हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

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raj..
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Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 09:46


जब मस्ती चढ़ती है तो

दोस्तों मैं बरखा एक शादीशुदा औरत हूँ। मैंने शादी से पहले अपनी मौसी के संग मज़े किये। फिर मेरी शादी हो गई और मैंने शिमला जाकर अपने पिया संग हनीमून भी मनाया। जिंदगी बहुत खुशहाल मोड़ पर थी और मैं अपने पिया संग एक मस्त जिंदगी जी रही थी। मेरे पति अजय भी मुझे बहुत प्यार करते हैं। उनके प्यार की निशानी मेरी बेटी है। मेरे पति मेरी हर ख्वाहिश को पूरा करते है और मैं भी उनको बहुत प्यार करती हूँ।
पर कुछ बातें इंसान के हाथ में नहीं होती...
बात तब की है जब मेरी ननद रजनी कुछ दिनों के लिए मेरे पास रहने आई और फिर जैसे सब कुछ बदल गया। रजनी के बारे में बता दूँ। रजनी मेरी बड़ी ननद यानि मेरे पति की बड़ी बहन है, शादीशुदा है और दो बच्चों की माँ है। अगर शारीरिक बनावट की बात करें तो सुन्दर है और शरीर भी भरा भरा सा है, बड़ी-बड़ी चूचियाँ और मोटी सी गाण्ड उसकी सुंदरता पर चार चाँद लगाते हैं, बेहद आकर्षक भी है और सेक्सी भी। उसका ज्यादा समय सेक्स के बारे में बातें करने में ही बीतता है।
अजय यानि मेरी पति को अपनी कम्पनी के काम से एक महीने के लिए बाहर जाना पड़ा तो मैंने रजनी को अपने पास बुला लिया। क्यूँकि एक तो मेरी बेटी अभी छोटी थी और मैं अकेली भी थी। रजनी आ गई और एक दो दिन ऐसे ही बीत गए।
पर एक रात...
मैं रात को पेशाब करने के लिए उठी तो रजनी अपने बिस्तर पर नहीं थी। मैंने पहले तो सोचा कि वो भी पेशाब करने गई होगी पर जब बाथरूम में जाकर देखा तो वो वहाँ नहीं थी। मैं पेशाब करके अंदर आई तो मुझे रसोई से कुछ आवाज आई। ध्यान से सुना तो ये किसी की मस्ती भरी सिसकारियाँ थी। मैं डर गई पर फिर मैंने हिम्मत करके रसोई में जाकर देखा तो यह रजनी थी जो एक बैंगन को अपनी चूत में घुसा कर अंदर-बाहर कर रही थी। उसकी आँखें बंद थी और वो पूरी तन्मयता से अपनी चूत में बैंगन अंदर-बाहर कर रही थी। उसे तो मेरे आने का भी पता नहीं लगा था।
मैं वहीं खड़ी उसको देखती रही। मुझे तभी मौसी का वो लकड़ी वाला मस्त कलंदर याद आ गया जिसने मुझे पहली बार सेक्स का अनुभव करवाया था। मैं सोच में डूबी हुई थी की रजनी की मस्ती भरी आह ने मुझे जगाया। रजनी झड़ चुकी थी और वो अब उस बैंगन को चाट रही थी जो कुछ देर पहले उसकी चूत की गहराई नाप रहा था।
"जीजी...(हमारे राजस्थान में ननद को जीजी कह कर बुलाते हैं)"
रजनी ने एकदम चौंक कर आँखें खोली।
"जीजी... आप यह क्या कर रही थी?"
"वो...वो...?
रजनी थोड़ी हकला गई। उसका हकलाना देख कर मेरी हँसी छूट गई।
"अरे जीजी.. बहुत खुजली हो रही है चूत में...? हमारे ननदोई सा चोदे कौनी के तमने?"
मुझे हँसता देख कर रजनी भी कुछ सामान्य हुई और वो भी हँस पड़ी और बोली- भाभी... इस निगोड़ी चूत को लण्ड लिए बिना सब्र ही नहीं होता। जब तक लण्ड से एक बार चुदवा न लूँ तब तक तो नींद ही नहीं आती !
"पर मेरी रानी अब तो इस चूत से दो दो बच्चे निकाल चुकी है अब भी यह शांत नहीं हुई?"
