राधा का राज compleet
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Re: राधा का राज
राधा की कहानी--5
गतान्क से आगे....................
मैने काँपते हाथों से बॉटल लिया. और मुँह से लगाकर एक घूँट लिया. ऐसा लगा मानो तेज़ाब मेरे मुँह और गले को जलाता हुआ पेट मे जा रहा है. मुझे फॉरन ज़ोर की उबकाई आ गई. मैने बड़ी मुश्किल से मुँह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका. पुर मुँह का स्वाद कसैला हो गया था. काफ़ी देर तक मेरा चेहरा विकृत सा रहा कुछ देर बाद जब कुछ नॉर्मल हुई तो अरुण ने वापस बॉटल मेरी ओर किया.
"लो एक और घूँट लो." अरुण ने कहा.
"नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो." मैने कहा.मगर कुछ देर बाद मैने हाथ बढ़ा कर बॉटल ले ली और एक और घूँट लिया. इस बार उतनी बुरी नहीं लगी.
"बस और नहीं." मैने बॉटल वापस कर दिया. बॉटल को वापस अरुण को लोटा ते वक़्त चादर मेरी एक चूची से हट गया था. मुझे इसका पता ही नही चल पाया. मेरा सर घूम रहा था. सीने मे अजीब सी हुलचल हो रही थी. बदन गरम होने लगा था. ऐसा लग रहा था कि बदन पर ओढ़े उस चादर को उतार फेंकू. अपने आप को बहुत हल्का फूलका महसूस कर रही थी. अपने ऊपर से कंट्रोल ख़तम होने लगा. शरीर काफ़ी गरम हो चला था. नीचे दोनो टाँगों के बीच हल्की सी सुरसुरी महसूस हो रही थी. दिमाग़ चेतावनी दे रहा था मगर शरीर पर से उसका कंट्रोल ख़त्म होता जा रहा था. बाहर हवा की साय साय महॉल को और ज़्यादा मादक बना रही थी.
अरुण ने अंदर की छोटी सी लाइट ओन कर दी थी. वो अपने हाथ मे बॉटल लेकर सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आ गया.
"तुम्हे तो पसीना आ रहा है. गर्मी कुछ ज़्यादा है." कहते हुए उसने मेरे गले को अपने हाथों से च्छुआ. मैं सिमट ते हुए दूसरी ओर सरक गयी मगर वो मेरी ओर सरक कर वापस मेरे बदन से सॅट गये.
"देखो अरुण ये सब ठीक नहीं है. तुम सामने की सीट पर जाओ." मैने कहा.
" मैं तुम्हारे साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती तो कर नही रहा हूँ. मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ." उसने वापस अपनी उंगलियों से मेरे होंठ के उपर च्छुआ और आगे कहा," देखो रूम पीने से तुमहरा बदन राहत महसूस कर रहा है. नही तो सुबह तक तो तुम ठंड से अकड़ जाती. लो एक घूँट और ले लो इस बॉटल से. रात अच्छी गुजर जाएगी."
"नहीं मुझे नहीं चाहिए." मैने इसके हाथ को सामने से हटा दिया.
उसने बॉटल से एक घूँट भरा और बॉटल सामने बैठे मुकुल को थमा दी. फिर मेरी ओर घूम कर उन्हों ने अपने बाँह फैला कर मुझे आग्पाश मे लेना चाहा. मैं उनको धक्का देती रह गयी मगर उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे समा लिया. मेरे स्तन गर्मी से तन गये थे वो उसकी छाती मे दब गये. मैं उसको अपने हाथों से धक्का दे कर दूर करने की कोशिश करती रह गयी. लेकिन कुछ तो मेरे कोशिश मे इच्च्छा का अभाव और कुछ उसके बदन मे तीवरा जोश का संचार कि मैं उनको अपने बदन से एक इंच भी नही हिला पाई. उल्टे उनका सीना और सख्ती से मेरे स्तनो को पीसने लगा.
