छोटी सी भूल compleet

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raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:37

“साली मुझे मारेगी, मैं आज तुम दौनो की यही कबर खोद दूँगा” ---- विवेक चील्ला कर बोला.

ये कह कर उसने पिस्टल मेरी कनपटी पर रख दी और बोला, “अब मैं तुम्हे बताता हूँ कि गोली कैसे चलाई जाती है”

मैने भगवान को याद किया और मन ही मन में प्रेयर की, “हे भगवान अगर अब मुझे मेरे पापो की सज़ा मिल चुकी हो तो मुझे माफ़ कर दो, मेरे चिंटू का ख्याल रखना”

पर अगले ही पल मैने महसूस किया की मेरी कनपटी पर पिस्टल नही है.

मैने देखा कि बिल्लू विवेक के उपर है और पिस्टल मुझ से थोड़ी दूर ज़मीन पर पड़ी है. शायद बिल्लू ने विवेक पर पीछे से हमला किया था, और उसके हाथ से पिस्टल दूर जा गिरी थी.

मैं ज़मीन पर रेंगते हुवे पिस्टल के पास पहुँच गयी.

मैने पिस्टल उठाई ही थी कि विवेक किसी तरह से वाहा से भाग खड़ा हुवा. मैने तुरंत उसकी ओर फाइयर किया और वो गिर गया. इस बार गोली उसकी पीठ पर लगी थी.

बिल्लू ज़मीन पर पड़ा था, वो अपनी राइट लेग को पकड़ कर दर्द से कराह रहा था.

मैं हिम्मत करके खड़ी हुई और उसकी तरफ पिस्टल तान दी.

“ऐसे नही ऋतु, ऐसे मत मारो मुझे, रूको मैं थोड़ा करीब आ जाता हूँ, तब आराम से निशाना लगा कर मारना, मैं तुम्हारे कदमो में मरना चाहता हूँ” ---- वो दर्द से कराहते हुवे बोला.

“बंद करो ये बकवास बिल्लू, मेरे करीब मत आना, मुझे अब तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है, बड़ी चालाकी से बर्बाद किया है तुमने मुझे, आज मैं तुम्हे जींदा नही छ्चोड़ूँगी” ----- मैने चील्ला कर कहा.

“बिल्कुल ऋतु, मैं भी यही चाहता हूँ कि अगर मेरी मौत हो तो तुम्हारे हाथो से हो, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ” --- वो मेरी तरफ रेंगते हुवे बोला.

“रुक जाओ बिल्लू वरना मैं गोली चला दूँगी” ---- मैने फिर से उसे चील्ला कर कहा.

पर वो नही रुका और ज़मीन पर रेंगते हुवे मेरी तरफ बढ़ने लगा. मैने उसके उपर फाइयर किया पर गोली ना जाने कहा लगी, क्योंकि वो रुका नही और मेरे कदमो के बिल्कुल पास आ कर लेट गया.

“कहा था ना ऐसे मत मारो, मरने वाले की आखरी खावहिश का ध्यान रखा जाता है, लो अब मारो मुझे, गोली सीधी सर में मारो, मैं तुम्हारे कदमो में ही मरना चाहता हूँ” ---- बिल्लू ने मेरे कदमो पर हाथ रख कर कहा.

मैने कहा, “बंद करो ये नाटक बिल्लू, कुछ भी हो जाए, आज मैं तुम्हारी बातो के जाल में नही फसूंगी”

बिल्लू ने मेरे पाँव पर सर रख दिया और बोला, “नाटक नही है ये, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ, मैं मानता हूँ. मुंबई मैं बस तुम्हारे लिए ही आया हूँ. पीछले हफ्ते से रोज छुप छुप कर तुम्हे देख रहा हूँ. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नही हो रही थी मेरी. पर आज मैने जब तुम्हे विवेक की गाड़ी में बैठते देखा तो मैने तुम्हारा पीछा किया. मुझे डर था कि विवेक ज़रूर कोई ना कोई घिनोनी हरकत करेगा. पर रास्ते में मेरा एक छोटा सा आक्सिडेंट हो गया, जिसके कारण यहा पहुँचने में देर हो गयी. विवेक की गाड़ी मुझ से काफ़ी आगे निकल कर आँख से ओझल हो चुकी थी. मैं हर तरफ तुम्हे ढूंड रहा था. जब इस जंगल की तरफ आया तो देखा कि बाहर सड़क पर विवेक की गाड़ी खड़ी थी, उसी से मुझे लगा कि वो तुम्हे ज़रूर यहा लाया है”

“इस सब से तुम क्या साबित करना चाहते हो बिल्लू, कुछ भी करलो पर मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगी, तुमने मेरे साथ बहुत गंदा खेल खेला है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.

raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:38

“जानता हूँ ऋतु, और मैं भी खुद को शायद कभी माफ़ ना करूँ. अपनी भूल का अहसाश मुझे तब हुवा जब मुझे उस दिन गोली लगने के बाद होश आया. मुझे यकीन नही था कि मैं बचूँगा. पर वीना आंटी ने मुझे बचा लिया. मैं बदले की आग में अपने होश खो बैठा था ऋतु, मुझे माफ़ कर दो” --- बिल्लू गिड़गिदाते हुवे बोला.

