रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -15
गतान्क से आगे...
"बहुत अच्छा. जी करता है इसे अपनी योनि मे ही डाले ही रखूं." मैने उसके ढीले परे लिंग को वापस मुँह मे डाल लिया. थोड़ी ही देर मे वो वापस अगली लड़ाई के लिए तैयार हो गया.उन्हों ने उठ कर लाइट ऑन कर दी. मैने शर्म से अपने चेहरे को
हाथों से धक लिया. वो बिस्तर पर आकर मेरे हाथों को चेहरे पर से हटा दिया. मैने झिझकते हुए आँखें खोली उनका मोटा तगड़ा लिंग आँखों के सामने तना हुआ मुझे ललकार रहा था.
उन्हों ने मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरी टाँगों को मोड़ कर सीने से लगा दिया. अब एक तकिया लेकर मेरी कमर के नीचे रख दिया. मेरी योनि उँची हो गयी थी. मेरी योनि उनके सामने खुली हुई रोशनी मे चमक रही थी.
"देखो देवी कैसे जाता है मेरा लिंग तुम्हारे अमृत कुंड के अंदर." कह कर उन्हों ने अपना लिंग मेरी योनि से सटा कर बहुत धीरे धीरे अंदर करने लगे. मेरी योनि पूरी तरह फैल गयी थी. ऐसा लग रहा था मानो कोई मोटा बाँस मेरी योनि मे डाला जा रहा हो. धीरे धीरे ज़ोर देते हुए उनका लंड मेरी योनि मे समाता चला गया. मैं आश्चर्या से देख र्ही थी उनका मेरे वजूद पर छा जाना.
पूरी तरह अंदर करने के बाद इस बार स्वामी जी बहुत तसल्ली से मुझे चोदने लगे. हर धक्के से पहले अपने लिंग को पूरा मेरे लिंग से बाहर करते और फिर एक धक्के मे पूरा लिंग मेरी योनि मे समा जाता. हर धक्के के साथ वो मेरे पूरे बदन को झकझोर देते. मैं भी नीचे से कमर उठा कर उनका साथ देने लगी. मेरे कमर के नीचे तकिया लगा कर रखने की वजह से मेरी योनि का द्वार और उसे हर धक्के के साथ फैला कर अंदर ठूकता उनका लंड साफ दिख रहा था. काफ़ी देर तक इसी तरह चोदने के बाद उन्हों ने बिस्तर के किनारे पर बैठ कर मुझे पानी गोद मे बिठा लिया और इस पोज़ मे चोदने लगे. मेरी दोनो टाँगें उनकी कमर के पीछे जुड़े हुई थी. मेरी बाँहें उनकी सख़्त बालों भरे पीठ पर घूम रही थी. मैं उनकी गोद मे उपर नीचे हो रही थी. हर हरकत पर मेरे खड़े निपल उनके सीने को रगड़ रहे थे. इस तरह चुदाई करते हुए मेरा एक बार और झाड़ गया. मैने उत्तेजना मे उनके कंधे पर अपने दाँत गढ़ा दिए. जब सारा निकल गया तब जा कर मैने उनके कंधे को छ्चोड़ा. वहाँ मेरे दंटो के निशान उभर आए थे. मैं उनसे लिपट कर उबके चेहरे को बेतहासा चूमने लगी.
“क्यों स्वामी मुझमे क्या कमी है? क्या मैं आपको शारीरिक खुशी नही दे पाई?” मैने रुआंसी होकर उनसे पूछा.
“क्यों देवी ऐसा क्यों लगा तुम्हे?”
