तड़फती जवानी

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The Romantic
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Re: तड़फती जवानी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:26

तड़फती जवानी-16

मैंने उसके लिंग को हाथों में भर कर जोर से मसलना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में वो दुबारा सख्त होने लगा।

वो मेरे स्तनों से खेलने में मगन हो गया और मैं उसके लिंग को दुबारा सम्भोग के लिए तैयार करने लगी।

मैंने उसके लिंग को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में वो एकदम कड़क हो गया।

अमर ने मेरी योनि में ऊँगली डाल कर अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में मैं सम्भोग के लिए फिर से तड़पने लगी।

उसने मुझे खींच कर अपने ऊपर चढ़ा लिया, मैंने भी अपनी टाँगें फैला कर उसके लिंग के ऊपर अपनी योनि को सामने कर दिया और उसके ऊपर लेट गई।

अमर ने हाथ से अपने लिंग को पकड़ कर मेरी योनि में रगड़ना शुरू कर दिया। मैं तड़प उठी क्योंकि मैं जल्द से जल्द उसे अपने अन्दर चाहती थी।

मैंने अब उसे इशारा किया तो उसने अपने लिंग के सुपाड़े को योनि की छेद में टिका दिया और अपनी कमर उठा दी, उसका लिंग मेरी योनि में सुपाड़े तक घुस गया, फिर मैंने भी जोर लगाया तो लिंग पूरी गहराई में उतर गया।

मैंने मजबूती से अमर को पकड़ा और अमर ने मुझे और मैंने धक्कों की प्रक्रिया को बढ़ाने लगी। कुछ पलों में अमर भी मेरे साथ नीचे से धक्के लगाने लगे।

करीब 10 मिनट में मैं झड़ गई, पर खुद पर जल्दी से काबू करते हुए मैंने अमर का साथ फिर से देना शुरू कर दिया।

हम पूरे जोश में एक-दूसरे को प्यार करते चूमते-चूसते हुए सम्भोग का मजा लेने लगे।

हम दोनों इस कदर सम्भोग में खो गए जैसे हम दोनों के बीच एक-दूसरे को तृप्त करने की होड़ लगी हो।

मैं अब झड़ रही थी मैंने अपनी पूरी ताकत से अमर को अपने पैरों और टांगों से कस लिया और कमर उठा दी।

मेरी मांसपेसियाँ अकड़ने लगीं और मेरी योनि सिकुड़ने लगी, जैसे अमर के लिंग को निचोड़ देगी और मैं झटके लेते हुए शांत हो गई।

उधर अमर भी मेरी योनि में लिंग को ऐसे घुसा रहा था, जैसे मेरी बच्चेदानी को फाड़ देना चाहता हो।

उसका हर धक्का मेरी बच्चेदानी में जोर से लगता और मैं सहम सी जाती।

उसने झड़ने के दौरान जो धक्के मेरी योनि में लगाए उसे बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था।

करीब 10-12 धक्कों में वो अपनी पिचकारी सी तेज़ धार का रस मेरी योनि में छोड़ते हुए शांत हो गया और तब जा कर मुझे थोड़ी राहत मिली।

अमर झड़ने के बाद भी अपने लिंग को पूरी ताकत से मेरी योनि में कुछ देर तक दबाता रहा। फिर धीरे-धीरे सुस्त हो गया और मेरे ऊपर लेट गया।

कुछ पलों के बाद मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और वो मेरे बगल में सो गया। मैं बाथरूम चली गई और जब वापस आई तो उसने मुझे फिर दबोच लिया और हम फिर से शुरू हो गए।

हमने फिर से सम्भोग किया और मैं बुरी तरह से थक कर चूर हो चुकी थी।

मैं झड़ने के बाद कब सो गई, पता ही नहीं चला।

मुझे जब बच्चे की रोने की आवाज आई तो मेरी आँख खुली, मैंने देखा कि शाम के 5 बज रहे थे।

मेरा मन बिस्तर से उठने को नहीं कर रहा था, पर बच्चे को रोता देख उठी और बच्चे को दूध पिलाते हुए फिर से लेट गई।

बच्चे का पेट भरने के बाद मैंने उसे दुबारा झूले में लिटा कर बाथरूम गई, खुद को साफ़ किया और वापस आकर चाय बनाई।

