सेक्स (प्रेम) के सात सबक- must read majedaar hai
Re: सेक्स (प्रेम) के सात सबक- must read majedaar hai
आराम से अन्दर बाहर होने लगे थे।
3-4 मिनट ऐसा करने के बाद मुझे लगा कि अब तो उसका छेद बिलकुल रवां हो गया है। मेरा लंड तो प्री-कम छोड़ छोड़ कर पागल ही हो रहा था। वो तो झटके पर झटके मार रहा था। मैंने एक बार फिर से उसकी मुनिया को चूम लिया। थोड़ी देर उसकी मुनिया और मदनमणि हो चूसा और दबाया। उसकी मुनिया तो कामरस से
लबालब भरी थी जैसे। आंटी ने अपने पैर अब नीचे कर के फैला दिए और मुझे ऊपर खींच लिया। मैंने उसके होंठों को चूम लिया।
“ओह … मेरे चंदू … आज तो तुमने मुझे मस्त ही कर दिया !” आंटी उठ खड़ी हुई। “क्या अब तुम इस आनंद को भोगने के लिए तैयार हो ?”
“मैं तो कब से इंतज़ार कर रहा हूँ ?”
“ओह्हो … क्या बात है ? हाईई।.. मैं मर जावां बिस्कुट खा के ?” आंटी कभी कभी पंजाबी भी बोल लेती थी।
“देखो चंदू साधारण सम्भोग तो किसी भी आसन में किया जा सकता है पर गुदा-मैथुन 3-4 आसनों में ही किया जाता है। मैं तुम्हें समझाती हूँ। वैसे तुम्हें कौन सा आसन पसंद है ?”
“वो… वो… मुझे तो डॉगी वाला या घोड़ी वाला ही पता है या फिर पेट के बल लेटा कर …?”
“अरे नहीं… चलो मैं समझाती हूँ !” बताना शुरू किया।
पहली बार में कभी भी घोड़ी या डॉगी वाली मुद्रा में गुदा-मैथुन नहीं करना चाहिए। पहली बार सही आसन का चुनाव बहुत मायने रखता है। थोड़ी सी असावधानी या गलती से सारा मज़ा किरकिरा हो सकता है और दोनों को ही मज़े के स्थान पर कष्ट होता है।
देखो सब से उत्तम तो एक आसन तो है जिस में लड़की पेट के बल लेट जाती है और पेट के नीचे दो तकिये लगा कर अपने नितम्ब ऊपर उठा देती है। पुरुष उसकी जाँघों के बीच एक तकिये पर अपने नितम्ब रख कर बैठ जाता है और अपना लिंग उसकी गुदा में डालता है। इस में लड़की अपने दोनों हाथों से अपने नितम्ब चौड़े
कर लेती है जिस से उसके पुरुष साथी को सहायता मिल जाती है और वो एक हाथ से उसकी कमर या नितम्ब पकड़ कर दूसरे हाथ से अपना लिंग उसकी गुदा में आराम से डाल सकता है। लड़की पर उसका भार भी नहीं पड़ता।
एक और आसन है जिसमें लड़की पेट के बल अधलेटी सी रहती है। एक घुटना और जांघ मोड़ कर ऊपर कर लेती है। पुरुष उसकी एक जांघ पर बैठ कर अपना लिंग उसकी गुदा में डाल सकता है। इस आसन का एक लाभ यह है कि इसमें दोनों ही जल्दी नहीं थकते और धक्के लगाने में भी आसानी होती है। जब लिंग गुदा में