“मैं आपका प्रसाद पाने से वंचित रह गयी. आप अपने अमृत की वर्षा करने के मामले मे बहुत कंजूस हैं. मेरा कई बार निकल गया मगर आप पर कोई फ़र्क नही पड़ा है. आपको कैसे शांत करूँ. अब अगली बार आप मेरे साथ निकालो. मेरे बदन को अपने अमृत से धो दीजिए. ”
उन्हों ने मुझे दीवार से सटा कर ज़मीन से उठा लिया. मैने अपने हाथ सहारा पाने के लिए इधर उधर फैलाए. पीछे कपड़े टाँगने के हुक पर मेरे हाथ आ गया तो मैं दो हुक को अपनी मुट्ठी मे पकड़ कर हवा मे झूल गयी. मैने अपनी टाँगे उनकी कमर के चारों ओर बाँध दी और उनके लिंग के खूँटे पर झूल गयी. इस तरह से कुच्छ देर तक मुझे चोदने के बाद वापस बिस्तर पर ला कर पटक दिया और वापस मुझे पर चढ़ाई कर दी. आधे घंटे के उपर मुझे बिना रुके चोद्ते चले गये. मैं अनगिनत बार झाड़ चुकी थी. मगर वो थे की शांत ही नही हो रहे थे. उनके लिंग को मैने अपनी योनि के मसर्ल्स से बुरी तरह दबा रखा था मगर उनको रोक पाना मेरे बस की बात नही थी. काफ़ी देर तक मुझे झींझोड़ने के बाद मेरी योनि मे अपना रस डाल दिया. रस भी इतना डाला कि मैने आज तक किसी आदमी को इतना रस निकलते नही देखा था. ऐसा लग रहा था मानो उनके पूरा बदन रस से भरा हुया है और वो सारा वीर्य बन कर बह निकला है.
मेरी योनि, झांते, नितंब, जंघें और बिस्तर का चादर सब जगह चिप चिपा सफेद वीर्य चमक रहा था. जब तक उनका लंड सिकुड का खुद ही बाहर नही निकल आया तब तक वो मेरे उपर ही लेटे रहे. हम उसके बाद तक कर सो गये. मैं नग्न हालत मे उनके बदन से किसी कमजोर लता की तरह लिपट कर सो रही थी.
सुबह छह बजे रजनी के उठाने पर मेरी नींद खुली. मैने देखा कि मैं तब तक नग्न अवस्था मे ही सो रही थी. उस वक़्त तो थकान के कारण सोचने समझने की बुद्धि चली गयी थी. मगर अब नींद खुलते ही मैं अपनी हालत देख कर शर्म से पानी पानी हो रही थी. मैने बगल मे देखा. बगल मे कोई नही था. स्वामीजी पहले ही उठ
कर जा चुके थे. रजनी को देख कर शर्म से मेरे गाल सुर्ख हो गये. रजनी भी मुझे देख कर मुस्कुरा दी. मैने उठने की कोशिश की मगर पूरा बदन दुखने लगा और मैं हॅप से वापस बैठ गयी. मैं बुरी तरह थकान महसूस कर रही थी. रजनी ने सहारा देकर मुझे उठाया.
रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
“होता है बहन. होता है पहली बार मेरी भी यही हालत हुई थी मगर धहेरे धीरे आदत पड़ती चली गयी. आज तो ये हालत है की स्वामी जी को छ्चोड़ कर पल भर को नही जी सकती. दो दिन कहीं दूर जाते हैं तो पूरा बदन अकड़ने लगता है. और स्वामी जी को देखते ही बदन पर चींटियाँ चलने लगती हैं. स्वामी जी मे इतना स्टॅमिना है कि रोज कई कई औरतों को अपना प्रसाद दे देते हैं.”
मैं ये सुन कर मुस्कुरा दी,” रजनी मेरा पूरा बदन दुख रहा है.”
"अभी सब ठीक हो जाएगा. मैं हूँ ना. वैसे रात कैसी गुज़री?" रजनी ने पूछ्ते हुए अपनी एक आँख दबाई.
मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा कर अपनी नज़रें झुका ली. उसके समझने के लिए इतना इशारा ही काफ़ी था. मैने आगे बढ़ने को कदम बढ़ाया तो मेरे कदम लड़खड़ा उठे.
रजनी सहारा देकर मुझे बाथरूम की तरफ ले गयी.
"नहा लो थकान उतर जाएगी." कहकर उसने अपने साथ लाई बॉटल से कुच्छ तरल प्रदार्थ बात टब के पानी मे डाला. पानी से भीनी भीनी खुश्बू उठने लगी. फिर शेल्फ पर रखे एक पॅकेट मे से गुलाब की ढेर सारी पंखुड़ियाँ बाथ टब के पानी मे डाल दी. बाथ टब का पानी अब गुलाब की पंखुड़ियों की वजह से लाल नज़र आ रहा था.
बाथरूम मे एक नशीली सुगंध फैली हुई थी. उस सुगंध से मैं रोमांचित हो गयी. उसने मुझे बाथ टब मे बिठा कर रगड़ रगड़ कर नहलाने लगी. गुलाब के फूलों
से मेरे बदन को सहलाने लगी. उस सुगंधित पानी से भरे टब मे नहाते हुए मेरा मन खुशी से भर उठा. मैं नहा कर बाहर निकली तो वापस मुझे एक गाउन ओढ़ा दिया गया. मेरी कमर पर बेल्ट से किमोना को बाँध दिया. गाउन सामने से पूरा खुला होने के कारण चलने पर मेरी नग्न टाँगें कपड़े से बाहर निकल आती थी.
