नौकरी हो तो ऐसी--5
गतान्क से आगे......
जब मेरी नींद खुली तो शाम हो चुकी थी. ट्रेन एक स्टेशन पे रुकी थी, और सेठानी, बहू सेठ जी बाहर प्लॅटफॉर्म पे खड़े थे, बैठ बैठ के थक जाने से वो लोग बाहर घूम रहे थे, लग रहा था कि ये कोई बड़ा स्टेशन था, क्यू कि बहुत भाग दौड़ हो रही थी, बहुत सारे लोग चढ़ रहे थे, और बहुत सारे उतर रहे थे, पाँच मिनिट के बाद वो तीनो ट्रेन मे चढ़े और कॅबिन मे आके बैठ गये, सेठानी मेरे बाजू मे बैठ गयी.
अभी सेठ जी मुझे मेरी पढ़ाई के बारे मे पूछने लगे और जानने लगे कि इसको कितना पता है, मतलब मेरी नालेज को जानने की कोशिश कर रहे थे, मैने उनके हर प्रश्न का आसान और सीधे शब्दो मे जवाब देते हुए सेठ जी को खुश कर दिया. सेठ जी मुझे बता रहे थे कि उनके गाव मे उनकी बहुत ही इज़्ज़त है, लोग उनके सामने मूह उपर करके चलने की हिम्मत भी नही करते, मतलब सेठ जी से डरते है. ये सेठ जी मुझे गाव की और उसकी राग रोब धन की कहानिया बता बता के पका रहा था. और उधर सेठानी और बहू उसकी तरफ गुस्से से देख रहे थे, लगता था कि ये कहानिया उनके लिए रोज की हो.
थोड़ी देर बाद मे सेठानी ने विषय बदलते हुए कहा "अरे छोड़ो, ये तुम्हारी बातें, इससे ये तो पूछो ये शादी कब करेगा…..अपनी गाव मे तो बहुत अच्छी अच्छी लड़किया है इसके लिए "
तो सेठ बोला "हां हां बोलो भाई बोलो शादी कब करोगे…"
मैं सेठानी की बहू की तरफ देखने लगा वैसे ही वो हलकीसी मुस्कुराइ और मुझे आन्ख मारी.
मैं बोला "अभी तो कोई इरादा नही है …आगे देखते है अगर कोई अच्छी लड़की मिल गयी तो कर लूँगा एक दो साल मे…."
ऐसी सब बातें चल रही थी, मुझे बहुत ही पका रहा था, ऐसे ही रात के आठ बज गये थे अब मैं कब दस बज़ेंगे इस चिंता से मरे जा रहा था, थोड़ी देर मे खाना आ गया और हम लोग खाना खाते हुए, बातें कर रहे थे, और इधर सेठानी और बहू मेरी टाँगो से अपनी टांगे घिस रही थी. मैने जल्दीही खाना खा लिया, और फिर सेठानी और बहू ने फिरसे सेठ जी को नींबू पानी जिसमे नींद की गोलिया मिश्रित थी, पिला दिया. सेठ जी थोड़ी ही देर मे ढेर हो गये और बर्त पे सो के खर्राटे मारने लगे.
अभी मौसम बनने लगा था. सेठ जी सोते ही बहू ने सेठानी की सारी खोलना शुरू किया , अब सेठानी निक्कर और ब्लाउस मे मेरे सामने खड़ी थी, थोड़ी ही देर मे सेठानी ने आगे होते हुए बहू की सारी भी खोल दी, और उसे भी अपनी तरह अध- नंगी बना दिया….वाह क्या नज़ारा था, दो आप्सरा मेरे सामने ..उनके वो पुष्ट शरीर, बड़ी बड़ी गान्डे और भरे हुए स्थान देख के मेरे रामजी टाइट होने लगे और उनके सूपदे से पानी आना शुरू हो गया.
नौकरी हो तो ऐसी
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Re: नौकरी हो तो ऐसी
अभी राधेको आने मे देर थी, दस बजने को कुछ मिनिट बाकी थे, मैं राधे की राह देख रहा था, क्यू मुझे इन दोनो रंडियो को उससे चुदवाना था, और उसके साथ साथ मिलकर मुझे भी इन दोनो को चोदना था. मैं बहू के पीछे गया और अपना लंड उसकी गांद की पहाड़ियओके बीच घुसा के आगे पीछे करने लगा, वैसे ही उसने गरम और तेज सासे लेना शुरू कर दिया , मैने मेरे हाथ उसकी चुचियो पे रख दिए, और उसके ब्लाउस के अंदर हाथ डालकर उसकी चुचीयोको सहलाने लगा, एक उंगली मैने उसके मूह मे डाल दी और वो उसे अपनी जीभ से चाटने लगी, मैने अब मूह से उंगली निकाल के उसके बाल सहलाना शुरू किया. और थोड़ी ही देर मे फिरसे उसकी चुचिया दबाने लगा.
