तड़फती जवानी-13
मैं दिन भर अस्पताल में रही, रात को वापस गेस्ट-हाउस चली आई।
खाना खाने के बाद जो हल्की-फुल्की काम की बातें ही हमारे बीच हुईं, ऐसा लगने लगा कि जैसे हमारे बीच कभी कुछ हुआ ही नहीं था।
मैं सोने चली गई। मुझे पहले तो लगा था कि वो मुझे फिर से सम्भोग के लिए कहेंगे पर आज मुझे उनके व्यवहार से ऐसा कुछ भी नहीं लगा।
हम दोनों ही सो गए मगर आज उसी बिस्तर पर दोनों साथ थे।
करीब दो बजे मेरी नींद खुली और मैं पेशाब करने को गई तो मैंने देखा कि वो सो चुके हैं सो मैं भी सोने की कोशिश करने लगी और मेरे दिमाग में पिछले रात की तस्वीरें घूमने लगीं।
कुछ देर तो मैंने उसे अपने दिमाग से निकालने की कोशिश की, पर पता नहीं वो फिर मेरे दिमाग में घूमने लगा और मुझे अपने अन्दर फिर से वासना की आग लहकती हुई महसूस होने लगी।
मैं धीरे-धीरे पिछली रात की बातें याद करने लगी और अकस्मात् मेरे हाथ खुद बा खुद मेरी योनि को सहलाने लगे।
काफी देर सहलाने के बाद मेरी योनि पूरी तरह गीली हो चुकी थी सो मैंने उनको उठाया।
वो उठने के बाद मुझसे बोले- क्या हुआ?
मैंने उनसे बस इतना कहा- क्या आपको करना है?
वो दो पल रुके और कहा- ठीक है।
उनके कहते ही मैंने अपनी साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज, पैंटी और ब्रा निकाल कर नंगी हो गई।
उन्होंने भी अपना पजामा और बनियान निकाल दी और नंगे हो गए।
इस समय अँधेरा था, पर बाहर से रोशनी आ रही थी, सो ज्यादातर चीजें दिख रही थीं।
हम दोनों एक-दूसरे के तरफ चेहरे किये हुए बैठे थे।
मैंने हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को पकड़ा वो अभी खड़ा नहीं था तो मुझे उसे खड़ा करना था।
मैं उनके लिंग को हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी, कुछ देर में वो थोड़ा सख्त हुआ, पर यह योनि में घुसने के लिए काफी नहीं था।
तब मैंने उनको घुटनों के बल खड़े होने को कहा और फिर उनका लिंग अपने मुँह में भर कर चूसने लगी।
मैं एक हाथ से पकड़ कर उनके लिंग को हिलाती कभी और चूसती तो कभी उनके अन्डकोषों को सहलाती और दबाती जिससे कुछ ही देर में उनका लिंग पूरी तरह सख्त हो गया।
जब उनका लिंग पूरी तरह खड़ा हो गया तब मैंने उन्हें छोड़ दिया और लेट गई, पर उन्होंने मुझसे कहा- कुछ देर और चूसो.. मुझे अच्छा लग रहा है।
मैंने उनसे कहा- नहीं.. अब जल्दी से सम्भोग करें।
वो मुझे विनती करने लगे, तब मैंने फिर से उनके लिंग को चूसना शुरू कर दिया।
मैं एक हाथ से उनके लिंग को हिलाती और चूसती रही, दूसरे हाथ से अपनी योनि को रगड़ती रही। मेरे इस तरह के व्यवहार को देख उन्होंने भी मेरी योनि में हाथ डाल दिया और उसे रगड़ने लगे, साथ ही मेरे स्तनों को दबाने और सहलाने लगे।
मैं कुछ ही देर में गीली हो गई।
तभी उन्होंने मुझे लेटने को कहा और मेरे ऊपर चढ़ गए।
मैंने भी उनको पकड़ लिया और अपनी टाँगें फैला कर उनको बीच में कर लिया।
वो मेरे ऊपर पूरी तरह से झुक गए, मुझे उनका लिंग अपनी योनि के ऊपर रगड़ता हुआ महसूस होने लगा।
वो अपनी कमर को ऐसे घुमाने लगे जैसे कि वो मेरे अन्दर आने को तड़प रहे हों। मैंने भी उनको पकड़ा और अपनी ओर खींच कर अपने चूतड़ उठा दिए और घुमाने लगी।
वो मेरा इशारा समझ गए, उन्होंने मेरे होंठों से होंठों को लगाया और मुझे चूमने लगे।
फिर एक हाथ से मेरे एक स्तन को दबाया और दूसरे से मेरे चूतड़ों को नीचे से पकड़ा और अपनी कमर को घुमा कर मेरी योनि के छेद को लिंग से ढूँढने लगे।
योनि का छेद मिलते ही उन्होंने कमर से दबाव दिया, लिंग थोड़ा सरक कर मेरी योनि में आधा घुस गया।
उनके लिंग को अपनी योनि में पाते ही मैंने भी अपनी कमर को नचाया और चूतड़ उठा कर लिंग को पूरा लेने का इशारा किया।
मेरा इशारा पाते ही उन्होंने जोर से धक्का दिया मैं सिसक कर कराह उठी और अपने जिस्म को ऐंठते हुए उनको कस कर पकड़ लिया। अब उनका लिंग पूरी तरह मेरी योनि के अन्दर था।
उन्होंने भी मेरे स्तनों को मसलते हुए मुझे चूमा, कुछ देर लिंग को योनि के अन्दर घुमाया, अपनी कमर को नचा कर और फिर धीरे-धीरे लिंग को अन्दर-बाहर करने लगे।
मैं भी अब उनके झटके को भूल गई और मस्ती के सागर में डूबने लगी। मैं भी उनके धक्कों के साथ अपनी कमर को हिला कर उनका साथ देने लगी।
मुझे बहुत मजा आने लगा था और मैं उनके हर हरकत का चुनौतीपूर्ण साथ देने लगी थी।
उनके धक्के लगातार जारी थे और हम दोनों एक-दूसरे की जीभ को जीभ से रगड़ रहे थे, वहीं दूसरी ओर वो कभी मेरे स्तनों को मसलते तो कभी चूतड़ों को दबाते।
मैंने भी कभी उनके पीठ को पकड़ खींचती तो कभी चूतड़ को, कभी टाँगें पूरी फैला कर हवा में उठा देती, तो कभी उनको टांगों से जकड़ लेती।
करीब 15 मिनट तक वो ऐसे ही सम्भोग करते रहे और मैं मजे लेती रही, पर कुछ देर बाद वो रुक-रुक कर धक्के देने लगे अब वो थक चुके थे।
तब उन्होंने मुझे अपने ऊपर आने को कहा और खुद पीठ के बल लेट गए। मैं भी तुरंत उठ कर उनके ऊपर चढ़ गई और लिंग को सीधा करके योनि से लगा दिया कमर से जोर दिया।
