“पी ले इसे. ये अमृत है. ये अमुल्य है. इसे बर्बाद मत होने देना.” स्वामी जी ने कहा.
जितना मुँह मे था उतना मैं पी गयी. मगर जो मुँह से छलक गया था उसे समेटने की कोई कोशिश नही की.
तभी किसी महिला की आवाज़ आई, " नही बहन इनके प्रसाद का इस तरह अपमान मत करो. इसके लिए तो लोग पागल हो जाते हैं. इसे उठाकर करग्रहण करो."
मैने चौंक कर सिर घुमाया तो देखा की रजनी अंधेरे से निकल कर आ रही थी. उसने वो ही लबादा ओढ़ रखा था जिसमे उसे सुबह से देख रही थी. उसने मेरे पास आकर मेरे होंठों पर लगे वीर्य को अपनी जीभ से साफ किया. फिर अपनी उंगलियों से मेरे बूब्स पर लगे वीर्य को समेट कर पहले मुझे दिखाया फिर उसे मेरे मुँह मे डाल दिया. फिर उसने मुझे झुका कर ज़मीन पर गिरे वीर्य की बूँदों को चाट कर साफ करने पर मजबूर कर दिया. मैने ज़मीन पर गिरे स्वामी जी के वीर्य को अपनी जीभ से चाट चाट कर साफ किया.
अब स्वामी जी ने मुझे कंधे से पकड़ कर उठाया. रजनी वापस अंधेरे मे सरक गयी. स्वामीजी ने मुझे उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया. मैं ने बिस्तर पर लेट कर अपनी बाहें उपर हवा मे उठा दी. ये बाहें उनके लिए आमंत्रण थी. कि वो आगे बढ़ें और मुझ मे समा जाएँ.
स्वामी जी ने मेरी दोनो टाँगों को पकड़ कर फैला दी. हल्की रोशनी मे मेरी गीली चूत चमक रही थी. उसके मुहाने पर मेरे रस की कुच्छ बूँदें जमा थी.
“एम्म पूरी तरह तैयार हो.” स्वामी जी ने मेरे रस को अपनी उंगलियों से फैलाते हुए कहा. उन्हों ने अपनी दो उंगलियाँ मेरी योनि के अंदर डाल दी. कुच्छ देर तक अंदर बाहर करने के बाद अपनी दो उंगलियों से मेरी चिकनाई भरी क्लाइटॉरिस को छेड़ने लगे.
तभी रजनी ने आकर एक टवल से मेरी चूत को अच्छि तरह से सॉफ कर दिया. अब स्वामी जी ने अपने लंड को मेरी योनि के द्वार पर रख दिया. मैने अपनी कमर को उचका कर उनके लिंग को अपनी योनि मे समेटना चाहा. मगर वो मेरा आशय समझ कर पीछे हट गये. मेरा वार खाली चला गया. मेरी योनि के दोनो होंठ प्यास से काँप रहे थे.
मैं उनके चेहरे को निहार रही थी. मगर उनका ध्यान योनि से सटे अपने लिंग परही था. मैं इंतेज़ार कर रही थी कब उनका लिंग मेरी योनि की भूख को शांत करेगा. उत्तेजना से योनि के लिप्स अपने आप थोड़े से खुल गये थे.
“आ जाओ ना क्यों तडपा रहे हो मुझे?” मैने तड़प्ते हुए उनके गले मे अपनी बाँहों का हार पहना दिया.
"इसे अपने हाथों से अंदर लो" उन्हों ने कहा मैने फॉरन उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि के होंठों को खोल कर उसके द्वार पर रखा.
“लो….अब तो अंदर कर दो.” मैने अपनी टाँगों को फैला दिया. स्वामी जी ने एक ज़ोर का झटका मारा और पूरा लिंग सरसरता हुया एक ही बार मे अंदर तक चला गया.
