Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
दीदी की ब्रेसीयर और पैंटी मुझे घर में कही नज़र आई तो उन्हे देख'कर में काफ़ी उत्तेजीत हो जाता था. ये वही कपड़े है जिस में मेरी बहन की गदराई छाती और प्यारी चूत छुपी होती है इस ख़याल से में दीवाना हो जाता था. कभी कभी मुझे लगता था के में ब्रेसीयर या पैंटी होता तो चौबीस घंटे मेरी बहेन की छाती या चूत से चिपक के रह सकता था. जब जब मुझे मौका मिलता था तब तब में ऊर्मि दीदी की ब्रेसीयर और पैंटी चुपके से लेकर उस'के साथ मूठ मारता था. में उस'की पैंटी मेरे लंड'पर घिसता था और उस'की ब्रेसीयर को अप'ने मुँह'पर रख'कर उस'के कप चुसता था. जब में उस'की पह'नी हुई पैंटी को मूँ'ह में भर'कर चुसता था तब में काम वासना से पागल हो जाता था. उस पैंटी पर जहाँ उस'की चूत लगती थी वहाँ पर उस'की चूत का रस लगा रहता था और उस'का स्वाद कुच्छ अलग ही था. मेरे कड़े लंड'पर उस'की पैंटी घिसते घिसते में कल्पना करता था के में अप'नी बहन को चोद रहा हूँ और फिर उस'की पैंटी'पर में अप'ने वीर्य का पा'नी छोड'कर उसे गीला करता था. ऊर्मि दीदी के नाज़ुक अंगो को छू लेने से में वासना से पागल हो जाता था और उसे छूने का कोई भी मौका में छोडता नही था. हमारा घर छोटा था इस'लिए हम सब एक साथ हाल में सोते थे और में ऊर्मि दीदी के बाजू में सोता था. आधी रात के बाद जब सब लोग गहरी नींद में होते थे तब में ऊर्मि दीदी के नज़दीक सरकता था और हर तरह की होशीयारी बरतते में उस'से धीरे से लिपट जाता था और उस'के बदन की गरमी को महसूस करता था. उस'के बड़े बड़े छाती के उभारो को हलके से छू लेता था. उस'के चुत्तऱ को जी भर के हाथ लगाता था और उनके भारीपन का अंदाज़ा लेता था. उस'की जाँघो को में छूता था तो कभी कभी उस'की चूत को कपड़े के उपर से छूता था. मेरे मन में मेरी बहेन के बारे में जो काम लालसा थी उस बारे में मेरे माता, पिता को कभी कुच्छ मालूम नही हुआ. उन्हे क्या? खुद ऊर्मि दीदी को भी मेरे असली ख़यालात का कभी पता ना चला के में उस'के बारे में क्या सोचता हूँ. मेरे असली ख़यालात के बारे में किसी को पता ना चले इस'की में हमेशा खबरदारी लेता था. मेरे मन में ऊर्मि दीदी के बारे में काम वासना थी और में हमेशा उसको चोद'ने के सप'ने देखता था लेकिन मुझे मालूम था के हक़ीकत में ये नासमभव है. मेरी बहन को चोदना या उस'के साथ कोई नाजायज़ काम संबंध बनाना ये महज एक सपना ही है और वो हक़ीकत में कभी पूरा हो नही सकता ये मुझे अच्छी तरह से मालूम था. इस'लिए उसे पता चले बिना जितना हो सके उतना में उस'के नज़ूक अंगो को छूकर या चुपके से देख'कर आनंद लेता था और उसे चोद'ने के सिर्फ़ सप'ने देखता था. जब ऊर्मि दीदी 26 साल की हो गयी तब उस'की शादी के लिए लडके देख'ना मेरे माता, पिता ने चालू किया. हमारे रिश्तेदारो में से एक 34 साल के लडके का रिश्ता उस'के लिए आया. लड़का पूना में रहता था. उस'के माता, पिता नही थे. उस'की एक बड़ी बहेन थी जिस'की शादी हुई थी और उस'का ससुराल पूना में ही था. अलग प्लोत पर