लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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The Romantic
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:27


प्रेम तो बाथरूम चला गया और मैंने फिर से कम्बल ओढ़ लिया।
कोई 5-7 मिनट के बाद प्रेम बाथरूम से आकर फिर से मेरे साथ कम्बल में घुसने लगा तो मैंने उसे कहा "प्रेम प्लीज़ तुम दूसरा कम्बल ओढ़ लो और हाँ... वो दूध पी लेना ... !"
आज पता नहीं प्रेम क्यों आज्ञाकारी बच्चे की तरह झट से मान गया नहीं तो वो मुझे अपनी बाहों में भर लेने से कभी नहीं चूकता। मैं फिर कम्बल लपेटे ही बाथरूम में चली आई। मैंने अपनी लाडो और महारानी को गर्म पानी और साबुन से एक बार फिर से धोया और उन पर सुगंधित क्रीम लगा ली। महारानी के अन्दर भी एक बार फिर से बोरोलीन क्रीम ठीक से लगा ली।
मैंने जानबूझ कर बाथरूम में कोई 10 मिनट लगाए थे। इन मर्दों को अगर सारी चीज़ें सर्व सुलभ करवा दी जाएँ तो ये उनका मूल्य ही नहीं आँकते (कद्र ना करना)।
थोड़ा-थोड़ा तरसा कर और हौले-हौले दिया जाए तो उसके लिए आतुर और लालयित रहते हैं।
मेरे से अधिक यह सब टोटके भला कौन जानता होगा।
मैंने अपने आपको शीशे में देखा। आज तो मेरी आँखों में एक विशेष चमक थी। मैंने शीशे में ही अपनी छवि की ओर आँख मार दी।
जब मैं कमरे में वापस आई तो देखा प्रेम कम्बल में घुसा टेलीफ़ोन पर किसी से बात करने में लगा था। पहले तो वो हाँ हूँ करता रहा मुझे कुछ समझ ही नहीं आया पर बाद में जब उसने कहा,"ओह.... यार सबकी किस्मत तुम्हारे जैसी नहीं हो सकती !"
तब मुझे समझ आया कि यह तो जीत से बात कर रहा था। ओह... यह जीत ज़रूर उसे पट्टी पढ़ा रहा होगा कि मधुर को किसी तरह राज़ी करके या फिर ज़बरदस्ती पीछे से भी ठोक दे।मुझे आता देख कर प्रेम ने ‘ठीक है’ कहते हुए फ़ोन काट दिया।
"कौन था?" मुझे पता तो था पर मैंने जानबूझ कर पूछा।
"ओह. वो. जीत का फ़ोन था ...जन्म दिन की बधाई दे रहा था।" उसने एक लंबी साँस भरते हुए कहा।
"हम्म..."
"मधुर...?" शायद वो आज कुछ कहना चाहता था पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था "वो...। वो देखो मैंने तुम्हें कितना सुंदर गिफ्ट दिया है और तुमने तो मुझे कुछ भी नहीं दिया?"
"मैंने तो अपना सब कुछ तुम्हें दे दिया है मेरे साजन अब और क्या चाहिए ?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
मैं पलंग पर बैठ गई तो प्रेम भी झट से मेरे कम्बल में ही आ घुसा,"ओह... मधुर ... वो . चलो छोड़ो... कोई बात नहीं !"
"प्रेम मैं भी कई दिनों से तुम्हें एक अनुपम और बहुत खूबसूरत भेंट देना तो चाहती थी !"
"क...। क्या ?" उसने मुझे अपनी बाहों में कसते हुए पूछा।
"ऐसे नहीं ! तुम्हें अपनी आँखें बंद करनी होगी !"
"प्लीज़ बताओ ना ? क्या देना चाहती हो?"
"ना... बाबा... पहले तुम अपनी आँखें बंद करो ! यह भेंट खुली आँखों से नहीं देखी जा सकती !"
"अच्छा लो भाई मैं आँखें बंद कर लेता हूँ !"
"ना ऐसे नहीं....! क्या पता तुम बीच में अपनी आँखें खोल लो तो फिर उस भेंट का मज़ा ही किरकिरा हो जाएगा ना?"
"तो?"
"तुम अपनी आँखों पर पट्टी बाँध लो, फिर मैं वो भेंट तुम्हें दे सकती हूँ !" मैंने रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए कहा।
प्रेम की तो कुछ समझ ही नहीं आया,"ओके... पर पट्टी बाँधने के बाद मैं उसे देखूँगा कैसे?"
"मेरे भोले साजन वो देखने वाली भेंट नहीं है ! बस अब तुम चुपचाप अपनी आँखों पर यह दुपट्टा बाँध लो, बाकी सब मेरे ऊपर छोड़ दो।"
फिर मैंने उसकी आँखों पर कस कर अपना दुपट्टा बाँध दिया। अब मैंने उसे चित्त लेट जाने को कहा। प्रेम चित्त लेट गया। अब मैंने उनके पप्पू को अपने हाथों में पकड़ लिया और मसलने लगी। प्रेम के तो कुछ समझ ही नहीं आया। वो बिना कुछ बोले चुपचाप लेटा रहा।
मैंने पप्पू को मुँह में लेकर चूसना चालू कर दिया। वो तो ठुमके ही लगाने लगा था। मैंने कोई 2-3 मिनट उसे चूसा और अपने थूक से उसे पूरा गीला कर दिया। अब मैंने अपनी दोनों जांघें उसकी कमर के दोनों ओर करके उसके ऊपर आ गई। फिर उकड़ू होकर पप्पू को अपनी लाडो की फांकों पर पहले तो थोड़ा घिसा और फिर उसका शिश्णमुण्ड महारानी के छेद पर लगा लिया।
मेरे लिए ये क्षण कितने संवेदनशील थे, मैं ही जानती हूँ।
प्रेम का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा तह और उसकी साँसें बहुत तेज़ हो चली थी।
मैंने एक हाथ से पप्पू को पकड़े रखा और फिर अपनी आँखें बंद करके धीरे से अपने नितम्बों को नीचे किया। पप्पू हालाँकि लोहे की छड़ की तरह कड़ा था फिर भी थोड़ा सा टेढ़ा सा होने लगा। मैंने पप्पू को अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ लिया ताकि वो फिसल ना जाए। मैं आज किसी प्रकार का कोई लोचा नहीं होने देना चाहती थी। मैं इस अनमोल एवम् बहु-प्रतीक्षित भेंट को देने में ज़रा भी चूक या ग़लती नहीं करना चाहती थी। मैं तो इस भेंट और इन लम्हों को यादगार बनाना चाहती थी ताकि बाद में हम इन पलों को याद करके हर रात रोमांचित होते रहें।
एक बार तो मुझे लगा कि यह अन्दर नहीं जा सकेगा पर मैंने मन में पक्का निश्चय कर रख था। मैंने एक बार फिर से अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर से सही निशाना लगा कर नीचे की ओर ज़ोर लगाया। इस बार मुझे लगा मेरी महारानी के मुँह पर जैसे मिर्ची सी लग गई है या कई चींटियों ने एक साथ काट लिया है। मैंने थोड़ा सा ज़ोर ओर लगाया तो छेद चौड़ा होने लगा और सुपारा अन्दर सरकने लगा।
मुझे दर्द महसूस हो रहा था पर मैंने साँसें रोक ली थी और अपने दाँत ज़ोर से भींच रखे थे। प्रेम की एक हल्की सीत्कार निकल गई। शायद वो इतनी देर से दम साधे पड़ा था। उसने मेरी कमर पकड़ ली। उसे डर था इस मौके पर शायद में दर्द के मारे उसके ऊपर से हट कर उसका काम खराब ना कर दूँ।
पर मैं तो आज पूर्ण समर्पिता बनने का पूरा निश्चय कर ही चुकी थी। मैंने अपनी साँसें रोक कर एक धक्का नीचे के ओर लगा ही दिया। मुझे लगा जैसे कोई गर्म लोहे की सलाख मेरी महारानी के अन्दर तक चली गई है।
"ईईईईईईईईईईई ईई ईईईईई...." मैंने बहुत कोशिश की पर ना चाहते हुए भी मेरे मुँह से चीत्कार निकल ही गई। मैं बेबस सी हुई उसके ऊपर बैठी रह गई। किसी कुशल शिकारी के तीर की तरह पप्पू पूरा का पूरा अन्दर चला गया था। मुझे तो लगा यह मेरे पेट तक आ गया है।
प्रेम को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं स्वयं ऐसा करूँगी। उसने एक हाथ से मेरी कमर पकड़ी रखी और दूसरे हाथ से मेरी महारानी के छेद को टटोलने लगा कि कहीं यह सब उसका भ्रम तो नहीं है?
