गतांक से आगे ..............................
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वो खिड़की जो उस दिन मैने बंद की थी आज भी बंद है. ये वक्त गवाह है कि, मैने फिर उसे कभी नही खोला.
उस दिन जी भर कर रोने के बाद मन को तस्सली मिली.
पर बार, बार मन मे ख्याल आ रहा था कि आख़िर मैं कैसे, बहक गयी और अपनी सारी मर्यादाए भुला बैठी.
आख़िर मैने अपने बहकते कदमो को क्यो नही थामा.
ये कुछ ऐसे सवाल थे जो कि बार, बार मेरे मन में घूम रहे थे.
मुझे ये बात भी परेशान कर रही थी कि ऐसा सब कुछ मेरे घर के पीछे हुवा. अगर कोई देख लेता तो मेरा क्या होता.
उस शाम, मैं संजय से नज़रे भी नही मिला पा रही थी. मैने चुपचाप उनके साथ डिन्नर किया.
मेरा मन गिल्ट, और शर्मिंदगी से भरा पड़ा था.
फिर से, बार, बार मन में ये ख्याल आ रहा था कि आख़िर मैने इतना कुछ कैसे होने दिया.
मैं, आख़िर मर क्यो नही गयी, इतना कुछ होने से पहले. पर शायद कुछ बातो के जवाब हमारे पास नही होते.
फिर मुझे, ख्याल आया कि कितनी चालाकी से बिल्लू ने, मुझे सब कुछ करने पर मजबूर किया और किस तरह से उसने मेरी सोचने समझने की ताक़त ख़तम कर दी.
मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था, पर अब क्या हो सकता था.
मैं इन सब ख्यालो मे डूबी हुई थी कि अचानक,
संजय ने पूछा, अरे ऋतु, क्या बात है, तुम ठीक से खाना नही खा रही ?
मैने कहा, भूक नही है, मैं आज आपको, लंच तक नही दे पाई, कैसी पत्नी हू मैं.
उन्होने मुझे बाहों मे भर लिया और बोले, कैसी बात करती हो तुम, मुझे तो कुछ याद भी नही, और हा, बहुत दिन से चिकन खाने का मन था, घर पर तो खा नही सकता, आज मैने बाहर खा लिया तो अछा हुवा, तुम कोई चिंता मत करो.
और मैं मुस्कुरा उठी और उन्हे कस कर शीने से लगा लिया. मेरे दिल को तस्सली मिली.
मैं वेजिटेरियन हू पर संजय नों वेज खा लेते है. पर क्योंकि मुझे नोन वेज देख कर घिन आती है इसलिए संजय कभी, कभी जब उनका मन होता है, बाहर खा लेते है.
संजय का इतना प्यार देख कर दिल को होसला सा हुवा और मैने फ़ैसला किया कि अब चाहे जो हो, मेरी जींदगी दुबारा, नरक के रास्ते नही जाएगी.
अगले दिन मैं घर के कामो में बिज़ी रही और खुद को कही ना कही बिज़ी रखा.
मैं नही चाहती थी कि मैं खाली बैठू और बुरे, बुरे ख्याल मेरे मन मे आए. मैने कोई 3 मूवी देख डाली.
शाम को संजय जल्दी घर आ गये. वो बोले, ऋतु चलो कही घूमने चलते है.
पर मेरा कही भी जाने का मन नही था.
दरअसल मुझे डर था, कि कही फिर से वो बिल्लू ना मिल जाए.
पर संजय नही माने और मुझे और चिंटू को कार मे लेकर चल दिए.
अक्सर मुझे संजय से सीकायत रहती थी की, वो हमे घूमने नही ले जाते. शायद मुझे कल से परेशान देख कर, वो मुझे घुमाने ले गये.
यहा वाहा, घूमने के बाद हमने एक आछे से रेस्टोरेंट मे खाना खाया. हम बहुत खुस थे.