लडके का खुद का मकान था. उस'का खुद का राशन का दुकान था जिसे वो मेहनत कर के चला रहा था. ऊर्मि दीदी ने बीना किसी ऐतराज से यह रिश्ता मंजूर कर लिया. लेकिन मुझे इस लडके का रिश्ता पसंद नही था. ऊर्मि दीदी के लिए ये लडका ठीक नही है ऐसा मुझे लगता था और उस'की दो वजह थी. एक वजह ये थी के लडक 34 साल का था यानी ऊर्मि दीदी से काफ़ी बड़ा था. शादी नही हुई इस'लिए उसे लड़का कहना चाहिए नही तो वो अच्छा ख़ासा अधेड उम्र जैसा आदमी था. इस'लिए वो मेरी जवान बहेन को कितना सुखी रख सकता है इस बारे में मुझे आशंका थी. और उनकी उम्र के ज़्यादा फरक की वजह से उनके ख़यालात मिलेंगे के नही इस बारे में भी मुझे आशंका थी. सिर्फ़ उस'का खुद का मकान और दुकान है इस'लिए शायद ऊर्मि दीदी ने उस'के लिए हां कर दी थी. दूसरी वजह ये थी के उस'के साथ शादी हो गयी तो मेरी बहेन मुझसे दूर जाने वाली थी. उस'ने अगर मुंबई का लडक पसंद किया होता तो शादी के बाद वो मुंबई में ही रहती और मुझे उस'से हमेशा मिलना आसान होता. लेकिन मेरी बहेन की शादी के बारे में में कुच्छ कर नही सकता था, ना तो मेरे हाथ में कुच्छ भी था. देखते ही देखते उस'की शादी उस लडके से हो गयी और वो अप'ने ससुराल, पूना में चली गयी. उस'की शादी से में खुश नही था लेकिन मुझे मालूम था के एक ना एक दिन ये होने ही वाला था. उस'की शादी होकर वो अप'ने ससुराल जा'ने ही वाली थी, चाहे उस'का ससुराल पूना में हो या मुंबई में. यानी मेरी बहेन मुझसे बिछड'ने वाली तो थी ही और मुझे उस'के बिना जीना तो था ही.
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ऊर्मि दीदी के जा'ने के बाद में उस'के जवान बदन को याद कर के और उस'की कुच्छ पुरानी ब्रेसीयर और पैंटी हमारे अलमारी में पडी थी, उस'का इस्तेमाल कर के में मूठ मारता था और मेरी काम वासना शांत करता था. दीदी हमेशा त्योहार के लिए या किसी ख़ास दिन की वजह से मायके यानी हमारे घर आती थी और चार आठ दिन रहती थी. जब वो आती थी तब में ज़्यादा तर उस'के आजू बाजू में रहता था. में उस'के साथ रहता था, उस'के साथ बातें करता रहता था. गये दिनो में क्या क्या, कैसे कैसे हुआ ये में उसे बताता रहता और उस'के साथ हँसी मज़ाक करता था. इस तरह से में उस'के साथ रहके उसको काम वासना से निहाराता रहता था और उस'के गदराए बदन का स्पर्श सुख लेता रह'ता था.
शादी के बाद ऊर्मि दीदी कुच्छ ज़्यादा ही सुंदर, सुडौल और मादक दिख'ने लगी थी. उस'की ब्रेसीयर, पैंटी चुपके से लेकर में अब भी मूठ मारता था. उस'की ब्रेसीयर और पैंटी चेक कर'ने के बाद मुझे पता चला के उनका नंबर बदल गया था. इसका मतलब ये था के शादी के बाद वो बदन से और भी भर गयी थी. अगर बहुत दिनो से ऊर्मि दीदी मायके नही आती तो में उस'से मिल'ने पूना जाता था. में अगर उस'के घर जाता तो दो चार दिन या तो एक हफ़्ता वहाँ रहता था. उस'के पती दिनभर दुकान'पर रहते थे. खाना खाने के लिए वो दोपहर को एक घंटे के लिए घर आते थे और फिर बाद में सीधा रात को दस बजे घर आते थे. दिनभर ऊर्मि दीदी घर में अकेले ही रहती थी.