"पता नहीं भाभी? पर बस रहा ही नहीं जाता। तुम्हारे ननदोई जी भी अब चोद नहीं पाते हैं सही से तो रसोई के बैंगन खीरे और मूली से ही काम चला रही हूँ।"
मेरी हँसी छूट गई। रजनी भी अब उठ खड़ी हुई थी। हम दोनों ऐसे ही बातें करते करते अपने बिस्तर पर आ गए और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही सेक्सी बातें करते रहे। रजनी की सेक्सी बातें सुन कर मेरी चूत में भी खुजली होने लगी थी। ऊँगली से सहला सहला कर मैंने भी अपनी चूत को किसी तरह शांत किया और फिर हम सो गए।
सुबह उठ कर हम दोनों ने मिल कर नाश्ता तैयार किया और एक साथ बैठ कर खाने लगे।
तभी घर के बाहर सब्जी वाले ने आवाज लगाई,"आलू ले लो... बैंगन ले लो... खीरा ले लो..."
आवाज सुनते ही हम दोनों जोर से हँस पड़ी।
मैंने रजनी से पूछ लिया- जीजी... ले कर आऊँ क्या मोटा सा खीरा रात के लिए?
वो भी बेशर्मी से हँस कर बोली- फिर तो दो लेना, एक मेरे लिए और एक तुम्हारे लिए !
दिन में भी रजनी ज्यादातर सेक्स की ही बातें करती रही। तो बातों बातों में मैंने रजनी को अपनी और मौसी की दास्तान सुना दी। रजनी मेरी बात सुन कर मस्त हो गई और बार बार लकड़ी के मस्त कलंदर के बारे में पूछने लगी। मैंने टालने की बहुत कोशिश की पर रजनी नहीं मानी। तब मैंने अपने संदूक में से अपना पहला प्यार अपना लाडला मस्त कलंदर निकाल कर रजनी को दिखाया। बेचारा मेरी शादी के बाद एक बार भी प्रयोग में नहीं आया था।
"हाय भाभी... यह तो बहुत मस्त है... देखो तो तुम्हारे ननदोई के लण्ड से भी मोटा और लम्बा...!"
"ह्म्म्म !" मैंने हामी भरी।
रजनी ने उसको ऐसे मुँह में लेकर चाटा जैसे असली लण्ड हाथ में आ गया हो। रजनी तो उसको अपनी साड़ी के ऊपर से ही चूत पर रगड़ने लगी। देख कर मेरी फिर से हँसी छूट गई। रजनी वहीं सोफे पर टाँगें फैला कर लेट गई और अपनी साड़ी ऊपर करके पेंटी के बराबर में से मस्त कलंदर को चूत पर रगड़ने लगी।
"जीजी, क्यों तड़प रही हो... साड़ी उतार कर अच्छे से डाल लो इसे अपनी चूत में !" मैंने कहा।
रजनी तो जैसे मेरी इसी बात का इन्तजार कर रही थी। उसने झट से अपनी साड़ी और पेटीकोट उतार कर एक तरफ़ फैंक दिया और पेंटी भी उतार दी। मैंने तब पहली बार रजनी की चूत देखी। अच्छे से चुदी हुई रजनी की चूत बहुत मस्त लग रही थी। मुझे मौसी के साथ बिताए दिन याद आ गए और मैं रजनी की टांगों के पास जाकर बैठ गई। रजनी मस्ती के मारे मस्त कलन्दर को अपनी चूत पर रगड़ रही थी और सिसकारियाँ भर रही थी।
तभी मैंने रजनी के हाथ से डण्डा ले लिया और एक हाथ से रजनी की चूत सहलाने लगी। रजनी की चूत पानी छोड़ रही थी। मैंने दो उँगलियाँ रजनी की तपती हुई चूत में डाल दी। रजनी की चूत पूरी गीली हो चुकी थी।
"भाभी... अब जल्दी से यह मूसल डाल ना मेरी चूत में... जल्दी कर मेरी जान !"