मैंने अमर को उठाया और उसे चाय दी। अमर चाय पीने के बाद बाथरूम जाकर खुद को साफ़ करने के बाद मेरे साथ बैठ कर बातें करने लगे।

उसने कहा- आज का दिन कितना बढ़िया है.. हमारे बीच कोई नहीं.. हम खुल कर प्यार कर रहे हैं और किसी का डर भी नहीं है।

मैंने कहा- पर आज कुछ ज्यादा ही हो रहा है… मेरी हालत ख़राब होने को है।

अमर ने कहा- अभी कहाँ.. अभी तो पूरी रात बाकी है और ऐसा मौका कब मिले कौन जानता है।

यह कहते हुए उसने मुझे फिर से अपनी बांहों में भर लिया और चूमने लगा।

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Re: तड़फती जवानी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:26

पास में ही बच्चा झूले में बैठा खेल रहा था, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा था तो मैंने अमर से कहा- यहाँ बच्चे के सामने ठीक नहीं है.. रात में उसके सोने के बाद जो मर्ज़ी सो करना।

पर अमर मेरी कहाँ सुनने वाला था, उसने कहा- ये तो सिर्फ 5 महीने का है.. इसे क्या पता हम क्या कर रहे हैं… फिर भी अगर तुम्हें परेशानी है तो इसे सुला दो।

मैंने उसे बताया- यह दिन भर सोया है और अभी कुछ देर पहले ही उठा है.. अभी नहीं सोएगा.. हम बाद में प्यार करेंगे.. रात भर.. मैं तो साथ में ही रहूँगी।

अमर मेरी बात को कहाँ मानने वाले थे, वो तो बस मेरे जिस्म से खेलने के लिए तड़प रहे थे।

उसने मेरे ही बच्चे के सामने मुझे तुरंत नंगा कर दिया और मेरे पूरे जिस्म को चूमने लगे।

मैं बैठी थी और अमर मेरे स्तनों को चूसने लगा। वो बारी-बारी से दोनों स्तनों से दूध पीने लगे और सामने मेरा बच्चा खेलते हुए कभी हमें देखता तो कभी खुद खिलौने से खेलने लगता।

कभी वो बड़े प्यार से मेरी तरफ देखा और मुस्कुराता, पर अमर पर इन सब चीजों का कोई असर नहीं हो रहा था… वो बस मेरे स्तनों को चूसने में लगा हुआ था।

मैंने अमर से विनती की कि मुझे छोड़ दे.. पर वो नहीं सुन रहा था। उसने थोड़ी देर में मेरी योनि को चूसना शुरू कर दिया और मैं भी गर्म होकर सब भूल गई।

मैंने भी उसका लिंग हाथ से सहलाना और हिलाना शुरू कर दिया। फिर अमर ने मुझे लिंग को चूसने को कहा, मैंने उसे चूस कर और सख्त कर दिया।

उसने मुझे आगे की तरफ झुका दिया और मैं अपने घुटनों तथा हाथों के बल पर कुतिया की तरह झुक गई, अमर मेरे पीछे आकर मेरी योनि में लिंग घुसाने लगा।

अमर ने लिंग को अच्छी तरह मेरी योनि में घुसा कर मेरे स्तनों को हाथों से पकड़ा और फिर धक्के लगाने लगा।

मैंने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया और आधे घंटे तक सम्भोग करने के बाद हम झड़ गए।

अमर को अभी भी शान्ति नहीं मिली थी, उसने दुबारा सम्भोग किया।

मेरी हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी और मेरे बदन में दर्द होने लगा था।

मैंने अमर से कहा- रात का खाना कहीं बाहर से ले आओ.. क्योंकि मैं अब खाना नहीं बना सकती… बहुत थक चुकी हूँ।

अमर बाहर चले गए और मैं फिर से सो गई, मैं बहुत थक चुकी थी।

हमने अब तक 6 बार सम्भोग किया था, पर अभी तो पूरी रात बाकी थी।

कहते हैं कि हर आने वाला तूफ़ान आने से पहले कुछ इशारा करता है। शायद यह भी एक इशारा ही था कि हम दिन दुनिया भूल कर बस एक-दूसरे के जिस्मों को बेरहमी से कुचलने में लगे थे।

लगभग 9 बजे के आस-पास अमर वापस आए फिर हमने बिस्तर पर ही खाना खाया और टीवी देखने लगे।