चुचियोमे दूध भरा होने के कारण और वो ब्लाउस मे टाइट दबी होने के कारण उसमे से थोड़ा थोड़ा दूध निकल रहा था और उसके ब्रा और ब्लाउस को गीला कर रहा था. सेठानी सामने से आई और उसने ब्लाउस के उपर मूह लगा के बहू का एक निपल अपने मूह मे लिया और चूसने लगी, मैं देख पा रहा था कि सेठानी बहू के ब्लाउस पहने होते हुए भी दूध चूसने मे कामयाब हो रही थी, बहू का ब्लाउस अभी चुसाइ के कारण आधे से ज़्यादा गीला हो गया था और उसमे से उसकी चुचिया और निपल बहुत ही मादक और कम्सीन दिख रहे थे.
अब मैने बहू के ब्लाउस का हुक बिना खोले हुए ही एक स्थान को बाहर निकाल दिया, वो स्थान आधा ब्लाउस मे दबे होने के कारण बहुत ही टाइट और भरा महसूस हो रहा था, अब मैने उस चुचि का एक निपल अपनी दो उंगलियो मे दबाया और उसे चिमतिया लेने लगा, वैसे ही बहू के मूह से "आअहह..आअहह..हह" आवाज़ निकलने लगी, मैने अभी निपल को एक हाथ से पकड़ा और दूसरे हाथ की उंगलियो से उसपे टीचकिया मारने लगा. टीचकिया मारने से और निपल को दबाने से निकलने वाले दूध से मेरी उंगलिया गीली हो गयी. मैने आगे से सेठानी को बाजू करते हुए बहू के निपल को अपने मूह मे लिया, और उसपे हल्केसे अपनी जीभ फिराने लगा, मेरी हर्कतो से बहू बहुत ही गरम हो रही थी, और उसकी आवाज़ बढ़ रही थी, उसके शरीर पर ए.सी. डिब्बे मे होने के बाद भी पसीना चढ़ रहा था, और सेठानी मन ही मन मे तड़प रही थी और सोच रही थी की मेरी बारी कब आएगी पर उसे क्या पता था मैने उसके लिए आज ख़ास इंतज़ाम किया है.
जैसे ही मैं निपल को अपने मूह मे लेके चूसने लगा वैसे ही बहू के मूह से "आऐईइ..उउउन्हनह" की आवाज़ आने लगी. मैने अभी उसे थोड़ा थोड़ा दांतो से काटना शुरू कर दिया. फिर मैने ज़ोर्से और लंबे टाइम तक निपल को दांतो मे पकड़ा रहा और काटते रहा और इधर बहू की आवाज़ उँची हो रही थी, मैने अब अपनी जीभ बहू के कान मे घुसा दी. और उसे चूसने और काटने लगा. अब मुझे बहू की चूत से खेलने की बहुत ही इच्छा हो रही थी, मुझे बहू की गुलाबी चूत के अंदर कब जीभ डालु ऐसे हो गया था, क्यू कि उसकी चूत के पानी का स्वाद आज भी मेरे मूह मे ताज़ा था.
मैने कमर के तरफ हाथ बढ़ा के बहू की निकर उतार दी. और पैरो मे से निकाल कर बाजू मे रख दी. बहू अपने हाथ से चूत को सहलाने लगी. मैने उसे अब एक बर्त पे बिठाया और उसकी टाँगो को फक दिया, जितना फक सकता था, टाँगो के बीच मे बड़ी जगह बनाने के कारण बहू की चूत एकदम स्पस्ट और बहुत ही नजाकातदार दिख रही थी, चूत के बाजू के बॉल जैसे किसी किले का रक्षण करनेवाले सैनिको के तरह दिख रहे थे, और वो बाल सैनिक बनके बहू के गांद तक पहुच गये थे, अब सेठानी ने बहू की टाँगो के बीच घुस कर बहू की चूत के दोनोहोंठो पर उंगलिया रख के चूत को फैला दिया …वाह क्या लग रही थी बहू की चूत …एकदम मदमस्त लाल गुलाबी कलर मानो उसमे से गिरे जा रहा हो, बहू की चूत का दाना एकदम स्पस्ट दिख रहा था, और बहू की तेज सासो के चलने के कारण चूत का दाना आगे पीछे हो रहा था, मैं अब सेठानी को बाजू करते हुए बहू की टाँगो के बीच बैठ गया, और चूत के ओठो को फैला के चूत के दाने को उंगलियो से दबाने और घिसने लगा, वैसे ही बहू की आआवज़े फिरसे बढ़ गयी. मैने अभी उंगलियोकि घिसने की गति बढ़ाई और ज़ोर्से उंगलिया उसके दाने पे घिसने लगा, अभी बहू के मूह से "उउउउह्ह…उ …माआअ..उउउउउउ" की ज़ोर ज़ोर की आवाज़े निकलने लगी. और वो जल्द ही झाड़ गयी. कहानी अभी बाकी है दोस्तो
क्रमशः............
