छोटी सी भूल compleet

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raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:48

ये कह कर संजय अंदर आ गया और पूरे घर को देखने लगा ओर बोला, “अछा बड़ा घर है, काफ़ी तरक्की कर ली है तुमने. तुम ज़रूर खुस होगी ये सब पा कर, है ना. पर तुमने मुझे बर्बाद कर दिया”

“संजय प्लीज़ अब फिर से वही बाते मत करो, मैं खुद बहुत परेशान हूँ. रूको मैं कुछ पीने को लाती हूँ” ---- मैने कहा और कह कर किचन में कोल्ड ड्रिंक लेने चली गयी.

“मुझे पता चला है कि वो बिल्लू यही है, क्या अभी भी तुम उशके साथ अयाशी कर रही हो” ---- संजय ने पूछा.

“संजय प्लीज़ ऐसा मत कहो, मैं अपनी ग़लती की सज़ा भुगत चुकी हूँ. अब बार बार मुझे जॅलील मत करो” --- मैने कहा.

“मैं उस हरामी को जींदा नही छ्चोड़ूँगा” --- संजय ने गुस्से में कहा.

“संजय अगर बुरा ना मानो तो एक बात पूच्छू” ---- मैने कहा.

“वैसे तुम्हे कुछ पूछने का अधिकार नही है, पर फिर भी पूछो क्या पूछना है” ---- संजय ने कहा.

मैने पूछा, “ कविता कहा है संजय”

“देखो उशे मैने निकाल दिया था. बड़ी बचल्लन लड़की थी वो. शी वाज़ पार्ट ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन रॅकेट” --- संजय ने कहा

“पर तुमने एक बार कहा था कि वो काम छ्चोड़ कर चली गयी” ----- मैने पूछा.

“हां तो… इतनी गंदी बात तुम्हे कैसे बताता. आज बात दूसरी है, तुम खुद इतना गिर चुकी हो, तुम्हे ये गंदा सच बताया जा सकता है” ---- संजय ने कहा.

समझ नही आ रहा था कि संजय को क्या जवाब दूं. वैसे वो सच ही कह रहा था. दुख बस इस बात का था की एक पाप की सज़ा मुझे बार बार दी जा रही थी.

“ऋतु मेरा एक काम करो” --- संजय ने कहा

“क्या बताओ संजय, मुझे ख़ुसी होगी तुम्हारे लिए कुछ भी करने में” ---- मैने कहा.

“क्या तुम्हे पता है वो बिल्लू कहा मिलेगा” ----- संजय ने कहा.

“संजय छ्चोड़ो उस, अब उस से तुम्हे क्या लेना देना. मैं भी उष से बात नही करती हूँ. मुझे नही पता वो कहा रहता है” ----- मैने कहा

“ऋतु तुम्हे सब पता है, मुझे बताना नही चाहती.वो तुम्हारा पक्का यार है….है ना” --- संजय ने कहा.

“संजय ऐसी बात नही है प्लीज़,….. मैने अपनी ग़लती खुद स्वीकार की थी और मैं अब उस से बिल्कुल कोई भी बात नही करती हूँ. हाँ वो कभी कभी मेरे घर के सामने अपनी टॅक्सी ले कर खड़ा होता है. पर मेरा यकीन करो मेरा उस से अब कोई संबंध नही है.” ---- मैने कहा.

“अभी है क्या वो बाहर देखो तो” ------ संजय ने पूछा.

बड़ी अजीब बात थी. जैसे ही मैने खिड़की खोल कर देखा मुझे बिल्लू की टॅक्सी दीखाई दी. वो टॅक्सी में बैठा था. मैने देखा की वो कुछ लीख रहा था. मुझे यकीन था कि आज सुबह की झाड़ के बाद वो यहा नही आएगा पर वो फिर से टॅक्सी ले कर मेरे घर के बाहर खड़ा था.

मैने देखा की वो गेट खोल कर बाहर आ गया.

मैने संजय से कहा, “हाँ उसकी टॅक्सी खड़ी है”

मैने फिर से झाँक कर देखा तो पाया कि वो अपने हाथ में काग़ज़ का एक टुकड़ा ले कर मेरे फ्लॅट की तरफ आ रहा है.