उनका मूसलनुमा लिंग मेरी योनि में समा गया। अब मैं झुक गई और अपने स्तन को उनके मुँह में दिया और उनके सर को पकड़ कर धक्के लगाने लगी।
उन्होंने भी मेरे चूतड़ों को पकड़ कर मेरे धक्कों का स्वागत शुरू कर दिया और मेरा साथ देने लगे।
वो मेरे स्तनों को किसी बेदर्द कसाई की तरह चूसने लगे और काटने लगे, मेरे चूतड़ों को मसलते हुए बीच-बीच में नीचे से एक-दो झटके दे देते।
मैं उनके ऐसे व्यवहार से तड़प सी गई और मैं पूरे जोश में धक्के देने लगी, मेरी योनि बुरी तरह से रसीली और चिपचिपी होने लगी थी।
करीब 20 मिनट मैं ऐसे ही धक्के लगाती रही और मेरे जांघें अब जवाब देने लगी थी कि अचानक मेरी सांस एक पल के लिए जैसे रुक गई हो।
मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं ये नहीं चाहती हूँ पर मैं उसे रोक भी नहीं सकती, मेरे नितम्ब आपस में जुड़ से गए थे।
मेरी योनि सिकुड़ कर आपस में चिपकने को होने लगी।
मैं ना चाहते हुए भी झटके देने लगी और मैंने पानी छोड़ दिया।
मैं आखरी बूंद गिरने तक झटके देती रही, जब तक मैंने पूरा पानी नहीं छोड़ दिया, तब तक शुरू में थोड़े जोरदार, फिर धीरे-धीरे उनकी गति भी धीमी होती चली गई।
मैं पूरी तरह स्खलित होने के बाद उनके ऊपर लेट गई और खामोश सी लेट गई, मेरे इस तरह के व्यवहार को देख कर उन्होंने मुझे पकड़ कर पलट दिया।
अब मैं उनके नीचे थी और वो मेरे ऊपर चढ़ गए थे और लिंग अभी भी मेरी योनि के अन्दर था।
उन्होंने पहले मुझे और खुद को हिला-डुला कर एक सही स्थान पर टिकाया और फिर उनके धक्के शुरू हो गए।
मैं पहले ही झड़ चुकी थी सो मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, पर मैं ख़ामोशी से उनके धक्के बर्दास्त कर रही थी क्योंकि मेरा अब ये फ़र्ज़ था कि उनको चरम सीमा तक पहुँचने में मदद करूँ।
सो चुपचाप यूँ ही लेटी हुई उनका साथ दे रही थी।
करीब 5-7 मिनट के सम्भोग के बाद उनके धक्के तीव्र हो गए और उन धक्कों में काफी ताकत थी। जिसे मैं हर धक्के पर एक मादक कराह निकालने पर मजबूर हो जाती थी।
फिर अंत में 10-12 नाकाबिले-बर्दाश्त धक्कों के साथ वो झड़ गए।
मैं उनका गर्म वीर्य अपनी योनि की गहराईयों में महसूस किया जो मेरे लिए आनन्द दायक था।
उनका लिंग पूरा रस छोड़ने तक वो मेरे ऊपर ही लेटे हुए मेरे गालों और गले को चूमते रहे और जब पूरा स्खलन समाप्त हुआ तो मेरे सीने पर सर रख सुस्ताने लगे।
जब हम दोनों थोड़े सामान्य हुए तो मैंने उन्हें हल्के से धक्का दिया और वो मेरे ऊपर से हट कर बगल में लेट गए और हम दोनों सो गए।
अगली सुबह उनकी पत्नी को आराम करने को कहा गया और हम दोनों फिर से उसी गेस्ट हाउस में ठहरे और इस रात भी मैंने ही न जाने क्यों उनको सम्भोग के लिए कहा, ये आज तक मेरे लिए रहस्य ही है।
उसके ठीक अगले दिन हम उनकी पत्नी को अस्पताल से घर ले आए।
मैं उनके आने के बाद भी 3-4 बार मैंने उनके साथ सम्भोग किया, इस बीच मैंने उन्हें अपनी योनि चाटने के लिए भी एक दिन उत्तेजित कर दिया था।
हालांकि उन्हें इस कला में कोई तजुर्बा नहीं था, पर मुझे फिर भी अच्छा लगा क्योंकि मेरी योनि इतने में गीली हो गई थी फिर हमने सम्भोग भी किया।
उनकी पत्नी की तबियत कुछ सामान्य होने के बाद मैं वापस अपने घर चली आई।
तड़फती जवानी
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Re: तड़फती जवानी
तड़फती जवानी-14
वासना एक ऐसी आग है जिसमें इंसान जल कर भी नहीं जलता और जितना बुझाना चाहो, उतनी ही भड़कती जाती है।
हम सोचते हैं कि सम्भोग कर लेने से हमारे जिस्मों में लगी आग को शान्ति मिलती है, पर मेरे ख्याल से सम्भोग मात्र आग को समय देने के लिए है, जो बाद में और भयानक रूप ले लेती है।
मैंने अपने अनुभवों से जाना कि मैंने जितनी कोशिश की, मेरी प्यास उतनी ही बढ़ती गई।
कोई भी इंसान सिर्फ एक इंसान के साथ वफादार रहना चाहता है। मैं भी चाहती थी, पर वासना की आग ने मुझे अपने जिस्म को दूसरों के सामने परोसने पर मजबूर कर दिया।
हम वासना में जल कर सिर्फ गलतियाँ करते हैं, पर हमें वासना से ऐसे सुख की अनुभूति मिलती है कि ये गलतियाँ भी हमें प्यारी लगने लगती हैं।
हम सब कुछ भूल जाते हैं, हम भूल जाते हैं कि इससे हमारे परिवार को नुकसान पहुँच रहा है, या दूसरे के परिवार को भी क्षति पहुँच रही है और खुद पर बुरा असर हो रहा है।
अंत में होता यह है कि हम इतने मजबूर हो जाते हैं कि हमें जीना मुश्किल लगने लगता है।
मेरी यह कहानी इसी पर आधारित है।
खैर कुछ लोगों ने मुझसे पूछा था कि मेरा बदन कैसा है, तो मैं बता दूँ फिलहाल मेरा जिस्म 36-32-34 का है।
यह बात तब की है जब अमर और मैं सम्भोग के क्रियायों में डूब कर मस्ती के गोते लगा रहे थे।
उन दिनों मैं और भी मोटी हो गई थी, मेरे स्तन तो तब भी इतने ही थे और कमर भी, बस मेरे कूल्हे जरा बड़े हो गए थे।
बच्चे को दूध पिलाने के क्रम में मुझे कुछ ज्यादा ही खाना-पीना पड़ता था।
इससे बाकी शरीर पर तो असर नहीं हुआ, पर जांघें और कूल्हे थोड़े बड़े हो गए, करीब 36 को हो गए थे।
मेरी नाभि के नीचे के हिस्से से लेकर योनि तक चर्बी ज्यादा हो गई थी, जिसके कारण मेरी योनि पावरोटी की तरह फूली दिखती थी।
योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियाँ काफी मोटी हो गई थीं।
अमर के साथ सम्भोग करके 7-8 दिनों में मेरी योनि के अन्दर की चमड़ी भी बाहर निकल गई थी जो किसी उडूल के फूल की तरह दिखने लगी थी।
मेरे स्तनों में पहले से ज्यादा दूध आने लगा था, साथ ही चूचुकों के चारों तरफ बड़ा सा दाग हो गया था जो हलके भूरे रंग का था और चूचुक भी काफी लम्बे और मोटे हो गए थे।
मैं कभी नहाने जाती तो अपने जिस्म को देखती फिर आईने के सामने खड़ी हो कर अपने अंगों को निहारती और सोचती ऐसा क्या है मुझमें जो अमर को दिखता है, पर मेरे पति को नहीं समझ आता।
मेरा चेहरा पहले से कहीं ज्यादा खिल गया था, गजब की चमक आ गई थी।
शायद यह सम्भोग की वजह से थी या फिर मैं खुश रहने लगी थी, इसीलिए ऐसा परिवर्तन हुआ है।
मैं कभी यह भी सोचती कि मेरे अंगों का क्या हाल हो गया है।
हमें मस्ती करने के लिए लगातार 16 दिन मिल गए थे। इस बीच तो हमने हद पार कर दी थी, मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं इतनी इतनी बार सम्भोग करुँगी।
क्योंकि आज तक मैंने जहाँ तक पढ़ा और सुना 3-4 बार में लोग थक कर चूर हो जाते हैं।
मुझे नहीं पता लोग इससे ज्यादा भी करते हैं या नहीं, पर मैंने किया है.. इसलिए मुझे थोड़ी हैरानी थी।
एक दिन ऐसा भी आया कि मैंने अपने शरीर की पूरी उर्जा को सिर्फ सम्भोग में लगा दिया।
बात एक दिन की है, मैं और अमर रोज सम्भोग करते थे। हम लोग कम से कम एक बार सम्भोग के लिए कहीं न कहीं समय निकाल ही लेते थे।
एक दिन मेरे बेटे को स्कूल की तरफ से गाने के लिए एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पास के स्कूल ब्रह्मपुर जाना पड़ा।
उस दिन शनिवार था वो सोमवार को वापस आने वाला था।
मैंने उसकी सारी चीजें बाँध कर उसे छोड़ आई।
पति काम पर जाने को थे, सो खाना बना कर उन्हें भी विदा किया।
फिर दोपहर को अमर आए और उनके साथ मैंने सम्भोग किया।
रात को पति जब खाना खा रहे थे तो उन्होंने बताया के उनको सुबह बेलपहाड़ नाम की किसी जगह पर जाना है, कोई मीटिंग और ट्रेनिंग है, मैं उनका सामान बाँध दूँ।
सुबह 4 बजे उनकी ट्रेन थी, सो जल्दी उठ कर उनके लिए चाय बनाई और वो चले गए। मैं दुबारा आकर सो गई।
फिर 7 बजे उठ कर बच्चे को नहला-धुला कर खुद नहाई और एक नाइटी पहन कर तैयार हो गई।
आज मेरे पास अमर के साथ समय बिताने के लिए पूरा दिन था क्योंकि रविवार का दिन था और पति अगले दिन रात को आने वाले थे।
मैंने अमर को फोन किया और ये सब बता दिया।
सुनते ही वो आधे घंटे में मेरे घर आ गए। तब 9 बज रहे थे, मैंने उनको चाय-नाश्ता दिया।
उसने कहा- कहीं घूमने चलते हैं।
मैंने कहा- नहीं, किसी ने देख लिया तो दिक्कत हो जाएगी।
पर उसने कहा- यहाँ कौन हमें जानता है, और वैसे भी अमर और मेरे पति की दोस्ती है तो किसी ने देख भी लिया तो कह देंगे कुछ सामान खरीदना था तो मेरे साथ हो।
मैं मान गई और तैयार होने के लिए जाने लगी, पर अमर ने मुझे रोक लिया और अपनी बांहों में भर कर चूमने लगे।
मैंने कहा- अभी नहा कर निकली हूँ फिर से नहाना पड़ेगा.. सो जाने दो।
उसने कहा- तुम नहाओ या न नहाओ मुझे फर्क नहीं पड़ता, मुझे तुम हर हाल में अच्छी लगती हो।
फिर क्या था पल भर में मेरी नाइटी उतार मुझे नंगा कर दिया क्योंकि मैंने अन्दर कुछ नहीं पहना था।
मुझे बिस्तर पर लिटा मुझे प्यार करने लगे, खुद भी नंगे हो गए, एक-दूसरे को हम चूमने-चूसने लगे और फिर अमर ने अपना लिंग मेरी योनि में घुसा कर दिन के पहले सम्भोग की प्रक्रिया का शुभारम्भ कर दिया।
उसका साथ मुझे इतना प्यारा लग रहा था कि मैं बस दुनिया भूल कर उसका साथ दे रही थी।
कोई हमारे चेहरों को देख कर आसानी से बता देता कि हम कितने खुश और संतुष्ट थे।
आधे घंटे की मशक्कत के बाद हम दोनों ही झड़ गए और हमारी काम की अग्नि कुछ शांत हुई, पर मुझे यह मालूम नहीं था कि यह अग्नि आज एक ज्वालामुखी का रूप ले लेगी।
खैर मैं उठकर बाथरूम चली गई फिर खुद को साफ़ करके वापस आई तो देखा अमर अभी भी बिस्तर पर नंगे लेटे हैं।
मैंने उनसे कहा- उठो और भी तैयार हो जाओ।
फिर वो भी तैयार होकर वापस आए। आते ही मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, मैंने हरे रंग की साड़ी पहनी थी।
अमर ने पूछा- अन्दर क्या पहना है?
मैंने जवाब दिया- पैंटी और ब्रा..
वो मेरे पास आए और मेरी साड़ी उठा दी।
मैंने कहा- क्या कर रहे हो?
उहोने मेरी पैंटी निकाल दी और कहा- आज तुम बिना पैंटी के चलो।
मैंने कहा- नहीं।
पर वो जिद करने लगे और मुझे बिना पैंटी के ही बाहर जाना पड़ा।
रास्ते भर मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे कूल्हे हवा में झूल रहे हैं। हम पहले एक मार्किट में गए वह मैंने अपने श्रृंगार का सामान लिया फिर बच्चे के लिए खिलौने लिए, कुछ खाने का सामान भी लिया।
तभी अमर मेरे पास आए और एक काउंटर पर ले गए। वो लेडीज अंडरगारमेंट्स का स्टाल था, वहाँ एक 24-25 साल की लड़की ने आकर मुझसे पूछा- क्या चाहिए?
