अनु की मस्ती मेरे साथ compleet

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The Romantic
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Re: अनु की मस्ती मेरे साथ

Unread post by The Romantic » 22 Oct 2014 09:35


उत्तेजना से उसका चेहरा लाल हो रहा था. फिर मैं उठा और उसे बिस्तर
पर लिटा कर उसकी टाँगों को अपने कंधे पर रख लिया. हम दोनो एक
दूसरे की आँखों मे झँकते रहे और मैने अपने लिंग को अंदर कर
दिया. उसने मेरे गले मे अपनी बाहों का हार पहना दिया. मैं कुच्छ देर
तक इसी तरह धक्का मारने के बाद उसने अपने पैरों को मेरे कंधे से
उतार कर एक दूसरे से भींच लिया. मेरे पैर अब बाहर की ओर थे.. इस
पोज़िशन मे उसकी योनि के मसल मेरे लिंग पर कस गये और वो ज़ोर
ज़ोर से नीचे की ओर से अपनी कमर को हिलाने लगी.

" राघव प्लीईसए मेरे साथ अपना निकालो. हम दोनो के रसों का
संगम हो जाने दो." उसने पहली बार मुझे नाम लेकर पुकारा था. हम
दोनो एक साथ उस छ्होटी सी जगह मे अपनी अपनी धार छ्चोड़ दिए.

हम दोनो एक दूसरे के बदन को काफ़ी देर तक चूमते रहे. तभी बाहर
चिड़ियों की आवाज़ ने हमे असलियत से वाक़िफ़ कर दिया. सुबह होने वाली
थी. हम दोनो ने रात भर बस एक दूसरे को प्यार करते गुज़ार दी
थी.

"अनु सुबह होने वाली है." मैने उसे याद दिलाया.

"म्‍म्म्ममम हो जाने दो."

"किसी ने तुम्हे यहाँ देख लिया तो?"

" देख लेने दो. मुझे अब इस दुनिया मे किसी की कोई परवाह नही है."
उसने मुझे चूमते हुए कहा.

"किसी ने पूछ लिया तो क्या कहोगी?"

"कह दूँगी की मैं ..मैं .मैं तुम्हारी बीवी हूँ" कहकर उसने अपना
चेहरा मेरे सीने मे छिपा लिया.

"अनु ख़यालो से बाहर निकालो. तुम किसी और की बीवी हो." मैने उसे
समझाते हुए कहा.

"नही अभी मेरा मन नही भरा है. अभी तो बहुत प्यार करना है
तुमको और बहुत प्यार पाना है."

" धीरज रखो अनु सारा आज ही कर लोगि तो कल के लिए क्या बचेगा"

अनु को अंधेरे अंधेरे मे घर से निकल जाना था. उस का मन नही चाह
रहा था. लेकिन मैने उसे समझाया कि हम दोनो अकेले हैं किसी ने इस
हालत मे देख लिया तो दोनो की बदनामी होगी.

उसने मेरे ही कपड़े पहन लिए.

"चलो मैं तुम्हे घर तक छ्चोड़ आता हूँ." मैने कहा

"नही...कोई ज़रूरत नही. हम दोनो मे क्या रिश्ता है. रात गयी बात
गयी. हुमारे मिलने को एक दुर्घटने की तरह भुला देना." कह कर वो
अपने निचले होंठ को दन्तो मे दबाकर अपनी रुलाई रोकती हुई कमरे से
निकली.

The Romantic
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Re: अनु की मस्ती मेरे साथ

Unread post by The Romantic » 22 Oct 2014 09:36


"फिर कब मिलॉगी." मैने धीरे से पुकारा. उसके उठते हुए पावं
अचानक रुक से गये. कुच्छ देर यूँ ही खड़ी रहने के बाद उसने
पीछे मूड कर देखा तो अपनी रुलाई नही रोक सकी. और रोते हुए दौड़
कर मेरे गले लग गयी.

"रोक लो ना मुझे मैं कहीं नही जाना चाहती" लेकिन मैने उसे धीरज
दिलाया कि हम अक्सर मिलते रहेंगे. वो अपने आँसू पोंचछति हुई चली
गयी. मुझे लगा मानो मेरा एक हिस्सा मुझसे अलग हो गया.

