शादी सुहागरात और हनीमून--7
गतान्क से आगे…………………………………..
पिक्चर ख़तम होने के बाद जब हम घर पहुँचे तो साढ़े 12 हो गये थे, लेकिन हम तब भी चारों बैठ के देर तक बाते करते रहे. रीमा के कमरे मे उनके सोने का इताज़ाम किया गया था और मैं और रीमा साथ सो रहे थे.
सुबह उठ के मैं स्कूल के लिए तैयार हो के निकली, नेवी ब्लू स्कर्ट और वाइट ब्लाउस मे, रोज की तरह. लेकिन जब मेने अपने को शीशे मे देखा तो मुझे अचानक लगा कि मैं बड़ी हो गयी हू और स्कूल ड्रेस मे मेरे उभार और मेरी गोरी गोरी जांघे.. मैं खुद से एक पल के लिए शर्मा गयी.
अचानक मुझे लगा कि कहीं वो ना उठ गये हो और मुझे इस ड्रेस मे देख ना ले.. दबे पाव मेने दरवाजा खोला, और सामने वो ही खड़े थे.
"गुड मॉर्निंग"मुस्करा के वो बोले. "बड़े सबेरे है तुम्हारा स्कूल"मुझे निहाराते हुए उन्होने कहा.
"हां असल मे मॉर्निंग स्कूल मे आज टेस्ट है" मेरी समझ मे नही आ रहा था क्या बोलू. सारा घर सो रहा था.
"कब तक आओगी"उनकी लरजति हुई आवाज़ जैसे हाथ पकड़ के मेरा रास्ता रोक रही थी. जाना तो मैं भी नही चाह रही थी पर अगर मैं ये कहती तो भाभी कितना चिढ़ाती और वो रीमा भी.. अब शरीर हो गई थी.
"जल्द ही 12 बजे तक छुट्टी हो जाएगी"
"एक बात बोलू बुरा तो नही मनोगी" पास आके, ऑलमोस्ट सॅट के वो बोले.. पूरा सन्नाटा था.
"बुरा क्यों मानूँगी"मेरे मन मे तो उनच्चासो पवन चलने लगे थे.
"तुम बहोत क्यूट लग रही हो."मेरे गाल पे उंगली रख के वो बोले. मेरे कपोल जैसे दहक उठे.
मैं चुप चाप जैसे मूर्ति बन गयी. थी तक मेरे स्कूल की बस का हॉर्न बजा और मैं चल पड़ी, लेकिन शरारत से मेने मूड के उनकी ओर देखा तो वो बोल पड़े, हे अपनी ये यूनिफॉर्म शादी के बाद साथ ले आना.
"धत्त" कह के मैं चल दी लेकिन मुझे लगा उनकी निगाहे मेरे साथ आ रही है.
स्कूल मे एकदम मन नही लग रहा था, बार बार उनका चेहरा, उनकी बाते मन मे घूम रही थी और जाने अनजाने मेरी उंगलिया गाल पे वहीं जा पड़ती थी जहा उन्होने छुआ था.
जब मैं स्कूल से घर पहुँची तो उनके और भाभी के बीच खूब चुहल बाजिया चल रही थी. उन लोगो ने शॉपिंग का प्रोग्राम बना रखा था. और खाने खा के हम लोग निकल लिए. रीमा स्कूल गयी थी. उसकी छुट्टी शाम को होती थी, इसलिए हम तीनो ही गये.