"ऊऊऊफफफफफफफ्फ़ आआआहह" मैं चीख उठी. ऐसा लगा कि उनका टगडा लिंग मेरे पूरे बदन को चीर कर रख देगा. मैने अपनी टाँगों से स्वामी जी के कमर को जाकड़ रखा था. मुँह से दर्द भरी चीखें निकल रही थी मगर टाँगों से उनकी कमर को अपनी योनि की तरफ थेल रही थी. आँखें दर्द से सिकुड गयी थी मगर मन और माँग रहा था. ऐसा लग रहा था कि उनका लिंग मेरी नाभि तक पहुँच गया है. उन्हों ने जैसे ही उसे खींचना शुरू किया तो ऐसा अलगा की मेरा यूटरस लिंग के साथ ही बाहर निकल आएगा. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः............
रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
raj sharma stories
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -14
गतान्क से आगे...
" धीरे गुरुजी. दर्द कर रहा है. आपका ये बहुत बड़ा है." स्वामीजी ने धीरे धीरे अपना लिंग मेरी योनि के बाहर तक खींचा साथ साथ मैं झाड़ गयी. एक ही धक्का काफ़ी था मुझे झाड़ा देने के लिए. मेरा बदन इतना गरम हो चुक्का था कि कुच्छ और देर करते तो बिना कुच्छ किए ही मैं स्खलित हो जाती. ऐसा लगा कि उनका लिंग पिस्टन की तरह बाहर जाते हुए अपने साथ मेरे वीर्य को खींचता हुआ ले जा रहा है.
फिर उन्होने अपने लिंग को हरकत दे दी. मेरा दो बार वीर्य निकल चुका था और मैं हाँफने लगी थी. लेकिन उनके धक्कों ने कुच्छ ही देर मे मुझे वापस गरम कर दिया. आधे घंटे तक इसी तरह मुझे चोदने के बाद मेरे बदन से उतर गये. अब वो बिस्तर पर सीधे लेट गये.
“चल अब तेरी बारी है. आ जा अब मुझे चोद. देखता हूँ तेरी चूत को मेरा लंड कितना पसंद आया है.” उन्हों ने मुझसे खुले लहजे मे कहा. उनकी इस तरह की बातें अगर कोई सुनता तो विस्वास ही नही करता कि कोई साधु जो कुच्छ देर पहले इतना भाव मगन प्रवचन दे सकता है वो इस तरह सेक्सी बातें भी कर सकता है. मुझे अपने कुच्छ इस तरह के स्वागत का अंदेशा पहले से ही था और मैं पूरी तरह तैयार होकर ही आइ थी. मेरे पड़ोस मे एक महिला रहती थी जिससे मेरी बहुत बनती थी. उसने मुझे यहाँ के महॉल का ढके छिपे लहजे मे इतना सुंदर वर्णन किया था कि मेरा मन काफ़ी दिनो से लालायित था स्वामी जी की शरण मे आने के लिए.
मैने उठकर उनके लिंग को देखा. मेरे रस से भीगा हुआ मोटा काला लिंग मुझे पागल बना रहा था. मैने उनके लंड को अपनी मुट्ठी मे भरा तो मेरी पूरी हथेली रस से चुपद गयी. और थोड़ा सा खेंचते ही उनका लिंग मुट्ठी से फिसला जा रहा था. मैने उनके कमर के दोनो ओर अपने घुटनो को रख कर अपनी योनि को आसमान की ओर तने उनका लिंग पर रखा. फिर अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर दो उंगलियों से अपनी चूत की फांकों को अलग किया और दूसरे हाथ से उनके लिंग को थाम कर उसे अपनी योनि के द्वार पर सेट कर दिया. फिर मैने उनकी छाती पर अपने दोनो हाथ रख कर उन्हे सहलाने लगी उनके छ्होटे मसूर के दाने समान दोनो निपल को अपने नाखूनो से छेड़ते हुए मैने अपनी कमर को नीचे की ओर दबाया.
