Badla बदला compleet

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rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:58

गतान्क से आगे...
देविका शर्मा गयी & उसने किस तोड़ अपना चेहरा फिर से दीवार से लगा
लिया.इंदर फिर उसकी पीठ को चूमने लगा.वो जल्द से जल्द उस हुस्न की
मल्लिका को उसके पूरे शबाब मे देखना चाहता था.उसके हाथो ने उसके ब्लाउस
के हुक्स & फिर ब्रा के हुक्स को भी खोल दिया & बेचैनी से उसकी नंगी पीठ
पे फिरने लगे.देविका की चूत उसकी हर्कतो से पागल हो अब और अपनी छ्चोड़
रही थी.इंदर ने अपने हाथो को उसके बदन पे चलते हुए ब्लाउस & ब्रा को उसके
कंधो से नीचे सरकया मगर देविका की बाहे कोहनी से मूडी होने कारण दोनो
कपड़े उसके बदन से अलग नही हुए.इंदर ने देविका के कंधे पकड़ बड़े प्यार
से उसे अपनी ओर घुमाया तो हया की मारी देविका ने अपनी आँखे बंद कर ली.

इंदर ने उसके हाथ पकड़ बाहे नीची की & ब्लाउस & ब्रा को फर्श पे गिरने
दिया.अब देविका के जिस्म पे बस 1 छ्होटी सी,काले रंग की पॅंटी थी जो उसकी
चूत से निकले रस के कारण गीली हो उस से चिपक गयी थी.इंदर ने 1 बार सर से
पाँव तक देविका के हुस्न को निहारा.उपरवाला उसपे मेहेरबन था,उसका बदला भी
पूरा होनेवाला था & साथ मे ये मस्त औरत भी उसकी बाहो मे उस से चूड़ने
वाली थी.इनडर ने अपनी बाई बाँह देविका के कंधो के गिर्द डाली & दाए हाथ
मे उसका बाया हाथ पकड़ा & बिस्तर की ओर बढ़ चला.

दोनो 1 दूसरे से सटे बिस्तर पे बैठ गये.देविका को ना जाने कब से इस पल का
इंतेज़ार था मगर इस वक़्त उसे इतनी शर्म आ रही थी की पुछो मत.इंदर ने उसे
तोड़ा चूमा & फिर उठके अपनी शर्ट निकाल दी.देविका ने उसके बालो भरे चौड़े
सीने को देखा & बेचैनी से अपनी गोरी,कसी जंघे आपस मे रगडी,इंदर दोबारा
उसके बाए तरफ बैठा ,अपनी बाई बाँह उसके बदन के गिर्द डाली,दाई को उसकी
कमर मे डाला & उसके गुलाबी होंठ चूमते हुए उसे बिस्तर पे लिटा दिया.अब
दोनो के पैर बिस्तर से नीचे लटके थे & उपरी जिस्म बिस्तर पे लेटे थे.

इंदर का दाया हाथ उसके सीने पे आया & उसके उभारो को सहलाने लगा.इतनी बड़ी
& इतनी कसी,ऐसी मस्तानी चूचिया उसने अपनी ज़िंदगी मे पहली बार देखी
थी.उसके हाथ बहुत हल्के-2 गोलाई मे उसकी चूचियो पे घूम रहे थे.देविका
काजिस्म इंदर के च्छुने से रोमांच से भर उठा था.उसकी आँखे मज़े मे बंद हो
गयी थी.इंदर झुका & उन मस्त गोलाईयो को अपने मुँह मे भरने लगा.देविका की
साँसे अटकने लगी.इंदर की ज़ुबान उसकी चुचियो को कभी मुँह मे भरती, कभी
चुस्ती कभी बस निपल को छेड़ती.

इंदर काफ़ी देर तक उसके सीने के उभारो से खेलता रहा.देविका की चूत मे
उठती कसक बहुत बढ़ गयी थी.इंदर ने उसकी बाई चुचि को मुँह मे भर अपना मुँह
उपर उठाते हुए ऐसे खींचा की देविका के होश उड़ गये & उसकी चूत ने पानी
छ्चोड़ दिया.देविका के मुँह से लंबी सी आह निकली & वो झाड़ गयी.इंदर ने
उसकी चूचियो को अपने होंठो के निशानो से ढँक दिया था.वो दोबारा देविका के
पेट को चूम रहा था मगर इस बार मंज़िल देविका की नाभि नही उसके नीचे थी.वो
उसके पेट को चूमते हुए उसकी कसी पॅंटी के उपर कमर के बगल मे उसके गुदाज़
हिस्से को दबा रहा था.