रजनी डण्डा अपनी चूत में लेने को बेचैन थी। मैंने भी तेल लगा कर डंडा रजनी की चूत में घुसा दिया और अंदर-बाहर करने लगी। ऐसा करने से मेरी चूत में कीड़े रेंगने लगे थे। मैं अब लकड़ी के मस्त कलन्दर से रजनी की चूत चोद रही थी और रजनी ने भी आहें भरते-भरते मेरी साड़ी जांघों तक ऊपर उठा दी और मेरी चूत पर हाथ फेरने लगी। मेरी चूत भी पानी से लबालब हो गई थी।
रजनी दो ऊँगलियाँ मेरी चूत में पेल रही थी। मेरे बदन में भी मस्ती की लहर दौड़ रही थी। मैं झट से रजनी के ऊपर आ गई और मैंने अपनी चूत रजनी के मुँह के सामने कर दी। अब हम दोनों 69 की अवस्था में थीं।
मैं रजनी की चूत मस्त कलंदर से चोद रही थी और अब रजनी ने भी अपनी जीभ मेरी चूत के मुहाने पर टिका दी थी। रजनी मस्ती में भर कर मेरी चूत चाट रही थी, मुझे मस्त कर रही थी और मैं भी पूरी मस्त होकर मस्त कलंदर को रजनी की चूत के अंदर-बाहर कर रही थी।
रजनी की सीत्कारें और मेरी मस्ती भरी सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थी और माहौल को और मस्त कर रही थी।
लगभग बीस मिनट की धमाचौकड़ी के बाद रजनी की चूत अकड़ी और झमाझम बरस पड़ी। रजनी को परम-आनन्द बहुत तेज़ी से मिला था, ढेर सारा पानी छोड़ा था रजनी की चूत ने।
इधर मेरी चूत में भी रजनी की जीभ ने कमाल कर दिया और मेरी चूत भी मस्त होकर बरस पड़ी और ढेर सारा पानी रजनी के मुँह पर फेंक दिया। रजनी सारा पानी चाट गई तो मैंने भी डण्डा बाहर निकाल कर अपनी जीभ रजनी की चूत पर लगा दी और चाट चाट कर पूरी चूत साफ़ कर दी।
हम दोनों थक कर चूर-चूर हो रही थी और नंगी ही बिस्तर पर लेट गई। मुझे तो खैर पहले भी लेस्बियन सेक्स का मज़ा पता था पर रजनी ने शायद यह सब पहली बार किया था। वो तो इस मस्ती से इतनी खुश हुई कि बहुत देर तक वो डण्डे को अपनी चूत में डाल कर ही लेटी रही।
उसके बाद रजनी करीब बीस-पच्चीस दिन मेरे साथ रही और हर रोज हमने भरपूर मज़ा लिया।
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raj..
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Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 09:46

उसके बाद मेरे पति वापिस आ गए। आते ही मैंने उन्हें उलहाना दिया और अकेले छोड़ कर जाने के लिए थोड़ा सा झूठ-मूठ का झगड़ा भी किया। पर उस रात अजय ने पूरी रात असली लण्ड से मेरी चूत का पोर-पोर मसल दिया और मेरा सारा गुस्सा ठण्डा कर दिया। उस रात रजनी दूसरे कमरे में मेरे लकड़ी के मस्त कलन्दर के साथ मस्ती करती रही।
अगले दिन मेरे पति के जाने के बाद रजनी ने मेरे साथ एक बार फिर मस्ती की और मस्त कलन्दर को अपने साथ ले जाने के लिए पूछा। मैं देना तो नहीं चाहती थी पर जब रजनी बोली कि तुम्हारे ननदोई सा का अब सही से खड़ा नहीं हो रहा है और मुझे बैंगन खीरे से काम चलाना पड़ता है तो मैंने देने के लिए हाँ कर दी। उसी शाम को ननदोई सा आ गए रजनी को लेने और अगली सुबह वो रजनी को लेकर चले गए।
जिंदगी फिर से अपने पुराने रस्ते पर आ गई थी।
मुझे छोटी बच्ची को सँभालने और घर का काम करने में परेशानी हो रही थी और इस कारण अजय भी ड्यूटी के लिए लेट हो जाते थे कभी कभी। मैंने अजय को एक नौकर रखने के लिए कहा तो अजय ने जरुरत को ध्यान में रखते हुए हामी भर दी। पर एक समस्या थी की नौकर किसे रखें। बाहर के आदमी पर विश्वास करने का मन नहीं मान रहा था क्योंकि एक दो घटना मेरे शहर में हो चुकी थी और टी वी पर भी अक्सर ख़बरें आती रहती थी।
