फिर शन्नो ने बोला "बेटा चेतन के कमरे के टाय्लेट की सीट टूटी हुई है ना... तो अब चेतन का दोस्त आया हुआ
है तो अच्छा नहीं लगता कि तू अपना कमरा बंद करके बैठी रहें. और यहाँ मेरे कमरे के टाय्लेट
इस्तेमाल करने में उसको झिझक होगी तो वो तेरा कमरे का यूज़ करलेगा."
ललिता ने भी उसमें हामी भरी. फिर ललिता ने कहा "मम्मी कल और परसो में इंस्टीट्यूट नही जाना चाहती
क्यूंकी जो भी वो पढ़ा रहे है वो मुझे वैसे ही आता है और फिर सॅटर्डे सनडे है तो चार दिन की छुट्टी मिल जाएगी." शन्नो ने कहा "ठीक है जैसे तुम्हारी मर्ज़ी." ललिता ने शन्नो के गाल को चूमा और अपने कमरे में नहाने चली गयी.
उसने अलमारी में से पीली ब्रा और काली चड्डी निकाली और उपर पहनने के लिए एक लाल टी-शर्ट और
पिंक कॅप्री ट्राउज़र निकाला. उसकी टी-शर्ट थोड़ी सी टाइट थी और कॅप्री ट्राउज़र उसके घुटनो तक था.
वो अपने सारे कपड़े लेके बाथरूम में घुस गयी और नहाने का पानी गरम करके शवर चला दिया.
उसने अपने कपड़े उतारके हॅंडल पे टाँग दिए और शवर के नीचे खड़ी हो गयी.
कुच्छ ही सेकेंड में उसका बदन गीला हो चुका था...फिर ललिता ने हरे रंग ला सिंतोल साबुन उठाया
उसको हल्का सा गीला करके अपने पेट पर मलने लगी... पेट से ले जाकर वो अपनी जाँघो पे ले गयी...
अपनी उल्टी टाँग टाइल्स के सहारे रखके उसपे साबुन लगाने लगी फिर वैसे ही सीधी टाँग पे करा....
फिर उसने साबुन को और गीला करा और मम्मो पे उसको फेरने लगी.... फिर पीठ पे लेजाकर अपनी गान्ड पे ले गयी...
जब उसके बदन पे पूरा साबुन का झाग फैल गया तो उसने अपने काले बालो पे शॅमपू लगा लिया...
उसके हाथो में इतना झाग था कि अब वो अपने मम्मो पे हाथ फेरने लगी...
उसका बदन हद से ज़्यादा चिकना हो गया था... एक अजीब मज़ा सा आ रहा था उसको...
फिर उसने दरवाज़ा पे खटखट सुनी और चंदर की आवाज़ सुनके वो सेहेम गयी.... ललिता ने धीमे से बोला "मैं हूँ...नहा रही हूँ" चंदर ये सुनके वहाँ से चला गया अपने दिमाग़ में ललिता को नहाते हुए सोचकर...
ललिता ने फिर जल्दी से अपने हर अंग को पानी से सॉफ करा और टवल से पौछा और अपने बालो को सुखाने लगी.
फिर उसने टवल को अपने सिर पे बाँध दिया और कपड़े पहेन्ने लगी. सबसे पहले उसने पैंटी पहनी जिसने
उसकी नरम गान्ड पूरी तरह से धक दिया और फिर उसने उसके उपर अपनी कॅप्री पहेन ली. फिर उसने अपने ब्रा के '
हुक लगाए और अपनी लाल टी-शर्ट पहेन ली. वो अपने गंदे कपड़े उठाने लगी मगर फिर उसने जानके
वही छोड़ दिए ताकि चंदर उन्हे देख पाए. जब ललिता बाहर निकली तो 2 मिनट के अंदर ही चेतन टाय्लेट चला गया.
जब वो वापस आया तो उसने फ़ौरन ललिता को बोला कि अपने गंदे कपड़े धोने के लिए डाले हुए हैं.
ललिता ने मायूस होके वो कपड़े हटा दिए और अपने कमरे में बैठके गाने सुनने लगी.
रात में खाना लगा कर शन्नो ने सबको बुलाया खाने के लिए. खाने के वक़्त सबने बड़ी बातें
की हस्सी मज़ाक किया. चंदर भी थोड़ा खुल गया और खुश होके शन्नो और ललिता से बात करी.
बहुत रात में अचानक सोते वक़्त चंदर की आँख खुली. उसने देखा कि चेतन गहरी नींद में सो रहा है.