देविका समझ गयी की अब उसके जिस्म से उसका आख़िरी कपड़ा भी उतरने वाला
है.ठीक उसी वक़्त इंदर ने अपना हाथ पॅंटी के वेयैस्टबंड मे फँसाया & उसे
खींचा.देविका को ना जाने क्यू बहुत शर्म आई & उसने इंदर का हाथ पकड़ना
चाहा मगर इंदर उसके नाभि के नीचे चूमते हुए उसकी पॅंटी को नीचे सरकाता
रहा.

जैसे ही पॅंटी निकली देविका ने शर्म से करवट ले बिस्तर मे अपना मुँह
च्छूपा लिया मगर ऐसा करने से उसकी भरी हुई गंद इंदर के सामने चमक उठी.अभी
तक बिजली नही आई थी बस कमरे के बाल्कनी के खुले दरवाज़े से पूरे चाँद की
दूधिया रोशनी आ रही थी जिसमे नहाके देविका का नशीला जिस्म & भी पुर्कशिश
हो गया था.

इंदर ने देखा की ये तो वही कमरा है जहा सुरेन सहाय ने कॉल गर्ल को चोदा
था जब उसने उनकी दवा बदली थी.उसे अपने बदले की याद आई & ये याद आते ही
उसे सामने नंगी पड़ी देविका का जिस्म 1 खिलोने से ज़्यादा कुच्छ नही
लगा.वो खिलोना जिस से जी भर के खेलने के बाद उसे तोड़ के फेंक देना था.

इस खिलोने से वो जैसे मर्ज़ी जितना मर्ज़ी खेलेगा....उसने अपनी पॅंट की
ज़िप खोली....इस खिलोने के साथ कोई रहम नही करेगा वो....पॅंट नीचे सरकने
के बाद वो अपना अंडरवेर उतार रहा था.जब देविका ने देखा की इन्दर उसके बदन
को नही च्छू रहा है तो उसने वैसे ही पड़े-2 अपनी गर्दन घुमा के पीछे देखा
& जो देखा उसे देखते ही उसे शर्म भी आई मगर उसके साथ ढेर सारी खुशी भी.

इंदर अब पूरा नंगा था & उसका लंड तना हुआ देविका की निगाहो के सामने
था.देविका ने पाया की इंदर का लंड शिवा जितना लंबा तो नही था मगर उस से
बहुत ज़्यादा छ्होटा भी नही था.इंदर की आँखो मे जो बदले का जुनून था उसे
देविका ने अपने जिस्म की चाह समझा & शर्मा के फिर अपना चेहरा बिस्तर मे
च्छूपा लिया.इंदर उसके करीब पहुँचा & उसकी टाँगो को उठा के बिस्तर पे
किया & फिर उसके बगल मे बैठ के उसकी गंद को मसलने लगा.देविका की आहे फिर
से कमरे मे गूंजने लगी.इंदर ने गंद की मोटी फांको को फैलाया & झुक के
अपनी जीभ देविका की गीली चूत से सटा दी.इंदर देविका के बाए तरफ घुटनो पे
बैठा था.उसकी पीठ देविका के सर की तरफ थी & वो झुक के उसकी गंद को चाट
रहा था.देविका का सर बिस्तर से उठ गया था & वो इंदर की ज़ुबान की बेशर्म
हर्कतो से जड़े जा रही थी.

"आहह....आआनंह...बस..इंदर...ऊहह..प्लीज़.....रुक..जा...ऊओ...ऊओ...!",इंदर
उसकी मिन्नतो के बावजूद उसकी चूत चाते चला जा रहा था.बीच-2 मे उसकी
उंगलिया भी उसकी चूत की गहराइयाँ नाप लेती.देविका को होश नही था की वो
कितनी बार झड़ी.इंदर का लंड अब ठुमके लगाने लगा था,उसके आंडो मे भी मीठा
दर्द शुरू हो गया था.वो घुमा & देविका की दाई टांग को उपर कर घुटनो से
मोड़ दिया & पीछे से अपना लंड उसकी चूत मे घुसा
दिया,"..हाइईईईईई....!",इंदर को देविका के दर्द की कोई परवाह नही थी.उसने
1 झटके मे ही लंड को अंदर पेल दिया था.चूत गीली होने के बावजूद देविका को
थोड़ा दर्द महसूस हुआ.

