कथा भोगावती नगरी की

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sexy
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Re: कथा भोगावती नगरी की

Unread post by sexy » 19 Sep 2015 09:52

महाराज के पास देवी सुवर्णा की माँग को मानने के सिवाय कोई चारा न था वरना देवी सुवर्णा उनको उन्हीं के अंगरक्षक के द्वारा सार्वजनिक रूप से पिटवा देतीं , महाराज ने अपने मन में हिसाब किया और बोले.

“तथास्तु ! ऐसा ही होगा परंतु वचननुसार अब आपके ४ वर और शेष रह जाते हैं देवी”

“निस्संदेह महाराज” देवी सुवर्णा आत्म विश्वास से बोलीं “उचित समय आने पर हम उन्हें माँग लेंगीं”

तत्पश्चात रुद्र्प्र्द महाराज और देवी सुवर्णा का आशीर्वाद लेने उनके पैरों में गिर पड़े , महाराज तो भुनभुनाए थे उनसे आशीर्वाद न देते बना सो देवी सुवर्णा ने ही उनकी तरफ से दे दिया.

“क्षमा चाहती हूँ महाराज ” सिक्ता ने पलकें झुका कर कहा “इस पूरे घटनाक्रम के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ , आपको मेरे कारण अपमान सहना पड़ा”

“महाराज के मान- अपमान की चिंता न करो देवी सिक्ता” देवी सुवर्णा अधिकार वाणी से बोलीं “बल्कि इस बात के लिए हमारे उपकार मानों की महाराज की मूली के बजाए हमने तुम्हें तुम्हारे पति की लौकी दिलवाई”

“समझ नहीं आता देवी मैं आपके कैसे उपकार मानूं , किंतु मैं आपकी बातों से सहमत नहीं हूँ कि महाराज की मूली है वरन इनकी तो लौकी है , हाँ मेरे पति रुद्र्प्रद का लिंग तो कॅक्टस जैसा काँटेदार और वेदना कारक है , मुझे चिंता है कि मेरी कुँए जैसी गहराई वाली योनि के जल के अभाव में महाराज की लौकी सड़ न जाए” सिक्ता बोली.

“अपनी चिंताओं को तिलांजलि दे दो हे सिक्ता , महाराज की मूली तो हमारे जलप्रपात का आवेग ही सहन नहीं कर पाती , उनकी यौन कुंठाओं का शमन करने के लिए हम अकेली ही काफ़ी हैं तभी हमने तुम्हारे साथ साथ अन्य परिचारिकाओं को भी मुक्त कराया है निशंक हो कर अपने पति के कॅक्टस का आनंद लो और अपने कुएँ के पानी से नयी पौध को सिंचित करो हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है”

“धन्यवाद महारानी” रुद्र्प्रद हाथ जोड़ कर बोला

“हमें प्रसन्नता है कि तुम्हारी लुल्ली कॅक्टस की भाँति काँटेदार है , हम तुम्हें समय आने पर सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करेंगे” देवी सुवर्णा बोली और तत्पश्चात ताली बजा कर बोलीं “इस दंपत्ति केलिए उप हार प्रस्तुत किया जाए”
तुरंत ही सेवक एक संदूकचि ले कर उपस्थित हुए देवी ने वह संदूकचि उनके समक्ष खोल कर अंदर की वस्तु दिखाते हुए कहा “यह रत्न स्वर्ण की पालिश चढ़ि हुई रबर के रेशे से बना हुआ उत्तम प्रति का निरोध है , इसे इस रत्न जडित छल्ले को अपने कॅक्टस में पहन कर इसके साथ सिक्ता के साथ संभोग करते समय प्रयुक्त कीजिएगा , अवश्य लाभ होगा” फिर उन्होने इस बहुमूल्य उपहार को रुद्र्प्रद और सिक्ता को भेंट कर दिया.

रुद्र्प्रद ने जयजयकार की “यौन अधिकारों की प्रणेता और परिचारिकाओं को सवतंत्रता दिलवाने करने वाली देवी सुवर्णा की जय हो”

अपनी सुविद्य पत्नी की जय जयकार सुनकर और अपनी परिचारिकाओं से हाथ धो कर महाराज के सीने में साँप लोटने लगे…

महाराज ईर्ष्या और अपमान की अग्नि में जल रहे थे , रात्रि गहरा चुकी थी महाराज रह रह कर करवटें बदल रहे थे उनको निद्रा नही आई थी सोच सोच कर उनका मन मस्तिष्क फटा जा रहा था. वे इतने व्यथित थे कि उन्हें देवी सुवर्णा के आगमन का आभास भी न हुआ.