घर आ कर संजय ने मुझे बाँहो मे थम लिया और मुझे उठा कर बिस्तर पर ले गये.
पर ना जाने क्यो मेरा मन कुछ भी करने का नही हो रहा था. पर अपने पत्नी धरम के कारण मैं संजय के लिए, उनका साथ देने लगी.
पर जब संजय ने मेरे उभारो को थाम कर उन्हे, चूसना सुरू किया तो मैं उनके प्यार में खोती चली गयी, और मेरी योनि रस के सागर मे डूब गयी.
संजय ने मेरा नाडा खोला, और मेरी योनि मे समा गये. उस पल में सब कुछ भुला कर खुद में खो गयी.
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
अचानक,उन्होने मेरी योनि से लिंग निकाल लिया और बोले, थोड़ा घूम जाओ, और डॉगी स्टाइल मे आ जाओ.
जैसे ही मैं उस पोज़िशन मे आई, मुझे याद आ गया कि मैं कैसे कल झाड़ियो में बिल्लू के आगे झुकी हुई थी, और मेरा मन फिर से ग्लानि से भर गया.
मुझे नही पता था कि वो क्या करेंगे, पर मैं प्रेयर कर रही थी कि आज वो वाहा से ना करे.
उन्होने, मेरे नितंबो को फैलाया, और मेरे गुदा द्वार पर चीकना कर दिया. मैं समझ गयी कि जीसका डर था, वही बात हो रही है. मैने पीछे मूड कर देखा तो चोंक गयी
संजय अपने लिंग पर, थूक लगा रहे थे.
जो कुछ भी पिछले दिन हुवा था, सब कुछ मेरी आँखो में घूम गया.
एक पल को लगा, मानो, वाहा मेरे साथ बिल्लू ही है.
मेरा मन फिर से, ग्लानि और गिल्ट से भर गया.
ना चाहते हुवे भी मुझे अपने अंदर, उसका, एक एक धक्का याद आने लगा.
मैने कहा नही, प्लीज़ मेरा मन नही है और झट से सीधी हो गयी.
संजय ने पूछा क्या हुवा.
मैने कहा कुछ नही. आज वाहा से करने का मन नही है.
वो बोले, क्यो तुम्हे तो अछा लगता था ?
मैने कहा, हा पर आज मन नही है.
मेरा मन इश्लीए भी नही हो रहा था क्योंकि मुझे अभी तक, बिल्लू के कारण वाहा दर्द था.
मैने पूछा, तुम थूक क्यो लगा रहे थे.
वो बोले, ट्यूब ख़तम हो गयी ना, नयी लाना भूल गया.
वो मेरे चेहरे पर सीकन देख कर, बोले ठीक है नही करते वाहा से, अपनी टांगे फैलाओ.
मैने टाँगे फैला दी और संजय मुझ मे समा गये.
मेरा ध्यान अपने पति से हाथ कर पूरी तरह कल की घटना पर टिक चुका था, रह, रह कर मुझे कल की घटना याद आ रही थी.
मैं पूरी तरह से संजय की बाहों में नही खो पाई, संजय का कब ख़तम हुवा पता ही नही चला.
ऐसा असर हुवा था, बिल्लू का मुझ पर.
मैं अपने पति के साथ सेक्स भी ठीक से नही कर पा रही थी.
ये इस लिए नही था कि, मुझे कल बहुत अछा लगा था.
दरअसल मेरा मन हर पल शर्मिंदगी और गिल्ट से भरा पड़ा था.
पर वक्त हर जखम भर देता है.
वक्त बीतता गया, और मैं, फिर से अपनी जींदगी मे खोने लगी. किचन मे काम करते वक्त मैं बंद खिड़की की और देखती तो सब याद आता पर मैं फॉरन अपना ध्यान अपने काम पर लगा लेती.
सब कुछ फिर से ठीक चल रहा था.
पर एक दिन की बात है. मैं , सुबह तैयार हो कर चिंटू के स्कूल के लिए निकली.