जब में उस'के घर जाता था तो सदा उस'के आसपास रहता था. भले ही में उस'के साथ बातें करता रहता था या उस'के किसी काम में मदद करता रहता था लेकिन असल में मैं उस'के गदराए अंगो के उठान और गहराइयों का, उस'की साड़ी और ब्लाउस के उपर से जायज़ा लेता था. और इधर से उधर आते जाते उस'के बदन का अनजाने में हो रहे स्पर्श का मज़ा लेता था. उस'के कभी ध्यान में ही नही आई मेरी काम वासना भरी नज़र या वासना भरे स्पर्श! उस'ने सप'ने में भी कभी कल्पना की नही होगी के उस'के सगे छोट भाई के मन में उस'के लिए काम लालसा है.
शादी के बाद एक साल में ऊर्मि दीदी गर्भवती हो गयी. सात'वे महीने में डिलीवरी के लिए वो हमारे घर आई और नववे महीने में उसे लड़का हुआ. बाद में दो महीने के बाद वो बच्चे के साथ ससुराल चली गयी. बाद में तीन चार साल ऐसे ही गुजर गये और उस दौरान वो वापस गर्भवती नही रही. वो और उस'का पती शायद अप'ने एक ही लडके से खुश थे इस'लिए उन्होने दूसरे बच्चे के बारे में सोचा नही.
इस दौरान मेने मेरी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई ख़तम की और में एक प्राइवेट कम्प'नी में नौकरी कर'ने लगा. कॉलेज के दिनो में कई लड़कियो से मेरी दोस्ती थी और दो तीन लड़कियो के साथ अलग अलग समय पर मेरे प्रेम सम्बन्ध भी थे. एक दो लड़कियो को तो मेने चोदा भी था और उनके साथ सेक्स का मज़ा भी लूट लिया था. लेकिन फिर भी में अप'नी बहन की याद में काम व्याकूल होता था और मूठ मारता था. ऊर्मि दीदी के बारे में काम भावना और काम लालसा मेरे मन में हमेशा से थी. मेरे मन के एक कोने के अंदर एक आशा हमेशा से रहती थी के एक दिन कुच्छ चमत्कार होगा और मुझे मेरी बहेन को चोद'ने को मिलेगा.
में जैसे जैसे बड़ा और समझदार होते जा रहा था वैसे वैसे ऊर्मि दीदी मेरे से और भी दिल खोल के बातें कर'ने लगी थी और मुझसे उस'का व्यवहार और भी ज़्यादा दोस्ताना सा हो गया था. हम दोस्तो की तरह किसी भी विषय'पर कुच्छ भी बातें कर'ते थे या गपशप लगते थे. आम तौर पे भाई-बहेन लैंगिक भावना या काम'जीवन जैसे विषय'पर बातें नही कर'ते है लेकिन हम दोनो धीरे धीरे उस विषय'पर भी बातें कर'ने लगे. हालाँ'की मेने ऊर्मि दीदी को कभी नही बताया के मेरे मन में उस'के लिए काम वासना है. यह तक के मेरे कॉलेज लाइफ के प्रेमसंबंध या सेक्स लाइफ के बारे में भी मेने उसे कुच्छ नही बताया. उस'की यही कल्पना थी के सेक्स के बारे में मुझे सिर्फ़ कही सुनी बातें और किताबी बातें मालूम है.
सम'य गुजर रहा था और में 22 साल का हो गया था. ऊर्मि दीदी भी 30 साल की हो गयी थी. ऊर्मि दीदी की उम्र बढ़ रही थी लेकिन उस'के गदराए बदन में कुच्छ बदलाव नही आया था. मुझे तो सम'य के साथ वो ज़्यादा ही हसीन और जवान होती नज़र आ रही थी. कभी कभी मुझे उस'के पती से ईर्षा होती थी के वो कितना नसीब वाला है जो उसे ऊर्मि दीदी जैसी हसीन और जवान बीवी मिली है. लेकिन असलीयत तो कुच्छ और ही थी.