अपने अंडकोषों पर शीतल अहसास के कारण उनकी तंद्रा टूटी तो उन्होनें देवी सुवर्णा को अपनी दो टाँगों के बीच चाँदी की कटोरी पकड़े हुए बैठे देखा.

महाराज का दृष्टिपात होते देख कर देवी सुवर्णा मुस्कुराइ

“अब क्या आई को यहाँ लेने ? हमारी सार्वजनिक रूप से अवहेलना करा कर भी तुम्हारा जी न भरा?” महाराज जली कटी सुनते हुए बोले.

“आप अपनी अर्धांगिनी पर हाथ उठा रहे थे , मैं स्वयं पलटवार न कर सकती थी पत्नी की मर्यादा मुझे ऐसा करने से रोक रही थी सो मैने पर्वत से आप पर आघात करवा कर आपको बोध कराया”

यह सुन कर महाराज की क्रोधाग्नि अधिक प्रज्ज्वलित हो गयी उन्होने अपनी मुट्ठी शैया पर पटकते कहा

“बस कर हे कुलटा नारी”

“मैं ..? मैं कुलटा?” सुवर्णा खिलखिला कर हंस पड़ी

“हम कोई परिहास नहीं कर रहे सुवर्णा” महाराज कड़क कर बोले “अपनी दाँत पंक्ति के किसी अन्य अवसर पर दर्शन कराना”

“ही..ही…ही” सुवर्णा की हँसी किसी के रोके न रुक रही थी “अच्छा मेरे महाराज तनिक देखिए तो सही मैं चाँदी की कटोरी में चंदन के लेप में शिलाजीत पीस कर लाई हूँ … कृपया आप गुस्सा थूक दीजिए रोग के कारण आप दिन प्रतिदिन चिड़चिड़े होते जा रहे हैं आपके अंडकोष सामान्य से अधिक फूल चुके हैं और इनका तापमान भी अधिक है” उसने निवेदन किया

“इसका कारण तुम हो” महाराज भड़के
“मैं?.. मैं.. कारण? वह कैसे?” सुवर्णा ने जानना चाहा और लेप में डुबोई गयी उंगलियों को अंडकोषों पर आलेपन करने के चेष्टा की.
“अधिक भोली न बनो , यह सब तुम्हीं ने किया धरा हैं” महाराज ने अपनी झांट छुड़ाते हुए कहा .

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Re: कथा भोगावती नगरी की

Unread post by sexy » 19 Sep 2015 09:52

ग़लत ..महाराज यह सब नियति का किया कराया है” सुवर्णा ने महाराज की गुदा को स्पर्श करते हुए कहा.

महाराज की सुलगती धधकति गांड लेप के शीतल स्पर्श से असीम शांति पा गयी.

“आहह..ह.. देवी ” महाराज अपनी गाँड सहलाते बोले “तनिक और अधिक मर्दन करो न वहाँ”

“अच्छा , तो यह कारण है आपके अंडकोषों का तापमान यों बढ़ने का…. सच में मुझे समझ ही न आया कि आपकी गुदा इतनी ज्वलनशील है” विस्मय चकित सुवर्णा ने कहा “आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान ही नहीं रखते महाराज , सारा दिन अपनी गुदा को उन रोग ग्रस्त परिचारिकाओं से चटवाते रहते हैं , देखिए तो आपकी गुदा कितनी सूज गयी है” वह मर्दन करते हुए बोली

“आहह..हह..अरे… द..देवी… सु… सु.. वर्ना.. क.. कैसे देखूं ??? ह ..हैं ? मेरी गुदा में नेत्र थोड़े ही हैं ?….परिहास करती है”

देवी सुवर्णा को आभास हो हुआ कि महाराज सांत्वे आसमान पर है , दिन भर जलती सुलगती धधकति महाराज की गुदा की शांति के लिए उन्होने राज वैद्य वनसवान से पूछ कर यह विशेष औषधि बनवाई थी. उन्हें यह देख कर प्रसन्नता हुई कि औषाधी ने अपना असर तुरंत दिखाया था.