“क्या कर रहा है वो” ---- संजय ने पूछा

“संजय वो यही घर की तरफ आ रहा है” ----- मैने कहा.

“देखा मैं कहता था ना वो तेरा पक्का यार है, अभी भी तुम्हारा चक्कर चल रहा है, मुझे झूठ बोल रही थी कि मैं उस से बात नही करती” ----- संजय ने कहा.

“संजय ये सच है कि मैं उस से बात नही करती. वही मेरे पीछे पड़ा है. अक्सर मेरे घर में एक चिट डाल जाता है. अभी भी वही डालने आ रहा है शायद. मेरा यकीन करो मेरा उस से अब कोई संबंध नही है” ---- मैने कहा

“आने दो उसे आज मैं उसकी यही लाश बिछा दूँगा, तुम ऐसा करो उसे अंदर बुला लो” संजय ने कहा

ये कह कर जाने कहा से संजय ने एक बंदूक निकाल ली

“क्या ?? ये क्या कह रहे हो, नही मुझ से ये नही होगा. उशे यहा क्यों बुलाना चाहते हो” ------ मैने पूछा.

“उस से कुछ पुराना हिसाब चुकता करना है ऋतु, तुम्हे नही लगता कि जिश्ने हमारे घर को बर्बाद किया उशे सज़ा मिलनी चाहिए” ---- संजय ने कहा.

“संजय इन सब बातो से क्या हाँसिल होगा मैं अब उस से बात नही करती हूँ. मुझे उस से सख़्त नफ़रत है. मैं उशे यहा नही बुला सकती” ---- मैने कहा.

“तुम्हे बुलाना पड़ेगा ऋतु. अगर तुम वाकाई में

उस से नफ़रत करती हो तो उशे यहा बुलाओ मैं उशे तुम्हारी आँखो के आगे मारूँगा. और तुम किशी बात की चिंता मत करो. तुम्हारे उपर कोई बात नही आएगी. उष्की लाश मैं ठीकने लगा दूँगा… अब उशे बुलाओ….मेरी खातिर बुलाओ”

मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ.

मैने पूछा, “संजय क्या ये सब करना ज़रूरी है”

“हाँ ज़रूरी है, अगर वो बच गया तो उमर भर परेशान करेगा. मैं किचन में छुप रहा हूँ. उसे अंदर बुला लेना. फिर मैं संभाल लूँगा…ओके”

संजय किचन में चला गया. उशके जाते ही मुझे अपने डोर के नीचे से एक चिट सरक्ति हुई दीखाई दी.

मैने तुरंत दरवाजा खोला और उष्की ओर देखा.

एक पल को वक्त जैसे ठहर गया

मैने उष्की ओर देखा और हमारी आँखे एक पल को टकराई. उशके चेहरे पर एक दर्द भरी हल्की सी मुश्कान उभर आई. फिर मैने ध्यान से देखा तो पाया कि उष्की आँखे नम थी. मैं उशे ऐसी हालत में देख कर कुछ नही कह पाई.

मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ. क्या मैं उशे मरने के लिए अंदर बुला लूँ. उसने मेरे लिए साइकल वाले को मारा था. उसने उस दिन जंगल में टाइम पर आ कर मेरा रेप होने से भी बचाया था.

मन में यही विचार आया की बिल्लू को यहा से जाने दो ऋतु. ये खून ख़राबा ठीक नही है. मुझे वैसे भी अब बिल्लू से क्या मतलब.

बिल्लू की आँखो के आंशु मुझ पर कुछ अजीब सा असर कर रहे थे. पता नही वो क्यों रो रहा था.


raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:49

वो मूड कर बिना कुछ कहे चला गया और मैने दरवाजा बंद कर लिया.

तभी संजय किचन से बाहर आ गया.