पहले कपड़ों की शॉपिंग से शुरुआत हुई. उनके लिए शर्ट पॅंट खरीदी जानी थी. और इसके बाद भाभी एक बड़ी सी इनेर वियर की दुकान मे घुसी. वहाँ लेटेस्ट फॅशन की नाइटी, स्लिप, ब्रा और पैंटी मिलती थी. उस दुकान के ओनर से लेकर सारी सेल्स गर्ल तक उन की परिचित थी. भाभी ने मेरे लिए ब्रा और पैंटी देखना शुरू की. मैं थोड़ा शर्मा रही थी पर वो और ज़्यादा. भाभी ने उनसे पूछा कि उन्हे मेरे लिए किस रंग की ब्रा पसंद है और कैसे बेचारे ज़मीन मे गढ़े जा रहे थे. साल्स गर्ल भी मज़े ले रही थी. वो और खुली लेसी स्टाइलिश ब्रा ले आई और दिखाने लगी कि ये कैसे बंद होती है, खुलती है. भाभी ने उनसे कहा कि आप ठीक से समझ लीजिए तो वो बोले मैं क्यों भाभी जिसे पहनानी हो वो समझे और मेरी ओर देख के मुस्करा दिए. भाभी बोली, अर्रे, जिसे खोलना हो उसे समझना ज़्यादा ज़रूरी है वरना सारी रात इसी मे गुजर जाएगी. अब उनकी शरमाने की बारी थी. उस के बाद हम लोग साड़ी की दुकान पे गये. थोड़ी ढेर बैठने के बाद भाभी से बोले कि , भाभी अगर आपकी इजाज़त हो तो थोड़ी देर के लिए इनको ले जाउ. भाभी हंस के बोली, अर्रे तेरी चीज़ है जहा चाहे वहाँ ले जा, जो चाहे वो करो. मुझे ले के पास के ज्यूयेलर्स की दुकान मे गये. जब मेने पूछा कि हे, क्या काम है मुझसे तो हंस के बोले काम तो सिर्फ़ तुम्हारी उंगली से था लेकिन साथ मे तुमको भी ले आना पड़ा. एक डाइमंड की प्यारी सी रिंग मेरे मना करने पे भी उन्होने मुझे ले दी. फिर वहाँ से निकले तो भाभी भी शॉपिंग ख़तम कर के निकल चुकी थी. फिर हम तीनो ने खूब मस्ती की, चाट, गोलगप्पे खाए, आइस्क्रीम खाई और खूब घूमे.
जब हम लौटे तो रीमा स्कूल से आ चुकी थी और खूब नाराज़, एकदम अलफ्फ.
मारे गुस्से के किसी से बोल ही नही रही थी. खास तौर से राजीव से. उपर से हमने और भाभी ने उसे चिढ़ा भी दिया, कि हम लोगो ने बाजार मे क्या मौज की. अब वो और नाराज़. मेने 'उनसे' कहा कि अब आप इस को घुमा के ले आइए और शॉपिंग भी कराईए.. वो बोले एकदम, चलो ना. थोड़ा मुस्करा के, थोड़ा गुस्से से वो बोली
कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और compleet
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
ठीक है, लेकिन अब आप लोग नही जाएँगे, सिर्फ़ मैं जाउन्गि. हम सब ने समवेत स्वर मे कहा ठीक है. जब वो तैयार हो के थोड़ी देर मे आई तो भाभी ने फिर छेड़ा, जीजा की जेब खाली करा लेना. और वो भी मूड मे थे. उसके कंधे पे हाथ रख के बोले, अर्रे मेरी छोटी साली है. दो ढाई घंटे बाद वो लोग लौटे. रीमा तो पहचानी नही जा रही थी, गुलाबी खूब टाइट पिंक टांक टॉप मे उसके टेन्निस बॉल साइज़ के बूब्स फटे पड़ रहे थे. और नई हिप हॅंगिंग जीन्स..हम लोगों को दिखा के बोली, क्यों कैसी लग रही है, जीजू ने दिलवाई है. भाभी क्यों मौका छोड़ती, सीधे उसके बूब्स पे चिकोटी काटती बोली, न्यू पिंच और उनको भी आमंत्रित किया कि न्यू पिंच कर ले. बेचारे झेंप गये. ड्रेस के साथ ढेर सारी चाकलेट, और गिफ्ट और ये भी पता चला कि उसने चाट पार्टी मे अपनी तीनो क्लोज़ सहेलियों, नीरा , नीतू और रंभा को भी ( वो बहोत क्लोज़ थी और नट खाट भी.) और मेरे भी क्लोज़ थी, उन्हे हम चंडाल चौकड़ी बुलाते थे) बुला लिया था और उन सबो ने मिल के जम के पार्टी की. तभी हमारी नज़र रीमा के चेहरे पे भी पड़ी. एक बहोत छोटी सी नथ (जैसी आज कल सानिया मिर्ज़ा पहनती है), उस की नाक मे दमक रही थी. भाभी ने रीमा से पूछा,
"हे नथ तो तुमने पहन ली, अब इसे उतारेगा कौन "
"जिसने पहनाई है" बड़ी अदा से रीमा बोली.