महाराज की गुदा पर औषधि का लेप करते हुए वह बोली ” चैन से सोइए महाराज आज से आप मेरी देख रेख में रहेंगे .. आपकी यौन कुंठाओं को शांत करने के लिए मैं अकेली ही पर्याप्त हूँ , उन कलमुंही श्वानमुखी परिचारिकाओं की अशुभ छाया भी आप पर मैं पड़ने न दूँगी” सुवर्णा ने महाराज की गाँड पर थपकीयाँ देते कहा..

महाराज निद्रा देवी के आगोश में समा कर खर्राँटे भरने लगे , इधर देवी सुवर्णा मंत्रणा कक्ष की ओर चल पड़ी

आज रात्रि देवी सुवर्णा ने विशेष मंत्रणा बुलवाई थी. इस अति गोपनीय मंत्रणा में केवल आवश्यक व्यक्तियों को ही शामिल होने का आदेश था और इसका संचालन किसी स्थापित रीति रिवाजों के कारण न होना था यूँ भी राज्य परिचारिका मंडल बर्खास्त हो गया था तो देवी सुवर्णा ने किसी परिचारिका को बुलवाने की आवश्यकता न समझी.

देवी सुवर्णा मंत्रणा कक्ष की ओर आ रहीं थी.

मंत्रणा कक्ष में च्युतेश्वर , वनसवान और अमात्य द्वितवीर्य के अलावा पर्वत और गुप्तचर गण भी मौजूद थे. देवी सुवर्णा ने प्रवेश किया , नमस्कार और अभिवादन की औपचारिकता पूर्ण होने के बाद देवी सुवर्णा ने कहा “विलंब से आने के लिए आप सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ परंतु विदित हो महाराज का दुर्धर रोग भीषण रूप धारण कर रहा है”

राज वैद्य वनसवान ने चिंतित हो कर पूछा “मनस्वीनी , क्या मेरी दी गयी औषधि से कुछ लाभ हुआ?”
सुवर्णा मुँह लटकाते बोली “बस इतना ही कि वे सो गये किंतु उनके अंडकोषों का तापमान कम न हुआ”
“हुम्म..उनकी गुदा में हाथ फेर कर देखा था आपने?” वनसवान ने जानना चाहा.
“हाँ उनकी गुदा तो अब भी सुलग रही थी किंतु औषधि का लेप करने से उनको चैन आया और वह सो गये”
“उत्तम है..” वनसवान बोले “मैं नयी औषधि लिख देता हूँ ..परंतु इसके लिए मिलने वाली सामग्री दुर्लभ है”
“कितनी भी दुर्लभ क्यों न हों मनस्वीनी देवी सुवर्णा की योनि की सौगंध यह पर्वत अपनी जान पर खेल कर भी उस सामग्री को ले आएगा” पर्वत गरज कर बोला.

अमात्य द्वितवीर्य बोले “तुम्हारा साहस प्रशंसनीय है योद्धा पर्वत , निस्संदेह ही तुम महाराज के लिए आवश्यक औषधि की सामग्री ले आओगे”

यह सुन कर पर्वत का सीना गर्व से चौड़ा हो गया किंतु च्युतेश्वर की झांट में आग लग गयी.

“परंतु वह आवश्यक सामग्री है क्या और वह कहाँ मिलेगी? “च्युतेश्वर ने न रहकर अपनी जिज्ञासा प्रकट की.

“घनघोर वन में” वनसवान ने उत्तर दिया.

“यह तो वही स्थान है जहाँ वह रहस्यमयी ऋषिकुमार साधना कर रहा है” द्वितवीर्य ने चौंकते हुए कहा.

“निस्संदेह” देवी सुवर्णा ने कहा “मेरा और वैद्य वनसवान का सोचना है महाराज को दुर्धर रोग उसी का दिया हुआ है”

“परंतु कैसे?” च्युतेश्वर ने जानना चाहा.