कुछ क्षणों तक मैं इसी तरह बैठी रही। अब उसने अपने एक हाथ से महारानी और पप्पू की स्थिति देखने के लिए अपनी अँगुलियाँ महारानी के चौड़े हुए छेद के चारों ओर फिराई। उसे अब जाकर तसल्ली और विश्वास हुआ था कि यह सपना नहीं, सच है।
फिर उसने दोनों हाथों से मेरी कमर कस कर पकड़ ली।
मुझे बहुत दर्द महसूस हो रहा था और मेरी आँखों से आँसू भी निकल पड़े थे। मैं जानती हूँ यह सब दर्द के नहीं बल्कि एक अनोखी खुशी के कारण थे। आज मैं प्रेम की पूर्ण समर्पिता बन गई हूँ यह सोच कर ही मेरे अधरों पर मुस्कान और गालों पर आँसू थिरक पड़े। मैंने अपना सिर प्रेम की छाती से लगा दिया।
"मेरी जान... मेरी सिमरन... मेरी स्वर्ण नैना... उम्म्मह..." प्रेम ने मेरे सिर को अपने हाथों में पकड़ते हुए मेरे अधरों को चूम लिया।
"मधुर... इस अनुपम भेंट के लिए तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद... ओह. मेरी स्वर्ण नैना आज तुमने जो समर्पण किया है, मैं सारी जिंदगी उसे नहीं भूल पाऊँगा...! इस भेंट को पाकर मैं आज इस दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान बन गया हूँ।"
"मेरे प्रेम... मैं तो सदा से ही तुम्हारी पूर्ण समर्पिता थी !"
"मधुर, ज़्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?"
"ओह... प्लीज़ थोड़ी देर ऐसे ही लेटे रहो... हिलो मत... आ...!"
"मधुर... आई लॉव यू !" कहते हुए उसका एक हाथ मेरे सिर पर और दूसरा हाथ मेरे नितम्बों पर फिरने लगा। हालाँकि मुझे अभी भी थोड़ा दर्द तो हो रहा था पर उसके चेहरे पर आई खुशी की झलक, संतोष, गहरी साँसें और धड़कता दिल इस बात के साक्षी थे कि यह सब पाकर उसे कितनी अनमोल खुशी मिली है। मेरे लिए यह कितना संतोषप्रद था कोई कैसे जान सकता है।
"प्रेम... अब तो तुम खुश हो ना ?"
"ओह.. मेरी सिमरन... ओह... स्वर्ण नैना... आज मैं कितना खुशनसीब हूँ तुम्हें इस प्रकार पाकर मैं पूर्ण पुरुष बन गया हूँ। आज तो तुमने पूर्ण समर्पिता बन कर मुझे उपकृत ही कर दिया है। मैं तो अब पूरी जिंदगी और अगले सातों जन्मों तक तुम्हारे इस समर्पण के लिए आभारी रहूँगा !" कह कर उसने मुझे एक बार फिर से चूम लिया।
"मेरे प्रेम... मेरे... मीत... मेरे साजन...." कहते हुए मैंने भी उनके होंठों को चूम लिया। आज मेरे मन में कितना बड़ा संतोष था कि आख़िर एक लंबी प्रतीक्षा, हिचक, लाज़ और डर के बाद मैंने उनका बरसों से संजोया ख्वाब पूरा कर दिया है।
प्रेम ने एक बार फिर से मेरे नितम्बों के बीच अपनी अँगुलियाँ फिरानी चालू कर दी। वो तो बार बार महारानी के छल्ले पर ही अँगुलियाँ फिरा रहा था। एक बार तो उसने अपनी अँगुलियाँ अपने होंठों पर भी लगा कर चूम ली। मेरे मन में तो आया कह दूँ,"हटो परे ! गंदे कहीं के !" पर अब मैं ऐसा कैसे बोल सकती थी।
मैंने भी अपना हाथ उस पर लगा कर देखा- हे भगवान... उनका "वो" तो कम से कम 5 इंच तो ज़रूर अन्दर ही धंसा था। छल्ला किसी विक्स की डब्बी के ढक्कन जितना चौड़ा लग रहा था। मैं देख तो नहीं सकती थी पर मेरा अनुमान था कि वो ज़रूर लाल रंग का होगा। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि इतना मोटा अन्दर कैसे चला गया।
भाभी सच कहती थी इसमें मानसिक रूप से तैयार होना बहुत ज़रूरी है। अगर मन से इसके लिए स्त्री तैयार है तो भले ही कितना भी मोटा और लंबा क्यों ना हो आराम से अन्दर चला जाएगा।
प्रेम आँखें बंद किए मेरे उरोज़ों को चूसने लगा था। अब मुझे दर्द तो नहीं हो रहा था बस थोड़ी सी चुनमुनाहट अभी भी हो रही थी।
एक बात तो मैंने भी महसूस की थी। जब कभी कोई मच्छर या चींटी काट लेती है तो उस जगह को बार बार खुजलाने में बहुत मज़ा आता है। प्रेम जब उस छल्ले पर अपनी अंगुली फिराता तो मुझे बहुत अच्छा लगता। अब मैंने अपना सिर और कमर थोड़ी सी ऊपर उठाई और फिर से अपने नितम्बों को नीचे किया तो एक अज़ीब सी चुनमुनाहट मेरी महारानी के छल्ले पर महसूस हुई। मैंने 2-3
बार उसका संकोचन भी किया। हर बार मुझे लगा मेरी चुनमुनाहट और रोमांच बढ़ता ही जा रहा है जो मुझे बार बार ऐसा करने पर विवश कर रहा है। मीठी मीठी जलन, पीड़ा, कसक और गुदगुदी भरी मिठास का आनन्द तो अपने शिखर पर था।
अब तो प्रेम ने भी अपने नितम्ब कुछ उचकाने शुरू कर दिए थे।
मैंने अपने नितम्बों को थोड़ा ऊपर नीचे करते हुए महारानी का एक दो बार फिर संकोचन किया। प्रेम का लिंग तो अन्दर जैसे ठुमके ही लगाने लगा था। मुज़ेः भी उस संकोचन से गुदगुदी और रोमांच दोनों हो रहे थे। अब मैंने अपने नितम्बों को थोड़ा ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। आ... यह आनन्द तो इतना अनूठा था कि मैं शब्दों में नहीं बता सकती। ओह... अब मुझे समझ आया कि मैं तो इतने दिन बेकार ही डर रही थी और इस आनन्द से अपने आप को वंचित किए थी। जैसे ही मैं अपने नितम्ब ऊपर करती प्रेम का हाथ मेरी कमर से कस जाता। उसे डर था कि कहीं उसका पप्पू बाहर ना निकल जाए और फिर जब मैं अपने नितम्ब नीचे करती तो मेरे साथ उसकी भी सीत्कार निकल जाती। वो कभी मेरी जांघों पर हाथ फिराता, कभी नितम्बों पर। एक दो बार तो उसने मेरी लाडो को भी छेड़ने की कोशिश की पर मुझे तो इस समय कुछ और सूझ ही नहीं रहा था।
"आ... मेरी जान... आज तो तुमने मुझे...अया... निहाल ही कर दिया मेरी रानी... मेरी स्वर्ण नैना आ..."
"ओह... प्रेम... आ..." मेरे मुँह से भी बस यही निकल रहा था।
"मधुर एक बार मुझे ऊपर आ जाने दो ना ?"
"ओके.." मैं उठने को हुई तो प्रेम ने कस कर मेरी कमर पकड़ ली।
"ओह ऐसे नहीं ...प्लीज़ रूको... "
"तो?"