उसके गरम होंठ मेरे होंठों से चिपक गये. मैने अपने सिर को हिलाकर उसके होंठो से दूर होने की कोशिश की.
"म्म्म्मम…नहियीई… ..नहियीई… .आआरूओं नही……ये सब न..नाही…" मैने उसके चेहरे को दूर करने की कोशिश की मगर नाकाम होने पर मैने उसके बालो को अपनी मुट्ठी मे भर कर अपने से दूर धकेला. उसके सिर के कुछ बाल टूट कर मेरी मुट्ठी मे रह गये मगर उसका सिर नही हिला. उसने मेरे गले पर अपने तपते होंठ रख दिए. सामने मुकुल रम की बॉटल बार बार अपने होंठों से छुआता हुआ. पीछे की सीट पर
चल रही ज़ोर आज़मैंश को देखते हुए मुस्कुरा रहा था.
मैने उसे धकेलने की कोशिश की मगर वो मेरे बदन से और ज़ोर से चिपक गया. उसने मेरे बदन से लिपटे चादर के अंदर अपने हाथों को डालने की कोशिश की मगर उसके हाथ चादर का छोर ढूँढ नही पा
रहे थे. उसने झुंझला कर चादर के बाहर से ही मेरे स्तनो को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया. किसी पदाए मर्द की नज़द्दीकियाँ, शराब का सुरूर, रात का अंधेरा और वातावरण की मदहोशी सब मिल कर मेरे
दिमाग़ को शिथिल करते जा रहे थे. धीरे धीरे मैं कमजोर पड़ती जा रही थी. उसने एक झटके मे मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया.
"मुकुल ले इसे सम्हाल." अरुण ने चादर आगे की सीट पर उच्छाल दिया जिसे मुकुल ने समहाल लिया. मेरे बदन पर अब सिर्फ़ एक पॅंटी की अलावा कुछ भी नहीं था. मैं अपने हाथो से अपने नग्न बदन को च्चिपाने की कोशिश कर रही थी. मगर बूब्स के साइज़ बड़े होने की वजह से उन्हे सम्हालने मे असमर्थ थी. अरुण ने मेरे नग्न बदन को अपने सीने पर खींच लिया. दोनो के नग्न बदन आपस मे कस कर लिपट गये. मुझे लगा मानो मेरे सीने की सारी हवा निकल गयी हो. मैं कस मसा रही थी. लेकिन अपने खड़े निपल्स को और अपने कड़े बूब्स को उसके चौड़े सीने पर रगड़ने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी. उसे तो मेरे इस तरह च्चटपटाने मे और भी मज़ा आ रहा था.
मैने अरुण को धकेलते हुए कहा"प्लीज़… . छोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउन्गि"
मगर मैं उसकी पकड़ से छ्छूट नही पा रही थी," अरुउउऊँ क्या कर रहे हूओ. प्लीईस….प्लीईएसस… ..रचना को पता चल गया तो गजब हो जाएगा…..छोड़… .छोड़ो मुझे…" मैने उँची आवाज़ मे कहना शुरू किया.
"मचाओ शोर. जितना चाहे चीखो यहाँ मीलों तक सिर्फ़ पेड, पत्थर और जानवरों के सिवा तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है."मुकुल पीछे घूम कर हमारी रासलीला देखने लगा. अरुण के हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे. उसके नग्न बदन से मेरा बदन चिपका हुआ था. मैने काफ़ी बचने की कोशिश की अपनी सहेली की दुहाई भी दी मगर अरुण तो मानो पूरा राक्षश बन चुका था.उस पर मेरा गिड़गिडना, रोना और च्चटपटाना कोई असर नही डाल रहा था.
गतान्क से आगे....................
मैने काँपते हाथों से बॉटल लिया. और मुँह से लगाकर एक घूँट लिया. ऐसा लगा मानो तेज़ाब मेरे मुँह और गले को जलाता हुआ पेट मे जा रहा है. मुझे फॉरन ज़ोर की उबकाई आ गई. मैने बड़ी मुश्किल से मुँह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका. पुर मुँह का स्वाद कसैला हो गया था. काफ़ी देर तक मेरा चेहरा विकृत सा रहा कुछ देर बाद जब कुछ नॉर्मल हुई तो अरुण ने वापस बॉटल मेरी ओर किया.