चिंटू के स्कूल में, कोई फंक्षन था, जीसमे की, बचो के माता, पिता को बुलाया था.
संजय, क्लिनिक मे बिज़ी होने के कारण, नही , आ सकते थे, इश्लीए मैं अकेली ही स्कूल के लिए घर से चल दी.
मैं, 11 बजे स्कूल पहुँची और फंक्षन को एंजाय किया,
मैं वाहा से कोई, 12:30 बजे फ्री, हो कर घर के लिए, चल दी.
मैं स्कूल से बाहर आ कर किसी ऑटो वाले की तलाश करने लगी. मुझे रिक्सा मे बैठना अब बिल्कुल अछा नही लगता था.
इस से पहले, कि कोई ऑटो आता, बिल्लू, वाहा आ धमका. वो रिक्से पर नही था, ना ही उसकी साइकल कहीं दिख रही थी.
मेरा दिल धक धक करने लगा, और मैं सोचने लगी कि अब क्या करू, ये कम्बख़त फिर से आ गया.
मुझे देख कर वो मेरे पास आ कर खड़ा हो गया और, मुझे घूर्ने लगा.
मैं चुपचाप खड़े हुवे ऑटो की रह देखती रही.
वो धीरे से बोला, क्या बात है उस दिन के, बाद तूने मुझे याद ही नही किया, तूने अपनी खिड़की भी बंद कर दी. मैं रोज वाहा 2 बजे आता हू और तेरा, इंतेज़ार कर के वापस आ जाता हू.
मैने कहा, यहा से दफ़ा हो जाओ, मैं तुम्हे नही जानती.
वो, बड़ी बेशर्मी से बोला, अछा, उस दिन तो मज़े से गांद मरवाई और अब मुझे नही जानती.
जैसे ही मैं उस पोज़िशन मे आई, मुझे याद आ गया कि मैं कैसे कल झाड़ियो में बिल्लू के आगे झुकी हुई थी, और मेरा मन फिर से ग्लानि से भर गया.
मुझे नही पता था कि वो क्या करेंगे, पर मैं प्रेयर कर रही थी कि आज वो वाहा से ना करे.
उन्होने, मेरे नितंबो को फैलाया, और मेरे गुदा द्वार पर चीकना कर दिया. मैं समझ गयी कि जीसका डर था, वही बात हो रही है. मैने पीछे मूड कर देखा तो चोंक गयी
संजय अपने लिंग पर, थूक लगा रहे थे.
जो कुछ भी पिछले दिन हुवा था, सब कुछ मेरी आँखो में घूम गया.
एक पल को लगा, मानो, वाहा मेरे साथ बिल्लू ही है.
मेरा मन फिर से, ग्लानि और गिल्ट से भर गया.
ना चाहते हुवे भी मुझे अपने अंदर, उसका, एक एक धक्का याद आने लगा.
मैने कहा नही, प्लीज़ मेरा मन नही है और झट से सीधी हो गयी.
संजय ने पूछा क्या हुवा.
मैने कहा कुछ नही. आज वाहा से करने का मन नही है.
वो बोले, क्यो तुम्हे तो अछा लगता था ?
मैने कहा, हा पर आज मन नही है.
मेरा मन इश्लीए भी नही हो रहा था क्योंकि मुझे अभी तक, बिल्लू के कारण वाहा दर्द था.
मैने पूछा, तुम थूक क्यो लगा रहे थे.
वो बोले, ट्यूब ख़तम हो गयी ना, नयी लाना भूल गया.
वो मेरे चेहरे पर सीकन देख कर, बोले ठीक है नही करते वाहा से, अपनी टांगे फैलाओ.
मैने टाँगे फैला दी और संजय मुझ मे समा गये.
मेरा ध्यान अपने पति से हाथ कर पूरी तरह कल की घटना पर टिक चुका था, रह, रह कर मुझे कल की घटना याद आ रही थी.
मैं पूरी तरह से संजय की बाहों में नही खो पाई, संजय का कब ख़तम हुवा पता ही नही चला.