"तुम ऐसा करो धीरे धीरे अपना एक पैर उठा कर मेरे पैरों की ओर घूम जाओ। फिर मैं तुम्हारी कमर पकड़ कर पीछे आ जाऊँगा।"
मेरी हँसी निकल गई। अब मुझे समझ आया प्रेम अपने पप्पू को किसी भी कीमत पर बाहर नहीं निकलने देना चाहता था।
फिर मैं प्रेम के कहे अनुसार हो गई। हालाँकि थोड़ा कष्ट तो हुआ और लगा कि यह बाहर निकल जाएगा पर प्रेम ने कस कर मेरी कमर पकड़े रखी और अब वो मेरे पीछे आ गया। मैं अपने घुटनों के बल हो गई और वो भी अपने घुटनो के बल होकर मेरे पीछे चिपक गया। अब उसने मेरी कमर पकड़ ली और धीरे धीरे अपने पप्पू को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर अन्दर सरकाया। पप्पू तो अब ऐसे अन्दर-बाहर होने लगा जैसे लाडो में जाता है। मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि इस घर्षण के साथ मेरी लाडो और महारानोई के छल्ले के आस पास बहुत ही आनन्द की अनुभूति होने लगी थी। ओह... यह तो निराला ही सुख था।
भाभी ने मुझे बताया था कि योनि और गुदा की आस पास की जगह बहुत ही संवेदन शील होती है इसीलिए गुदा मैथुन में भी कई बार योनि की तरह बहुत आनन्द महसूस होता है।
प्रेम ने मेरे नितम्बों पर थपकी लगानी शुरू कर दी। मैं तो चाह रही थी आज वो इन पर ज़ोर ज़ोर से थप्पड़ भी लगा दे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा। अब वो थोड़ा सा मेरी कमर पर झुका और उसने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरे चूचों को पकड़ लिया, दूसरे हाथ से मेरी लाडो के दाने और कलिकाओं को मसलने लगा।
लाडो तो पूरी प्रेमरस में भीगी थी। उसने एक अंगुली अन्दर-बाहर करनी चालू कर दी। मैं तो इस दोहरे आनन्द में डूबी बस सीत्कार ही करती रही।
स्त्री और पुरुषों के स्वभाव में कितना बड़ा अंतर होता है, मैंने आज महसूस किया था। पुरुष एक ही क्रिया से बहुत जल्दी ऊब जाता है और अपने प्रेम को अलग अलग रूप में प्रदर्शित करना और भोगना चाहता है। पर स्त्री अपनी हर क्रिया और प्रेम को स्थाई और दीर्घायु बनाना चाहती है। इतने दिनों तक प्रेम इस महारानी के लिए मरा जा रहा था और आज जब इसका सुख और मज़ा ले लेते हुए भी वो लाडो को छेदने के आनन्द को भोगे बिना नहीं मान रहा है।
कुछ भी हो मेरा मन तो बस यही चाह रहा था कि काश यह समय का चक्र अभी रुक जाए और हम दोनों इसी तरह बाकी बची सारी जिंदगी इसी आनन्द को भोगते रहें।
"मधुर...आ... मेरी जान... अब... बस...आ....."
मैं जानती थी अब वो घड़ियाँ आने वाली हैं जब इनका "वो" अपने प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति करने वाला है। मैं थोड़ी तक तो गई थी पर मन अभी नहीं भरा था। मैं उनके प्रेम रस की फुहार अन्दर ही लेना चाहती थी।
प्रेम ने 2-3 धक्के और लगाए और फिर मेरी कमर ज़ोर से पकड़ कर अपने लिंग को जड़ तक अन्दर डाल दिया और मेरे नितम्बों से चिपक कर हाँफने लगा। मैंने अपने घुटने ज़ोर से जमा लिए। इन अंतिम क्षणों में मैं उसका पूरा साथ देना चाहती थी।
"यआआआआआअ....... ईईईईईईईईई.... मेरी जान... माधुर्र्रर....। आ......" उसके मुँह से आनन्द भारी सीत्कार निकल पड़ी और उसके साथ ही मुझे लगा उनका पप्पू अन्दर फूलने और पिचकने लगा है और मेरी महारानी किसी गर्म रस से भरती जा रही है।
अब प्रेम ने धक्के लगाने तो बंद कर दिए पर मेरी कमर पकड़े नितम्बों से चिपका ही रहा। मेरे पैर भी अब थरथराने लगे थे। मैंने अपने पैर थोड़े पीछे किए और अपने पेट के बाल लेट गई। प्रेम मेरे ऊपर ही आ गिरा।
अब उसने अपने हाथ नीचे करके मेरे स्तनों को पकड़ लिया और मेरी कंधे गर्दन और पीठ पर चुंबन लेने लगा। मैं तो उनके इस बरसते प्रेम को देख कर निहाल ही हो उठी। मुझे लगा मैंने एक बार फिर से अपना ‘मधुर प्रेम मिलन’ ही कर लिया है।
मैंने अपनी जांघें फैला दी थी। थोड़ी देर बाद पप्पू फिसल कर बाहर आ गया तो मेरी महारानी के अन्दर से गाढ़ा चिपचिपा प्रेम रस भी बाहर आने लगा। मुझे गुदगुदी सी होने लगी थी और अब तो प्रेम का भार भी अपने ऊपर महसूस होने लगा था।
‘ईईईईईईईईईई................." मेरे मुँह से निकल ही पड़ा।
जान ! मैंने अपने नितम्ब मचकाए।
तो प्रेम मेरे ऊपर से उठ खड़ा हुआ। मैं भी उठ कर अपने नितम्बों और जांघों को साफ करना चाहती थी पर प्रेम ने मुझे रोक दिया। उसने तकिये के नीचे से फिर वही लाल रुमाल निकाला और उस रस को पौंछ दिया।
मैं तो सोचती थी वो इस रुमाल को नीचे फेंक देगा पर उसने तो उस रुमाल को अपने होंठों से लगा कर चूम लिया। और फिर मेरी ओर बढ़ कर मेरे होंठों और गालों को चूमने लगा। मेरे मुँह से आख़िर निकल ही गया,"हटो परे ! गंदे कहीं के !"
"मेरी जान, प्रेम में कुछ भी गंदा नहीं होता !" कह कर उसने मुझे फिर से बाहों में भर कर चूम लिया।
मैं अब बाथरूम जाना चाहती थी पर प्रेम ने कहा,"मधुर ... आज की रात तो मैं तुम्हें एक क्षण के लिए भी अपने से डोर नहीं होने देना चाहता। आज तो तुमने मुझे वो खुशी और आनन्द दिया है जो अनमोल है। यह तो हमारे मधुर मिलन से भी अधिक आनन्ददायी और मधुर था।"
अब मैं उसे कैसे कहती,"हटो परे झूठे कहीं के !"
मैंने भी कस कर उन्हें अपनी बाहों में भर लिया........
और फिर हम दोनों कम्बल तान कर नींद के आगोश में चले गए।
बस अब और क्या लिखूँ ? अब तो मैं अपने प्रेम की रानी नहीं महारानी बन गई हूँ !
-मधुर
दोस्तो ! आपको हमारी यह दूसरी सुहागरात कैसी लगी बताएँगे ना ?
आपका प्रेम गुरु

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:40

अंगूर का दाना

अभी पिछले दिनों खबर आई थी कि 18 वर्षीय नौकरानी जिसने फिल्म अभिनेता शाईनी आहूजा पर बलात्कार का आरोप लगया था, अपने बयान से पलट गई।
इस शाइनी आहूजा ने तो हम सब शादीशुदा प्रेमी जनों की वाट ही लगा दी है। साले इस पप्पू से तो एक अदना सी नौकरानी भी ढंग से नहीं संभाली गई जिसने पता नहीं कितने लौड़े खाए होंगे और कितनों के साथ नैन मटक्का किया होगा। हम जैसे पत्नी-पीड़ितों को कभी कभार इन नौकरानियों से जो दैहिक और नयनसुख नसीब हो जाता था अब तो वो भी गया। इस काण्ड के बाद तो सभी नौकरानियों के नखरे और भाव आसमान छूने लगे हैं। जो पहले 200-400 रुपये या छोटी मोटी गिफ्ट देने से ही पट जाया करती थी आजकल तो इनके नाज़ और नखरे किसी फ़िल्मी हिरोइन से कम नहीं रह गए। अब तो कोई भी इनको चोदने की तो बात छोड़ो चूमने या बाहों में भर लेने से पहले सौ बार सोचेगा। और तो और अब तो सभी की पत्नियाँ भी खूबसूरत और जवान नौकरानी को रखने के नाम से ही बिदकने लगी हैं।
पता नहीं मधुर (मेरी पत्नी) आजकल क्यों मधु मक्खी बन गई है। उस दिन मैंने रात को चुदाई करते समय उसे मज़ाक में कह दिया था कि तुम थोड़ी गदरा सी हो गई हो। वह तो इस बात को दिल से ही लगा बैठी। उसने तो डाइटिंग के बहाने खाना पीना ही छोड़ दिया है। बस उबली हुई सब्जी या फल ही लेती है और सुबह साम 2-2 घंटे सैर करती है। मुझे भी मजबूरन उसका साथ देना पड़ता है। और चुदाई के लिए तो जैसे उसने कसम ही खा ली है बस हफ्ते में शनिवार को एक बार। ओह … मैं तो अपना लंड हाथ में लिए कभी कभी मुट्ठ मारने को मजबूर हो जाता हूँ। वो रूमानी दिन और रातें तो जैसे कहीं गुम ही हो गये हैं।
अनारकली के जाने के बाद कोई दूसरी ढंग की नौकरानी मिली ही नहीं। (आपको “मेरी अनारकली” जरुर याद होगी) सच कहूं तो जो सुख मुझे अनारकली ने दिया था मैं उम्र भर उसे नहीं भुला पाऊंगा। आह … वो भी क्या दिन थे जब ‘मेरी अनारकली’ सारे सारे दिन और रात मेरी बाहों में होती थी और मैं उसे अपने सीने से लगाए अपने आप को शहजादा सलीम से कम नहीं समझता था। मैंने आपको बताया था ना कि उसकी शादी हो गई है। अब तो वो तीन सालों में ही 2 बच्चों की माँ भी बन गई है और तीसरे की तैयारी जोर शोर से शुरू है। गुलाबो आजकल बीमार रहती है सो कभी आती है कभी नागा कर जाती है। पिछले 3-4 दिनों से वो काम पर नहीं आ रही थी। बहुत दिनों के बाद कल अनारकली काम करने आई थी। मैंने कोई एक साल के बाद उसे देखा था।
अब तो वो पहचान में ही नहीं आती। उसका रंग सांवला सा हो गया है और आँखें तो चहरे में जैसे धंस सी गई हैं। जो उरोज कभी कंधारी अनारों जैसे लगते थे आजकल तो लटक कर फ़ज़ली आम ही हो गए हैं। उसके चहरे की रौनक, शरीर की लुनाई, नितम्बों की थिरकन और कटाव तो जैसे आलू की बोरी ही बन गए हैं। किसी ने सच ही कहा है गरीब की बेटी जवान भी जल्दी होती है और बूढ़ी भी जल्दी ही हो जाती है।
कल जब वो झाडू लगा रही थी तो बस इसी मौके की तलाश में थी कि कब मधुर इधर-उधर हो और वो मेरे से बात कर पाए। जैसे ही मधुर बाथरूम में गई वो मेरे नजदीक आ कर खड़ी हो गई और बोली,“क्या हाल हैं मेरे एस. एस. एस. (सौदाई शहजादे सलीम) ?”