संजय ने मेरे गाल पर एक ज़ोर से थप्पड़ रसीद कर दिया. थप्पड़ इतनी ज़ोर का था कि मैं लड़खड़ा कर गिर गयी

“ये क्या किया हराम्जादी , तूने उशे अंदर क्यों नही बुलाया, दिखा दिया ना तूने अपना रंग. क्या लगता है वो तेरा जो तू हमेशा मुझे धोका देती है. आज उसका काम तमाम, करने का अछा मोका था” ---- संजय ने चिल्ला कर कहा.

“संजय मुझे उस से कोई मतलब नही है, मैं उसे यहा नही घुस्सने देना चाहती थी” ---- मैने कहा

संजय ने मेरे गाल पर एक और थप्पड़ मारा और कहा, “झूठ बोलती है साली. मारना तो उशे है ही, यहा नही तो कहीं और मरेगा”

ये कह कर संजय दरवाजा खोल कर बाहर चला गया.

कुछ देर तक मैं यू ही पड़ी रही.

कोई 15 मिनूट बाद मैने बाहर देखा तो पाया कि बिल्लू की टॅक्सी अभी भी बाहर सड़क पर खड़ी थी. पर बिल्लू कहीं नही दीख रहा था.

मैने देखा कि बिल्लू की चिट अभी भी दरवाजे के पास पड़ी थी. मैने उशे फाड़ने के लिए हाथ में उठा लिया. पर तभी मेरी आँखो के सामने बिल्लू की वो दर्द भरी मुश्कान आ गयी. मैं चाह कर भी वो लेटर फाड़ नही पाई. मैने लेटर बिना पढ़े अपनी डाइयरी में रख दिया.

डेट : 22-03-09

7:00 पीएम

अभी अभी दीप्ति का फोन आया था. उसने कुछ ऐसा बताया है कि उस की बात सुन कर दिल दहल गया है और आँखे नम हो गयीं हैं

“ अरे ऋतु न्यूज़ देख रही हो कि नही”

मैने पूछा, “क्यों क्या बात है” ?.

“अरे देखो तो सही तुम्हारा फरीदाबाद वाला घर लाइव आ रहा है. तुम्हारे घर के पीछे कविता की लाश मिली है. लाश कंकाल बन चुकी है. बहुत ही खौफनाक नज़ारा है” --- दीप्ति ने कहा

“ओह्ह माइ गॉड, कविता की लाश मेरे घर के पीछे” ---- मैने कहा

“हां, एक बात और सुनो, मनीष को संजय के क्लिनिक से एक पेन ड्राइव मिली है. उस में कविता के रेप की पूरी वीडियो है, वो वीडियो भी मनीष ने मीडीया को दे दी है. उसे भी धुन्दला करके दीखाया जा रहा. चारो लोगो के चेहरे सॉफ दीख रहे हैं. बिल्लू ठीक कह रहा था ऋतु, कविता का बहुत ब्रूटल रेप हुवा था”

“क्या ? ये तुम्हे कब पता चला” --- मैने पूछा

“पेन ड्राइव तो कोई एक हफ्ते पहले मिल गयी थी. मनीष ने मुझे बता भी दिया था पर आज कविता की लाश मिली है”

“ओह्ह गॉड तुम मुझे आज बता रही हो” ---- मैने कहा

मैं भाग कर अपनी खिड़की में गयी और बाहर देखा

बाहर बिल्लू की टॅक्सी खड़ी थी पर उस में कोई नही था

“यार मुझे लगा तुम्हारा इस सब में कोई इंटेरेस्ट नही है” दीप्ति ने कहा

“और वो जो सुनीता ने बताया था वो क्या था दीप्ति” ---- मैने पूछा.

“वो झूठ बोल रही थी ऋतु, दर-असल सुनीता ये अफवाह संजय के कहने पर उड़ा रही थी. मैने तो बताया भी था तुम्हे कि मनीष को खुद उसकी बात पर यकीन नहीं है” ---- दीप्ति ने कहा.

“ओह्ह गॉड,….. दीप्ति, मैने बिल्लू को ना जाने क्या-क्या बोल दिया” --- मैने कहा

तब अचानक मुझे धयान आया कि पीछले 2 हफ्ते से बिल्लू मुझे कहीं नही दीखा. ना ही 2 हफ्ते से उष्की कोई चिट घर में मिली. हां उष्की टॅक्सी अभी भी वहीं की वहीं खड़ी है.