“मैं क्या तुम्हे माफ़ करूँगी बिल्लू, मैं तो खुद को ही माफ़ नही कर पा रही हूँ, तुम्हारी तो बात ही दूर है” --- ये कहते हुवे मेरी आँखो में आन्षू उतर आए.

मैने पिस्टल बिल्लू के सर पर रखने की बजाए अपनी कनपटी पर लगा दी, और कहा, “मुझे नही पता कि तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया और ना मुझे अब कुछ जान-ना है, मैं इतना ज़रूर जानती हूँ कि जितनी ग़लती तुम्हारी थी, उतनी ही मेरी थी, इश्लीए मैं तुम्हे मारने की बजाए अब खुद ही मर रही हूँ”

“नही ऋतु, मारना है तो मुझे मारो, तुम्हारी कोई ग़लती नही है, तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुवा वो मेरे कारण हुवा है, मुझे गोली मारो ऋतु…. प्लीज़” ---- बिल्लू मेरे पाँव पकड़ कर बोला.

मैने फाइयर कर दिया. और वक्त जैसे थम गया.

पर किशमत को मेरी मौत मंज़ूर नही थी. बंदूक की गोलिया ख़तम हो चुकी थी.

मैं वाहा से हट गयी और लड़खड़ाते हुवे वाहा से चल पड़ी. अंधेरा घिर आया था और जंगल में तरह तरह की भयानक आवाज़े गूँज रही थी.

मुझे कुछ नही पता था कि सड़क किस तरफ है, मैं बस बिना सोचे समझे चल पड़ी.

हर इंशान की जींदगी में एक ऐसा पल आता है, जब वो अपने अंदर झाँक कर देखता है कि वो वाकाई में क्या है. मैं उस वक्त इशी अवस्था में थी. पर मुझे उस वक्त अपने अंदर जंगल से भी भयानक अंधेरा नज़र आ रहा था.

जो कुछ विवेक ने मेरे साथ किया था वो मेरी बची कूची आत्मा को मार गया था. बाकी सब कुछ तो बिल्लू पहले ही ख़तम कर चुका था.

“ऋतु रूको ये जंगल बहुत बड़ा है, कहा जा रही हो, तुम भटक जाओगी. मैं भी आ रहा हूँ” ----- बिल्लू ने मेरे पीछे से चील्ला कर कहा.

मैने पीछे मूड कर देखा, वो लड़खदाता हुवा मेरे पीछे आ रहा था. मैने एक पठार उठाया और उसकी और फेंक कर मारा. मुझे यकीन नही हुवा, वो सीधा उसके सर पर जाकर लगा और वो गिर गया.

जब मुझे होश आया था तो मैने देखा था कि विवेक मुझे किस रास्ते से लाया था. उसी रास्ते पर मैं आगे बढ़ रही थी, बिना किसी डर के, बिना किसी ख़ौफ़ के.डरता वो है जिसके पास खोने को कुछ बचा हो. मेरे पास खोने को कुछ नही था.

चलते चलते मुझे दूर से सड़क दिखाई दी.

मैने सड़क पर विवेक की कार खड़ी देखी. कार से थोड़ी दूर एक बाइक खड़ी थी. शायद वो बिल्लू की थी. विवेक की कार में मेरा पर्स था और मोबाइल था. मैने एक बड़ा सा पथर उठाया और ज़ोर से कार की खिड़की में मारा. खिड़की का शीसा थोड़ा चटक गया. मैने एक और पथर मारा और वो इतना टूट गया कि मैं अंदर हाथ डाल कर अपना पर्स निकाल सकूँ.

मैने पर्स निकाला और शुनशान सड़क पर चल पड़ी. दूर दूर तक कोई नही था. मेरे सर पर खून लगा था, चेहरे पर मिट्टी थी और सारे कपड़े धूल से भरे थे. कुछ नही पता था कि किस तरफ जाउ, मैं बस चले जा रही थी.

कोई 5 मिनूट बाद मुझे एक कार आती दीखाई दी. मैने सोचा कोई टॅक्सी होगी तो ही हाथ दूँगी.

पर वो टॅक्सी नही थी, इश्लीए मैने हाथ नही दिया. और वो कार आगे बढ़ गयी.

raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:38

मुझ से थोड़ा आगे जा कर कार अचानक रुक गयी और पीछे की तरफ मेरी और आने लगी.

“अरे आप इस शुनशान सड़क पर अकेली क्या कर रही है, ओह्ह आपके सर पर तो खून लगा है, सब ठीक तो है” ------- कार में बैठी लेडी ने पूछा.