काफी सोच समझ कर फैसला किया कि मेरे पति के गाँव से किसी नौकर को शहर बुला लिया जाए। मेरे पति इस मकसद से गाँव में गए और जब अगले दिन वो वापिस आये तो एक बीस इक्कीस साल का नौजवान उनके साथ था।
मैं उसको जानती थी , यह राजकुमार था जिसको सभी प्यार से राजू कहते थे। वह मेरे पति के घर के पास ही रहता था और गाँव में मेरी ससुराल में ही घर का काम करता था।
मैं बहुत खुश हुई कि ठीक है , घर का ही एक आदमी मिल गया। हमने राजू को अपने घर के पीछे का एक कमरा रहने के लिए दे दिया। राजू ने आते ही घर का सारा काम संभाल लिया। अब मैं तो सिर्फ उसकी थोड़ी बहुत मदद कर देती थी नहीं तो सारा काम वो ही करता था। काम खत्म करने के बाद हम अक्सर गाँव की बातें करने लगते समय बिताने करने के लिए। पर सब कुछ मर्यादा में ही था।
जिंदगी चल रही थी पर जैसा मैंने बताया कि पता नहीं जिंदगी कब कौन सा रंग बदल ले।
कुछ दिन बाद होली का त्यौहार था और सभी जानते हैं कि कितना मस्ती भरा त्यौहार है यह। हमारे राजस्थान में तो होली पर बहुत मस्ती होती है।
होली वाले दिन सुबह जल्दी नाश्ता करके सब होली खेलने के लिए इकट्ठे हुए। मेरे पति के एक-दो दोस्त भी आये और मुझे रंग कर चले गए। कुछ देर बाद मेरे पति को भी उनके दोस्त अपने साथ ले गए। राजू आज सुबह से बाहर था। कुछ देर बाद जब आया तो वो पूरी मस्ती में था , आते ही बोला- भाभी.... अगर आप बुरा न मानो तो क्या मैं आपको रंग लगा सकता हूँ?
वो मुझे भाभी ही कहता था। वो मेरे ससुराल का था और मेरे देवर की तरह था तो मैं उसको हाँ कर दी। मेरा हाँ करना मुझे भारी पड़ गया क्योंकि मेरी हाँ सुनते ही राजू रंग लेकर कर मुझ पर टूट पड़ा और मुझे रंग लगाने लगा।
मैं कहती रही- आराम से ! आराम से !
पर राजू ने मेरे बदन पर रंग मल दिया।
रंग लगाते लगाते राजू के हाथ कई बार मेरी चूची और मेरी गाण्ड पर भी लगा जिसे मैंने तब महसूस नहीं किया पर जब वो रंग लगा कर हटा तो अपने कपड़ों की हालत देख कर मेरा मन बेचैन हो गया क्योंकि मेरी चूचियाँ पूरी रंग से सराबोर थी। मेरे पेट पर भी रंग लगा था और मेरी साड़ी भी अस्त-व्यस्त हो चुकी थी।
राजू के हाथ का एहसास अब भी मेरे बदन के ऊपर महसूस हो रहा था। उसने मेरी चूचियाँ कुछ ज्यादा जोर से मसल दी थी।
लगभग बारह बजे तक ऐसे ही मस्ती चलती रही। राजू ने भांग पी ली थी जिस कारण उस पर होली का नशा कुछ ज्यादा ही चढ़ा हुआ था और उसने कम से कम तीन-चार बार मुझे रंग लगाया। मैं मना करती रही पर वो नहीं माना।
करीब एक बजे मैंने राजू को नहा कर दोपहर का खाना तैयार करने के लिए कहा। मैं भी अब नहा कर अपना रंग छुड़वाने की तैयारी करने लगी।
कुछ देर बाद मैं नहा कर कपड़े बदल कर रसोई में गई तो देखा राजू अभी वहाँ नहीं आया था। मैं उसको बुलाने के लिए उसके कमरे की तरफ गई तो वो अपने कमरे के बाहर खुले में ही बैठ कर नहा रहा था।
मैंने आज पहली बार राजू का बदन देखा था। गाँव के दूध-घी का असर साफ़ नजर आ रहा था। राजू का बदन एकदम गठीला था। उसके पुट्ठे अलग से ही नज़र आते थे। होते भी क्यों ना ! गाँव के लोग मेहनत भी तो बहुत करते हैं तभी तो उनका बदन इतना गठीला होता है।
बदन तो अजय का भी अच्छा है पर शहर की आबो-हवा का असर नजर आने लगा है। पर ना जाने क्यों मुझे राजू का बदन बहुत आकर्षक लगा। कुछ देर मैं उसके बदन को देखती रही पर उसने शायद मुझे नहीं देखा था। तभी मैं उसको आवाज देते हुए उसके पास गई और थोड़ा सा डाँटते हुए बोली- तू नहाया नहीं अभी तक... ? दोपहर का खाना नहीं बनाना है क्या?