मैने दीप्ति का फोन काट दिया

मैने टीवी ऑन कर के देखा तो सभी चॅनेल्स पर कविता का कंकाल दीखाया जा रहा था. सच में बहुत खौफनाक नज़ारा था. न्यूज़ में बताया जा रहा था कि फोरेन्सिक रिपोर्ट के मुताबिक कविता को जींदा ही दफ़ना दिया गया था.

raj..
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Re: छोटी सी भूल

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 22:49

दीप्ति का फिर से फोन आ गया

“मनीष ने मीडीया को इस सब में इन्वॉल्व करके अछा किया ना ऋतु. अब मुजरिमो को सज़ा मिल सकेगी. अब ये केस मीडीया संभाल लेगी. मनीष बता रहा था कि संजय के साथ साथ बाकी के तीन लोगो को गिरफ्तार कर लिया गया है. पर यार मीडीया वाले कविता के भाई के बारे में पूछ रहें हैं. क्या बिल्लू अभी भी वहीं है” ---- डिप्टी ने कहा

“मुझे नही पता दीप्ति, पीछले 2 हफ्ते से मैने उशे नही देखा. हां उष्की टॅक्सी यहा ज़रूर खड़ी है” --- मैने कहा

मेरा दिल बहुत भारी हो रहा था. मैं बड़ी मुश्किल से दीप्ति से बात कर पा रही थी.

आखरी बार मैने बिल्लू को 8-03-09 को देखा था. उष्की वो दर्द भरी हल्की सी मुश्कान और आँखो की नमी मुझे अभी तक याद है. उस दिन बिल्लू के जाने के बाद संजय भी उशके पीछे पीछे गया था.

कहीं संजय ने तो उशके साथ कुछ ऐसा वैसा नही कर दिया. वो कह तो रहा था कि, “मारना तो उशे है ही, यहा नही तो कहीं और मरेगा”

तभी मुझे याद आया की मैने उस दिन उष्की चिट अपनी डाइयरी में रखी थी.

मैने वो चिट निकाली और उशे पढ़ने लगी

उसमें लीखा था :-------

“ मेरी प्यारी ऋतु.

तुम मानो या ना मानो. मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ. मुझे खुद भी नही पता की ऐसा क्यों है. हाँ बस एक अहसाश है क़ि तुम्हारे बिना जी नही सकता. तुम मेरी जींदगी हो ऋतु. मैं बस तुम्हे पाने की एक कोशिश कर रहा था. क्या करूँ अपने दिल के हाथो मजबूर था. पर मैं ये बात भूल रहा था कि तुम मुझे कभी माफ़ नही कर पावगी. करोगी भी क्यों. रेप मेरी दीदी का हुवा था,तुम्हारी इस में क्या ग़लती थी. और हां ऋतु मैने पहले ज़रूर कहानी बनाई है, बहुत झूठ बोले है. इतने झूठ बोले है कि आज तुम्हारा विश्वास खो चुका हूँ. पर मैने अपनी दीदी के रेप की कहानी नही बनाई. हां मेरे पास कोई सबूत नही है. तभी तो बिना सबूत के कुछ कर नही पाया. और दीदी का अब तक कुछ पता नहीं कि कहा है, जो आकर खुद सच बता सकें. तो तुम कुछ भी सोच सकती हो. आज लगता है कि मैं हार गया. कोशिश बहुत कर रहा था तुम्हे अपना प्यार दीखाने की पर….. चलो छ्चोड़ो.. और कुछ नही लीखा जा रहा. दिल भारी हो रहा है और आँखे भर आई है. वैसे पता नही तुम पढ़ोगी भी या नही. बट आइ विल लव योउ फॉरेवर. कभी मेरी याद आए तो यही मत सोचना कि मैने तुम्हे बर्बाद किया था. हो सके तो एक बार ये भी सोचना की मैने तुम्हे प्यार भी किया था. मैं झूठा इंशान सही पर मेरा प्यार सॅचा है.…… बिल्लू”

ये लेटर पढ़ते पढ़ते मेरी आँखो से आंशु टपक रहे थे और लेटर की लीखावट को ढुंदला कर रहे थे.

