Bhoot bangla-भूत बंगला

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raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 12:02

भूत बंगला पार्ट--12

गतान्क से आगे................

लड़की की कहानी जारी है........................
वो खामोशी से नीचे ज़मीन पर बैठी हुई थी. चेर पर उसका चाचा नंगा टांगे फेलाए बैठा था जिसके खड़े हुए लंड को वो अपने हाथ से पकड़े उपेर नीचे हिला रही थी. पास ही आयिल की एक बॉटल रखी हुई थी जिसमें से वो थोड़ा थोडा आयिल निकालकर लंड पर डालती रहती थी.

"ज़ोर से हिला और हाथ उपेर से नीचे तक पूरा ला" चाचा ने आँखें बंद किए किए ही कहा.
उनके बताए मुताबिक ही उसने अपना हाथ की स्पीड बढ़ा दी और हाथ लंड के उपेर से लेके नीचे तक रगड़ने लगी. चाचा के चेहरे पर एक नज़र डालके वो बता सकती थी के उन्हें बहुत मज़ा आ रहा था. उनके चेहरे पर अजीब से भाव थे और बीच बीच में वो अपनी कमर को उपेर नीचे हिलाने लगते.

आज जाने क्यूँ उसको इस खेल में मज़ा आ रहा था. अब तक वो सिर्फ़ अपने चाचा के कहने पर उनका लंड हिलाती थी वो भी आधे मंन से पर आज उसको भी इस काम में मज़ा आ रहा था. आज चाचा के लंड पर पहली नज़र पड़ते ही सबसे पहले उसके दिमाग़ में उस आदमी का लंड आया था जो उस दिन चाची के साथ ये खेल खेल रहा था. वो आपस में दोनो लंड मिलाने लगी. उस आदमी का लंड चाचा के लंड से मोटा भी था और लंबा भी और चाची दोनो के साथ ही खेलती थी. पर उस दिन की चाची की आवाज़ों से उसको समझ आ गया था के चाची को उस आदमी के साथ ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

उस रात के बाद जब उसने अपनी चाची को नंगी देखा था वो बस इसी मौके की तलाश में रहती थी के किसी तरह चाची के नंगे जिस्म की एक झलक मिल जाए. पर ये मौका उसके हाथ आया नही. एक दो बार जब चाची झुकी तो उसको उनकी चूचिया ज़रूर नज़र आई पर उनके जिस्म को वो हिस्सा जो उसको सबसे अच्छा लगता था, उनकी गांद वो दोबारा देख नही सकी. साथ साथ उसके दिल में ये भी एक अजीब सी क्यूरीयासिटी थी के उस दिन चाची टाँगो के बीच हाथ डालकर क्या कर रही थी.

चाचा की सांसो अब भारी हो चली थी और उनके चेहरे के एक्सप्रेशन और भी ज़्यादा इनटेन्स हो गये थे. वो समझ गयी थी के अब क्या होने वाला है. जब चाचा के लंड से वो सफेद सी चीज़ निकलने वाली होती थी तब उनका चेहरा ऐसा ही हो जाता था.
पहली बार जब उसने लंड हिलाया तो वो सफेद सी चीज़ ठीक उसके उपेर आ गिरी थी और उसको बहुत घिंन आई थी. उसके बाद वो होशियार रहने लगी थी. जब भी चाचा का चेहरा सख़्त होता, वो साइड होकर लंड हिलाती ताकि लंड से निकलता पानी उसके उपेर ना गिरे. पर आज ऐसा ना हुआ. उसको वो मंज़र याद आया जब उस आदमी ने चाची के मुँह में अपने लंड से सफेद पानी गिराया था. उसको समझ नही आया के चाची ऐसा क्यूँ कर रही थी पर वो अब ये खुद करके देखना चाहती थी.

उसने अपने हाथ की स्पीड बढ़ा दी और तेज़ी से लंड हिलाने लगी. 10-12 बार हाथ उपेर नीचे हुआ ही था के चाचा की कमर ने एक झटका मारा और लंड ने धार छ्चोड़ दी. वो सफेद सी चीज़ लंड से निकलकर उसके उपेर गिरने लगी. कुच्छ उसके बालों में, कुच्छ कपड़ो पर और कुच्छ सीधा उसके मुँह पर. पानी की कुच्छ बूँदें उसके होंठो पर थी जिसको उसने जीभ फिराकर टेस्ट करके देखा और अगले ही पल लगा के उसको उल्टी हो जाएगी. उसने फ़ौरन बाहर थूक दिया. उसकी इस हरकत पर चाचा ने आँखें खोली और उसकी तरफ देखकर हस पड़े. पर उसके दिमाग़ में उस वक़्त कुच्छ और ही सवाल गूँज रहा था.

