चौधराइन
भाग 19 - उस्ताद मदन
"नही, कपड़े खराब हो जायेंगे।
तभी उसके दिमाग में आया की क्यों ना पीछे से लण्ड डाला जाये, कपड़े भी खराब नही होंगे।
"मामी, पीछे से डालु,,,?,,,,,,कपड़े खराब नही होंगे,,,।"
मामीलण्ड पर से अपने हाथ को हटाते हुए बोली,
"नही, बहुत टाईम लग जायेगा,,,,,,,,,रात में पीछे से डालना"
मदन ने उर्मिला देवी के कन्धो को पकड़ कर उठाते हुए कहा,
"प्लीज मामी,,,,,,,,,,,,उठो ना, चलो उठो,,,,,,,,,,"
"अरे, नही रे बाबा,,,,,,,मुझे बाजार भी जाना है,,,,,,,,ऐसे ही देर हो गई है,,,,,,,,,"
"ज्यादा देर नही लगेगी, बस दो मिनट,,,,,,,"
"अरे नही रे, तू छोड़ न, ,,,,,,,,,"
" हाँ तुम्हारा काम तो वैसे भी हो गया न क्या मामी ??? मेरे बारे में भी तो सोचो, थोड़ा तो रहम करो,,,,,,,,,,,,हर समय क्यों तड़पाती…?"
"तु मानेगा नही,,,,,,,,"
"ना, बस दो मिनट दे दो,,,,,,,,,"
"ठीक है, दो मिनट में नही निकला तो खुद अपने हाथ से करना,,,,,,,,मैं नही रुकने वाली."
उर्मिला देवी उठ कर, डाइनिंग़ टेबल के सहारे अपने चूतड़ों को उभार कर घोड़ी बन गई। मदन पीछे आया, और जल्दी से उसने मामी की साड़ी को उठा कर कमर पर कर दिया। कच्छी तो पहले ही खुल चुकी थी। उर्मिला देवी की मख्खन मलाई से, चमचमाते गोरे गोरे बड़े बड़े चूतड़ मदन की आंखो के सामने आ गये। उसके होश फ़ाखता हो गये।
उर्मिला देवी अपने चूतड़ों को हिलाते हुए बोली,
"क्या कर रहा है ?, जल्दी कर देर हो रही है,,,,,,,,,।"
चूतड़ हिलाने पर थेरक उठे। एकदम गुदाज और माँसल चूतड़, और उनके बीच की खाई। मदन का लण्ड फुफकार उठा।
"मामी,,,,,,,आपने रात में अपना ये तो दिखाया ही नही,,,,,,,उफफ्, कितना सुंदर है मामी,,,,,,,,,!!!।"
"जो भी देखना है, रात में देखना पहली रात में क्या तुझे चूतड़ भी,,?,,,,,,,तुझे जो करना है, जल्दी कर,,,,,,,,,,,"
"ओह, शीईईईईई मामी, मैं हंमेशा सोचता था, आप का पिछ्वाड़ा कैसा होगा। जब आप चलती थी और आपके दोनो चूतड़ जब हिलते थे. तो दिल करता था की उनमे अपने मुंह को घुसा कर रगड़ दु,,,,,,उफफफ् !!!"
"ओह होओओओओओओओ,,,,,,,,जल्दी कर ना,,,,,,,,"
कह कर चूतड़ों को फिर से हिलाया।
"चूतड़ पर एक चुम्मा ले लुं,,,,,,,?"
"ओह हो, जो भी करना है, जल्दी कर. नही तो मैं जा रही हुं,,,,,"
मदन तेजी के साथ नीचे झुका, और पच पच करते हुए चूतड़ों को चुमने लगा। दोनो माँसल चूतड़ों को हाथों में दबोच मसलते हुए, चुमते हुए, चाटने लगा। उर्मिला देवी का बदन भी सिहर उठा। बिना कुछ बोले उन्होंने अपनी टांगे और फैला दी।
मदन ने दोनो चूतड़ों को फैला दिया, और दोनो गोरे गोरे चूतड़ों के नीचे चुद चुद के सावली होरही बित्ते भर की चूत देख बीच की खाई में जैसे ही मदन ने हल्के से अपनी जीभ चलायी। उर्मिला देवी के पैर कांप उठे। उसने कभी सोचा भी नही था, की उसका ये भांजा इतनी जल्दी तरक्की करेगा।
मदन ने देखा की चूतड़ों के बीच जीभ फिराने से चूत अपने आप हल्के हल्के फैल्ने और सिकुड़ने लगा है, और मामी के पैर हल्के-हल्के थर-थरा रहे थे।
"ओह मामी, आपकी चूत कितनी,,,???,,,,,,,,उफफफफ्फ्फ् कैसी खुशबु है ?,,,,
इस बार उसने जीभ को पूरी खाई में ऊपर से नीचे तक चलाया, उर्मिला देवी के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई। उसने कभी सपने में भी नही सोचा था, की घर में बैठे बीठाये उसकी चूत चाटने वाला मिल जायेगा। मारे उत्तेजना के उसके मुंह से आवाज नही निकल रही थी। गु गु की आवाज करते हुए, अपने एक हाथ को पीछे ले जा कर, अपने चूतड़ों को खींच कर फैलाया।
मदन समझ गया था की मामी को मजा आ रहा है, और अब समय की कोई चिन्ता नही है। उसने चूतड़ों के के ठीक पास में दोनो तरफ अपने दोनो अंगूठे लगाये, और दरार को चौड़ा कर जीभ नुकीली कर के पेल दी। चूत में जीभ चलाते हुए चूतड़ों पर हल्के हल्के दांत भी गड़ा देता था। चूत की गुदगुदी ने मामी को एकदम बेहाल कर दिया था। उनके मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगी,
"ओह मदन, क्या कर रहा है, बेटा ??,,,,,,,उफफफ्फ्,,,,,,,,मुझे तो लगता था तुझे कुछ भी नही,,,,,,पगले, शशशशीईईईईईईईई उफफफफ चाआट्ट रहा हैएएएए,,,,,,मेरी तो समझ में नहीईई,,,,,,,,।"
समझ में तो मदन के भी कुछ नही आ रहा था मगर चूतड़ों पर मुँह मारते काटते हुए बोला,
" पच्च पच्च,,,,मामी शीईईईईई,,,,,,,मेरा दिल तो आपके हर अंग को चुमने और चाटने को करता है,,,,,,आप इतनी खूबसुरत हो,,,मुझे नही पता था चूतड़ों चाटी जाती है या नहीई,,,,,,हो सकता है नही चाटी जाती होगी मगर,,,,,,मैं नही रुक सकता,,,,,,,मैं तो इसको चुमुन्गा और चाट कर खा जाऊँगा, जैसे आपकी चूत,,,,।"
"शीईईई,,,,,,,एक दिन में ही तु कहाँ से कहाँ पहुंच गया ? माहिर हो गया ,,,,, उफफफ्फ् तुझे मेरे चूतड़ इतने पसंद हैं तो चाट,,,,,,चुम,,,,,,उफफफ शीईईईईई बेटा,,,,,,बात मत कर,,,,,मैं सब समझती हूँ,,, तू जो भी करना चाहता है करता रह।"
मदन समझ गया की रात वाली छिनाल मामी फिर से वापस आ गई है। वो एक पल को रुक गया अपनी जीभ को आराम देने के लिये, मगर उर्मिला देवी को देरी बरदाश्त नही हुई। पीछे पलट कर मदन के सिर को दबाती हुई बोली,
"उफफफ् रुक मत,,,,,,,,,जल्दी जल्दी चाट....."
मगर मदन भी उसको तड़पाना चाहता था। उर्मिला देवी पीछे घुमी और मदन को उसके टी-शर्ट के कोलर से पकड़ कर खिंचती हुई डाइनिंग़ टेबल पर पटक दिया। उसके नथुने फुल रहे थे, चेहरा लाल हो गया था। मदन को गरदन के पास से पकड़, उसके होठों को अपने होठों से सटा कर खूब जोर से चुम्मा लिया। इतनी जोर से जैसे उसके होठों को काट खाना चाहती हो, और फिर उसके गाल पर दांत गड़ा कर काट लिया। मदन ने भी मामी के गालो को अपने दांतो से काट लिया।
"उफफ्फ् कमीने, निशान पड़ जायेगा,,,,,,,,,रुकता क्यों है,?,,,,,,,जल्दी कर, नही तो बहुत गाली सुनेगा,,,,,,,,,,और रात के जैसा छोड़ दूँगी..."
मदन उठ कर बैठता हुआ बोला, "जितनी गालीयां देनी है, दे दो,,,,,"
और चूतड़ पर कस कर दांत गड़ा कर काट लिया।
"उफफफ,,,,,,,हरामी, गाली सुन ने में मजा आता है, तुझेएए,,,,????"
मदन कुछ नही बोला, चूतड़ों की चुम्मीयां लेता रहा,
",,,,,,आह, पच पच।"
उर्मिला देवी समझ गई की, इस कम उमर में ही छोकरा रसिया बन गया है।
चूत के भगनशे को अपनी उँगली से रगड़ कर, दो उन्ग्लीयोन को कच से बुर में पेल दिया. बुर एकदम पसीज कर पानी छोड़ रही थी। चूत के पानी को उँगलीयों में ले कर, पीछे मुड कर मदन के मुंह के पास ले गई. जो कि चूतड़ चाटने में मशगुल था और अपनी चूतड़ों और उसके मुंह के बीच उँगली घुसा कर पानी को रगड़ दिया। कुछ पानी चूतड़ों पर लगा, कुछ मदन के मुंह पर।
"देख, कितना पानी छोड़ रही है चूत ?, अब जल्दी कर,,,,,,,,"
पानी छोड़ती चूत का इलाज मदन ने अपना मुंह चूत पर लगा कर किया। चूत में जीभ पेल कर चारो तरफ घुमाते हुए चाटने लगा।
"ये क्या कर रहा है, सुवर ??,,,,,,,,खाली चाटता ही रहेगा क्या,,,,,मादरचोद ?, उफफ् चाट, चूतड़ों, चूत सब चाट लेएएएए,,,,,,,,,,भोसड़ी के,,,,,,,लण्ड तो तेरा सुख गया है नाआअ,,,,!!!,,,,,,,हरामी…चूतड़ खा के पेट भर, और चूत का पानी पीईईईईई,,,,,,,,,ऐसे ही फिर से झड़ गई, तो हाथ में लण्ड ले के घुमनाआ,,,,,,"
मदन समझ गया कि मामी से नही रहा जा रहा था. जल्दी से उठ कर लण्ड को चूत के पनियाये छेद पर लगा, धचाक से घुसेड़ दिया। उर्मिला देवी का बेलेन्स बिगड़ गया, और टेबल पर ही गिर पड़ी. चिल्लाते हुए बोली,
"उफ़ बदमाश, बोल नही सकता था क्या ?,,,,,,,,,, ,,,,,,,,,चूत,,,,,,,,आराम सेएएएएए......."
पर मदन ने सम्भलने का मौका नही दिया। धचा-धच लण्ड पेलता रहा। पानी से सरोबर चूत ने कोई रुकावट नही पैदा की। दोनो चूतड़ों के मोटे-मोटे माँस को पकड़े हुए, गपा-गप लण्ड डाल कर, उर्मिला देवी को अपने धक्को की रफतार से पूरा हिला दिया था, उसने। उर्मिला देवी मजे से सिसकारियाँ लेते हुएचू में चूतड़ों उचका-उचका कर लण्ड ले रही थी।
फच-फच की आवाज एक बार फिर गुन्ज उठी थी। जांघ से जांघ और चूतड़ टकराने से पटक-पटक की आवाज भी निकल रही। दोनो के पैर उत्तेजना के मारे कांप रहे थे।
"पेलता रह,,,,,,और जोर से माआआरर,,,,,,बेटा मार,,,,,फ़ाड़ दे चूत,,,,,,मामी को बहुत मजा दे रहा हैएएएएए,,,,,,,,। ओह चोद,,,,,,,,,देख रे मेरी ननद, तूने कैसा लाल पैदा किया है,,,,,,,,,तेरे भाई का काम कर रहा है,,,,,,,,ऐईईईई.......फाआआअड दियाआआआअ सल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लेएएए नेए,,,,,,,,,,"
"ओह मामी, आअज आपकी चूत,,,,सीईईईई,,,,,मन कर रहा, इसी में लण्ड डाले,,,,,ओह,,,,सीईईईई,,,,,,सीई बस ऐसे ही हंमेशा मेरा लण्ड लेती,,,,,,,,........"
"हाय चोद,,,,,बहुत मजा,,,,,,सीईईइ चूतड़ोंचाटु,,,,,तु ने तो मेरी जवानी पर जादु कर दिया,,,,,"
"हाय मामी, ऐसे ही चूतड़ों को हिला हिला-हिला हिला के लण्ड ले,,,,,सीईईइ, जादु तो तुमने किया हैईई,,,,,,,,,,अहसान किया है,,,,इतनी हसीन चूत, मेरे लण्ड के हवाले करके,,,,'पक पक',,,,,लो मामी,,,,,ऐसे ही चूतड़ों नचा-नचा के मेरा लण्ड अपनी चूत में दबोचो,,,,,,,,,,,सीईईई"
"जोर लगा के चोद ना भोसड़ी के,,,,,,,देख,,,,,,,,,,,,,देख तेरा लण्ड गया तेरी मामी की चूत में,,,,,,, डाल साले,,,,,,पेल साले,,,,,पेल अपनी, मुझे,,,,,,,चोद अपनी मामी की चूत,,,,,,रण्डी की औलाद,,,,,,साला,,,,,मामीचोद,,,,,,"
'''''फच,,,,,,फच,,,,,फच,,,,,''''''''
और, एक झटके के साथ उर्मिला देवी का बदन अकड़ गया.