"लो एक और घूँट लो." अरुण ने कहा.
"नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो." मैने कहा.मगर कुछ देर बाद मैने हाथ बढ़ा कर बॉटल ले ली और एक और घूँट लिया. इस बार उतनी बुरी नहीं लगी.
"बस और नहीं." मैने बॉटल वापस कर दिया. बॉटल को वापस अरुण को लोटा ते वक़्त चादर मेरी एक चूची से हट गया था. मुझे इसका पता ही नही चल पाया. मेरा सर घूम रहा था. सीने मे अजीब सी हुलचल हो रही थी. बदन गरम होने लगा था. ऐसा लग रहा था कि बदन पर ओढ़े उस चादर को उतार फेंकू. अपने आप को बहुत हल्का फूलका महसूस कर रही थी. अपने ऊपर से कंट्रोल ख़तम होने लगा. शरीर काफ़ी गरम हो चला था. नीचे दोनो टाँगों के बीच हल्की सी सुरसुरी महसूस हो रही थी. दिमाग़ चेतावनी दे रहा था मगर शरीर पर से उसका कंट्रोल ख़त्म होता जा रहा था. बाहर हवा की साय साय महॉल को और ज़्यादा मादक बना रही थी.
अरुण ने अंदर की छोटी सी लाइट ओन कर दी थी. वो अपने हाथ मे बॉटल लेकर सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आ गया.
"तुम्हे तो पसीना आ रहा है. गर्मी कुछ ज़्यादा है." कहते हुए उसने मेरे गले को अपने हाथों से च्छुआ. मैं सिमट ते हुए दूसरी ओर सरक गयी मगर वो मेरी ओर सरक कर वापस मेरे बदन से सॅट गये.
"देखो अरुण ये सब ठीक नहीं है. तुम सामने की सीट पर जाओ." मैने कहा.
" मैं तुम्हारे साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती तो कर नही रहा हूँ. मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ." उसने वापस अपनी उंगलियों से मेरे होंठ के उपर च्छुआ और आगे कहा," देखो रूम पीने से तुमहरा बदन राहत महसूस कर रहा है. नही तो सुबह तक तो तुम ठंड से अकड़ जाती. लो एक घूँट और ले लो इस बॉटल से. रात अच्छी गुजर जाएगी."
"नहीं मुझे नहीं चाहिए." मैने इसके हाथ को सामने से हटा दिया.
उसने बॉटल से एक घूँट भरा और बॉटल सामने बैठे मुकुल को थमा दी. फिर मेरी ओर घूम कर उन्हों ने अपने बाँह फैला कर मुझे आग्पाश मे लेना चाहा. मैं उनको धक्का देती रह गयी मगर उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे समा लिया. मेरे स्तन गर्मी से तन गये थे वो उसकी छाती मे दब गये. मैं उसको अपने हाथों से धक्का दे कर दूर करने की कोशिश करती रह गयी. लेकिन कुछ तो मेरे कोशिश मे इच्च्छा का अभाव और कुछ उसके बदन मे तीवरा जोश का संचार कि मैं उनको अपने बदन से एक इंच भी नही हिला पाई. उल्टे उनका सीना और सख्ती से मेरे स्तनो को पीसने लगा.
उसके गरम होंठ मेरे होंठों से चिपक गये. मैने अपने सिर को हिलाकर उसके होंठो से दूर होने की कोशिश की.
"म्म्म्मम…नहियीई… ..नहियीई… .आआरूओं नही……ये सब न..नाही…" मैने उसके चेहरे को दूर करने की कोशिश की मगर नाकाम होने पर मैने उसके बालो को अपनी मुट्ठी मे भर कर अपने से दूर धकेला. उसके सिर के कुछ बाल टूट कर मेरी मुट्ठी मे रह गये मगर उसका सिर नही हिला. उसने मेरे गले पर अपने तपते होंठ रख दिए. सामने मुकुल रम की बॉटल बार बार अपने होंठों से छुआता हुआ. पीछे की सीट पर
चल रही ज़ोर आज़मैंश को देखते हुए मुस्कुरा रहा था.