"क्या उस लड़के का भी ऐसा ही लंड होगा जिससे वो मिलने जाती थी और क्या उसके लंड से भी ऐसे ही पानी निकलता होगा?"

"एक बात बतानी थी तुम्हें. काफ़ी दिन से सोच रही थी के बताऊं पर हिम्मत नही कर पाई"उसने कहा

उस शाम वो फिर उस लड़के से मिलने पहुँची. उसके दिल में एक सवाल था के उसके चाचा चाची आपस में करते क्या हैं. उसका कोई दोस्त नही था उस लड़के के सिवा इसलिए उसने उससे ही पूछना बेहतर समझा.

"हाँ बोलो" लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा
कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.
"बोलो ना" लड़के ने दोबारा कहा
"समझ नही आ रहा कैसे बताऊं." वो शरमाती हुई बोली
"मुँह से बताओ और कैसे बतओगि" कहकर वो लड़का हस पड़ा.

अगले आधे घंटे तक वो उससे बार बार वही सवाल करता रहा और वो बताने में शरमाती रही. आख़िरकार उसने फ़ैसला किया के उसको पुच्छ ही लेना चाहिए.
"अक्सर रात को मेरे चाची चाची जब सब सो जाते हैं ना, उसके बाद वो ....... अंधेरे में....." इससे आगे की बात वो कह नही पाई
"आपस में लिपटकर कुच्छ करते हैं?" अधूरी बात लड़के ने पूरी कर दी.
उसने चौंक कर लड़के की तरफ देखा
"तुम्हें कैसे पता?"
"अरे सब करते हैं" लड़का मुस्कुराता हुआ बोला
"सब मतलब?" उसकी समझ नही आया

"सब मतलब पूरी दुनिया. इसको सेक्स करना कहते हैं. दुनिया का हर मर्द औरत ये करता है. जानवर भी करते हैं. इसे से तो बच्चे पैदा होते हैं" लड़के ने कहा
वो हैरानी से आँखें खोले उसकी तरफ देख रही थी. जानवर भी ये काम करते हैं? और बच्चे?
"बच्चे?" उसके मुँह से निकला
"हाँ. जब औरत मर्द आपस में ये करते हैं तो दोनो को बहुत मज़ा आता है और ऐसा करने के बाद ही औरत के पेट में बच्चा आता है" लड़के ने हॅस्कर जवाब दिया

मज़ा आता है ये बात तो वो अच्छी तरह जानती थी क्यूंकी चाचा और चाची को उसने कई बार कहते सुना था के बहुत मज़ा आ रहा है. पर बच्चे वाली बात अब भी उसके पल्ले नही पड़ रही थी.

"क्या कर रहा है बे?" आवाज़ सुनकर उसने लड़के की तरफ देखा तो डर से काँप गयी. वहाँ 3 लड़के और खड़े थे और उसके दोस्त को कॉलर से पकड़ रखा था.
"क्या कर रहा है यहाँ?" उन 3 लड़कों में से एक ने कहा
"कुच्छ नही. बस ऐसे ही बातें कर रहे थे" उसके दोस्त उस लड़के ने हकलाते हुए कहा
"अच्छा?" 3 लड़को में से एक दूसरे ने कहा "हमें पता है के तू यहाँ क्या कर रहा है"

इसके बाद क्या हुआ उसको कुच्छ समझ नही आया. उन तीनो ने मिलकर उस लड़के को मारना शुरू कर दिया. वो उसको नीचे गिराकर उसपर लातें बरसाने लगे. उसकी अपनी भी अजीब हालत हो रही थी. उसके मुँह से चीखे निकल रही थी और वो उन लड़को पर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी जिसका उनपर कोई असर नही हो रहा था. उस लड़के के जिस्म से कई जहा से खून निकल रहा था जिसको देखकर उसका दिल जैसे रो उठा. उसको लग रहा था के ये चोट उसको खुद को लगी हैं और दर्द का एहसास उसके अपने जिस्म में हो रहा है.

फिर जाने उसमें कहाँ से अजीब सी ताक़त आ गयी. उसने पास पड़ा एक बड़ा सा पथर उठाया और पूरी ताक़त से एक लड़के की तरफ फेंका. पत्थर सीधा उसके माथे पर लगा और वो पिछे को जा गिरा. सब कुच्छ जैसे एक पल के लिए रुक सा गया. बाकी के दोनो लड़के एक कदम पिछे को हट गये. उसका दोस्त वो लड़का ज़मीन पर पड़ा हैरत से उसकी तरफ देखने लगा..
जिस लड़के के माथे पर पथर पर लगा था वो अभी भी उल्टा ज़मीन पर गिरा पड़ा था.