"ओह,,, ओह,,,, सीईई,,,, गई, मैं गई,,,,"
करती हुई डाइनिंग़ टेबल पर सिर रख दिया। झड़ती हुई चूत ने जैसे ही मदन के लण्ड को दबोचा, उसके लण्ड ने भी पिचकारी छोड़ दी. 'फच फच' करता हुआ लण्ड का पानी चूत के पसीने से मिल गया। दोनो पसीने से तर-बतर हो चुके थे। मदन उर्मिला देवी की पीठ पर निढाल हो कर पड़ गया था। दोनो गहरी गहरी सांसे ले रहे थे।
जबरदस्त चुदाई के कारण दोनो के पैर कांप रहे थे। एक दूसरे का भार सम्भालने में असमर्थ। धीरे से मदन मामी की पीठ पर से उतर गया, और उर्मिला देवी ने अपनी साड़ी नीचे की और साड़ी के पल्लु से पसीना पोंछती हुई सीधी खड़ी हो गई।
वो अभी भी हांफ रही थी। मदन पास में पडे टोवेल से लण्ड पोंछ रहा था। मदन के गालो को चुटकी में भर मसलते हुए बोली,
"कमीने,,,,,,,अब तो पड़ गई तेरे लण्ड को ठंड,,,,,,पूरा टाईम खराब कर दिया, और कपड़े भी,,,,,"
"पर मामी, मजा भी तो आया,,,,,,,,सुबह-सुबह कभी मामा के साथ ऐसे मजा लिया है,,,,,,"
मामी को बाहों में भर लिपट ते हुए मदन बोला। उर्मिला देवी ने उसको परे धकेला,
"चल हट, ज्यादा लाड़ मत दिखा तेरे मामा अच्छे आदमी है। मैं पहले आराम करूँगी फिर बाजार जाऊँगी, और खबरदार, जो मेरे कमरे में आया तो, तुझे ट्युशन जाना होगा तो चले जाना "
"ओके मामी,,,,,पहले थोड़ा आराम करूँगा जरा."
बोलता हुआ मदन अपने कमरे में, और उर्मिला देवी बाथरुम में घुस गई। थोड़ी देर खट पट की आवाज आने के बाद फिर शान्ती छा गई।
मदन युं ही बेड पर पड़ा सोचता रहा की, सच में मामी कितनी मस्त औरत है, और कितनी मस्ती से मजा देती है। उनको जैसे सब कुछ पता है, की किस बात से मजा आयेगा और कैसे आयेगा ??। रात में कितना गन्दा बोल रही थी,,,,,,' मुंह में मुत दूँगी ',,,,,,ये सोच कर ही लण्ड खड़ा हो जाता है. मगर ऐसा कुछ नही हुआ. चुदवाने के बाद भी वो पेशाब करने कहाँ गई, हो सकता है बाद में गई हो मगर चुदवाते से समय ऐसे बोल रही थी जैसे,,,,,,,,शायद ये सब मेरे और अपने मजे को बढ़ाने के लिये किया होगा। सोचते सोचते थोड़ी देर में मदन को झपकी आ गई।
एक घंटे बाद जब उठा तो मामी जा चुकी थी वो भी तैयार हो कर ट्युशन पढ़ने चला गया। दिन इसी तरह गुजर गया। शाम में घर आने पर दोनों एक दूसरे को देख इतने खुश लग रहे थे जैसे कितने दिनो के बाद मिले हो, शायद दोनों शाम होने का इन्तजार सुबह से कर रहे थे । फिर तो जल्दी जल्दी खाना पीना निबटा, दोनों बेड्रूम मे जा घुसे और उस रात में दो बार ऐसी ही भयंकर चुदाई हुई की दोनो के सारे कस-बल ढीले पड़ गये। दोनो जब भी झड़ने को होते चुदाई बन्द कर देते। रुक जाते, और फिर दुबारा दुगने जोश से जुट जाते। मदन भी खुल गया। खूब गन्दी गन्दी बाते की। मामी को ' साली,,,,,,चुदक्कड़ मामी,,,,,,,,, ' कहता, और वो खूब खुश हो कर उसे ' हरामी चूतखोर ,,,, ,,,,,,' कहती।
उर्मिला देवी के शरीर का हर एक भाग थूक से भीग जाता, और चूतड़ों, चूचियों और जांघो पर तो मदन के दांत के निशान पड़ जाते। उसी तरह से मदन के गाल, पीठ और सीना उर्मिला देवी के दांतो और नाखुन के निशान बनते थे।
घर में तो कोई था नही. खुल्लम-खुल्ला जहां मरजी, वहीं चुदाई शुरु कर देते थे दोनो। मदन अपनी लुंगी हटा मामी को साड़ी पेटीकोट उठा गोद में लण्ड पर बैठा कर ब्लाउज में हाथ डाल चूचियाँ सहलाते हुए टी वी देखता था फ़िर चुदास बढ़ जाने पर वही सोफ़े पर चोद देता। किचन में उर्मिला देवी बिना सलवार के केवल लम्बी कमीज पहन कर खाना बनाती और मदन से कमीज उठा कर, दोनो जांघो के बीच बैठा कर चूत चटवाती। या मदन पीछे से चूतड़ों पर लण्ड रगड़ता या मामी चूत में केला डाल कर उसको धीरे धीरे करके खिलाती । अपनी बेटी की फ्रोक पहन कर, डाइनिंग़ टेबल के ऊपर एक पैर घुटनो के पास से मोड़ कर बैठ जाती और मदन को सामने बिठा कर अपनी नंगी चूत दिखाती और दोनो नाश्ता करते। चुदास लगने पर मदन मामी को वहीं पड़ी डाइनिंग टेबिल पर लिटा के खड़े खड़े चोद देता।
मामी मदन का लण्ड खड़ा कर, उस पर अपना दुपट्टा कस कर बांध देती थी। उसको लगता जैसे लण्ड फट जायेगा मगर चूतड़ों चटवाती रहती थी, और चोदने नही देती। दोनो जब चुदाई करते करते थक जाते तो एक ही बेड पर नंग-धडंग सो जाते।
शायद, चौथे दिन सुबह के समय मदन अभी उठा नही था। तभी उसे मामी की आवाज सुनाई दी,
" मदन……मदन बेटा,,,।"
मदन उठा देखा, तो आवाज बाथरुम से आ रही थी। बाथरुम का दरवाजा खुला था, अन्दर घुस गया। देखा मामी कमोड पर बैठी हुई थी। उस समय उर्मिला देवी ने मैक्सी जैसा गाउन डाल रखा था। मैक्सी को कमर से ऊपर उठा कर, कमोड पर बैठी हुई थी। सामने चूत की झांटे और जांघे दिख रही थी।
मदन मामी को ऐसे देख कर मुस्कुरा दिया, और हस्ते हुए बोला,
"क्या मामी, क्यों बुलाया,,,?"
"इधर तो आ पास में,,,,,,,", उर्मिला देवी ने इशारे से बुलाया।
"क्या काम है ?,,,,,,,यहाँटट्टी करते हुए."
मदन कमोड के पास गया और फ्लश चला कर. झुक कर खड़ा हो गया। उसका लण्ड इतने में खड़ा हो चुका था।
उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए. अपने निचले होठों को दांतो से दबाया और बोली.
"एक काम करेगा ?"
"हां बोलो, क्या करना है,,,?"
"जरा मेरी चूतड़ धो दे ना,,!!??,,,,,,"
कह कर उर्मिला देवी मुस्कुराने लगी। खुद उसका चेहरा लाल हो रहा था । मदन का लण्ड इतना सुनते ही लहरा गया। उसने तो सोचा भी नही था, की मामी ऐसा करने को बोल सकती है। कुछ पल तो युं ही खड़ा, फिर धीरे से हँसते हुए बोला,
"क्या मामी ?, कैसी बाते कर रही हो ?।
इस पर उर्मिला देवी तमक कर बोली, "तुझे कोई दिक्कत है, क्या,,,?"
"नही, पर आपके हाथ में कोई दिक्कत है, क्या,,,,,?"
"ना, मेरे हाथ को कुछ नही हुआ, बस अपने चूतड़ों को तुझसे धुलवाना चाहती,,,,,,,,?।"
मदन समझ गया की, 'मामी का ये नया नाटक है. सुबह सुबह चुदवाना चाहती होगी। यहीं बाथरुम में साली को पटक कर चोद दूँगा, सारा चूतड़ धुलवाना भुल जायेगी।' उर्मिला देवी अभी भी कमोड पर बैठी हुई थी। अपना हाथ टोईलेट पेपर की तरफ बढ़ाती हुई बोली,
"ठीक है, रहने दे,,,,,चूतड़ों को चाटेगा, मगर धोयेगा नही,,,,,,आना अब चूने भी तो,,,,,,,,,,"
"अरे मामी रुको…नारज क्यों होती हो,,,,,,,मैं सोच रहा था, सुबह सुबह,,,,,,,लाओ मैं धो देता हुं.?
और टोईलेट पेपर लेकर, नीचे झुक कर चूतड़ को अपने हाथों से पकड़ थोड़ा सा फैलाया. जब चूतड़ों का छेद ठीक से दिख गया, तो उसको पोंछ कर अच्छी तरह से साफ किया, फिर पानी लेकर चूतड़ों धोने लगा । मदन ने देखा कि मामी को इतना मजा आ रहा था की चूत के होंठ फरकने लगे थे।
चूतड़ों के सीकुडे हुए छेद को खूब मजे लेकर, बीच वाली अंगुली से चूत तक रगड़-रगड़ कर धोते हुए बोला,
"मामी, ऐसे चूतड़ धुलवा कर, लण्ड खड़ा करोगी तो,,,,,,,,??!!।
उर्मिला देवी कमोड पर से हँसते हुए, उठते हुए बोली,
"तो क्या,,?,,मजा नही आया,,,,,???"
बेसिन पर अपने हाथ धोता हुआ मदन बोला,
"वो तो ठीक है पर…दरअसल मुझे कुछ दिखा था जरा आप यहाँ खड़ी हो तो”
और मामी को कमर से पकड़ कर, मुंह की तरफ से दीवार से सटाकर बोला –
“जरा थोड़ा झुको मामी।”
मामी “क्या है रे” कहते हुए झुक गईं।
मदन एक झटके से उसकी मैक्सी ऊपर कर दी, अब उनके बड़े बड़े चूतड़ों के नीचे उनकी गीली बित्ते भर की चूत गीला भोसड़ा साफ़ दिख रहा था। बस फ़िर क्या था मदन ने अपनी शोर्टस् नीचे सरका, फनफनाता हुआ लण्ड निकाल कर उस गीले भोसड़े पर लगा जोर का धक्का मार बोला –“ मजा तो अब आयेगाआ,,,,,,!!!।"
उर्मिला देवी ' आ उईईइ क्या कर रहा है कंजरे,?,,,,छोड़...' बोलती रही, मगर मदन ने बेरहमी से तीन-चार धक्को में पूरा लण्ड पेल दिया और हाथ आगे ले जा कर चूचियाँ थाम निपल मसलते हुए, फ़टा फ़ट धक्के लगाना शुरु कर दिया। पूरा बाथरुम मस्ती भरी सिसकारीयों में डुब गया. दोनो थोड़ी देर में ही झड़ गये। जब चूत से लण्ड निकल गया, तो उर्मिला देवी ने पलट कर मदन को बाहों में भर लिया।
कुछ ही दिनो में मदन माहिर चोदु बन गया था। जब मामा और मोना घर आ गये, तो दोनो दिन में मौका खोज लेते जैसे कि लन्च टाइम में मदन कालेज से आ चोद के चला जाता और छुट्टी वाले दिन कार लेकर, शहर से थोड़ी दुरी पर बने फार्म हाउस पर काम करवाने के बहाने निकल जाते।
जब भी जाते मोना को भी बोलते चलो, मगर वो तो होमवर्क मे व्यस्त होती थी, मना कर देती। फिर दोनो फार्म हाउस में मस्ती करते।
क्रमश:…………………………
सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
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चौधराइन
भाग 20 – नया चस्का 1
यहाँ तक की कहानी सुना के मदन बोला –“तो चौधराइन चाची ये थी, मेरी ट्रेनिंग़ की कहानी। मुझे मेरी मामी उस्ताद बनाया।”
इस गरम कहानी के बीच एक बार चौधराइन चाची चुदास से गरमा कर मदन से चुदवा के मस्त हो चुकीं थीं । पर कहानी खतम होते होते मदन पूरे मूड मे आ चुका था सो मदन ने अपनी एक टांग उठा, उनकी जांघो पर रखते हुए, उसके पैरो को अपने दोनो पैरों के बीच करते हुए, लण्ड को पेटिकोट के ऊपर से चूत पर सटाते हुए, उसके होठों से अपने होठों को सटा उसका मुंह बन्द कर दिया। रसीले होठों को अपने होठों के बीच दबोच, चूसते हुए अपनी जीभ को उसके मुंह में ठेल, उसके मुंह में चारो तरफ घुमाते हुए चुम्मा लेने लगा।
कुछ पल तो माया देवी के मुंह से ...उम्म...उम्म... करके गुंगियाने की आवाज आती रही, मगर फिर वो भी अपनी जीभ को ठेल-ठेल कर पूरा सहयोग करने लगी। दोनो आपस में लिपटे हुए, अपने पैरों से एक दूसरे को रगड़ते हुए, चुम्मा-चाटी कर रहे थे। मदन ने अपने हाथ कमर से हटा उसकी चूचियों पर रख दिया था, और ब्लाउज के ऊपर से उन्हे दबाने लगा। माया देवी ने जल्दी से अपने होठों को उसके चुम्बन से छुडाया. दोनो हांफ रहे थे, और दोनो का चेहरा लाल हो गया था। मदन के हाथों को अपनी चूचियों पर से हटाती हुई बोली,
“इस्स,हट,,,,,,,क्या करता है…?"