तभी अमर ने कहा- मेरी वाइफ को थोड़े मॉडर्न अंडरगारमेंट्स चाहिए।
तब उस लड़की ने मुझे तरह-तरह की ब्रा और पैंटी सेट्स दिखाने शुरू कर दिए जिनमें से 3 सेट्स अमर ने मेरे लिए खरीद लिए।
फिर हमने एक रेस्तरां में जाकर खाना खाया और वापस घर आ गए।
घर आते ही अमर ने मुझे बच्चे को दूध पिला कर सुलाने को कहा ताकि हम बेफिक्र हो कर प्यार करते रहें।
सो मैंने बच्चे को दूध पिला कर सुला दिया।
तब अमर ने मुझसे कहा- ब्रा और पैंटी पहन कर दिखाओ, तुम उनमें कैसी लगती हो?
मैंने बारी-बारी से पहन कर दिखाया, जिसमें से सफ़ेद रंग की ब्रा और पैंटी मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी।
अमर ने मुझे पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया फिर मुझे चूमने लगा। मैंने भी उसको चूमना शुरू कर दिया।
हमारे होंठ आपस में चिपक गए।
वासना एक ऐसी आग है जिसमें इंसान जल कर भी नहीं जलता और जितना बुझाना चाहो, उतनी ही भड़कती जाती है।
हम सोचते हैं कि सम्भोग कर लेने से हमारे जिस्मों में लगी आग को शान्ति मिलती है, पर मेरे ख्याल से सम्भोग मात्र आग को समय देने के लिए है, जो बाद में और भयानक रूप ले लेती है।
मैंने अपने अनुभवों से जाना कि मैंने जितनी कोशिश की, मेरी प्यास उतनी ही बढ़ती गई।
कोई भी इंसान सिर्फ एक इंसान के साथ वफादार रहना चाहता है। मैं भी चाहती थी, पर वासना की आग ने मुझे अपने जिस्म को दूसरों के सामने परोसने पर मजबूर कर दिया।
हम वासना में जल कर सिर्फ गलतियाँ करते हैं, पर हमें वासना से ऐसे सुख की अनुभूति मिलती है कि ये गलतियाँ भी हमें प्यारी लगने लगती हैं।
हम सब कुछ भूल जाते हैं, हम भूल जाते हैं कि इससे हमारे परिवार को नुकसान पहुँच रहा है, या दूसरे के परिवार को भी क्षति पहुँच रही है और खुद पर बुरा असर हो रहा है।
अंत में होता यह है कि हम इतने मजबूर हो जाते हैं कि हमें जीना मुश्किल लगने लगता है।
मेरी यह कहानी इसी पर आधारित है।
खैर कुछ लोगों ने मुझसे पूछा था कि मेरा बदन कैसा है, तो मैं बता दूँ फिलहाल मेरा जिस्म 36-32-34 का है।
यह बात तब की है जब अमर और मैं सम्भोग के क्रियायों में डूब कर मस्ती के गोते लगा रहे थे।
उन दिनों मैं और भी मोटी हो गई थी, मेरे स्तन तो तब भी इतने ही थे और कमर भी, बस मेरे कूल्हे जरा बड़े हो गए थे।
बच्चे को दूध पिलाने के क्रम में मुझे कुछ ज्यादा ही खाना-पीना पड़ता था।
इससे बाकी शरीर पर तो असर नहीं हुआ, पर जांघें और कूल्हे थोड़े बड़े हो गए, करीब 36 को हो गए थे।
मेरी नाभि के नीचे के हिस्से से लेकर योनि तक चर्बी ज्यादा हो गई थी, जिसके कारण मेरी योनि पावरोटी की तरह फूली दिखती थी।
योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियाँ काफी मोटी हो गई थीं।
अमर के साथ सम्भोग करके 7-8 दिनों में मेरी योनि के अन्दर की चमड़ी भी बाहर निकल गई थी जो किसी उडूल के फूल की तरह दिखने लगी थी।
मेरे स्तनों में पहले से ज्यादा दूध आने लगा था, साथ ही चूचुकों के चारों तरफ बड़ा सा दाग हो गया था जो हलके भूरे रंग का था और चूचुक भी काफी लम्बे और मोटे हो गए थे।
मैं कभी नहाने जाती तो अपने जिस्म को देखती फिर आईने के सामने खड़ी हो कर अपने अंगों को निहारती और सोचती ऐसा क्या है मुझमें जो अमर को दिखता है, पर मेरे पति को नहीं समझ आता।
मेरा चेहरा पहले से कहीं ज्यादा खिल गया था, गजब की चमक आ गई थी।
शायद यह सम्भोग की वजह से थी या फिर मैं खुश रहने लगी थी, इसीलिए ऐसा परिवर्तन हुआ है।
मैं कभी यह भी सोचती कि मेरे अंगों का क्या हाल हो गया है।
हमें मस्ती करने के लिए लगातार 16 दिन मिल गए थे। इस बीच तो हमने हद पार कर दी थी, मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं इतनी इतनी बार सम्भोग करुँगी।
क्योंकि आज तक मैंने जहाँ तक पढ़ा और सुना 3-4 बार में लोग थक कर चूर हो जाते हैं।
मुझे नहीं पता लोग इससे ज्यादा भी करते हैं या नहीं, पर मैंने किया है.. इसलिए मुझे थोड़ी हैरानी थी।
एक दिन ऐसा भी आया कि मैंने अपने शरीर की पूरी उर्जा को सिर्फ सम्भोग में लगा दिया।
बात एक दिन की है, मैं और अमर रोज सम्भोग करते थे। हम लोग कम से कम एक बार सम्भोग के लिए कहीं न कहीं समय निकाल ही लेते थे।
एक दिन मेरे बेटे को स्कूल की तरफ से गाने के लिए एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पास के स्कूल ब्रह्मपुर जाना पड़ा।
उस दिन शनिवार था वो सोमवार को वापस आने वाला था।
मैंने उसकी सारी चीजें बाँध कर उसे छोड़ आई।
पति काम पर जाने को थे, सो खाना बना कर उन्हें भी विदा किया।