मैंने अपने बच्चे को दूध पिलाया और सुला दिया।

रात के करीब 11 बजे मैंने अमर से कहा- मैं सोने जा रही हूँ।

अमर ने कहा- ठीक है.. मैं थोड़ी देर टीवी देख कर सोऊँगा।

मैं अभी हल्की नींद में ही थी, तब मेरे बदन पर कुछ रेंगने सा मैंने महसूस किया।

मैंने आँख खोल कर देखा तो अमर का हाथ मेरे बदन पर रेंग रहा था।

मैंने कहा- अब बस करो.. कितना करोगे.. मार डालोगे क्या?

अमर ने कहा- अगर प्यार करने से कोई मर जाता, तो पता नहीं कितने लोग अब तक मर गए होते, एक अकेले हम दोनों ही नहीं हैं इस दुनिया में.. जो प्यार करते हैं।

फिर उसने मेरे बदन से खेलना शुरू कर दिया, हम वापस एक-दूसरे से लिपट गए।

हम दोनों ऐसे एक-दूसरे को चूमने-चूसने लगे जैसे कि एक-दूसरे में कोई खजाना ढूँढ रहे हों।

काफी देर एक-दूसरे को चूमने-चूसने और अंगों से खेलने के बाद अमर ने मेरी योनि में लिंग घुसा दिया।

अमर जब लिंग घुसा रहे थे तो मुझे दर्द हो रहा था, पर मैं बर्दास्त करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी।

काफी देर सम्भोग के बाद अमर शांत हुए, पर तब मैंने दो बार पानी छोड़ दिया था। बिस्तर जहाँ-तहाँ गीला हो चुका था और अजीब सी गंध आनी शुरू हो गई थी।


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Re: तड़फती जवानी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:27

तड़फती जवानी-17

हम दोनों ऐसे एक-दूसरे को चूमने-चूसने लगे जैसे कि एक-दूसरे में कोई खजाना ढूँढ रहे हों।

काफी देर एक-दूसरे को चूमने-चूसने और अंगों से खेलने के बाद अमर ने मेरी योनि में लिंग घुसा दिया।

अमर जब लिंग घुसा रहे थे तो मुझे दर्द हो रहा था, पर मैं बर्दास्त करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी।

काफी देर सम्भोग के बाद अमर शांत हुए, पर तब मैंने दो बार पानी छोड़ दिया था। बिस्तर जहाँ-तहाँ गीला हो चुका था और अजीब सी गंध आनी शुरू हो गई थी।

इसी तरह सुबह होने को थी, करीब 4 बजने को थे। हम 10 वीं बार सम्भोग कर रहे थे। मेरे बदन में इतनी ताकत नहीं बची थी कि मैं अमर का साथ दे सकूँ, पर ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अन्दर की प्यास अब तक नहीं बुझी थी।

जब अमर मुझे अलग होता, तो मुझे लगता अब बस और नहीं हो सकता.. पर जैसे ही अमर मेरे साथ अटखेलियाँ करते.. मैं फिर से गर्म हो जाती।

जब हम सम्भोग कर रहे थे.. मैं बस झड़ने ही वाली थी कि मेरा बच्चा जग गया और रोने लगा।

मैंने सोचा कि अगर मैं उठ गई तो दुबारा बहुत समय लग सकता है इसलिए अमर को उकसाने के लिए कहा- तेज़ी से करते रहो.. मुझे बहुत मजा आ रहा है.. रुको मत।

यह सुनते ही अमर जोर-जोर से धक्के मारने लगे।

मैंने फिर सोचा ये क्या कह दिया मैंने, पर अमर को इस बात से कोई लेना-देना नहीं था.. वो बस अपनी मस्ती में मेरी योनि के अन्दर अपने लिंग को बेरहमी से घुसाए जा रहे थे।

मैंने अमर को पूरी ताकत से पकड़ लिया, पर मेरा दिमाग दो तरफ बंट गया।

एक तरफ मैं झड़ने को थी और अमर थे दूसरी तरफ मेरे बच्चे की रोने की आवाज थी।

मैंने हार मान कर अमर से कहा- मुझे छोड़ दो, मेरा बच्चा रो रहा है।

पर अमर ने मुझे और ताकत से पकड़ लिया और धक्के मारते हुए कहा- बस 2 मिनट रुको.. मैं झड़ने को हूँ।

