लाइन मे लगी रीमा सिहर उठी,उसके जेठ उसके पीछे उसकी गंद पे अपना लंड सटाये खड़ा हो गया था.शेखर का कद 5'8" था & वो रीमा से बस 3 इंच ही लंबा था.इस वजह से उसका लंड सीधा उसकी गंद से आ सटा था.थोड़ी देर बाद जब रीमा ने कुच्छ नही कहा तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी & वो थोड़ा और सॅट कर खड़ा हो गया,अब उसका पॅंट मे क़ैद लंड रीमा की सारी मे कसी गंद की दरार मे फँस सा गया था.शेखर आगे को झुक उसके कंधे के उपर से उसे देखता हुआ उस से इधर-उधर की बात करने लगा.जेठ की हरकत से रीमा की चूत गीली होने लगी थी.करीब 15 मिनिट बाद जब रीमा की बारी आई & वो क्लर्क को फॉर्म देने लगी तो शेखर ये देखने के बहाने उस से और सॅट कर खड़ा हो गया,अब लंड उसकी गंद की दरार मे और धँस गया,रीमा का दिल कर रहा था की वो भी अपनी गंद हिला कर उसके लंड को जवाब दे पर ऐसा करने से उसका प्लान चौपट हो जाता.उसने अपने दिल पे काबू किया & फॉर्म जमा कर शेखर के साथ बॅंक से बाहर निकल आई.
"चलो तुम्हे घर छ्चोड़ देता हू.",शेखर ने इस बार सड़क पार करते हुए उसकी कमर पे पीछे से हाथ फिसलते हुए बगल से उसकी कमर को हल्के से थाम लिया.
"आपको देर हो जाएगी."
"कोई बात नही."
थोड़ी देर बाद रीमा घर पे थी.उसकी चल सही जा रही थी.बस कुच्छ ही दीनो मे उसका जेठ उसे अपने बिस्तर मे खींच लेगा इसका आज उसे यकीन हो गया था.विरेन्द्र जी रोज़ दोपहर का खाना खाने घर आते थे.आज भी आए पर आज उनका ध्यान खाने से ज़्यादा अपनी बहू की जवानी पे था.
"आउच!"
"क्या हुआ रीमा?"
"कुच्छ नही.सॅंडल टूट गयी.अब बनवानी पड़ेगी."
"शाम को मेरे साथ चल के नयी ले लेना."
"नही,पिताजी.",उसने धीरे से कहा कि दर्शन ना सुन ले,"दद्दा से पुच्छ किसी मोची से बनवा लूँगी."
"शाम को जब मैं दफ़्तर से वापस आओंगा फिर हम दोनो मार्केट चल कर तुम्हारे लिए नयी सॅंडल लेंगे.बस,प्रोग्राम पक्का हो गया.",खाना ख़त्म कर वो हाथ धोने चले गये.
शाम को रीमा अपने ससुर के साथ उनकी कार मे बैठी 1 बार फिर हड्सन मार्केट पहुँची.मार्केट मे बहुत भीड़ थी.1 जगह विरेन्द्र जी थोड़ा आगे बढ़ गये & वो भीड़ मे थोडा पीछ्हे रह गयी तो विरेन्द्र जी ने पीछे घुवं कर उसका हाथ थाम लिया.उनके बड़े से हाथ मे रीमा का नाज़ुक,कोमल हाथ कही खो सा गया.दोनो हाथ थामे ही दुकान मे घुसे & जब सेल्समन रीमा को सॅंडल्ज़ दिखाने लगा तभी उन्होने उसका हाथ छ्चोड़ा.
"ये लीजिए,मेडम.",सेल्समन ने उसके पैरों मे सॅंडल पहनाया,"..चल कर देखिए तभी तो पता चलेगा कि फिट है या नही."
रीमा चलने लगी.दुकान मे सजावट के लिए दीवारो पे शीशे लगे थे.चलते हुए रीमा ने सामने के शीशे मे देखा तो पाया कि उसके ससुरे उसकी मटकती गंद को घूर रहे हैं,सेल्समन उनके साथ बैठे किसी और ग्राहक को जुटे दिखा रहा था.रीमा ने अपने ससुर को और तड़पाने के लिए गंद कुच्छ ज़्यादा मटकाने लगी.