शादी के बाद ऊर्मि दीदी कुच्छ ज़्यादा ही सुंदर, सुडौल और मादक दिख'ने लगी थी. उस'की ब्रेसीयर, पैंटी चुपके से लेकर में अब भी मूठ मारता था. उस'की ब्रेसीयर और पैंटी चेक कर'ने के बाद मुझे पता चला के उनका नंबर बदल गया था. इसका मतलब ये था के शादी के बाद वो बदन से और भी भर गयी थी. अगर बहुत दिनो से ऊर्मि दीदी मायके नही आती तो में उस'से मिल'ने पूना जाता था. में अगर उस'के घर जाता तो दो चार दिन या तो एक हफ़्ता वहाँ रहता था. उस'के पती दिनभर दुकान'पर रहते थे. खाना खाने के लिए वो दोपहर को एक घंटे के लिए घर आते थे और फिर बाद में सीधा रात को दस बजे घर आते थे. दिनभर ऊर्मि दीदी घर में अकेले ही रहती थी.
जब में उस'के घर जाता था तो सदा उस'के आसपास रहता था. भले ही में उस'के साथ बातें करता रहता था या उस'के किसी काम में मदद करता रहता था लेकिन असल में मैं उस'के गदराए अंगो के उठान और गहराइयों का, उस'की साड़ी और ब्लाउस के उपर से जायज़ा लेता था. और इधर से उधर आते जाते उस'के बदन का अनजाने में हो रहे स्पर्श का मज़ा लेता था. उस'के कभी ध्यान में ही नही आई मेरी काम वासना भरी नज़र या वासना भरे स्पर्श! उस'ने सप'ने में भी कभी कल्पना की नही होगी के उस'के सगे छोट भाई के मन में उस'के लिए काम लालसा है.
शादी के बाद एक साल में ऊर्मि दीदी गर्भवती हो गयी. सात'वे महीने में डिलीवरी के लिए वो हमारे घर आई और नववे महीने में उसे लड़का हुआ. बाद में दो महीने के बाद वो बच्चे के साथ ससुराल चली गयी. बाद में तीन चार साल ऐसे ही गुजर गये और उस दौरान वो वापस गर्भवती नही रही. वो और उस'का पती शायद अप'ने एक ही लडके से खुश थे इस'लिए उन्होने दूसरे बच्चे के बारे में सोचा नही.
इस दौरान मेने मेरी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई ख़तम की और में एक प्राइवेट कम्प'नी में नौकरी कर'ने लगा. कॉलेज के दिनो में कई लड़कियो से मेरी दोस्ती थी और दो तीन लड़कियो के साथ अलग अलग समय पर मेरे प्रेम सम्बन्ध भी थे. एक दो लड़कियो को तो मेने चोदा भी था और उनके साथ सेक्स का मज़ा भी लूट लिया था. लेकिन फिर भी में अप'नी बहन की याद में काम व्याकूल होता था और मूठ मारता था. ऊर्मि दीदी के बारे में काम भावना और काम लालसा मेरे मन में हमेशा से थी. मेरे मन के एक कोने के अंदर एक आशा हमेशा से रहती थी के एक दिन कुच्छ चमत्कार होगा और मुझे मेरी बहेन को चोद'ने को मिलेगा.