मैं अब बदन मे एक ताज़गी महसूस कर रही थी. अब मुझे सहारे की ज़रूरत महसूस नही हो रही थी. मगर रजनी ने मेरा एक हाथ थाम रखा था. कमरे मे आते ही मानो प्रेपलन्नेड़ तरीके से एक युवती एक ग्लास मे वैसा ही कोई ठंडा जूस ले कर आइ. इसका स्वाद वैसा ही था जैसा कल रात मैने पिया था. उस शरबत को पीते ही मेरे बदन मे वापस ताज़गी आनी शुरू हो गयी. वापस मेरे बदन फूल से भी हल्का लगने लगा. बदन मे उत्तेजना बढ़ने लगी. मैं कुच्छ ही देर मे मैं एक दम तरो ताज़ा हो गयी.
अब मुझे लेकर रजनी एक हॉल मे आ गयी. हॉल के बीचों बीच एक गोल बिस्तर सज़ा हुआ था. उसपर सुर्ख लाल रंग की सिल्क की चादर बिछि हुई थी. चादर के उपर चमेली के फूल फैले हुए थे. कमरा सुगंधित हो रहा था. बिस्तर के चारों ओर बारह कुर्सियों मे आश्रम के सारे शिष्य बैठे हुए थे. बिस्तर के पास एक सिंहासन जैसी कुर्सी रखी हुई थी. जिस पर स्वामीजी बैठे हुए थे. कमरे मे रजनी और मेरे अलावा कोई भी महिला मौजूद नही थी.
रजनी मुझे लेकर चलते हुए बिस्तर के पास आकर रुकी. उसने मेरे किमोना के बेल्ट को खोल दिया. किमोना सामने से खुल गया. मैने अंदर कुच्छ नही पहना होने के कारण टाँगों के बीच का उभार सामने दिख रहा था. इतने सारे आदमियों के सामने मेरे नग्न बदन की नुमाइश होते देख मैं शर्म से सिकुड गयी.
मुझे उस हालत मे बिस्तर के पास छ्चोड़ रजनी मुझसे थोड़ी दूर हट गयी. स्वामीजी अपने आसान से उठे और मेरे करीब आकर मेरे पीछे चले गये. पीछे आकर मेरे बदन पर लटक रहे गाउन को मेरे कंधे से उतार दिया. मैने अपने गाउन को रोकने की कोई कोशिश नही की और जो हो रहा था है हो जाने दिया.
मैं अपना सिर झुका कर तेरह मर्दों के बीच नंगी खड़ी थी. मेरा गाउन बदन पर से फिसलता हुया नीचे गिर गया था. मैं उन चौदह जोड़ी प्यासी आँखो के सामने बिल्कुल नग्न अवस्था मे खड़ी थी. मैने अपने गुप्तांगों को च्चिपाने की कोई कोशिश नही की और उनके सामने अपने रूप लावण्य की नुमाइश करती हुई खड़ी रही.
स्वामी जी ने मुझे कंधे से पकड़ कर मुझे अपनी जगह पर चारों ओर घुमाया. जिससे मेरे नग्न बदन के संपूर्ण दर्शन वहाँ मौजूद हर मर्द को हो जाए. फिर उसी हालत मे कमर से मुझे थामे हुए धीरे धीरे चलते हुए एक एक शिष्य के पास ले गये. सारे शिष्य भूखी नज़रों से मेरे बदन को निहार रहे थे. लेकिन किसी ने अपनी जगह से हिलने या मुझे छ्छूने की कोई कोशिश नही की. मैं उन मर्दो का अपनी भावनाओं के ऊपर कंट्रोल की दाद देने लगी कि मुझ जैसी बला की खूबसूरत और सेक्सी महिला उनके हाथों से एक दो फीट की दूरी पर संपूर्ण नग्न खड़ी थी फिर भी उनके बदन मे किसी तरह की कसमसाहट नही हो रही थी.
स्वामी जी ने सब को संबोधित करते हुए कहा,"ये है रश्मि. ये अख़बार की एक बहुत बड़ी रिपोर्टर है. आज इसने हमारे आश्रम को जाय्न करने की इच्च्छा जाहिर की है" सबने खुशी से तालियाँ बजाई.