उसने पानी पीने के लिए साइड में हाथ बढ़ाया मगर बॉटल में पानी ख़तम हो चुका था.
उसका गला इतना सुख गया था कि वो अब और पानी के बगैर नहीं रह सकता था. वो उठ कर गया कमरे
के बाहर बड़ी सम्भल के हाथ में मोबाइल लेके. किसी तरह वो किचन में पहुचा और पूरा एक
ग्लास भरके पानी पीया. अब उसको लगा कि अब लगे हाथ टाय्लेट भी चले जाता हूँ. वो पहले चेतन की मम्मी
के रूम की तरफ्त बढ़ा क्यूंकी वो ज़्यादा नज़दीक था किचन से मगर उसको लगा कि आंटी ने शायद बंद
कर रखा होगा कमरा. फिर वो ललिता के रूम की तरफ बड़ा. उसने आहिस्ते से दरवाज़ा खोला. पूरे रूम में
अंधेरा था और उसे कुच्छ नहीं दिखाई दे रहा था. उसने टाय्लेट की लाइट ऑन करी और जैसे उसने दरवाज़ा
खोला तो उसकीनज़र ललिता के चेहरे पे पड़ी. सोते हुए वो जैसे एक परी सी लग रही थी जैसे चाँद उसके खूबसूरत
चेहरे पे रोशनी डाल रहा हो. उसने 1 मिनट ललिता को देखा फिर वो टाय्लेट चले गया. फिर चंदर किसी तरह
चेतन के कमरे तक पहुचा और जाके बिस्तर पे लेट गया. उसका ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ ललिता के उपर रह गया था. काफ़ी समय के बाद उसकी आँखें बंद हो गयी और वो गहरी नींद में सो गया.
सुबह के 10 बज रहे थे शन्नो जल्दी से चेतन के कमरे में गयी और उसको उठाके कहा "बेटा बुआ की तबीयत
खराब है काफ़ी और उन्हे हॉस्पिटल लेके गये है... मैने खाना बनाके रखा हुआ है तुम लोग खा लेना.
मैं कोशिश करूँगी शाम तक आ जाउ". चेतन बिस्तर से उठा और जाके घर का दरवाज़ा बंद कर दिया.
उधर दूसरी ओर भोपाल में नारायण अपने कॅबिन में बैठा हुआ था. उसने अपने सेक्रेटरी सुधीर को
अपने कमरे में बुला के बोला कि अब्दुल को भेज दो मेरे पास.
सुधीर ने कहा "सर आपने ही तो अब्दुल को सुबह भेज दिया था स्कूल के काम से. आप शायद भूल गये होंगे".
नारायण ने बोला "हां यार मैं तो ये भूल ही गया. खैर छोड़ो". सुधीर ने पूछा "सर कुच्छ काम था
तो बताइए. हम कर देते हैं". नारायण ने कहा "बात ऐसी है कि आज मैं अपना खाना लाना भूल गया हूँ.
लेकिन अब मैं कॅंटीन का ही खाना खा लूँगा". सुधीर ने झट से बोला "सर क्या बात कर रहे है आप.
मुझे भी अभी अपने घर जाना था. मैं एक फाइल भूल गया घर पे तो आप
कहें मैं आपका टिफिन भी ले आउन्गा". नारायण ने खुशी से बात मान ली सुधीर की.
लेकिन असली बात ये थी कि सुधीर को फिर से डॉली को देखना था फाइल तो बस एक बहाना था.
कुच्छ दोपेहर के 12 बजे तक सुधीर स्कूल से निकला खाना लाने के लिए. वो जब वहाँ पहुचा तो उसने एंटर्रेन्स गेट खोला और घर के दरवाज़े की तरफ बढ़ गया. बेल बजाते वक़्त उसके गंदे दिमाग़ में आया कि एक
बारी घर की खिड़कियो में से ताका झाकी करता हूँ. उसको पता था कि डॉली का कमरा कौनसा था.
तो वो दबे पाओ घर के पीछे के हिस्से में गया और डॉली की कमरे की खिड़की की तरफ पहुचा.
खिड़की एक नीले पर्दे से धकि हुई थी मगर किस्मत से वो अकेला परदा पूरी खिड़की को धक नहीं
पा रहा था और इसी वजह से सीधे हाथ की तरफ से सुधीर कमरे में झाक पा रहा था....
