धोबन और उसका बेटा

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The Romantic
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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:03

मैने मा से कहा "ही मा, अब निकाल जाएगा मा, मेरा
माल अब लगता है ऩही रुकेगा". उसने मेरी बातो की ओररे कोई ध्यान
ऩही दिया और अपनी चूसाई जारी रखी. मैने कहा "मा तेरे मुँह में
ही निकाल जाएगा, जल्दी से अपना मुँह हटा लो" इस पर मा ने अपना मुँह
थोरी देर के लिए हटाते हुए कहा की "कोई बात ऩही मेरे मुँह में
ही निकाल मैं देखना चाहती हू की कुंवारे लरके के पानी का स्वाद
कैसा होता है" और फिर अपने मुँह में मेरे लंड को कस के जकरते
हुए उसने अब अपना पूरा ध्यान केवल अब मेरे सुपाअरए पर लगा दिया और
मेरे सुपारे को कस कस के चूसने लगी, उसकी जीभ मेरे सुपारे के
कटाव पर बार बार फिर रही थी. मैं सीस्यते हुए बोलने लगा "ओह
मा पी जाओ तो फिर, चख लो मेरे लंड का सारा पानी, ले लो अपने मुँह
में, ओह ले लो, कितना मज़ा आ रहा है, ही मुझे ऩही पाता था की
इतना मज़ा आता है, ही निकाल गया, निकाल गया, ही मा-
निकला तभी मेरे लंड का फ़ौवारा च्छुत परा और. तेज़ी के साथ
भालभाला कर मेरे लंड से पानी गिरने लगा. मेरे लंड का सारा सारा
पानी सीधे मा के मुँह में गिरता जा रहा था. और वो मज़े से मेरे
लंड को चूसे जा रही थी. कुछ ही देर तक लगातार वो मेरे लंड को
चुस्ती रही, मेरा लॉरा अब पूरी तरह से उसके थूक से भीग कर
गीला हो गया था और धीरे धीरे सिकुर रहा था. पर उसने अब भी
मेरे लंड को अपने मुँह से ऩही निकाला था और धीरे धीरे मेरे
सिकुरे हुए लंड को अपने मुँह में किसी चॉक्लेट की तरह घुमा रही
थी. कुछ देर तक ऐसा ही करने के बाद जब मेरी साँसे भी कुच्छ
सांत हो गई तब मा ने अपना चेहरा मेरे लंड पर से उठा लिया और
अपने मुँह में जमा मेरे वीर्या को अपना मुँह खोल कर दिखाया और
हल्के से हास दी. फिर उसने मेरा सारे पानी गतक लिया और अपने सारी
पल्लू से अपने होंठो को पोचहति हुई बोली, "ही मज़ा आ गया, सच
में कुंवारे लंड का पानी बरा मीठा होता है, मुझे ऩही पाता था
की तेरा पानी इतना मजेदार होगा" फिर मेरे से पुचछा "मज़ा आया की
ऩही", मैं क्या जवाब देता, जोश ठंडा हो जाने के बाद मैने अपने
सिर को नीचे झूहका लिया था, पर गुदगुदी और सनसनी तो अब भी
कायम थी, तभी मा ने मेरे लटके हुए लौरे को अपने हाथो में
पकरा और धीरे से अपने सारी के पल्लू से पोचहति हुई पूच्ची "बोल
ना, मज़ा आया की ऩही," मैने सहरमते हुए जवाब दिया "ही मा बहुत
मज़ा आया, इतना मज़ा कभी ऩही आया था", तब मा ने पुचछा "क्यों
अपने हाथ से भी करता था क्या",

"कभी कभी मा, पर उतना मज़ा ऩही आता था जितना आज आया है"

"औरत के हाथ से करवाने पर तो ज़यादा मज़ा आएगा ही, पर इस बात
का ध्यान राखियो की किसी को पाता ना चले "

"हा मा किसी को पाता ऩही चलेगा"

"हा, मैं वही कह रही हू की, किसी को अगर पाता चलेगा तो लोग क्या
क्या सोचेंगे और हमारी तुम्हारी बदनामी हो जाएगी, क्यों की हमारे
समाज में एक मा और बेटे के बीच इस तरह का संबंध उचित ऩही
माना जाता है, समझा" मैने भी अब अपने सरं के बंधन को छ्होर
कर जवाब दिया "हा मा मैं समझता हू, और हम दोनो ने जो कुच्छ भी
किया है उसका मैं किसी को पाता ऩही चलने दूँगा". तब मा उठ कर
खरी हो गई, अपने सारी के पल्लू को और मेरे द्वारा मसले गये ब्लाउस
को ठीक किया और मेरी ओररे देख कर मुस्कुराते हुए अपने बर के अपने
सारी को हल्के से दबाया और सारी को चूत के उपर ऐसे रग्रा जैसे
की पानी पोच्च रही हो. मैं उसकी इस क्रिया को बरे गौर से देख रहा
था. मेरे ध्यान से देखने पर वो हसते हुए बोली "मैं ज़रा पेशाब
कर के आती हू, तुझे भी अगर करना है तो चल अब तो कोई शरम
ऩही है"

