे उस हिट्लर को कुछ उल्टा सीधा मत बताना नहीं तो वो मेरी अच्छी ख़ासी रॅगिंग ले लेगी."
मैं उसकी बात सुन कर हँसने लगी. और सूमो मे चढ़ कर उनके बगल मे बैठ गयी. वो जान बूझ कर मेरी तरफ खिसक कर बैठा था जिससे मुझे बैठने के लिए जगह कम मिले और मजबूरन उनसे सॅट कर बैठना पड़े. उसने अपना हाथ उठा कर मेरे कंधे पर रख दिया. मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों से फँस गयी. हमारी रिटर्न जर्नी शुरू हो गयी.
अचानक मूसलाधार बेरिश शुरू हो गयी. जंगल के अंधेरे रस्तो मे ऐसी बरसात मे गाड़ी चलाना भी एक मुश्किल काम था. चारों ओर सुनसान था सिर्फ़ हवा की साआ साअ और जानवरों की आवाज़ों के अलावा
कही कोई आवाज़ नही थी.
अचानक गाड़ी जंगल के बीच मे झटके खाकर रुक गयी. अरुण टॉर्च लेकर नीचे उतरा. उसने बुनट उठा कर कुछ देर गाड़ी चेक किया मगर कोई खराबी पकड़ मे नहीं आई. कुछ देर बाद वापस आ गया.वो पूरी तरह भीग चुका था. उसने अपने गीले शर्ट को उतार कर पीछे फेंक दिया और हतासा मे हाथ हिलाए.
"कुछ नहीं हो सकता." उसने कहा"चलो नीचे उतर कर धक्का लगाओ. हो सकता है कि गाड़ी चल जाए."
"मगर….बरसात… "मैं बाहर देख कर कुछ हिचकिचाई.
"नहीं तो जब तक बरसात ना रुके तब तक इंतेज़ार करो"उसने कहा"अब इस बरसात का भी क्या भरोसा. हो सकता है सारी रात बरसता रहे. इसीलिए ही तो तुम्हें रात को वहाँ रुकने को कहा था."
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Re: राधा का राज
मैं नीचे उतर गयी. बरसात की परवाह ना कर मैं और मुकुल दोनो काफ़ी देर तक धक्के मारते रहे मगर गाड़ी नहीं चली. हम थक कर वापस आ गये. रात के आठ बज रहे थे. मैं पूरी तरह गीली हो गयी थी. मैं वापस आकर पीछे की सीट पर बैठ गयी. अरुण ने अंदर की लाइट ऑन की. फिर पीछे की सीट के नीचे से एक एमर्जेन्सी लाइट निकाल कर जलाया. गाड़ी के अंदर काफ़ी रोशनी हो गयी.
"अब?..."मैने रुआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा.
अरुण बॅक मिरर से मेरे बदन का अवलोकन कर रहा था. चुचियों से सारी सरक गयी थी. सफेद ब्लाउस और ब्रा बरसात मे भीग कर पारदर्शी हो गये थे. ब्लाउस के उपर से मेरे निपल्स दो काले धब्बों के रूप मे नज़र आ रहे थे. उपर से सारी का आँचल हट जाने से निपल्स सॉफ सॉफ नज़र आरहे थे. मैने उसकी नज़रों का पीछा किया और अपनी अर्धनग्न छाती को घूरता पकड़ जल्दी से अपनी चुचियों को सारी से छिपा लिया. उसने भी लाइट बंद कर दी. अंदर का महॉल कुछ गर्म होने लगा था. अरुण बार बार अपनी सीट पर कसमसा रहा था. उसकी हालत देख कर पता चल रहा था कि इस वीरान जगह और इतने सेक्सी मौसम मे उसकी नीयत डोलने लगी थी.
"अब यहीं रुकना पड़ेगा रात भर. या अगर कोई और वाहन इस रास्ते से जाता हुआ मिल जाए वैसे उम्मीद कम है. क्योंकि इस रास्ते पर दिन मे ही कभी इक्का दुक्का गाड़ी गुजरती है."