पहले झटके मे उनका लिंग कुच्छ अंदर तक घुस गया. मैं इस अवस्था मे कुच्छ देर तक रुकी. मैने स्वामी जी की तरफ देखा. वो मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे थे. मैने भी उनकी तरफ एक दर्दीली मुस्कुराहट छ्चोड़ते हुए अपना सारा बोझ उनके ऊपर डाल दिया. उनका लिंग वापस मेरी योनि मे अंदर तक घुसता चला गया. मैं धाम से उनके लिंग पर बैठ गयी थी.
मैने अपना एक हाथ हम दोनो के मिलन की जगह डाल कर टटोला फिर कराहते हुए कहा, “घुस गया है पूरा….ओफफफ्फ़ कैसे झेलती होगी कोई आपको. इसीलिए एक बार जो आपके संपर्क मे आती है उसका आपको छ्चोड़ कर जाने का सपने मे भी मन नही होता है. आप ने मुझे भी जीत लिया.”
मैं उनके लिंग पर अपनी चूत को ऊपर नीचे करने लगी. उन्होने मेरी चूचियो को पकड़ कर दबाना शुरू किया. एक चूची के निपल को ज़ोर से खींचा तो उसमे से दूध की धार निकल कर स्वामी जी के चेहरे पर पड़ी. उन्हों ने मुँह खोल कर दूध की धार को अपने मुँह की ओर किया. एक हाथ से मेरे निपल की दिशा अपने मुँह की ओर सेट करके दूसरे हाथ से उसे मसल मसल कर दूह रहे थे. मेरे स्तनो से दूध निकल कर पिचकारी की धार की तरह सीधा उनके मुँह मे गिर रहा था. उन्हों ने अपना मुँह पूरा खोल कर मेरे स्तनो से निकलने वाले सारे दूध को अपने मुँह मे समेट लिया.
मैं उत्तेजना मे पागल हो गयी थी. और उनके लिंग को बुरी तरह चोद रही थी. मैं अपना सिर पीछे की तरफ झटक रही थी. मैने वापस उनकी छातियो को अपनी मुत्त्थि मे भर लिया. उनके सीने पर उगे घने बालों को अपनी मुट्ठी मे क़ैद कर सख्ती से खीचा. जहाँ तक समझती हूँ कि इस हरकत से उनके सीने के कुच्छ बाल ज़रूर उखड़ कर मेरी मुट्ठी मे रह गये होंगे. मैं ज़ोर से चीख पड़ी "आआहह" और इसी के साथ मैं तीसरी बार झाड़ गयी.
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -14
गतान्क से आगे...
" धीरे गुरुजी. दर्द कर रहा है. आपका ये बहुत बड़ा है." स्वामीजी ने धीरे धीरे अपना लिंग मेरी योनि के बाहर तक खींचा साथ साथ मैं झाड़ गयी. एक ही धक्का काफ़ी था मुझे झाड़ा देने के लिए. मेरा बदन इतना गरम हो चुक्का था कि कुच्छ और देर करते तो बिना कुच्छ किए ही मैं स्खलित हो जाती. ऐसा लगा कि उनका लिंग पिस्टन की तरह बाहर जाते हुए अपने साथ मेरे वीर्य को खींचता हुआ ले जा रहा है.
फिर उन्होने अपने लिंग को हरकत दे दी. मेरा दो बार वीर्य निकल चुका था और मैं हाँफने लगी थी. लेकिन उनके धक्कों ने कुच्छ ही देर मे मुझे वापस गरम कर दिया. आधे घंटे तक इसी तरह मुझे चोदने के बाद मेरे बदन से उतर गये. अब वो बिस्तर पर सीधे लेट गये.