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Re: नौकरी हो तो ऐसी
नौकरी हो तो ऐसी--6
गतान्क से आगे......
अभी मुझे किसिके पैरो की आवाज़ सुनाई दी. मुझे यकीन था कि राधे ही होगा, मैं कॅबिन के दरवाजे के पास गया और खड़ा रहा, राधे ने दरवाजा खटखटाया, तो मैने दरवाजा खोला और राधे को अंदर ले लिया, अंदर जैसे की बहू और सेठानी आधी नंगी खड़ी थी, उनको देखके राधे थोडसा शर्मा गया, और मेरे पीछे आके खड़ा हो गया.
मैं बोला "राधे …..अरे डरो नही…..तुमने आज हमे खुश किया है ….आज हम तुम्हे खुश करवाते है"
राधे बोला "वो तो ठीक है बाबूजी पर ये तो खानदानी लगती है"
मैं बोला "हा तो खानदानी ही है…चुदवाने मे इनसे खानदानी औरते तुम्हे नही मिलेगी..??"
राधे कुछ समझ नही पा रहा था, इतने मे मैने सेठानी को इशारा कर दिया, सेठानी समाज़ गयी और राधे की तरफ आने लगी, मैने राधे को आगे खड़ा किया, सेठानी ने राधे का एक हाथ पकड़ा और अपने कमर पर घिसने लगी, राधे और डर गया, मैं बोला "अरे डरो नही …आनंद उठाओ"
अब राधे थोड़ा मुस्कुराया और सेठानी से घिसट बढ़ाने लगा, इधर बहू आके मुझसे चिपक गयी और मैं अपना लंड उसकी गंद के पहाड़ो के बीच घिसने लगा.
अब सेठानी ने राधे के पॅंट की ज़िप खोल दी, और दो सेकेंड के अंदर राधे का काला जाड़ा साप जैसा लंड बाहर निकाला, उसको देखके सेठानी बोली "वाह वाह …..इसे कहते है लवदा.." सच मे राधे का लंड, लंड नही बड़ा सा कला सा साप लग रहा था, लगभग 9 इंच तक होगा, मुझे अब एहसास हुआ कि आज की रात बहुत ही मजेदार होनेवाली है, सेठानी ने राधे का लंड मूह मे लेके उसपे थूक लगा के चाटने लगी और उसे पीने लगी, राधे का लंड पलभर मे बहुत ही कठिन और वज्र के सामान बन गया, बड़ा ही आकर्षक दिख रहा था वो.
अब राधे उपर मूह करके नीचे लेट गया और सेठानी को अपने उपर बिठा लिया, और उसने धीरे धीरे करके अपना लंड सेठानी की चूत मे घुसाना चाहा, अब उसने उसपे थूक जमाई और फिरसे घुसाने लगा, सेठानी की चूत मेरे से चुदी होने के कारण लंड दूसरी बार मे अंदर चला गया, मैं और बहू प्रणय कर रहे थे और इन दोनोकी रासलीले भी देख रहे थे, मैने बहू के रसीले आम अपने मूह मे जकड़े हुए थे, और उनमे से रस चूस रहा था, उधर अभी आधे से उपर लंड बड़े हल्केसे राधे ने सेठानी की चूत के अंदर डाल दिया और अब वो ज़ोर के धक्के मारना शुरू कर रहा था.
राधे से नियंत्रण नही हो पा रहा था उसने अभी लंबे और ज़ोर्से धक्के मारना शुरू किया, वैसे ही सेठानी उपर कूदने लगी और चिल्लाने लगी, उसकी चूत फटी जा रही थी, और उसका चूत का खड्डा दिनो दिन बड़ा बड़ा होते जा रहा था, अब सेठानी भी पूरे जोश मे थी, और राधे भी, राधे ने अब पूरी गति पकड़ ली, और कसे हुए घोड़े की तरह सेठानी पे सवार हो गया.