“ओह … मैं ठीक हूँ … तुम कैसी हो अनारकली …?”
“बाबू तुमने तो इस अनारकली को भुला ही दिया … मैं तो … मैं तो …?” उसकी आवाज कांपने लगी और गला रुंध सा गया था। मुझे लगा वो अभी रोने लगेगी। वो सोफे के पास फर्श पर बैठ गई।
“ओह … अनारकली दरअसल … मैं… मैं… तुम्हें भूला नहीं हूँ तुम ही इन दिनों में नज़र नहीं आई?”
“बाबू मैं भला कहाँ जाउंगी। तुम जब हुक्म करोगे नंगे पाँव दौड़ी चली आउंगी अपने शहजादे के लिए !” कह कर उसने मेरी ओर देखा।
उसकी आँखों में झलकता प्रणय निवेदन मुझ से भला कहाँ छुपा था। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी और आँखों में लाल डोरे से तैरने लगे थे। बस मेरे एक इशारे की देरी थी कि वो मेरी बाहों में लिपट जाती। पर मैं ऐसा नहीं चाहता था। उस चूसी हुई हड्डी को और चिंचोड़ने में भला अब क्या मज़ा रह गया था। जाने अनजाने में जो सुख मुझे अनारकली ने आज से 3 साल पहले दे दिया था मैं उन हसीन पलों की सुनहरी यादों को इस लिजलिजेपन में डुबो कर यूं खराब नहीं करना चाहता था।
इससे पहले कि मैं कुछ बोलूँ या अनारकली कुछ करे बाथरूम की चिटकनी खुलने की आवाज आई और मधुर की आवाज सुनाई दी,“अन्नू ! जरा साबुन तो पकड़ाना !”
“आई दीदी ….” अनारकली अपने पैर पटकती बाथरूम की ओर चली गई। मैं भी उठकर अपने स्टडी-रूम में आ गया।
आज फिर गुलाबो नहीं आई थी और उसकी छोटी लड़की अंगूर आई थी। अंगूर और मधुर दोनों ही रसोई में थी। मधु उस पर पता नहीं क्यों गुस्सा होती रहती है। वो भी कोई काम ठीक से नहीं कर पाती। लगता है उसका भी ऊपर का माला खाली है। कभी कुछ गिरा दिया कभी कुछ तोड़ दिया।
इतने में पहले तो रसोई से किसी कांच के बर्तन के गिर कर टूटने की आवाज आई और फिर मधु के चिल्लाने की, “तुम से तो एक भी काम सलीके से नहीं होता। पता है यह टी-सेट मैंने जयपुर से खरीदा था। इतने महंगे सेट का सत्यानाश कर दिया। इस गुलाबो की बच्ची को तो बस बच्चे पैदा करने या पैसों के सिवा कोई काम ही नहीं है। इन छोकरियों को मेरी जान की आफत बना कर भेज देती है। ओह … अब खड़ी खड़ी मेरा मुँह क्या देख रही है चल अब इसे जल्दी से साफ़ कर और साहब को चाय बना कर दे। मैं नहाने जा रही हूँ।”
मधु बड़बड़ाती हुई रसोई से निकली और बाथरूम में घुस कर जोर से उसका पल्ला बंद कर लिया। मैं जानता हूँ जब मधु गुस्सा होती है तो फिर पूरे एक घंटे बाथरूम में नहाती है। आज रविवार का दिन था। आप तो जानते ही हैं कि रविवार को हम दोनों साथ साथ नहाते हैं पर आज मधु को स्कूल के किसी फंक्शन में भी जाना था और जिस अंदाज़ में उसने बाथरूम का दरवाजा बंद किया था मुझे नहीं लगता वो किसी भी कीमत पर मुझे अपने साथ बाथरूम में आने देगी।
अब मैं यह देखना चाहता था कि अन्दर क्या हुआ है इस लिए मैं रसोई की ओर चला गया। अन्दर फर्श पर कांच के टुकड़े बिखरे पड़े थे और अंगूर सुबकती हुई उन्हें साफ़ कर रही थी। ओह … गुलाबो तो कहती है कि अंगूर पूरी 18 की हो गई है पर मुझे नहीं लगता कि उसकी उम्र इतनी होगी। उसने गुलाबी रंग का पतला सा कुरता पहन रखा था जो कंधे के ऊपर से थोड़ा फटा था। उसने सलवार नहीं पहनी थी बस छोटी सी सफ़ेद कच्छी पहन रखी थी। मेरी नज़र उसकी जाँघों के बीच चली गई। उसकी गोरी जांघें और सफ़ेद कच्छी में फंसी बुर की मोटी मोटी फांकों का उभार और उनके बीच की दरार देख कर मुझे लगा कि गुलाबो सही कह रही थी अंगूर तो पूरी क़यामत बन गई है। मेरा दिल तो जोर जोर से धड़कने लगा।
मैं उसके पास जाकर खड़ा हो गया तब उसका ध्यान मेरी ओर गया। जैसे ही उसने अपनी मुंडी ऊपर उठाई मेरा ध्यान उसके उन्नत उरोजों पर चला गया। हल्के भूरे गुलाबी रंग के गोल गोल कश्मीरी सेब जैसे उरोज तो जैसे क़यामत ही बने थे। हे लिंग महादेव ….. इसके छोटे छोटे उरोज तो मेरी मिक्की जैसे ही थे।
ऐसा नहीं है कि मैंने अंगूर को पहली बार देखा था। इससे पहले भी वो दो-चार बार गुलाबो के साथ आई थी। मैंने उस समय ध्यान नहीं दिया था। दो साल पहले तक तो यह निरी काली-कलूटी कबूतरी सी ही तो थी और गुलाबो का पल्लू ही पकड़े रहती थी। ओह…. यह तो समय से पहले ही जवान हो गई है। यह सब टीवी और फिल्मों का असर है। अंगूर टीवी देखने की बहुत शौक़ीन है। अब तो इसका रंग रूप और जवानी जैसे निखर ही आई है। उसका रंग जरुर थोड़ा सांवला सा है पर मोटी मोटी काली आँखें, पतले पतले गुलाबी होंठ, सुराहीदार गर्दन, पतली कमर, मखमली जांघें और गोल मटोल नितम्ब तो किसी को भी घायल कर दें। उसके निम्बू जैसे उरोज तो अब इलाहबाद के अमरूद ही बन चले हैं। मैं तो यह सोच कर ही रोमांचित हो जाता हूँ कि जिस तरह उसके सर के बाल कुछ घुंघराले से हैं उसकी पिक्की के बाल कितने मुलायम और घुंघराले होंगे।
उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़ ……………
मधु तो बेकार ही गुलाबो को दोष देती रहती है। और हम लोग भी इनके अधिक बच्चों को लेकर नाहक ही अपनी नाक और भोहें सिकोड़ते रहते हैं। वैसे देखा जाए तो हमारे जैसे मध्यमवर्गीय लोग तो डाक्टर और इंजीनियर पैदा करने के चक्कर में बस क्लर्क और परजीवी ही पैदा करते हैं। असल में घरों, खेतों, कल कारखानों, खदानों और बाज़ार के लिए मानव श्रम तो गुलाबो जैसे ही पैदा करते हैं। गुलाबो तू धन्य है।
ओह … मैं भी क्या बेकार की बातें ले बैठा। मैं अंगूर की बात कर रहा था। मुझे एक बार अनारकली ने बताया था कि जिस रात यह पैदा हुई थी बापू उस रात अम्मा के लिए अंगूर लाये थे। सो इसका नाम अंगूर रख दिया। वाह … क्या खूब नाम रखा है गुलाबो ने भी। यह तो एक दम अंगूर का गुच्छा ही है।
मैंने देखा अंगूर की तर्जनी अंगुली शायद कांच से कट गई थी और उससे खून निकल रहा था। वह दूसरे हाथ से उसे पकड़े सुबक रही थी। मुझे अपने पास देख कर वो खड़ी हो गई तो मैंने पूछा, “अरे क्या हुआ अंगूर ?”