इंदर उसकी पीठ पे लेट गया तो देविका ने अपना सर उठा के दाई तरफ घुमाया
उसके दाए कंधे के उपर से झुकते हुए इंदर उसे चूमने लगा.वो किसी प्रेमी की
तरह नही चूम रहा था बल्कि किसी वहशी की तरह चूम रहा था.देविका को लगा की
इंदर बहुत जोश मे है इसलिए ऐसे कर रहा है.उसके धक्के भी बड़े गहरे & तेज़
थे.देविका को उसका ये अंदाज़ भा रहा था..बेचारी!अगर जानती की इंदर के
वहशिपान की वजह उसके जिस्म का नशा नही बल्कि उस से इन्तेक़ाम का जुनून था
तो पता नही उस पे क्या बीतती.

इंदर के हाथ देविका की बगलो से घुस उसकी मोटी चूचियो को मसल रहे
थे.देविका को बहुत मज़ा आ रहा था.कभी-कभार शिवा की चुदाई ऐसी होती थी मगर
उसमे भी वो पागलपन भरा जोश नही रहता था.इंदर तो ऐसे चुदाई कर रहा था जैसे
सब भूल गया हो,अब वो अपने होंठ उसके होंठो से अलग कर उसकी पीठ पे दन्तो
से काट रहा था,देविका के बदन मे तो जैसे मस्ती के पटाखे फुट रहे थे!.उसकी
पीठ से चिप्टा उसकी चूचिया मसल्ते हुए इंदर तब तक उसे चोद्ता रहा जब तक
वो झाड़ नही गयी.उसके झाड़ते ही वो उसकी पीठ से उपर उठा & फिर उसकी कमर
पकड़ हवा मे उठा ली.उसका लंड अभी भी चूत मे धंसा था.देविका का अस्र
बिस्तर से लगा हुआ था.उसने गर्दन बाई ओर घुमाई & इंदर को देखा.उसकी नशीली
आँखो ने इंदर के जिस्म का जोश दुगुना कर दिया & साथ ही उसके बदले का
जुनून भी उसके और सर चढ़ गया.

rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:58

इंदर ने उसकी कमर थामी & दनादन धक्के लगाने लगा.देविका के गले से फिर से
आहें निकलने लगी.उसने अपना बाया हाथ अपनी चूत से लगाया & अपने दाने को
रगड़ने लगी.इंदर ने दाए से उसकी चूचियो को मसलना जारी रखा & बाए से उसकी
कमर को थाम धक्के लगाता रहा.उसके अंडे मानो फटने को तैय्यार थे मगर वो
ऐसे नही झड़ना चाहता था.झाड़ते वक़्त उसे इस मतलबी,स्वार्थी औरत का चेहरा
देखना था..उसे देखना था की कैसे..ये दूसरो का हक़ मारने वाली औरत उसके
लंड की गुलाम बन गयी है.

देविका की चूत मे इंदर के लंड ने फिर से खलबली मचा दी थी.रही-सही कसर
उसकी उंगली पूरी कर रही थी की तभी इंदर ने उसकी गांद पे 1 थप्पड़
मारा.."तदाक..!"..देविका को दर्द हुआ मगर उस से भी ज़्यादा मज़ा आया.इंदर
उसे चुदाई के नयी पहलू दिखा रहा था.इंदर के हर थप्पड़ पे उसकी गांद लाल
हो रही थी & उसका दर्द बढ़ रहा था मगर इसके साथ ही उसकी मस्ती की भी
इंतेहा नही रही थी.जिस्मो के मिलन की खुमारी 1 बार फिर उसके उपर पूरी तरह
से हावी हो गयी थी.उसके जिस्म मे जैसे अकड़न सी भर गयी थी & वो जानती थी
की इस अकड़न से उसे इंदर का लंड ही निजात दिलाएगा.इंदर के धक्के & थप्पड़
और तेज़ हो गये थे & देविका की उंगली की रगड़ान भी.

"आअनन्नह.....!",देविका ने बिस्तर से सर उठा के कमर हिलाकर इंदर के धक्को
का जवाब देते हुए ज़ोर की आह भरी.इंदर के लंड पे देविका की चूत थोड़ा और
कस गयी थी.उसे हैरत हुई की इस उमर मे भी वो इतनी हसीन & पूर्कशिश जिस्म
की मल्लिका कैसे थी!....उसकी चूत किसी कुँवारी लड़की की चूत की तरह कसी
थी & देविका के झड़ने पे वो और कस गयी थी.बड़ी मुश्किल से इंदर ने अपने
को झड़ने से रोका.