अब मैं झड़ चुकी थी और अमर अभी भी झड़ने के लिए प्रयास कर रहा था।

उधर मेरे बच्चे के रोना और तेज़ हो रहा था। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने जोर लगा कर अमर को खुद से अलग करने की कोशिश करने लगी, साथ ही उससे विनती करने लगी कि मुझे छोड़ दे।

मैं बार-बार विनती करने लगी- प्लीज अमर… छोड़ दो बच्चा रो रहा है.. उसे सुला कर दोबारा आ जाऊँगी।

पर अमर लगातार धक्के लगाते हुए कह रहा था- बस हो गया.. थोड़ा सा और..

काफी हाथ-पाँव जोड़ने के बाद अमर ने मुझे छोड़ दिया और जल्दी वापस आने को कहा।

मैंने अपने बच्चे को गोद में उठाया और उसे दूध पिलाने लगी। मैं बिस्तर पर एक तरफ होकर दूध पिला रही थी और अमर मेरे पीछे मुझसे चिपक कर मेरे कूल्हों को तो कभी जाँघों को सहला रहा था।

मैंने अमर से कहा- थोड़ा सब्र करो.. बच्चे को सुला लूँ।

अमर ने कहा- ये अच्छे समय पर उठ गया.. अब जल्दी करो।

मैं भी यही अब चाहती थी कि बच्चा सो जाए ताकि अमर भी अपनी आग शांत कर सो जाए और मुझे राहत मिले।

अमर अपने लिंग को मेरे कूल्हों के बीच रख रगड़ने में लगा था, साथ ही मेरी जाँघों को सहला रहा था।

कुछ देर बाद मेरा बच्चा सो गया और मैंने उसे झूले में सुला कर वापस अमर के पास आ गई।

अमर ने मुझे अपने ऊपर सुला लिया और फिर धीरे-धीरे लिंग को योनि में रगड़ने लगा।

मैंने उससे कहा- अब सो जाओ.. कितना करोगे.. मेरी योनि में दर्द होने लगा है।

उसने कहा- हां बस.. एक बार मैं झड़ जाऊँ.. फिर हम सो जायेंगे।

मैंने उससे कहा- आराम से घुसाओ और धीरे-धीरे करना।

उसने मुझे कहा- तुम धक्के लगाओ।

पर मैंने कहा- मेरी जाँघों में दम नहीं रहा।

तो उसने मुझे सीधा लिटा दिया और टाँगें चौड़ी कर लिंग मेरी योनि में घुसा दिया.. मैं कराहने लगी।

उसने जैसे ही धक्के लगाने शुरू किए… मेरा कराहना और तेज़ हो गया।

तब उसने पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- बस अब छोड़ दो.. दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा है।

तब उसने लिंग को बाहर निकाल लिया मुझे लगा शायद वो मान गया, पर अगले ही क्षण उसने ढेर सारा थूक लिंग के ऊपर मला और दुबारा मेरी योनि में घुसा दिया।

मैं अब बस उससे विनती ही कर रही थी, पर उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ा और प्यार से मेरे होंठों को चूमते हुए कहा- बस कुछ देर और मेरे लिए बर्दाश्त नहीं कर सकती?

मैं भी अब समझ चुकी थी कि कुछ भी हो अमर बिना झड़े शांत नहीं होने वाला.. सो मैंने भी मन बना लिया और दर्द सहती रही।

अमर का हर धक्का मुझे कराहने पर मजबूर कर देता और अमर भी थक कर हाँफ रहा था।

ऐसा लग रहा था जैसे अमर में अब और धक्के लगाने को दम नहीं बचा, पर अमर हार मानने को तैयार नहीं था।

उसका लिंग जब अन्दर जाता, मुझे ऐसा लगता जैसे मेरी योनि की दीवारें छिल जायेंगी।

करीब 10 मिनट जैसे-तैसे जोर लगाने के बाद मुझे अहसास हुआ कि अमर अब झड़ने को है.. सो मैंने भी अपने जिस्म को सख्त कर लिया.. योनि को सिकोड़ लिया.. ताकि अमर का लिंग कस जाए और उसे अधिक से अधिक मजा आए।