मदन ने माया देवी का हाथ को पकड़, अपनी लुंगी के भीतर डाल, अपना लण्ड उसके हाथ में पकड़ा दिया। माया देवी ने अपना हाथ पीछे खींचने की कोशिश की, मगर उसने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी खोल, अपना गरम तपता हुआ खड़ा लण्ड उसके हाथ में पकड़ा दिया। लण्ड की गरमी पा कर उसका हाथ अपने आप लण्ड पर कसता चला गया।
“…। तेरा मन नही भरता क्या?”
लण्ड को पूरी ताकत से मरोड़ती, दांत पीसती बोली।
“हाय,,,,,,!!! …एक बार और करने दे…ना,,,,!!”,
कहते हुए, मदन ने उसके घुटनो तक सिमट आये पेटिकोट के भीतर झटके से हाथ डाल चूत दबोच ली। माया देवी ने चिहुंक कर लण्ड को छोड़, पेटिकोट के भीतर उसके हाथ से चूत छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली,
“इस्स्स्स,,,,,…क्या करता है,,,??…कहाँ हाथ घुसा रहा…???”
मदन जबरदस्ती उसकी जांघो के बीच हाथ से चूत को मसलता हुआ बोला,
“हाय,,,,,,,,एक बार और…देख ना कैसे खड़ा…??!!”
“उफफफ्,,,,,हाथ हटा,,,,,। बहुत बिगड़ गया है, तु…??”
मदन का हाथ गीला हो गया था चौधराइन की चूत पनिया गई थी। मदन बोला,
“हाय,,,,पनिया गई है,,,,तेरी चु…”
माया देवी उसकी कलाई पकड़, रोकने की कोशिश करती बोली,
“उफफ्,,,,,छोड़,,,,,ना,,,!,,,,क्या करता है,,,,?…वो पानी तो पहले का है…।"
एक हाथ से लुंगी को लण्ड पर से हटाता हुआ बोला,
“पहले का कहाँ से आयेगा ??…देख, इस पर लगा पानी तो कब का सुख गया…।"
नंगा, खड़ा लण्ड देखते ही चौधराइन, आंखे चुराती, कनखियों से देखती हुई बोली,
“तेरा लुंगी से पौंछ गया होगा,,,,,,मेरा अन्दर, कैसे सुखेगा…??”,
कहते हुए, मदन के हाथ को पेटिकोट के अन्दर से खींच दिया। पेटिकोट जांघो तक उठ चुका था। लण्ड को अपने हाथ से पकड़, दिखाता हुआ मदन बोला,
“…। एक बार और्…तेरी चु…”
“चुप,,,बेशरम,,,,बहुत देर हो चुकी है…”
“हाय चाची,,,,कहानी कहते कहते मन …बस एक बार और…”
“हर बार तू यही कहता है रात भर तु यही करता रहता था, क्या…???”
“…तीन…चार…बार तो करता ही था ......छोड़ो उसे …बस एक बार और…”,
कहते हुए, फिर से उसके पेटिकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की।
“उफफ्,,,,सीईईईई…। कमीने छोड़…। घड़ी देख…। क्या टाईम हुआ…???”
मदन ने घड़ी देखी। सुबह के ४:३० बज रहे थे. मदन के किस्से में टाईम का पता ही नही चला था.
अब चौधराइन की चूत की बन आई दोपहर में बाप सदानन्द से और हर दूसरे तीसरे दिन किसी बहाने से रात में बगिया वाले मकान में सदानन्द के बेटे मदन से अपनी चूत जम के बजवाती। रोज रात को इसलिए नहीं कि कहीं किसी को शक न हो जाय सो जिस जिस दिन बगिया वाले मकान पे जाने का कोई बहाना न मिलता वो रात भर चुदास से छटपटाती रहती क्योंकि चुदवाने का चस्का जो पड़ गया था। अचानक उनके शैतानी दिमाग ने इसका भी तरीका निकाल लिया।
दरअसल चौधरी के मकान में आंगन पीछे की तरफ़ था उसके बाद दीवार थी, जिससे चौधरी साहब का दूसरा मकान जुड़ा था उस मकान में आधे में मवेशी घर था, जहाँ जानवरों के बँधे रहते थे, बाकि के आधे में चौधरी साहब की पँचायत का कमरा था जो पँचायतघर कहलाता था जिसमें जरूरत पड़ने पर शाम को चौधरी साहब पँचायत लगाते थे उस कमरे में दिन दोपहर में कोई भी नहीं रहता था। दिन दोपहर में अक्सर चौधराइन इस कमरे का इस्तेमाल नौकरों का हिसाब किताब करने के लिए करती थीं क्योंकि यहाँ एकान्त रहता था और वो सुकून से अपना हिसाब किताब बिना व्यवधान के कर सकती थी। कमरे में लोगों के बैठने के लिए दरी बिछी थी, एक चौकी थी और उस पर एक गद्दा व गाव तकिया लगे रहते थे, उसी पर बैठ चौधरी पँचायत और चौधराइन नौकरों का हिसाब करती थीं। इस मकान के बाद सड़क थी इसलिये नौकर चाकर बाहर ही बाहर आ जा सकते थे पर चौधरी और चौधराइन अपने मकान के अन्दर से भी आ जा सकते थे । चौधराइन को ये जगह जच गई और कोफ़्त हुआ कि अभी तक उन्हें ये जगह क्यों न सूझी । बस उन्होंने बेला के हाथ वहाँ की अतिरिक्त चाभी दे उससे कहा कि इसे मदन को दे देना और उसे रात बारह बजे के बाद पँचायत घर आने को बोलना । बेला को भी मदन से उस दिन चुदवाने के बाद से मौका नहीं लगा था क्योंकि इस माह कई त्योहार थे उनकी छुट्टियों के कारण उसका मर्द आजकल घर आया हुआ था, और पति को शक हो जाने के डर से बगिया वाले मकान पर जा नही पाई थी, उसे तो जाने का बस बहाना चाहिये था, सो वो खुशी खुशी जाने को राजी हो गयी।
मदन दोपहर में बगिया वाले मकान पर खाली बैठा मक्खियाँ मार रहा था क्योंकि जैसा कि मैने पहले बताया इस माह कई त्योहार थे सो उनकी छुट्टियों के कारण गाँव की सभी चुदक्कड़ औरतों के मर्द और भाई बन्द आये हुए थे। पिछले कई दिनों से उसे कोई चूत नहीं मिली थी । बेला को देख उसकी बाछें खिल गई।
मदन –“अरे आओ बेला चाची! बहुत दिनों पे दिखाई दीं लगता है इस भतीजे को भूल ही गईं क्या ।”
बेला –“ अरे नहीं बेटा! काम काज से छुट्टी ही नहीं मिलती, वो तो आज चौधराइन ने जरूरी बात बताने भेजा है इसलिए छुट्टी मिली।”
मदन –“भरी दुपहरी में आई हो अन्दर चलके पानी वानी पी लो बात कहीं भागी नहीं जा रही सुन लूंगा।”
बेला समझ गई कि मदन आज बिना चोदे न जाने देगा, चाहती वो भी यही थी सो मन ही मन खुश होकर पर ऊपर से नखरा दिखा बोली –“ अच्छा बेटा! भगवान भला करे पर मैं हुँ जरा जल्दी में चौधराइन का बड़ा काम फ़ैला छोड़ के आई हूँ।”
ऐसे बोल अन्दर को चल दी जबकि वो चौधराइन को बोल के आई थी कि उसे कुछ दूसरे घरों का काम निबटाना है सो अब वो अगर आ सकी तो शाम को छ: सात बजे के करीब आयेगी। मदन उसके अपने भारी चूतड़ों और पपीते सी विशाल चूचियों को ललचाई आँखों से घूरते पीछे पीछे अन्दर आया और दरवाजा अन्दर से बन्द कर उसे पानी दिया और पूछा –“अब बताओ क्या कहलवाया है चाची ने ।”
मदन को अन्दर आ दरवाजा बन्द करते देख बेला अर्थ पूर्ण ढ़ंग से मुस्कुराई और बोली –“चौधराइन ने ये पँचायत घर की चाभी भिजवाई है और रात बारह बजे वहाँ आने को कहा है। अभी आराम कर रात में मजे करना ।
मदन ने चाभी ले ली और बेला को बिस्तर पर गिराते हुए बोला –“अरे मैं तो आराम ही कर रहा था तुम भी तो थोड़ा आराम कर लो चाची ।
बेला –“ अरे अरे क्या कर रहे हो बेटा अपनी ये ताकत रात के लिए बचा के रख। दरवाजा खोल दे और मुझे जाने दे।”
मदन –“ रात के लिए अभ्यास तो करा दो चाची ।
बेला –“अरे जाने दे बेटा तुझे किसी अभ्यास की जरूरत नहीं, मैं क्या जानती नहीं ।”
बेला के इस अरे अरे और बात चीत के बीच मदन ने फ़ुर्ती से उसकी नाभी के पास हाथ डाल उसकी धोती की प्लेटें(चुन्नटें) बाहर निकाल और पेटीकोट का नारा खींच धोती और पेटीकोट एक ही झटके में निकाल फ़ेंका और अगले ही क्षण बेला सिर्फ़ ब्लाउज में नंगधड़ग बिस्तर पर पड़ी थी। तभी मदन बड़े बड़े चूतड़ माँसल जाघें देख उसके ऊपर कूदा तो बेला हँसते हुए बोली –“आराम से मदन बेटा मैं क्या कहीं भागी जा रही हूँ।”
मदन (उसका ब्लाउज खोलते हुए) –“ अभी तो कह रही थीं कि चौधराइन चाची का बड़ा काम फ़ैला छोड़ के आई हो, अब कह रही हो क्या मैं कहीं भागी जा रही हूँ
बेला(मुस्कुराते हुए दोनो हाथ ऊपर कर ब्लाउज उतारने में मदद करते हुए) –“अरे वो तो मैं तुझे चिढ़ा रही थी मैं तो चौधराइन से बोल के आई हूँ कि कुछ दूसरे घरों का काम निबटाना है सो अब तो शाम को छ: सात बजे के करीब आऊँगी।
मदन(उसकी ब्रा उतारते हुए) –“फ़िर क्या मजे लो, पर ये क्या चाची तुम भतीजे चिढ़ा के तड़पाती हो ।
बेला(मुस्कुरा के) –“जब भतीजे से चुदवा ही लिया तो चिढ़ा के तड़पाने मे क्या है तड़पने मे जोश बढ़ता है।
ब्रा उतरते ही बेला की बड़ी बड़ी चूचियाँ फ़ड़फ़ड़ाई मदन ने जिन्हे मदन ने दोनों हाथों मे दबोच उनपर मुँह मारते हुए कहा –“तो चाची अब देखो मेरा जोश।”
मदन ने पिछले दो दिन बिना चूत के बिताये थे सो बेला चाची को खूब पटक पटक के चोदा । मारे मजे के बेला मालिन ने अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल के किलकारियाँ भर भर के चुदवाया। शायद रात में मनपसन्द चौधराइन की चूत मिलने की सोच सोच कुछ ज्यादा ही जोश मे चोदा । उसके बाद भी मदन ने उसे जाने न दिया और उसकी सेर सेर भर की चूचियाँ थाम, उसकी मोटी मोटी जाँघों और बड़े बड़े चूतड़ों के बीच अपना लण्ड दबा के चिपक के शाम साढ़े चार बजे तक सोया।
उस रात मदन पँचायतघर करीब पौने बारह बजे पहुँचा। दरवाजा खोल के अन्दर गया और गद्दा व गाव तकिया लगी चौकी पर बैठ गया । करीब बारह बजे चौधराइन घर के अन्दर से वहाँ आयीं और उसी चौकी पर बेखटके इत्मीमान से मदन से लिपट लिपट रात भर सोईं मतलब चुदवाती सोती जागती रहीं और सुबह होने से पहले बिना किसी को शक हुए अन्दर ही अन्दर अपने घर अपने कमरे में वापस चली गई। पँचायतघर का इन्तजाम देख उसने मन ही मन चौधराइन के दिमाग की दाद दी।
अब क्या था दोपहर को सदानन्द, रात में मदन, चौधराइन की चूत को पूरा आराम सुकून हो गया ।
अचानक एक दिन के 11 बजे चौधराइन ने मदन को बुला भेजा। मदन को ताज्जुब हुआ क्योंकि इस समय आमतौर पे उसके पिता पण्डित सदानन्द का बुलावा आता था। नौकरानियां घर के काम में व्यस्त थीं, कम उम्र के बच्चे इधर-उधर दौड़ रहे थे और आंगन में कुछ नौकर सफाई कर रहे थे। पता चला कि चौधरी साहब खेत पर जा चुके हैं। मदन चौकी पर आराम से बैठ गया। तभी चौधराइन आई और मदन के बगल में बैठ गई।
माया देवी(चौधराइन) ने उसका हाथ पकड़ कर एक लड़के की तरफ इशारा करके पूछा,"वो कौन है मदन?"
वो लड़का आंखें नीची करके अनाज बोरे में डाल रहा था। उसने सिर्फ हाफ-पैंट पहन रखा था।
"हां, मैं जानता हूँ, वो गोपाल है, श्रीपाल का भाई !" मदन ने चौधराइन को जवाब दिया।
श्रीपाल मदन के घर का पुराना नौकर था और पिछले 8-9 सालों से काम कर रहा था। चौधराइन उसको जानती थी।
मदन ने पूछा,"क्यों, क्या काम है उस लड़के से?"