अच्छी तरह समायोजित हो जाए तो अपनी मर्ज़ी से लिंग को अन्दर बाहर किया जा सकता है। गांड के अन्दर प्रवेश करते लंड को देखना और उस छल्ले का लाल और गुलाबी रंग देख कर तो आदमी मस्त ही हो जाता है। वह उसके स्तन भी दबा सकता है और नितम्बों पर हाथ भी फिरा सकता है। सबसे बड़ी बात है उसकी चूत
में भी साथ साथ अंगुली की जा सकती है। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि धक्का मारते या दबाव बनाते समय लड़की आगे नहीं सरक सकती इसलिए लंड डालने में आसानी होती है।
एक और आसन है जिसे आमतौर पर सभी लड़कियां पसंद करती है। वह है पुरुष साथी नीचे पीठ के बल लेट जाता है और लड़की अपने दोनों पैर उसके कूल्हों के दोनों ओर करके उकडू बैठ जाती है। उसका लिंग पकड़ कर अपनी गुदा के छल्ले पर लगा कर धीरे धीरे नीचे होती है। लड़की अपना मुंह पैरों की ओर भी कर
सकती है। इस आसन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सारी कमांड लड़की के हाथ में होती है। वो जब चाहे जितना चाहे अन्दर ले सकती है। कुछ महिलाओं को यह आसन बहुत पसंद आता है। यह आसन पुरुषों को भी अच्छा लगता है क्योंकि इस दौरान वे अपने लिंग को गुदा के अन्दर जाते देख सकते हैं। पर कुछ महिलायें
शर्म के मारे इसे नहीं करना चाहती।
इसके अलावा और भी आसन हैं जैसे गोद में बैठ कर या सोफे या पलंग पर पैर नीचे लटका कर लड़की को अपनी गोद में बैठा कर गुदा-मैथुन किया जा सकता है। पसंद और सहूलियत के हिसाब से किसी भी आसन का प्रयोग किया जा सकता है।
“ओह… तो हम कौन सा आसन करेंगे ?”
“मैं तुम्हें सभी आसनों की ट्रेनिंग दूँगी पर फिलहाल तो करवट वाला ही ठीक रहेगा ”
“ठीक है।” मैंने कहा।
3-4 मिनट ऐसा करने के बाद मुझे लगा कि अब तो उसका छेद बिलकुल रवां हो गया है। मेरा लंड तो प्री-कम छोड़ छोड़ कर पागल ही हो रहा था। वो तो झटके पर झटके मार रहा था। मैंने एक बार फिर से उसकी मुनिया को चूम लिया। थोड़ी देर उसकी मुनिया और मदनमणि हो चूसा और दबाया। उसकी मुनिया तो कामरस से
लबालब भरी थी जैसे। आंटी ने अपने पैर अब नीचे कर के फैला दिए और मुझे ऊपर खींच लिया। मैंने उसके होंठों को चूम लिया।
“ओह … मेरे चंदू … आज तो तुमने मुझे मस्त ही कर दिया !” आंटी उठ खड़ी हुई। “क्या अब तुम इस आनंद को भोगने के लिए तैयार हो ?”
“मैं तो कब से इंतज़ार कर रहा हूँ ?”
“ओह्हो … क्या बात है ? हाईई।.. मैं मर जावां बिस्कुट खा के ?” आंटी कभी कभी पंजाबी भी बोल लेती थी।
“देखो चंदू साधारण सम्भोग तो किसी भी आसन में किया जा सकता है पर गुदा-मैथुन 3-4 आसनों में ही किया जाता है। मैं तुम्हें समझाती हूँ। वैसे तुम्हें कौन सा आसन पसंद है ?”
“वो… वो… मुझे तो डॉगी वाला या घोड़ी वाला ही पता है या फिर पेट के बल लेटा कर …?”
