मेरा योंन शोषण

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sexy
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Re: मेरा योंन शोषण

Unread post by sexy » 25 Aug 2015 10:36

मेरी योनी सूझ गयी थी । उसका रंग लाल सुर्ख हो गया था । विक्की और योगी बाहर सोनल प्रीत से गप्पें मार रहे थे और में अंदर बिस्तर पे पड़ी हुई अपनी हालत पे रो रही थी। फिर जेसे तेसे में कड़ी हुई, कांपती टांगो से चल के बाथरूम गयी और खुद को शावर के नीचे खड़ी कर के नहा धो के साफ़ करने लगी ।
फिर नहा के यूनिफार्म पहनी और बाहर निकली, मुझे देख के उन तीनो ने बातें बंद करदी। में बड़ी मुश्किल से चल रही थी, सोनल मेरे पास आयी और बोली की ऐसे घर जायगी तो सब शक करेंगे। वो मुझे फिरसे अंदर ले गयी और विक्की से बोली की दूध गरम कर दे । फिर उसने योगी को बाज़ार से पैन किलर लाने को कहा। अब मेरे साथ बैठ के सोनल ने अपने पहले योंन अनुभव के बारे में बताया। आज से 3 साल पहले उसका कोमार्य ट्यूशन वाले सर ने किया था, और तभ भी उसकी येही हालत हुई थी। फिर उन्होंने गरम दूध और पैन किलर टेबलेट दी थी जिस से बोहुत आराम मिला था। मेने सोनल से पूछा कि प्रेगनेंसी का कोई खतरा तो नही? वह बोली अगर तेरी माहवारी हफ्ता पहले आयी थी तो कोई टेंशन नही।
तब तक योगी टेबलेट ले आया था और विक्की ने अपने हाथों से गरम दूध से वह टेबलेट खिल दी। करीब आधे घंटे बाद मुझे काफी फर्क पढ़ गया और में घर जाने की स्थिथि में थी।
उस रात मुझे नींद नही आई। एक तरफ कुंवारापन खोने का दुःख, दूसरी और जिंदगी में पहली बार स्वर्ग का एहसास कराता योंन सखलन । एक तरफ लिंग से मिलने वाला दर्द तो दूसरी और उस्सी लिंग से मिलने वाला सुख। एक तरफ हवस में डूबे तीन खुदगर्ज़ लोग तो दूसरी तरफ मेरी तकलीफ का हल ढूँढ़ते हुए वोही तीन दोस्त । बस इसी कशमकश में सारी रात निकल गयी और सुबह 4 बजे कहीं जा के थोड़ी सी नींद की

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Re: मेरा योंन शोषण

Unread post by sexy » 25 Aug 2015 10:37

अगले एक महीने मेरी खुल के चुदाई हुई । योगी ओर विक्की ने मुझे योंन क्रीडा में निपुण बना दिया था, सोनल प्रीत तो थी ही एक्सपर्ट एडवाइस के लिए । अब मेरे लिए दुनिया बदल चुकी थी । मर्दों को देखने का नजरिया भी बदल चूका था । पहले कभी कोई अंकल जब मुझे गोद में बिठाता या गाल चूमता तो सामान्य लगता तगा, पर अब वोही हरकत जिस्म में योंन वासना से भरी सिरहन पैदा कर देती। ओर ऐसा भी नही की सब अंकल लोग मुझे बच्ची की नजर से देखते हों। कुछ ऐसे भी थे जो मुझे आसान शिकार के रूप में देख रहे थे।
ऐसे ही एक इन्सान थे मुश्ताक । वह पापा के दोस्त थे ओर अक्सर उनका हमारे घर आना जाना था। में महसूस करती थी की जब भी वह घर आते तो उनकी आंखें मुझे ही ढूँढ रही होती । वह बाहर लॉबी में बेठ के अक्सर मेरे बारे में पूछते, फिर पापा मुझे आवाज़ लगा के बुलाते और कहते कि मुश्ताक अंकल आये गें। ओर जब में उनके सामने जाती तो उनकी आँखों की चमक से शर्मा जाती। फिर वह चॉकलेट निकाल के मुझे पास आने का इशारा करते, में पास जाती तो वह हस के मुझे अपनी गिरफ्त में लेके गाल पे थपकी लगा के गोद में बिठा देते ओर फिर चॉकलेट देते। में महसूस करती की नीचे मेरे नितंबो पे कोई चीज चुभ रही हे, और वह चीज अब मेरे दिलो दिमाग पे छाया हुआ मर्दों का औज़ार था जिससे हम लिंग लंड लौड़ा इत्यादि के नाम से जानते हैं ।