मैने उसे धकेलने की कोशिश की मगर वो मेरे बदन से और ज़ोर से चिपक गया. उसने मेरे बदन से लिपटे चादर के अंदर अपने हाथों को डालने की कोशिश की मगर उसके हाथ चादर का छोर ढूँढ नही पा
रहे थे. उसने झुंझला कर चादर के बाहर से ही मेरे स्तनो को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया. किसी पदाए मर्द की नज़द्दीकियाँ, शराब का सुरूर, रात का अंधेरा और वातावरण की मदहोशी सब मिल कर मेरे
दिमाग़ को शिथिल करते जा रहे थे. धीरे धीरे मैं कमजोर पड़ती जा रही थी. उसने एक झटके मे मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया.
"मुकुल ले इसे सम्हाल." अरुण ने चादर आगे की सीट पर उच्छाल दिया जिसे मुकुल ने समहाल लिया. मेरे बदन पर अब सिर्फ़ एक पॅंटी की अलावा कुछ भी नहीं था. मैं अपने हाथो से अपने नग्न बदन को च्चिपाने की कोशिश कर रही थी. मगर बूब्स के साइज़ बड़े होने की वजह से उन्हे सम्हालने मे असमर्थ थी. अरुण ने मेरे नग्न बदन को अपने सीने पर खींच लिया. दोनो के नग्न बदन आपस मे कस कर लिपट गये. मुझे लगा मानो मेरे सीने की सारी हवा निकल गयी हो. मैं कस मसा रही थी. लेकिन अपने खड़े निपल्स को और अपने कड़े बूब्स को उसके चौड़े सीने पर रगड़ने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी. उसे तो मेरे इस तरह च्चटपटाने मे और भी मज़ा आ रहा था.
मैने अरुण को धकेलते हुए कहा"प्लीज़… . छोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउन्गि"
मगर मैं उसकी पकड़ से छ्छूट नही पा रही थी," अरुउउऊँ क्या कर रहे हूओ. प्लीईस….प्लीईएसस… ..रचना को पता चल गया तो गजब हो जाएगा…..छोड़… .छोड़ो मुझे…" मैने उँची आवाज़ मे कहना शुरू किया.
"मचाओ शोर. जितना चाहे चीखो यहाँ मीलों तक सिर्फ़ पेड, पत्थर और जानवरों के सिवा तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है."मुकुल पीछे घूम कर हमारी रासलीला देखने लगा. अरुण के हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे. उसके नग्न बदन से मेरा बदन चिपका हुआ था. मैने काफ़ी बचने की कोशिश की अपनी सहेली की दुहाई भी दी मगर अरुण तो मानो पूरा राक्षश बन चुका था.उस पर मेरा गिड़गिडना, रोना और च्चटपटाना कोई असर नही डाल रहा था.
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Re: राधा का राज
मेरा विरोध भी धीरे धीरे मंद पड़ता जा रहा था. उसने मेरे उरोज थाम लिए और निपल्स अपने मुँह मे ले कर चूसने लगा. उसने एक हाथ से अपने बदन से आखरी वस्त्र भी उतार दिया और मेरे हाथ को पकड़ कर अपने तपते लंड पर रख दिया. मैने हटाने की कोशिश की मगर उसके हाथ मजबूती से मेरे हाथ को लंड पर थाम रखे थे. मुझे राज शर्मा के अलावा किसी और के लंड को अपने हाथों मे लेकर सहलाना अजीब लग रहा था मगर मेरे शरीर मे अब उसका विरोध करने की ना तो ताक़त और ना ही इच्च्छा बची थी. शराब अपना असर दिखाने लगी. मेरा बदन भी गरम होने लगा. कुछ देर बाद मैने अपने को ढीला छोड़ दिया. मैं समझ गयी कि आज इस वीराने मे दोनो मुझ से संभोग किए बिना मुझे छोड़ेंगे नही. मैं जितना विरोध करती संभोग उतना ही दर्दीला होता और पता नही इस वीरने मे दोनो अपनी हवस मिटाने के बाद अपने पाप च्चिपाने के लिए मुझ पर हमला भी कर सकते थे. मैने अपना विरोध पूरी तरह समाप्त कर दिया.