वो लेडी अकेली थी और खुद ही कार ड्राइव कर रही थी.

मैने कहा, “आप प्लीज़ मुझे ऐसी जगह छ्चोड़ दीजिए जहाँ से मैं टॅक्सी ले कर कोलाबा जा सकूँ”

“अरे हां हां आओ बैठो, ये सब क्या हुवा है आपके साथ” ? ------ उस लेडी ने पूछा.

“कुछ नही… जींदगी ने एक भद्दा मज़ाक किया है, आप प्लीज़ मुझे जल्दी कही छ्चोड़ दो” ---- मैने रोते हुवे कहा.

“पोलीस को फोन करूँ क्या” ? --- उस लेडी ने पूछा.

“अब पोलीस आकर क्या करेगी जो होना था सो हो गया” ----- मैने उस लेडी से कहा.

“क्या तुम्हारे साथ रेप हुवा है” ? अगर ऐसा है तो हमें तुरंत पोलीस स्टेशन चलना चाहिए” ---- उस लेडी ने कहा.

“नही रेप से भी ज़्यादा भयानक. आप मुझ से कुछ मत पूछो, मैं कुछ भी कहने की हालत में नही हूँ” ---- मैने उस लेडी को कहा.

“ठीक है….ठीक है, आप आराम से बैठो मैं अभी आपको किसी टॅक्सी तक पहुँचा देती हूँ” ------ वो लेडी बोली.

उसने मुझे एक टॅक्सी वाले के पास उतार दिया. टॅक्सी वाला भी मुझे ऐसी हालत में देख कर हैरानी में बोला, “मेडम ये क्या हुवा है, आपके सर पर तो खून लगा है”

मैने कहा, “कुछ नही मैं गिर गयी थी, मुझे जल्दी कोलाबा ले चलो”

“कोलाबा में कहा जाना है मेडम” ---- उसने पूछा.

मैने कहा, “होटेल ताज के पास”

जैसे ही मैं अपने फ्लॅट के बाहर पहुँची वाहा सिधार्थ खड़ा था.

वो मुझे देख कर बोला, “अरे ये क्या हुवा है तुम्हे ऋतु, ये चेहरे पर मिट्टी और ये सर पर खून, कैसे हुवा ये सब, मैं कब से फोन लगा रहा हूँ, फोन भी नही उठाया तुमने”

मैं इतनी भावुक हो उठी कि सिधार्थ के गले लग कर फूट फूट कर रोने लगी

“अरे क्या हुवा ऋतु, बताओ तो सही” ---- सिधार्थ ने मेरे सर पर हाथ रख कर पूछा

पर मैं कुछ भी बताने की हालत में नही थी

अछा चलो पहले तुम्हारे फ्लॅट में चलते है, आराम से बैठ कर बात करेंगे” ---- सिधार्थ ने मेरे सर पर हाथ फिराते हुवे कहा.

सिधार्थ मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे फ्लॅट पर ले आया.

“मैं कब से तुम्हारा फोन ट्राइ कर रहा हूँ, आज तुम्हे कुछ सर्प्राइज़ देना था, लेकिन खुद तुम्हे ऐसी हालत में देख कर सर्प्राइज़ हो गया, बताओ ये सब कैसे हुवा”

“सिधार्थ मैं तुम्हे कुछ नही बता सकती, ये एक लंबी कहानी है” ---- मैने कहा

“ठीक है ऋतु तुम चिंता मत करो बाद में आराम से बात करेंगे. पर तुम्हारे सर पर चोट लगी है, मैं किसी डॉक्टर को ले कर आता हूँ” ---- सिधार्थ ने कहा.

“नही सिधार्थ में खुद पट्टी बाँध लूँगी, डॉक्टर की बीवी रह कर बहुत कुछ सीखा है, मेरे पास सब समान है, तुम अभी जाओ मैं अभी अकेली रहना चाहती हूँ” ---- मैने सिधार्थ की ओर देख कर कहा

“ऋतु क्या मेरा तुम पर इतना भी हक नही है कि मैं सुख दुख में तुम्हारे साथ रह सकूँ. देख रहा हूँ कि जब से मिली हो, मुझ से दूर दूर रहने की कोशिश करती हो. क्या तुम वही ऋतु हो जो कभी मुझ से शादी करने को तैयार थी” ---- सिधार्थ ने पूछा

“नही सिधार्थ में वो ऋतु नही हूँ, वो ऋतु मर चुकी है, तुम प्लीज़ अभी जाओ, बाद में बात करेंगे” ---- मैने नज़रे झुका कर कहा. ऐसे कड़वे बोल मैं उसकी और देख कर नही बोल सकती थी.

“ठीक है मैं जा रहा हूँ, पर याद रखना मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ” ------- वो जाते हुवे बोला.

मैने उशके जाने के बाद दरवाजा बंद कर लिया और दरवाजे पर खड़े खड़े ही आंशु बहाने लगी.

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