“अरे नहीं… चलो मैं समझाती हूँ !” बताना शुरू किया।
पहली बार में कभी भी घोड़ी या डॉगी वाली मुद्रा में गुदा-मैथुन नहीं करना चाहिए। पहली बार सही आसन का चुनाव बहुत मायने रखता है। थोड़ी सी असावधानी या गलती से सारा मज़ा किरकिरा हो सकता है और दोनों को ही मज़े के स्थान पर कष्ट होता है।
देखो सब से उत्तम तो एक आसन तो है जिस में लड़की पेट के बल लेट जाती है और पेट के नीचे दो तकिये लगा कर अपने नितम्ब ऊपर उठा देती है। पुरुष उसकी जाँघों के बीच एक तकिये पर अपने नितम्ब रख कर बैठ जाता है और अपना लिंग उसकी गुदा में डालता है। इस में लड़की अपने दोनों हाथों से अपने नितम्ब चौड़े
कर लेती है जिस से उसके पुरुष साथी को सहायता मिल जाती है और वो एक हाथ से उसकी कमर या नितम्ब पकड़ कर दूसरे हाथ से अपना लिंग उसकी गुदा में आराम से डाल सकता है। लड़की पर उसका भार भी नहीं पड़ता।
एक और आसन है जिसमें लड़की पेट के बल अधलेटी सी रहती है। एक घुटना और जांघ मोड़ कर ऊपर कर लेती है। पुरुष उसकी एक जांघ पर बैठ कर अपना लिंग उसकी गुदा में डाल सकता है। इस आसन का एक लाभ यह है कि इसमें दोनों ही जल्दी नहीं थकते और धक्के लगाने में भी आसानी होती है। जब लिंग गुदा में
अच्छी तरह समायोजित हो जाए तो अपनी मर्ज़ी से लिंग को अन्दर बाहर किया जा सकता है। गांड के अन्दर प्रवेश करते लंड को देखना और उस छल्ले का लाल और गुलाबी रंग देख कर तो आदमी मस्त ही हो जाता है। वह उसके स्तन भी दबा सकता है और नितम्बों पर हाथ भी फिरा सकता है। सबसे बड़ी बात है उसकी चूत
में भी साथ साथ अंगुली की जा सकती है। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि धक्का मारते या दबाव बनाते समय लड़की आगे नहीं सरक सकती इसलिए लंड डालने में आसानी होती है।
एक और आसन है जिसे आमतौर पर सभी लड़कियां पसंद करती है। वह है पुरुष साथी नीचे पीठ के बल लेट जाता है और लड़की अपने दोनों पैर उसके कूल्हों के दोनों ओर करके उकडू बैठ जाती है। उसका लिंग पकड़ कर अपनी गुदा के छल्ले पर लगा कर धीरे धीरे नीचे होती है। लड़की अपना मुंह पैरों की ओर भी कर
सकती है। इस आसन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सारी कमांड लड़की के हाथ में होती है। वो जब चाहे जितना चाहे अन्दर ले सकती है। कुछ महिलाओं को यह आसन बहुत पसंद आता है। यह आसन पुरुषों को भी अच्छा लगता है क्योंकि इस दौरान वे अपने लिंग को गुदा के अन्दर जाते देख सकते हैं। पर कुछ महिलायें
शर्म के मारे इसे नहीं करना चाहती।
इसके अलावा और भी आसन हैं जैसे गोद में बैठ कर या सोफे या पलंग पर पैर नीचे लटका कर लड़की को अपनी गोद में बैठा कर गुदा-मैथुन किया जा सकता है। पसंद और सहूलियत के हिसाब से किसी भी आसन का प्रयोग किया जा सकता है।
“ओह… तो हम कौन सा आसन करेंगे ?”
“मैं तुम्हें सभी आसनों की ट्रेनिंग दूँगी पर फिलहाल तो करवट वाला ही ठीक रहेगा ”
“ठीक है।” मैंने कहा।
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मुझे अब ध्यान आया मेरा प्यारे लाल तो सुस्त पड़ रहा है। ओह … बड़ी मुश्किल थी। आंटी के भाषण के चक्कर में तो सारी गड़बड़ ही हो गई। आंटी धीमे धीमे मुस्कुरा रही थी। उसने कहा,” मैं जानती हूँ सभी के साथ ऐसा ही होता है। पर तुम चिंता क्यों करते हो ? मेरे पास इसका ईलाज है।”
अब वो थोड़ी सी उठी और मेरे अलसाए से लंड को हाथ में पकड़ लिया वो बोलीं,”इसे ठीक से साफ़ किया है ना ?”
