raj sharma stories
ख्वाब था शायद--1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और कहानी लेकर हाजिर हूँ
"छ्चोड़ क्यूँ नही देते ये सब?" वो प्यार से मेरे बाल सहलाती हुई बोली
"क्या छ्चोड़ दूँ?" मैं उसके गले को चूमता हुआ अपनी कमर को और तेज़ी से हिलाता हुआ बोला
"तुम जानते हो मैं किस बारे में बात कर रही हूँ"
वो हमेशा यही करती थी. अच्छी तरह से जानती थी के सेक्स के वक़्त मुझे उसका ये टॉपिक छेड़ना बिल्कुल पसंद नही था पर फिर भी.
"क्या यार तू भी ....." मैं उसके उपेर से हटकर साइड में लेट गया "साला हर बार एक ही मगज मारी. और कोई वक़्त मिलता नही है तेरे को? जब मैं तेरे उपेर चढ़ता हूँ तभी तुझे ध्यान आता है मुझे उपदेश सुनाना?"
"हां" उसने चादर अपने उपेर खींच कर अपने नंगे शरीर को ढका "क्यूंकी यही एक ऐसा वक़्त होता है जब तुम मेरी सुनते हो, बाकी टाइम तो कोई तुम्हारे सामने ज़रा सी आवाज़ भी निकले तो तुम उस पर बंदूक तान देते हो"
"तेरे पे कब बंदूक तानी मैने?" मैने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ करवट ली "साली जो दिल में आता है मेरे को बोलती है, कभी पलटके कुच्छ कहा मैं तुझे? साला आवाज़ ऊँची नही करता मैं तेरे आगे और तू बंदूक निकालने की बात कर रही है"
"मेरे बोलने का कोई फ़ायदा भी तो हो मगर ...."
"हां फायडा है ना" मैं उसके बालों में हाथ फिराया "पहले हर कोई कहता था के भाई शेर ख़ान सिर्फ़ नाम का ही शेर नही, जिगर का भी शेर है. अब हर कोई कहता है के शेर ख़ान सिर्फ़ नाम का शेर है, एक औरत से डरता है"
मेरे बात सुनकर वो ऐसे चहकी जैसे कोई छ्होटी बच्ची.
"हां पता है मुझे, कल वो फ़िरोज़ बता रहा था. मुझे तो बड़ा मज़ा आया सुनकर"
उसका यही बचपाना था जिसका मैं दीवाना था. 5 साल पहले जब उसको पहली बार मेरे कमरे में लाया गया था तो वो उस सिर्फ़ एक डरी सहमी अपनी मजबूरी की मारी परेशन सी लड़की थी और मैं शराब के नशे में झूम रहा था.
"चल कपड़े उतार" मैने बिस्तर पर बैठे बैठे कहा.
उसके बाल बिखरे हुए थे जिनको उसने समेट कर अपने चेहरे से हटाया और मेरे आगे हाथ जोड़े.
"मुझे जाने दीजिए"
मैं गुस्से में उसकी तरफ पलटा और तब पहली बार मैने उसका चेहरा देखा था. बड़ी बड़ी आँखें, हल्की सावली रंगत, लंबे बाल, तीखे नैन नक्श. मुझे याद भी नही था के अपनी पूरी ज़िंदगी में मैं कितनी औरतों के साथ सो चुका था. मामूली रंडी से लेकर बॉलीवुड की खूबसूरत आक्ट्रेस, सूपर मॉडेल्स, सबको भोग चुका था मैं पर जाने क्यूँ जब पहली बार उसके चेहरे पर नज़र पड़ी फिर हटी नही.
"नाम क्या है तेरा?"
"नीलम" वो हाथ जोड़े किसी सूखे पत्ते की तरह काँप रही थी "ज़बरदस्ती उठाकर लाए मुझे"
उसके बाप ने नया धंधा शुरू करने के लिए हमसे पैसे उधर लिए थे. धंधा तो चला नही उल्टा बुड्ढ़ा साला अपनी बीवी बेटी पर कर्ज़ा छ्चोड़कर ट्रेन के आगे जा कूदा. मेरे आदमी पैसा ना मिलने पर उसे उठा लाए. इरादा तो उसे कोठे पर ले जाकर बेचने का था पर उस रात के बाद वो सीधे मेरे दिल में आ बैठी.
मैने कभी कोई ज़बरदस्ती नही की उसके साथ. इज़्ज़त से उसे वापिस घर भिजवाया, नया बिज़्नेस शुरू कराया, उसका और उसकी माँ का ध्यान रखने के लिए अपने कुच्छ आदमी लगाए और बदले में उससे कुच्छ नही माँगा. पर धीरे धीरे कब वो मेरी ज़िंदगी में आई, मुझे खुद भी एहसास नही हुआ.