चौधराइन ने इधर उधर देखा और अपने कमरे में चली गई। एक दो मिनट के बाद उन्होंने मदन को इशारे से अन्दर बुलाया। वो अन्दर गया और मायादेवी ने झट से हाथ पकड़ कर कहा,"बेटा, मेरा एक काम कर दे... पर देख किसी को पता न चले।"
"बताइये चाची! कौन सा काम ?"
जवाब में उन्होंने जो कहा वो सुनकर मदन हक्का बक्का रह गया।
"बेटा, मुझे गोपाल से चुदवाना है...!"
मदन चौधराइन को देखता रह गया। उसने कितनी आसानी से बेटे के उम्र के लड़के से चुदवाने की बात कह दी.....
"क्या कह रही हो.....ऐसा कैसे हो सकता है...." मदनने कहा।
"मैं कुछ नहीं जानती, जब से तुझसे चुदवाया है मुझे छोटी उमर के लड़कों से चुदवाने का चस्का लग गया है, मैं सुबह से अपने को रोक रही थी, उसको देखते ही मेरी चूत गरम हो चुलबुलाने लगती है, मेरा मन करता है की नंगी होकर सबके सामने उसका लण्ड अपनी चूत के अन्दर ले लूँ !" चौधराइन ने मदन के सामने अपनी चूत को ऊपर से खुजाते हुए कहा,"कुछ भी करो, बेटा गोपाल का लण्ड मुझे अभी चूत के अन्दर चाहिए !"
चौधराइन की बातें सुनकर मदन का सर चकराने लगा था। मदनने कभी नहीं सोचा था कि चौधराइन, इतनी आसानी से दूसरे लड़कों के बारे में उससे बात करेगी। वो सोचने लगा कि गोपाल, अपने से 20-22 साल बड़ी, चौधराइन, उसकी ही उमर की लड़की की अम्मा को कैसे चोद पायेगा। मुझे लगा कि गोपाल का लण्ड अब तक चुदाई के लिये तैयार नहीं हुआ होगा।
"चौधराइन, वो गोपाल तो अभी बहुत छोटा है.. वो तुम्हें नहीं चोद पायेगा...." मदन ने चौधराइन की बड़े कटीले लंगड़ा आम के साइज की चूची पर हाथ फेरते हुए कहा,"चलिये आपका बहुत मन कर रहा है तो मैं इसी वख्त आपकी चोद देता हूँ..!"
मदन चूची मसल रहा था, चौधराइन ने उसका हाथ अलग नहीं किया। "बेटा, तू तो चोदता ही है फ़िर चोद लेना, लेकिन पहले गोपाल से मुझे चुदवा दे...अब देर मत कर ....बदले में तू जो बोलेगा वो सब करुंगी... तू किसी और लड़की या औरत को चोदना चाहता है तुझे आज से पूरी छूट है यहाँ तक कि अगर तू कहेगा तो मैं गाँव की चौधराइन हूँ, खुद उसका इंतज़ाम कर दूंगी, लेकिन तू अभी अपनी चौधराइन चाची को गोपाल से चुदवा दे.. मेरी चूत बुरी तरह गीली हो रही है।, तुझे बस उसे पँचायतघर में लेके आना है। बाकि मैं देख लूँगी। "
पँचायतघर का नाम सुन मदन का दिमाग सन्नाटे में आ गया । उसने मन ही मन चौधराइन के दिमाग की दाद दी । चौधराइन ने खुद से चुदाई की पेशकश की है तो कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा। मदन ने चौधराइन चाची को अपनी बांहों में लेकर उसके टमाटर जैसे गालों को चूमा और उनकी दोनों मस्त लंगड़ा आमों जैसी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से सहलाते हुए कहा," आप थोड़ा इन्तज़ार करें...मैं कुछ करता हूँ !" यह कहकर वो बाहर निकल कर आ गया।
उसने करीब पाँच दस मिनट इधर उधर घूमकर समय बिताया ताकि चौधराइन को लगे कि उसने उनके काम के लिए काफ़ी जोड़ तोड़ मेहनत की है फ़िर वो वापस आया। चौधराइन अपने कमरे में मिलीं मदन उनके बगल में बैठ गया और कहा कि वो दस मिनट के बाद पँचायतघर में पहुँचे ,वहाँ से उठ कर वो आंगन में ग़ोपाल के पास आया, उसने देखा चौधराइन भी पीछे बाहर आंगन में आ गई थीं। उसने गोपाल की पीठ थप-थपा कर साथ आने को कहा। वो बिना कुछ बोले साथ हो लिया। मदन ने कनखियों से देखा चौधराइन के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी।
गोपाल को लेकर पँचायतघर में आया और दरवाज़ा खुला रहने दिया। मदन आकर गद्दे पर लेट गया और गोपाल से कहा कि मेरे पैर दर्द कर रहे हैं, दबा दे.. यह कहते हुये उसने अपना पजामा बाहर निकाल दिया। नीचे उसने जांघिया पहना था। ग़ोपाल पांव दबाने लगा और मैं उससे उसके घर की बातें करने लगा।
वैसे तो गोपाल के घरवाले मदन के घर में सालों से काम करते हैं फिर भी वो कभी उसके घर नहीं गया था। गोपाल की दादी को भी उसने अपने घर में काम करते देखा था और अभी उसकी माँ और भैया काम करते हैं। गोपाल ने बताया कि उसकी एक बहन है और उसकी शादी की बात चल रही है। वो बोला कि उसकी भाभी बहुत अच्छी है और उसे बहुत प्यार करती है।
अचानक मदन ने उससे पूछा कि उसने अपने भाई को अपनी बीबी यानि के तेरी भाभी को चोदते देखा है कि नही। ग़ोपाल शरमा गया और जब मदनने दोबारा पूछा तो जैसा उसने सोचा था, उसने कहा कि हाँ उसने चोदते देखा है।
मदन ने फिर पूछा कि चोदने का मन करता है या नहीं?
तो उसने शरमाते हुये कहा कि जब वो कभी अपनी भाभी को अपने भैया से चुदवाते देखता है तो उसका भी मन चोदने को करता है। ग़ोपाल ने कहा कि रात में वो अपनी माँ के कमरे में सोता था । लेकिन पिछले एक साल से भैया भाभी की चुदाई देख कर उसका भी लण्ड टाईट हो जाता है। इसलिए वो अब अलग सोता है।
"फिर तुम अपनी भाभी को ही क्यों नहीं चोद देते..." मदन ने पूछा,
लेकिन गोपाल के जबाब देने के पहले चौधराइन मायादेवी कमरे में आ गई और उसने अन्दर से दरवाजा बन्द कर दिया। ग़ोपाल उठकर जाने लगा तो मदन ने उसे रोक लिया। गोपाल ने एक बार चौधराइन के तरफ देखा और फिर पैर दबाने लगा।
"क्या हुआ चौधराइन चाची?"
"अरे बेटा, मेरे पैर भी बहुत दर्द कर रहे है, थोड़ा दबा दे !" मायादेवी बोलते बोलते मेरे बगल में लेट गई। मदन उठ कर बैठ गया और चौधराइन को बिछौने के बीचोंबीच लेटने को कहा।
मदन चौधराइन का एक पैर दबाने लगा ।
क्रमश:……………………………
भाग 20 – नया चस्का 1
यहाँ तक की कहानी सुना के मदन बोला –“तो चौधराइन चाची ये थी, मेरी ट्रेनिंग़ की कहानी। मुझे मेरी मामी उस्ताद बनाया।”
इस गरम कहानी के बीच एक बार चौधराइन चाची चुदास से गरमा कर मदन से चुदवा के मस्त हो चुकीं थीं । पर कहानी खतम होते होते मदन पूरे मूड मे आ चुका था सो मदन ने अपनी एक टांग उठा, उनकी जांघो पर रखते हुए, उसके पैरो को अपने दोनो पैरों के बीच करते हुए, लण्ड को पेटिकोट के ऊपर से चूत पर सटाते हुए, उसके होठों से अपने होठों को सटा उसका मुंह बन्द कर दिया। रसीले होठों को अपने होठों के बीच दबोच, चूसते हुए अपनी जीभ को उसके मुंह में ठेल, उसके मुंह में चारो तरफ घुमाते हुए चुम्मा लेने लगा।
कुछ पल तो माया देवी के मुंह से ...उम्म...उम्म... करके गुंगियाने की आवाज आती रही, मगर फिर वो भी अपनी जीभ को ठेल-ठेल कर पूरा सहयोग करने लगी। दोनो आपस में लिपटे हुए, अपने पैरों से एक दूसरे को रगड़ते हुए, चुम्मा-चाटी कर रहे थे। मदन ने अपने हाथ कमर से हटा उसकी चूचियों पर रख दिया था, और ब्लाउज के ऊपर से उन्हे दबाने लगा। माया देवी ने जल्दी से अपने होठों को उसके चुम्बन से छुडाया. दोनो हांफ रहे थे, और दोनो का चेहरा लाल हो गया था। मदन के हाथों को अपनी चूचियों पर से हटाती हुई बोली,
“इस्स,हट,,,,,,,क्या करता है…?"
मदन ने माया देवी का हाथ को पकड़, अपनी लुंगी के भीतर डाल, अपना लण्ड उसके हाथ में पकड़ा दिया। माया देवी ने अपना हाथ पीछे खींचने की कोशिश की, मगर उसने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी खोल, अपना गरम तपता हुआ खड़ा लण्ड उसके हाथ में पकड़ा दिया। लण्ड की गरमी पा कर उसका हाथ अपने आप लण्ड पर कसता चला गया।
“…। तेरा मन नही भरता क्या?”
लण्ड को पूरी ताकत से मरोड़ती, दांत पीसती बोली।
“हाय,,,,,,!!! …एक बार और करने दे…ना,,,,!!”,
कहते हुए, मदन ने उसके घुटनो तक सिमट आये पेटिकोट के भीतर झटके से हाथ डाल चूत दबोच ली। माया देवी ने चिहुंक कर लण्ड को छोड़, पेटिकोट के भीतर उसके हाथ से चूत छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली,
“इस्स्स्स,,,,,…क्या करता है,,,??…कहाँ हाथ घुसा रहा…???”
मदन जबरदस्ती उसकी जांघो के बीच हाथ से चूत को मसलता हुआ बोला,
“हाय,,,,,,,,एक बार और…देख ना कैसे खड़ा…??!!”
“उफफफ्,,,,,हाथ हटा,,,,,। बहुत बिगड़ गया है, तु…??”
मदन का हाथ गीला हो गया था चौधराइन की चूत पनिया गई थी। मदन बोला,
“हाय,,,,पनिया गई है,,,,तेरी चु…”
माया देवी उसकी कलाई पकड़, रोकने की कोशिश करती बोली,
“उफफ्,,,,,छोड़,,,,,ना,,,!,,,,क्या करता है,,,,?…वो पानी तो पहले का है…।"
एक हाथ से लुंगी को लण्ड पर से हटाता हुआ बोला,
“पहले का कहाँ से आयेगा ??…देख, इस पर लगा पानी तो कब का सुख गया…।"
नंगा, खड़ा लण्ड देखते ही चौधराइन, आंखे चुराती, कनखियों से देखती हुई बोली,
“तेरा लुंगी से पौंछ गया होगा,,,,,,मेरा अन्दर, कैसे सुखेगा…??”,
कहते हुए, मदन के हाथ को पेटिकोट के अन्दर से खींच दिया। पेटिकोट जांघो तक उठ चुका था। लण्ड को अपने हाथ से पकड़, दिखाता हुआ मदन बोला,
“…। एक बार और्…तेरी चु…”
“चुप,,,बेशरम,,,,बहुत देर हो चुकी है…”
“हाय चाची,,,,कहानी कहते कहते मन …बस एक बार और…”
“हर बार तू यही कहता है रात भर तु यही करता रहता था, क्या…???”
“…तीन…चार…बार तो करता ही था ......छोड़ो उसे …बस एक बार और…”,
कहते हुए, फिर से उसके पेटिकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की।
“उफफ्,,,,सीईईईई…। कमीने छोड़…। घड़ी देख…। क्या टाईम हुआ…???”
मदन ने घड़ी देखी। सुबह के ४:३० बज रहे थे. मदन के किस्से में टाईम का पता ही नही चला था.