“जी हाँ”
अब उसने मेरा लंड गप्प से अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। मुंह की गर्मी और लज्जत से वो फिर से अकड़ने लगा। कोई 2-3 मिनट में ही वो तो फिर से लोहे की रोड ही बन गया था।
उसने पास रखे तौलिए से उसे पोंछा और फिर पास रखे निरोध की ओर इशारा किया। मुझे हैरानी हो रही थी। आंटी ने बताया कि गुदा-मैथुन करते समय हमेशा निरोध (कंडोम) का प्रयोग करना चाहिए। इससे संक्रमण नहीं होता और एड्स जैसी बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
अब मैंने अपने लंड पर निरोध चढ़ा लिया और उस पर नारियल का तेल लगा लिया। आंटी करवट के बल हो गई और अपना बायाँ घुटना मोड़ कर नीचे एक तकिया रख लिया। अब उसके मोटे मोटे गुदाज नितम्बों के बीच उसकी गांड और चूत दोनों मेरी आँखें के सामने थी। मैंने अपना सिर नीचे झुका कर एक गहरा चुम्बन पहले
तो चूत पर लिया और फिर उसकी गांड के छेद पर। अब मैंने फिर से बोरोप्लस के क्रीम की ट्यूब में बाकी बची क्रीम उसकी गांड में डाल दी। आंटी ने अपने बाएं हाथ से अपने एक नितम्ब को पकड़ कर ऊपर की ओर कर लिया। अब तो गांड का छेद पूरा का पूरा दिखने लगा। उसके छल्ले का रंग सुर्ख लाल सा हो गया था।
अब एक बार प्यारे लाल की मदद की जरुरत थी। मैंने उस पर भी नारियल का तेल लगाया और फिर से उसकी गांड में डाल कर 5-6 बार अन्दर बाहर किया। इस बार तो आंटी को जरा भी दर्द नहीं हुआ। वो तो बस अपने उरोजों को मसल रही थी। मैं उसकी दाईं जाँघ पर बैठ गया और अपने लंड के आगे थोड़ी सी क्रीम लगा
कर उसे आंटी की गांड के छेद पर टिका दिया।
मेरा दिल उत्तेजना और रोमांच के मारे धड़क रहा था। लंड महाराज तो झटके ही खाने लगे थे। उसे तो जैसे सब्र ही नहीं हो रहा था। मैंने अपने लंड को उसके छेद पर 4-5 बार घिसा और रगड़ा, फिर उसकी कमर पकड़ी और अपने लंड पर दबाव बनाया। आंटी थोड़ा सा आगे होने की कोशिश करने लगी पर मैं उसकी जाँघ पर
बैठा था इसलिए वो आगे नहीं सरक सकती थी। मैंने दबाव बनाया तो मेरा लंड थोड़ा सा धनुष की तरह मुड़ने लगा। मुझे लगा यह अन्दर नहीं जा पायेगा जरूर फिसल जाएगा। इतने में मुझे लगा आंटी ने बाहर की ओर जोर लगाया है। फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। पूरा सुपाड़ा अन्दर हो गया। मैं रुक गया। आंटी का शरीर थोड़ा
सा अकड़ गया। शायद उसे दर्द महसूस हो रहा था। मैंने उसके नितम्ब सहलाने शुरू कर दिए। प्यार से उन्हें थपथपाने लगा। गांड का छल्ला तो इतना बड़ा हो गया था जैसे किसी छोटी बच्ची की कलाई में पहनी हुई कोई लाल रंग की चूड़ी हो। उसकी चूत भी काम रस से गीली थी। मैंने अपने बाएं हाथ की अँगुलियों से उसकी
फांकों को सहलाना शुरू कर दिया।
2-3 मिनट ऐसे ही रहने के बाद मैंने थोड़ा सा दबाव और बनाया तो लंड धीरे धीरे आगे सरकाना शुरू हो गया। अब तो किला फ़तेह हो ही चुका था और अब तो बस आनंद ही आनंद था। मैंने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर अन्दर सरका दिया। आंटी तो बस कसमसाती सी रह गई। मेरे लिए तो यह किसी स्वर्ग के
आनंद से कम नहीं था। एक नितांत कोरी और कसी हुई गांड में मेरा लंड पूरा का पूरा अन्दर घुसा हुआ था। मैंने एक थपकी उसके नितम्बों पर लगाईं तो आंटी की एक मीठी सीत्कार निकल गई।
“चंदू अब धीरे धीरे अन्दर बाहर करो !” आंटी ने आँखें बंद किये हुए ही कहा। अब तक लंड अच्छी तरह गांड के अन्दर समायोजित हो चुका था। बे रोक टोक अन्दर बाहर होने लगा था। छल्ले का कसाव तो ऐसा था जैसे किसी ने मेरा लंड पतली सी नली में फंसा दिया हो।
“चांदनी तुम्हें दर्द तो नहीं हो रहा ?”