“देवी रश्मि आपका आज सेक्स की एक अनोखी और खूबसूरत दुनिया मे स्वागत है. आज से आप हमारे इस आश्रम की शोभा बनने वाली हो. मेरा दावा है आप जब यहाँ रहेंगी तब आप बाहर की दुनिया को भूल जाएँगी याद रहेगा सिर्फ़ अपना जिस्म और उसमे जल रही अबूझ आग. जो आपके पूरे वजूद को धीमी आँच मे सुलगाता रहेगा.” मैं उसी हालत मे उनके चरणो पर झुक गयी और मैने उनके चरणो को अपने होंठों से चूम लिया. उन्हों ने मुझे उठाया और अपने नग्न सीने पर मुझे दबा लिया. फिर अपनी उंगलियों को मेरी ठुड्डी के नीचे रख कर मेरे चेहरे को उठाया. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः............
मैं ये सुन कर मुस्कुरा दी,” रजनी मेरा पूरा बदन दुख रहा है.”
"अभी सब ठीक हो जाएगा. मैं हूँ ना. वैसे रात कैसी गुज़री?" रजनी ने पूछ्ते हुए अपनी एक आँख दबाई.
मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा कर अपनी नज़रें झुका ली. उसके समझने के लिए इतना इशारा ही काफ़ी था. मैने आगे बढ़ने को कदम बढ़ाया तो मेरे कदम लड़खड़ा उठे.
रजनी सहारा देकर मुझे बाथरूम की तरफ ले गयी.
"नहा लो थकान उतर जाएगी." कहकर उसने अपने साथ लाई बॉटल से कुच्छ तरल प्रदार्थ बात टब के पानी मे डाला. पानी से भीनी भीनी खुश्बू उठने लगी. फिर शेल्फ पर रखे एक पॅकेट मे से गुलाब की ढेर सारी पंखुड़ियाँ बाथ टब के पानी मे डाल दी. बाथ टब का पानी अब गुलाब की पंखुड़ियों की वजह से लाल नज़र आ रहा था.
बाथरूम मे एक नशीली सुगंध फैली हुई थी. उस सुगंध से मैं रोमांचित हो गयी. उसने मुझे बाथ टब मे बिठा कर रगड़ रगड़ कर नहलाने लगी. गुलाब के फूलों
से मेरे बदन को सहलाने लगी. उस सुगंधित पानी से भरे टब मे नहाते हुए मेरा मन खुशी से भर उठा. मैं नहा कर बाहर निकली तो वापस मुझे एक गाउन ओढ़ा दिया गया. मेरी कमर पर बेल्ट से किमोना को बाँध दिया. गाउन सामने से पूरा खुला होने के कारण चलने पर मेरी नग्न टाँगें कपड़े से बाहर निकल आती थी.
मैं अब बदन मे एक ताज़गी महसूस कर रही थी. अब मुझे सहारे की ज़रूरत महसूस नही हो रही थी. मगर रजनी ने मेरा एक हाथ थाम रखा था. कमरे मे आते ही मानो प्रेपलन्नेड़ तरीके से एक युवती एक ग्लास मे वैसा ही कोई ठंडा जूस ले कर आइ. इसका स्वाद वैसा ही था जैसा कल रात मैने पिया था. उस शरबत को पीते ही मेरे बदन मे वापस ताज़गी आनी शुरू हो गयी. वापस मेरे बदन फूल से भी हल्का लगने लगा. बदन मे उत्तेजना बढ़ने लगी. मैं कुच्छ ही देर मे मैं एक दम तरो ताज़ा हो गयी.
अब मुझे लेकर रजनी एक हॉल मे आ गयी. हॉल के बीचों बीच एक गोल बिस्तर सज़ा हुआ था. उसपर सुर्ख लाल रंग की सिल्क की चादर बिछि हुई थी. चादर के उपर चमेली के फूल फैले हुए थे. कमरा सुगंधित हो रहा था. बिस्तर के चारों ओर बारह कुर्सियों मे आश्रम के सारे शिष्य बैठे हुए थे. बिस्तर के पास एक सिंहासन जैसी कुर्सी रखी हुई थी. जिस पर स्वामीजी बैठे हुए थे. कमरे मे रजनी और मेरे अलावा कोई भी महिला मौजूद नही थी.