अब चौधराइन की चूत की बन आई दोपहर में बाप सदानन्द से और हर दूसरे तीसरे दिन किसी बहाने से रात में बगिया वाले मकान में सदानन्द के बेटे मदन से अपनी चूत जम के बजवाती। रोज रात को इसलिए नहीं कि कहीं किसी को शक न हो जाय सो जिस जिस दिन बगिया वाले मकान पे जाने का कोई बहाना न मिलता वो रात भर चुदास से छटपटाती रहती क्योंकि चुदवाने का चस्का जो पड़ गया था। अचानक उनके शैतानी दिमाग ने इसका भी तरीका निकाल लिया।
दरअसल चौधरी के मकान में आंगन पीछे की तरफ़ था उसके बाद दीवार थी, जिससे चौधरी साहब का दूसरा मकान जुड़ा था उस मकान में आधे में मवेशी घर था, जहाँ जानवरों के बँधे रहते थे, बाकि के आधे में चौधरी साहब की पँचायत का कमरा था जो पँचायतघर कहलाता था जिसमें जरूरत पड़ने पर शाम को चौधरी साहब पँचायत लगाते थे उस कमरे में दिन दोपहर में कोई भी नहीं रहता था। दिन दोपहर में अक्सर चौधराइन इस कमरे का इस्तेमाल नौकरों का हिसाब किताब करने के लिए करती थीं क्योंकि यहाँ एकान्त रहता था और वो सुकून से अपना हिसाब किताब बिना व्यवधान के कर सकती थी। कमरे में लोगों के बैठने के लिए दरी बिछी थी, एक चौकी थी और उस पर एक गद्दा व गाव तकिया लगे रहते थे, उसी पर बैठ चौधरी पँचायत और चौधराइन नौकरों का हिसाब करती थीं। इस मकान के बाद सड़क थी इसलिये नौकर चाकर बाहर ही बाहर आ जा सकते थे पर चौधरी और चौधराइन अपने मकान के अन्दर से भी आ जा सकते थे । चौधराइन को ये जगह जच गई और कोफ़्त हुआ कि अभी तक उन्हें ये जगह क्यों न सूझी । बस उन्होंने बेला के हाथ वहाँ की अतिरिक्त चाभी दे उससे कहा कि इसे मदन को दे देना और उसे रात बारह बजे के बाद पँचायत घर आने को बोलना । बेला को भी मदन से उस दिन चुदवाने के बाद से मौका नहीं लगा था क्योंकि इस माह कई त्योहार थे उनकी छुट्टियों के कारण उसका मर्द आजकल घर आया हुआ था, और पति को शक हो जाने के डर से बगिया वाले मकान पर जा नही पाई थी, उसे तो जाने का बस बहाना चाहिये था, सो वो खुशी खुशी जाने को राजी हो गयी।
मदन दोपहर में बगिया वाले मकान पर खाली बैठा मक्खियाँ मार रहा था क्योंकि जैसा कि मैने पहले बताया इस माह कई त्योहार थे सो उनकी छुट्टियों के कारण गाँव की सभी चुदक्कड़ औरतों के मर्द और भाई बन्द आये हुए थे। पिछले कई दिनों से उसे कोई चूत नहीं मिली थी । बेला को देख उसकी बाछें खिल गई।
मदन –“अरे आओ बेला चाची! बहुत दिनों पे दिखाई दीं लगता है इस भतीजे को भूल ही गईं क्या ।”
बेला –“ अरे नहीं बेटा! काम काज से छुट्टी ही नहीं मिलती, वो तो आज चौधराइन ने जरूरी बात बताने भेजा है इसलिए छुट्टी मिली।”
मदन –“भरी दुपहरी में आई हो अन्दर चलके पानी वानी पी लो बात कहीं भागी नहीं जा रही सुन लूंगा।”
बेला समझ गई कि मदन आज बिना चोदे न जाने देगा, चाहती वो भी यही थी सो मन ही मन खुश होकर पर ऊपर से नखरा दिखा बोली –“ अच्छा बेटा! भगवान भला करे पर मैं हुँ जरा जल्दी में चौधराइन का बड़ा काम फ़ैला छोड़ के आई हूँ।”
ऐसे बोल अन्दर को चल दी जबकि वो चौधराइन को बोल के आई थी कि उसे कुछ दूसरे घरों का काम निबटाना है सो अब वो अगर आ सकी तो शाम को छ: सात बजे के करीब आयेगी। मदन उसके अपने भारी चूतड़ों और पपीते सी विशाल चूचियों को ललचाई आँखों से घूरते पीछे पीछे अन्दर आया और दरवाजा अन्दर से बन्द कर उसे पानी दिया और पूछा –“अब बताओ क्या कहलवाया है चाची ने ।”
मदन को अन्दर आ दरवाजा बन्द करते देख बेला अर्थ पूर्ण ढ़ंग से मुस्कुराई और बोली –“चौधराइन ने ये पँचायत घर की चाभी भिजवाई है और रात बारह बजे वहाँ आने को कहा है। अभी आराम कर रात में मजे करना ।
मदन ने चाभी ले ली और बेला को बिस्तर पर गिराते हुए बोला –“अरे मैं तो आराम ही कर रहा था तुम भी तो थोड़ा आराम कर लो चाची ।
बेला –“ अरे अरे क्या कर रहे हो बेटा अपनी ये ताकत रात के लिए बचा के रख। दरवाजा खोल दे और मुझे जाने दे।”
मदन –“ रात के लिए अभ्यास तो करा दो चाची ।
बेला –“अरे जाने दे बेटा तुझे किसी अभ्यास की जरूरत नहीं, मैं क्या जानती नहीं ।”
बेला के इस अरे अरे और बात चीत के बीच मदन ने फ़ुर्ती से उसकी नाभी के पास हाथ डाल उसकी धोती की प्लेटें(चुन्नटें) बाहर निकाल और पेटीकोट का नारा खींच धोती और पेटीकोट एक ही झटके में निकाल फ़ेंका और अगले ही क्षण बेला सिर्फ़ ब्लाउज में नंगधड़ग बिस्तर पर पड़ी थी। तभी मदन बड़े बड़े चूतड़ माँसल जाघें देख उसके ऊपर कूदा तो बेला हँसते हुए बोली –“आराम से मदन बेटा मैं क्या कहीं भागी जा रही हूँ।”
मदन (उसका ब्लाउज खोलते हुए) –“ अभी तो कह रही थीं कि चौधराइन चाची का बड़ा काम फ़ैला छोड़ के आई हो, अब कह रही हो क्या मैं कहीं भागी जा रही हूँ
बेला(मुस्कुराते हुए दोनो हाथ ऊपर कर ब्लाउज उतारने में मदद करते हुए) –“अरे वो तो मैं तुझे चिढ़ा रही थी मैं तो चौधराइन से बोल के आई हूँ कि कुछ दूसरे घरों का काम निबटाना है सो अब तो शाम को छ: सात बजे के करीब आऊँगी।
मदन(उसकी ब्रा उतारते हुए) –“फ़िर क्या मजे लो, पर ये क्या चाची तुम भतीजे चिढ़ा के तड़पाती हो ।
बेला(मुस्कुरा के) –“जब भतीजे से चुदवा ही लिया तो चिढ़ा के तड़पाने मे क्या है तड़पने मे जोश बढ़ता है।
ब्रा उतरते ही बेला की बड़ी बड़ी चूचियाँ फ़ड़फ़ड़ाई मदन ने जिन्हे मदन ने दोनों हाथों मे दबोच उनपर मुँह मारते हुए कहा –“तो चाची अब देखो मेरा जोश।”
मदन ने पिछले दो दिन बिना चूत के बिताये थे सो बेला चाची को खूब पटक पटक के चोदा । मारे मजे के बेला मालिन ने अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल के किलकारियाँ भर भर के चुदवाया। शायद रात में मनपसन्द चौधराइन की चूत मिलने की सोच सोच कुछ ज्यादा ही जोश मे चोदा । उसके बाद भी मदन ने उसे जाने न दिया और उसकी सेर सेर भर की चूचियाँ थाम, उसकी मोटी मोटी जाँघों और बड़े बड़े चूतड़ों के बीच अपना लण्ड दबा के चिपक के शाम साढ़े चार बजे तक सोया।
उस रात मदन पँचायतघर करीब पौने बारह बजे पहुँचा। दरवाजा खोल के अन्दर गया और गद्दा व गाव तकिया लगी चौकी पर बैठ गया । करीब बारह बजे चौधराइन घर के अन्दर से वहाँ आयीं और उसी चौकी पर बेखटके इत्मीमान से मदन से लिपट लिपट रात भर सोईं मतलब चुदवाती सोती जागती रहीं और सुबह होने से पहले बिना किसी को शक हुए अन्दर ही अन्दर अपने घर अपने कमरे में वापस चली गई। पँचायतघर का इन्तजाम देख उसने मन ही मन चौधराइन के दिमाग की दाद दी।
अब क्या था दोपहर को सदानन्द, रात में मदन, चौधराइन की चूत को पूरा आराम सुकून हो गया ।
अचानक एक दिन के 11 बजे चौधराइन ने मदन को बुला भेजा। मदन को ताज्जुब हुआ क्योंकि इस समय आमतौर पे उसके पिता पण्डित सदानन्द का बुलावा आता था। नौकरानियां घर के काम में व्यस्त थीं, कम उम्र के बच्चे इधर-उधर दौड़ रहे थे और आंगन में कुछ नौकर सफाई कर रहे थे। पता चला कि चौधरी साहब खेत पर जा चुके हैं। मदन चौकी पर आराम से बैठ गया। तभी चौधराइन आई और मदन के बगल में बैठ गई।
माया देवी(चौधराइन) ने उसका हाथ पकड़ कर एक लड़के की तरफ इशारा करके पूछा,"वो कौन है मदन?"
वो लड़का आंखें नीची करके अनाज बोरे में डाल रहा था। उसने सिर्फ हाफ-पैंट पहन रखा था।
"हां, मैं जानता हूँ, वो गोपाल है, श्रीपाल का भाई !" मदन ने चौधराइन को जवाब दिया।
श्रीपाल मदन के घर का पुराना नौकर था और पिछले 8-9 सालों से काम कर रहा था। चौधराइन उसको जानती थी।
मदन ने पूछा,"क्यों, क्या काम है उस लड़के से?"
चौधराइन ने इधर उधर देखा और अपने कमरे में चली गई। एक दो मिनट के बाद उन्होंने मदन को इशारे से अन्दर बुलाया। वो अन्दर गया और मायादेवी ने झट से हाथ पकड़ कर कहा,"बेटा, मेरा एक काम कर दे... पर देख किसी को पता न चले।"
"बताइये चाची! कौन सा काम ?"
जवाब में उन्होंने जो कहा वो सुनकर मदन हक्का बक्का रह गया।
"बेटा, मुझे गोपाल से चुदवाना है...!"
मदन चौधराइन को देखता रह गया। उसने कितनी आसानी से बेटे के उम्र के लड़के से चुदवाने की बात कह दी.....
"क्या कह रही हो.....ऐसा कैसे हो सकता है...." मदनने कहा।
"मैं कुछ नहीं जानती, जब से तुझसे चुदवाया है मुझे छोटी उमर के लड़कों से चुदवाने का चस्का लग गया है, मैं सुबह से अपने को रोक रही थी, उसको देखते ही मेरी चूत गरम हो चुलबुलाने लगती है, मेरा मन करता है की नंगी होकर सबके सामने उसका लण्ड अपनी चूत के अन्दर ले लूँ !" चौधराइन ने मदन के सामने अपनी चूत को ऊपर से खुजाते हुए कहा,"कुछ भी करो, बेटा गोपाल का लण्ड मुझे अभी चूत के अन्दर चाहिए !"
चौधराइन की बातें सुनकर मदन का सर चकराने लगा था। मदनने कभी नहीं सोचा था कि चौधराइन, इतनी आसानी से दूसरे लड़कों के बारे में उससे बात करेगी। वो सोचने लगा कि गोपाल, अपने से 20-22 साल बड़ी, चौधराइन, उसकी ही उमर की लड़की की अम्मा को कैसे चोद पायेगा। मुझे लगा कि गोपाल का लण्ड अब तक चुदाई के लिये तैयार नहीं हुआ होगा।
"चौधराइन, वो गोपाल तो अभी बहुत छोटा है.. वो तुम्हें नहीं चोद पायेगा...." मदन ने चौधराइन की बड़े कटीले लंगड़ा आम के साइज की चूची पर हाथ फेरते हुए कहा,"चलिये आपका बहुत मन कर रहा है तो मैं इसी वख्त आपकी चोद देता हूँ..!"
मदन चूची मसल रहा था, चौधराइन ने उसका हाथ अलग नहीं किया। "बेटा, तू तो चोदता ही है फ़िर चोद लेना, लेकिन पहले गोपाल से मुझे चुदवा दे...अब देर मत कर ....बदले में तू जो बोलेगा वो सब करुंगी... तू किसी और लड़की या औरत को चोदना चाहता है तुझे आज से पूरी छूट है यहाँ तक कि अगर तू कहेगा तो मैं गाँव की चौधराइन हूँ, खुद उसका इंतज़ाम कर दूंगी, लेकिन तू अभी अपनी चौधराइन चाची को गोपाल से चुदवा दे.. मेरी चूत बुरी तरह गीली हो रही है।, तुझे बस उसे पँचायतघर में लेके आना है। बाकि मैं देख लूँगी। "
पँचायतघर का नाम सुन मदन का दिमाग सन्नाटे में आ गया । उसने मन ही मन चौधराइन के दिमाग की दाद दी । चौधराइन ने खुद से चुदाई की पेशकश की है तो कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा। मदन ने चौधराइन चाची को अपनी बांहों में लेकर उसके टमाटर जैसे गालों को चूमा और उनकी दोनों मस्त लंगड़ा आमों जैसी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से सहलाते हुए कहा," आप थोड़ा इन्तज़ार करें...मैं कुछ करता हूँ !" यह कहकर वो बाहर निकल कर आ गया।
उसने करीब पाँच दस मिनट इधर उधर घूमकर समय बिताया ताकि चौधराइन को लगे कि उसने उनके काम के लिए काफ़ी जोड़ तोड़ मेहनत की है फ़िर वो वापस आया। चौधराइन अपने कमरे में मिलीं मदन उनके बगल में बैठ गया और कहा कि वो दस मिनट के बाद पँचायतघर में पहुँचे ,वहाँ से उठ कर वो आंगन में ग़ोपाल के पास आया, उसने देखा चौधराइन भी पीछे बाहर आंगन में आ गई थीं। उसने गोपाल की पीठ थप-थपा कर साथ आने को कहा। वो बिना कुछ बोले साथ हो लिया। मदन ने कनखियों से देखा चौधराइन के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी।
गोपाल को लेकर पँचायतघर में आया और दरवाज़ा खुला रहने दिया। मदन आकर गद्दे पर लेट गया और गोपाल से कहा कि मेरे पैर दर्द कर रहे हैं, दबा दे.. यह कहते हुये उसने अपना पजामा बाहर निकाल दिया। नीचे उसने जांघिया पहना था। ग़ोपाल पांव दबाने लगा और मैं उससे उसके घर की बातें करने लगा।
वैसे तो गोपाल के घरवाले मदन के घर में सालों से काम करते हैं फिर भी वो कभी उसके घर नहीं गया था। गोपाल की दादी को भी उसने अपने घर में काम करते देखा था और अभी उसकी माँ और भैया काम करते हैं। गोपाल ने बताया कि उसकी एक बहन है और उसकी शादी की बात चल रही है। वो बोला कि उसकी भाभी बहुत अच्छी है और उसे बहुत प्यार करती है।
अचानक मदन ने उससे पूछा कि उसने अपने भाई को अपनी बीबी यानि के तेरी भाभी को चोदते देखा है कि नही। ग़ोपाल शरमा गया और जब मदनने दोबारा पूछा तो जैसा उसने सोचा था, उसने कहा कि हाँ उसने चोदते देखा है।
मदन ने फिर पूछा कि चोदने का मन करता है या नहीं?