ऐसा असर हुवा था, बिल्लू का मुझ पर.
मैं अपने पति के साथ सेक्स भी ठीक से नही कर पा रही थी.
ये इस लिए नही था कि, मुझे कल बहुत अछा लगा था.
दरअसल मेरा मन हर पल शर्मिंदगी और गिल्ट से भरा पड़ा था.
पर वक्त हर जखम भर देता है.
वक्त बीतता गया, और मैं, फिर से अपनी जींदगी मे खोने लगी. किचन मे काम करते वक्त मैं बंद खिड़की की और देखती तो सब याद आता पर मैं फॉरन अपना ध्यान अपने काम पर लगा लेती.
सब कुछ फिर से ठीक चल रहा था.
पर एक दिन की बात है. मैं , सुबह तैयार हो कर चिंटू के स्कूल के लिए निकली.
चिंटू के स्कूल में, कोई फंक्षन था, जीसमे की, बचो के माता, पिता को बुलाया था.
संजय, क्लिनिक मे बिज़ी होने के कारण, नही , आ सकते थे, इश्लीए मैं अकेली ही स्कूल के लिए घर से चल दी.
मैं, 11 बजे स्कूल पहुँची और फंक्षन को एंजाय किया,
मैं वाहा से कोई, 12:30 बजे फ्री, हो कर घर के लिए, चल दी.
मैं स्कूल से बाहर आ कर किसी ऑटो वाले की तलाश करने लगी. मुझे रिक्सा मे बैठना अब बिल्कुल अछा नही लगता था.
इस से पहले, कि कोई ऑटो आता, बिल्लू, वाहा आ धमका. वो रिक्से पर नही था, ना ही उसकी साइकल कहीं दिख रही थी.
मेरा दिल धक धक करने लगा, और मैं सोचने लगी कि अब क्या करू, ये कम्बख़त फिर से आ गया.
मुझे देख कर वो मेरे पास आ कर खड़ा हो गया और, मुझे घूर्ने लगा.
मैं चुपचाप खड़े हुवे ऑटो की रह देखती रही.
वो धीरे से बोला, क्या बात है उस दिन के, बाद तूने मुझे याद ही नही किया, तूने अपनी खिड़की भी बंद कर दी. मैं रोज वाहा 2 बजे आता हू और तेरा, इंतेज़ार कर के वापस आ जाता हू.
मैने कहा, यहा से दफ़ा हो जाओ, मैं तुम्हे नही जानती.
वो, बड़ी बेशर्मी से बोला, अछा, उस दिन तो मज़े से गांद मरवाई और अब मुझे नही जानती.
Re: छोटी सी भूल
मैं आग बाबूला हो गयी और मैं चिल्ला उठी “उ बस्टर्ड” और एक ज़ोर दार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया. और बोली, दफ़ा हो जाओ यहा से, वरना तुम्हे पोलीस के हवाले कर दूँगी.
थप्पड़ इतनी ज़ोर का था कि मेरे हाथ मे दर्द हो गया.
पहली बार मैने उसके चेहरे पर डर देखा. वो एक पल को भी वाहा नही रुका और चुपचुप वाहा से रफू-चाकर हो गया.
मेरे मन को बहुत बड़ी शांति मिली.
कुछ लोगो ने मुझे उसे थप्पड़ मारते हुवे देख लिया था. इस से पहले कि कोई मुझ से कुछ पूछता, एक खाली ऑटो आ गया, मैने उसे हाथ दिया और उसमे बैठ कर सीधी घर आ गयी.
मैं खुस थी कि आज मैने उस बिल्लू की गंदगी बर्दास्त नही कि और उस नीच को उसकी सही औकात बता दी. मैं सोच रही थी कि ऐसा मुझे बहुत पहले कर देना चाहिए था.
अगर मैने पहले ही ऐसा किया होता तो, मेरी जींदगी मे ये तूफान नही आता. पर मैं खुस थी की कम से कम आज तो मैने उसे सबक सीखाया.