रजनी मुझे लेकर चलते हुए बिस्तर के पास आकर रुकी. उसने मेरे किमोना के बेल्ट को खोल दिया. किमोना सामने से खुल गया. मैने अंदर कुच्छ नही पहना होने के कारण टाँगों के बीच का उभार सामने दिख रहा था. इतने सारे आदमियों के सामने मेरे नग्न बदन की नुमाइश होते देख मैं शर्म से सिकुड गयी.
मुझे उस हालत मे बिस्तर के पास छ्चोड़ रजनी मुझसे थोड़ी दूर हट गयी. स्वामीजी अपने आसान से उठे और मेरे करीब आकर मेरे पीछे चले गये. पीछे आकर मेरे बदन पर लटक रहे गाउन को मेरे कंधे से उतार दिया. मैने अपने गाउन को रोकने की कोई कोशिश नही की और जो हो रहा था है हो जाने दिया.
मैं अपना सिर झुका कर तेरह मर्दों के बीच नंगी खड़ी थी. मेरा गाउन बदन पर से फिसलता हुया नीचे गिर गया था. मैं उन चौदह जोड़ी प्यासी आँखो के सामने बिल्कुल नग्न अवस्था मे खड़ी थी. मैने अपने गुप्तांगों को च्चिपाने की कोई कोशिश नही की और उनके सामने अपने रूप लावण्य की नुमाइश करती हुई खड़ी रही.
स्वामी जी ने मुझे कंधे से पकड़ कर मुझे अपनी जगह पर चारों ओर घुमाया. जिससे मेरे नग्न बदन के संपूर्ण दर्शन वहाँ मौजूद हर मर्द को हो जाए. फिर उसी हालत मे कमर से मुझे थामे हुए धीरे धीरे चलते हुए एक एक शिष्य के पास ले गये. सारे शिष्य भूखी नज़रों से मेरे बदन को निहार रहे थे. लेकिन किसी ने अपनी जगह से हिलने या मुझे छ्छूने की कोई कोशिश नही की. मैं उन मर्दो का अपनी भावनाओं के ऊपर कंट्रोल की दाद देने लगी कि मुझ जैसी बला की खूबसूरत और सेक्सी महिला उनके हाथों से एक दो फीट की दूरी पर संपूर्ण नग्न खड़ी थी फिर भी उनके बदन मे किसी तरह की कसमसाहट नही हो रही थी.
स्वामी जी ने सब को संबोधित करते हुए कहा,"ये है रश्मि. ये अख़बार की एक बहुत बड़ी रिपोर्टर है. आज इसने हमारे आश्रम को जाय्न करने की इच्च्छा जाहिर की है" सबने खुशी से तालियाँ बजाई.
“देवी रश्मि आपका आज सेक्स की एक अनोखी और खूबसूरत दुनिया मे स्वागत है. आज से आप हमारे इस आश्रम की शोभा बनने वाली हो. मेरा दावा है आप जब यहाँ रहेंगी तब आप बाहर की दुनिया को भूल जाएँगी याद रहेगा सिर्फ़ अपना जिस्म और उसमे जल रही अबूझ आग. जो आपके पूरे वजूद को धीमी आँच मे सुलगाता रहेगा.” मैं उसी हालत मे उनके चरणो पर झुक गयी और मैने उनके चरणो को अपने होंठों से चूम लिया. उन्हों ने मुझे उठाया और अपने नग्न सीने पर मुझे दबा लिया. फिर अपनी उंगलियों को मेरी ठुड्डी के नीचे रख कर मेरे चेहरे को उठाया. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -16
गतान्क से आगे...
“ देवी आप इन सबके सामने अपनी इच्छा जाहिर करो. जिससे किसी को किसी तरह का संदेह नही रहे.” स्वामी जी ने उँची आवाज़ मे कहा.
“ मैं आज से आपकी छत्र छाया मे रहना चाहती हूँ. आप मुझे अपनी शिष्या के रूप मे स्वीकार करें.” मैने अपने चेहरे को उनकी छाती मे छिपाते हुए कहा. मैं किसी की बीवी होकर इतने सारे मर्द के सामने इतनी देर से पूरी तरह नंगी खड़ी थी मगर या तो वहाँ का महॉल या मेरी पी हुई वो शरबत या फिर नहाने के पानी मे मिले इत्र का नशा जिसकी वजह से मेरा जिस्म सेक्स की आग मे तप रहा था. मेरा हर अंग मर्द के संपर्क केलिए तड़प रहा था. मुझे कोई परवाह नही थी कि मैं किससे संभोग करवा रही हूँ. मुझे तो सिर्फ़ इतनी इच्च्छा हो रही थी कि मेरे साथ जम कर सेक्स हो. कोई मेरे एक एक अंग को रगड़ कर रख दे. मैं सेक्स की गुलाम बन गयी थी. मैं किसी के लंड के लिए उस वक़्त कुछ भी करने को तैयार थी. कुच्छ भी.