मैं चुपचाप बैठी रही. रात अंधेरे मे दो गैर मर्दों का साथ…… दिल को डूबने के लिए काफ़ी था.
कुछ देर बाद बरसात बंद हो गयी मगर ठंडी हवा चलने लगी. बाहर कभी कभी जानवरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी. बरसात रुकने के बाद अरुण और मुकुल जीप की हेडलाइट्स ओन करके गाड़ी से निकल गये. उन्हों ने अपने अपने वस्त्र उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए. दोनो सिर्फ़ अंडरवेर मे थे. हेड लाइट्स की रोशनी मे दोनो की मोटे मोटे लंड गीले अंडरवेर के अंदर से ही सॉफ नज़र आ रहे थे. अरुण का लंड तो खड़ा हो गया था. उसका मुँह आसमान की ओर थॉ ऑर उसका अंडरवेर फाड़ कर बाहर निकलने के लिए च्चटपटा रहा था. मुझे उन दोनो के विशाल अस्त्र देख कर झुरजुरी सी लगने लगी.
मैं ठंड से काँप रही थी. शरम की वजह से गीले कपड़े भी उतार नहीं पा रही थी.अरुण मेरे पास आया "देखो राधा घुप अंधेरा है. तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो." अरुण ने कहा."वरना ठंड लग जाएगी. हम बाहर बैठे रहेंगे तुम्हे घबराने की कोई ज़रूरत नही है."
मैं कुछ देर तो असमंजस मे चुप रही फिर दिल को सख़्त करके मैने उसकी बात को मानना ही उचित समझा.
"कुछ है पहन ने को?" मैने पूछा, "कुछ तो पहनने को दो..". मैं उससे कहते हुए शरम से दोहरी हो गयी.
"नहीं!" अरुण ने कहा "हमारे पहने कपड़े भी तो भीग चुके हैं. पहले से थोड़े ही मालूम था कि इस तरह हमे रात जंगल मे गुजारनी पड़ेगी. और उपर से कपड़े भी गीले हो जाएँगे. वैसे यहाँ काफ़ी रीच्छ और भालू मिलते हैं. रीच्छ बहुत सेक्सी जानवर होते हैं. सनडर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं और जम कर उनके साथ संभोग करते है."
"मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है. यहाँ खड़े खड़े मुझे सताना छोड़ कर कुछ इंतज़ाम तो करो."मैने पूछा, "कुछ तो देखो नही तो मैं ठंड से मर जाउन्गि" मेरे दाँत बज रहे थे.
"पिक्निक पे गये थे क्या. जो कपड़े बिस्तर सब लेकर चलते." अरुण मज़ाक कर रहा था और बार बार गाड़ी के अंदर जल रही हल्की रोशनी मे मेरे मादक बदन को निहार रहा था. गीले वस्त्रों मे अपने कामुक बदन की नुमाइश करने से बचने की मैं भरसक कोशिश कर रही थी. लेकिन एक अंग च्चिपाती तो दूसरा अंग बेपर्दा हो जाता.
"सर, एक पुरानी फटी हुई चदडार है पीछे. अगर उस से काम चल जाए.." मुकुल ने कहा."दिखा डॉक्टरणी को." अरुण ने कहा. मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी. चादर से धूल की महक आ र्है थी लेकिन मुझे इस वक़्त तो वो डूबते को तिनके का सहारा लग रहा था.
"अब?..."मैने रुआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा.
अरुण बॅक मिरर से मेरे बदन का अवलोकन कर रहा था. चुचियों से सारी सरक गयी थी. सफेद ब्लाउस और ब्रा बरसात मे भीग कर पारदर्शी हो गये थे. ब्लाउस के उपर से मेरे निपल्स दो काले धब्बों के रूप मे नज़र आ रहे थे. उपर से सारी का आँचल हट जाने से निपल्स सॉफ सॉफ नज़र आरहे थे. मैने उसकी नज़रों का पीछा किया और अपनी अर्धनग्न छाती को घूरता पकड़ जल्दी से अपनी चुचियों को सारी से छिपा लिया. उसने भी लाइट बंद कर दी. अंदर का महॉल कुछ गर्म होने लगा था. अरुण बार बार अपनी सीट पर कसमसा रहा था. उसकी हालत देख कर पता चल रहा था कि इस वीरान जगह और इतने सेक्सी मौसम मे उसकी नीयत डोलने लगी थी.