उसके हाथ मेरे स्तनो को मसल्ने लगे. उसके होंठ मेरे होंठों से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुँह के अंदर घूम रही थी.मुकुल से अब नहीं रहा गया और वो दूसरी साइड का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया. उसने पहले सीट के लीवर को खोल कर बॅक रेस्ट को गिरा कर दिया. पीछे की सीट खुल कर एक आरामदेह बिस्तर का रूप ले ली थी. गड़ी के अंदर जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफ़ी था.दोनो एक साथ मेरे बदन पर टूट परे. मैं उनके बीच फँसी हुई थी. दोनो ने मेरे एक एक उरोज थाम लिए. उनके साथ दोनो बुरी तरह पेश आरहे थे. मसल मसल कर मेरे दोनो स्तनो को लाल कर दिए थे. कभी चूस रहे थे कभी काट रहे थे तो कभी चाट रहे थे. मेरे दोनो स्तन उनकी हरकतों से दुखने लगे थे.
मेरे दोनो हाथों मे एक एक लंड था. दोनो लुंडों को मैं अपनी मुट्ठी मे भर कर सहला रही थी. मेरी पॅंटी पहले से ही गीली थी वरना मेरे काम रस से गीली हो जाती. मेरी योनि से बुरी तरह काम रस चू रहा था. मेरी योनि मर्द के लंड के लिए तड़प रही थी. मैं उनकी हरकतों से खूब गरम हो चुकी थी.
दोनो अपने एक-एक हाथ से मेरी योनि को पॅंटी के उपर से सहला रहे थे. कभी कभी दोनो के हाथ मेरे नितंबों को मसल्ने लगते. मैं अपनी जांघों को एक दूसरे पर सख्ती से जाकड़ कर उनके काम मे बाधा डालने की कोशिश कर रही थी. मगर दोनो के आगे मेरी एक नही चल रही थी. उल्टे मैं इस तरह से और उत्तेजित हो गयी और एक झटके से मैने अपनी योनि को सीट पर से उठा कर उनके हाथों को और अंदर जाने का मूक आग्रह किया. इसी के साथ मेरे बदन से मेरा सारा विरोध तरल रूप ले कर बह निकला. मेरा स्खलन हो गया था. मैं अपने इस हरकत को उनकी नज़रों से नही छिपा पाई और शर्म से पानी पानी हो गयी थी.
"देख…..देख मुकुल कैसे ना..ना…कर रही थी. अब देख कैसे हमारे लंड लेने के लिए तड़प रही है." मुकुल उसकी बात पर ज़ोर से हंस पड़ा मैं शर्म से सिकुड गयी.दोनो ने मेरी पॅंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया. उसी के साथ दो जोड़ी उंगलियाँ मेरी योनि मे प्रवेश कर गयी.