“ज़ोर से बोलो देवी जिससे हर आदमी सुन सके.” तभी स्वामीजी ने कहा
“ मैं रश्मि आज से आपको अपना गुरु मानकर आपके इस आश्रम को जाय्न करना चाहती हूँ.” मैने उँची आवाज़ मे कहा. लोगों ने दोबारा तालियाँ बजाई.
"संस्था मे जाय्न करने के लिए जो जो रस्म होती हैं उन्हे चालू किया जाय" स्वामी जी ने रजनी को कहा. कहकर स्वामीजी जाकर अपनी सीट पर बैठ गये. तभी एक लड़की एक चाँदी का कटोरा लेकर आई. रजनी ने उसे मेरे हाथ मे देते हुए कहा"इसे पी लो"
उस पात्र मे गाढ़ा गाढ़ा सफेद खीर जैसा कुछ रखा था. मैने अपने होंठों से उसे लगा कर एक घूँट भरा तब पता चला कि वो वीर्य था. इतना वीर्य? इतना वीर्य कहाँ से आया. मैं यही सोच रही थी कि रजनी ने आगे बढ़ कर उस कटोरे को वापस मेरे होंठों से च्छुआ दिया.
"ये हमारे आश्रम के सारे शिष्यों के द्वारा निकाला हुआ वीर्य है. ये यहा का प्रसाद है इसे पूरा पी लो" रजनी ने कहा. मैने छ्होटे छ्होटे घूँट भर भर कर सारे वीर्य को पी लिया. फिर उसने मुझे कटोरे की दीवार पर लगे वीर्य को चाट कर साफ करने का इशारा किया. मैने बिना किसी प्रश्न किए अपनी जीभ निकाल कर उस कटोरे से सारा वीर्य चाट कर सॉफ किया.
"आज से तुम संस्था के किसी भी मर्द के साथ सेक्स करने के लिए आज़ाद हो. और यहाँ के हर मर्द को भी ये आज़ादी है कि वो जब चाहे तुम्हे भोग सकता है. ना तो तुम्हारी किसी इच्च्छा को पूरा करने से कोई मर्द इनकार कर सकता है ना ही तुम किसी को इनकार करोगी." स्वामीजी ने कहा.
अब रजनी ने मुझे बेड के किनारे पैर लटका कर बिठा दिया. तभी एक लड़की एक खाली बड़ा कटोरा लेकर आ गयी. उसे मेरे एक स्तन के नीचे रख कर मेरे निपल्स को
पकड़ कर खींचा. रजनी की इस हरकत से मेरी उस छाती से दूध निकलने लगा.
रजनी अब मेरे स्तन को खींच खींच कर उसमे से दूध निकालने लगी. ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई औरत नही कोई गाय हूँ जिसका दूध निकाला जा रहा हो. पहले एक फिर दूसरी चूची को मेरी चूचियो को वो तब तक दूहते रहे जब तक आखरी बूँद तक नही
निकल गया. मेरी दोनो चूचियाँ उनके मसलने के वजह से लाल हो गयी थी और बुरी तरह दुख रही थी.
दूध की कटोरी लेकर सबसे पहले वो युवती स्वामी जी के पास पहुँची. स्वामी जी ने बैठ बैठ ही अपने बदन को ओढ़े लबादे की रस्सी ढीली कर दी. रजनी ने आगे बढ़ कर उनके सामने से कपड़ा हटा दिया. उनका तगड़ा लिंग वापस खड़ा हो चुक्का था. रजनी ने उस कटोरे से दूध लेकर उनके लिंग को धोया. उस वक़्त उसने एक छ्होरी कटोरी उनके लिंग के नीचे लगाई. लंड धोने के बाद जो दूध नीचे टपका उसे उस छ्होटी कटोरी मे इकट्ठा करके मेरे लिए ले आई. उसने उस कटोरी को मेरे होंठों से लगा दिया. मैने उस दूध को पी लिया.