“चल अब तेरी बारी है. आ जा अब मुझे चोद. देखता हूँ तेरी चूत को मेरा लंड कितना पसंद आया है.” उन्हों ने मुझसे खुले लहजे मे कहा. उनकी इस तरह की बातें अगर कोई सुनता तो विस्वास ही नही करता कि कोई साधु जो कुच्छ देर पहले इतना भाव मगन प्रवचन दे सकता है वो इस तरह सेक्सी बातें भी कर सकता है. मुझे अपने कुच्छ इस तरह के स्वागत का अंदेशा पहले से ही था और मैं पूरी तरह तैयार होकर ही आइ थी. मेरे पड़ोस मे एक महिला रहती थी जिससे मेरी बहुत बनती थी. उसने मुझे यहाँ के महॉल का ढके छिपे लहजे मे इतना सुंदर वर्णन किया था कि मेरा मन काफ़ी दिनो से लालायित था स्वामी जी की शरण मे आने के लिए.
मैने उठकर उनके लिंग को देखा. मेरे रस से भीगा हुआ मोटा काला लिंग मुझे पागल बना रहा था. मैने उनके लंड को अपनी मुट्ठी मे भरा तो मेरी पूरी हथेली रस से चुपद गयी. और थोड़ा सा खेंचते ही उनका लिंग मुट्ठी से फिसला जा रहा था. मैने उनके कमर के दोनो ओर अपने घुटनो को रख कर अपनी योनि को आसमान की ओर तने उनका लिंग पर रखा. फिर अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर दो उंगलियों से अपनी चूत की फांकों को अलग किया और दूसरे हाथ से उनके लिंग को थाम कर उसे अपनी योनि के द्वार पर सेट कर दिया. फिर मैने उनकी छाती पर अपने दोनो हाथ रख कर उन्हे सहलाने लगी उनके छ्होटे मसूर के दाने समान दोनो निपल को अपने नाखूनो से छेड़ते हुए मैने अपनी कमर को नीचे की ओर दबाया.
पहले झटके मे उनका लिंग कुच्छ अंदर तक घुस गया. मैं इस अवस्था मे कुच्छ देर तक रुकी. मैने स्वामी जी की तरफ देखा. वो मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे थे. मैने भी उनकी तरफ एक दर्दीली मुस्कुराहट छ्चोड़ते हुए अपना सारा बोझ उनके ऊपर डाल दिया. उनका लिंग वापस मेरी योनि मे अंदर तक घुसता चला गया. मैं धाम से उनके लिंग पर बैठ गयी थी.
मैने अपना एक हाथ हम दोनो के मिलन की जगह डाल कर टटोला फिर कराहते हुए कहा, “घुस गया है पूरा….ओफफफ्फ़ कैसे झेलती होगी कोई आपको. इसीलिए एक बार जो आपके संपर्क मे आती है उसका आपको छ्चोड़ कर जाने का सपने मे भी मन नही होता है. आप ने मुझे भी जीत लिया.”
मैं उनके लिंग पर अपनी चूत को ऊपर नीचे करने लगी. उन्होने मेरी चूचियो को पकड़ कर दबाना शुरू किया. एक चूची के निपल को ज़ोर से खींचा तो उसमे से दूध की धार निकल कर स्वामी जी के चेहरे पर पड़ी. उन्हों ने मुँह खोल कर दूध की धार को अपने मुँह की ओर किया. एक हाथ से मेरे निपल की दिशा अपने मुँह की ओर सेट करके दूसरे हाथ से उसे मसल मसल कर दूह रहे थे. मेरे स्तनो से दूध निकल कर पिचकारी की धार की तरह सीधा उनके मुँह मे गिर रहा था. उन्हों ने अपना मुँह पूरा खोल कर मेरे स्तनो से निकलने वाले सारे दूध को अपने मुँह मे समेट लिया.