"ये उठ क्यूँ नही रहा. मर गया क्या?" उन बाकी बचे 2 लड़को में से एक ना कहा
"मर गया क्या?" ये शब्द उसके खुद के कान में किसी निडल की तरह चुभ गये. ऐसा तो वो नही चाहती थी. वो तो बस अपने दोस्त को बचाना चाहती थी. अगर चाचा चाची को पता लगा तो? उसकी रूह डर के मारे काँप गयी और वो सबको वहीं छ्चोड़ पागलों की तरह अपने घर की तरफ भागने लगी.

वर्तमान मे इशान की कहानी..........................


इस बात को शायद मैं अपने दिल ही दिल में मान चुका था के मैं रश्मि से प्यार करता हूँ. ऐसा क्यूँ था था ये मैं नही जानता था. उस औरत से मैं सिर्फ़ एक ही बार मिला था और जबसे उससे मिला था शायद हर पल उसी के बारे में सोचता था. उसके खूबसूरत ने मेरे दिल और ज़हेन में एक जगह बना ली थी जैसे. आँखें बंद करता तो उसका चेहरा दिखाई देता, आँखें खोलता तो उसका ख्याल दिमाग़ में शोर करने लगता. मेरी अकेली ज़िंदगी को जैसे एक मकसद मिल गया था और वो था रश्मि को हासिल करना.

पर इसके लिए मेरा उसको चाहना काफ़ी नही था ये बात भी मैं जानता था. अगर उसे मेरी होना है तो इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी ये है के वो भी मुझे चाहे. शकल सूरत से मैं बुरा नही था पर क्या ये काफ़ी था. वो एक बहुत अमीर लड़की थी. शायद हिन्दुस्तान की सबसे अमीर लड़की जिसके अपने पास इतनी बेशुमार दौलत थी जितनी मैं 7 जन्मो में भी नही कमा सकता था. और मैं जानता था के जिस तरह से हमारी मुलाक़ात का मुझपे असर हुआ है शायद हर उस मर्द पर होता होगा जो उससे मिलता होगा और जाने कितने यही ख्वाब देखते होंगे के उसको हासिल करें. और अब जबकि उसके पास इतनी दौलत है, अब तो जाने कितने उसके पिछे भाग रहे होंगे. और मुझे तो ये भी नही पता था के क्या उसकी ज़िंदगी में मुझे पहले कोई और है या नही.

अगले दिन वादे के मुताबिक मैं बंगलो नो 13 के सामने खड़ा रश्मि का इंतेज़ार कर रहा था. उसने मुझसे कहा था के वो बंगलो को खुद एक बार देखना चाहती है और इसके लिए मैने बंगलो के मालिक से बात कर ली थी. घर की चाबी उस नौकरानी के पास थी जो वहाँ सफाई करने आती थी. मैं वहाँ खड़ा बेसब्री से रश्मि का इंतेज़ार कर रहा था और मेरे दिमाग़ में सिर्फ़ एक सवाल चल रहा था, मैं ये क्यूँ कर रहा हूं? मैं एक वकील से एक जासूस कब हो गया?
थोड़ी ही देर बाद एक बीएमडब्लू मेरे सामने आकर रुकी और उसमें से रश्मि बाहर निकली. उसको फिर से देखा तो एक पल के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं वहीं चक्कर खाकर गिर जाऊँगा. ब्लॅक कलर के फुल लेंग्थ स्कर्ट और उसकी कलर के टॉप में वो बिना किसी मेक अप के भी किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी.

"आइ आम सो सॉरी" आते ही उसने कहा "रास्ते में ट्रॅफिक काफ़ी ज़्यादा था"
"कोई बात नही" मैने मुस्कुराते हुए कहा "सुबह के वक़्त यहाँ ऐसा ही होता है. छ्होटे शहेर की छ्होटी सड़कें और उसपर रोज़ाना बढ़ता ट्रॅफिक"
"आइ अग्री" कहते हुए उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया.
मैं हाथ मिलने की लिए जब उसका हाथ अपने हाथ में लिए तो शायद वो मेरी ज़िंदगी को सबसे यादगार पल बन गया. उसका मुलायम हाथ जब मेरे हाथ में आया तो ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया मिल गयी मुझे.
"अंदर चलें?" उसने पुचछा तो मैं अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया.
"श्योर" कहते हुए मैने बंगलो के गेट की तरफ उसके साथ कदम बढ़ाए.