मुझे ये समझ नही आ रहा था कि आख़िर बिल्लू के दिल में प्यार का फूल कैसे खिल सकता है. पर जो भी हो उष्का प्यार अब मुझे मेरी आत्मा तक महसूष हो रहा है.

डेट : 29-03-09

आज एक हफ़्ता हो गया कविता की लाश को मिले पर बिल्लू का कुछ आता पता नही. ऐसा कैसे हो गया कि वो अपनी सिस्टर की लाश तक देखने नहीं आया.

पूरा हफ़्ता मेरी नज़रे बिल्लू को धुन्दति रही. रोज सुबह ऑफीस जाते वक्त और शाम को ऑफीस से आते वक्त मैं बिल्लू की टॅक्सी को देखती हूँ. वो 8-03-09 से वैसी की वैसी एक ही जगह खड़ी है.

शाम को घर आते ही दरवाजे के आस पास देखती हूँ कि कहीं बिल्लू ने कोई चिट तो नही छ्चोड़ी पर मुझे कुछ नही मिलता.

एक बार वो अपनी दीदी का अंतिम शंसकार कर देता तो अछा होता. मेरे मन से एक बोझ हट जाता. आज फिर से बहुत दुख हो रहा है कि मैने बिना सोचे समझे उस दिन मंदिर के बाहर पता नहीं बिल्लू को उसकी दीदी के बारे में क्या क्या बोल दिया.

आज सुबह मंदिर जाते वक्त मेरी आँखे बिल्लू को ढूंड रही थी. पता नहीं बिल्लू से क्या रिस्ता बन गया है मेरा. वो होता है तो मैं चाहती हूँ कि वो दफ़ा हो जाए. वो नही होता तो कुछ ना कुछ ऐसे हालात हो जाते है कि मेरी नज़रे बस उसे ही धुन्दति हैं

हर पल यही लगता है कि अभी कहीं से बिल्लू आएगा और कहेगा “ऋतु रूको तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है”

जब भी अपने घर में घुसती हूँ तो मन यही सोचता है कि मुझे अभी एक चिट मिलेगी जीश में लीखा होगा, “मेरी प्यारी ऋतु” और मैं पूरा लेटर प्यार से पढ़ूंगी.

पर ऐसा कुछ नही हो रहा. पता नही बिल्लू कहा चला गया.

मंदिर से आते वक्त मैने उष्की टॅक्सी में झाँक कर देखा तो मुझे एक डाइयरी और गिफ्ट पॅक दीखा

मैने एक पथर उठाया और गाड़ी का शीसा तोड़ दिया और डाइयरी और वो गिफ्ट पॅक बाहर निकाल लिया.

मैं अपने घर के अंदर आ गयी और बेडरूम में बैठ कर उसकी डाइयरी पढ़ने लगी.

उसमें लीखा था :-------

जबसे होश आया है मैं बस ऋतु के लिए ही तड़प रहा हूँ. पता नही किश जनम का रिस्ता है मेरा उस से. ज़रूर कोई जन्मो का रिस्ता है वरना ये प्यार होना मुश्किल था.

मैं तो ऋतु के ज़रिए संजय को बर्बाद करने गया था पर अपना दिल खो बैठा. अछा ही हुवा. जबसे ऋतु से प्यार हुवा है, तब से ये अहसाश हुवा है कि बदला लेने से कुछ हाँसिल नही होता. संजय को बर्बाद करने के चक्कर में मैने ऋतु जैसी एक अछी इंशान की जींदगी बर्बाद कर दी. मुझे क्या मिला ? कुछ नही. ना मेरी दीदी को इंसाफ़ मिला, ना मेरी दीदी का कुछ पता चला.

अब एक कोशिश करता हूँ अपने प्यार को पाने की. मैने ऋतु की आँखो में अपने लिए प्यार देखा है. मुझे उम्मीद है कि मैं एक ना एक दिन अपने प्यार को पा लूँगा. बाकी इस किशमत का कुछ पता नहीं. मैं बस एक उम्मीद ही रख सकता हूँ.