में जैसे जैसे बड़ा और समझदार होते जा रहा था वैसे वैसे ऊर्मि दीदी मेरे से और भी दिल खोल के बातें कर'ने लगी थी और मुझसे उस'का व्यवहार और भी ज़्यादा दोस्ताना सा हो गया था. हम दोस्तो की तरह किसी भी विषय'पर कुच्छ भी बातें कर'ते थे या गपशप लगते थे. आम तौर पे भाई-बहेन लैंगिक भावना या काम'जीवन जैसे विषय'पर बातें नही कर'ते है लेकिन हम दोनो धीरे धीरे उस विषय'पर भी बातें कर'ने लगे. हालाँ'की मेने ऊर्मि दीदी को कभी नही बताया के मेरे मन में उस'के लिए काम वासना है. यह तक के मेरे कॉलेज लाइफ के प्रेमसंबंध या सेक्स लाइफ के बारे में भी मेने उसे कुच्छ नही बताया. उस'की यही कल्पना थी के सेक्स के बारे में मुझे सिर्फ़ कही सुनी बातें और किताबी बातें मालूम है.
सम'य गुजर रहा था और में 22 साल का हो गया था. ऊर्मि दीदी भी 30 साल की हो गयी थी. ऊर्मि दीदी की उम्र बढ़ रही थी लेकिन उस'के गदराए बदन में कुच्छ बदलाव नही आया था. मुझे तो सम'य के साथ वो ज़्यादा ही हसीन और जवान होती नज़र आ रही थी. कभी कभी मुझे उस'के पती से ईर्षा होती थी के वो कितना नसीब वाला है जो उसे ऊर्मि दीदी जैसी हसीन और जवान बीवी मिली है. लेकिन असलीयत तो कुच्छ और ही थी.
Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
मुझे ऊर्मि दीदी के कह'ने से मालूम पड़ा के वो अप'नी शादीशुदा जिंदगी से खुस नही है. उस'के वयस्क पती के साथ उस'का काम'जीवन भी आनंददायक नही है. शादी के बाद शुरू शुरू में उस'के पती ने उसे बहुत प्यार दिया. उसी दौरान वो गर्भवती रही और उन्हे लड़का हुआ. लेकिन बाद में वो अप'ने बच्चे में व्यस्त होती गयी और उस'के पती अप'ने धांडे में उलझते गये. इस वजह से उनके काम'जीवन में एक दरार सी पड गयी थी जिसे मिटाने की कोशीष उस'के पती नही कर रहे थे. एक दूसरे से समझौता, यही उनका जीवन बन रहा था और धीरे धीरे ऊर्मि दीदी को ऐसे जीवन की आदत होती जा रही थी. दिख'ने में तो उनका वैवाहिक जीवन आदर्श लग रहा था लेकिन अंदर की बात ये थी के ऊर्मि दीदी उस'से खूस नही थी.
भले ही मेरे मन में ऊर्मि दीदी के बारे में काम भावना थी लेकिन आखीर में उस'का सगा भाई था इस'लिए मुझे उस'की हालत से दुख होता था और उस'की मानसिकता पर मुझे तरस आता था. इस'लिए में उसे हमेशा तसल्ली देता था और उस'की आशाएँ बढ़ाते रहता था. उसे अलग अलग जोक्स, चुटकुले और मजेदार बातें बताते रहता था. में हमेशा उसे हंसाने की कोशीष करता रहता था और उस'का मूड हमेशा आनंददायक और प्रसन्न रहे इस कोशीष में रहता था.
जब वो हमारे घर आती थी या फिर में उस'के घर जाता था, तब में उसे बाहर घुमाने ले जाया करता था. कभी शापींग के लिए तो कभी सिनेमा देखाने के लिए तो फिर कभी हम ऐसे ही घूम'ने जाया कर'ते थे. कई बार में उसे अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाने लेके जाया करता था. ऊर्मि दीदी के पसंदीदा और उसे खूस कर'ने वाली हर वो बात में करता था, जो असल में उस'के पती को कर'नी चाहिए थी.