"मैं तैयार हू" हंस के वो बोले. और जब हम सब लोग हँसने लगे थी उसका मतलब समझ वो बेचारी शर्म से लाल हो गयी. झेंप मिटाने के लिए वो बोली चलिए अंताक्षरी खेलते है. टीमे बन गयी. वो और रीमा एक तरफ और मैं और भाभी एक तरफ. वो कहने लगे आप लोग शुरू करिए और हम लोग कहते नही आप. रीमा बोली जीजू हमी लोग शुरू करते है गाइए ना, और वो फिर मेरी ओर देख के चालू हो गये,
हमने देखी है इन आँखो की महकती खुश्बू, हाथ से छु के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम ना दो
बस जैसे लग रहा था सिर्फ़ हम दोनो हो और वो मुझसे कह रहे हो. गाना ख़तम हो गया और मैं वैसे ही गुम्सुम बैठी रही. जब रीमा बोली 123 तब मुझे होश आया. रीमा कह रही थी 'दी' सुनाए और बिना सोचे मेने शुरू कर दिया,
"दीवाना मस्ताना हुआ दिल...जाने कहाँ होके बाहर आई."
और भाभी ने कान मे बोला अर्रे अगर यार सामने हो तो दिल तो दीवाना हो ही जाता है. गाना ख़तम होते ही अबकी बार रीमा चालू हो गई, ईना मीना डीका और वो भी झूम के साथ दे रहे थे. अबकी बार हमारी ओर से भाभी ने जवाब दिया. उन लोगों को 'ज' से गाना था. और दोनो गाने सोचने की कोशिश कर रहे थे. अब मेने और भाभी ने चिढ़ाना शुरू कर दिया..1..2..3..रीमा बोली, जीजू कुछ करिए ना. वो तो बस बना रहे थे, चालू हो गये,
"ज़रा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक ना जाए ज़रा नज़रों से "और मेरे बड़ी बड़ी रतनेरी आँखों को निहाराते, बस छेड़ रहे थे.
"'य' से पड़ा है तुम जवाब दो "भाभी ने मुझे उकसाया,
"ये दिल दीवाना है दिल तो दीवाना है, दीवाना दिल है ये दिल आकाश बहारों मे चुपके चनेरो मे दिल दीवाना है"
मेने देखा साथ साथ वो भी गुन गुना रहे थे. अब के फिर से मेरी कजरारी आँखो को देख के वो बोले,
"हम आपकी आँखो मे इस दिल को बसा ले तो"मेरे मूह से अगली लाइन निकल गयी,
"हम मूंद के पलकों को इस दिल को सज़ा दे तो"और अगली लाइन उनकी थी.
"इन ज़ुल्फो मे गुन्थेगे हम फॉल मुहब्बत के "और उसी तरह शरारत और अदा से मैं बोली,
"ज़ुल्फो को झटक के हम ये फ़ॉल गिरा दे तो"
और फिर हम साथ साथ ये दोनो गाने लगे. मेने भाभी से इशारा किया तो वो बोली, अर्रे आँखो पे बहोत गाने हो गये अब किसी और बात पे. और उनके पास तो जैसे रोनेंटिक गानों का खजाना था, एक से एक,
फूलों के रंग से, दिल के कलाम से..गुनेगुना रहे है भंवरे खिल रही है कली कली बस मुझे लग रहा था कमरे मे सिर्फ़ हम दोनो है और उनका हर शब्द सिर्फ़ मेरे लिए है. जो ढेर सारी बातें हम कहना चाहते थे, कह नही सकते थे वो गानों के ज़रिए लग रहा था जैसे ढेर सारे कमल एक साथ खिल गये हो.
"अर्रे सब काम हम लोग ही करेंगे. अर्रे तंग हम लोग कर रहे है तो भूख सासू मा ही मिटा दे."बड़े द्विअर्थि ढंग से मुस्करा के भाभी ने उनकी ओर देख के कहा. और मम्मी कौन मेरी कम थी. वो उनके पास आ के उनके बालों को सहला के बोली,
"हे नथ तो तुमने पहन ली, अब इसे उतारेगा कौन "
"जिसने पहनाई है" बड़ी अदा से रीमा बोली.