“अरे बावले, तुम्हारे प्रेम के आगे ये दर्द भला क्या मायने रखता है। मेरी ओर से ये तो नज़राना ही तुम्हें। तुम बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है ?”
अब वो थोड़ी सी उठी और मेरे अलसाए से लंड को हाथ में पकड़ लिया वो बोलीं,”इसे ठीक से साफ़ किया है ना ?”
“जी हाँ”
अब उसने मेरा लंड गप्प से अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। मुंह की गर्मी और लज्जत से वो फिर से अकड़ने लगा। कोई 2-3 मिनट में ही वो तो फिर से लोहे की रोड ही बन गया था।
उसने पास रखे तौलिए से उसे पोंछा और फिर पास रखे निरोध की ओर इशारा किया। मुझे हैरानी हो रही थी। आंटी ने बताया कि गुदा-मैथुन करते समय हमेशा निरोध (कंडोम) का प्रयोग करना चाहिए। इससे संक्रमण नहीं होता और एड्स जैसी बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
अब मैंने अपने लंड पर निरोध चढ़ा लिया और उस पर नारियल का तेल लगा लिया। आंटी करवट के बल हो गई और अपना बायाँ घुटना मोड़ कर नीचे एक तकिया रख लिया। अब उसके मोटे मोटे गुदाज नितम्बों के बीच उसकी गांड और चूत दोनों मेरी आँखें के सामने थी। मैंने अपना सिर नीचे झुका कर एक गहरा चुम्बन पहले
तो चूत पर लिया और फिर उसकी गांड के छेद पर। अब मैंने फिर से बोरोप्लस के क्रीम की ट्यूब में बाकी बची क्रीम उसकी गांड में डाल दी। आंटी ने अपने बाएं हाथ से अपने एक नितम्ब को पकड़ कर ऊपर की ओर कर लिया। अब तो गांड का छेद पूरा का पूरा दिखने लगा। उसके छल्ले का रंग सुर्ख लाल सा हो गया था।
अब एक बार प्यारे लाल की मदद की जरुरत थी। मैंने उस पर भी नारियल का तेल लगाया और फिर से उसकी गांड में डाल कर 5-6 बार अन्दर बाहर किया। इस बार तो आंटी को जरा भी दर्द नहीं हुआ। वो तो बस अपने उरोजों को मसल रही थी। मैं उसकी दाईं जाँघ पर बैठ गया और अपने लंड के आगे थोड़ी सी क्रीम लगा
कर उसे आंटी की गांड के छेद पर टिका दिया।
मेरा दिल उत्तेजना और रोमांच के मारे धड़क रहा था। लंड महाराज तो झटके ही खाने लगे थे। उसे तो जैसे सब्र ही नहीं हो रहा था। मैंने अपने लंड को उसके छेद पर 4-5 बार घिसा और रगड़ा, फिर उसकी कमर पकड़ी और अपने लंड पर दबाव बनाया। आंटी थोड़ा सा आगे होने की कोशिश करने लगी पर मैं उसकी जाँघ पर
बैठा था इसलिए वो आगे नहीं सरक सकती थी। मैंने दबाव बनाया तो मेरा लंड थोड़ा सा धनुष की तरह मुड़ने लगा। मुझे लगा यह अन्दर नहीं जा पायेगा जरूर फिसल जाएगा। इतने में मुझे लगा आंटी ने बाहर की ओर जोर लगाया है। फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। पूरा सुपाड़ा अन्दर हो गया। मैं रुक गया। आंटी का शरीर थोड़ा
सा अकड़ गया। शायद उसे दर्द महसूस हो रहा था। मैंने उसके नितम्ब सहलाने शुरू कर दिए। प्यार से उन्हें थपथपाने लगा। गांड का छल्ला तो इतना बड़ा हो गया था जैसे किसी छोटी बच्ची की कलाई में पहनी हुई कोई लाल रंग की चूड़ी हो। उसकी चूत भी काम रस से गीली थी। मैंने अपने बाएं हाथ की अँगुलियों से उसकी
फांकों को सहलाना शुरू कर दिया।
2-3 मिनट ऐसे ही रहने के बाद मैंने थोड़ा सा दबाव और बनाया तो लंड धीरे धीरे आगे सरकाना शुरू हो गया। अब तो किला फ़तेह हो ही चुका था और अब तो बस आनंद ही आनंद था। मैंने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर अन्दर सरका दिया। आंटी तो बस कसमसाती सी रह गई। मेरे लिए तो यह किसी स्वर्ग के
आनंद से कम नहीं था। एक नितांत कोरी और कसी हुई गांड में मेरा लंड पूरा का पूरा अन्दर घुसा हुआ था। मैंने एक थपकी उसके नितम्बों पर लगाईं तो आंटी की एक मीठी सीत्कार निकल गई।
“चंदू अब धीरे धीरे अन्दर बाहर करो !” आंटी ने आँखें बंद किये हुए ही कहा। अब तक लंड अच्छी तरह गांड के अन्दर समायोजित हो चुका था। बे रोक टोक अन्दर बाहर होने लगा था। छल्ले का कसाव तो ऐसा था जैसे किसी ने मेरा लंड पतली सी नली में फंसा दिया हो।
“चांदनी तुम्हें दर्द तो नहीं हो रहा ?”