डेट : 12-02-09

आज टॅक्सी का इंटेज़ाम हो गया है. कल से चलाना शुरू कर दूँगा. पता नही कुछ बन पाउन्गा या नही पर एक शुरूवात तो कर ही दी है. मेरे और ऋतु के बीच में बहुत सारी रुकावटे है.

सबसे पहली रुकावट है, ऋतु के मन में मेरे लिए नफ़रत. उस नफ़रत को दूर करना होगा. कोशिश कर रहा हूँ. देखते हैं क्या होता है

सबसे बड़ी रुकावट है मेरा स्टेटस. मेरे पास कुछ नही है ऋतु को देने को. मुझे बहुत मेहनत करनी होगी. अगर पति का फ़र्ज़ निभाना है तो मुझे कुछ बन-ना पड़ेगा. चलो टॅक्सी से स्टार्ट करता हूँ. जल्दी ही मुंबई में पाँव जमाने के बाद कुछ बड़ा काम भी करूँगा.

डेट : 13-02-09

आज ऋतु के घर में एक लेटर छ्चोड़ दिया है. मैने उसमें ऋतु को लीख दिया है कि मैं उस से शादी करना चाहता हूँ. देखते है वो इस बात को कैसे लेती है.

सोच रहा हूँ आइटी फील्ड में कुछ सीख लूँ. मैने देल्ही में इस बारे में ध्यान ही नही दिया. वरना आज आइटी फील्ड में काम कर रहा होता. कंप्यूटर के बेसिक्स तो मुझे पता है, बस हाइ टेक स्किल सीखने की ज़रूरत है. रोज 1-2 घंटा निकाल कर ये काम भी कर सकता हूँ. वक्त कम है. मुझे जल्द से जल्द ऋतु के लायक बन-ना है. वो अस्सीसस्तंट मॅनेजर है और मैं टॅक्सी ड्राइवर वो भला कैसे मुझ से शादी के बारे में सोचेगी. फिलहाल तो बस प्यार का ही सहारा है. शायद उशे मेरी आँखो में प्यार नज़र आ जाए. पर फिर भी मुझे जल्द से जल्द कुछ बन-ना होगा. बात ऋतु की ही नही है. हमारा एक बचा भी है, चिंटू. मैं चिंटू को बहुत प्यार दूँगा. सोच रहा हूँ कि, बस चिंटू को ही रखेंगे. और बच्चो की क्या ज़रूरत है. हम दोनो के लिए एक बच्चा काफ़ी है.

डेट : 8-03-09

कुछ बनता नज़र नही आ रहा. ऋतु के मन में मेरे लिए नफ़रत ज्यों की त्यों है. आज मंदिर के बाहर ऋतु ने कुछ ऐसा कह दिया की दिल टूट कर बीखर गया है. एक एक टुकड़ा कहा जा कर गिरा है, पता नही.

पर मैं ऋतु से बिल्कुल नाराज़ नहीं हूँ. अपनी जींदगी से भला कोई नाराज़ होता है. उशे मुझे कुछ भी कहने का हक़ है. वो मेरी जान जो है. पर लगता है मुझे अपनी जींदगी से दूर रहना पड़ेगा. मैं ऋतु को और ज़्यादा परेशान नही कर सकता. ऐसे प्यार का क्या फ़ायडा जो किशी को परेशान करे.

वैसे भी इतनी जल्दी मैं कहा कुछ बन पाता. और फिर ये स्टेटस और क्लास का चक्कर तो अभी बाकी है. मैं जानबूझ कर हारी हुई बाजी खेल रहा था. कल देल्ही जाने की टिकेट बुक करा ली है. दुखी मन से मुझे यहा से अब जाना ही होगा.

वैसे भी ना ऋतु से बात होती है. बात करने जाता हूँ तो वो परेशान होती है. अब लेटर डालना भी उसने बंद करवा रखा है. मैं कैसे उष्का दिल जीतूँगा. मुझे यहा से चले जाना चाहिए.

मेरे पापो की यही सज़ा है कि मैं अपने प्यार के लिए तड़प तड़प कर मरूं……..