रवि कहता था कि उसकी चल मे अजीब सी कशिश है.वो कहता था कि जब वो चलती है तो उसकी गंद मटकती है & जो भी देखता होगा बस दिल थम के रह जाता होगा.उस दिन रीमा को अपनी नशीली गंद की ताक़त का पता चला था.वो घूम कर अपने ससुर की ओर आई तो इस बार वो उसकी झीनी सारी मे से नुमाया हो रहे उसकी नाभि पे चमकते छल्ले को देखने लगी,"ये कुच्छ जाँच नही रही,इसे ट्राइ करती हू.",रीमा ने सॅंडल खोली और अपनी सारी को ऊँचा करते हुए अपने ससुर को अपनी गोरी टाँगो का ज़रा सा हिस्सा दिखाया & दूसरी सॅंडल मे पैर डाल दिए.
खिलोना compleet
Re: खिलोना
इस बार वो बहुत धीरे-2 अपनी सारी मे कसी मस्त,भारी गंद को मतकाते हुए वो सॅंडल पहन कर दो बार चली.शीशे मे उसे उसके ससुर के चेहरे पे अपने बदन के लिए प्यास सॉफ दिख रही थी,"ये सही है.इसे ही ले लेती हू."
विरेन्द्र जी ने उसे कुल मिलाके 3 जोड़ी सॅंडल्ज़ दिलवाए.उन 3 जोडियो को रीमा ने कोई 15 जोडियो को ट्राइ करने के बाद चुना,यानी की उसने कम से कम 15 बार अपने ससुर को अपनी मतकती गंद का दीदार कराया.दुकान से कार तक जाते हुए उसका हाथ उनके हाथ मे ही रहा.
उस रात रीमा कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो गयी थी.बिस्तर पे मचलते हुए उसने 4 बार अपनी चूत को अपने हाथो से शांत किया.
15-20 दीनो के लिए आया हुआ शेखर अब तो जैसे यही बस ही गया था.वैसे तो उसे कुच्छ दीनो पे 1-2 रोज़ के लिए दिल्ली जाना पड़ता था,पर ज़्यादातर वक़्त वो पंचमहल मे ही रहने लगा था.कहने को उसने कह दिया था की काम ही कुच्छ ऐसा आ गया है पर रीमा जानती थी कि ये उसके बदन की प्यास थी,जो उसे यहा रोके हुए थी.
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"रीमा,ज़रा इधर तो आना.",शेखर ने अपने कमरे से उसे आवाज़ दी.रात का खाना हो गया था,रीमा अभी-2 सुमित्रा जी को दवा पीला उन्हे सुला के कमरे से निकली थी.सास की सेवा के बहाने उसने अपने ससुर को अपने बदन की गोलैईयों का पूरा दीदार कराया था.
"हा,कहिए क्या बात है?",रीमा कमरे मे दाखिल हुई.
"1 छ्होटा सा दाना था जो अब फोड़े की शक्ल इकतियार कर चुका है.तुम्हे कोई दवा पता हो तो बताओ ना."
"कहा पे है?"
जवाब मे शेखर ने अपनी कमीज़ उतार दी तो रीमा ने शर्म से आँखे नीची कर ली.
"ये देखो.",उसके बाए निपल के थोड़ा उपर 1 छ्होटा सा फोड़ा था.उसने उसका हाथ पकड़ उस पर रख दिया,"अब तो थोड़ा दर्द भी कर रहा है."
"रुकिये,अभी अपना फर्स्ट-एड किट लाती हू."
रीमा किट ले आई & दवा को रूई मे लगा जैसे ही उसने फोड़े पे लगाया तो शेखर कराह उठा,"आहह!",& उसने अपने हाथ से उसकी कमर को पकड़ किया.रीमा का हाथ काँप गया & रूई शेखर के निपल पे आ लगी.अपने गुज़रे हुए भाई की तरह ही उसका सीना भी बिल्कुल चिकना था.निपल छुते ही रीमा की चूत गीली होने लगी.उसका दिल कर रहा था कि अभी उस से लिपट कर अपनी प्यास बुझा ले...कितने दिन हो गये थे उसे चुदे हुए!
रीमा ने किसी तरह खुद पे काबू रखा & उस फोड़े को फोड़ने की कोशिश करने लगी.शेखर आँखे बंद किए हुए ऐसे दिखा रहा था जैसे उसे बहुत दर्द हो रहा हो & जब भी रीमा फोड़े को दबाती वो कराहते हुए उसकी कमर को दबा देता.पर रीमा जानती थी की फोड़ा मामूली सा ही है & शेखर बस नाटक कर रहा है.