"मैं ये इसलिए नही कर रही के मैं तुम्हारा एहसान चुकाना चाहती हूँ. बल्कि इसलिए के मैं दिल-ओ-जान से तुम्हें चाहती हूँ" मेरे साथ पहली बार सोने से पहले उसने कहा था.
मैं उसकी हर माँग, हर बात पूरी करता था. सिवाय एक के. के मैं धंधा छ्चोड़ कर एक शरिफ्फ आदमी की ज़िंदगी गुज़ारू. अब कोई एक शेर से कहे के वो शाका-हारी हो जाए तो ऐसा कभी हो सकता है भला?
"मुझे डर लगता है" वो अक्सर रोकर मुझसे कहा करती थी. "सारी दुनिया में दुश्मन हैं तुम्हारे. किसी ने कुच्छ कर दिया तो?"
"चिंता ना कर" मैं हमेशा हॅस्कर उसकी बात ताल देता था "शेर ख़ान को हाथ लगाए, वो साला अभी पैदा नही हुआ"
जब वो देखती के मैं डरने वालों में से नही हूँ तो एमोशनल अत्याचार वाला तरीका अपनाती.
"मेरे लिए इतना भी नही कर सकते क्या?" उसके वही एक घिसा पिटा डाइलॉग होता था
"तेरे लिए इतना किया मैने. तू मेरे लिए एक इतना सा काम नही कर सकती के मेरे धंधे को बर्दाश्त कर ले?" मेरे वही घिसा पिटा जवाब होता था.
Hindi Sex Stories By raj sharma
Re: Hindi Sex Stories By raj sharma
दिल ही दिल में मैं जानता था के उसका यूँ डरना वाजिब भी था. 5 बार मुझपर हमला उस वक़्त हुआ जबके मैं उसके साथ था. हर बार लाश हमला करने वाले की ही गिरी पर शायद कहीं ये बात मैं भी जानता था के बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी.
मैने एक नज़र उसपर डाली तो मेरी बाहों में सिमटी, मेरी छाती पर सर रखे वो कबकि नींद के आगोश में जा चुकी थी. घड़ी पर नज़र डाली तो रात के 2 बाज रहे थे.
ये फ्लॅट मैने ही उसे लेकर दिया था. इंसानी सहूलियत की हर चीज़ इस फ्लॅट में मौजूद थी. उसने जिस चीज़ की ख्वाहिश की, जिस चीज़ पर अंगुली रखी मैने वो लाकर उसे दे दी.
"सब होता है मेरे पास, एक सिवाय तुम्हारे" वो अक्सर शिकायत किया करती थी.
उसकी माँ को मरे 2 साल हो गये थे और उसके बाद से वो इस फ्लॅट में अकेली ही रहती थी. उसका दूर का कोई एक मूहबोला भाई भी था जिससे मैं कभी मिला नही था. मेरा तो वैसे ही कोई ठिकाना नही होता था. कभी शहर से बाहर तो कभी देश से बाहर. सच कहूँ मेरा आधे से ज़्यादा वक़्त धंधे के चक्कर में "बाहर" ही गुज़रता था पर जब भी शहर में होता, तो उसके यहाँ ही रुकता था.
"एहसान करते हो ना बड़ा मुझपे. और बाकी रातें कौन होती है बिस्तर पर तुम्हारे साथ?" अक्सर वो चिड़कर कहा करती थी.
मैने धीरे से उसका सर अपनी छाती से हटाया और नीचे तकिये पर रख दिया. वो बिना कोई कपड़े पहने बेख़बर सो रही थी. चादर खींच कर मैने उसके जिस्म को ढका और बिस्तर से उठा.
मुझे सिगरेट की तलब उठ रही थी पर बेडरूम में सिगरेट या शराब पीने की मुझे सख़्त मनाही थी. यूँ तो मेरे साथ रह रहकर वो भी थोड़ी बहुत पीने लगी थी पर जाने क्यूँ बेडरूम में सिगरेट या शराब ले जाना उसे बिल्कुल पसंद नही था.
बेडरूम से बाहर निकल कर मैने एक सिगरेट जलाई और हल्के कदमों से किचन की तरफ चला. मैं उस रात ही दुबई से इंडिया वापिस आया था और एरपोर्ट से सीधा उसके पास आ गया था. जैसा की हमेशा होता था, वो मेरे इंतेज़ार में बैठी थी और जिस तरह के कपड़े पहेन कर बैठी थी उस हालत में उसको देख कर किसी नमार्द का भी खड़ा हो जाता.