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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:04

मैं हल्के से शरमाते हुए मुस्कुरा दिया तो बोली "क्यों अब
भी शर्मा रहा है क्या". मैने इस पर कुच्छ ऩही कहा और चुप चाप
उठ कर खरा हो गया. वो आगे चल दी और मैं उसके पिच्चे-पिच्चे
चल दिया. झारियों तक की डूस कदम की ये दूरी मैने मा के पिच्चे
पिच्चे चलते हुए उसके गोल मटोल गदराए हुए चूटरो पर नज़रे
गढ़ाए हुए तै की. उसके चलने का अंदाज़ इतना मदहोश कर देने वाला
था. आज मेरे देखने का अंदाज़ भी बदला हुआ था शायद इसलिए मुझे
उसके चलने का अंदाज़ गजब का लग रहा था. चलते वाक़ूत उसके दोनो
चूतर बरे नशीले अंदाज़ में हिल रहे थे और उसके सारी उसके दोनो
चूटरो के बीच में फस गई थी, जिसको उसने अपने हाथ पिच्चे ले जा
कर निकाला. जब हम झारियों के पास पहुच गये तो मा ने एक बार
पिच्चे मूर कर मेरी ओर देखा और मुस्कुरई फिर झारियों के पिच्चे
पहुच कर बिना कुच्छ बोले अपने सारी उठा के पेशाब करने बैठ गई.
उसकी दोनो गोरी गोरी जंघे उपर तक नंगी हो चुकी थी और उसने
शायद अपने सारी को थोरा जान भुज कर पिच्चे से उपर उठा दिया था
जिस के कारण उसके दोनो चूतर भी नुमाया हो रहे थे. ये सीन देख
कर मेरा लंड फिर से फुफ्करने लगा. उसका गोरे गोरे चूतर बरे कमाल
के लग रहे थे. मा ने अपने चूटरो को थोरा सा उचकाया हुआ था जिस
के कारण उसके गांद की खाई भी धीख रही थी. हल्के भूरे रंग की
गांद की खाई देख कर दिल तो यही कर रहा था की पास जा उस गांद
की खाई में धीरे धीरे उंगली चलौ और गांद की भूरे रंग की
च्छेद को अपनी उंगली से च्चेरू और देखु की कैसे पाक-पकती है.
तभी मा पेशाब कर के उठ खरी हुई और मेरी तरफ घूम गई. उसेन
अभी तक सारी को अपने जेंघो तक उठा रखा था. मेरी ओर देख कर
मुस्कुराते हुए उसने अपने सारी को छ्होर दिया और नीचे गिरने दिया, फिर
एक हाथ को अपनी चूत पर सारी के उपर से ले जा के रगार्ने लगी
जैसे की पेशाब पोच्च रही हो और बोली "चल तू भी पेशाब कर ले
खरा खरा मुँह क्या तक रहा है". मैं जो की अभी तक इस शानदार
नज़ारे में खोया हुआ था थोरा सा चौंक गया पर फिर और हकलाते
हुए बोला "हा हा अभी करता हू,,,,,, मैने सोचा पहले तुम कर लो
इसलिए रुका था". फिर मैने अपने पाजामा के नारे को खोला और सीधा
खरे खरे ही मूतने की कोशिश करने लगा. मेरा लंड तो फिर से
खरा हो चुक्का था और खरे लंड से पेशाब ही ऩही निकाल रहा था.
मैने अपनी गांद तक का ज़ोर लगा दिया पेशाब करने के चक्कर में.
मा वही बगल में खरी हो कर मुझे देखे जा रही थी. मेरे खरे
लंड को देख कर वो हसते हुए बोली "चल जल्दी से कर ले पेशाब, देर
हो रही है घर भी जाना है" मैं क्या बोलता पेशाब तो निकाल ऩही
रहा था. तभी मा ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को अपने हाथो में
पकर लिया और बोली "फिर से खरा कर लिया, अब पेशाब कैसे उतरेगा'
कह कर लंड को हल्के हल्के सहलाने लगी, अब तो लंड और टाइट हो
गया पर मेरे ज़ोर लगाने पर पेशाब की एक आध बूंदे नीचे गिर गई,
मैने मा से कहा "अर्रे तुम छ्होरो ना इसको, तुमहरे पकरने से तो ये
और खरा हो जाएगा, ही छ्होरो" और मा का हाथ अपने लंड पर से
झतकने की कोशिश करने लगा, इस पर मा ने हसते हुए कहा "मैं तो
छ्होर देती हू पर पहले ये तो बता की खरा क्यों किया था, अभी दो
मिनिट पहले ही तो तेरा पानी निकाला था मैने, और तूने फिर से खरा
कर लिया, कमाल का लरका है तू तो". मैं खुच्छ ऩही बोला, अब लंड
थोरा ढीला पर गया था और मैने पेशाब कर लिया. मूतने के बाद
जल्दी से पाजामा के नारे को बाँध कर मैं मा के साथ झारियों के
पिच्चे से निकाल आया, मा के चेहरे पर अब भी मंद मंद मुस्कान आ
रही थी. मैं जल्दी जल्दी चलते हुए आगे बढ़ा और कापरे के गत्थर
को उठा कर अपने माथे पर रख लिया, मा ने भी एक गथर को उठा
लिया और अब हम दोनो मा बेटे जल्दी जल्दी गाँव के पगडंडी वाले
रास्ते पर चलने लगे. गर्मी के दिन थे अभी भी सूरज चमक रहा
था थोरी दूर चलने के बाद ही मेरे माथे से पसीना च्चालकने लगा.
मैं जान भुज कर मा के पिच्चे पिच्चे चल रहा था ताकि मा के
मटकते हुए चूटरो कॅया आनंद लूट साकु और...