" भाभी पता नहीं तुमने कैसा रंग लगाया है छूट ही नहीं रहा है... अगर बुरा ना मानो तो मेरी पीठ से रंग को साफ़ करने में मेरी मदद करो ना !"
मैं कुछ देर सोचती रही और फिर अपने आप को उसके बदन को छूने से नहीं रोक पाई और बोली- लया साबुन इयाँ दे... यो मेरो रंग है इया कौनी उतरेगो !
राजू मेरी बात सुन कर हँस पड़ा और मैं बिना कुछ कहे साबुन उठा कर राजू की पीठ पर लगाने लगी।अचानक साबुन फिसल कर नीचे गिर गया और जब मैं उसको उठाने के लिए झुकी तो मेरी नज़र राजू के कच्छे में बने तम्बू पर पड़ी। शायद मेरे स्पर्श से राजू का लण्ड रंगत में आ गया था और सर उठा कर कच्छे में खड़ा था। तम्बू को देख कर ही लग रहा था की अंदर बहुत भयंकर चीज होगी।
मेरे अंदर अब कीड़े रेंगने लगे थे। मैं राजू को जल्दी नहा कर आने का कह कर अंदर चली गई और अपने कमरे में जाकर अपनी चूत सहलाने लगी। मुझे अब अजय या मस्त कलंदर की बहुत जरुरत थी पर दोनों ही इस समय मेरे पास नहीं थे।
मन बहुत बेचैन हो रहा था कि तभी अजय की गाड़ी की आवाज आई।
ये रंग से सराबोर होकर वापिस आये थे। मैंने इन्हें नहाने के लिए कहा पर इन्होंने मुझे पकड़ कर मुझे फिर से रंग लगा दिया। कुछ देर की हँसी मजाक के बाद ये नहाने जाने लगे तो मैंने कहा- मेरा क्या होगा ?
तो इन्होने मुझे पकड़ कर बाथरूम में खींच लिया।
मैं कहती रही कि बाहर राजू है पर इन्होंने मेरी एक ना सुनी। दिल तो मेरा भी बहुत कर रहा था सो मैं भी जाकर इनके पास खड़ी हो गई। हमने एक दूसरे के कपड़े उतारे और फ़व्वारे के नीचे खड़े होकर नहाने लगे।
नहाते नहाते जब बदन एक दूसरे से रगड़े तो चिंगारी निकली और मैं वही बाथरूम में चुद गई।
ऐसा नहीं था कि मैं बाथरूम में नहाते नहाते पहली बार चुदी थी पर आज राजू का लण्ड देख कर जो मस्ती चढ़ी थी उसमे चुदवाने से और भी ज्यादा मज़ा आया था या यूँ कहो कि आज जितना मज़ा पहले कभी अजय ने मुझे नहीं दिया था।
इस होली ने मेरी नियत खराब कर दी थी। अब मेरा बार बार दिल करता था राजू का लण्ड देखने को।अब मैं भी इस ताक में रहती कि कब राजू का लण्ड देखने को मिले। वो घर के पिछवाड़े में पेशाब करता था तो मैं अब हर वक्त नजर रखती कि कब वो पेशाब करने जायगा। जब वो पेशाब करते हुए अपना लण्ड बाहर निकालता और उसमे से मोटी मूत की धार निकलती मेरी चूत चुनमुना जाती। मेरे कमरे की खिड़की से पिछवाड़े का सारा नज़ारा दिखता था। मेरे कमरे की खिड़की के शीशे में से अंदर का नहीं दिखता था पर बाहर का सब कुछ नज़र आता था। राजू का लण्ड देखने के बाद रात को अजय से चुदवाते हुए भी राजू का लण्ड दिमाग में रहता और चुदाई में भी और ज्यादा मज़ा आता।
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Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 09:47

होली वाले दिन साबुन लगवाने के बाद अब राजू मेरे से कुछ ज्यादा खुल गया था। अब वो मेरे साथ भाभी देवर की तरह मजाक करने लगा था और कभी कभी तो द्विअर्थी शब्दों का भी प्रयोग करने लगा था। अब वो अक्सर मुझे साबुन लगाने के लिए बोल देता और मैं भी ये मौका ज्यादातर नहीं छोड़ती थी।