लेकिन वो नही आई. मैं रोज सुबह उम्मीद लेकर उठता कि शायद आज उस
से मुलाकात हो जाएगी. जब प्रेस से वापस आता तो लगता कि वो दरवाजे
पर खड़ी मिल जाएगी. मगर वो नही आई. मैने उसको आस पास हर
जगह खोजा लेकिन कहीं भी उसकी झलक नही मिली. धीरे धीरे दो
हफ्ते गुजर गये. मेरी उम्मीद भी दम तोड़ती जा रही थी. आज सुबह से
ही मन मचल रहा था. रह रह कर उसकी याद आ रही थी. प्रेस मे
भी मन नही लगा. तबीयत खराब होने का बहाना करके प्रेस से चला
आया.. घर भी काटने को दौड़ रहा था इसलिए घर नही गया बस यूँ ही
इधर उधर बाइक घुमाता रहा. इधर उधर घूमते हुए कुच्छ देर बाद
उसी पार्क मे पहुँचा जहाँ हुमारी पहली मुलाकात हुई थी. आज वहाँ
काफ़ी रश था. हर बेंच पर हर झाड़ी के पीछे जोड़े बिखरे पड़े
थे. काश वो होती तो मैं भी.............

अचानक एक 20-22 साल की लड़की मेरे सामने आ गयी.

" ए चलता क्या?" मैने उसकी तरफ देखा. उसने अपना पंजा सामने किया "
पाँच सौ लूँगी पूरी रात का. अगर जगह की प्राब्लम हो तो वो
इंतेज़ाम मैं करवा देगी. लेकिन उसका अलग चार्ज लगेगा. बोल क्या सोचता
रे तू?"

मैने उसे उपर से नीचे तक देखा. उसके चेहरे पर मुझे अनु नज़र आ
रही थी. मैने उसको धीरे से कहा, "चल"

वो मेरे पीछे पीछे हो ली. हम दोनो बाहर खड़ी मेरी बाइक पर
बैठ कर घर की ओर चले. रात के नौ बज रहे थे. मैने रास्ते मे
दो आदमियों का खाना पॅक कराया और उसे लेकर घर पहुँचा. मेरे
फ्लोर पर अंधेरा हो रहा था. मैं उसका हाथ पकड़ कर सीढ़ियाँ
टटोलते हुए उपर पहुँचा. मैने लाइट ऑन करने के लिए हाथ बढ़ाया
तभी पैर किसी से टकराया. कोई वहाँ ज़मीन पर पड़ी थी.

"कौन सीसी.कौन कहते हुए मैने लाइट ऑन कर दी. ज़मीन से उठते हुए
सख्स पर जैसे मेरी नज़र पड़ी तो मेरा दिल धड़कना भूल गया.

"तुम आप आ गये." अनु ने आँखें मलते हुए पूचछा. मेरे साथ खड़ी
उस लड़की को देख कर पूछा, "ये?"

मेरी तो ज़ुबान बंद हो गयी. क्या जवाब दूं.

" मैं इसके साथ आई हूँ. पूरे पाँच सौ मे बात तय हुई है."
उसने लड़की ने कहा.

" क्याआ? तू रांड़ है?"

"कुच्छ भी समझ ले. वैसे तू बता तू कौन है?" उसने अनु से पूचछा

"साली दो टके की औरत मुझसे पूछती है कि मैं कौन हूँ. मैं
इसकी बीवी हूँ. बता इसे कह कर अनु मेरी ओर मूडी. फिर उसको बाल
पकड़ कर धक्का देते हुए कहा " चल भाग ले यहाँ से नही तो मार
डालूंगी."

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Re: अनु की मस्ती मेरे साथ

Unread post by The Romantic » 22 Oct 2014 09:38


"मेरा पैसा" उसने कहा तो अनु ने अपने ब्लाउस से कुच्छ नोट निकाल कर
पाँच सौ का नोट उसे दिया और धक्के दे कर उसे वहाँ से भगा दिया.

" और आप वो उसके जाते ही मेरी ओर मूड कर बोली " आपका वो हथियार
कुच्छ ज़्यादा ही ज़ोर मार रहा है लगता है. कुच्छ दिन के लिए मैं क्या
नही आई कि आप रांडों के पास जाने लगे"

मैं एक खिसियानी सी हँसी देकर चुप रह गया . वो मुझे लगभग
खींचते हुए घर के अंदर ले गयी. अंदर घुसते ही दरवाजे को
बंद कर के संकाल लगा दी और उससे अपनी पीठ सटा कर खड़ी हो
गयी. उसने एक झटके मे अपनी साडी के आँचल को अपनी चूचियो से
हटाया.