फिर दोपहर को अमर आए और उनके साथ मैंने सम्भोग किया।
रात को पति जब खाना खा रहे थे तो उन्होंने बताया के उनको सुबह बेलपहाड़ नाम की किसी जगह पर जाना है, कोई मीटिंग और ट्रेनिंग है, मैं उनका सामान बाँध दूँ।
सुबह 4 बजे उनकी ट्रेन थी, सो जल्दी उठ कर उनके लिए चाय बनाई और वो चले गए। मैं दुबारा आकर सो गई।
फिर 7 बजे उठ कर बच्चे को नहला-धुला कर खुद नहाई और एक नाइटी पहन कर तैयार हो गई।
आज मेरे पास अमर के साथ समय बिताने के लिए पूरा दिन था क्योंकि रविवार का दिन था और पति अगले दिन रात को आने वाले थे।
मैंने अमर को फोन किया और ये सब बता दिया।
सुनते ही वो आधे घंटे में मेरे घर आ गए। तब 9 बज रहे थे, मैंने उनको चाय-नाश्ता दिया।
उसने कहा- कहीं घूमने चलते हैं।
मैंने कहा- नहीं, किसी ने देख लिया तो दिक्कत हो जाएगी।
पर उसने कहा- यहाँ कौन हमें जानता है, और वैसे भी अमर और मेरे पति की दोस्ती है तो किसी ने देख भी लिया तो कह देंगे कुछ सामान खरीदना था तो मेरे साथ हो।
मैं मान गई और तैयार होने के लिए जाने लगी, पर अमर ने मुझे रोक लिया और अपनी बांहों में भर कर चूमने लगे।
मैंने कहा- अभी नहा कर निकली हूँ फिर से नहाना पड़ेगा.. सो जाने दो।
उसने कहा- तुम नहाओ या न नहाओ मुझे फर्क नहीं पड़ता, मुझे तुम हर हाल में अच्छी लगती हो।
फिर क्या था पल भर में मेरी नाइटी उतार मुझे नंगा कर दिया क्योंकि मैंने अन्दर कुछ नहीं पहना था।
मुझे बिस्तर पर लिटा मुझे प्यार करने लगे, खुद भी नंगे हो गए, एक-दूसरे को हम चूमने-चूसने लगे और फिर अमर ने अपना लिंग मेरी योनि में घुसा कर दिन के पहले सम्भोग की प्रक्रिया का शुभारम्भ कर दिया।
उसका साथ मुझे इतना प्यारा लग रहा था कि मैं बस दुनिया भूल कर उसका साथ दे रही थी।
कोई हमारे चेहरों को देख कर आसानी से बता देता कि हम कितने खुश और संतुष्ट थे।
आधे घंटे की मशक्कत के बाद हम दोनों ही झड़ गए और हमारी काम की अग्नि कुछ शांत हुई, पर मुझे यह मालूम नहीं था कि यह अग्नि आज एक ज्वालामुखी का रूप ले लेगी।
खैर मैं उठकर बाथरूम चली गई फिर खुद को साफ़ करके वापस आई तो देखा अमर अभी भी बिस्तर पर नंगे लेटे हैं।
मैंने उनसे कहा- उठो और भी तैयार हो जाओ।
फिर वो भी तैयार होकर वापस आए। आते ही मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, मैंने हरे रंग की साड़ी पहनी थी।
अमर ने पूछा- अन्दर क्या पहना है?
मैंने जवाब दिया- पैंटी और ब्रा..
वो मेरे पास आए और मेरी साड़ी उठा दी।
मैंने कहा- क्या कर रहे हो?
उहोने मेरी पैंटी निकाल दी और कहा- आज तुम बिना पैंटी के चलो।
मैंने कहा- नहीं।
पर वो जिद करने लगे और मुझे बिना पैंटी के ही बाहर जाना पड़ा।
रास्ते भर मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे कूल्हे हवा में झूल रहे हैं। हम पहले एक मार्किट में गए वह मैंने अपने श्रृंगार का सामान लिया फिर बच्चे के लिए खिलौने लिए, कुछ खाने का सामान भी लिया।
तभी अमर मेरे पास आए और एक काउंटर पर ले गए। वो लेडीज अंडरगारमेंट्स का स्टाल था, वहाँ एक 24-25 साल की लड़की ने आकर मुझसे पूछा- क्या चाहिए?
तभी अमर ने कहा- मेरी वाइफ को थोड़े मॉडर्न अंडरगारमेंट्स चाहिए।
तब उस लड़की ने मुझे तरह-तरह की ब्रा और पैंटी सेट्स दिखाने शुरू कर दिए जिनमें से 3 सेट्स अमर ने मेरे लिए खरीद लिए।
फिर हमने एक रेस्तरां में जाकर खाना खाया और वापस घर आ गए।
घर आते ही अमर ने मुझे बच्चे को दूध पिला कर सुलाने को कहा ताकि हम बेफिक्र हो कर प्यार करते रहें।
सो मैंने बच्चे को दूध पिला कर सुला दिया।
तब अमर ने मुझसे कहा- ब्रा और पैंटी पहन कर दिखाओ, तुम उनमें कैसी लगती हो?
मैंने बारी-बारी से पहन कर दिखाया, जिसमें से सफ़ेद रंग की ब्रा और पैंटी मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी।
अमर ने मुझे पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया फिर मुझे चूमने लगा। मैंने भी उसको चूमना शुरू कर दिया।
हमारे होंठ आपस में चिपक गए।
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Re: तड़फती जवानी
तड़फती जवानी-15
उस लड़की ने मुझे तरह-तरह की ब्रा और पैंटी सेट्स दिखाने शुरू कर दिए जिनमें से 3 सेट्स अमर ने मेरे लिए खरीद लिए।
फिर हमने एक रेस्तरां में जाकर खाना खाया और वापस घर आ गए।
घर आते ही अमर ने मुझे बच्चे को दूध पिला कर सुलाने को कहा ताकि हम बेफिक्र हो कर प्यार करते रहें।
सो मैंने बच्चे को दूध पिला कर सुला दिया।
तब अमर ने मुझसे कहा- ब्रा और पैंटी पहन कर दिखाओ, तुम उनमें कैसी लगती हो?