……………

बिल्लू की डाइयरी पढ़ते पढ़ते मेरी आँखे नम हो गयी. उष्का हर एक शब्द मानो मेरे दिल तक पहुँच रहा था और पूछ रहा था, “ऋतु डू यू लव मी”

मैने डाइयरी को माथे से लगा लिया. उस में वो प्यार था, जो मैने अब तक अपनी जींदगी में नही देखा था.

तभी मेरी नज़र गिफ्ट पॅक पर गयी और मैं उशे खोलने लगी.

उसमें एक लाल रंग की सारी थी. जैसे किशी दुल्हन के लिए हो. डाइयरी में उशके बारे में कुछ नही लीखा था. पर मैं जानती हूँ कि वो ये सारी मेरे लिए ही लाया होगा. मैने उस सारी को गले से लगा लिया.

मैने भगवान से पूछा, “हे भगवान अगर आपको मुझे और बिल्लू को प्यार के बंधन में बाँधना था तो हमें इतने लंबे रास्ते से क्यों घुमाया. और अब जब ये प्यार का फूल खिल गया है तो अब बिल्लू कहा है” ???

ये कुछ ऐसे सवाल थे जिनका मेरे पास कोई जवाब नही है और शायद ना ही कभी होंगे.

डेट : 22-06-09

आज पूरे 3 महीने हो गये कविता की लाश को मिले. उसका अंतिम संस्कार भी हो चुका है, पर बिल्लू का कुछ नही पता. पीछले हफ्ते मैं खुद कविता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए देल्ही गयी थी. बहुत वेट किया बिल्लू का पर आख़िर में थक हार कर कविता का अंतिम संस्कार करना ही पड़ा.

फरीदाबाद जा कर मैं जैल में संजय से भी मिलकर आई हूँ.

मैने पूछा, “बिल्लू कहा है संजय”

“उशके हज़ार टुकड़े करके मैने मुंबई के नालों में बहा दिए है, जाओ जा कर चुन लो, कुतिया कहीं की..हहहे..” ----- संजय ने हंसते हुवे कहा.

इशके अलावा मैं संजय से कुछ और बात नही कर पाई. मैने पाप किया था तो मुझे अहसाश था कि मैने ग़लत किया पर संजय को अपनी ग़लती का कोई अफ़सोश नही है. यही शायद हमारे समाज की सबसे बड़ी कमज़ोरी है. आदमी हज़ार पाप करके भी शीना चोडा करके घूम सकता है, पर औरत की एक ग़लती भी उस पर बहुत भारी पड़ती है और सारी उमर उशे नज़रे झुका कर चलना पड़ता है.

आज मैं उम्मीद खो चुकी हूँ.

एक प्यार का फूल जो बस खीलने ही लगा था, मुरझा गया. बिल्लू के साथ मेरी जो एक हंसिन जींदगी हो सकती थी, होने से पहले ही खो गयी. मुझे बिल्लू को ये कहने का मोका भी नही मिला कि “आइ लव यू टू”.

जब वो शामने था तो मैं हर पल उशे कोश्ति रहती थी. आज जब वो पास नही है तो मैं उशके लिए तरस रहीं हूँ. काश वो कहीं से आ जाए तो मैं अपना दिल उशके आगे चीर कर रख दूँगी और कहूँगी की देखो तुम्हारा प्यार कहा तक पहुँच गया है. मैं उशे कहूँगी क़ि तुम वाकाई में मेरे शरीर से मेरी आत्मा तक पहुँच गये हो. पर अब क्या हो सकता है. ये बाते अब बस सोची जा सकती हैं. जिशे ये सब कहना था, वो तो ना जाने कहाँ है. इस दिनिया में है भी या नही, ये भी नही पता.

पता नही इस सब के लिए कौन ज़िम्मेदार है. बहुत ही अजीब खेल खेला है इस जींदगी ने मेरे साथ.