देविका हानफते हुए बिस्तर पे निढाल हो गिर गयी थी & इंदर का लंड उसकी चूत
से निकल गया था मगर इंदर का काम अभी पूरा नही हुआ था.उसने देविका को सीधा
किया & उसकी दाई टांग को उठा के अपने बाए कंधे पे रखा,अपने घुटनो पे बैठ
1 बार फिर उसने अपना लंड देविका की चूत मे घुसा दिया.देविका के लिए अब
बात बर्दाश्त के बाहर थी.वो 1 बार झड़ती नही थी की इंदर अगले हमले के लिए
तैय्यार हो जाता था.उसने सर उठाके उसके तगड़े लंड को अपनी चूत मे
अंदर-बाहर होते देखा & 1 बार फिर उसका जोश बढ़ गया.अपने हाथो से अपनी
चूचिया दबाते हुए वो आहे भरने लगी & इंदर से मिन्नते करने
लगी,"..हाइईईईईई....ऊहह...इन..देर.....प्लीज़.......आअनंह......रुक...जाओ.....आँह.......आहह....!",मगर
इंदर जैसे बेहरा हो गया था.वो बस घुटनो पे बैठा उसकी जाँघो को थामे धक्के
लगाए जा रहा था.उसकी आँखो के सामने उसके नाम की माला जपती देविका उसे अब
अपनी औकात पे आती दिख रही थी.इस ख़याल से उसके धक्के और तेज़ हो गये.

देविका अभी भी यही समझ रही थी की इंदर उसके जिस्म का दीवाना हो गया है &
इसलिए ऐसी क़ातिलाना चुदाई कर रहा है.अपने सख़्त निपल्स को उंगलियो मे
मसल्ते हुए उसने अपनी बाई टांग इंदर के कमर पे लपेट दी.इंदर समझ गया की
वो फिर से झड़ने वाली है.उसने उसकी दाई टांग को कंधे से गिराया तो देविका
ने उसे भी उसकी क्मर पे कस दिया.इंदर अपने हाथो पे झुक अपनी टाँगे फैला
धक्के लगा रहा था.देविका ने अपने हाथ अपने सीने से हटाए & उसके मज़बूत
बाज़ू पकड़ बिस्तर से जैसे उठने की कोशिश करने लगी.उसका चेहरा देखने से
ऐसा लगता था ,मानो उसे बहुत तकलीफ़ हो रही है मगर इंदर जानता था की इस
वक़्त वो मज़े के आसमान मे उड़ रही है.इंदर झुका & उसके होंठो को अपने
होंठो से कस लिया.देविका ने अपनी बाँहे उसकी पीठ पे डाली & फिर बेचैनी से
उसकी पीठ पे हाथ फिराते हुए अपने नाख़ून उसमे धंसा दिए-वो फिर से झाड़
रही थी.इस बार इंदर ने अभी अपने सब्र का बाँध खोल दिया & उसका जिस्म झटके
खाने लगा.उसका गाढ़ा,गर्म वीर्या देविका की चूत मे भर रहा था.

इंदर ने उसे चूमना नही छ्चोड़ा था क्यूकी वो जानता था की अगर उसने अपने
होंठ अलग किए तो इस कमज़ोर लम्हे मे उसके मुँह से वो गलिज़ लफ्ज़ निकल
जाएँगे जो वो देविका को असल मे कहना चाहता था.उसे अपने उपर काबू रखना
होगा,अपने जज़्बातो को वो ऐसे आज़ाद नही छ्चोड़ सकता था....वरना सारे
किए-धरे पे पानी फिर जाएगा..वो दिन बा दिन मंज़िल के करीब आ रहा था.इतने
पास पहुँच के वो सब खोना नही चाहता था...झड़ने के बाद उसका जिस्म भी
सुकून महसूस कर रहा था & दिल भी.उसके & देविका के होंठ अभी भी जुड़े थे
की तभी बिजली आ गयी & सारा कमरा रोशनी से नहा गया.इंदर ने देविका को देखा
& जैसे उसे कुच्छ याद आ गया.

वो 1 झटेके मे अपने होंठ अलग करता उसके उपर से लंड खींचता उठा & सामने
रखे लकड़ी के कॅबिनेट पे हाथ रख सर झुका के खड़ा हो गया.