“वो…. वो…. कप प्लेट टूट गए….?”
“अरे … मैं कप प्लेट की नहीं तुम्हारी अंगुली पर लगी चोट की बात कर रहा हूँ…? दिखाओ क्या हुआ ?”
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी अंगुली से खून बह रहा था। मैं उसे कंधे से पकड़कर रसोई में बने सिंक पर ले गया और नल के नीचे लगा कर उसकी अंगुली पर पानी डालने लगा। घाव ज्यादा गहरा नहीं था बस थोड़ा सा कट गया था। पानी से धोने के बाद मैंने उसकी अंगुली मुँह में लेकर उस पर अपना थूक लगा दिया। वो हैरान हुई मुझे देखती ही रह गई कि मैंने उसकी गन्दी सी अंगुली मुँह में कैसे ले ली।
वो हैरान हुई बोली “अरे… आपने तो … मेरी अंगुली मुँह में … ?”
“थूक से तुम्हारा घाव जल्दी भर जाएगा और दर्द भी नहीं होगा !” कहते हुए मैंने उसके गालों को थपथपाया और फिर उन पर चिकोटी काट ली।
ऐसा सुनहरा अवसर भला फिर मुझे कहाँ मिलता। उसके नर्म नाज़ुक गाल तो ऐसे थे जैसे रुई का फोहा हो। वो तो शर्म के मारे लाल ही हो गई … या अल्लाह …… शर्माते हुए यह तो पूरी मिक्की या सिमरन ही लग रही थी। मेरा पप्पू तो हिलोरें ही मारने लगा था ……
इस्स्स्सस्स्स्स …….
उसके बाद मैंने उसकी अंगुली पर बैंड एड (पट्टी) लगा दी। मैंने उससे कहा “अंगूर तुम थोड़ा ध्यान से काम किया करो !”
उसने हाँ में अपनी मुंडी हिला दी।
“और हाँ यह पट्टी रोज़ बदलनी पड़ेगी ! तुम कल भी आ जाना !”
“मधुर दीदी डांटेंगी तो नहीं ना ?”
“अरे नहीं मैं मधु को समझा दूंगा वो तुम्हें अब नहीं डांटेंगी ….. मैं हूँ ना तुम क्यों चिंता करती हो !” और मैंने उसकी नाक पकड़ कर दबा दिया। वो तो छुईमुई गुलज़ार ही बन गई और मैं नए रोमांच से जैसे झनझना उठा। यौवन की चोखट (दहलीज़) पर खड़ी यह खूबसूरत कमसिन बला अब मेरी बाहों से बस थोड़ी ही दूर तो रह गई है। मेरा जी तो उसका एक चुम्बन भी ले लेने को कर रहा था। मैंने अपने आप को रोकने की बड़ी कोशिश की पर मैं एक बार फिर से उसके गालों को थपथपाने से अपने आप को नहीं रोक पाया।
आज के लिए इतना ही काफी था।
हे लिंग महादेव ….. बस एक बार अपना चमत्कार और दिखा दे यार। बस इसके बाद मैं कभी तुमसे कुछ और नहीं मांगूंगा अलबत्ता मैं महीने के पहले सोमवार को रोज़ तुम्हें दूध और जल चढ़ने जरूर आऊंगा। काश कुछ ऐसा हो कि यह कोरी अनछुई छुईमुई कमसिन बाला मेरी बाहों में आ जाए और फिर मैं सारी रात इसके साथ गुटर गूं करता रहूँ। सच पूछो तो मिक्की के बाद उस तरह की कमसिन लड़की मुझे मिली ही नहीं थी। पता नहीं इस कमसिन बला को पटाने में मुझे कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे। पर अब सोचने वाली बात यह भी है कि हर बार बेचारा लिंग महादेव मेरी बात क्यों मानेगा। ओह … चलो अगर यह चिड़िया इस बार फंस जाए तो मैं भोलेशाह की मज़ार पर जुम्मेरात (गुरूवार) को चादर जरुर चढ़ाऊंगा।
रात में मधुर ने बताया कि गुलाबो का गर्भपात हुआ है और वो अगले आठ-दस दिनों काम पर नहीं आएगी। मेरी तो मन मांगी मुराद ही जैसे पूरी होने जा रही थी। पर इस कमसिन लौंडिया को चोदने में मेरी सबसे बड़ी दिक्कत तो मधु ही थी। उसने यह भी बताया कि अन्नू (अनारकली) भी कुछ पैसे मांग रही थी। उसके पति की नौकरी छूट गई है और वह रोज़ शराब पीने लगा है। उसे कभी कभी मारता पीटता भी है। पता नहीं इन गरीबों के साथ ऐसा क्यों होता है?
मैं जानता हूँ मधु का गुस्सा तो बस दूध के उफान की तरह है। वह इतनी कठोर नहीं हो सकती। वो जल्दी ही अनारकली और गुलाबो की मदद करने को राज़ी हो जायेगी। अचानक मेरे दिमाग में बिज़ली सी चमकी और फिर मुझे ख़याल आया कि यह तो अंगूर के दाने को पटाने का सबसे आसान और बढ़िया रास्ता है … ओह … मैं तो बेकार ही परेशान हो रहा था। अब तो मेरे दिमाग में सारी योजना शीशे की तरह साफ़ थी।
मधु को आज भी जल्दी स्कूल जाना था। मैंने आपको बताया था ना कि मधु स्कूल में टीचर है। सुबह 8 बजे वो जब स्कूल जाने के लिए निकल रही थी तब अंगूर आई। मधु ने उसको समझाया “साहब के लिए पहले चाय बना देना और फिर झाडू पोंछा कर लेना। और ध्यान रखना आज कुछ गड़बड़ ना हो। कुछ तोड़ फोड़ दिया तो बस इस बार तुम्हारी खैर नहीं !”
मधु तो स्कूल चली गई पर अंगूर सहमी हुई सी वहीं खड़ी रही। मैंने पहले तो उसके अमरूदों को निहारा और फिर जाँघों को। फिर मेरा ध्यान उसके चेहरे पर गया। उसके होंठ और गाल कुछ सूजे हुए से लग रहे थे। पता नहीं क्या बात थी। मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था और मैं तो बस उसे छूने या चूमने का जैसे कोई ना कोई उपयुक्त बहाना ही ढूंढ रहा था।
मैंने पूछा “अरे अंगूर तुम्हारे होंठों को क्या हुआ है ?”
उसका एक हाथ उसके होंठों पर चला गया। वो रुआंसी सी आवाज में बोली “कल अम्मा ने मारा था !”
“क्यों ?”
“वो … कल म…. मेरे से कप प्लेट टूट गए थे ना !”
“ओह … क्या घर पर भी तुमने कप प्लेट तोड़ दिए थे ?”
“नहीं … कल यहाँ जो कप प्लेट टूटे थे उनके लिए !”
मेरे कुछ समझ नहीं आया। यहाँ जो कप प्लेट टूटे थे उसका इसकी मार से क्या सम्बन्ध था। मैंने फिर पूछा “पर कप प्लेट तो यहाँ टूटे थे इसके लिए गुलाबो ने तुम्हें क्यों मारा ?”
“वो…. वो … कल दीदी ने पगार देते समय 100 रुपये काट लिए थे इसलिए अम्मा गुस्सा हो गई और मुझे बहुत जोर जोर से मारा !”
उसकी आँखों से टप टप आंसू गिरने लगे। मुझे उस पर बहुत दया भी आई और मधु पर बहुत गुस्सा। अगर मधु अभी यहाँ होती तो निश्चित ही मैं अपना आपा खो बैठता। एक कप प्लेट के लिए बेचारी को कितनी मार खानी पड़ी। ओह … इस मधु को भी पता नहीं कभी कभी क्या हो जाता है।
“ओह … तुम घबराओ नहीं। कोई बात नहीं मैं 100 रुपये दिलवा दूंगा।”
मैं उठकर उसके पास आ गया और उसके होंठों को अपनी अगुलियों से छुआ। आह…. क्या रेशमी अहसास था। बिलकुल गुलाबी रंगत लिए पतले पतले होंठ सूजे हुए ऐसे लग रहे थे जैसे संतरे की फांकें हों। या अल्लाह ….. (सॉरी हे … लिंग महादेव) इसके नीचे वाले होठ तो पूरी कटार की धार ही होंगे। मेरा पप्पू तो इसी ख्याल से पाजामे के अन्दर उछल कूद मचाने लगा।
“तुमने कोई दवाई लगाई या नहीं ?”