“प्यार क्या है मुझे नही पता. मुझे बस इतना पता है कि मेरी नज़रे उष इंशान को ढूंड रहीं है, जीशणे मुझे बर्बाद किया था. काश वो कहीं से फिर से आ जाए और मैं दिल खोल कर उशे कह सकूँ की मैने तुम्हे माफ़ कर दिया, प्लीज़ अब मेरे पास रहो और उस प्यार के अहसाश में मुझे डुबो दो जीशमें तुम खुद डूबे हुवे हो”

लव ईज़ वेरी स्पेशल फीलिंग. इट हॅपंड टू मी इन ए वेरी स्ट्रेंज सिचुयेशन. बट आइ वेलकम दिस गिफ्ट ऑफ गॉड इन माइ लाइफ. आइ विल चेरिश दिस लव थ्रू आउट माइ लाइफ.

अब शायद बिल्लू इस दुनिया में नही है, पर क्या हुवा उसका प्यार हमेशा मेरे साथ रहेगा.

हे भगवान बिल्लू को माफ़ करना, फॉर आइ हॅव फर्गिवन हिम. ही ईज़ नाउ माइ लव. वो जहाँ भी हो उष्का ख्याल रखना.

आज ये डाइयरी यहीं बंद कर रहीं हूँ. अब कुछ और लीखने की हिम्मत नहीं है और वैसे भी कुछ और लीखने को बचा भी नही है.

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डेट : 9-08-09

आज ये डाइयरी पढ़ी. पढ़ कर मेरी आँखे नम हो गयी हैं.

ऋतु ने मुझ से ये डाइयरी छुपा कर रखी थी. आज से मैं इसमें लीखना शुरू कर रहा हूँ.

“जतिन उशे मत पढ़ना तुम्हे दुख होगा और मैं अपने पति को दुख नही देना चाहती, वैसे तुम्हे सब कुछ पता ही है” ----- ऋतु ने मुझ से कहा

मैं समझ सकता हूँ कि वो क्यों नही चाहती थी कि मैं ये डाइयरी ना पढ़ुँ.

शादी से पहले ऋतु ने कहा था, “जतिन मुझे एक मोका देना. तुम्हारे लिए मैं कुछ भी करूँगी. मुझे नही पता कि मैं एक पत्नी का फ़र्ज़ निभा पाउन्गि या नही पर जब बात तुम्हारी है तो मैं कुछ भी कर जाउन्गि. आइ लव यू”

जब से ऋतु से शादी हुई है जींदगी खिल उठी है. हमारी शादी को लगबघ एक महीना हो गया है. पर हम अभी नॉर्मल हज़्बेंड वाइफ की तरह करीब नही आ पाए हैं. ऋतु पुरानी बाते नही भुला पाई है. हां मुझ से प्यार बहुत करती है

अभी थोड़ी देर पहले बाथरूम से नहा कर निकली तो शरमाते हुवे भाग कर बेडरूम में घुस्स गयी. वो हमेशा कनसस रहती है कि मैं उशे देख रहा हूँ.

पर जब वो बाथरूम से निकली थी तो मैने खुद अपनी नज़रे घुमा ली थी. मैं उशे पूरा टाइम दे रहा हूँ. मुझे उष्का शरीर पाने की कोई जल्दी नहीं है.

वैसे भी ये जिस्म की बात नही है बल्कि उशके दिल तक पहुँचना है, लंबी दूरी तैय करने में वक्त तो लगता है. ये जगजीत सींग की ग़ज़ल बिल्कुल मेरी सिचुयेशन पर बनी लगती है.

जो भी हो ऋतु के साथ एक छत के नीचे रहने का बहुत प्यारा अहसाश है. शी ईज़ वेरी ब्यूटिफुल विमन. लेट्स सी हाउ और मॅरेज लाइफ मूव्स फॉर्वर्ड. लोकिंग फ़ॉर्वाड़ फॉर ए दे वेन आइ विल हॅव हर इन माइ आर्म्स आंड आइ विल से टू हर वाइल लुकिंग इंटो हर एएस “ऋतु यू आर दा मोस्ट ब्यूटिफुल विमन आंड आइ आम प्राउड टू हॅव यू इन माइ लाइफ”

लेकिन अभी वो शरमाती इतना है कि दूर दूर रहती है. देखते है कब तक मेरे प्यार से दूर रहेगी.

क्रमशः......................


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