एक दिन में ऑफीस से घर आया तो मा ने बताया के ऊर्मि दीदी का फ़ोन आया था और उसे दीवाली के लिए हमारे घर आना है. हमेशा की तरह उस'के पती को अप'नी दुकान से फुरसत नही थी उसे हमारे घर ला के छोड'ने की इस'लिए ऊर्मि दीदी पुछ रही थी कि मुझे सम'य है क्या, जा के उसे लाने के लिए. ऊर्मि दीदी को लाने के लिए उस'के घर जाने की कल्पना से में उत्तेजीत हुआ. चार महीने पहीले में उस'के घर गया था तब क्या क्या हुआ ये मुझे याद आया.
दिनभर ऊर्मि दीदी के पती अप'नी दुकान'पर रहते थे और दोपहर के सम'य उस'का लड़का नर्सरी स्कूल में जाया करता था. इस'लिए ज़्यादा तर सम'य दीदी और में घर में अकेले रहते थे और में उसे बिना जीझक निहाराते रहता था. काम कर'ते सम'य दीदी अप'नी साड़ी और छाती के पल्लू के बारे में थोड़ी बेफिकर रहती थी जिस'से मुझे उस'के छाती के उभारो की गहराईयो अच्छी तरह से देख'ने को मिलती थी. फर्श'पर पोछा मारते सम'य या तो कपड़े धोते सम'य वो अप'नी साड़ी उपर कर के बैठती थी तब मुझे उस'की सुडौल टाँगे और जाँघ देख'ने को मिलती थी.
क्रमशः……………………………
भले ही मेरे मन में ऊर्मि दीदी के बारे में काम भावना थी लेकिन आखीर में उस'का सगा भाई था इस'लिए मुझे उस'की हालत से दुख होता था और उस'की मानसिकता पर मुझे तरस आता था. इस'लिए में उसे हमेशा तसल्ली देता था और उस'की आशाएँ बढ़ाते रहता था. उसे अलग अलग जोक्स, चुटकुले और मजेदार बातें बताते रहता था. में हमेशा उसे हंसाने की कोशीष करता रहता था और उस'का मूड हमेशा आनंददायक और प्रसन्न रहे इस कोशीष में रहता था.
जब वो हमारे घर आती थी या फिर में उस'के घर जाता था, तब में उसे बाहर घुमाने ले जाया करता था. कभी शापींग के लिए तो कभी सिनेमा देखाने के लिए तो फिर कभी हम ऐसे ही घूम'ने जाया कर'ते थे. कई बार में उसे अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाने लेके जाया करता था. ऊर्मि दीदी के पसंदीदा और उसे खूस कर'ने वाली हर वो बात में करता था, जो असल में उस'के पती को कर'नी चाहिए थी.
एक दिन में ऑफीस से घर आया तो मा ने बताया के ऊर्मि दीदी का फ़ोन आया था और उसे दीवाली के लिए हमारे घर आना है. हमेशा की तरह उस'के पती को अप'नी दुकान से फुरसत नही थी उसे हमारे घर ला के छोड'ने की इस'लिए ऊर्मि दीदी पुछ रही थी कि मुझे सम'य है क्या, जा के उसे लाने के लिए. ऊर्मि दीदी को लाने के लिए उस'के घर जाने की कल्पना से में उत्तेजीत हुआ. चार महीने पहीले में उस'के घर गया था तब क्या क्या हुआ ये मुझे याद आया.
दिनभर ऊर्मि दीदी के पती अप'नी दुकान'पर रहते थे और दोपहर के सम'य उस'का लड़का नर्सरी स्कूल में जाया करता था. इस'लिए ज़्यादा तर सम'य दीदी और में घर में अकेले रहते थे और में उसे बिना जीझक निहाराते रहता था. काम कर'ते सम'य दीदी अप'नी साड़ी और छाती के पल्लू के बारे में थोड़ी बेफिकर रहती थी जिस'से मुझे उस'के छाती के उभारो की गहराईयो अच्छी तरह से देख'ने को मिलती थी. फर्श'पर पोछा मारते सम'य या तो कपड़े धोते सम'य वो अप'नी साड़ी उपर कर के बैठती थी तब मुझे उस'की सुडौल टाँगे और जाँघ देख'ने को मिलती थी.
क्रमशः……………………………