दूसरी युवती वहाँ मौजूद एक एक आदमियों के पास जाती और उस बड़ी कटोरी को उसे देती. उसमे काफ़ी सारा दूध बचा हुआ था. हर आदमी उस से कुच्छ दूध पीता गया. ऐसा करके सारे आदमियों ने मेरा दूध चखा. मैं उनके बीच नंगी बैठी उनको अपना दूध पीता देखती रही.
उस बर्तन को खाली करने के बाद वो युवती बर्तनो को इकट्ठा करके कमरे से चली गयी. अब सारे शिष्यो ने खड़े होकर अपने अपने कपड़े उतार दिए. सिर्फ़ स्वामीजी ही कपड़े पहने हुए थे. मेरी नज़रें जैसे उनके नंगे बदन से चिपक गयी थी. ना चाहते हुए भी मेरी नज़र उनके खड़े मोटे मोटे लंड की तरफ चली जाती. अपने चारों ओर इतने सारे खड़े लंड देख कर मेरा बदन सनसनने लगा. सारे मर्द अपनी अपनी सीट पर वापस बैठ गये.
अब रजनी ने मुझे बिस्तर पर हाथों और घुटनो के बल झुका दिया. मेरा बदन अब होने वाले संभोग के बारे मे सोच सोच कर गरम हो गया था. इतने सारे मर्दो के साथ एक साथ मेरा ये पहला मौका था. आइ लुक्ड लाइक आ बिच इन हीट. मेरी योनि मे रस छूटने लगा. मेरे नितंब उन मर्दो की ओर उठे हुए थे. नितंबों के बीच मेरा गुदा द्वार साफ साफ दिख रहा था. और नितंबों के नीचे मेरी योनि के दोनो होंठ भी नज़र आ रहे थे.
गतान्क से आगे...
“ देवी आप इन सबके सामने अपनी इच्छा जाहिर करो. जिससे किसी को किसी तरह का संदेह नही रहे.” स्वामी जी ने उँची आवाज़ मे कहा.
“ मैं आज से आपकी छत्र छाया मे रहना चाहती हूँ. आप मुझे अपनी शिष्या के रूप मे स्वीकार करें.” मैने अपने चेहरे को उनकी छाती मे छिपाते हुए कहा. मैं किसी की बीवी होकर इतने सारे मर्द के सामने इतनी देर से पूरी तरह नंगी खड़ी थी मगर या तो वहाँ का महॉल या मेरी पी हुई वो शरबत या फिर नहाने के पानी मे मिले इत्र का नशा जिसकी वजह से मेरा जिस्म सेक्स की आग मे तप रहा था. मेरा हर अंग मर्द के संपर्क केलिए तड़प रहा था. मुझे कोई परवाह नही थी कि मैं किससे संभोग करवा रही हूँ. मुझे तो सिर्फ़ इतनी इच्च्छा हो रही थी कि मेरे साथ जम कर सेक्स हो. कोई मेरे एक एक अंग को रगड़ कर रख दे. मैं सेक्स की गुलाम बन गयी थी. मैं किसी के लंड के लिए उस वक़्त कुछ भी करने को तैयार थी. कुच्छ भी.
“ज़ोर से बोलो देवी जिससे हर आदमी सुन सके.” तभी स्वामीजी ने कहा
“ मैं रश्मि आज से आपको अपना गुरु मानकर आपके इस आश्रम को जाय्न करना चाहती हूँ.” मैने उँची आवाज़ मे कहा. लोगों ने दोबारा तालियाँ बजाई.
"संस्था मे जाय्न करने के लिए जो जो रस्म होती हैं उन्हे चालू किया जाय" स्वामी जी ने रजनी को कहा. कहकर स्वामीजी जाकर अपनी सीट पर बैठ गये. तभी एक लड़की एक चाँदी का कटोरा लेकर आई. रजनी ने उसे मेरे हाथ मे देते हुए कहा"इसे पी लो"
उस पात्र मे गाढ़ा गाढ़ा सफेद खीर जैसा कुछ रखा था. मैने अपने होंठों से उसे लगा कर एक घूँट भरा तब पता चला कि वो वीर्य था. इतना वीर्य? इतना वीर्य कहाँ से आया. मैं यही सोच रही थी कि रजनी ने आगे बढ़ कर उस कटोरे को वापस मेरे होंठों से च्छुआ दिया.