"अब यहीं रुकना पड़ेगा रात भर. या अगर कोई और वाहन इस रास्ते से जाता हुआ मिल जाए वैसे उम्मीद कम है. क्योंकि इस रास्ते पर दिन मे ही कभी इक्का दुक्का गाड़ी गुजरती है."
मैं चुपचाप बैठी रही. रात अंधेरे मे दो गैर मर्दों का साथ…… दिल को डूबने के लिए काफ़ी था.
कुछ देर बाद बरसात बंद हो गयी मगर ठंडी हवा चलने लगी. बाहर कभी कभी जानवरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी. बरसात रुकने के बाद अरुण और मुकुल जीप की हेडलाइट्स ओन करके गाड़ी से निकल गये. उन्हों ने अपने अपने वस्त्र उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए. दोनो सिर्फ़ अंडरवेर मे थे. हेड लाइट्स की रोशनी मे दोनो की मोटे मोटे लंड गीले अंडरवेर के अंदर से ही सॉफ नज़र आ रहे थे. अरुण का लंड तो खड़ा हो गया था. उसका मुँह आसमान की ओर थॉ ऑर उसका अंडरवेर फाड़ कर बाहर निकलने के लिए च्चटपटा रहा था. मुझे उन दोनो के विशाल अस्त्र देख कर झुरजुरी सी लगने लगी.
मैं ठंड से काँप रही थी. शरम की वजह से गीले कपड़े भी उतार नहीं पा रही थी.अरुण मेरे पास आया "देखो राधा घुप अंधेरा है. तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो." अरुण ने कहा."वरना ठंड लग जाएगी. हम बाहर बैठे रहेंगे तुम्हे घबराने की कोई ज़रूरत नही है."
मैं कुछ देर तो असमंजस मे चुप रही फिर दिल को सख़्त करके मैने उसकी बात को मानना ही उचित समझा.
"कुछ है पहन ने को?" मैने पूछा, "कुछ तो पहनने को दो..". मैं उससे कहते हुए शरम से दोहरी हो गयी.
"नहीं!" अरुण ने कहा "हमारे पहने कपड़े भी तो भीग चुके हैं. पहले से थोड़े ही मालूम था कि इस तरह हमे रात जंगल मे गुजारनी पड़ेगी. और उपर से कपड़े भी गीले हो जाएँगे. वैसे यहाँ काफ़ी रीच्छ और भालू मिलते हैं. रीच्छ बहुत सेक्सी जानवर होते हैं. सनडर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं और जम कर उनके साथ संभोग करते है."
"मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है. यहाँ खड़े खड़े मुझे सताना छोड़ कर कुछ इंतज़ाम तो करो."मैने पूछा, "कुछ तो देखो नही तो मैं ठंड से मर जाउन्गि" मेरे दाँत बज रहे थे.
"पिक्निक पे गये थे क्या. जो कपड़े बिस्तर सब लेकर चलते." अरुण मज़ाक कर रहा था और बार बार गाड़ी के अंदर जल रही हल्की रोशनी मे मेरे मादक बदन को निहार रहा था. गीले वस्त्रों मे अपने कामुक बदन की नुमाइश करने से बचने की मैं भरसक कोशिश कर रही थी. लेकिन एक अंग च्चिपाती तो दूसरा अंग बेपर्दा हो जाता.
"सर, एक पुरानी फटी हुई चदडार है पीछे. अगर उस से काम चल जाए.." मुकुल ने कहा."दिखा डॉक्टरणी को." अरुण ने कहा. मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी. चादर से धूल की महक आ र्है थी लेकिन मुझे इस वक़्त तो वो डूबते को तिनके का सहारा लग रहा था.