मैं उत्तेजना मे पागल हो गयी थी. और उनके लिंग को बुरी तरह चोद रही थी. मैं अपना सिर पीछे की तरफ झटक रही थी. मैने वापस उनकी छातियो को अपनी मुत्त्थि मे भर लिया. उनके सीने पर उगे घने बालों को अपनी मुट्ठी मे क़ैद कर सख्ती से खीचा. जहाँ तक समझती हूँ कि इस हरकत से उनके सीने के कुच्छ बाल ज़रूर उखड़ कर मेरी मुट्ठी मे रह गये होंगे. मैं ज़ोर से चीख पड़ी "आआहह" और इसी के साथ मैं तीसरी बार झाड़ गयी.
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
मैं निढाल सी उनके सीने पर लेट गयी. मैं उनेक सीने से लिपटी हुई ज़ोर ज़ोर से हाँफ रही थी. मैने अपने दाँत उनके सीने पर गढ़ा दिए और उनकी एक छाती को काट खाया.
"अब बस भी करो. अब छ्चोड़ दो. जमकर ठोक तो लिया मुझे" मैने उनके होंठों को चूमते हुए कहा. "मार ही डालोगे क्या आज?"
“मेरा तो अब तक कुच्छ भी नही निकला. इतनी स्वार्थी हो क्या कि मुझे भी अपनी उत्तेजना शांत करने नही दोगि.” उन्हों ने अपने मेरे रस मे भीगे लंड की तरफ इशारा करके कहा.
उन्होने मुझे अपने ऊपर से हटाया और मुझे खींच कर बेड के किनारे पर हाथ और पैरों के बल उँचा किया. तभी वोही लड़की दोबारा आकर मेरी चिकनी हो रही योनि को अच्छि तरह से मेरे उतरे हुए कपड़े से साफ़ कर दिया. फिर स्वामी जी ने खुद बेड के पास ज़मीन पर खड़े होकर पीछे से मेरी चूत मे अपना लंड डाल दिया. और फिर से ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा. मैं उसके लंड के हर धक्के के साथ चीख उठती. पूरे कमरे मे मेरी उत्तेजित आवाज़ें गूँज रही थी.
हमारे मुँह से “आ….ऊफ़….हा…” जैसी आवाज़ें निकल रही थी और हमारे निचले अंग “फूच फूच” की आवाज़ निकाल रहे थे.
ऐसी जबरदस्त चुदाई मुझे काफ़ी सालों बाद मिल रही थी. मुझे आंध्रा प्रदेश के जंगलों मे तंगराजन से मिली ख़तरनाक चुदाई याद आ गयी. वरना जीवन तो अधिक से अधिक दस मिनूट ही अपनी उत्तेजना को समहाल पाते हैं. घंटों तक चोद्ते रहने का स्टॅमिना उनमे नही था. अक्सर तो मेरा जोश ठंडा ही नही हो पाता था और वो करवट बदल कर सो जाते थे.
कोई घंटे भर तक इसी तारह चोदने के बाद उन्हों ने अपने वीर्य से मेरी योनि को पूरी तरह से भर दिया. मैं बिस्तर पर निढाल हो कर गिर पड़ी. मैं बुरी तरह से थक चुकी थी. अब मेरे हाथों पैरों मे मेरे बदन को झेलने की ताक़त नही बची थी.
स्वामी जी मेरे बदन पर ही कुच्छ देर तक पसरे रहे फिर बगल मे लेट गये. मेरी योनि से उनका वीर्य निकल कर सफेद चादर को गीला कर रहा था. हल्की सी क्लिक की आवाज़ आई तो मैं
समझ गयी कि रजनी बाहर चली गयी है. मैं स्वामी जी से बेतहासा लिपट गयी. और उनके पूरे चेहरे को अपने होंठों से नाप लिया.
"आप मुझे अपनी छत्र छाया मे ले लीजिए. मैं अब आपसे दूर नही जा सकती. अपने सही कहा था कि आपसे एक बार मिलने के बाद कोई महिला आपसे दूर नही जा सकती. आपने मुझे इतना तृप्त किया जितना कि मैं कभी कल्पना भी नही कर सकती थी." मैने उनके होंठों को चूमते हुए कहा.