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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:04

मटकते हुए चूटरो के पिच्चे चलने का एक अपना ही आनंद है आप सोचते रहते हो की "हाई कैसे दिखते होंगे ये चूतर बिना कपरो के" या फिर आपका दिल करता हाई की आप चुपके से पिच्चे से जाओ और उन चूटरो को अपने हथेलियों में दबा लो और हल्के मस्लो और सहलाओ फिर हल्के से उन चूटरो के बीच की खाई यानी की गांद के गड्ढे पर अपना लंड सीधा खरा कर के सता दो और हल्के से रगर्ते हुए प्यार से गर्देन पर चुम्मिया लो. ये सोच आपको इतना उत्तेजित कर देती जितना शायद अगर आपको सही में चूतर मिले भी अगर मसल्ने और सहलाने को तो शायद उतना उत्तेजित ना कर पाए. चलो बहुत बकवास हो गई आगे की कहानी लिखते हाई, तो मैं अपना लंड पाजामा में खरा किए हुए अपनी लालची नज़रो को मा के चूटरो पर टिकाए हुए चल रहा था. मा ने मूठ मार कर मेरा पानी तो निकाल ही दिया था इस कारण अब उतनी बेचैनी ऩही थी, बल्कि एक मीठी मीठी सी कसक उठ रही थी, और दिमाग़ बस एक ही जगह पर अटका परा था. तभी मा पिच्चे मूर कर देखते हुए बोली "क्यों रे पिच्चे पिच्चे क्यों चल रहा हाई, हर रोज़ तो तू घोरे की तरह आगे आगे भागता फिरता रहता था" मैं ने शर्मिंदगी में अपने सिर को नीचे झुका लिया, हालाँकि अब शर्म आने जैसी कोई बात तो थी ऩही हर कुच्छ खुलाम खुला हो चुक्का था मगर फिर भी मेरे दिल में अब भी थोरी बहुत हिचक तो बाकी थी ही. मा ने फिर कुरेदते हुए पुचछा "क्यों क्या बात हाई तक गया हाई क्या" मैने कहा "ऩही मा ऐसी कोई बात तो हाई ऩही, बस ऐसे ही पिच्चे चल रहा हू". तभी मा ने अपनी चल धीमी कर दी और अब वो मेरे साथ साथ चल रही थी. मेरी र अपनी तिरच्चि नज़रो से देखते हुए बोली " मैं भी अब तेरे को थोरा बहुत समझने लगी हू, तू कहा अपनी नज़रे गाराए हुए हाई ये मेरी समझ में आ रहा हाई, पर अब साथ-साथ चल मेरे पिच्चे पिच्चे मत चल, क्यों की गाओं नज़दीक आ गया हाई कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा" कह कर मुस्कुराने लगी. मैने भी समझदार बच्चो की तरह अपना सिर हिला दिया और साथ साथ चलने लगा. मा धीरे से फुसफुसते हुए बोलने लगी, "घर चल तेरा बापू तो आज घर पर हाई ऩही फिर आराम से जो भी देखना होगा देखते रहना". मैं हल्के से विरोध किया "क्या मा, मैं कहा कुच्छ देख रहा था, तुम तो ऐसे ही बस, तभी से मेरे पिच्चे पारी हो". इस पर मा बोली "लालू मैं पिच्चे पारी हू या तू पिच्चे परा हाई इसका फ़ैसला तो घर चल के कर लेना. फिर सिर पर रखे कपरो के गत्थर को एक हाथ उठा कर सीधा किया तो उसकी कांख दिखने लगी. ब्लाउस उसने आधे बाँह का पहन रखा था, गर्मी के कारण उसकी कांख में पसीना आ गया था और पसीने से भीगी उसकी कनखे देखने में बरी मदमस्त लग रही थी. मेरा मन उन कनखो को चूम लेने का करने लगा था. एक हाथ को उपर रखने से उसकी सारी भी उसके चुचियों पर से थोरी सी हट गई थी और थोरा बहुत उसके गोरे गोरे पेट भी दिख रहे थे, इसलिए चलने की ये पोज़िशन भी मेरे लिए बहुत अच्छी थी और मैं आराम से वासना में डूबा हुआ अपनी मा के साथ चलने लगा.

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