"आआहहूऊओह……क्य्ाआअ…..काार रहीए हूऊओ" मेरे मुँह से वासना भारी सिसकारियाँ निकल रही थी.अरुण ने मुझे किसी गुड़िया की तारह उठा कर अपनी गोद मे बिठा लिया. उसने मेरे दोनो पैरों को फैला कर अपने कमर के दोनो ओर रखा. फिर उसने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. मेरे बड़े-बड़े उरोज उसके सीने मे पिसे जा रहे थे. वो मेरे होंठों को चूम रहा था. उस वक़्त मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फिसल रहे थे. अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसे फिरा रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो. पूरे बदन मे झूर झूरी सी दौड़ रही थी.मैं दोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी. अरुण का लंड मेरी योनि को उपर से सहला रहा था. मैं खुद उसकी गोद मे आगे पीछे होकर उसके लंड को अपनी योनि से रगड़ रही थी. अब मेरी रही सही झिझक भी ख़त्म हो गयी थी. मैं अपने हाथ से अरुण के लंड के टोपे कोआपनी योनि के द्वार पर सटा कर अंदर डालने की कोशिश करने लगी. लेकिन आंगल कुछ ऐसा था कि वो अंदर नही जा पा रहा था. अरुण और मुकुल मेरी हरकतों पर हंस रहे थे. मुझे ऐसी हालत मे मुझे कोई देखता तो एक वेश्या ही समझता. मेरी डिग्निटी, मेरा रेप्युटेशन,मेरी सिक्षा सब इस आदिम भूख के सामने छोटी पड़ गयी थी. मेरी आँखो मे मेरा प्यार, मेरा हम दम, मेरे पति के चेहरे पर इन दोनो के चेहरे नज़र आ रहे थे. शराब ने मुझे अपने वश मे ले लिया था. सब कुछ घूमता हुआ लग रहा था. मेरा सिर इतनी बुरी तरह घूम रहा था कि मैं इनकी पकड़ मे आराम महसूस कर रही थी. दिमाग़ कह रहा था कि जो हो रहा है वो अच्छा नहीं है मगर मैं किसिको मना करने की स्तिथि मे नहीं थी. मेरा बदन चाह रहा था की दोनो मुझे खूब मसले खूब रब करें खूब रगड़ें. पता नही दोनो ने उस ड्रिंक मे भी कुछ मिला दिया था या नही लेकिन मेरी कामोत्तेजना नॉर्मल से दस गुना बढ़ गयी थी. मैं सेक्स की भूख से तड़प रही थी.
अरुण ने मेरे होंठों को चूस चूस कर सूजा दिया था. फिर उन्हें छोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़ा. अपने दोनो हाथों से मेरे एक-एक उरोज को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुँह मे डाल कर चूस रहा था. ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बॉटल आ गयी हो. दाँतों के निशान पूरे उरोज पर नज़र आ रहे थे. मैं ने अपने हाथों से अरुण का सिर पकड़ रखा था और उसे अपने उरोज पर दबाने लगी.
उसके हाथ मेरे स्तनो को मसल्ने लगे. उसके होंठ मेरे होंठों से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुँह के अंदर घूम रही थी.मुकुल से अब नहीं रहा गया और वो दूसरी साइड का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया. उसने पहले सीट के लीवर को खोल कर बॅक रेस्ट को गिरा कर दिया. पीछे की सीट खुल कर एक आरामदेह बिस्तर का रूप ले ली थी. गड़ी के अंदर जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफ़ी था.दोनो एक साथ मेरे बदन पर टूट परे. मैं उनके बीच फँसी हुई थी. दोनो ने मेरे एक एक उरोज थाम लिए. उनके साथ दोनो बुरी तरह पेश आरहे थे. मसल मसल कर मेरे दोनो स्तनो को लाल कर दिए थे. कभी चूस रहे थे कभी काट रहे थे तो कभी चाट रहे थे. मेरे दोनो स्तन उनकी हरकतों से दुखने लगे थे.
मेरे दोनो हाथों मे एक एक लंड था. दोनो लुंडों को मैं अपनी मुट्ठी मे भर कर सहला रही थी. मेरी पॅंटी पहले से ही गीली थी वरना मेरे काम रस से गीली हो जाती. मेरी योनि से बुरी तरह काम रस चू रहा था. मेरी योनि मर्द के लंड के लिए तड़प रही थी. मैं उनकी हरकतों से खूब गरम हो चुकी थी.