मेरे दिमाग में यह भी चल रहा था कि झड़ने के दौरान जो धक्के अमर लगायेंगे वो मेरे लिए असहनीय होंगे.. फिर भी अपने आपको खुद ही हिम्मत देती हुई अमर का साथ देने लगी।

अमर ने मेरे होंठों से होंठ लगाए और जीभ को चूसने लगा साथ ही मुझे पूरी ताकत से पकड़ा और धक्कों की रफ़्तार तेज़ कर दी।

उसका लिंग मेरी योनि की तह तक जाने लगा, 7-8 धक्कों में उसने वीर्य की पिचकारी सी मेरे बच्चेदानी पर छोड़ दी और हाँफता हुआ मेरे ऊपर ढेर हो गया।

उसके शांत होते ही मुझे बहुत राहत मिली, मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और हम दोनों सो गए।

एक बात मैंने ये जाना कि मर्द जोश में सब कुछ भूल जाते हैं और उनके झड़ने के क्रम में जो धक्के होते हैं वो बर्दाश्त के बाहर होते हैं।

मेरे अंग-अंग में ऐसा दर्द हो रहा था जैसे मैंने न जाने कितना काम किया हो

अमर ने मुझे 7 बजे फिर उठाया और मुझे प्यार करने लगा।

मैंने उससे कहा- तुम्हें काम पर जाना है तो अब तुम जाओ.. तुम्हें इधर कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी।

अमर ने कहा- तुमसे दूर जाने को जी नहीं कर रहा।

उसने मुझे उठाते हुए अपनी गोद में बिठा लिया और बांहों में भर कर मुझे चूमने लगा।

मैंने कहा- अभी भी मन नहीं भरा क्या?

उसने जवाब दिया- पता नहीं.. मेरे पूरे जिस्म में दर्द है, मैं ठीक से सोया नहीं, पर फिर भी ऐसा लग रहा है.. जैसे अभी भी बहुत कुछ करने को बाकी है।

मैंने उसे जाने के लिए जोर दिया और कहा- अब बस भी करो.. वरना तुम्हें देर हो जाएगी।

पर उस पर मेरी बातों का कोई असर नहीं हो रहा था, वो मुझे बस चूमता जा रहा था और मेरे स्तनों को दबाता और उनसे खेलता ही जा रहा था।

मेरे पूरे शरीर में पहले से ही काफी दर्द था और स्तनों को तो उसने जैसा मसला था, पूरे दिन उसकी बेदर्दी की गवाही दे रहे थे.. हर जगह दांतों के लाल निशान हो गए थे।

यही हाल मेरी जाँघों का था, उनमें भी अकड़न थी और कूल्हों में भी जबरदस्त दर्द था। मेरी योनि बुरी तरह से फूल गई थी और मुँह पूरा खुल गया था जैसे कोई खिला हुआ फूल हो।

अमर ने मुझे चूमते हुए मेरी योनि को हाथ लगा सहलाने की कोशिश की.. तो मैं दर्द से कसमसा गई और कराहते हुए कहा- प्लीज मत करो.. अब बहुत दर्द हो रहा है।

तब उसने भी कहा- हां.. मेरे लिंग में भी दर्द हो रहा है, क्या करें दिल मानता ही नहीं।

मैं उससे अलग हो कर बिस्तर पर लेट गई, तब अमर भी मेरे बगल में लेट गया और मेरे बदन पे हाथ फिराते हुए मुझसे बातें करने लगा।

उसने मुझसे कहा- मैंने अपने जीवन में इतना सम्भोग कभी नहीं किया और जितना मजा आज आया, पहले कभी नहीं आया।

फिर उसने मुझसे पूछा तो मैंने कहा- मजा तो बहुत आया.. पर मेरे जिस्म की हालत ऐसी है कि मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती।

तभी मेरी योनि और नाभि के बीच के हिस्से में उसका लिंग चुभता हुआ महसूस हुआ.. मैंने देखा तो उसका लिंग फिर से कड़ा हो रहा था।

उसके लिंग के ऊपर की चमड़ी पूरी तरह से ऊपर चढ़ गई थी और सुपाड़ा खुल कर किसी सेब की तरह दिख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सूज गया हो।

अमर ने मुझे अपनी बांहों में कसते हुए फिर से चूमना शुरू कर दिया, पर मैंने कहा- प्लीज अब और नहीं हो पाएगा मुझसे.. तुम जाओ।


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