"मैं तैयार हू" हंस के वो बोले. और जब हम सब लोग हँसने लगे थी उसका मतलब समझ वो बेचारी शर्म से लाल हो गयी. झेंप मिटाने के लिए वो बोली चलिए अंताक्षरी खेलते है. टीमे बन गयी. वो और रीमा एक तरफ और मैं और भाभी एक तरफ. वो कहने लगे आप लोग शुरू करिए और हम लोग कहते नही आप. रीमा बोली जीजू हमी लोग शुरू करते है गाइए ना, और वो फिर मेरी ओर देख के चालू हो गये,
हमने देखी है इन आँखो की महकती खुश्बू, हाथ से छु के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम ना दो
बस जैसे लग रहा था सिर्फ़ हम दोनो हो और वो मुझसे कह रहे हो. गाना ख़तम हो गया और मैं वैसे ही गुम्सुम बैठी रही. जब रीमा बोली 123 तब मुझे होश आया. रीमा कह रही थी 'दी' सुनाए और बिना सोचे मेने शुरू कर दिया,
"दीवाना मस्ताना हुआ दिल...जाने कहाँ होके बाहर आई."
और भाभी ने कान मे बोला अर्रे अगर यार सामने हो तो दिल तो दीवाना हो ही जाता है. गाना ख़तम होते ही अबकी बार रीमा चालू हो गई, ईना मीना डीका और वो भी झूम के साथ दे रहे थे. अबकी बार हमारी ओर से भाभी ने जवाब दिया. उन लोगों को 'ज' से गाना था. और दोनो गाने सोचने की कोशिश कर रहे थे. अब मेने और भाभी ने चिढ़ाना शुरू कर दिया..1..2..3..रीमा बोली, जीजू कुछ करिए ना. वो तो बस बना रहे थे, चालू हो गये,
"ज़रा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक ना जाए ज़रा नज़रों से "और मेरे बड़ी बड़ी रतनेरी आँखों को निहाराते, बस छेड़ रहे थे.
"'य' से पड़ा है तुम जवाब दो "भाभी ने मुझे उकसाया,
"ये दिल दीवाना है दिल तो दीवाना है, दीवाना दिल है ये दिल आकाश बहारों मे चुपके चनेरो मे दिल दीवाना है"
मेने देखा साथ साथ वो भी गुन गुना रहे थे. अब के फिर से मेरी कजरारी आँखो को देख के वो बोले,
"हम आपकी आँखो मे इस दिल को बसा ले तो"मेरे मूह से अगली लाइन निकल गयी,
"हम मूंद के पलकों को इस दिल को सज़ा दे तो"और अगली लाइन उनकी थी.
"इन ज़ुल्फो मे गुन्थेगे हम फॉल मुहब्बत के "और उसी तरह शरारत और अदा से मैं बोली,
"ज़ुल्फो को झटक के हम ये फ़ॉल गिरा दे तो"
और फिर हम साथ साथ ये दोनो गाने लगे. मेने भाभी से इशारा किया तो वो बोली, अर्रे आँखो पे बहोत गाने हो गये अब किसी और बात पे. और उनके पास तो जैसे रोनेंटिक गानों का खजाना था, एक से एक,
फूलों के रंग से, दिल के कलाम से..गुनेगुना रहे है भंवरे खिल रही है कली कली बस मुझे लग रहा था कमरे मे सिर्फ़ हम दोनो है और उनका हर शब्द सिर्फ़ मेरे लिए है. जो ढेर सारी बातें हम कहना चाहते थे, कह नही सकते थे वो गानों के ज़रिए लग रहा था जैसे ढेर सारे कमल एक साथ खिल गये हो.
"अर्रे सब काम हम लोग ही करेंगे. अर्रे तंग हम लोग कर रहे है तो भूख सासू मा ही मिटा दे."बड़े द्विअर्थि ढंग से मुस्करा के भाभी ने उनकी ओर देख के कहा. और मम्मी कौन मेरी कम थी. वो उनके पास आ के उनके बालों को सहला के बोली,
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
"अर्रे अगर साली सलहज के रहते हुए भी दामाद भूखा रहे तो सास को ही उसकी भूख मिटानी पड़ेगी. क्यों" उनके गाल सहला के उन्होने पूछा. शरम से उनके गाल लाल हो गये, लेकिन शायद इतना काफ़ी नही था.
"अर्रे ये क्या लौंडिया की तरह शर्मा रहे है." पीछे से कटोरी मे दाल परोसते आवाज़ आई.