“अरे बावले, तुम्हारे प्रेम के आगे ये दर्द भला क्या मायने रखता है। मेरी ओर से ये तो नज़राना ही तुम्हें। तुम बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है ?”
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मैं तो इस समय स्वर्ग में ही हूँ जैसे। तुमने मुझे अनमोल भेंट दी है। बहुत मज़ा आ रहा है।” और मैंने जोर से एक धक्का लगा दिया।
“ऊईई … माआअ … थोड़ा धीरे …”
“चांदनी मैंने कहानियों में पढ़ा है कि कई औरतें गांड मरवाते समय कहती हैं कि और तेजी से करो … फाड़ दो मेरी गांड… आह… बड़ा मज़ा आ रहा है ?”
“सब बकवास है… आम और पर औरतें कभी भी कठोरता और अभद्रता पसंद नहीं
“सब बकवास है… आम और पर औरतें कभी भी कठोरता और अभद्रता पसंद नहीं करती। वो तो यही चाहती हैं कि उनका प्रेमी उन्हें कोमलता और सभ्य ढंग से स्पर्श करे और शारीरिक सम्बन्ध बनाए। यह तो उन मूर्ख लेखकों की निरी कल्पना मात्र होती है जिन्होंने ना तो कभी गांड मारी होती है और ना ही मरवाई होती है।
असल में ऐसा कुछ नहीं होता। जब सुपाड़ा अन्दर जाता है तो ऐसे लगता है जैसे सैंकड़ों चींटियों ने एक साथ काट लिया हो। उसके बाद तो बस छल्ले का कसाव और थोड़ा सा मीठा दर्द ही अनुभव होता है। अपने प्रेमी की संतुष्टि के आगे कई बार प्रेमिका बस आँखें बंद किये अपने दर्द को कम करने के लिए मीठी सीत्कार करने
लगती है। उसे इस बात का गर्व होता है कि वो अपने प्रेमी को स्वर्ग का आनंद दे रही है और उसे उपकृत कर रही है !”
आंटी की इस साफगोई पर मैं तो फ़िदा ही हो गया। मैं तो उसे चूम ही लेना चाहता था पर इस आसन में चूमा चाटी तो संभव नहीं थी। मैंने उसकी चूत की फांकों और दाने को जोर जोर से मसलना चालू कर दिया। आंटी की चूत और गांड दोनों संकोचन करने लगी थी। मुझे लगा कि उसने मेरा लंड अन्दर से भींच लिया है। आह…
इस आनंद को शब्दों में तो बयान किया ही नहीं जा सकता।
लंड अन्दर डाले मुझे कोई 10-12 मिनट तो जरूर हो गए थे। आमतौर पर इतनी देर में स्खलन हो जाता है पर मैंने आज दिन में मुट्ठ मार ली थी इसलिए मैं अभी नहीं झड़ा था। लंड अब आराम से अन्दर बाहर होने लगा था।
आंटी भी आराम से थी। वो बोली,” मैं अपना पैर सीधा कर रही हूँ तुम मेरे ऊपर हो जाना पर ध्यान रखना कि तुम्हारा प्यारे लाल बाहर नहीं निकले। एक बार अगर यह बाहर निकल गया तो दुबारा अन्दर डालने में दिक्कत आएगी और हो सकता है दूसरे प्रयाश में अन्दर डालने से पहले ही झड़ जाओ ?”