पर मेरी ये ख़ुसी ज़्यादा देर नही टिक पाई.
उस घटना के दो दिन बाद सुबह कोई 10 बजे का वक्त था, मैं आराम से घर के कामो मे लगी थी.
अचानक घर की बेल बजी.
मैने दरवाजा खोला, तो कोई बिल्लू की ही उमर का लड़का वाहा खड़ा था.
जैसे ही मैने दरवाजा खोला, वो मुझे उपर से नीचे तक देखने लगा.
मैने गुस्से में पूछा, क्या बात है ?
वो सकपका गया और बोला,
मेडम आपका कूरीएर है.
मैने कहा लाओ.
उसने एक लीफाफा मुझे थमा दिया.
मैने पूछा, ये किसका है, कहा से आया है.
वो बोला, मुझे नही पता, आप यहा साइन कर दो
और वो मेरे सिग्नेचर ले कर चला गया.
जाते, जाते उसने पीछे मूड कर मुझे बहुत ही अजीब सी नज़र से देखा.
मैने फॉरन दरवाजा बंद किया और लीफफ़े को गोर से देखने लगी.
मैं सोच रही थी कि आख़िर ये किसने भेजा है.
उसके उपर किसी भेजने वाले का नाम नही था.
मैने झट से उसे खोला.
उसके अंदर एक छोटा सा कागज मोड़ कर रखा हुवा था.
मैने वो कागज निकाला और उसे खोल कर पढ़ने लगी.
मैने जो पढ़ा, उसे पढ़ कर मेरे होश उड़ गये, मेरी आँखो के आगे अंधेरा छा गया.
उसे में लिखा था,
ऋतु, बुरा मत मानना पर मेरी ग़लती से तुम मुसीबत में फस गयी हो. मैं हमारे बारे में एक डाइयरी लिख रहा था. उसमे अब तक जो भी हमारे बीच हुवा, सब कुछ लिखा था. उसमे ये भी लीखा था कि तुम डॉक्टर संजय की बीवी हो.
कल अचानक वो डाइयरी मेरे बापू के हाथ लग गयी. मेरा बापू बहुत गुस्से मे है. वो आज शाम को तुम्हारे घर आने की बात कर रहा था. मैने बड़ी मुस्किल से उसे ये कह कर रोका है कि, आज संजय घर नही है. मुझे दुख है कि ऐसा सब कुछ हो गया. अगर हमने कुछ नही किया तो, तेरे पति को आज नही तो कल सब कुछ पता चल जाएगा. आज तो मैने अपने बापू को रोक लिया. पर वो अब किसी भी दिन तुम्हारे घर आ सकता है.
प्लीज़ मुझसे एक बार मिल लो. हमे मिल कर इसका हल निकलना होगा. मैं आज दोपहर 1 बजे अपनी एलेक्ट्रिक शॉप पर तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा. तुम वाहा आ जाना हम आराम से कहीं बैठ कर बात करेंगे.
बिल्लू
मैं ही जानती हू कि मुझ पर क्या बीत रही थी.
मुझे लग रहा था कि ये बिल्लू की फिर से कोई चाल है. वो ज़रूर उस थप्पड़ का बदला लेना चाहता है.
पर मुझे ये भी डर सता रहा था की कही ये सब सच हुवा तो, अगर सच में उसका बापू यहा आ धमका तो क्या होगा ?
थप्पड़ इतनी ज़ोर का था कि मेरे हाथ मे दर्द हो गया.
पहली बार मैने उसके चेहरे पर डर देखा. वो एक पल को भी वाहा नही रुका और चुपचुप वाहा से रफू-चाकर हो गया.
मेरे मन को बहुत बड़ी शांति मिली.
कुछ लोगो ने मुझे उसे थप्पड़ मारते हुवे देख लिया था. इस से पहले कि कोई मुझ से कुछ पूछता, एक खाली ऑटो आ गया, मैने उसे हाथ दिया और उसमे बैठ कर सीधी घर आ गयी.