“मुझे लगता है हम मूल विषय से भटक रहे हैं” पर्वत बीच में बोला “एक एक क्षण कीमती है हमारी प्राथमिकता महाराज के लिए औषधि बनाना है”

“निस्संदेह” द्वितवीर्य ने उससे सहमत होते हुए कहा “देवी ऐसा करते हैं पर्वत के साथ में हम सेना की एक टुकड़ी वैद्य के शिष्यों के साथ घनघोर वन की ओर भेज देते हैं जो औषधि में उपयोगी पड़ने वाली सामग्री और जड़ी बूटियाँ खोज कर उन्हें शीघ्र ही वैद्य वनसवान की प्रयोगशाला तक पंहुचाएँगे कृपया इस प्रस्ताव पर अपना मंतव्य प्रकट करें”

“हमें यह प्रस्ताव उपयुक्त लगता है , दूसरी टुकड़ी ले कर हम स्वयं उस ऋषि कुमार के पास जाएँगी और उससे रम मान हो कर सारे रहस्य का पता लगाएँगी , इस बीच सेना की टुकड़ी उस मायावी कुतिया से निबट लेंगी”

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Re: कथा भोगावती नगरी की

Unread post by sexy » 19 Sep 2015 09:53

” ख़ौं ख़ौं ” च्युतेश्वर ने खांसकर ध्यान आकर्षित किया और कहा “दखल देने के लिए क्षमा चाहता हूँ देवी परंतु आपसे निवेदन है कि मेरे पिछली सभा के प्रस्तावानुसार मुझे उस ऋषिकुमार से निबटने का अवसर दिया जाय”

रात्रि का अंतिम प्रहर शुरू होने वाला था , प्रतिहारी बीच में इसकी सूचना दे गया , सभी गंभीर हो गये .

अमात्य द्वितवीर्य अपने आसान से उठकर बोले “देवी मैं प्रस्ताव देता हूँ कि योद्धा पर्वत पौ फटने से पूर्व जड़ी बूटियों की खोज में घनघोर वन प्रस्थान करें , इस कार्य में और अधिक विलंब करना उचित न होगा , मध्यान्ह तक वे वन में पंहुच जाएँगे तो सप्ताहांत तक उन्हें अवश्य ही सफलता मिलेगी”

देवी सुवर्णा ने अपना आदेश सुनाया ” पर्वत आप तुरंत ही सेना की एक टुकड़ी ले कर घनघोर वन तत्क्षण ही प्रस्थान करें और खोज कार्य में हो रही प्रगती के बारे में मुझे दिन के चार प्रहर विशेष दूत भेज कर सूचित करें ,आपको इस अभियान में लगने वाली आवश्यक धन राशि मुनीम जी से मिल जाएगी . सेना पहले ही तैयार होगी”

“जो आज्ञा मनस्वीनी , कृपया अपना आशीर्वाद दीजिए” पर्वत विनम्रता से बोला

“विजयी भव:” देवी ने आशीर्वाद दिया

पर्वत ने झटपट मंत्रणा कक्ष छोड़ दिया

देवी सुवर्णा अभी भी च्युतेश्वर के प्रस्ताव पर गंभीरता पूर्वक विचार कर रहीं थी.

“च्युतेश्वर जी” सुवर्णा कुछ सोचते बोली “क्या आपको विश्वास है कि आप उस ऋषिकुमार का सामना कर सकते हैं?”
“निस्संदेह मनस्वीनी” च्युतेश्वर आत्मविश्वास से बोला “राज्य परिचारिका मंडल के गणमान्य सदस्य देवी लिंगरूढ़ा , गंधर्व प्रदर्तन और महाराज की प्रिय परिचारिका देवी सिक्ता के साथ मैं अवश्य ही सफलता प्राप्त करूँगा”

“आपको ज्ञात होना चाहिए च्युतेश्वर राज्य परिचारिका मंडल हमने तत्काल प्रभाव से एक महत्वपूर्ण नीति के तहत बर्खास्त कर दिया है और इसका पुनर्गठन नहीं किया जाएगा” सुवर्णा च्युतेश्वर को सूचित करते हुए बोलीं

” क्या??? परंतु क्यों?” च्युतेश्वर चौंक पड़ा , इस मंडल के गणमान्य सदस्यों में वह स्वयं शामिल था और उसे इस बात की वार्ता न थी कि इतना बड़ा निर्णय उसकी अनुपस्थिति में हो गया

“यह सब कैसे हुआ मनस्वीनी?” च्युतेश्वर ने प्रश्न किया

“यह एक गोपनीय बात है , समय आने पर आपको बताई जाएगी” देवी सुवर्णा ने मुस्कुराते कहा.