“न … नहीं …तो …?” उसने हैरानी से मेरी ओर देखा।
उसके लिए तो यह रोज़मर्रा की बात थी जैसे। पर मेरे लिए इससे उपयुक्त अवसर भला दूसरा क्या हो सकता था। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए समझाने वाले अंदाज़ में कहा, “ओह…. तुम्हें डिटोल और कोई क्रीम जरुर लगानी चाहिए थी। चलो मैं लगा देता हूँ … आओ मेरे साथ !”
मैंने उसे बाजू से पकड़ा और बाथरूम में ले आया और पहले तो उसके होंठों को डिटोल वाले पानी से धोया और फिर जेब से रुमाल निकाल कर उसके होंठों और गालों पर लुढ़कते मोतियों (आंसुओं) को पोंछ दिया।
“कहो तो इन होंठों को भी अंगुली की तरह चूम कर थूक लगा दूं ?” मैंने हंसते हुए मज़ाक में कहा।
पहले तो उसकी समझ में कुछ नहीं आया लेकिन बाद में तो वो इतना जोर से शरमाई कि उसकी इस कातिल अदा को देख कर मुझे लगा मेरा पप्पू तो पजामे में ही शहीद हो जाएगा।
“न…. नहीं मुझे शर्म आती है !”
हाय…. अल्लाह ….. मैं तो उसकी इस सादगी पर मर ही मिटा।
उसकी बेटी ने उठा रखी है दुनिया सर पे
खुदा का शुक्र है अंगूर के बेटा न हुआ
“अच्छा चलो थोड़ी क्रीम तो लगा लो ?”
“हाँ वो लगा दो !” उसने अपने होंठ मेरी ओर कर दिए।
मेरे पाठको और पाठिकाओ ! आप जरुर सोच रहे होंगे कि अब तो बस दिल्ली लुटने को दो कदम दूर रह गई होगी। बस अब तो प्रेम ने इस खूबसूरत कमसिन नाज़ुक सी कलि को बाहों में भर कर उसके होंठों को चूम लिया होगा। वो पूरी तरह गर्म हो चुकी होगी और उसने भी अपने शहजादे का खड़ा इठलाता लंड पकड़ कर सीत्कार करनी चालू कर दी होगी ?

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:41


मेरे पाठको और पाठिकाओ ! आप जरूर सोच रहे होंगे कि अब तो बस दिल्ली लुटने को दो कदम दूर रह गई होगी। बस अब तो प्रेम ने इस खूबसूरत कमसिन नाज़ुक सी कलि को बाहों में भर कर उसके होंठों को चूम लिया होगा। वो पूरी तरह गर्म हो चुकी होगी और उसने भी अपने शहजादे का खड़ा इठलाता लंड पकड़ कर सीत्कार करनी चालू कर दी होगी ?
नहीं दोस्तों ! इतना जल्दी यह सब तो बस कहानियों और फिल्मों में ही होता है। कोई भी कुंवारी लड़की इतनी जल्दी चुदाई के लिए राज़ी नहीं होती। हाँ इतना जरूर था कि मैं बस उसके होंठों को एक बार चूम जरूर सकता था। दरअसल मैं इस तरह उसे पाना भी नहीं चाहता था। आप तो जानते ही हैं कि मैं प्रेम का पुजारी हूँ और किसी भी लड़की या औरत को कभी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ नहीं चोदना चाहता। मैं तो चाहता था कि हम दोनों मिलकर उस आनंद को भोगें जिसे सयाने और प्रेमीजन ब्रह्मानंद कहते हैं और कुछ मूर्ख लोग उसे चुदाई का नाम देते हैं।
मैंने उसके होंठों पर हल्के से बोरोलीन लगा दी। हाँ इस बार मैंने उसके गालों को छूने के स्थान पर एक बार चूम जरूर लिया। मुझे लगा वो जरूर कसमसाएगी पर वो तो छुईमुई बनी नीची निगाहों से मेरे पाजामे में बने उभार को देखती ही रह गई। उसे तो यह गुमान ही नहीं रहा होगा कि मैं इस कदर उस अदना सी नौकरानी का चुम्मा भी ले सकता हूँ। मेरा पप्पू (लंड) तो इतनी जोर से अकड़ा था जैसे कह रहा हो- गुरु मुझे भी इस कलि के प्रेम के रस में भिगो दो। अब तो मुझे भी लगने लगा था कि मुझे पप्पू की बात मान लेनी चाहिए। पर मुझे डर भी लग रहा था।
अंगूर के नितम्ब जरूर बड़े बड़े और गुदाज़ थे पर मुझे लगता था वो अभी कमसिन बच्ची ही है। वैसे तो मैंने जब अनारकली की चुदाई की थी उसकी उम्र भी लगभग इतनी ही थी पर उसकी बात अलग थी। वो खुद चुदने को तैयार और बेकरार थी। पर अंगूर के बारे में अभी मैं यकीन के साथ ऐसा दावा नहीं कर सकता था। मैंने अगर उसे चोदने की जल्दबाजी की और उसने शोर मचा दिया या मधु से कुछ उल्टा सीधा कह दिया तो ? मैं तो सोच कर ही काँप उठता हूँ। चलो मान लिया वो चुदने को तैयार भी हो गई लेकिन प्रथम सम्भोग में कहीं ज्यादा खून खराबा या कुछ ऊँच-नीच हो गई तो मैं तो उस साले शाइनी आहूजा की तरह बेमौत ही मारा जाऊँगा और साथ में इज्जत जायेगी वो अलग।
हे … लिंग महादेव अब तो बस तेरा ही सहारा है।
मैं अभी यह सब सोच ही रहा था कि ड्राइंग रूम में सोफे पर रखा मोबाइल बज़ उठा। मुझे इस बेवक्त के फोन पर बड़ा गुस्सा आया। ओह … इस समय सुबह सुबह कौन हो सकता है ?
“हेल्लो ?”
“मि. माथुर ?”
“यस … मैं प्रेम माथुर ही बोल रहा हूँ ?”
“वो…. वो…. आपकी पत्नी का एक्सीडेंट हो गया है … आप जल्दी आ जाइए ?” उधर से आवाज आई।
“क … क्या … मतलब ? ओह…. आप कौन और कहाँ से बोल रहे हैं ?”
“देखिये आप बातों में समय खराब मत कीजिये, प्लीज, आप गीता नर्सिंग होम में जल्दी पहुँच जाएँ !”
मैं तो सन्न ही रह गया। मधुर अभी 15-20 मिनट पहले ही तो यहाँ से चंगी भली गई थी। मुझे तो कुछ सूझा ही नहीं। हे भगवान् यह नई आफत कहाँ से आ पड़ी।
अंगूर हैरान हुई मेरी ओर देख रही थी “क्या हुआ बाबू ?”
“ओह … वो... मधु का एक्सीडेंट हो गया है मुझे अस्पताल जाना होगा !”
“मैं साथ चलूँ क्या ?”
“हाँ... हाँ... तुम भी चलो !”
अस्पताल पहुँचने पर पता चला कि जल्दबाजी के चक्कर में मोड़ काटते समय ऑटो रिक्शा उलट गया था और मधु के दायें पैर की हड्डी टूट गई थी। उसकी रीढ़ की हड्डी में भी चोट आई थी पर वह चोट इतनी गंभीर नहीं थी। मधु के पैर का ओपरेशन करके पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया गया। सारा दिन इसी आपाधापी में बीत गया। अस्पताल वाले तो मधुर को रात भर वहीं पर रखना चाहते थे पर मधु की जिद पर हमें छुट्टी मिल गई पर घर आते-आते शाम तो हो ही गई।
घर आने पर मधु रोने लगी। उसे जब पता चला कि कल गुलाबो ने अंगूर को बहुत मारा तो उसे अपने गुस्से पर पछतावा होने लगा। उसे लगा यह सब अंगूर को डांटने की सजा भगवान् ने उसे दी है। अब तो वो जैसे अंगूर पर दिलो जान से मेहरबान ही हो गई। उसने अंगूर को अपने पास बुलाया और लाड़ से उसके गालों और सिर को सहलाया और उसे 500 रुपये भी दिए। उसने तो गुलाबो को भी 5000 रुपये देने की हामी भर ली और कहला भेजा कि अब अंगूर को महीने भर के लिए यहीं रहने दिया जाए क्योंकि दिन में मुझे तो दफ्तर जाना पड़ेगा सो उसकी देखभाल के लिए किसी का घर पर होना जरूरी था।
हे भगवान् तू जो भी करता है बहुत सोच समझ कर करता है। अब तो इस अंगूर के गुच्छे को पा लेना बहुत ही आसान हो जाएगा।
आमीन …………………..