"इंदर,क्या हुआ?",फ़िक्रमंड देविका उसके करीब आई & उसके कंधे पे हाथ रखा.

"ई..ई आम सॉरी.",ये इंदर के नाटक का अगला भाग था.

"कोई बात नही,इंदर..",देविका ने सोचा की इंदर अपनी जुनूनी चुदाई के बारे
मे शर्मिंदा है,"..जब इंसान के अरमान दिल मे बहुत गहरे पैठ जाते हैं तो
कभी-कभार उनका गुबार ऐसे ही निकलता है.तुम पहले ही मेरे पास आ जाते तो
ऐसा नही होता.",देविका ने उसे पीछे से ही अपनी बाँहो मे भरा & अपना दाया
गाल उसकी पीठ से लगा दिया,"..वैसे सच कहु तो मुझे बहुत मज़ा आया....मैने
तुम्हारे साथ उन उँचाइयो को च्छुआ जिनके वजूद का मुझे इल्म ही नही
था.",उसने प्यार से अपने हाथ इंदर के चौड़े सीने पे फिराए.

..तो ये बेचारी सोच रही थी की उसका जुनून देविका के जिस्म की वजह से
था...हाः...पागल कही की!बेवकूफ़!

"बात ये नही है..",इंदर ने उसे अपने जिस्म से अलग किया & दूसरी तरफ पीठ
करके खड़ा हो गया.

"तो क्या बात है?",देविका उसके सामने आई.

"ये..ये नही होना चाहिए था..ये ग़लत है..",इंदर बहुत परेशान होने का नाटक
कर रहा था.

"ओह..समझी..",देविका ने उसेक चेहरे को हाथो मे भरा,"..इंदर,तुम हमारे
मालिक-नौकर के रिश्ते की बात कर रहे हो ना."

इंदर ने हा मे सर हिलाया.

"इंदर,तुम 1 मर्द हो & मैं 1 औरत.हम दोनो 1 दूसरे की ओर खींच रहे थे & आज
वो हुआ जो की कुदरती बात है.अगर दो लोग 1 दूसरे को चाहे तो
इज़हारे-मोहब्बत तो होगा ही ना!"

"मगर ये हक़ीक़त है की आप मेरी मालकिन हैं."

"और ये भी हक़ीक़त है की तुम मुझे चाहते हो.हां या ना?"

"हां.",इनडर ने सर झुका के कहा.

"फिर क्या बात है?"

"पता नही...ये ठीक नही लगता."

"क्या ठीक नही लगता?"

"डर लगता है."

"कैसा डर?"

"की कही मैं इस रिश्ते का कोई नाजायज़ फ़ायदा ना उठा लू."

"ओह्ह..इंदर..",डेविका ने उसे गले से लगा लिया,"..हमेशा ऐसे डरते रहना
कभी कुच्छ भी ग़लत नही होगा."

इंदर ने उसके कंधे से सर उठाके सवालिया निगाहो से उसे देखा.

"हां..",देविका ने उसके बालो मे हाथ फेरा,"..कोई और मर्द होता ना इंदर तो
मैं अभी भी उस बिस्तर पे पड़ी होती & वो मेरे जिस्म से खेल रहा होता मगर
इस वक़्त भी तुम ये नही भूले.इस से तो बस तुमहरि अच्छाई ज़ाहिर होती है."

"..इंदर,इस बात का डर की तुम कही कभी इस रिश्ते का ग़लत इस्तेमाल ना करो
ही तुम्हे इस ग़लती से बचाए रखेगा.तुम घबराव मत,मुझे पूरा यकीन है की तुम
कभी कोई ग़लत काम नही करोगे..",इंदर कुच्छ बोलने को हुआ मगर देविका ने
अपने कोमल हाथ उसके होंठो पे रख दिए,"..& अगर कभी ऐसा किया तो मैं तुम्हे
रोक दूँगी.अब तो तुम्हारे मन मे कोई शुबहा नही है ना?"

rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:59

इंदर ने ना मे सर हिलाया & देविका को अपने आगोश मे लिया.देविका ने
मुस्कुराते हुए अपना सर उसके बाए कंधे पे टीका उसे प्यार से देखा,"1 बात
का वादा कीजिए."

"क्या इंदर?",देविका उसके सीने के बालो से खेल रही थी.