मैं खुस थी कि आज मैने उस बिल्लू की गंदगी बर्दास्त नही कि और उस नीच को उसकी सही औकात बता दी. मैं सोच रही थी कि ऐसा मुझे बहुत पहले कर देना चाहिए था.
अगर मैने पहले ही ऐसा किया होता तो, मेरी जींदगी मे ये तूफान नही आता. पर मैं खुस थी की कम से कम आज तो मैने उसे सबक सीखाया.
पर मेरी ये ख़ुसी ज़्यादा देर नही टिक पाई.
उस घटना के दो दिन बाद सुबह कोई 10 बजे का वक्त था, मैं आराम से घर के कामो मे लगी थी.
अचानक घर की बेल बजी.
मैने दरवाजा खोला, तो कोई बिल्लू की ही उमर का लड़का वाहा खड़ा था.
जैसे ही मैने दरवाजा खोला, वो मुझे उपर से नीचे तक देखने लगा.
मैने गुस्से में पूछा, क्या बात है ?
वो सकपका गया और बोला,
मेडम आपका कूरीएर है.
मैने कहा लाओ.
उसने एक लीफाफा मुझे थमा दिया.
मैने पूछा, ये किसका है, कहा से आया है.
वो बोला, मुझे नही पता, आप यहा साइन कर दो
और वो मेरे सिग्नेचर ले कर चला गया.
जाते, जाते उसने पीछे मूड कर मुझे बहुत ही अजीब सी नज़र से देखा.
मैने फॉरन दरवाजा बंद किया और लीफफ़े को गोर से देखने लगी.
मैं सोच रही थी कि आख़िर ये किसने भेजा है.
उसके उपर किसी भेजने वाले का नाम नही था.
मैने झट से उसे खोला.
उसके अंदर एक छोटा सा कागज मोड़ कर रखा हुवा था.
मैने वो कागज निकाला और उसे खोल कर पढ़ने लगी.
मैने जो पढ़ा, उसे पढ़ कर मेरे होश उड़ गये, मेरी आँखो के आगे अंधेरा छा गया.
उसे में लिखा था,
ऋतु, बुरा मत मानना पर मेरी ग़लती से तुम मुसीबत में फस गयी हो. मैं हमारे बारे में एक डाइयरी लिख रहा था. उसमे अब तक जो भी हमारे बीच हुवा, सब कुछ लिखा था. उसमे ये भी लीखा था कि तुम डॉक्टर संजय की बीवी हो.
कल अचानक वो डाइयरी मेरे बापू के हाथ लग गयी. मेरा बापू बहुत गुस्से मे है. वो आज शाम को तुम्हारे घर आने की बात कर रहा था. मैने बड़ी मुस्किल से उसे ये कह कर रोका है कि, आज संजय घर नही है. मुझे दुख है कि ऐसा सब कुछ हो गया. अगर हमने कुछ नही किया तो, तेरे पति को आज नही तो कल सब कुछ पता चल जाएगा. आज तो मैने अपने बापू को रोक लिया. पर वो अब किसी भी दिन तुम्हारे घर आ सकता है.
प्लीज़ मुझसे एक बार मिल लो. हमे मिल कर इसका हल निकलना होगा. मैं आज दोपहर 1 बजे अपनी एलेक्ट्रिक शॉप पर तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा. तुम वाहा आ जाना हम आराम से कहीं बैठ कर बात करेंगे.
बिल्लू
मैं ही जानती हू कि मुझ पर क्या बीत रही थी.
मुझे लग रहा था कि ये बिल्लू की फिर से कोई चाल है. वो ज़रूर उस थप्पड़ का बदला लेना चाहता है.
पर मुझे ये भी डर सता रहा था की कही ये सब सच हुवा तो, अगर सच में उसका बापू यहा आ धमका तो क्या होगा ?