मैंने कई बार अंगूर को टीवी पर डांस वाले प्रोग्राम बड़े चाव से देखते हुए देखा था। कई बार वह फ़िल्मी गानों पर अपनी कमर इस कदर लचकाती है कि अगर उसे सही ट्रेनिंग दी जाए तो वह बड़ी कुशल नर्तकी बन सकती है। उनके घर पर रंगीन टीवी नहीं है। हमने पिछले महीने ही नया एल सी डी टीवी लिया था सो पुराना टीवी बेकार ही पड़ा था। मेरे दिमाग में एक विचार आया कि क्यों ना पुराना टीवी अंगूर को दे दिया जाए। मधु तो इसके लिए झट से मान भी जायेगी। मैंने मधु को मना भी लिया और इस चिड़िया को फ़साने के लिए अपने जाल की रूपरेखा तैयार कर ली। मधु को भला इसके पीछे छिपी मेरी मनसा का कहाँ पता लगता।
अगले दिन अंगूर अपने कपड़े वगैरह लेकर आ गई। अब तो अगले एक महीने तक उसे यहीं रहना था। जब मैं शाम को दफ्तर से आया तो मधुर ने बताया कि जयपुर से रमेश भैया भाभी कल सुबह आ रहे हैं।
“ओह … पर उन्हें परेशान करने की क्या जरूरत थी ?”
“मैंने तो मना किया था पर भाभी नहीं मानी। वो कहती थी कि उसका मन नहीं मान रहा वो एक बार मुझे देखना चाहती हैं।”
“हूंऽऽ … ” मैं एक लम्बी सांस छोड़ी।
मुझे थोड़ी निराशा सी हुई। अगर सुधा ने यहाँ रुकने का प्रोग्राम बना लिया तो मेरी तो पूरी की पूरी योजना ही चौपट हो जायेगी। आप तो जानते ही हैं सुधा एक नंबर की चुद्दकड़ है। (याद करें “नन्दोइजी नहीं लन्दोइजी” वाली कहानी)। वो तो मेरी मनसा झट से जान जायेगी। उसके होते अंगूर को चोदना तो असंभव ही होगा।
“भैया कह रहे थे कि वो और सुधा भाभी शाम को ही वापस चले जायेंगे !”
“ओह … तब तो ठीक है … म… मेरा मतलब है कोई बात नहीं...?” मेरी जबान फिसलते फिसलते बची।
फिर उसने अंगूर को आवाज लगाई “अंगूर ! साहब के लिए चाय बना दे !”
“जी बनाती हूँ !” रसोई से अंगूर की रस भरी आवाज सुनाई दी।
मैंने बाथरूम में जाकर कपड़े बदले और पाजामा-कुरता पहन कर ड्राइंग-रूम में सोफे पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद अंगूर चाय बना कर ले आई। आज तो उसका जलवा देखने लायक ही था। उसने जोधपुरी कुर्ती और घाघरा पहन रखा था। सर पर सांगानेरी प्रिंट की ओढ़नी। लगता है मधु आज इस पर पूरी तरह मेहरबान हो गई है। यह ड्रेस तो मधु ने जब हम जोधपुर घूमने गए थे तब खरीदी थी और उसे बड़ी पसंद थी। जिस दिन वो यह घाघरा और कुर्ती पहनती थी मैं उसकी गांड जरूर मारता था। ओह … अंगूर तो इन कपड़ों में महारानी जोधा ही लग रही थी। मैं तो यही सोच रहा था कि उसने इस घाघरे के अन्दर कच्छी पहनी होगी या नहीं। मैं तो उसे इस रूप में देख कर ठगा सा ही रह गया। मेरा मन तो उसे चूम लेने को ही करने लगा और मेरा पप्पू तो उसे सलाम पर सलाम बजाने लगा था।
वह धीरे धीरे चलती हुई हाथ में चाय की ट्रे पकड़े मेरे पास आ गई। जैसे ही वो मुझे चाय का कप पकड़ाने के लिए झुकी तो कुर्ती से झांकते उसके गुलाबी उरोज दिख गए। दायें उरोज पर एक काला तिल और चने के दाने जितनी निप्पल गहरे लाल रंग के।
उफ्फ्फ ………
मेरे मुँह से बे-साख्ता निकल गया,“वाह अंगूर … तुम तो ….?”
इस अप्रत्याशित आवाज से वो चौंक पड़ी और उसके हाथ से चाय छलक कर मेरी जाँघों पर गिर गई। मैंने पाजामा पहन रखा था इस लिए थोड़ा बचाव हो गया। मुझे गर्म गर्म सा लगा और मैंने अपनी जेब से रुमाल निकाला और पाजामे और सोफे पर गिरी चाय को साफ़ करने लगा। वो तो मारे डर के थर-थर कांपने लगी।
“म … म मुझे माफ़ कर दो … गलती हो गई …म … म …” वो लगभग रोने वाले अंदाज़ में बोली।
“ओह … कोई बात नहीं चलो इसे साफ़ कर दो !” मैंने कहा।
उसने मेरे हाथों से रुमाल ले लिया और मेरी जाँघों पर लगी चाय पोंछने लगी। उसकी नर्म नाज़ुक अंगुलियाँ जैसे ही मेरी जांघ से टकराई मेरे पप्पू ने अन्दर घमासान मचा दिया। वो आँखें फाड़े हैरान हुई उसी ओर देखे जा रही थी।
मेरे लिए यह स्वर्णिम अवसर था। मैंने दर्द होने का बेहतरीन नाटक किया “आआआआ ……..!”
“ज्यादा जलन हो रही है क्या ?”
“ओह … हाँ … थोड़ी तो है ! प... पर कोई बात नहीं !”
“कोई क्रीम लगा दूं क्या ?”
“अरे क्रीम से क्या होगा …?”
“तो ?”
“मेरी तरह अपने होंठों से चाट कर थूक लगा दो तो जल्दी ठीक हो जायगा।” मैंने हंसते हुए कहा।
अंगूर तो मारे शर्म के दोहरी ही हो गई। उसने ओढ़नी से अपना मुँह छुपा लिया। उसके गाल तो लाल टमाटर ही हो गए और मैं अन्दर तक रोमांच में डूब गया।
मैं एक बार उसका हाथ पकड़ना चाहता था पर जैसे ही मैंने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया, वो बोली,“मैं आपके लिए दुबारा चाय बना कर लाती हूँ !” और वो फिर से रसोई में भाग गई।
मैं तो बस उस फुदकती मस्त चंचल मोरनी को मुँह बाए देखता ही रह गया। पता नहीं कब यह मेरे पहलू में आएगी। इस कुलांचें भरती मस्त हिरनी के लिए तो अगर दूसरा जन्म भी लेना पड़े तो कोई बात नहीं। मेरे पप्पू तो पजामा फाड़कर बाहर आने को बेताब हो रहा था और अन्दर कुछ कुलबुलाने लगा था। मुझे एक बार फिर से बाथरूम जाना पड़ा …
खाना खाने के बाद मधु को दर्द निवारक दवा दे दी और अंगूर उसके पास ही छोटी सी चारपाई डाल कर सो गई। मैं दूसरे कमरे में जाकर सो गया।
अगले दिन जब मैं दफ्तर से शाम को घर लौटा तो अंगूर मधु के पास ही बैठी थी। उसने सफ़ेद रंग की पैंट और गुलाबी टॉप पहन रखा था। हे लिंग महादेव यह कमसिन बला तो मेरी जान ही लेकर रहेगी। सफ़ेद पैंट में उसके नितम्ब तो जैसे कहर ही ढा रहे थे। आज तो लगता है जरूर क़यामत ही आ जायेगी। शादी के बाद जब हम अपना मधुमास मनाने खजुराहो गए थे तब मधुर अक्सर यही कपड़े पहनती थी। बस एक रंगीन चश्मा और पहन ले तो मेरा दावा है यह कई घर एक ही दिन में बर्बाद कर देगी। पैंट का आगे का भाग तो ऐसे उभरा हुआ था जैसे इसने भरतपुर या ग्वालियर के राज घराने का पूरा खजाना ही छिपा लिया हो।
मधु ने उसे मेरे लिए चाय बनाने भेज दिया। मैं तो तिरछी नज़रों से उसके नितम्बों की थिरकन और कमर की लचक देखता ही रह गया। जब अंगूर चली गई तो मधु ने इशारे से मुझे अपनी ओर बुलाया। आज वो बहुत खुश लग रही थी। उसने मेरा हाथ अपने हाथों में पकड़ कर चूम लिया।
मैंने भी उसके होंठों को चूम लिया तो वो शर्माते हुए बोली,“प्रेम मुझे माफ़ कर दो प्लीज मैंने तुम्हें बहुत तरसाया है। मुझे ठीक हो जाने दो, मैं तुम्हारी सारी कमी पूरी कर दूंगी।”
मैं जानता हूँ मधु ने जिस तरीके से मुझे पिछले दो-तीन महीनों से चूत और गांड के लिए तरसाया था वो अच्छी तरह जानती थी। अब शायद उसे पश्चाताप हो रहा था।
“प्रेम एक काम करना प्लीज !”