“ओके।..”
अब आंटी ने अपना पैर नीचे कर लिया और अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। तकिया उसके पेट के नीचे आ गया था। मैं ठीक उसके ऊपर आ गया और मैंने अपने हाथ नीचे करके उसके उरोज पकड़ लिए। उसने अपनी मुंडी मोड़ कर मेरी ओर घुमा दी तो मैंने उसे कस कर चूम लिया। मैंने अपनी जांघें उसके चौड़े नितम्बों के
दोनों ओर कस लीं। जैसे ही आंटी अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाया तो मैं एक धक्का लगा दिया।
आंटी की मीठी सीत्कार सुनकर मुझे लग रहा था कि अब उसे मज़ा भले नहीं आ रहा हो पर दर्द तो बिलकुल नहीं हो रहा होगा। मुझे लगा जैसे मेरा लंड और भी जोर से आंटी की गांड ने कस लिया है। मैं तो चाहता था कि इसी तरह मैं अपना लंड सारी रात उसकी गांड में डाले बस उसके गुदाज बदन पर लेटा ही रहूँ। पर आखिर
शरीर की भी कुछ सीमाएं होती हैं। मुझे लग रहा था कि मेरा लंड थोड़ा सा फूलने और पिचकने लगा है और किसी भी समय पिचकारी निकल सकती है। आंटी ने अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। मैंने एक हाथ से उसकी चूत को टटोला और अपने बाएं हाथ की अंगुली चूत में उतार दी। आंटी की तो रोमांच और उत्तेजना में चींख ही
निकल गई। और उसके साथ ही मेरी भी पिचकारी निकलने लगी।
“आह।.. य़ाआआ……” हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला। दो जिस्म एकाकार हो गए। इस आनंद के आगे दूसरा कोई भी सुख या मज़ा तो कल्पनातीत ही हो सकता है। पता नहीं कितनी देर हम इसी तरह लिपटे पड़े रहे।
मेरा प्यारे लाल पास होकर बाहर निकल आया था। हम दोनों ही उठ खड़े हुए और मैंने आंटी को गोद में उठा लिया और बाथरूम में सफाई कर के वापस आ गए। मैंने आंटी को बाहों में भर कर चूम लिया और उसका धन्यवाद किया। उसके चहरे की रंगत और ख़ुशी तो जैसे बता रही थी कि मुझे अपना सर्वस्व सोंप कर मुझे पूर्ण
रूप से संतुष्ट कर कितना गर्वित महसूस कर रही है। मुझे पक्का प्रेम गुरु बनाने का संतोष उसकी आँखों में साफ़ झलक रहा था।
“ऊईई … माआअ … थोड़ा धीरे …”
“चांदनी मैंने कहानियों में पढ़ा है कि कई औरतें गांड मरवाते समय कहती हैं कि और तेजी से करो … फाड़ दो मेरी गांड… आह… बड़ा मज़ा आ रहा है ?”
“सब बकवास है… आम और पर औरतें कभी भी कठोरता और अभद्रता पसंद नहीं
“सब बकवास है… आम और पर औरतें कभी भी कठोरता और अभद्रता पसंद नहीं करती। वो तो यही चाहती हैं कि उनका प्रेमी उन्हें कोमलता और सभ्य ढंग से स्पर्श करे और शारीरिक सम्बन्ध बनाए। यह तो उन मूर्ख लेखकों की निरी कल्पना मात्र होती है जिन्होंने ना तो कभी गांड मारी होती है और ना ही मरवाई होती है।
असल में ऐसा कुछ नहीं होता। जब सुपाड़ा अन्दर जाता है तो ऐसे लगता है जैसे सैंकड़ों चींटियों ने एक साथ काट लिया हो। उसके बाद तो बस छल्ले का कसाव और थोड़ा सा मीठा दर्द ही अनुभव होता है। अपने प्रेमी की संतुष्टि के आगे कई बार प्रेमिका बस आँखें बंद किये अपने दर्द को कम करने के लिए मीठी सीत्कार करने
लगती है। उसे इस बात का गर्व होता है कि वो अपने प्रेमी को स्वर्ग का आनंद दे रही है और उसे उपकृत कर रही है !”