तो उसने शरमाते हुये कहा कि जब वो कभी अपनी भाभी को अपने भैया से चुदवाते देखता है तो उसका भी मन चोदने को करता है। ग़ोपाल ने कहा कि रात में वो अपनी माँ के कमरे में सोता था । लेकिन पिछले एक साल से भैया भाभी की चुदाई देख कर उसका भी लण्ड टाईट हो जाता है। इसलिए वो अब अलग सोता है।
"फिर तुम अपनी भाभी को ही क्यों नहीं चोद देते..." मदन ने पूछा,
लेकिन गोपाल के जबाब देने के पहले चौधराइन मायादेवी कमरे में आ गई और उसने अन्दर से दरवाजा बन्द कर दिया। ग़ोपाल उठकर जाने लगा तो मदन ने उसे रोक लिया। गोपाल ने एक बार चौधराइन के तरफ देखा और फिर पैर दबाने लगा।
"क्या हुआ चौधराइन चाची?"
"अरे बेटा, मेरे पैर भी बहुत दर्द कर रहे है, थोड़ा दबा दे !" मायादेवी बोलते बोलते मेरे बगल में लेट गई। मदन उठ कर बैठ गया और चौधराइन को बिछौने के बीचोंबीच लेटने को कहा।
मदन चौधराइन का एक पैर दबाने लगा ।
क्रमश:……………………………
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
चौधराइन
भाग 21 – नया चस्का 2
ग़ोपाल चुपचाप खड़ा था। उससे मदन ने दूसरा पैर दबाने के लिये कहा लेकिन वो खड़ा ही रहा।
"अरे ग़ोपाल, तुम खड़े हो क्यों, दूसरा पांव दबाते क्यों नहीं चलो दबाओ !" चौधराइन माया देवी ने जब अपनी सधी आवाज में आदेश दिया तो गोपाल दूसरे पांव को दबाने लगा। चौधराइन ने मदन को मुस्कुरा के आंख मारी।
" चौधराइन चाची, कहाँ कहाँ दर्द कर रहा है?"
"अरे पूछ मत बेटा, पावों में कमर के नीचे और छाती में दर्द है, खूब जोर से दबाओ।"
चौधराइन ने खुल कर जाँघों, चूतड़ों और बड़ी बड़ी चूचियाँ दबाने का निमंत्रण दे दिया था। मदन पाँव से लेकर कमर तक मसल मसल कर मजा ले रहा था जब कि गोपाल सिर्फ घुटनों तक ही दबा रहा था। मदन ने गोपाल का हाथ पकड़ा और चौधराइन की जांघों के ऊपर सहलाया और कहा कि तुम भी नीचे से ऊपर तक दबाओ। वो हिचका लेकिन मुझे देख देख कर वो भी मायादेवी की शानदार सुडोल गुदाज जांघों लम्बी लम्बी टांगों को नीचे से ऊपर तक मसलने लगा।
2-3 मिनट तक इस तरह से मजा लेने के बाद मदन ने कहा,"चाची साड़ी उतार दें...तो और आसानी होगी..."
"अच्छा, बेटा,..."
"गोपाल, साड़ी खोल दे।" चौधराइन का आदेश गूँजा।
उसने चौधराइन की ओर देखा लेकिन साड़ी खोलने के लिये हाथ आगे नहीं बढ़ाया।
"गोपाल, शरमाते क्यों हो, तुमने तो कई बार अपनी भाभी को नंगी चुदवाते देखा है...यहां तो सिर्फ साड़ी उतारनी है, चल खोल दे।" और चौधराइन ने का गोपाल का हाथ पकड़ कर साड़ी की गांठ पर रखा। उसने शरमाते हुये गांठ खोली और मदन ने साड़ी चौधराइन के बदन से अलग कर दी। काले रंग के ब्लाऊज़ और साया में गजब की माल लग रही थी।
गोपाल को अपनी तरफ़ देखते देख चौधराइन मुस्कुराई, “क्या देख रहा है गोपाल?
"मालकिन, आप बहुत सुन्दर हैं..." अचानक गोपाल ने कहा और प्यार से जांघों को सहलाया।
"तू भी बहुत प्यारा है.." माया ने जबाब दिया और हौले से साया को अपनी घुटनों से ऊपर खींच लिया।
चौधराइन के सुडौल पैर और पिंडली किसी भी मर्द को गर्म करने के लिये काफी थे। वो दोनों पैर दबा रहे थे लेकिन उनकी नजर चौधराइन की मस्त, बड़ी बड़ी मांसल चूचियों पर थी। लग रहा था जैसे कि चूचियां ब्लाऊज़ को फाड़ कर बाहर निकल जायेंगी।
मदन का मन कर रहा था कि फटाफट चौधराइन को नंगा कर चूत मे लण्ड पेल दे। लण्ड भी चोदने के लिये तैयार हो चुका था। और इस बार घुटनों के ऊपर हाथ बढा कर मदन ने हाथ साया के अन्दर घुसेड़ दिया और मखमली जांघों को सहलाते हुये चूत पर हाथ रखा।
फ़ूली हुई खूब बड़ी सी करीब बित्ते भर की मुलायम चिकनी चूत। अच्छा तो चौधराइन ने झाँटे साफ़ कर दीं थीं। मदन से रहा नहीं गया मसल दिया।
एक नहीं, दो नहीं, कई बार लेकिन चौधराइन ने एक बार भी मना नहीं किया।
मदन ने महसूस किया सहलाने से उत्तेजित हो उनकी पुत्तियाँ उभर आयीं और चूत पानी छोड़ने लगी
चौधराइन साया पहने थी और चूत दिखाई नहीं पड़ रही थी। साया ऊपर नाभी तक बंधा हुआ था। मदन उनकी चिकनी की हुई चूत को देखना चाहता था। एक दो बार चूत को फिर से मसला और हाथ बाहर निकाल लिया।
" चौधराइन चाची, साया बहुत कसा बंधा हुआ है, थोड़ा ढीला कर लो.. "
मदन ने देखा कि गोपाल अब आराम से मायादेवी की जांघों को सहला मसल रहा था। गोपाल से कहा कि वो साये का नाड़ा खोल दे। तीन चार बार बोलने के बाद भी उसने नाड़ा नहीं खोला तो मदन ने ही नाड़ा खींच दिया और साया ऊपर से ढीला हो गया।
मदन पांव दबाना छोड़कर चौधराइन की कमर के पास आकर बैठ गया और साये को नीचे की तरफ ठेला। पहले तो उसका चिकना पेट दिखाई दिया और फिर नाभि। मदन ने कुछ पल तो नाभि को सहलाया और साया को और नीचे की ओर ठेला।
अब उसकी कमर और चूत के ऊपर का फ़ूला हुआ भाग दिखाई पड़ने लगा। अगर एक इंच और नीचे करता तो चूत दिखने लगती।
"आह बेटा, छाती में बहुत दर्द है.." माया ने धीरे से कहा । साया को वैसा ही छोड़कर मदनने अपने दोनों हाथ चौधराइन के मस्त और गुदाज लंगड़ा आमों (चूचियों) पर रखे और दबाया। गोपाल के दोनों हाथ अब सिर्फ जांघो के ऊपरी हिस्से पर चल रहा था और वो आंखे फाड़ कर देख रहा था कि ये लड़का कैसे चौधराइन की चूचियां दबा रहा है।
" चौधराइन चाची, ब्लाउज खोल दो तो और आसानी होगी" मदन ने दबाते हुए कहा।
"तो खोल दे न " उसने जबाब दिया और मदन ने झटपट ब्लाउज के सारे बटन खोल डाले और ब्लाउज और ब्रा को चौधराइन की चूचियों से अलग कर दिया।
ब्रा हटते ही लेटी हुई चौधराइन के नुकीले मस्त और गुदाज लंगड़ा आम अपने भार से गोल हो, बड़े बड़े खरबूजों में बदल गये, देख कर मदन झनझना गया और जम कर उन्हें दबाने मसलने लगा और ग़ोपाल से कहा,
"कितनी ठोस है, लगता है जैसे गेंद में किसी ने कस कर हवा भर दी है।" फ़िर घुन्डी को मसल के बोला " क्यों गोपाल कैसा लग रहा है?" मदन जोर जोर से चूचियों को दबा रहा था।
अचानक मदन ने देखा कि गोपाल का एक हाथ चौधराइन की दोनों जांघों के बीच साया के ऊपर घूम रहा है। मदन ने एक हाथ से चूची दबाते हुए गोपाल का वो हाथ पकड़ा और उसे चौधराइन की नाभि के ऊपर रख कर दबाया।
"देख, चिकना है कि नहीं?" ये कह मदन उसके हाथ को दोनों जांघों के बीच चूत की तरफ धकेलने लगा। अचानक मदन चौधराइन के ऊपर झुका और घुन्डी को चूसने लगा।
तभी चौधराइन ने फुसफुसाकर मदन के कान में कहा, "बेटा, तू थोड़ी देर के लिये बाहर जा और देख कोई इधर ना आये.."
मदन ने निपल चूसते चूसते गोपाल के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख कर साया के अन्दर ठेला और गोपाल का हाथ चौधराइन के चूत पर आ गया। उसने गोपाल के हाथ को दबाया और गोपाल चूत को मसलने लगा । कुछ देर तक दोनों ने एक साथ चूत को मसला और फिर मदन खड़ा हो गया। ग़ोपाल का हाथ अभी भी चौधराइन की चूत पर था लेकिन साया के नीचे चूत दिख नहीं रही थी।
मदन ने अपना पजामा पहना और गोपाल से कहा,"जब तक मैं वापस नहीं आता, तू इसी तरह मालकिन को दबाते रहना। दोनों चूचियों को भी खूब दबाना।"
मदन दरवाजा खोल कर बाहर आ गया और पल्ला खींच दिया। आस पास कोई भी नहीं था। वो इधर उधर देखने लगा और अन्दर का नजारा देखने की जगह ढूंढने लगा। जैसा हर घर में होता है, दरवाजे के बगल में एक खिड़की थी। उसके दोनों पल्ले बन्द थे। हलके से धक्का दिया और पल्ला खुल गया। बिस्तर साफ साफ दिख रहा था।
चौधराइन ने गोपाल से कुछ कहा तो वो शरमा कर गर्दन हिलाने लगा। मायादेवी ने फिर कुछ कहा और गोपाल सीधा बगल में खड़ा हो गया। माया ने उसके लण्ड पर पैंट के ऊपर से सहलाया और ग़ोपाल झुक कर साया के ऊपर से चूत को मसलने लगा। एक दो मिनट तक लण्ड के ऊपर हाथ फेरने के बाद माया ने पैंट के बटन खोल डाले और गोपाल का साढ़े सात इन्च लम्बा लण्ड फ़नफ़ना के बाहर आ गया। मदन ने सपने में भी नही सोचा था कि इस जरा से लड़के का लण्ड इतना बड़ा होगा । चौधराइन ने झट से उसका टनटनाया हुआ लण्ड पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी।
चौधराइन को मालूम था कि मदन जरुर देख रहा होगा, सो उसने खिड़की के तरफ देखा। नजर मिलते ही वो मुस्कुरा दी और लण्ड को दोनों हाथों से हिलाने लगी। गोपाल का लण्ड देख कर वो खुश थी। उधर गोपाल ने भी चूत के ऊपर से साये को हटा दिया तो आज मदन ने भी पहली बार उनकी साफ़ चिकनी की हुई चूत देखी शायद आज ही झांटें साफ की होंगी। उनकी चूत करीब बित्ते भर की फ़ूली हुई मुलायम चुद चुद के हल्की साँवली पड़ गई उत्तेजना से बाहर उठी पुत्तियों वाला टाइट भोसड़ा लग रही थी । जिसे मदन की आंखों के सामने एक लड़का मसल रहा था।
मायादेवी ने कुछ कहा तो गोपाल ने साया बिलकुल बाहर निकाल दिया। अब वो पूरी नंगी थी। शानदार सुडोल संगमरमरी गुदाज और रेशमी चिकनी जांघों के बीच दूध सी सफ़ेद पावरोटी सा भोसड़ा अपने मोटे मोटे होठ खोले लण्ड का इन्तजार करता हुआ लग रहा था।
मायादेवी लण्ड की टोपी खोलने की कोशिश कर रही थी। उसने गोपाल से फिर कुछ पूछा और गोपाल ने ना में गर्दन हिलाई। शायद पूछा हो कि पहले किसी को चोदा है या नहीं। माया ने गोपाल को अपनी ओर खींचा और खूब जोर जोर से चूमने लगी और चूमते-चूमते उसे अपने ऊपर ले लिया।
अब मायादेवी की चूत नहीं दिख रही थी। उन्होंने अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ाया और अपने हाथ से लण्ड के सुपाड़े को चूत के मुहाने पर रखा। माया देवी ने गोपाल से कुछ कहा और वो दोनों चूची पकड़ कर धीरे धीरे धक्का लगा कर चुदाई करने लगा।
गोपाल अपने से 20 साल बड़ी गांव की सबसे मस्त सुन्दर और इज्जतदार औरत की चुदाई कर रहा था। मदन अपने लण्ड की हालत को भूल गया और उन दोनों की चुदाई देखने लगा। गोपाल जोर जोर से धक्का मार रहा था और चौधराईन भी अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल अपने बेटे की उम्र के लड़के से चुदाई का मजा ले रही थी। यूँ तो गोपाल के लिये चुदाई का पहला मौका था ।
मदन देखता रहा और गोपाल जम कर चौधराइन चाची को चोदता रहा और करीब 15 मिनट के बाद वो चौधराइन के गुदाज बदन पर ढीला हो गया। मदन 2-3 मिनट तक बाहर खड़ा रहा और फिर दरवाजा खोल कर अन्दर आ गया। मुझे देखते ही गोपाल हड़बड़ा कर नीचे उतरा और अपने हाथ से लण्ड को ढक लिया। लेकिन मायादेवी ने उसका हाथ अलग किया और मदन के सामने ही गोपाल के लण्ड को सहलाने लगी।
चौधराइन बिल्कुल नंगी थी। उसने दोनों टांगों को फैला रख्खा था और मुझे अपनी चूत की खुली फांके साफ साफ दिखा रही थीं। मदन उनकी कमर के पास बैठ कर चूत को सहलाने के ख्याल से हाथ लगा। चूत गोपाल के रस से पूरी तरह से गीली हो गई थी।
चौधराइन का आदेश फ़िर गूँजा " गोपाल, इसे मेरे साये से साफ कर दे।"
गोपाल साया लेकर चूत के अन्दर बाहर साफ करने लगा।
गोपाल के लण्ड को सहलाते हुये मायादेवी बोली," गोपाल में बहुत दम है...मेरा सारा दर्द खत्म हो गया।" फिर उसने गोपाल से पूछा,"क्यों रे, तुझे कैसा लगा..?"