राधे नीचे और सेठानी उपर..वाह क्या नज़ारा था. सेठानी की चूत मे लंड जा रहा था और गांद का हिस्सा लाल लाल हो रहा था. सेठानी की गांद का खड्डा बहुत ही सुंदर और मस्त दिख रहा था, अब मैं राधे के पास गया और सेठानी की गांद के खड्डे मे थूक डाल दिया, और 1 उंगलिसे थूक को अंदर बाहर करने लगा, होल बहुत ही टाइट था, और नीचे राधे के झटको से मेरी उंगली सेठानी की गांद से निकल आ रही थी.
गतान्क से आगे......
अभी मुझे किसिके पैरो की आवाज़ सुनाई दी. मुझे यकीन था कि राधे ही होगा, मैं कॅबिन के दरवाजे के पास गया और खड़ा रहा, राधे ने दरवाजा खटखटाया, तो मैने दरवाजा खोला और राधे को अंदर ले लिया, अंदर जैसे की बहू और सेठानी आधी नंगी खड़ी थी, उनको देखके राधे थोडसा शर्मा गया, और मेरे पीछे आके खड़ा हो गया.
मैं बोला "राधे …..अरे डरो नही…..तुमने आज हमे खुश किया है ….आज हम तुम्हे खुश करवाते है"
राधे बोला "वो तो ठीक है बाबूजी पर ये तो खानदानी लगती है"
मैं बोला "हा तो खानदानी ही है…चुदवाने मे इनसे खानदानी औरते तुम्हे नही मिलेगी..??"
राधे कुछ समझ नही पा रहा था, इतने मे मैने सेठानी को इशारा कर दिया, सेठानी समाज़ गयी और राधे की तरफ आने लगी, मैने राधे को आगे खड़ा किया, सेठानी ने राधे का एक हाथ पकड़ा और अपने कमर पर घिसने लगी, राधे और डर गया, मैं बोला "अरे डरो नही …आनंद उठाओ"
अब राधे थोड़ा मुस्कुराया और सेठानी से घिसट बढ़ाने लगा, इधर बहू आके मुझसे चिपक गयी और मैं अपना लंड उसकी गंद के पहाड़ो के बीच घिसने लगा.
अब सेठानी ने राधे के पॅंट की ज़िप खोल दी, और दो सेकेंड के अंदर राधे का काला जाड़ा साप जैसा लंड बाहर निकाला, उसको देखके सेठानी बोली "वाह वाह …..इसे कहते है लवदा.." सच मे राधे का लंड, लंड नही बड़ा सा कला सा साप लग रहा था, लगभग 9 इंच तक होगा, मुझे अब एहसास हुआ कि आज की रात बहुत ही मजेदार होनेवाली है, सेठानी ने राधे का लंड मूह मे लेके उसपे थूक लगा के चाटने लगी और उसे पीने लगी, राधे का लंड पलभर मे बहुत ही कठिन और वज्र के सामान बन गया, बड़ा ही आकर्षक दिख रहा था वो.
अब राधे उपर मूह करके नीचे लेट गया और सेठानी को अपने उपर बिठा लिया, और उसने धीरे धीरे करके अपना लंड सेठानी की चूत मे घुसाना चाहा, अब उसने उसपे थूक जमाई और फिरसे घुसाने लगा, सेठानी की चूत मेरे से चुदी होने के कारण लंड दूसरी बार मे अंदर चला गया, मैं और बहू प्रणय कर रहे थे और इन दोनोकी रासलीले भी देख रहे थे, मैने बहू के रसीले आम अपने मूह मे जकड़े हुए थे, और उनमे से रस चूस रहा था, उधर अभी आधे से उपर लंड बड़े हल्केसे राधे ने सेठानी की चूत के अंदर डाल दिया और अब वो ज़ोर के धक्के मारना शुरू कर रहा था.
राधे से नियंत्रण नही हो पा रहा था उसने अभी लंबे और ज़ोर्से धक्के मारना शुरू किया, वैसे ही सेठानी उपर कूदने लगी और चिल्लाने लगी, उसकी चूत फटी जा रही थी, और उसका चूत का खड्डा दिनो दिन बड़ा बड़ा होते जा रहा था, अब सेठानी भी पूरे जोश मे थी, और राधे भी, राधे ने अब पूरी गति पकड़ ली, और कसे हुए घोड़े की तरह सेठानी पे सवार हो गया.
राधे नीचे और सेठानी उपर..वाह क्या नज़ारा था. सेठानी की चूत मे लंड जा रहा था और गांद का हिस्सा लाल लाल हो रहा था. सेठानी की गांद का खड्डा बहुत ही सुंदर और मस्त दिख रहा था, अब मैं राधे के पास गया और सेठानी की गांद के खड्डे मे थूक डाल दिया, और 1 उंगलिसे थूक को अंदर बाहर करने लगा, होल बहुत ही टाइट था, और नीचे राधे के झटको से मेरी उंगली सेठानी की गांद से निकल आ रही थी.