ऐसे ही एक दिन साबुन लगाकर जब मैं वापिस मुड़ी तो साबुन के पानी से फिसल कर गिर गई और मेरे कूल्हे पर चोट लग गई। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने मुझे दस पन्द्रह दिन का पूर्ण आराम बता दिया। कूल्हे की हड्डी खिसक गई थी।
अजय काम से इतनी लम्बी छुट्टी नहीं ले सकता था। और राजू ने भी अजय को बोला कि वो पूरा ध्यान रखेगा तो अजय ने ऑफिस जाना बंद नहीं किया।
पर तभी एक जरूरी काम से अजय को टूर पर जाना पड़ा और तभी एक मुश्किल आन पड़ी कि मेरी माहवारी शुरू हो गई।मैंने अजय को अपनी दिक्कत बताई तो उसने छुट्टी लेने की कोशिश की पर काम जरूरी होने के कारण छुट्टी नहीं मिली। मैं तो बिस्तर पर से उठ नहीं सकती थी तो अब नैपकिन कैसे बदलूंगी।
नित्यकर्म के लिए भी मुझे बहुत दिक्कत थी। जब अजय थे तो वो मुझे सहारा देकर बाथरूम में बैठा देते थे और पेशाब तो मुझे बिस्तर पर बैठे बैठे ही करना पड़ता था। पर अजय के जाने के बाद कैसे होगा यह भी एक बड़ी दिक्कत थी।
अजय ने रजनी को बुला लिया पर वो भी एक दिन से ज्यादा नहीं रुक सकती थी क्यूँकि उसके ससुराल में कुछ कार्यक्रम था। खैर रजनी को छोड़ कर अजय चले गए।
रजनी भी अगली सुबह मेरा नैपकिन बदल कर चली गई। अब घर पर मैं मेरी मुनिया और सिर्फ राजू थे। दोपहर को मुझे नैपकिन बदलने की जरुरत महसूस होने लगी क्यूंकि माहवारी बहुत तेज हो गई थी।
मैंने राजू को व्हिस्पर के पैड लाने के लिए भेजा। वो जब लेकर आया तो मैंने लेटे लेटे ही पुराना पैड निकाल कर दूसरा पैड लगा लिया। पर पुराने गंदे नैपकिन का क्या करूँ , यह सोच कर मैं परेशान हो गई।
मैंने राजू से एक पोलिथिन मंगवा कर उसमें डाल कर पैड बाहर कूड़ादान में डाल कर आने के लिए दे दिया।
राजू बार बार पूछ रहा था- इसमें क्या है...
तो मेरी हँसी छूट गई।
मेरी एक समस्या कुछ देर के लिए तो खत्म हो गई पर दूसरी शुरू हो गई बाथरूम जाने वाली।
पर राजू ने यहाँ भी मेरी बहुत मदद की। वो मुझे अपनी बाहों में उठा कर बाथरूम में ले गया और मुझे अंदर बैठा कर बाहर इन्तजार करने लगा। उसके बदन का एहसास और उसकी बाहों की मजबूती का एहसास आज मुझे पहली बार हुआ था सो मैं अंदर ही अंदर रोमांचित हो उठी। इसी तरह उसने अगले चार दिन तक मेरी खूब सेवा की।
मैं उसकी मर्दानगी और उसके सेवा-भाव के सामने पिंघल गई थी।
चार दिन के बाद अजय वापिस आये और उन्होंने एक सप्ताह की छुट्टी ले ली और मेरी खूब सेवा की। मैं ठीक हो गई।
पर अब घर का माहौल कुछ बदला बदला सा था। अब मैं अजय के जाने के बाद देर-देर तक राजू के साथ बैठी रहती और बातें करती रहती। कुछ दिन के बाद ही बातें सेक्सी रूप लेने लगी। पर हम खुल कर कुछ नहीं बोलते थे। बस ज्यादातर दो अर्थों वाले शब्दों का प्रयोग करते थे।
करीब दो महीने ऐसे ही निकल गए।
एक दिन मैं जब नहाने जा रही थी तो राजू बोला- भाभी अगर जरुरत हो तो क्या मैं आपकी पीठ पर साबुन लगा दूँ ?