मैंने बारी-बारी से पहन कर दिखाया, जिसमें से सफ़ेद रंग की ब्रा और पैंटी मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी।
अमर ने मुझे पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया फिर मुझे चूमने लगा। मैंने भी उसको चूमना शुरू कर दिया।
हमारे होंठ आपस में चिपक गए, कभी होंठों को चूसते तो कभी जुबान को चूसते।
अमर मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर भर कर ऐसे चूसने लगा जैसे उसमें से कोई मीठा रस रिस रहा हो।
फिर उसने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा निकाल दी।
उसने मुझे बिस्तर पर दीवार से लगा कर बिठा दिया और मेरे स्तनों से खेलने लगा, वो मेरे स्तनों को जोर से मसलता, फिर उन्हें मुँह से लगा कर चूमता और फिर चूचुकों को मुँह में भर कर चूसने लगता।
वो मेरा दूध पीने में मगन हो गया, बीच-बीच में दांतों से काट भी लेता, मैं दर्द से अपने बदन को सिकोड़ लेती।
मैं उत्तेजित होने लगी.. मेरे चूचुक कड़े हो गए थे।
मेरी योनि में भी पानी रिसने लगा था, मैंने भी एक-एक करके अमर के कपड़े उतार दिए और उसको नंगा करके उसके लिंग को मुट्ठी में भर कर जोर-जोर से दबाने लगी और हिलाने लगी।
अमर ने कुछ देर मेरे स्तनों को जी भर चूसने के बाद मेरे पूरे जिस्म को चूमा फिर मेरी पैंटी निकाल दी और मेरी टांगों को फैला कर मेरी योनि के बालों को सहलाते हुए योनि पर हाथ फिराने लगा।
उसने मेरी योनि को दो ऊँगलियों से फैलाया और चूम लिया।
फिर एक ऊँगली अन्दर डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा, उसके बाद मुँह लगा कर चूसने लगा।
उसकी इस तरह के हरकतों से मेरे पूरे जिस्म में एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी, मैं गर्म होती चली गई।
उसने अब अपनी जीभ मेरी योनि के छेद में घुसाने का प्रयास शुरू कर दिया। मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैंने अपने दोनों हाथों से योनि को फैला दिया और अमर उसमें जीभ डाल कर चूसने लगा।
वो कभी मेरी योनि के छेद में जीभ घुसाता तो कभी योनि की दोनों पंखुड़ियों को बारी-बारी चूसता, तो कभी योनि के ऊपर के दाने को दांतों से पकड़ कर खींचता।
इस तरह कभी-कभी मुझे लगता कि मैं झड़ जाऊँगी पर अमर को मेरी हर बात का मानो अहसास हो चुका था, उसने मुझे छोड़ दिया और अपना लिंग मेरे मुँह के पास कर दिया।
मैंने उसके लिंग को मुठ्ठी में भर कर पहले आगे-पीछे किया, फिर लिंग के चमड़े को पीछे की तरफ खींच कर सुपारे को खोल दिया।
पहले तो मैंने उसके सुपारे को चूमा फिर जुबान को पूरे सुपारे में फिराया और मुँह में भर कर चूसने लगी।
मैंने एक हाथ से उसके लिंग को पकड़ रखा था और आगे-पीछे कर रही थी और दूसरे हाथ से उसके दो गोल-गोल अन्डकोषों को प्यार से दबा-दबा कर चूस रही थी।
अमर का लिंग पूरी तरह सख्त हो गया था और इतना लाल था जैसे कि अभी फूट कर खून निकल जाएगा।
उसने मुझे कहा- मुझे और मत तड़पाओ जल्दी से अपने अन्दर ले लो।
मैंने भी कहा- मैं तो खुद तड़प रही हूँ.. अब जल्दी से मेरे अन्दर आ जाओ…
और मैंने अपनी टाँगें फैला कर उसके सामने लेट गई।
तब अमर ने कहा- ऐसे नहीं.. आज मुझे कुछ और तरीके से मजा लेने दो.. आज का दिन हमारा है।
यह कह कर उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे आईने के सामने खड़ा कर दिया और मेरी एक टांग को ड्रेसिंग टेबल पर चढ़ा दिया।
फिर वो सामने से मेरे एक नितम्ब को पकड़ कर अपने लिंग को मेरी योनि में रगड़ने लगा।
मुझसे रहा नहीं जा रहा था सो मैंने कहा- अब देर मत करो, कितना तड़फाते हो तुम!!
यह सुनते ही उसने लिंग को छेद पर टिका कर एक धक्का दिया… लिंग मेरी योनि के भीतर समा गया।
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मनोकामना पूरी हो गई, एक सुकून का अहसास हुआ, पर अभी पूरा सुकून मिलना बाकी था।
उसने मुझे धक्के लगाने शुरू कर दिए और मेरे अन्दर चिनगारियाँ आग का रूप लेने लगीं।
मैं बार-बार आइने में देख रही थी, कैसे उसका लिंग मेरी योनि के अंतिम छोर को छू कर वापस बाहर आ रहा है।
कुछ देर मैं इतनी ज्यादा गर्म हो गई कि मैं अमर को अपने हाथों और पैरों से दबोच लेना चाहती थी। मेरी योनि पहले से कही ज्यादा गीली हो गई थी जिसकी वजह से उसका लिंग ‘चिपचिप’ करने लगा था।
मैंने अमर से कहा- मुझसे अब ऐसे और नहीं खड़ा रहा जाता.. मुझे बिस्तर पर ले चलो।
उसने अपना लिंग बाहर निकाला और बिस्तर पर लेट गया और मुझे अपने ऊपर आने को कहा।
मैंने अपने दोनों टाँगें अमर के दोनों तरफ फैला कर अमर के लिंग के ऊपर योनि को रख दिया और अमर के ऊपर लेट गई।
अमर ने अपनी कमर को हिला कर लिंग से मेरी योनि को टटोलना शुरू किया। योनि की छेद को पाते ही अमर ने अपनी कमर उठाई,
तो लिंग योनि में घुस गया और मैंने भी अपनी कमर पर जोर दिया तो लिंग मेरी योनि के अंतिम छोर तक घुसता चला गया।
मैंने अब अपनी कमर को ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया और अमर मेरे कूल्हों को पकड़ कर मुझे मदद करने लगा।
मैंने अपने होंठ अमर के होंठों से लगा दिए और अमर ने चूमना और चूसना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद मैंने अपने स्तनों को बारी-बारी से उसके मुँह से लगा कर अपने दूध चुसवाने लगी।
मैं अपनी पूरी ताकत से धक्के लगा रही थी और अमर भी नीचे से अपनी कमर को नचाने लगा था।
अमर को बहुत मजा आ रहा था और यह सोच कर मैं भी खुश थी कि अमर को मैं पूरी तरह से खुश कर रही हूँ।
मैं बुरी तरह से पसीने में भीग गई थी और मैं हाँफने लगी थी।
तब उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरे पीछे आ गया और मेरे कूल्हों को ऊपर करने को कहा।
उसने लिंग मेरी योनि में घुसा कर धक्के देना शुरू कर दिया, साथ ही मेरे स्तनों से खेलने लगा।
कुछ देर बाद मुझे उसने सीधा लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रख मेरी टाँगें फैला कर लिंग अन्दर घुसा कर.. मेरे ऊपर लेट गया और धक्के देने लगा।
हमें सम्भोग करते हुए करीब आधा घंटा हो चुका था और अब हम चरम सीमा से दूर नहीं थे।
मैं भी अब चाहती थी कि मैं अमर के साथ ही झड़ू, क्योंकि उस वक़्त जो मजा आता है वो सबसे अलग और सबसे ज्यादा होता है।
मैंने अमर के गले में हाथ डाल कर उसको पकड़ लिया और टांगों को ज्यादा से ज्यादा उठा कर उसके कूल्हों पर चढ़ा दिया ताकि उसे अपना लिंग मेरी योनि में घुसाने को ज्यादा से ज्यादा जगह मिल सके।
उसने भी मुझे कन्धों से पकड़ा और एक जोर का धक्का देकर सुपारे को मेरी बच्चेदानी में रगड़ने लगा।
मैं मस्ती में सिसकने लगी और मैंने अपनी पकड़ और कड़ा कर दिया।
अमर मेरी हालत देख समझ गया कि मैं झड़ने वाली हूँ, उसने पूरी ताकत के साथ मुझे पकड़ा और मेरी आँखों में देखा।
मैंने भी उससे अपनी नजरें मिलाईं।
अब वो पूरी ताकत लगा कर तेज़ी से धक्के लगाने लगा।
उसके चेहरे से लग रहा था जैसे वो मुझे संतुष्ट करने के लिए कोई जंग लड़ रहा है।
मैंने भी उसे पूरा मजा देने के लिए अपनी योनि को सिकोड़ लिया और उसके लिंग को योनि से कस लिया।
हम दोनों तेज़ी से सांस लेने लगे, तेज धक्कों के साथ मेरी ‘आहें’ तेज़ होती चली गईं।
मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा और मैं झड़ गई…
मैं पूरी मस्ती में कमर उछालने लगी और अमर भी इसी बीच जोर-जोर के धक्कों के साथ झड़ गया।
हम दोनों ने एक-दूसरे को कस कर पकड़ लिया और हाँफने लगे।
अमर का सुपारा मेरी बच्चेदानी से चिपक गया और उसका वीर्य मेरी बच्चेदानी को नहलाने लगा।
कुछ देर तक हम ऐसे ही एक-दूसरे से चिपक कर सुस्ताते रहे।
जैसे-जैसे अमर का लिंग का आकार कम होता गया, मेरी योनि से अमर का रस रिस-रिस कर बहने लगा और बिस्तर के चादर पर फ़ैल गया।
कुछ देर में अमर मेरे ऊपर से हट कर मेरे बगल में लेट गया और कहा- तुम्हें मजा आया?