कुच्छ देर तक डॉली का कुच्छ आता पता नहीं था. सुधीर ने सोचा कुच्छ देर और रुक कर देखता हूँ क्यूंकी
सब्र का फल मीठा होता है. फिर सुधीर की नज़र कमरे के दरवाज़े पर पड़ी जिसमे से डॉली चलकर आ रही थी.
उसके काले घने बाल खुले हुए थे और लॅट उसके चेहरे पे गिर रही थी. सुधीर की नज़र डॉली के
स्तनो से हटकर उसकी लंबी चिकनी टाँगो की तरफ बड़ी..... उसने नीचे सिर्फ़ एक छ्होटी रंग बियरॅंगी शॉर्ट्स पहेन
रखी थी...... उपर भी उसने गुलाबी रंग का पतला सा टॉप पहेन रखा था जिसमें से सॉफ झलक रहा
था कि उसने ब्रा पहेन रखी है...... डॉली एक कुर्सी पे बैठी और अपनी मस्त टाँगो को बेड पे आराम से टिका दिया....
उसकी हाथ में एक छोटी सी काँच की शीशी थी और उसके साथ एक रूई का डिब्बा....
ध्यान से देखने के बाद पता चला कि वो नेल पोलिश हटाने के लिए था.... डॉली झुक के रूई को अपने
टाँगो के नाख़ूने पे लगाने लगी.... काफ़ी देर राक यही सिलसला चलता रहा... अब सुधीर को कुच्छ
और देखने का मन कर रहा था.... फिर डॉली कुर्सी से उठी और टाय्लेट की तरफ गयी है और उसके कुच्छ
सेकेंड्स बाद बाहर आ गयी. अब वो अपनी अलमारी की तरफ बड़ी और उसमें कुच्छ ढूँढ रही थी.
खिड़की के बिल्कुल सामने ही डॉली पीठ करके खड़ी थी. सुधीर की नज़र डॉली की टाइट गान्ड पे गढ़ी हुई.
सुधीर उसको देख कर अपने लंड से खेलने लग गया. जब भी डॉली झुकती तो उसकी गंद और बड़ी हो जाती
और साथ ही सुधीर का लंड भी फरफराने लगता... डॉली ने कुच्छ कपड़े निकाले और फिर सफेद रंग
की ब्रा और पैंटी निकाली अलमारी में से. सुधीर को अंदाज़ा लग गया कि अब नहाने जा रही है.
सुधीर का मन अब प्रार्थना में था कि डॉली उसके सामने ही कपड़े उतारके नंगी होकर नहाने जायें...
नज़ाने क्यूँ डॉली एक ही जगह खड़ी होकर कुच्छ सोचे जा रही थी और सुधीर की वहाँ खड़े खड़े
जान जा रही थी... फिर वो मौका आया जिसका सुधीर को बेहद इंतजार था डॉली ने दोनो हाथो से अपना
पिंक टॉप पकड़ा और उसे उतारने लगी. टॉप को वो उपर तक खीच कर ले गयी मगर उसके बालो में
जाके अटक रहा था और जब वो उसे निकालने की कोशिश कर रही तो उसके मम्मे जोकि काली ब्रा अंदर च्छूपे
हुए हिलने लगे. सुधीर का मन कर रहा था कि अभी हाथ बढ़ा कर डॉली की ब्रा के हुक्स को खोल डाले....
जैसे ही डॉली ने टॉप उतारा उसने अपने हाथ बढ़ाया ब्रा के हुक्स खोलने के लिए मगर फोन की आवाज़ आगाई.
डॉली ने मोबाइल उठाया और बोली "जी पापा.... क्या हुआ.. मैं नहाने जा रही थी" सुधीर को इतना गुस्सा
आया इस समय. डॉली ने जब फोन रखा तो उसने वापस अपना पिंक टॉप पहेन लिया और कमरे से चली गयी.
सुधीर को समझ आ गया था कि नारायण ने डॉली को कॉल करके बोला होगा कि सुधीर खाना लेने आएगा.
सुधीर उदास होता हुआ घर के दरवाज़े की तरफ बड़ा और घंटी बजाई. डॉली ने दरवाज़ा खोला और कहा
"नमस्ते सुधीर जी कैसे है आप"? सुधीर ने कहा "बस ठीक है... 3 दिन के बाद डिन्नर है स्कूल में क्या सोचा है आपने उसके बारे में... क्या आप आएँगी"?? डॉली ने कहा जी ज़रूर आउन्गि.... फिर डॉली ने खाना दिया
सुधीर को और दरवाज़ा बंद कर दिया.
क्रमशः……………………….
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
dhanyawad bhai aapka meri kahaani me swaagat hai