मैं कुछ नहीं बोली और चुपचाप नहाने चली गई।
वापिस आई तो राजू रसोई में खाना बनाने की तैयारी कर रहा था। मैंने नहाने के बाद मैक्सी पहनी हुई थे जो मेरे बदन पर ढीली ढीली थी। मैं गीले बदन ही रसोई में चली गई और कुछ तलाश करने लगी। जैसे ही मैंने ऊपर से सामान उतारने के लिए हाथ ऊपर किये राजू ने एकदम से मुझे बाहों में भर लिया और बेहताशा मेरी गर्दन और मेरे कान के आस-पास चूमने लगा।
मैंने थोड़ा सा छुड़वाने की कोशिश की तो उसके हाथ मेरे बदन पर और जोर से जकड़ गए और उसने अपने एक हाथ से मेरी चूची को ब्रा के ऊपर से ही पकड़ कर मसल दिया। मैं हल्का विरोध करती रही पर मैंने उसको रोका भी नहीं।
मैं तो खुद कब से समर्पण करने के मूड में थी। यह तो राजू ने ही बहुत समय लगा दिया।
कुछ देर बाद ही मैंने विरोध बिलकुल बंद कर दिया और अपने आप को राजू के हवाले कर दिया।
राजू ने भी शायद देर करना उचित नहीं समझा और मेरी मैक्सी को मेरे बदन से अलग कर दिया। अब मैं सिर्फ ब्रा और पेंटी में राजू की बाहों में थी। राजू मेरे नंगे बदन को बेहद उत्तेजित होकर चूम और चाट रहा था। राजू ने अपनी मजबूत बाहों में मुझे उठाया और अंदर कमरे में ले गया। वहाँ मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरे ऊपर छा गया। मेरे बदन का रोम रोम राजू ने चूम डाला।
राजू की बेताबी मुझे बदहवास कर रही थी। मैं मस्त होती जा रही थी। मेरी सिसकारियाँ और सीत्कारें निकल रही थी।
" आह... राजू... यह क्या कर दिया रे तुमने? इतना वक्त क्यों गंवा दिया रे बावले... बहुत तड़पाया है तूने अपनी भाभी को... मसल डाल रे.. आह.." मैं मदहोशी की हालत में बड़बड़ा रही थी।
राजू ने मेरे बदन पर बची हुई ब्रा और पैंटी को भी मेरे बदन से अलग कर दिया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। वो जीभ से मेरे होंठों को चाट रहा था और मेरे निचले होंठ को अपने होंठों में दबा कर चूम रहा था। अब मेरे हाथ भी राजू के कपड़े उतारने की कोशिश करने लगे। राजू जैसे समझ गया कि मैं क्या चाहती हूँ और उसने खड़े होकर अपने सारे कपड़े उतार फेंके।
कच्छा निकालते ही राजू का काला सा लण्ड निकल कर मेरे सामने तन कर खड़ा हो गया। राजू का मूसल आज मैंने पहली बार इतनी नजदीक से देखा था। नंग-धडंग राजू मेरे पास बिस्तर पर आकर बैठ गया और मेरी चूचियों से खेलने लगा। मेरा हाथ भी अपने आप राजू के लण्ड पर पहुँच गया और सहलाने लगा। राजू का लण्ड सच में अजय के लण्ड से ज्यादा मोटा और लम्बा था। और सच कहूँ तो राजू का लण्ड अजय के लण्ड से ज्यादा कड़क लग रहा था।
राजू मेरी चूचियाँ मुँह में लेकर चूस रहा था और मैं मस्ती के मारे आहें भर रही थी।
" आह... मेरे राजा.... चूस ले रे... ओह्ह्ह्ह बहुत मज़ा आ रहा है रे... जोर जोर से चूस रे.."