मैंने जवाब दिया- क्या कभी ऐसा हुआ कि मुझे मजा नहीं आया हो… तुम्हारे साथ?
उसने मेरे गालों पर हाथ फेरते हुआ कहा- तुम में अजीब सी कशिश है.. जितना तुम्हें प्यार करना चाहता6 हूँ उतना ही कम लगता है।
यह कहते हुए उसने मुझे अपनी बांहों में भर कर दुबारा चूमना शुरू कर दिया।
अभी हमारे बदन का पसीना सूखा भी नहीं था और मेरी योनि अमर के वीर्य से गीली होकर चिपचिपी हो गई थी।
उसके चूमने और बदन को सहलाने से मेरे अन्दर वासना की आग फिर से भड़क उठी और मैं गर्म हो कर जोश में आने लगी।
मैंने उसके लिंग को हाथों में भर कर जोर से मसलना शुरू कर दिया।
कुछ ही देर में वो दुबारा सख्त होने लगा।
वो मेरे स्तनों से खेलने में मगन हो गया और मैं उसके लिंग को दुबारा सम्भोग के लिए तैयार करने लगी।
उस लड़की ने मुझे तरह-तरह की ब्रा और पैंटी सेट्स दिखाने शुरू कर दिए जिनमें से 3 सेट्स अमर ने मेरे लिए खरीद लिए।
फिर हमने एक रेस्तरां में जाकर खाना खाया और वापस घर आ गए।
घर आते ही अमर ने मुझे बच्चे को दूध पिला कर सुलाने को कहा ताकि हम बेफिक्र हो कर प्यार करते रहें।
सो मैंने बच्चे को दूध पिला कर सुला दिया।
तब अमर ने मुझसे कहा- ब्रा और पैंटी पहन कर दिखाओ, तुम उनमें कैसी लगती हो?
मैंने बारी-बारी से पहन कर दिखाया, जिसमें से सफ़ेद रंग की ब्रा और पैंटी मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी।
अमर ने मुझे पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया फिर मुझे चूमने लगा। मैंने भी उसको चूमना शुरू कर दिया।
हमारे होंठ आपस में चिपक गए, कभी होंठों को चूसते तो कभी जुबान को चूसते।
अमर मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर भर कर ऐसे चूसने लगा जैसे उसमें से कोई मीठा रस रिस रहा हो।
फिर उसने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा निकाल दी।
उसने मुझे बिस्तर पर दीवार से लगा कर बिठा दिया और मेरे स्तनों से खेलने लगा, वो मेरे स्तनों को जोर से मसलता, फिर उन्हें मुँह से लगा कर चूमता और फिर चूचुकों को मुँह में भर कर चूसने लगता।
वो मेरा दूध पीने में मगन हो गया, बीच-बीच में दांतों से काट भी लेता, मैं दर्द से अपने बदन को सिकोड़ लेती।
मैं उत्तेजित होने लगी.. मेरे चूचुक कड़े हो गए थे।
मेरी योनि में भी पानी रिसने लगा था, मैंने भी एक-एक करके अमर के कपड़े उतार दिए और उसको नंगा करके उसके लिंग को मुट्ठी में भर कर जोर-जोर से दबाने लगी और हिलाने लगी।
अमर ने कुछ देर मेरे स्तनों को जी भर चूसने के बाद मेरे पूरे जिस्म को चूमा फिर मेरी पैंटी निकाल दी और मेरी टांगों को फैला कर मेरी योनि के बालों को सहलाते हुए योनि पर हाथ फिराने लगा।
उसने मेरी योनि को दो ऊँगलियों से फैलाया और चूम लिया।
फिर एक ऊँगली अन्दर डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा, उसके बाद मुँह लगा कर चूसने लगा।
उसकी इस तरह के हरकतों से मेरे पूरे जिस्म में एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी, मैं गर्म होती चली गई।
उसने अब अपनी जीभ मेरी योनि के छेद में घुसाने का प्रयास शुरू कर दिया। मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैंने अपने दोनों हाथों से योनि को फैला दिया और अमर उसमें जीभ डाल कर चूसने लगा।
वो कभी मेरी योनि के छेद में जीभ घुसाता तो कभी योनि की दोनों पंखुड़ियों को बारी-बारी चूसता, तो कभी योनि के ऊपर के दाने को दांतों से पकड़ कर खींचता।
इस तरह कभी-कभी मुझे लगता कि मैं झड़ जाऊँगी पर अमर को मेरी हर बात का मानो अहसास हो चुका था, उसने मुझे छोड़ दिया और अपना लिंग मेरे मुँह के पास कर दिया।
मैंने उसके लिंग को मुठ्ठी में भर कर पहले आगे-पीछे किया, फिर लिंग के चमड़े को पीछे की तरफ खींच कर सुपारे को खोल दिया।
पहले तो मैंने उसके सुपारे को चूमा फिर जुबान को पूरे सुपारे में फिराया और मुँह में भर कर चूसने लगी।
मैंने एक हाथ से उसके लिंग को पकड़ रखा था और आगे-पीछे कर रही थी और दूसरे हाथ से उसके दो गोल-गोल अन्डकोषों को प्यार से दबा-दबा कर चूस रही थी।
अमर का लिंग पूरी तरह सख्त हो गया था और इतना लाल था जैसे कि अभी फूट कर खून निकल जाएगा।
उसने मुझे कहा- मुझे और मत तड़पाओ जल्दी से अपने अन्दर ले लो।
मैंने भी कहा- मैं तो खुद तड़प रही हूँ.. अब जल्दी से मेरे अन्दर आ जाओ…
और मैंने अपनी टाँगें फैला कर उसके सामने लेट गई।
तब अमर ने कहा- ऐसे नहीं.. आज मुझे कुछ और तरीके से मजा लेने दो.. आज का दिन हमारा है।
यह कह कर उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे आईने के सामने खड़ा कर दिया और मेरी एक टांग को ड्रेसिंग टेबल पर चढ़ा दिया।
फिर वो सामने से मेरे एक नितम्ब को पकड़ कर अपने लिंग को मेरी योनि में रगड़ने लगा।
मुझसे रहा नहीं जा रहा था सो मैंने कहा- अब देर मत करो, कितना तड़फाते हो तुम!!
यह सुनते ही उसने लिंग को छेद पर टिका कर एक धक्का दिया… लिंग मेरी योनि के भीतर समा गया।
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मनोकामना पूरी हो गई, एक सुकून का अहसास हुआ, पर अभी पूरा सुकून मिलना बाकी था।
उसने मुझे धक्के लगाने शुरू कर दिए और मेरे अन्दर चिनगारियाँ आग का रूप लेने लगीं।
मैं बार-बार आइने में देख रही थी, कैसे उसका लिंग मेरी योनि के अंतिम छोर को छू कर वापस बाहर आ रहा है।
कुछ देर मैं इतनी ज्यादा गर्म हो गई कि मैं अमर को अपने हाथों और पैरों से दबोच लेना चाहती थी। मेरी योनि पहले से कही ज्यादा गीली हो गई थी जिसकी वजह से उसका लिंग ‘चिपचिप’ करने लगा था।
मैंने अमर से कहा- मुझसे अब ऐसे और नहीं खड़ा रहा जाता.. मुझे बिस्तर पर ले चलो।
उसने अपना लिंग बाहर निकाला और बिस्तर पर लेट गया और मुझे अपने ऊपर आने को कहा।
मैंने अपने दोनों टाँगें अमर के दोनों तरफ फैला कर अमर के लिंग के ऊपर योनि को रख दिया और अमर के ऊपर लेट गई।
अमर ने अपनी कमर को हिला कर लिंग से मेरी योनि को टटोलना शुरू किया। योनि की छेद को पाते ही अमर ने अपनी कमर उठाई,
तो लिंग योनि में घुस गया और मैंने भी अपनी कमर पर जोर दिया तो लिंग मेरी योनि के अंतिम छोर तक घुसता चला गया।
मैंने अब अपनी कमर को ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया और अमर मेरे कूल्हों को पकड़ कर मुझे मदद करने लगा।
मैंने अपने होंठ अमर के होंठों से लगा दिए और अमर ने चूमना और चूसना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद मैंने अपने स्तनों को बारी-बारी से उसके मुँह से लगा कर अपने दूध चुसवाने लगी।
मैं अपनी पूरी ताकत से धक्के लगा रही थी और अमर भी नीचे से अपनी कमर को नचाने लगा था।
अमर को बहुत मजा आ रहा था और यह सोच कर मैं भी खुश थी कि अमर को मैं पूरी तरह से खुश कर रही हूँ।
मैं बुरी तरह से पसीने में भीग गई थी और मैं हाँफने लगी थी।
तब उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरे पीछे आ गया और मेरे कूल्हों को ऊपर करने को कहा।
उसने लिंग मेरी योनि में घुसा कर धक्के देना शुरू कर दिया, साथ ही मेरे स्तनों से खेलने लगा।
कुछ देर बाद मुझे उसने सीधा लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रख मेरी टाँगें फैला कर लिंग अन्दर घुसा कर.. मेरे ऊपर लेट गया और धक्के देने लगा।
हमें सम्भोग करते हुए करीब आधा घंटा हो चुका था और अब हम चरम सीमा से दूर नहीं थे।
मैं भी अब चाहती थी कि मैं अमर के साथ ही झड़ू, क्योंकि उस वक़्त जो मजा आता है वो सबसे अलग और सबसे ज्यादा होता है।
मैंने अमर के गले में हाथ डाल कर उसको पकड़ लिया और टांगों को ज्यादा से ज्यादा उठा कर उसके कूल्हों पर चढ़ा दिया ताकि उसे अपना लिंग मेरी योनि में घुसाने को ज्यादा से ज्यादा जगह मिल सके।
उसने भी मुझे कन्धों से पकड़ा और एक जोर का धक्का देकर सुपारे को मेरी बच्चेदानी में रगड़ने लगा।
मैं मस्ती में सिसकने लगी और मैंने अपनी पकड़ और कड़ा कर दिया।
अमर मेरी हालत देख समझ गया कि मैं झड़ने वाली हूँ, उसने पूरी ताकत के साथ मुझे पकड़ा और मेरी आँखों में देखा।
मैंने भी उससे अपनी नजरें मिलाईं।
अब वो पूरी ताकत लगा कर तेज़ी से धक्के लगाने लगा।
उसके चेहरे से लग रहा था जैसे वो मुझे संतुष्ट करने के लिए कोई जंग लड़ रहा है।
मैंने भी उसे पूरा मजा देने के लिए अपनी योनि को सिकोड़ लिया और उसके लिंग को योनि से कस लिया।
हम दोनों तेज़ी से सांस लेने लगे, तेज धक्कों के साथ मेरी ‘आहें’ तेज़ होती चली गईं।
मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा और मैं झड़ गई…
मैं पूरी मस्ती में कमर उछालने लगी और अमर भी इसी बीच जोर-जोर के धक्कों के साथ झड़ गया।
हम दोनों ने एक-दूसरे को कस कर पकड़ लिया और हाँफने लगे।
अमर का सुपारा मेरी बच्चेदानी से चिपक गया और उसका वीर्य मेरी बच्चेदानी को नहलाने लगा।
कुछ देर तक हम ऐसे ही एक-दूसरे से चिपक कर सुस्ताते रहे।
जैसे-जैसे अमर का लिंग का आकार कम होता गया, मेरी योनि से अमर का रस रिस-रिस कर बहने लगा और बिस्तर के चादर पर फ़ैल गया।
कुछ देर में अमर मेरे ऊपर से हट कर मेरे बगल में लेट गया और कहा- तुम्हें मजा आया?
मैंने जवाब दिया- क्या कभी ऐसा हुआ कि मुझे मजा नहीं आया हो… तुम्हारे साथ?
उसने मेरे गालों पर हाथ फेरते हुआ कहा- तुम में अजीब सी कशिश है.. जितना तुम्हें प्यार करना चाहता6 हूँ उतना ही कम लगता है।
यह कहते हुए उसने मुझे अपनी बांहों में भर कर दुबारा चूमना शुरू कर दिया।
अभी हमारे बदन का पसीना सूखा भी नहीं था और मेरी योनि अमर के वीर्य से गीली होकर चिपचिपी हो गई थी।
उसके चूमने और बदन को सहलाने से मेरे अन्दर वासना की आग फिर से भड़क उठी और मैं गर्म हो कर जोश में आने लगी।
मैंने उसके लिंग को हाथों में भर कर जोर से मसलना शुरू कर दिया।
कुछ ही देर में वो दुबारा सख्त होने लगा।
वो मेरे स्तनों से खेलने में मगन हो गया और मैं उसके लिंग को दुबारा सम्भोग के लिए तैयार करने लगी।