वो बसंती थी, मेरी नाहिन की बहू. मुझसे थोड़ी ही बड़ी रही होगी. पाँच-छे महीने पहले ही शादी हुई थी. गोरा गदराया गठा बदन.. मज़ाक के मामले मे एक नंबर की और वो भी गाली गाने के मामले मे तो.. जब वो हम लोगों के पीछे पड़ जाती तो कान मे उंगली डालनी पड़ती. अक्सर काम मे हाथ बटाने के लिए मम्मी उसे बुला लेती.
"मुझे तो कुछ शक लग रहा है, इनके शरमाने से लगता है खोल कर चेक करने पड़ेगा." पानी डालते हुए भी वो चालू रही.
"अर्रे तेरे तो ननदेऊ लगिगे चाहे खोल कर चेक कर या पकड़ कर" भाभी ने और आग लगाई.
बसंती ने कहा बिना गाली के खाना कैसा और हम लोगों के मना करने पर भी वो चालू हो गई. फिर तो उनकी बहने अम्मा किसी को नही छोड़ा उसने, सबको न्योता दे डाला.
और वे बिचारे सर झुकाए गालियाँ सुनते रहे, खाना खाते रहे. और आज मम्मी और मूड मे थी. कह कह कर एक रसगुल्ला और लो अर्रे एक मेरे हाथ से पूरे चार रसगुल्ले खिलाए. जब बसंती किसी काम से अंदर चली गई तो धीरे से मेरे कान मे बोले, ये गाना बड़ा जबरदस्त सुनाती है. रीमा क्यों चुप रहती,
बोली, ये मालिश भी बहोत अच्छी करती है. जैसे ही वो उठे बसंती वापस आ गयी. भाभी ने फिर छेड़ा, क्यों करवानी है मालिश,.और बसंती से कहा,
क्यों कहाँ मालिश करोगी,
"अर्रे कर दूँगी सारी टाँगो पर, सांड़े का तेल लगा के ."बसंती बोली.
अब तो बेचारे चुप चाप उपर अपने कमरे मे भागे. लेकिन भाभी वहाँ भी कहा उन्हे छोड़ने वाली थी. मुझसे कहा कि तुम्हे बुला रहे है. ज़रा चल के बाते कर लो, सुबह चले जाएँगे..फिर तो कब मिलना होगा. मे भाभी के साथ उनके कमरे मे गई और पूछा कि बुलाया था तो वो बोले कि नही. जब तक मे कुछ समझती भाभी दरवाजे पर थी और मुस्करा के बोली,
"आज की रात मेरी ननद आपके हवाले है चाहे बात करनी हो या जो कुछ पूरी छूट है मेरी ओर से और ये दरवाजा अब सुबेह ही खुलेगा."और जब तक मे उन्हे पहुँच के रोकती, वो बाहर और कुण्डी बंद होने की आवाज़ आई. सीढ़ियों पर भाभी के पैरों की आवाज़ बता रही थी, वो नीचे जा रही थी. कुछ देर तो हम चुप बैठे रहे फिर बाते करने लगे. लेकिन कुछ देर बाद मुझे लगा कि उन्हे नींद आ रही है. अब क्या करें, पलंग सिर्फ़ एक . मेने खिड़की खोल के देखा,
सारे घर की लाइट्स बुझी, किसी को बुला भी नही सकती. मेने उनसे कहा कि वो सो जाए, मुझे नींद नही आ रही. तो बोले नही कोई परेशानी की बात नही है, वो सोफे पर सो लेंगे और तकिया लेके वो सोफे पर लेट गये. तब तक हम लोगों के लिए मुक्ति दूत बन कर रीमा आ गयी. कमरा उसी का था और वो कोई किताब लेने आई थी.
सुबह उन्हे जाना था. मम्मी ने उन्हे बताया कि अभी उनके घर से फोन आया था. जन्वरी के शुरू की, जो शादी की तारीख यहाँ के पंडित जी ने सजेस्ट की थी वो वहाँ के पंडित ने भी सही बताई है, और अब वो तारीख पक्की हो गयी है. वो बोले कि मम्मी ज़रा मे, मसूरी से एक बार बात कर लूँ , छुट्टी के बारे मे.