उन्हों ने मुझे बाहों मे भर कर करवट लेकर मुझे अपने सीने पर लिटा लिया. मैने
नीचे सरकते हुए उनके सीने को चूमा और सीने के बालों पर अपनी नाक रगड़ने लगी. वो हंसते हुए ,मेरे रेशमी बालों से खेलने लगे. मैं उनके सीने के बालों पर अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी. बीच बीच मे अपने हाथ को नीचे ले जाकर उनके लिंग को और उसके नीचे लटकती गेंदों को सहला देती.
मैं जीभ निकाल कर उनके निपल्स पर फिराने लगी. फिर मेरे होंठ सरकते हुए नीचे की ओर फिसलने लगे. उनके लिंग के चारों ओर फैले घने बालों मे अपने मुँह को रख मैने एक गहरी साँस ली. उनके लिंग और झांतों से उठ रही सुगंध ने मुझे पूरी तरह मदहोश कर दिया. मेरे चेहरे को सहलाते उनके घुंघराले बाल पूरे बदन मे वापस उत्तेजना भर रहे थे.
मैं जीभ को उनके सिथिल परे लिंग पर फिराने लगी. उनकी उंगलियाँ मेरे बालों पर फिर रही थी. मेरे एक एक अंग को सहला रही थी. मेरी पीठ पर रीढ़ की हड्डी पर उपर से नीचे तक फिर रहे थे.
"क्यों मन नही भरा क्या?"उन्हों ने पूछा.
"उम्म्म्म नही" मैं किसी बच्चे की तरह उनसे रूठते हुए बोली.उन्हों ने मेरे बूब्स को और निपल्स को मसल्ते हुए पूछा.
"कैसा लगा ये?"
“क्या” मैने जान बूझ कर अंजान बनते हुए पूछा.
“ये मेरा लिंग…..कैसा लगा?” मैं चुप रही,” बता ना पसंद आया या नही?”
“एम्म मुझे शर्म आ रही है…. आप बहुत गंदे हो. इसमे बोलने की क्या ज़रूरत है आपको वैसे ही पता चल जाना चाहिए”
“नही मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ कि इसने तुम्हे तृप्त किया या नही.” उन्हों ने मेरे चेहरे को अपनी उंगलियों से उठाते हुए पूछा. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः............
"अब बस भी करो. अब छ्चोड़ दो. जमकर ठोक तो लिया मुझे" मैने उनके होंठों को चूमते हुए कहा. "मार ही डालोगे क्या आज?"
“मेरा तो अब तक कुच्छ भी नही निकला. इतनी स्वार्थी हो क्या कि मुझे भी अपनी उत्तेजना शांत करने नही दोगि.” उन्हों ने अपने मेरे रस मे भीगे लंड की तरफ इशारा करके कहा.
उन्होने मुझे अपने ऊपर से हटाया और मुझे खींच कर बेड के किनारे पर हाथ और पैरों के बल उँचा किया. तभी वोही लड़की दोबारा आकर मेरी चिकनी हो रही योनि को अच्छि तरह से मेरे उतरे हुए कपड़े से साफ़ कर दिया. फिर स्वामी जी ने खुद बेड के पास ज़मीन पर खड़े होकर पीछे से मेरी चूत मे अपना लंड डाल दिया. और फिर से ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा. मैं उसके लंड के हर धक्के के साथ चीख उठती. पूरे कमरे मे मेरी उत्तेजित आवाज़ें गूँज रही थी.
हमारे मुँह से “आ….ऊफ़….हा…” जैसी आवाज़ें निकल रही थी और हमारे निचले अंग “फूच फूच” की आवाज़ निकाल रहे थे.