"ये हमारे आश्रम के सारे शिष्यों के द्वारा निकाला हुआ वीर्य है. ये यहा का प्रसाद है इसे पूरा पी लो" रजनी ने कहा. मैने छ्होटे छ्होटे घूँट भर भर कर सारे वीर्य को पी लिया. फिर उसने मुझे कटोरे की दीवार पर लगे वीर्य को चाट कर साफ करने का इशारा किया. मैने बिना किसी प्रश्न किए अपनी जीभ निकाल कर उस कटोरे से सारा वीर्य चाट कर सॉफ किया.
"आज से तुम संस्था के किसी भी मर्द के साथ सेक्स करने के लिए आज़ाद हो. और यहाँ के हर मर्द को भी ये आज़ादी है कि वो जब चाहे तुम्हे भोग सकता है. ना तो तुम्हारी किसी इच्च्छा को पूरा करने से कोई मर्द इनकार कर सकता है ना ही तुम किसी को इनकार करोगी." स्वामीजी ने कहा.
अब रजनी ने मुझे बेड के किनारे पैर लटका कर बिठा दिया. तभी एक लड़की एक खाली बड़ा कटोरा लेकर आ गयी. उसे मेरे एक स्तन के नीचे रख कर मेरे निपल्स को
पकड़ कर खींचा. रजनी की इस हरकत से मेरी उस छाती से दूध निकलने लगा.
रजनी अब मेरे स्तन को खींच खींच कर उसमे से दूध निकालने लगी. ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई औरत नही कोई गाय हूँ जिसका दूध निकाला जा रहा हो. पहले एक फिर दूसरी चूची को मेरी चूचियो को वो तब तक दूहते रहे जब तक आखरी बूँद तक नही
निकल गया. मेरी दोनो चूचियाँ उनके मसलने के वजह से लाल हो गयी थी और बुरी तरह दुख रही थी.
दूध की कटोरी लेकर सबसे पहले वो युवती स्वामी जी के पास पहुँची. स्वामी जी ने बैठ बैठ ही अपने बदन को ओढ़े लबादे की रस्सी ढीली कर दी. रजनी ने आगे बढ़ कर उनके सामने से कपड़ा हटा दिया. उनका तगड़ा लिंग वापस खड़ा हो चुक्का था. रजनी ने उस कटोरे से दूध लेकर उनके लिंग को धोया. उस वक़्त उसने एक छ्होरी कटोरी उनके लिंग के नीचे लगाई. लंड धोने के बाद जो दूध नीचे टपका उसे उस छ्होटी कटोरी मे इकट्ठा करके मेरे लिए ले आई. उसने उस कटोरी को मेरे होंठों से लगा दिया. मैने उस दूध को पी लिया.
दूसरी युवती वहाँ मौजूद एक एक आदमियों के पास जाती और उस बड़ी कटोरी को उसे देती. उसमे काफ़ी सारा दूध बचा हुआ था. हर आदमी उस से कुच्छ दूध पीता गया. ऐसा करके सारे आदमियों ने मेरा दूध चखा. मैं उनके बीच नंगी बैठी उनको अपना दूध पीता देखती रही.
उस बर्तन को खाली करने के बाद वो युवती बर्तनो को इकट्ठा करके कमरे से चली गयी. अब सारे शिष्यो ने खड़े होकर अपने अपने कपड़े उतार दिए. सिर्फ़ स्वामीजी ही कपड़े पहने हुए थे. मेरी नज़रें जैसे उनके नंगे बदन से चिपक गयी थी. ना चाहते हुए भी मेरी नज़र उनके खड़े मोटे मोटे लंड की तरफ चली जाती. अपने चारों ओर इतने सारे खड़े लंड देख कर मेरा बदन सनसनने लगा. सारे मर्द अपनी अपनी सीट पर वापस बैठ गये.
अब रजनी ने मुझे बिस्तर पर हाथों और घुटनो के बल झुका दिया. मेरा बदन अब होने वाले संभोग के बारे मे सोच सोच कर गरम हो गया था. इतने सारे मर्दो के साथ एक साथ मेरा ये पहला मौका था. आइ लुक्ड लाइक आ बिच इन हीट. मेरी योनि मे रस छूटने लगा. मेरे नितंब उन मर्दो की ओर उठे हुए थे. नितंबों के बीच मेरा गुदा द्वार साफ साफ दिख रहा था. और नितंबों के नीचे मेरी योनि के दोनो होंठ भी नज़र आ रहे थे.