"अर्रे ये क्या लौंडिया की तरह शर्मा रहे है." पीछे से कटोरी मे दाल परोसते आवाज़ आई.
वो बसंती थी, मेरी नाहिन की बहू. मुझसे थोड़ी ही बड़ी रही होगी. पाँच-छे महीने पहले ही शादी हुई थी. गोरा गदराया गठा बदन.. मज़ाक के मामले मे एक नंबर की और वो भी गाली गाने के मामले मे तो.. जब वो हम लोगों के पीछे पड़ जाती तो कान मे उंगली डालनी पड़ती. अक्सर काम मे हाथ बटाने के लिए मम्मी उसे बुला लेती.
"मुझे तो कुछ शक लग रहा है, इनके शरमाने से लगता है खोल कर चेक करने पड़ेगा." पानी डालते हुए भी वो चालू रही.
"अर्रे तेरे तो ननदेऊ लगिगे चाहे खोल कर चेक कर या पकड़ कर" भाभी ने और आग लगाई.
बसंती ने कहा बिना गाली के खाना कैसा और हम लोगों के मना करने पर भी वो चालू हो गई. फिर तो उनकी बहने अम्मा किसी को नही छोड़ा उसने, सबको न्योता दे डाला.
और वे बिचारे सर झुकाए गालियाँ सुनते रहे, खाना खाते रहे. और आज मम्मी और मूड मे थी. कह कह कर एक रसगुल्ला और लो अर्रे एक मेरे हाथ से पूरे चार रसगुल्ले खिलाए. जब बसंती किसी काम से अंदर चली गई तो धीरे से मेरे कान मे बोले, ये गाना बड़ा जबरदस्त सुनाती है. रीमा क्यों चुप रहती,
बोली, ये मालिश भी बहोत अच्छी करती है. जैसे ही वो उठे बसंती वापस आ गयी. भाभी ने फिर छेड़ा, क्यों करवानी है मालिश,.और बसंती से कहा,
क्यों कहाँ मालिश करोगी,
"अर्रे कर दूँगी सारी टाँगो पर, सांड़े का तेल लगा के ."बसंती बोली.
अब तो बेचारे चुप चाप उपर अपने कमरे मे भागे. लेकिन भाभी वहाँ भी कहा उन्हे छोड़ने वाली थी. मुझसे कहा कि तुम्हे बुला रहे है. ज़रा चल के बाते कर लो, सुबह चले जाएँगे..फिर तो कब मिलना होगा. मे भाभी के साथ उनके कमरे मे गई और पूछा कि बुलाया था तो वो बोले कि नही. जब तक मे कुछ समझती भाभी दरवाजे पर थी और मुस्करा के बोली,
"आज की रात मेरी ननद आपके हवाले है चाहे बात करनी हो या जो कुछ पूरी छूट है मेरी ओर से और ये दरवाजा अब सुबेह ही खुलेगा."और जब तक मे उन्हे पहुँच के रोकती, वो बाहर और कुण्डी बंद होने की आवाज़ आई. सीढ़ियों पर भाभी के पैरों की आवाज़ बता रही थी, वो नीचे जा रही थी. कुछ देर तो हम चुप बैठे रहे फिर बाते करने लगे. लेकिन कुछ देर बाद मुझे लगा कि उन्हे नींद आ रही है. अब क्या करें, पलंग सिर्फ़ एक . मेने खिड़की खोल के देखा,
सारे घर की लाइट्स बुझी, किसी को बुला भी नही सकती. मेने उनसे कहा कि वो सो जाए, मुझे नींद नही आ रही. तो बोले नही कोई परेशानी की बात नही है, वो सोफे पर सो लेंगे और तकिया लेके वो सोफे पर लेट गये. तब तक हम लोगों के लिए मुक्ति दूत बन कर रीमा आ गयी. कमरा उसी का था और वो कोई किताब लेने आई थी.
सुबह उन्हे जाना था. मम्मी ने उन्हे बताया कि अभी उनके घर से फोन आया था. जन्वरी के शुरू की, जो शादी की तारीख यहाँ के पंडित जी ने सजेस्ट की थी वो वहाँ के पंडित ने भी सही बताई है, और अब वो तारीख पक्की हो गयी है. वो बोले कि मम्मी ज़रा मे, मसूरी से एक बार बात कर लूँ , छुट्टी के बारे मे.