ऐसी जबरदस्त चुदाई मुझे काफ़ी सालों बाद मिल रही थी. मुझे आंध्रा प्रदेश के जंगलों मे तंगराजन से मिली ख़तरनाक चुदाई याद आ गयी. वरना जीवन तो अधिक से अधिक दस मिनूट ही अपनी उत्तेजना को समहाल पाते हैं. घंटों तक चोद्ते रहने का स्टॅमिना उनमे नही था. अक्सर तो मेरा जोश ठंडा ही नही हो पाता था और वो करवट बदल कर सो जाते थे.
कोई घंटे भर तक इसी तारह चोदने के बाद उन्हों ने अपने वीर्य से मेरी योनि को पूरी तरह से भर दिया. मैं बिस्तर पर निढाल हो कर गिर पड़ी. मैं बुरी तरह से थक चुकी थी. अब मेरे हाथों पैरों मे मेरे बदन को झेलने की ताक़त नही बची थी.
स्वामी जी मेरे बदन पर ही कुच्छ देर तक पसरे रहे फिर बगल मे लेट गये. मेरी योनि से उनका वीर्य निकल कर सफेद चादर को गीला कर रहा था. हल्की सी क्लिक की आवाज़ आई तो मैं
समझ गयी कि रजनी बाहर चली गयी है. मैं स्वामी जी से बेतहासा लिपट गयी. और उनके पूरे चेहरे को अपने होंठों से नाप लिया.
"आप मुझे अपनी छत्र छाया मे ले लीजिए. मैं अब आपसे दूर नही जा सकती. अपने सही कहा था कि आपसे एक बार मिलने के बाद कोई महिला आपसे दूर नही जा सकती. आपने मुझे इतना तृप्त किया जितना कि मैं कभी कल्पना भी नही कर सकती थी." मैने उनके होंठों को चूमते हुए कहा.
उन्हों ने मुझे बाहों मे भर कर करवट लेकर मुझे अपने सीने पर लिटा लिया. मैने
नीचे सरकते हुए उनके सीने को चूमा और सीने के बालों पर अपनी नाक रगड़ने लगी. वो हंसते हुए ,मेरे रेशमी बालों से खेलने लगे. मैं उनके सीने के बालों पर अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी. बीच बीच मे अपने हाथ को नीचे ले जाकर उनके लिंग को और उसके नीचे लटकती गेंदों को सहला देती.
मैं जीभ निकाल कर उनके निपल्स पर फिराने लगी. फिर मेरे होंठ सरकते हुए नीचे की ओर फिसलने लगे. उनके लिंग के चारों ओर फैले घने बालों मे अपने मुँह को रख मैने एक गहरी साँस ली. उनके लिंग और झांतों से उठ रही सुगंध ने मुझे पूरी तरह मदहोश कर दिया. मेरे चेहरे को सहलाते उनके घुंघराले बाल पूरे बदन मे वापस उत्तेजना भर रहे थे.
मैं जीभ को उनके सिथिल परे लिंग पर फिराने लगी. उनकी उंगलियाँ मेरे बालों पर फिर रही थी. मेरे एक एक अंग को सहला रही थी. मेरी पीठ पर रीढ़ की हड्डी पर उपर से नीचे तक फिर रहे थे.
"क्यों मन नही भरा क्या?"उन्हों ने पूछा.
"उम्म्म्म नही" मैं किसी बच्चे की तरह उनसे रूठते हुए बोली.उन्हों ने मेरे बूब्स को और निपल्स को मसल्ते हुए पूछा.
"कैसा लगा ये?"
“क्या” मैने जान बूझ कर अंजान बनते हुए पूछा.
“ये मेरा लिंग…..कैसा लगा?” मैं चुप रही,” बता ना पसंद आया या नही?”
“एम्म मुझे शर्म आ रही है…. आप बहुत गंदे हो. इसमे बोलने की क्या ज़रूरत है आपको वैसे ही पता चल जाना चाहिए”
“नही मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ कि इसने तुम्हे तृप्त किया या नही.” उन्हों ने मेरे चेहरे को अपनी उंगलियों से उठाते हुए पूछा. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः............