Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:47

फिर रमेश ने तेल की बॉटल मुझे दे कहा, "लो लंड पर और अपनी

चूत पर तेल लगाओ फिर इससे पेल्वाकर जन्नत का मज़ा लो." मैने

उठकर उसके लंड पर हाथ से तेल लगाया और उंगली से अपनी चूत पर

लगाकर फिर चित्त लेट गयी.

उसने गांद के नीचे तकिया लगाकर चूत को उभारा और दोनो टाँगो के

बीच बैठ सूपदे को छेद पर लगा दोनो चूचियों को पकड़ ज़ोर से

पेला. मैने एक आहह के साथ सूपदे को चूत मे दबा लिया. ऐसा लगा

की चूत फॅट गयी हो.

वह धक्के मारकर पेलने लगा और मैं मस्ती मे आआहह सस्स्स्सिईइ

करने लगी.

समाप्त

दा एंड

The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:48

friends next storie holi ne meri kholi

The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:49

होली ने मेरी खोली पार्ट--1

हेल्लो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए होली के अवसर पर होली की एक मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ

इस होली पर मम्मी पापा बाहर जा रहे थे. रीलेशन मैं एक डेथ हो गयी थी. माँ ने पड़ोस की आंटी को मेरा ध्यान रखने को कह दिया था. आंटी ने कहा था कि आप लोग जाइए सुनीता का हम लोग ध्यान रखेंगे. माँ ने हमे समझाया और फिर चली गयी. पड़ोस की आंटी की एक लड़की थी मीना जो मेरी उमर की ही थी. वह मेरी बहुत फास्ट फ्रेंड थी. वह बोली कि जब तक तुम्हारे मम्मी पापा नही आते तुम खाना हमारे घर ही खाना.

मैं खाना और समय वही बिताती पर रात मैं सोती मीना के साथ अपने घर पर ही थी. दो दिन हो गये और होली आ गयी. सुबह होते ही मीना ने अपने घर चलने को कहा तू मैं रंग से बचने की लिए बहाने करने लगी. मीना बोली,

"मैं जानती हूँ तुम रंग से बचना चाहती हो. नही आई तू मैं खुद आ जाओंगी."

"कसम से आओंगी."

मैं जान गयी कि वह रंग लगाए बगैर नही मानेगी. मैने सोचा कि घर पर ही रहूंगी जब आएगी तू चली जाऊंगी. होली के लिए पुराने कपड़े निकल लिए थे. पुराने कपड़े छ्होटे थे. स्कर्ट और शर्ट पहन लिया. शर्ट छ्होटी थी इसलिए बहुत कसी थी जिससे दोनो चूचियों मुश्किल से सम्हल रही थी. बाहर होली का शोरगुल मच रहा था. चड्डी भी पुरानी थी और कसी थी. कसे कपड़े पहनने मैं जो मज़ा आ रहा था वह कभी शलवार समीज़ मैं नही आया. चलने मैं कसे कपड़े चूचियों और चूत से रगड़ कर मज़ा दे रहे थे इसलिए मैं इधर उधर चल फिर रही थी. मैं अभी मीना के घर जाने को सोच ही रही थी की मीना दरवाज़े को ज़ोर ज़ोर से खटखटते हुवे चिल्लाई,

"अरी सुनीता की बच्ची जल्दी से दरवाज़ा खोल." मैने जल्दी से दरवाज़ा खोला तू मीना के पीछे ही उसका बड़ा भाई रमेश भी अंदर घुस आया. उसकी हथेली मैं रंग था. अंदर आते ही रमेश ने कहा,

"आज होली है बचोगी नही, लगाउन्गा ज़रूर." मीना बचने के लिए मेरे पीछे आई और बोली,

"देखो भयया यह ठीक नही है." मेरी समझ मैं नही आया कि क्या करूँ. रमेश मेरे आगे आया तो ऐसा लगा कि मीना के बजाय मेरे ही ना लगा दे. मैं डरी तो वह हथेली रगड़ता बोला,

"बिना लगाए जाउन्गा नही मीना."

"हाए राम भयया तुमको लड़कियों से रंग खेलते शरम नही आती."

"होली है बुरा ना मानो. लड़कियों को लगाने मैं ही तो मज़ा है. तुम हटो आगे से सुनीता नही तू तुमको भी लगा दूँगा." मैं डर से किनारे थी. तभी रमेश ने मीना को बाँहों मैं भरा और हथेली को उसके गाल पर लगा रंग लगाने लगा. मीना पूरी तरह रमेश की पकड़ मैं थी. वह बोली,

"हाए भयया अब छ्चोड़ो ना."


Post Reply