“क्या ?”
“ओह … वो... स्माल साइज के सेनेटरी पैड्स (माहवारी के दिनों में काम आने वाले) ला देना !”
“पर तुम तो लार्ज यूज करती हो ?”
“तुम भी …. ना … ओह … अंगूर के लिए चाहिए थे उसे आज माहवारी आ गई है।”
“ओह…. अच्छा … ठीक है मैं कल ले आऊंगा।”
कमाल है ये औरतें भी कितनी जल्दी एक दूसरे की अन्तरंग बातें जान लेती हैं।
“ये गुलाबो भी एक नंबर की पागल है !”
“क्यों क्या हुआ ?”
“अब देखो ना अंगूर 18 साल की हो गई है और इसे अभी तक मासिक के बारे में भी ठीक से नहीं पता और ना ही इसे इन दिनों में पैड्स यूज करना सिखाया !”
“ओह ….” मेरे मन में तो आया कह दूं ‘मैं ठीक से सिखा दूंगा तुम क्यों चिंता करती हो’ पर मेरे मुँह से बस ‘ओह’ ही निकला।
मैं बाहर ड्राइंग रूम में आ गया और टीवी देखने लगा। अंगूर चाय बना कर ले आई। अब मैंने ध्यान से उसकी पैंट के आगे का फूला हुआ हिस्सा देखा। आज अगर मिक्की जिन्दा होती तो लगभग ऐसी ही दिखती। मैं तो बस इसी ताक में था कि एक बार ढीले से टॉप में उसके सेब फिर से दिख जाएँ। मैंने चाय का कप पकड़ते हुए कहा “अंगूर इन कपड़ों में तो तू पूरी फ़िल्मी हिरोइन ही लग रही हो !”
“अच्छा ?” उसने पहले तो मेरी ओर हैरानी से देखा फिर मंद मंद मुस्कुराने लगी।
मैंने बात जारी रखी, "पता है मशहूर फिल्म अभिनेत्री मधुबाला भी फिल्मों में आने से पहले एक डायरेक्टर के घर पर नौकरानी का काम किया करती थी। सच कहता हूँ अगर मैं फ़िल्मी डायरेक्टर होता तो तुम्हें हिरोइन लेकर एक फिल्म ही बना देता !”
“सच ?”
“और नहीं तो क्या ?”
“अरे नहीं बाबू, मैं इतनी खूबसूरत कहाँ हूँ ?”
‘अरे मेरी जान तुम क्या हो यह तो मेरी इन आँखों और धड़कते दिल से पूछो’ मैंने अपने मन में ही कहा। मैं जानता था इस कमसिन मासूम बला को फांसने के लिए इसे रंगीन सपने दिखाना बहुत जरूरी है। बस एक बार मेरे जाल में उलझ गई तो फिर कितना भी फड़फड़ाये, मेरे पंजों से कहाँ बच पाएगी।
मैंने कहा “अंगूर तुम्हें डांस तो आता है ना ?”
“हाँ बाबू मैं बहुत अच्छा डांस कर लेती हूँ। हमारे घर टीवी नहीं है ना इसलिय मैं ज्यादा नहीं सीख पाई पर मधुर दीदी जब लड़कियों को कभी कभी डांस सिखाती थी मैं भी उनको देख कर सीख गई। मैं फ़िल्मी गानों पर तो हिरोइनें जैसा डांस करती हैं ठीक वैसा ही कर सकती हूँ। मैं ‘डोला रे डोला रे’ और ‘कजरारे कजरारे’ पर तो एश्वर्या राय से भी अच्छा डांस कर सकती हूँ !” उसने बड़ी अदा से अपनी आँखें नचाते हुए कहा।
“अरे वाह … फिर तो बहुत ही अच्छा है। मुझे भी वह डांस सबसे अच्छा लगता है !”
“अच्छा ?”
“अंगूर एक बात बता !”
“क्या ?”
“अगर तुम्हारे घर में रंगीन टीवी हो तो तुम कितने दिनों में पूरा डांस सीख जाओगी ?”
“अगर हमारे घर रंगीन टीवी हो तो मैं 10 दिनों में ही माधुरी दीक्षित से भी बढ़िया डांस करके दिखा सकती हूँ !”
उसकी आँखें एक नए सपने से झिलमिला उठी थी। बस अब तो चिड़िया ने दाना चुगने के लिए मेरे जाल की ओर कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं।
“पता है मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए मधु से बात की थी !”
“डांस के बारे में ?”
“अरे नहीं बुद्धू कहीं की !”
“तो ?”
“मैं रंगीन टीवी की बात कर रहा हूँ !”
“क्या मतलब ?”
मैं उसकी तेज़ होती साँसों के साथ छाती के उठते गिरते उभार और अभिमानी चूचकों को साफ़ देख रहा था। जब कोई मनचाही दुर्लभ चीज मिलने की आश बांध जाए तो मन में उत्तेजना बहुत बढ़ जाती है। और फिर किसी भी कीमत पर उसे पा लेने को मन ललचा उठता है। यही हाल अंगूर का था उस समय।
“पता है मधुर तो उसे किसी को बेचने वाली थी पर मैंने उसे साफ़ कह दिया कि अंगूर को रंगीन टीवी का बहुत शौक है इसलिए यह टीवी तो सिर्फ ‘मेरी अंगूर’ के लिए ही है !” मैंने ‘हमारी’ की जगह ‘मेरी अंगूर’ जानबूझ कर बोला था।
“क्या दीदी मान गई ?” उसे तो जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था।
“हाँ भई … पर वो बड़ी मुश्किल से मानी है !”
“ओह … आप बहुत अच्छे हैं ! मैं किस मुँह से आपका धन्यवाद करूँ ?” वो तो जैसे सतरंगी सपनों में ही खो गई थी।
मैं जानता हूँ यह छोटी छोटी खुशियाँ ही इन गरीबों के जीवन का आधार होती हैं। ‘अरे मेरी जान इन गुलाबी होंठों से ही करो ना’ मैंने अपने मन में कहा।
मैंने अपनी बात जारी रखते हुए उसे कहा “साथ में सी डी प्लेयर भी ले जाना पर कोई ऐसी वैसी फालतू फिल्म मत देख लेना !”
“ऐसी वैसी मतलब …. वो गन्दीवाली ?”
जिस मासूमियत से उसने कहा था मैं तो मर ही मिटा उसकी इस बात पर। वह बेख्याली में बोल तो गई पर जब उसे ध्यान आया तो वह तो शर्म के मारे गुलज़ार ही हो गई।
“ये गन्दीवाली कौन सी होती है?” मैंने हंसते हुए पूछा।
“वो … वो … ओह …” उसने दोनों हाथों से अपना मुँह छुपा लिया। मैं उसके नर्म नाज़ुक हाथों को पकड़ लेने का यह बेहतरीन मौका भला कैसे छोड़ सकता था।
मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए पूछा “अंगूर बताओ ना ?”
“नहीं मुझे शर्म आती है ?”
इस्स्सस्स्स्सस्स्स ………………

इस सादगी पर कौन ना मर जाए ऐ खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ?
“वो... वो... आपकी चाय तो ठंडी हो गई !” कहते हुए अंगूर ठंडी चाय का कप उठा कर रसोई में भाग गई। उसे भला मेरे अन्दर फूटते ज्वालामुखी की गर्मी का अहसास और खबर कहाँ थी।
उस रात मुझे और अंगूर को नींद भला कैसे आती दोनों की आँखों में कितने रंगीन सपने जो थे। यह अलग बात थी कि मेरे और उसके सपने जुदा थे।

यह साला बांके बिहारी सक्सेना (हमारा पड़ोसी) भी उल्लू की दुम ही है। रात को 12 बजे भी गाने सुन रहा है :
आओगे जब तुम हो साजना
अंगना ….. फूल…. खिलेंगे ….
सच ही है मैं भी तो आज अपनी इस नई शहजादी जोधा बनाम अंगूर के आने की कब से बाट जोह रहा हूँ।
पढ़ते रहिए ...

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