राजू मुझे चूमते-चूमते नीचे की तरफ बढ़ रहा था और मेरी चूचियों की जोरदार चुसाई के बाद अब वो जीभ से मेरे पेट और नाभि के क्षेत्र को चूम और चाट रहा था जो मेरे बदन की आग में घी का काम कर रहा था। मेरा बदन भट्ठी की तरह सुलगने लगा था और मैं राजू का लण्ड बार बार अपनी ओर खींच रही थी।
राजू का लण्ड लकड़ी के डण्डे की तरह कड़क था। राजू चूमते-चूमते मेरी जांघों पर पहुँच गया और उसने अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए।
मेरे सुलगते बदन से चिंगारियाँ निकलने लगी... मेरी सीत्कारें और तेज और तेज होती जा रही थी या यूँ कहें कि मैं मस्ती के मारे चीखने लगी थी।
मेरी चीखें बंद करने के लिए राजू ने अपना लण्ड मेरे मुँह में डाल दिया। मैं मस्ती के मारे राजू का लण्ड चूसने लगी। अब चीखें निकलने की बारी राजू की थी। पाँच मिनट की चुसाई के बाद मेरी चूत अब लण्ड मांगने लगी थी और मेरा अपने ऊपर काबू नहीं रहा था।
मैंने राजू को पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया। राजू मेरी बेताबी समझ चुका था। उसने अपना लण्ड मेरी चूत पर लगाया और एक जोरदार धक्का लगा दिया। हालाँकि मैं पूरी मस्ती में थी पर फिर भी धक्का इतना दमदार था कि मेरी चीख निकल गई। राजू ने मेरी चीख पर कोई ध्यान नहीं दिया और एक और दमदार धक्का लगा कर अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में स्थापित कर दिया।
दूसरा धक्का इतना जोरदार था कि लण्ड सीधा मेरी बच्चेदानी से जा टकराया और मैं बेहोश होते होते बची।
फिर तो राजू ने अपनी जवानी का पूरा जोश दिखा दिया और इतने जोरदार धक्कों के साथ मेरी चुदाई की मेरे बदन का रोम-रोम खिल उठा , मेरा पूरा बदन मस्ती के हिंडोले में झूले झूल रहा था। मैं गाण्ड उठा-उठा कर राजू का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी।
" फाड़ दे मेरे राजा... अपनी भाभी की चूत को फाड़ डाल... ओह्ह्ह आह्ह चोद और जोर से चोद... मैं तो आज से तेरी हो गई मेरे राजू... चोद मुझे जोर.. से... ओह्ह आह्हह्ह सीईईईई आह्हह्ह...."
" जब से आया तब से तेरी चूत चोदने को बेताब था ! साली ने इतना वक्त लगा दिया चूत देने में...आह्हह्ह बहुत मस्त है भाभी तू तो.... ये ले एक खा मेरा लण्ड अपनी चूत में.."
हम दोनों मस्त होकर चुदाई में लगे थे और करीब पन्द्रह बीस मिनट के बाद मेरी चूत दूसरी बार झड़ने को तैयार हुई तो राजू का बदन भी तन गया और उसका लण्ड मुझे अपनी चूत में मोटा मोटा महसूस होने लगा। राजू के धक्के भी अब तेज हो गए थे।
और फिर राजू के लण्ड से गाढ़ा-गाढ़ा गर्म-गर्म वीर्य मेरी चूत को भरने लगा। वीर्य की गर्मी मिलते ही मेरी चूत भी पिंघल गई और बरस पड़ी और राजू के अंडकोष को भिगोने लगी। हम दोनों झमाझम झड़ रहे थे। हम दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ रखा था जैसे एक दूसरे में समा जाना चाहते हों।
कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद मैं उठी और मैंने राजू का लण्ड और अपनी चूत दोनों को कपड़े से साफ़ किया। मेरा हाथ लगते ही राजू का लण्ड एक बार फिर सर उठा कर खड़ा होने लगा और कुछ ही पल में फिर से कड़क होकर सलामी देने लगा। मैं उठकर जाना चाहती थी पर राजू ने फिर से बिस्तर पर खींच लिया और अपना लण्ड एक बार फिर मेरी चूत में घुसा दिया और एक बार फिर जबरदस्त चुदाई शुरू हो गई।
तब से आज तक पता नहीं कितनी बार राजू ने मेरी चुदाई की... पति के जाने के बाद घर का काम खत्म होते ही राजू और मैं कमरे में घुस जाते और फिर बदन पर कपड़े बोझ लगने लगते हैं। फिर तो दो तीन घंटे हम दोनों नंग-धडंग बिस्तर पर सिर्फ और सिर्फ लण्ड चूत के मिलन का आनन्द लेते हैं.. और यह सब आज भी चल रहा है...
मेरी ननद भी अब राजू से चुदवा चुकी है। उसका भी जब दिल करता है वो मेरे घर आ जाती है और फिर दोनों राजू के लण्ड के साथ एक साथ मस्ती करती हैं। राजू का लण्ड भी इतना मस्त है कि कभी भी उसने हमें निराश नहीं किया। वो तो हर समय मुझे चोदने के लिए खड़ा रहता है।

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