" क्यों मॅन इतनी जल्दी मन भर गया क्या इनसे?" उसने मुझे घूरते
हुए कहा. फिर एकद्ूम ही उसके चेहरे के भाव बदल गये और मेरी ओर
अपनी बाँहें फैला कर मुझे अपनी बाँहों मे आने क्या न्योता दिया. मैने
एक कदम उसकी ओर बढ़ाया तो वो दौड़ते हुए मुझ से लिपट गयी. फिर
तो दोनो के होंठ एक दूसरे पर ऐसे रगड़ने लगे मानो जन्मो के
भूखे हों.

"कहाँ थी तू?" मैने उससे पूचछा.

"वो मुझ से अलग हो गयी ."
वो आ गया था
"कौन?" मैने पूचछा

"मेरा पति और कौन. उस दिन मैं घर पहुँची ही थी कि वो आया. उसने
दूसरी बीवी रख ली थी. गुजरात मे कहीं रह रहा था. हम दोनो
अच्छे महॉल मे अलग हो गये. वो अपनी बीवी के साथ आया था. उसकी
बीवी अच्छि थी. मैने उनसे अलग होने का फ़ैसला तो यहीं कर लिया
था. सो हम अलग हो गये.. मैने अपने सारी जमा पूंजी समेटी और उस
मोहल्ले को अलविदा कह दिया. अब मैं यही रहूंगी. तुम्हारे पास.
करोगे मुझसे शादी?"

मैने उसके होंठ अपने होंठों से बंद कर दिए. वो मेरा मतलब समझ
गयी थी तभी तो बोली, " मंदिर तो सुबह चल्लेंगे. सुहाग रात तो
कम से कम अभी मना लो"

हम दोनो ने एक दूसरे के कपड़े नोच डाले. दोनो एकदम नग्न हो गये. दो
हाथों की दूरी पर खड़ी होकर हम दोनो ने एक दूसरे को कुच्छ देर
तक निहारा. फिर एक दूसरे से लिपट गये. मैने चूमते हुए ज़मीन
पर घुटने के बल बैठ गया. उसने अपनी एक टाँग मेरे कंधे के उपर
रख दी. इससे मुझे उसकी योनि तक पहुँचने के लिए जगह मिल गयी.
मैने उसकी योनि को अपनी जीभ से सहलाना शुरू किया. मैं अपने दाँतों
से उसकी क्लीत्टोरिस को हल्के हल्के से काट रहा था.

"म्‍म्म्ममममम... ...आआआआअहह हह" उसके मुँह से गर्म आवाज़ें निकल रही
थी. मैं उसको और उत्तेजित करता जा रहा था. ,मुझे उसका ये अंदाज़
बहुत प्यारा लगता था. वो मेरे बालों पर अपनी उंगलियाँ फिरा रही
थी. कुच्छ देर तक मेरे सिर को अपनी योनि पर दबाए रखने के बाद
उसका बदन एक बार ज़ोर से काँप उठा और उसकी योनि से रस की धारा
बह निकली. कुच्छ देर बाद उसने मेरे सिर को अपने बदन से हटाया.
मेरा चेहरा उसके रस से गीला हो कर चमक रहा था. उसने मेरे रस
से लिसडे हुए होंठों को चूम कर अपना मुझे उपर खींचा. मैं खड़ा
हो गया. अब मुझे भी उतना ही प्यार देने की बारी उसकी थी. वो मेरे
होंठों को मेरे गाल मेरे गले को चूमते हुए मेरे निप्पल तक आई.
उसने मेरे दोनो निपल्स को बारी-बारी से अपनी जीभ से कुरेदा. जब मेरे
निपल्स उत्तेजना मे खड़े हो गये तो उसने मेरे निपल्स को अपने दाँतों
के बीच लेकर कुरेदना शुरू किया.. मैं उसके प्यार करने के अंदाज़ पर
पागल हो गया था. फिर उसके होंठ नीचे आकर मेरे लिंग के चारों ओर
फैले हल्के घुंघराले जंगल पर विचारने लगे. वो दाँतों से मेरे
रेशमी झांतों को दबा कर खींच रही थी. फिर उसने मेरे बारी बारी
से मेरे दोनो गेंदों को अपनी जीभ से सहलाया और फिर अपने मुँह मे
खींच लिया. मुँह मे लेकर उन पर अच्छि तरह से अपनी जीभ
फिराई.

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