गोपाल “जी बहुत अच्छा मालकिन।
फ़िर उन्होंने गोपाल से कहा कि वो उसे बहुत पसन्द करती है और उसने चुदाई भी बहुत अच्छी की। पर उन्होंने गोपाल को धमकाया कि अगर वो किसी से भी इसके बारे में बात करेगा तो वो बड़े मालिक (बड़े चौधरी काका) से बोल गाँव से निकलवा देगी और अगर चुप रहेगा तो हमेशा गोपाल का लण्ड चूत में लेती रहेगी।
गोपाल ने कसम खाई कि वो किसी से कभी चौधराइन मालकिन के बारे में कुछ नहीं कहेगा। ग़ोपाल बहुत खुश हुआ जब चौधराइन ने उससे कहा कि वो जल्दी ही फिर उससे चुदवाने के लिए बुलवायेगी। मायादेवी ने उसे चूमा और कपड़े पहन कर बाहर जाने का आदेश दिया।
मदन ने गोपाल से कहा कि वो आंगन में जाकर अपना काम करे। गोपाल के जाते ही मदन ने दरवाजा अन्दर से बन्द किया और फटाफट नंगा हो गया। लण्ड चोदने के लिये बेकरार था ही। चौधराइन ने नजदीक बुलाया और लण्ड पकड़ कर आश्चर्य से देख सहलाते हुए नखरे से कहने लगी,
"हाय आज मुझे मत चोद क्यों कि अभी अभी मैने चुदवाया है और दोपहर में तेरे बाप से भी चुदवाना है। तू घर की जिस किसी भी लड़की को चोदना चाहे, मैं चुदवा दूंगी..।"
मदन ने कोई जवाब न दे उन्हें लिटा दिया और उनकी दोनों टाँगे अपने कन्धों पर रख लीं जिससे उनकी चूत ऊपर को उभर आयी और दोनों फांके खुलकर लण्ड को दावत सी देने लगीं। मदन ने अपने लण्ड का सुपाड़ा चौधराइन की चूत के मुहाने पर दोनों फांकों के बीच रखा और धक्का मारते हुए कहा –“मेरे बाप से चुदवाना है तो क्या आपकी चूत मेरा लण्ड अन्दर लेने से मना कर देगी।”
गीली चूत मे लण्ड का सुपाड़ा पक से अन्दर घुस गया
चौधराइन "आह्ह्ह्ह्ह..... शाबाश ।"
मदन फ़िर बोला, “देखा कैसे बिना आना कानी किये घुस गया न।”
"आअह्ह्ह्ह्ह्ह....मजा आआआअ ग...याआअ.."
मदन चौधराइन के खरबूजों को थाम कर चोदने लगा।
"चौधराइन, अगर मुझे मालूम होता कि आप इतनी चुदासी रहती हो तो मैं 4-5 साल पहले ही चोद डालता, " कहते हुये मदन ने हुमच कर धक्का मारा।
चौधराइन ने कमर उठा कर नीचे से धक्का मारा और गाल पकड़कर नोचते हुए बोली," "आह्ह्ह्ह्ह..... शाबाश बेटा, वो तो तुझसे चुदवाने के बाद मैने जाना कि लड़कों से चुदवाने का अलग मजा होता है ।
मदन ने धक्का मारते मारते चौधराइन को चूमते हुए बोला
"सच बोल, चौधराइन चाची गोपाल के साथ चुदाई में मजा आया क्या?" मदन का लौड़ा अब आराम से उनके भोसड़े में अन्दर-बाहर हो रहा था।
"सच बोलूं बेटा, पहले तो मैं भी घबरा रही थी कि मैं इत्ती सी उम्र के लड़के के सामने रन्डी जैसी नंगी हो गई हूँ लेकिन अगर वो नहीं चोद पाया तो !" चौधराइन ने गोपाल को याद कर चूतड़ उछाले और कहा," गोपाल ने खूब जम कर चोदा, लगा ही नहीं कि वो पहली बार चुदाई कर रहा है.. मैं मस्त हो गई और अब मैं उससे अक्सर चुदवाया करूँगी।"
"और मैं चौधराइन चाची?" मदनने उसके टमाटर से गालों को चूसते हुये पूछा।
"बेटा, तेरा लौड़ा तो मस्त है ही और तेरे में गोपाल से ज्यादा दम भी है....मजा आ रहा है...."
और उसके बाद दोनों जम कर चुदाई करते रहे और आखिर में मदन के लण्ड ने चौधराइन के चूत में पानी छोड़ दिया। दोनों हांफ रहे थे। कुछ देर के बाद जब ठण्डे हो गये तो मदन ने उनकी चूत की फ़ूली फ़ाँके हथेली में दबोच कर कहा–“आज पता चला चाची कि आप इस रजिस्टर के हिसाब किताब के लिये अक्सर यहाँ आती हैं।”
चौधराइन –“अरे नहीं बेटा अभी तक सिर्फ़ चार नाम ही तो चढ़े हैं एक तेरा बाप सदानन्द दूसरा चौधरी साहब मेरे पति, तीसरा तू औ आज ये चौथा गोपाल बस ।”
मदन–“वाह चाची! चार तो ऐसे कह रही हो जैसे बहुत कम हैं।
चौधराइन –“अरे बेटा क्या करूँ ये चूत साली ऐसा रजिस्टर है कि भरता ही नहीं ।”
मदन मुट्ठी में दबोची उनकी फ़ूली चूत की फ़ाँकों के बीच उँगली चुभोते हुए बोला, “कोई बात नहीं चाची अब मैं इस रजिस्टर की देखभाल किया करूंगा और कोई पन्ना खाली न जाने दूँगा।”
चौधराइन हँसकर घर चली गयीं।
क्रमश:……………………………
भाग 21 – नया चस्का 2
ग़ोपाल चुपचाप खड़ा था। उससे मदन ने दूसरा पैर दबाने के लिये कहा लेकिन वो खड़ा ही रहा।
"अरे ग़ोपाल, तुम खड़े हो क्यों, दूसरा पांव दबाते क्यों नहीं चलो दबाओ !" चौधराइन माया देवी ने जब अपनी सधी आवाज में आदेश दिया तो गोपाल दूसरे पांव को दबाने लगा। चौधराइन ने मदन को मुस्कुरा के आंख मारी।
" चौधराइन चाची, कहाँ कहाँ दर्द कर रहा है?"
"अरे पूछ मत बेटा, पावों में कमर के नीचे और छाती में दर्द है, खूब जोर से दबाओ।"
चौधराइन ने खुल कर जाँघों, चूतड़ों और बड़ी बड़ी चूचियाँ दबाने का निमंत्रण दे दिया था। मदन पाँव से लेकर कमर तक मसल मसल कर मजा ले रहा था जब कि गोपाल सिर्फ घुटनों तक ही दबा रहा था। मदन ने गोपाल का हाथ पकड़ा और चौधराइन की जांघों के ऊपर सहलाया और कहा कि तुम भी नीचे से ऊपर तक दबाओ। वो हिचका लेकिन मुझे देख देख कर वो भी मायादेवी की शानदार सुडोल गुदाज जांघों लम्बी लम्बी टांगों को नीचे से ऊपर तक मसलने लगा।
2-3 मिनट तक इस तरह से मजा लेने के बाद मदन ने कहा,"चाची साड़ी उतार दें...तो और आसानी होगी..."
"अच्छा, बेटा,..."
"गोपाल, साड़ी खोल दे।" चौधराइन का आदेश गूँजा।
उसने चौधराइन की ओर देखा लेकिन साड़ी खोलने के लिये हाथ आगे नहीं बढ़ाया।
"गोपाल, शरमाते क्यों हो, तुमने तो कई बार अपनी भाभी को नंगी चुदवाते देखा है...यहां तो सिर्फ साड़ी उतारनी है, चल खोल दे।" और चौधराइन ने का गोपाल का हाथ पकड़ कर साड़ी की गांठ पर रखा। उसने शरमाते हुये गांठ खोली और मदन ने साड़ी चौधराइन के बदन से अलग कर दी। काले रंग के ब्लाऊज़ और साया में गजब की माल लग रही थी।
गोपाल को अपनी तरफ़ देखते देख चौधराइन मुस्कुराई, “क्या देख रहा है गोपाल?
"मालकिन, आप बहुत सुन्दर हैं..." अचानक गोपाल ने कहा और प्यार से जांघों को सहलाया।
"तू भी बहुत प्यारा है.." माया ने जबाब दिया और हौले से साया को अपनी घुटनों से ऊपर खींच लिया।
चौधराइन के सुडौल पैर और पिंडली किसी भी मर्द को गर्म करने के लिये काफी थे। वो दोनों पैर दबा रहे थे लेकिन उनकी नजर चौधराइन की मस्त, बड़ी बड़ी मांसल चूचियों पर थी। लग रहा था जैसे कि चूचियां ब्लाऊज़ को फाड़ कर बाहर निकल जायेंगी।
मदन का मन कर रहा था कि फटाफट चौधराइन को नंगा कर चूत मे लण्ड पेल दे। लण्ड भी चोदने के लिये तैयार हो चुका था। और इस बार घुटनों के ऊपर हाथ बढा कर मदन ने हाथ साया के अन्दर घुसेड़ दिया और मखमली जांघों को सहलाते हुये चूत पर हाथ रखा।
फ़ूली हुई खूब बड़ी सी करीब बित्ते भर की मुलायम चिकनी चूत। अच्छा तो चौधराइन ने झाँटे साफ़ कर दीं थीं। मदन से रहा नहीं गया मसल दिया।
एक नहीं, दो नहीं, कई बार लेकिन चौधराइन ने एक बार भी मना नहीं किया।
मदन ने महसूस किया सहलाने से उत्तेजित हो उनकी पुत्तियाँ उभर आयीं और चूत पानी छोड़ने लगी
चौधराइन साया पहने थी और चूत दिखाई नहीं पड़ रही थी। साया ऊपर नाभी तक बंधा हुआ था। मदन उनकी चिकनी की हुई चूत को देखना चाहता था। एक दो बार चूत को फिर से मसला और हाथ बाहर निकाल लिया।
" चौधराइन चाची, साया बहुत कसा बंधा हुआ है, थोड़ा ढीला कर लो.. "
मदन ने देखा कि गोपाल अब आराम से मायादेवी की जांघों को सहला मसल रहा था। गोपाल से कहा कि वो साये का नाड़ा खोल दे। तीन चार बार बोलने के बाद भी उसने नाड़ा नहीं खोला तो मदन ने ही नाड़ा खींच दिया और साया ऊपर से ढीला हो गया।
मदन पांव दबाना छोड़कर चौधराइन की कमर के पास आकर बैठ गया और साये को नीचे की तरफ ठेला। पहले तो उसका चिकना पेट दिखाई दिया और फिर नाभि। मदन ने कुछ पल तो नाभि को सहलाया और साया को और नीचे की ओर ठेला।
अब उसकी कमर और चूत के ऊपर का फ़ूला हुआ भाग दिखाई पड़ने लगा। अगर एक इंच और नीचे करता तो चूत दिखने लगती।
"आह बेटा, छाती में बहुत दर्द है.." माया ने धीरे से कहा । साया को वैसा ही छोड़कर मदनने अपने दोनों हाथ चौधराइन के मस्त और गुदाज लंगड़ा आमों (चूचियों) पर रखे और दबाया। गोपाल के दोनों हाथ अब सिर्फ जांघो के ऊपरी हिस्से पर चल रहा था और वो आंखे फाड़ कर देख रहा था कि ये लड़का कैसे चौधराइन की चूचियां दबा रहा है।
" चौधराइन चाची, ब्लाउज खोल दो तो और आसानी होगी" मदन ने दबाते हुए कहा।
"तो खोल दे न " उसने जबाब दिया और मदन ने झटपट ब्लाउज के सारे बटन खोल डाले और ब्लाउज और ब्रा को चौधराइन की चूचियों से अलग कर दिया।
ब्रा हटते ही लेटी हुई चौधराइन के नुकीले मस्त और गुदाज लंगड़ा आम अपने भार से गोल हो, बड़े बड़े खरबूजों में बदल गये, देख कर मदन झनझना गया और जम कर उन्हें दबाने मसलने लगा और ग़ोपाल से कहा,
"कितनी ठोस है, लगता है जैसे गेंद में किसी ने कस कर हवा भर दी है।" फ़िर घुन्डी को मसल के बोला " क्यों गोपाल कैसा लग रहा है?" मदन जोर जोर से चूचियों को दबा रहा था।
अचानक मदन ने देखा कि गोपाल का एक हाथ चौधराइन की दोनों जांघों के बीच साया के ऊपर घूम रहा है। मदन ने एक हाथ से चूची दबाते हुए गोपाल का वो हाथ पकड़ा और उसे चौधराइन की नाभि के ऊपर रख कर दबाया।
"देख, चिकना है कि नहीं?" ये कह मदन उसके हाथ को दोनों जांघों के बीच चूत की तरफ धकेलने लगा। अचानक मदन चौधराइन के ऊपर झुका और घुन्डी को चूसने लगा।
तभी चौधराइन ने फुसफुसाकर मदन के कान में कहा, "बेटा, तू थोड़ी देर के लिये बाहर जा और देख कोई इधर ना आये.."