“आप देवी लिंगरूढ़ा और देवी सिक्ता को नहीं ले जा सकते , ऐसा करिए आप देवी ज्योत्सना संग पौ फटते ही प्रस्थान करिए” देवी सुवर्णा ने च्युतेश्वर को सुझाव दिया.

“मनस्वीनी , देवी लिंग रूढ़ा ,प्रदर्तन और सिक्ता को साथ लेने का विशेष कारण है , लिंग रूढ़ा और प्रदर्तन उस मायवी कुतिया का अपनी दिव्य शक्तियों से सामना करेंगे ध्यान रहे वह कुतिया पुरुषों को देखते ही उनका लिंग चबा जाती है, उससे यह दोनो ही निबट सकते हैं . देवी सिक्ता अपने हाव भाव से उस ऋषि कुमार को आसक्त कर लेंगी और मैं ऋषि कुमार से रहस्य प्राप्त कर लूँगा” च्युतेश्वर ने खुलासा करते हुए कहा.

“नहीं च्युतेश्वर यह संभव नहीं” देवी सुवर्णा ने मना करते कहा.

“तो फिर मनस्वीनी ऋषिकुमार से मुकाबला भी संभव नहीं” च्युतेश्वर ने अपने कंधे उचकाते कहा.

“तो फिर हम स्वयं जा कर उस ऋषि से रम मान होंगीं” देवी सुवर्णा हार कर बोलीं.

“नहीं देवी कृपया पहले मुझे अवसर प्रदान करें” च्युतेश्वर वहाँ जाने को राज़ी हो गया

“तब उचित है , एक काम कीजिए सेना की विशेष टुकड़ी अपने साथ ले जाइए , प्रदर्तन को भी साथ लीजिए और देवी ज्योत्सना के साथ साथ स्मिता , अस्मिता शुचि स्मिता और मधु स्मिता को भी साथ ले लीजिए , मुझे आशा है यह सब स्त्रियाँ देवी लिंगरूढ़ा की कमी को पूरा करेंगीं” देवी सुवर्णा ने कहा.

“जो आज्ञा मनस्वीनी” च्युतेश्वर ने नमस्कार किया और मंत्रणा कक्ष छोड़ दिया.

च्युतेश्वर आज्ञा पा कर प्रस्थान की तैयारियों में लग गया , पर्वत भी सेना की टुकड़ी ले कर चलने को हुआ तभी उसके पास राज वैद्या वनसवान द्वारा प्रेषित दूत ने एक चिट्ठी पकड़ाई

“क्या है इस पत्रि में ?” पर्वत ने दूट्से प्रश्न किया.
“मैं इससे अनभिज्ञ हूँ महोदय” दूत ने हाथ जोड़ कर कहा “वैद्या जी ने स्पष्ट आदेश दिया था की यह पत्रि आपके अतिरिक्त किसी को न दूं” दूत ने पर्वत को उत्तर दिया.
“उचित है” कहते हुए उसने पत्रि पर नज़र डाली और उसकी आँखें विस्मय से फैल गयीं.

इधर देवी सुवर्णा महाराज के शयनकक्ष में चिंता ग्रस्त हो कर चहल कदमी कर रहीं थी तभी द्वार पल ने राज वैद्य वनसवान के आगमन की सूचना दी.

“उन्हे ससम्मान भीतर ले आओ” देवी सुवर्णा ने द्वारपाल को आज्ञा दी.

देवी सुवर्णा जा कर महाराज के सिरहाने बैठ गयी , महाराज बेहोशी में बड़बड़ाए जा रहे थे और उनका समस्त शरीर ज्वर से तपा था , अत्यधिक ताप से उनको ग्लानिहो आए थी. देवी सुवर्णा ने उनकी ओधी हुई चादर को हटाया और एक गंदी बदबूदार महक से सारा कमरा भर गया. देवी सुवर्णा ने साड़ी के पल्लू से अपना मुँह ढक लिया.

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