"कि आप कभी इस रिश्ते की हदो को तोड़ने के लिए मुझे नही कहेंगी?हम दुनिया
के सामने नही आ सकते & कभी ऐसा किया तो चाहे हमारे इरादे कितने ही नेक
क्यू ना हो ये दुनिया कभी हमे सही नही समझेगी.",इंदर ने बड़ी सफाई से
अपने & देविका के रिश्ते को राज़ रखने की बात उसे कह दी.हर इंसान का कोई
इतना अज़ीज़ होता है उसके दिलबर के सिवा जिस से वो अपनी सारी बाते कहता
है.इंदर को पता नही था की देविका का ऐसा दोस्त कौन है मगर वो कोई रिस्क
नही लेना चाहता था.

"वादा किया.",देविका ने मुस्कुराते हुए उसे देखा,"..मगर 1 वक़्त पे कभी
कोई हद्द नही मानूँगी?"

"कब?"

"जब हम दोनो तन्हा हो.",देविका के हाथ इंदर के सीने से उसके पेट तक गये
मगर उस से नीचे ले जाने मे देविका को झिझक हुई.

"जो आपका हुक्म,मॅ'म.",इंदर ने देविका के झिझकते हाथ को पकड़ उसे अपने
सिकुदे लंड पे रख दिया.देविका को शर्म आ गयी & उसने इंदर के बाए कंधे मे
अपना चेहरा च्छूपा लिया.इंदर अभी भी उसका हाथ वैसे ही लंड पे दबाए था.

थोड़ी ही देर मे देविका ने लंड को थाम लिया था & बहुत धीरे-2 हिला रही
थी.इंदर ने उसके बालो को चूमा तो उसने अपना चेहरा उठा अपने होंठ इंदर के
सामने पेश कर दिए.इंदर ने उसके तोहफा अपने होंठो से कबूला & अपना दाया
हाथ उठा दीवार पे लगे लाइट स्विच को ऑफ किया & देविका को ले 1 बार फिर
बिस्तर की ओर बढ़ गया.

पंचमहल का बाहरगूँज इलाक़ा जहा सस्ते होटेल्स की भरमार थी.इन्ही मे से 1
होटेल के 1 कमरे मे लेटा शिवा अपनी ज़िंदगी के बारे मे सोच रहा था.फौज से
सहाय एस्टेट & अब ना जाने कहा ले जाने वाली थी उसकी तक़दीर उसे.उसके हाथ
मे वो दवा की डिबिया थी & उसे समझ नही आ रहा था की अब आगे क्या करे.

उसके पैने दिमाग़ ने इतना अंदाज़ा तो लगा लिया था की इस दवा का सुरेन
सहाय की मौत से कुच्छ ना कुच्छ ताल्लुक तो ज़रूर था & इस सबके पीछे इंदर
का हाथ था मगर इंदर ये सब क्यू कर रहा था..दौलत के लिए?..पर इस सब मे
कितना ख़तरा था..इतना ख़तरा दौलत के लिए...लगता तो नही.1 बात तो तय थी की
जिस तरह से उसने सुरेन जी को मौत की नींद सुलाया था & उसके चौक्काने होने
के बावजूद उसे देविका की नज़रो से गिरा दिया था उसका दिमाग़ बहुत तेज़
था.इतना तेज़ दिमाग़ शख्स इस तरह से ख़तरा उठाया सिर्फ़ दौलत के
लिए..ना!वो तो और काई कम ख़तरे वाले तरीक़ो से पैसे कमा सकता था.तो फिर
क्या थी वजह & फिर सहाय एस्टेट ही क्यू?पंचमहल मे दौलत्मन्दो की कमी नही
थी फिर सहाय परिवार ही क्यू?

शिवा ने इस सवाल से जूझना छ्चोड़ा..अभी सबसे ज़रूरी था इस दवा की असलियत
जानना लेकिन कैसे?उसने दवा को पास पड़ी अपनी पॅंट की जेब मे डाला & कमरे
की बत्ती बुझा दी.आँखे मूंद उसने सोने की कोशिश की मगर नींद उसकी आँखो से
कोसो दूर थी.हर रात देविका के कोमल जिस्म को बाहो मे भरके सोना उसकी आदत
बन गया था & जब से वो एस्टेट से निकाला गया था दिन तो किसी तरह कट जाता
था मगर राते उस से काटे नही कटती थी....इस सबका ज़िम्मेदार इंदर
था....देविका से जुदाई के दर्द ने शिवा के गुस्से को भड़काया & उसके दिल
मे इंदर से बदला लेने का जज़्बा & पुख़्ता हो गया.

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क्रमशः.............



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