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Re: मेरा योंन शोषण

Unread post by sexy » 25 Aug 2015 10:37

मुश्ताक अंकल मुझे गोद में बिठाने का कोई मोका नही छोड़ते। में वेसे तो उनके साथ विक्की योगी वाला सम्बन्ध नही सोच रही थी पर फिर भी मेरे दिमाग में ये सवाल अक्सर आता था कि मुश्ताक अंकल के इरादे क्या हैं , क्या वह बस यूँही गोद में बिठा के खुश रहेंगे या फिर किसी दिन मुझे विक्की योगी की तरह टांगें उठा रौंद डालेंगे।
मेने अब महसूस करना शुरू कर लिया था कि में जहाँ भी जाती हूँ, मर्दों और लड़कों की नज़रे मुझे जरूर घूरती हैं। चाहे स्कूल हो या ट्यूशन, बाजार हो या पार्क, पार्टी फंक्शन हो या सत्संग, यहाँ तक की गुरद्वारे जाते हुए बाहर खड़े लड़के भी मेरे जिस्म को ताड़ रहे होते। धीरे धीरे मेरी समझ में ये बात आने लगी थी कि जगह कोई भी हो, समय कोई भी हो, मर्द मर्द ही रहेंगे। वह किसी भी धर्म जाती के हो, जो मर्जी उम्र हो उनकी, जो मर्जी काम धंधा हो उनका, मर्दों को हम लडकियों की अजब सी ना भुझने वाली प्यास रहती हे ।
एक दिन स्कूल बस में घर आ रही थी, सीट खाली नही थी इसलिए खड़ी थी। साथ बैठे कंडकटर ने मुझे अपने पास जगह बना के बेठने का इशारा किया, में भी थकी हुई थी सो बैठ गयी। बस रस्ते पे दौड़ रही थी और उस कमीने के हाथ की उँगलियाँ मेरी चिकनी गोरी ओर स्कर्ट से बाहर झांक रही सुडोल झांघों पे । में पहले तो चौंक के ठिठक गयी, फिर आगे पीछे नजरें घुमा के देखी कहीं किसी ने देखा तो नही। कोई नही देख रहा था, मुझे ऐसा लगा, और फिर मेने उस कमीने की आँखों में ग़ुस्से से देख के उसको डराने की कोशिश की पर उसने आगे से कमीनी मुस्कुराहट से जवाब दिया। मुझे लगा कि में और झेल नही सकूँगी इसलिए सीट से खड़ी हो गयी। उसने हाथ हटा लिया और मेने राहत की सांस ली।
ऐसी ऐसी घटनाएं अब आये दिन मेरे साथ होने लगी थी। कोई दिन ऐसा नही जाता जब मुझे अपने नितम्बों उरोजों झांघों कमर इत्यादी पे मर्दों के फिसलते हाथ ना महसूस हों। ओर सबसे खतरे वाली बात थी के मुझे इसकी आदत सी होती जा रही थी।
फिर एक दिन जब में घर पे अकेली थी की तभी बेल बजी। मेने दरवाजा खोल तो सामने मुश्ताक अंकल खड़े थे

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