दोनो अपने एक-एक हाथ से मेरी योनि को पॅंटी के उपर से सहला रहे थे. कभी कभी दोनो के हाथ मेरे नितंबों को मसल्ने लगते. मैं अपनी जांघों को एक दूसरे पर सख्ती से जाकड़ कर उनके काम मे बाधा डालने की कोशिश कर रही थी. मगर दोनो के आगे मेरी एक नही चल रही थी. उल्टे मैं इस तरह से और उत्तेजित हो गयी और एक झटके से मैने अपनी योनि को सीट पर से उठा कर उनके हाथों को और अंदर जाने का मूक आग्रह किया. इसी के साथ मेरे बदन से मेरा सारा विरोध तरल रूप ले कर बह निकला. मेरा स्खलन हो गया था. मैं अपने इस हरकत को उनकी नज़रों से नही छिपा पाई और शर्म से पानी पानी हो गयी थी.
"देख…..देख मुकुल कैसे ना..ना…कर रही थी. अब देख कैसे हमारे लंड लेने के लिए तड़प रही है." मुकुल उसकी बात पर ज़ोर से हंस पड़ा मैं शर्म से सिकुड गयी.दोनो ने मेरी पॅंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया. उसी के साथ दो जोड़ी उंगलियाँ मेरी योनि मे प्रवेश कर गयी.
"आआहहूऊओह……क्य्ाआअ…..काार रहीए हूऊओ" मेरे मुँह से वासना भारी सिसकारियाँ निकल रही थी.अरुण ने मुझे किसी गुड़िया की तारह उठा कर अपनी गोद मे बिठा लिया. उसने मेरे दोनो पैरों को फैला कर अपने कमर के दोनो ओर रखा. फिर उसने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. मेरे बड़े-बड़े उरोज उसके सीने मे पिसे जा रहे थे. वो मेरे होंठों को चूम रहा था. उस वक़्त मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फिसल रहे थे. अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसे फिरा रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो. पूरे बदन मे झूर झूरी सी दौड़ रही थी.मैं दोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी. अरुण का लंड मेरी योनि को उपर से सहला रहा था. मैं खुद उसकी गोद मे आगे पीछे होकर उसके लंड को अपनी योनि से रगड़ रही थी. अब मेरी रही सही झिझक भी ख़त्म हो गयी थी. मैं अपने हाथ से अरुण के लंड के टोपे कोआपनी योनि के द्वार पर सटा कर अंदर डालने की कोशिश करने लगी. लेकिन आंगल कुछ ऐसा था कि वो अंदर नही जा पा रहा था. अरुण और मुकुल मेरी हरकतों पर हंस रहे थे. मुझे ऐसी हालत मे मुझे कोई देखता तो एक वेश्या ही समझता. मेरी डिग्निटी, मेरा रेप्युटेशन,मेरी सिक्षा सब इस आदिम भूख के सामने छोटी पड़ गयी थी. मेरी आँखो मे मेरा प्यार, मेरा हम दम, मेरे पति के चेहरे पर इन दोनो के चेहरे नज़र आ रहे थे. शराब ने मुझे अपने वश मे ले लिया था. सब कुछ घूमता हुआ लग रहा था. मेरा सिर इतनी बुरी तरह घूम रहा था कि मैं इनकी पकड़ मे आराम महसूस कर रही थी. दिमाग़ कह रहा था कि जो हो रहा है वो अच्छा नहीं है मगर मैं किसिको मना करने की स्तिथि मे नहीं थी. मेरा बदन चाह रहा था की दोनो मुझे खूब मसले खूब रब करें खूब रगड़ें. पता नही दोनो ने उस ड्रिंक मे भी कुछ मिला दिया था या नही लेकिन मेरी कामोत्तेजना नॉर्मल से दस गुना बढ़ गयी थी. मैं सेक्स की भूख से तड़प रही थी.
अरुण ने मेरे होंठों को चूस चूस कर सूजा दिया था. फिर उन्हें छोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़ा. अपने दोनो हाथों से मेरे एक-एक उरोज को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुँह मे डाल कर चूस रहा था. ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बॉटल आ गयी हो. दाँतों के निशान पूरे उरोज पर नज़र आ रहे थे. मैं ने अपने हाथों से अरुण का सिर पकड़ रखा था और उसे अपने उरोज पर दबाने लगी.