आंटी की इस साफगोई पर मैं तो फ़िदा ही हो गया। मैं तो उसे चूम ही लेना चाहता था पर इस आसन में चूमा चाटी तो संभव नहीं थी। मैंने उसकी चूत की फांकों और दाने को जोर जोर से मसलना चालू कर दिया। आंटी की चूत और गांड दोनों संकोचन करने लगी थी। मुझे लगा कि उसने मेरा लंड अन्दर से भींच लिया है। आह…
इस आनंद को शब्दों में तो बयान किया ही नहीं जा सकता।
लंड अन्दर डाले मुझे कोई 10-12 मिनट तो जरूर हो गए थे। आमतौर पर इतनी देर में स्खलन हो जाता है पर मैंने आज दिन में मुट्ठ मार ली थी इसलिए मैं अभी नहीं झड़ा था। लंड अब आराम से अन्दर बाहर होने लगा था।
आंटी भी आराम से थी। वो बोली,” मैं अपना पैर सीधा कर रही हूँ तुम मेरे ऊपर हो जाना पर ध्यान रखना कि तुम्हारा प्यारे लाल बाहर नहीं निकले। एक बार अगर यह बाहर निकल गया तो दुबारा अन्दर डालने में दिक्कत आएगी और हो सकता है दूसरे प्रयाश में अन्दर डालने से पहले ही झड़ जाओ ?”
“ओके।..”
अब आंटी ने अपना पैर नीचे कर लिया और अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। तकिया उसके पेट के नीचे आ गया था। मैं ठीक उसके ऊपर आ गया और मैंने अपने हाथ नीचे करके उसके उरोज पकड़ लिए। उसने अपनी मुंडी मोड़ कर मेरी ओर घुमा दी तो मैंने उसे कस कर चूम लिया। मैंने अपनी जांघें उसके चौड़े नितम्बों के
दोनों ओर कस लीं। जैसे ही आंटी अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाया तो मैं एक धक्का लगा दिया।
आंटी की मीठी सीत्कार सुनकर मुझे लग रहा था कि अब उसे मज़ा भले नहीं आ रहा हो पर दर्द तो बिलकुल नहीं हो रहा होगा। मुझे लगा जैसे मेरा लंड और भी जोर से आंटी की गांड ने कस लिया है। मैं तो चाहता था कि इसी तरह मैं अपना लंड सारी रात उसकी गांड में डाले बस उसके गुदाज बदन पर लेटा ही रहूँ। पर आखिर
शरीर की भी कुछ सीमाएं होती हैं। मुझे लग रहा था कि मेरा लंड थोड़ा सा फूलने और पिचकने लगा है और किसी भी समय पिचकारी निकल सकती है। आंटी ने अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। मैंने एक हाथ से उसकी चूत को टटोला और अपने बाएं हाथ की अंगुली चूत में उतार दी। आंटी की तो रोमांच और उत्तेजना में चींख ही
निकल गई। और उसके साथ ही मेरी भी पिचकारी निकलने लगी।
“आह।.. य़ाआआ……” हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला। दो जिस्म एकाकार हो गए। इस आनंद के आगे दूसरा कोई भी सुख या मज़ा तो कल्पनातीत ही हो सकता है। पता नहीं कितनी देर हम इसी तरह लिपटे पड़े रहे।
मेरा प्यारे लाल पास होकर बाहर निकल आया था। हम दोनों ही उठ खड़े हुए और मैंने आंटी को गोद में उठा लिया और बाथरूम में सफाई कर के वापस आ गए। मैंने आंटी को बाहों में भर कर चूम लिया और उसका धन्यवाद किया। उसके चहरे की रंगत और ख़ुशी तो जैसे बता रही थी कि मुझे अपना सर्वस्व सोंप कर मुझे पूर्ण
रूप से संतुष्ट कर कितना गर्वित महसूस कर रही है। मुझे पक्का प्रेम गुरु बनाने का संतोष उसकी आँखों में साफ़ झलक रहा था।