ऐसा ही कुच्छ मेरे साथ भी हुआ था.
मेरे कमरे में घुसते ही हम एक दूसरे से भीड़ पड़े और फिर ऐसे ही सो गये. नतीजतन मुझे उस वक़्त बहुत तेज़ भूख लगी थी.
फ्रिड्ज खोला तो उसमें अंदर कुच्छ नही था, सिवाय एक आधे बचे पिज़्ज़ा के.
मैने एक ठंडी आह भरी और पिज़्ज़ा निकाल कर ओवेन में रखा. मुझे ये अँग्रेज़ी खाने कभी पसंद नही आते थे. दिल से मैं पक्का हिन्दुस्तानी था और जब तक दाल रोटी पेट में ना जाए, तसल्ली नही होती थी.
पर दाल रोटी उस वक़्त मौजूद थी नही तो पिज़्ज़ा से ही काम चलाना पड़ा.
क्रमशः....................
Re: Hindi Sex Stories By raj sharma
raj sharma stories
ख्वाब था शायद--2
गतान्क से आगे.................................
उसके लिविंग रूम में ही हम दोनो ने एक छ्होटा सा बार बना रखा था जहाँ थोड़ी बहुत, पर उम्दा और महेंगी, शराब की बॉटल्स रखी हुई थी. गरम पिज़्ज़ा एक प्लेट में उठा कर मैं बार काउंटर पर ही आ बैठा.
एक 1958 वाइन निकाल कर मैने ग्लास में डाली और पिज़्ज़ा खाते हुए हल्के घूंठ लेने लगा.
जब कमरे में लगे बड़े से पुराने ज़माने के आंटीक घंटे ने 4 बजाए तो जैसे मेरा ध्यान सा टूटा.
समझ में नही आया के मैं नींद में बैठा पी रहा था या नशे में बैठा सो रहा था क्यूंकी मेरे आगे वाइन की 2 खाली बॉटल्स रखी हुई थी. मैं पिच्छले 2 घंटे से अकेला बैठा पी रहा था और 2 बॉटल्स गटक चुका था.
"वाउ" मैने अपने आप से कहा और खड़े होने की सोच ही रहा था के 2 चीज़ों का एहसास एक साथ हुआ.
पहले तो ये के मैने बहुत ज़्यादा पी रखी थी.
दूसरा एहसास या यूँ कह लीजिए यकीन ये हुआ के मैं कमरे में अकेला नही हूँ. मैं जिस आंगल पर बैठा था वहाँ से अगर बेडरूम का दरवाज़ा खुलता तो सबसे पहले मुझे दिखाई देता यानी के नीलम अब तक बेडरूम में ही थी.
मतलब फ्लॅट में हम दोनो के सिवा कोई और तीसरा भी था.
इतने साल अंडरवर्ल्ड में रहने के बाद और इतनी बार हमला होने के बाद जो एक चीज़ मैने सीखी थी वो ये थी के अपनी गन हमेशा अपने पास रखो, जब हॅगने मूतने जाओ तब भी.
उस वक़्त भी मेरी रेवोल्वेर मेरे सामने ही रखी हुई थी.
कमरे में रोशनी के नाम पर कोने में एक ज़ीरो वॉल्ट का बल्ब जल रहा था इसलिए रोशनी ना के बराबर ही थी. ख़ास तौर से बार में तो तकरीबन पूरा अंधेरा ही था फिर भी सामने रखी खाली शराब की बॉटल में मैने गौर से देखा तो अपने शक पर यकीन हो गया.
कमरे में ठीक मेरे पिछे कोई खड़ा था. मैने बहुत ज़्यादा पी रखी थी और खुद मैं ये बात जानता था इसलिए कहीं दिमाग़ में ऐसा भी लग रहा था के ये सब मेरा वेहम है.
वो जिस जगह पर खड़ा था वहाँ भी पूरी तरह अंधेरा ही था इसलिए मैं कुच्छ देख तो नही पाया पर इस बात का यकीन हो गया के वो आदमी पूरी कोशिश कर रहा था के मैं उसे देख ना सकूँ.
मैने अपनी सामने रखी रेवोल्वेर उठाई और अँगुलिया ट्रिग्गर पर कस ली. नज़र अब भी सामने रखी वाइन बॉटल पर थी जिसमें मैं उस आदमी की हरकत देख सकता था.
मेरी समझ में नही आ रहा था के क्या करूँ. या पलटकर खुद वार करूँ या फिर उस शख्स के वार करने का इंतेज़ार करूँ. पर इंतेज़ार करने में एक ख़तरा था. इंतेज़ार करने का मतलब था उसको आराम से निशाना लगाने का वक़्त देना. पर अगर उसके पास बंदूक की जगह चाकू हो तो? तब तो वो दूर से वार नही कर सकता.
और जैसे उस इंसान ने भी मेरी दिल की बात सुन सी ली. वो अचानक अपनी जगह से हिलता हुआ मेरी तरफ बढ़ा. ठीक उसी वक़्त मैने अपना रेवोल्वेर वाला हाथ घुमाया और कमरे में एक गोली की आवाज़ गूँज उठी.
ख्वाब था शायद--2
गतान्क से आगे.................................
उसके लिविंग रूम में ही हम दोनो ने एक छ्होटा सा बार बना रखा था जहाँ थोड़ी बहुत, पर उम्दा और महेंगी, शराब की बॉटल्स रखी हुई थी. गरम पिज़्ज़ा एक प्लेट में उठा कर मैं बार काउंटर पर ही आ बैठा.
एक 1958 वाइन निकाल कर मैने ग्लास में डाली और पिज़्ज़ा खाते हुए हल्के घूंठ लेने लगा.
जब कमरे में लगे बड़े से पुराने ज़माने के आंटीक घंटे ने 4 बजाए तो जैसे मेरा ध्यान सा टूटा.
समझ में नही आया के मैं नींद में बैठा पी रहा था या नशे में बैठा सो रहा था क्यूंकी मेरे आगे वाइन की 2 खाली बॉटल्स रखी हुई थी. मैं पिच्छले 2 घंटे से अकेला बैठा पी रहा था और 2 बॉटल्स गटक चुका था.
"वाउ" मैने अपने आप से कहा और खड़े होने की सोच ही रहा था के 2 चीज़ों का एहसास एक साथ हुआ.
पहले तो ये के मैने बहुत ज़्यादा पी रखी थी.
दूसरा एहसास या यूँ कह लीजिए यकीन ये हुआ के मैं कमरे में अकेला नही हूँ. मैं जिस आंगल पर बैठा था वहाँ से अगर बेडरूम का दरवाज़ा खुलता तो सबसे पहले मुझे दिखाई देता यानी के नीलम अब तक बेडरूम में ही थी.
मतलब फ्लॅट में हम दोनो के सिवा कोई और तीसरा भी था.
इतने साल अंडरवर्ल्ड में रहने के बाद और इतनी बार हमला होने के बाद जो एक चीज़ मैने सीखी थी वो ये थी के अपनी गन हमेशा अपने पास रखो, जब हॅगने मूतने जाओ तब भी.
उस वक़्त भी मेरी रेवोल्वेर मेरे सामने ही रखी हुई थी.
कमरे में रोशनी के नाम पर कोने में एक ज़ीरो वॉल्ट का बल्ब जल रहा था इसलिए रोशनी ना के बराबर ही थी. ख़ास तौर से बार में तो तकरीबन पूरा अंधेरा ही था फिर भी सामने रखी खाली शराब की बॉटल में मैने गौर से देखा तो अपने शक पर यकीन हो गया.
कमरे में ठीक मेरे पिछे कोई खड़ा था. मैने बहुत ज़्यादा पी रखी थी और खुद मैं ये बात जानता था इसलिए कहीं दिमाग़ में ऐसा भी लग रहा था के ये सब मेरा वेहम है.
वो जिस जगह पर खड़ा था वहाँ भी पूरी तरह अंधेरा ही था इसलिए मैं कुच्छ देख तो नही पाया पर इस बात का यकीन हो गया के वो आदमी पूरी कोशिश कर रहा था के मैं उसे देख ना सकूँ.
मैने अपनी सामने रखी रेवोल्वेर उठाई और अँगुलिया ट्रिग्गर पर कस ली. नज़र अब भी सामने रखी वाइन बॉटल पर थी जिसमें मैं उस आदमी की हरकत देख सकता था.
मेरी समझ में नही आ रहा था के क्या करूँ. या पलटकर खुद वार करूँ या फिर उस शख्स के वार करने का इंतेज़ार करूँ. पर इंतेज़ार करने में एक ख़तरा था. इंतेज़ार करने का मतलब था उसको आराम से निशाना लगाने का वक़्त देना. पर अगर उसके पास बंदूक की जगह चाकू हो तो? तब तो वो दूर से वार नही कर सकता.
और जैसे उस इंसान ने भी मेरी दिल की बात सुन सी ली. वो अचानक अपनी जगह से हिलता हुआ मेरी तरफ बढ़ा. ठीक उसी वक़्त मैने अपना रेवोल्वेर वाला हाथ घुमाया और कमरे में एक गोली की आवाज़ गूँज उठी.