करीब 5 मिनिट मे रीमा ने फोड़े को फोड़ कर सारा गंदा पानी निकाल दिया & वाहा पट्टी लगाने लगी.शेखर का हाथ अभी भी उसकी कमर पे था & उसे हौले-2 सहला रहा था.उसकी हरकत से रीमा के गुलाबी गाल और लाल हुए जा रहे थे.जैसे-तैसे उसने पट्टी लगाई,"हो गया.मैं जाती हू."
शेखर ने उसे नही रोका & 1 आखरी बार उसकी कमर को दबा दिया.
विरेन्द्र जी ने उसे कुल मिलाके 3 जोड़ी सॅंडल्ज़ दिलवाए.उन 3 जोडियो को रीमा ने कोई 15 जोडियो को ट्राइ करने के बाद चुना,यानी की उसने कम से कम 15 बार अपने ससुर को अपनी मतकती गंद का दीदार कराया.दुकान से कार तक जाते हुए उसका हाथ उनके हाथ मे ही रहा.
उस रात रीमा कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो गयी थी.बिस्तर पे मचलते हुए उसने 4 बार अपनी चूत को अपने हाथो से शांत किया.
15-20 दीनो के लिए आया हुआ शेखर अब तो जैसे यही बस ही गया था.वैसे तो उसे कुच्छ दीनो पे 1-2 रोज़ के लिए दिल्ली जाना पड़ता था,पर ज़्यादातर वक़्त वो पंचमहल मे ही रहने लगा था.कहने को उसने कह दिया था की काम ही कुच्छ ऐसा आ गया है पर रीमा जानती थी कि ये उसके बदन की प्यास थी,जो उसे यहा रोके हुए थी.
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"रीमा,ज़रा इधर तो आना.",शेखर ने अपने कमरे से उसे आवाज़ दी.रात का खाना हो गया था,रीमा अभी-2 सुमित्रा जी को दवा पीला उन्हे सुला के कमरे से निकली थी.सास की सेवा के बहाने उसने अपने ससुर को अपने बदन की गोलैईयों का पूरा दीदार कराया था.
"हा,कहिए क्या बात है?",रीमा कमरे मे दाखिल हुई.
"1 छ्होटा सा दाना था जो अब फोड़े की शक्ल इकतियार कर चुका है.तुम्हे कोई दवा पता हो तो बताओ ना."
"कहा पे है?"
जवाब मे शेखर ने अपनी कमीज़ उतार दी तो रीमा ने शर्म से आँखे नीची कर ली.
"ये देखो.",उसके बाए निपल के थोड़ा उपर 1 छ्होटा सा फोड़ा था.उसने उसका हाथ पकड़ उस पर रख दिया,"अब तो थोड़ा दर्द भी कर रहा है."
"रुकिये,अभी अपना फर्स्ट-एड किट लाती हू."
रीमा किट ले आई & दवा को रूई मे लगा जैसे ही उसने फोड़े पे लगाया तो शेखर कराह उठा,"आहह!",& उसने अपने हाथ से उसकी कमर को पकड़ किया.रीमा का हाथ काँप गया & रूई शेखर के निपल पे आ लगी.अपने गुज़रे हुए भाई की तरह ही उसका सीना भी बिल्कुल चिकना था.निपल छुते ही रीमा की चूत गीली होने लगी.उसका दिल कर रहा था कि अभी उस से लिपट कर अपनी प्यास बुझा ले...कितने दिन हो गये थे उसे चुदे हुए!
रीमा ने किसी तरह खुद पे काबू रखा & उस फोड़े को फोड़ने की कोशिश करने लगी.शेखर आँखे बंद किए हुए ऐसे दिखा रहा था जैसे उसे बहुत दर्द हो रहा हो & जब भी रीमा फोड़े को दबाती वो कराहते हुए उसकी कमर को दबा देता.पर रीमा जानती थी की फोड़ा मामूली सा ही है & शेखर बस नाटक कर रहा है.
करीब 5 मिनिट मे रीमा ने फोड़े को फोड़ कर सारा गंदा पानी निकाल दिया & वाहा पट्टी लगाने लगी.शेखर का हाथ अभी भी उसकी कमर पे था & उसे हौले-2 सहला रहा था.उसकी हरकत से रीमा के गुलाबी गाल और लाल हुए जा रहे थे.जैसे-तैसे उसने पट्टी लगाई,"हो गया.मैं जाती हू."
शेखर ने उसे नही रोका & 1 आखरी बार उसकी कमर को दबा दिया.
Re: खिलोना
कमरे मे जाते हुए उसने सोचा कि 1 बार सुमित्रा जी को देख ले.उनके कमरे मे गयी तो पाया कि वो सो रही थी.बीच का परदा खींचा हुआ था,उसने उसे सरकया तो देखा की उसके ससुर कुर्सी पे बैठे कुच्छ परेशान से अपना पैर सहला रहे हैं.
