Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip

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Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip

Unread post by admin » 13 Jan 2016 09:06

मेरे घण्टी बजाते ही दरवाज़ा खुला..
मुझे ऐसा लगा जैसे माया घंटों से मेरे आने का इंतज़ार कर रही
हो।
दरवाज़ा खुलते ही मेरी नजर माया पर पड़ी जो कि बला की
खूबसूरत लग रही थी।
मैंने आज उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक महसूस की.. जो
कि शायद उसकी वर्षों बाद यौन-लालसा की तृप्ति का
सन्देश दे रही थी।
फिर मैंने घर के अन्दर प्रवेश किया और दरवाज़ा बंद करके उसको
अपनी बाँहों में कैद कर लिया और वो भी मेरे बाँहों में कुछ इस
तरह सिमटी की जैसे हम वर्षों के बिछड़े हों।
फिर कुछ देर इसी तरह खड़े रहने के बाद मैंने उसकी आँखों में
झांकते हुए उसकी ढेर सारी तारीफ़ की.. जिससे उसको
चरमानन्द प्राप्त हुआ और खुश होकर प्यार से मुझे चुम्बन करते
हुए राहुल ‘आई लव यू’ बोलने लगी।
सच यार… मुझे भी कुछ समझ न आ रहा था कि ये सब सच है या
मात्र एक कल्पना…
क्योंकि लड़कियों के बारे में तो सोचना अलग बात होती है,
पर जब आपको एक एक्सपीरिएंस्ड औरत गर्ल-फ्रेंड के रूप में मिल
जाए और वो भी माया जैसी.. तो जिन्दगी ही बदल जाए।
वो मुझे इस तरह खोया हुआ देखकर बोली- कहाँ खो जाते हो
जान..
तो मैंने बोला- तुम हो ही इतनी सुन्दर.. समझ ही नहीं आता
कि तुझे प्यार करूँ या तेरे रूप को ही देखता रहूँ।
तो इस पर वो बोली- तुम्हें पूरी छूट है.. कुछ भी करो.. बस मुझे
अब छोड़ के न जाना.. वर्ना मैं मर जाऊँगी.. तुम्हें एक पल के
लिए भी अपने से दूर नहीं देख सकती।
उसके दिल में शायद मेरे लिए अपने पति से भी ज्यादा प्यार
जाग चुका था।
तो मैंने बोला- माया ये सब तो ठीक है.. पर जब मेरे माँ-बाप
मेरी शादी कर देंगे तब?
तो वो कहने लगी- मैं भी तो शादीशुदा हूँ.. कोई बात नहीं..
बस अपने दिल से मुझे कभी अलग मत करना.. तुम जो चाहोगे वो
मैं दूंगी और जो चाहोगे मैं वैसा ही करुँगी।
तो मैंने उसे फिर से अपनी बाँहों में भर लिया और उसके गालों
और आँखों को चूमने लगा।
उसकी ख़ुशी की झलक उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी।
फिर मैंने उसके उरोज़ों को मसलना प्रारम्भ कर दिया..
जिससे उसकी ‘आह’ निकलने लगी।
मैंने जैसे ही उसके चूचों को आजाद करने के लिए उसकी कुर्ती
उठाई तो वो बोली- जरा सब्र भी करो.. आज तो पूरी रात
अपनी है.. जैसे चाहो वैसे प्यार कर लेना.. पहले हम खाना खा
लेते हैं।
तो मैंने पूछा- आज क्या बना है?
उन्होंने बोला- तुम्हारे मन का है।
तो मैंने कहा- आपको कैसे पता.. मुझे क्या अच्छा लगता है?
तो वो बोली- उस दिन पार्टी में जब विनोद को बता रहे थे..
तो मैंने सुना था।
फिर मैं बोला- चलो बढ़िया है.. जल्दी लाओ.. आपने तो मेरे
पेट की आग को हवा दे दी।
फिर हमने साथ मिलकर छोला-कचौड़ी खाई और खाना
खाने के बाद आंटी ने रसोई का काम ख़त्म किया और जल्दी
से वो मेरे पास आ गई।
मैं टीवी देख रहा था.. फिर मैंने उससे बोला- मेरी एक आदत और
है.. अगर आपको बुरा न लगे तो मेरे लिए एक कप चाय बना
दीजिएगा।
दोस्तो, रात के खाने के बाद गरमागरम चाय का अपना एक
अलग ही आनन्द होता है और कनपुरियों को चाय तो बचपन से
ही पसंद होती है।

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Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip

Unread post by admin » 13 Jan 2016 09:06

तो वो मुस्कुराते हुए अपनी भौंहें तान कर बोली- अरे ये क्या..
मैं भला.. बुरा क्यों मानूंगी.. मुझे तो अपने नवाब का कहना
मानना ही पड़ेगा।
तो मैंने बोला- मैं कोई नवाब नहीं हूँ।
बोली- तो क्या हुआ.. शौक तो नवाबों वाले हैं।
फिर वो रसोई गई और मेरे लिए चाय ले आई और मुझे चाय का
कप पकड़ाते हुए हँसने लगी।
मैंने कारण पूछा- अब क्या हुआ?
तो बोली- और कोई हुक्म..?
मैंने बोला- यार प्लीज़.. मेरा मजाक मत उड़ाओ नहीं तो मैं
नाराज हो जाऊँगा।
वो बोली- अरे ऐसा मत करना.. भला अपनी दासी से कोई
नाराज़ होता है.. नहीं न.. बल्कि हुक्म देता है।
मैंने बोला- अच्छा अगर यही बात है.. तो क्या मेरी इच्छा पूरी
करोगी?
तो बोली- मैं तो तुम्हारी हर इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हूँ।
मैंने बोला- मेरे मन में बहुत दिन से था कि जब मेरी शादी हो
जाएगी तो अपनी बीवी को रात भर निर्वस्त्र रखूँगा.. क्या
आप मेरे लिए अपने सारे कपड़े उतार सकती हैं।
वो बोली- बस.. इत्ती सी बात.. राहुल मैं तुम्हारे लिए कुछ
भी कर सकती हूँ.. मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।
यह कहते हुए माया ने एक-एक करके सारे कपड़े निकाल दिए।
उसके जोश और मादकता से भरे शरीर को देखकर मेरे पप्पू
पहलवान में भी जान आने लगी और धीरे-धीरे लौड़े के अकड़ने से
मेरे लोअर के अन्दर टेंट सा बन गया..
जिसे माया ने देख लिया और मुस्कराते हुए बोली- मेरा असली
राजकुमार तो ये है.. जो मुझे देखते ही नमस्कार करने लगता है
और एक तुम हो जो हमेशा मेरे राजाबाबू को दबाते और मुझसे
छिपाते रहते हो।
मैंने बोला- अरे ऐसा नहीं है.. आओ मेरे पास आ कर बैठो।
वो मुस्कुराते हुए मेरे बगल में बैठ गई तो मैंने उसके गाल पर चुम्बन
लिया और अपनी गोद में लिटा लिया।
हम दोनों की प्यार भरी बातें होने लगी जिससे हम दोनों
को काफी अच्छा महसूस हो रहा था.. ऐसा मन कर रहा था
कि जैसे बस इसी घड़ी समय रुक जाए और ये पल ऐसे ही बने रहें।

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Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip

Unread post by admin » 13 Jan 2016 09:07

मैं कभी उसके बालों से खेलता तो कभी उसकी नशीली आँखों
में झांकते हुए उसके होंठों में अपनी उँगलियों को घुमाता..
जिससे दोनों को ही मज़ा आ रहा था।
मुझे तो मानो जन्नत सी मिल गई थी, क्योंकि ये अहसास
मेरा पहला अहसास था।
मैं और वो इस खेल में इतना लीन हो गए थे कि मुझे पता ही न
चला कि मैंने कब उसके उरोजों को नग्न कर दिया और उसको
भी कोई होश न था कि उसके मम्मे अब कपड़ों की गिरफ्त से
आज़ाद हैं।
जब मैंने उसके कोमल संतरों और गेंद की तरह सख्त उरोजों को
मल-मल कर रगड़ना और सहलाना प्रारम्भ किया तो उनके मुख
से एक आनन्दमयी सीत्कार “आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह” निकल पड़ी।
जिसके कारण मेरा रोम-रोम खिल उठा और मैंने माया के
किशमिशी टिप्पों (निप्पलों) को अपने अंगूठों से मींजने
लगा। जिससे माया को अहसास हुआ कि उसके गेंदनुमा
खिलौने कपड़ों की गिरफ्त से छूट कर मेरे हाथों में समा चुके हैं।
उसके मुख की सीत्कार देखते ही देखते बढ़ती चली गई-
आआअहह श्ह्ह्हह्ह् ह्ह्ह्ह.. बहुत अच्छा लग रहा है राहुल.. इनको
मुँह से चूसो.. चूस लो इनका रस.. निकाल दो इसकी सारी
ऐंठन..
मैंने उसी अवस्था में झुक कर उनके माथे को चूमा और उनकी
आँखों में आनन्द की झलक देखने लगा।
एकाएक माया ने अपने हाथों से मेरे सर को झुका कर मेरे होंठों
को अपने होंठों से लगा कर रसपान करने लगी। जिसका मैंने
भी मुँहतोड़ जवाब देते हुए करीब 15 मिनट तक गहरी चुम्मी
ली।
जैसे हम जन्मों के प्यासे.. एक-दूसरे के मुँह में पानी ढूँढ़ रहे हों और
इस प्रक्रिया के दौरान उसके मम्मों की भी मालिश जारी
रखी जिससे माया के अन्दर एक अजीब सा नशा चढ़ता चला
गया जो कि उसकी निगाहों से साफ़ पता चल रहा था।
फिर धीरे से उसने मेरे होंठों को आज़ाद करते हुए अपने मम्मों
को चूसने का इशारा किया तो मैंने भी बिना देर करते हुए ही
उसके सर को अपनी गोद से हटाकर कुशन पर रखा और घुटनों के
बल जमीन पर बैठ कर उसके चूचों का रस चूसने लगा।
क्या मस्त चूचे थे यार.. पूछो मत।
मैं सुबह तो इतना उत्तेजित था कि मैंने इन पर इतना ध्यान ही
न दिया था।
लेकिन हाँ.. इस वक़्त मैं उसको चूसते हुए एक अज़ब से आनन्द के
सागर में गोते लगाने लगा था। उसके चूचे इतने कोमल कि जैसे मैं
किसी स्ट्रॉबेरी को मुँह में लेकर चूस रहा हूँ..
इस कल्पना को शब्दों में परिणित ही नहीं कर सकता कि
क्या मस्त अहसास था उसका..
मैं अपने दूसरे हाथ से उसके टिप्पों को मसल रहा था, जिससे
माया के मुँह से आनन्दभरी सीत्कार ‘आआअह ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह’
निकल जाती जिससे मैं अपने आप आनन्द में डूब कर उसके मम्मों
को और जोर से चूसने और रगड़ने लगता।
माया को भी इस खेल में इतना आनन्द आ रहा था जो कि
उसके बदन की ऐंठन से साफ़ पता चल रहा था और हो भी क्यों
न… जब इतना कामोत्तेजक माहौल होगा.. तो कुछ भी हो
सकता था।

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