मदन ने निपल चूसते चूसते गोपाल के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख कर साया के अन्दर ठेला और गोपाल का हाथ चौधराइन के चूत पर आ गया। उसने गोपाल के हाथ को दबाया और गोपाल चूत को मसलने लगा । कुछ देर तक दोनों ने एक साथ चूत को मसला और फिर मदन खड़ा हो गया। ग़ोपाल का हाथ अभी भी चौधराइन की चूत पर था लेकिन साया के नीचे चूत दिख नहीं रही थी।
मदन ने अपना पजामा पहना और गोपाल से कहा,"जब तक मैं वापस नहीं आता, तू इसी तरह मालकिन को दबाते रहना। दोनों चूचियों को भी खूब दबाना।"
मदन दरवाजा खोल कर बाहर आ गया और पल्ला खींच दिया। आस पास कोई भी नहीं था। वो इधर उधर देखने लगा और अन्दर का नजारा देखने की जगह ढूंढने लगा। जैसा हर घर में होता है, दरवाजे के बगल में एक खिड़की थी। उसके दोनों पल्ले बन्द थे। हलके से धक्का दिया और पल्ला खुल गया। बिस्तर साफ साफ दिख रहा था।
चौधराइन ने गोपाल से कुछ कहा तो वो शरमा कर गर्दन हिलाने लगा। मायादेवी ने फिर कुछ कहा और गोपाल सीधा बगल में खड़ा हो गया। माया ने उसके लण्ड पर पैंट के ऊपर से सहलाया और ग़ोपाल झुक कर साया के ऊपर से चूत को मसलने लगा। एक दो मिनट तक लण्ड के ऊपर हाथ फेरने के बाद माया ने पैंट के बटन खोल डाले और गोपाल का साढ़े सात इन्च लम्बा लण्ड फ़नफ़ना के बाहर आ गया। मदन ने सपने में भी नही सोचा था कि इस जरा से लड़के का लण्ड इतना बड़ा होगा । चौधराइन ने झट से उसका टनटनाया हुआ लण्ड पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी।
चौधराइन को मालूम था कि मदन जरुर देख रहा होगा, सो उसने खिड़की के तरफ देखा। नजर मिलते ही वो मुस्कुरा दी और लण्ड को दोनों हाथों से हिलाने लगी। गोपाल का लण्ड देख कर वो खुश थी। उधर गोपाल ने भी चूत के ऊपर से साये को हटा दिया तो आज मदन ने भी पहली बार उनकी साफ़ चिकनी की हुई चूत देखी शायद आज ही झांटें साफ की होंगी। उनकी चूत करीब बित्ते भर की फ़ूली हुई मुलायम चुद चुद के हल्की साँवली पड़ गई उत्तेजना से बाहर उठी पुत्तियों वाला टाइट भोसड़ा लग रही थी । जिसे मदन की आंखों के सामने एक लड़का मसल रहा था।
मायादेवी ने कुछ कहा तो गोपाल ने साया बिलकुल बाहर निकाल दिया। अब वो पूरी नंगी थी। शानदार सुडोल संगमरमरी गुदाज और रेशमी चिकनी जांघों के बीच दूध सी सफ़ेद पावरोटी सा भोसड़ा अपने मोटे मोटे होठ खोले लण्ड का इन्तजार करता हुआ लग रहा था।
मायादेवी लण्ड की टोपी खोलने की कोशिश कर रही थी। उसने गोपाल से फिर कुछ पूछा और गोपाल ने ना में गर्दन हिलाई। शायद पूछा हो कि पहले किसी को चोदा है या नहीं। माया ने गोपाल को अपनी ओर खींचा और खूब जोर जोर से चूमने लगी और चूमते-चूमते उसे अपने ऊपर ले लिया।
अब मायादेवी की चूत नहीं दिख रही थी। उन्होंने अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ाया और अपने हाथ से लण्ड के सुपाड़े को चूत के मुहाने पर रखा। माया देवी ने गोपाल से कुछ कहा और वो दोनों चूची पकड़ कर धीरे धीरे धक्का लगा कर चुदाई करने लगा।
गोपाल अपने से 20 साल बड़ी गांव की सबसे मस्त सुन्दर और इज्जतदार औरत की चुदाई कर रहा था। मदन अपने लण्ड की हालत को भूल गया और उन दोनों की चुदाई देखने लगा। गोपाल जोर जोर से धक्का मार रहा था और चौधराईन भी अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल अपने बेटे की उम्र के लड़के से चुदाई का मजा ले रही थी। यूँ तो गोपाल के लिये चुदाई का पहला मौका था ।
मदन देखता रहा और गोपाल जम कर चौधराइन चाची को चोदता रहा और करीब 15 मिनट के बाद वो चौधराइन के गुदाज बदन पर ढीला हो गया। मदन 2-3 मिनट तक बाहर खड़ा रहा और फिर दरवाजा खोल कर अन्दर आ गया। मुझे देखते ही गोपाल हड़बड़ा कर नीचे उतरा और अपने हाथ से लण्ड को ढक लिया। लेकिन मायादेवी ने उसका हाथ अलग किया और मदन के सामने ही गोपाल के लण्ड को सहलाने लगी।
चौधराइन बिल्कुल नंगी थी। उसने दोनों टांगों को फैला रख्खा था और मुझे अपनी चूत की खुली फांके साफ साफ दिखा रही थीं। मदन उनकी कमर के पास बैठ कर चूत को सहलाने के ख्याल से हाथ लगा। चूत गोपाल के रस से पूरी तरह से गीली हो गई थी।
चौधराइन का आदेश फ़िर गूँजा " गोपाल, इसे मेरे साये से साफ कर दे।"
गोपाल साया लेकर चूत के अन्दर बाहर साफ करने लगा।
गोपाल के लण्ड को सहलाते हुये मायादेवी बोली," गोपाल में बहुत दम है...मेरा सारा दर्द खत्म हो गया।" फिर उसने गोपाल से पूछा,"क्यों रे, तुझे कैसा लगा..?"
गोपाल “जी बहुत अच्छा मालकिन।
फ़िर उन्होंने गोपाल से कहा कि वो उसे बहुत पसन्द करती है और उसने चुदाई भी बहुत अच्छी की। पर उन्होंने गोपाल को धमकाया कि अगर वो किसी से भी इसके बारे में बात करेगा तो वो बड़े मालिक (बड़े चौधरी काका) से बोल गाँव से निकलवा देगी और अगर चुप रहेगा तो हमेशा गोपाल का लण्ड चूत में लेती रहेगी।
गोपाल ने कसम खाई कि वो किसी से कभी चौधराइन मालकिन के बारे में कुछ नहीं कहेगा। ग़ोपाल बहुत खुश हुआ जब चौधराइन ने उससे कहा कि वो जल्दी ही फिर उससे चुदवाने के लिए बुलवायेगी। मायादेवी ने उसे चूमा और कपड़े पहन कर बाहर जाने का आदेश दिया।
मदन ने गोपाल से कहा कि वो आंगन में जाकर अपना काम करे। गोपाल के जाते ही मदन ने दरवाजा अन्दर से बन्द किया और फटाफट नंगा हो गया। लण्ड चोदने के लिये बेकरार था ही। चौधराइन ने नजदीक बुलाया और लण्ड पकड़ कर आश्चर्य से देख सहलाते हुए नखरे से कहने लगी,
"हाय आज मुझे मत चोद क्यों कि अभी अभी मैने चुदवाया है और दोपहर में तेरे बाप से भी चुदवाना है। तू घर की जिस किसी भी लड़की को चोदना चाहे, मैं चुदवा दूंगी..।"
मदन ने कोई जवाब न दे उन्हें लिटा दिया और उनकी दोनों टाँगे अपने कन्धों पर रख लीं जिससे उनकी चूत ऊपर को उभर आयी और दोनों फांके खुलकर लण्ड को दावत सी देने लगीं। मदन ने अपने लण्ड का सुपाड़ा चौधराइन की चूत के मुहाने पर दोनों फांकों के बीच रखा और धक्का मारते हुए कहा –“मेरे बाप से चुदवाना है तो क्या आपकी चूत मेरा लण्ड अन्दर लेने से मना कर देगी।”
गीली चूत मे लण्ड का सुपाड़ा पक से अन्दर घुस गया
चौधराइन "आह्ह्ह्ह्ह..... शाबाश ।"
मदन फ़िर बोला, “देखा कैसे बिना आना कानी किये घुस गया न।”
"आअह्ह्ह्ह्ह्ह....मजा आआआअ ग...याआअ.."
मदन चौधराइन के खरबूजों को थाम कर चोदने लगा।
"चौधराइन, अगर मुझे मालूम होता कि आप इतनी चुदासी रहती हो तो मैं 4-5 साल पहले ही चोद डालता, " कहते हुये मदन ने हुमच कर धक्का मारा।
चौधराइन ने कमर उठा कर नीचे से धक्का मारा और गाल पकड़कर नोचते हुए बोली," "आह्ह्ह्ह्ह..... शाबाश बेटा, वो तो तुझसे चुदवाने के बाद मैने जाना कि लड़कों से चुदवाने का अलग मजा होता है ।
मदन ने धक्का मारते मारते चौधराइन को चूमते हुए बोला
"सच बोल, चौधराइन चाची गोपाल के साथ चुदाई में मजा आया क्या?" मदन का लौड़ा अब आराम से उनके भोसड़े में अन्दर-बाहर हो रहा था।
"सच बोलूं बेटा, पहले तो मैं भी घबरा रही थी कि मैं इत्ती सी उम्र के लड़के के सामने रन्डी जैसी नंगी हो गई हूँ लेकिन अगर वो नहीं चोद पाया तो !" चौधराइन ने गोपाल को याद कर चूतड़ उछाले और कहा," गोपाल ने खूब जम कर चोदा, लगा ही नहीं कि वो पहली बार चुदाई कर रहा है.. मैं मस्त हो गई और अब मैं उससे अक्सर चुदवाया करूँगी।"
"और मैं चौधराइन चाची?" मदनने उसके टमाटर से गालों को चूसते हुये पूछा।
"बेटा, तेरा लौड़ा तो मस्त है ही और तेरे में गोपाल से ज्यादा दम भी है....मजा आ रहा है...."
और उसके बाद दोनों जम कर चुदाई करते रहे और आखिर में मदन के लण्ड ने चौधराइन के चूत में पानी छोड़ दिया। दोनों हांफ रहे थे। कुछ देर के बाद जब ठण्डे हो गये तो मदन ने उनकी चूत की फ़ूली फ़ाँके हथेली में दबोच कर कहा–“आज पता चला चाची कि आप इस रजिस्टर के हिसाब किताब के लिये अक्सर यहाँ आती हैं।”
चौधराइन –“अरे नहीं बेटा अभी तक सिर्फ़ चार नाम ही तो चढ़े हैं एक तेरा बाप सदानन्द दूसरा चौधरी साहब मेरे पति, तीसरा तू औ आज ये चौथा गोपाल बस ।”
मदन–“वाह चाची! चार तो ऐसे कह रही हो जैसे बहुत कम हैं।
चौधराइन –“अरे बेटा क्या करूँ ये चूत साली ऐसा रजिस्टर है कि भरता ही नहीं ।”
मदन मुट्ठी में दबोची उनकी फ़ूली चूत की फ़ाँकों के बीच उँगली चुभोते हुए बोला, “कोई बात नहीं चाची अब मैं इस रजिस्टर की देखभाल किया करूंगा और कोई पन्ना खाली न जाने दूँगा।”
चौधराइन हँसकर घर चली गयीं।
क्रमश:……………………………