"क्या हुआ,पिताजी?"
"कुच्छ नही.बस पैर मे थोड़ा दर्द है."
"लाइए मैं दबा देती हू."
"अरे नही,बेटी.परेशान मत हो.ज़्यादा तकलीफ़ नही है.ठीक हो जाएगा.जाओ,जाके सो जाओ.मैं दर्शन को बुला लूँगा"
"दद्दा तो सोने चले गये,लाइए मैं ही दबा देती हू.चलिए लेट जाइए.",उसने उनकी बाँह पकड़ उठने का इशारा किया.विरेन्द्र जी बेड पे लेट गये.
"क्या हुमेशा होता है आपके पैरों मे दर्द?"
"नही,जब ज़्यादा चलता हू तो तब होता है."
"यानी की मेरी वजह से हो रहा है आज दर्द.ना मेरी सॅंडल के चक्कर मे मार्केट जाते ना आपको तकलीफ़ होती."
"अपनो की मदद करने से तकलीफ़ नही होती."
"तो ये दर्द क्या है?"
"अरे ये कुच्छ नही है.इस से ज़्यादा तुम्हारी मदद करने की खुशी है."
रीमा उनके बगल मे बैठ गयी & उनके पैर दबाने लगी.इस बार उसने जान के नही किया पर फिर भी आँचल ढालाक गया.वो पैर दबाते हुए उसे बार-2 संभालती पर वो बार-2 गिर जाता.हार कर उसने उसे गिरा ही रहने दिया.घुटनो पे बैठ वो नीचे से उपर उनकी जाँघो तक आती.झुकी होने के कारण ब्लाउस के गले मे से उसकी चूचिया जैसे छल्कि जा रही थी.विरेन्द्र की नज़रे उसके सीने से चिपकी हुई थी & वो 1 हाथ से अपना सीना सहला रहे थे.
रीमा ने देखा कि उसके ससुर के पाजामे मे हलचल हो रही है.थोड़ी ही देर मे उनका लंड पूरा खड़ा हो गया & पाजामे ने तंबू की शक्ल इकतियार कर ली.पहले जेठ के हाथ की गुस्ताख़ी & अब ससुर का खड़ा लंड,रीमा की भी दिल की धड़कन तेज़ हो गयी,उसकी चूत तो शेखर के कमर सहलाने से ही गीली होने लगी थी,अब तो उसकी पॅंटी उसके रस से उसकी चूत से चिपक गयी थी.घुटनो पे बैठे हुए अपनी भारी जाँघो को आपस मे हल्के-2 रगड़ते हुए अपनी चूत को काबू मे रखते हुए वो थोड़ी देर तक अपने ससुर का पैर वैसे ही दबाते रही.
फिर वो उठी & उनके पैरो के पास आ उनकी ओर मुँह करके बैठ गयी,आँचल अभी भी गिरा हुआ था & अब विरेन्द्र जी सामने से उसकी चूचियो & पेट को घूर रहे थे.उसने उनके तलवो को उठा अपनी गोद मे रख लिया & पैरो की उंगलियो को & तलवे को दबाने लगी.अब उनकी एडी उसकी गोद मे उसकी चूत पे थी & पैर की उंगलिया उसके नंगे पेट पे.
थोड़ी देर तक दबाने के बाद उसके ससुर ने भी अपने बेटे की तरह हिम्मत की & अपने पैर के अंगूठे से उसके नेवेल रिंग को छेड़ने लगे.रीमा के लिए सीधे बैठना मुश्किल हो गया.उसने आँखे बंद कर ली & अपने ससुर का पैर सहलाने लगी.उन्होने ने अंगूठे को उसकी नाभि मे डाल दिया & उसे कुरेदने लगे.उनकी एडी उसकी चूत को हल्के-2 दबा रही थी.
रीमा आँखे बंद किए उनकी हर्कतो का मज़ा उठा रही थी.अब पैर दबाने की जगह सहलाया जा रहा था & विरेन्द्र जी भी अपना दर्द भूल अपनी बहू की नाभि कुरेद रहे थे.रीमा ने आँखे खोली तो देखा कि उसके ससुर उसे घूरते हुए अपने पैर से उसके जिस्म को छेड़ रहे हैं तो उसने शर्म से नज़रे नीची कर ली.पर नीचे करते ही उसकी नज़र उनके पाजामे पे अटक गयी,वाहा 1 धब्बा सा बन रहा था.रीमा समझ गयी की उसके ससुर का प्रेकुं निकल गया है.
"क्या हुआ,पिताजी?"
"कुच्छ नही.बस पैर मे थोड़ा दर्द है."
"लाइए मैं दबा देती हू."
"अरे नही,बेटी.परेशान मत हो.ज़्यादा तकलीफ़ नही है.ठीक हो जाएगा.जाओ,जाके सो जाओ.मैं दर्शन को बुला लूँगा"
"दद्दा तो सोने चले गये,लाइए मैं ही दबा देती हू.चलिए लेट जाइए.",उसने उनकी बाँह पकड़ उठने का इशारा किया.विरेन्द्र जी बेड पे लेट गये.
"क्या हुमेशा होता है आपके पैरों मे दर्द?"
"नही,जब ज़्यादा चलता हू तो तब होता है."
"यानी की मेरी वजह से हो रहा है आज दर्द.ना मेरी सॅंडल के चक्कर मे मार्केट जाते ना आपको तकलीफ़ होती."
"अपनो की मदद करने से तकलीफ़ नही होती."
"तो ये दर्द क्या है?"
"अरे ये कुच्छ नही है.इस से ज़्यादा तुम्हारी मदद करने की खुशी है."
रीमा उनके बगल मे बैठ गयी & उनके पैर दबाने लगी.इस बार उसने जान के नही किया पर फिर भी आँचल ढालाक गया.वो पैर दबाते हुए उसे बार-2 संभालती पर वो बार-2 गिर जाता.हार कर उसने उसे गिरा ही रहने दिया.घुटनो पे बैठ वो नीचे से उपर उनकी जाँघो तक आती.झुकी होने के कारण ब्लाउस के गले मे से उसकी चूचिया जैसे छल्कि जा रही थी.विरेन्द्र की नज़रे उसके सीने से चिपकी हुई थी & वो 1 हाथ से अपना सीना सहला रहे थे.
रीमा ने देखा कि उसके ससुर के पाजामे मे हलचल हो रही है.थोड़ी ही देर मे उनका लंड पूरा खड़ा हो गया & पाजामे ने तंबू की शक्ल इकतियार कर ली.पहले जेठ के हाथ की गुस्ताख़ी & अब ससुर का खड़ा लंड,रीमा की भी दिल की धड़कन तेज़ हो गयी,उसकी चूत तो शेखर के कमर सहलाने से ही गीली होने लगी थी,अब तो उसकी पॅंटी उसके रस से उसकी चूत से चिपक गयी थी.घुटनो पे बैठे हुए अपनी भारी जाँघो को आपस मे हल्के-2 रगड़ते हुए अपनी चूत को काबू मे रखते हुए वो थोड़ी देर तक अपने ससुर का पैर वैसे ही दबाते रही.
फिर वो उठी & उनके पैरो के पास आ उनकी ओर मुँह करके बैठ गयी,आँचल अभी भी गिरा हुआ था & अब विरेन्द्र जी सामने से उसकी चूचियो & पेट को घूर रहे थे.उसने उनके तलवो को उठा अपनी गोद मे रख लिया & पैरो की उंगलियो को & तलवे को दबाने लगी.अब उनकी एडी उसकी गोद मे उसकी चूत पे थी & पैर की उंगलिया उसके नंगे पेट पे.
थोड़ी देर तक दबाने के बाद उसके ससुर ने भी अपने बेटे की तरह हिम्मत की & अपने पैर के अंगूठे से उसके नेवेल रिंग को छेड़ने लगे.रीमा के लिए सीधे बैठना मुश्किल हो गया.उसने आँखे बंद कर ली & अपने ससुर का पैर सहलाने लगी.उन्होने ने अंगूठे को उसकी नाभि मे डाल दिया & उसे कुरेदने लगे.उनकी एडी उसकी चूत को हल्के-2 दबा रही थी.
रीमा आँखे बंद किए उनकी हर्कतो का मज़ा उठा रही थी.अब पैर दबाने की जगह सहलाया जा रहा था & विरेन्द्र जी भी अपना दर्द भूल अपनी बहू की नाभि कुरेद रहे थे.रीमा ने आँखे खोली तो देखा कि उसके ससुर उसे घूरते हुए अपने पैर से उसके जिस्म को छेड़ रहे हैं तो उसने शर्म से नज़रे नीची कर ली.पर नीचे करते ही उसकी नज़र उनके पाजामे पे अटक गयी,वाहा 1 धब्बा सा बन रहा था.रीमा समझ गयी की उसके ससुर का प्रेकुं निकल गया है.