कल जब मैने बंगलो के मालिक से चाबी माँगने के लिए फोन पर बात की थी तो उसने मुझे बताया था के तकरीबन जिस वक़्त हम लोग वहाँ जाने वाले थे उसी वक़्त नौकरानी भी वहाँ सफाई करने आती थी. तो हम लोगों को वो अंदर ही मिल जाएगी.
"कोई घर दोबारा किराए पर ले रहा है क्या जो सफाई करवा रहे हैं?" मैने हस्ते पुचछा था
"आपके मुँह में घी शक्कर" मकान मालिक ने कहा "पर आप चाभी क्यूँ माँग रहे हो? आप ही किराए पर ले रहे हो क्या?
"नही नही" मैने उसको बताया "मैं असल में उस घर को सिर्फ़ देखना चाहता हूँ. शायद मर्डर से रिलेटेड कुच्छ मिल जाए"
"वहाँ कुच्छ नही है आहमेद साहब" मकान मलिक ने कहा था "उस घर को अंदर बाहर से तलाश किया जा चुका है. कुच्छ नही मिला वहाँ. जाने कौन और कैसे मार गया उस आदमी को. काश उसने मरने के लिए कोई और जगह चुनी होती मेरे घर के सिवा"

"चाबी?" घर के सामने पहुँच कर रश्मि ने मेरी और देखते हुए सवाल किया
"चाबी घर की नौकरानी के पास ही है जो इस वक़्त अंदर सफाई कर रही है" कहते हुए मैने दरवाज़े पर नॉक किया.

"नौकरानी? सफाई?" रश्मि ने पुचछा "डिड ही गेट ए न्यू टेनेंट?"
"नही फिलहाल तो नही पर मालिक चाहता है के घर सॉफ सुथरा रहे जस्ट इन केस इफ़ सम्वन डिसाइडेड टू मूव इन" मैने जवाब दिया
"नाम क्या है इस नौकरानी का" उसने अजीब सा सवाल पुचछा
"श्यामला बाई" कहते हुए मैने फिर से नॉक किया
"ये वही औरत है जो मेरे डॅडी के टाइम पे घर की सफाई करती थी?" उसने पुचछा तो मैने हाँ में सर हिला दिया.

"यही थी ना वो जिसने मेरे डॅडी को सबसे पहले मरी हुई हालत में देखा था?"
इस बार भी मैं जवाब ना दे सका. बस हाँ में सर हिला दिया और दरवाज़ा तीसरी बार नॉक किया
"इससे ज़्यादा सवाल मत करना आप" मैने रश्मि से कहा
"क्यूँ?" पहले उसने मुझसे पुचछा और फिर खुद ही जवाब दे दिया "ओह आपको लगता है के ये मेरे डॅडी के बारे में कुच्छ ग़लत बोलेगी जिसका आइ माइट फील बॅड"
मैने जवाब नही दिया तो वो समझ गयी के मेरा जवाब हाँ था.

"आइ आम प्रिपेर्ड फॉर ऑल दट. आइ डॉन'ट ब्लेम हिम सो मच अस दोज़ हू ड्रोव हिम टू इनटेंपरेन्स " वो ऑस्ट्रेलियन आक्सेंट में बोली
तभी घर का दरवाज़ा खुला और हमारे सामने एक करीब 40 साल की औरत खड़ी थी. श्यामला बाई की शकल देखकर ही लगता था के वो एक बहुत खड़ूस औरत है, ऐसी जो अपने सामने किसी और को बोलने ना दे और अगर कोई बोल पड़े तो फिर खुद ही पछ्ताये.

"क्या चाहिए?" उसने हम दोनो से सवाल किया
"घर देखना है" मैने जवाब दिया "मालिक से मेरी बात हो चुकी है"
"और ये मैं कैसे मान लूँ?" उस खड़ूस औरत ने पुचछा
"क्यूँ मैं कह रहा हूँ" मैने हैरत से जवाब दिया
"और क्यूंकी मैं मिस्टर सोनी की बेटी हूँ" कहते हुए रश्मि आगे बढ़ी और बिना उस औरत से बात किए घर के अंदर दाखिल हो गयी. एक पल के लिए और श्यामला बाई दोनो हैरत से उसको देखते रह गयी.

"आप मनचंदा साहब की बेटी हैं" श्यामला बाई ने एक तरफ होते हुए कहा "मनचंदा या सोनी जो भी नाम था उनका"
"हाँ" रश्मि ने जवाब दिया
"अब तो यहाँ कुच्छ नही मिलेगा आपको उनका. लाश पोलीस ले गयी, समान कोई और ले गया"
रश्मि ने कुच्छ नही कहा और घर पर एक नज़र डाली.

"हाँ अपने बाप के खून के धब्बे ज़रूर मिल जाएँगे आपको यहाँ" वो कम्बख़्त काम वाली फिर बोली "वहाँ कार्पेट पर और उसके नीचे शायद फ्लोर पर अब भी खून का हल्का सा निशान हो"
रश्मि ने मेरी तरफ देखा. अपने बाप के बारे में ऐसी बात सुनकर उसके चेहरा पीला पड़ गया था. मेरा दिल किया के उस श्यामला बाई का खून भी उसी जगह पर बहा दूँ जिस तरफ वो इशारा कर रही थी.
"बकवास बंद करो और जाकर अपना काम करो"
"हां जा रही हूँ" वो मेरी तरफ घूरते हुए बोली और फिर रश्मि की तरफ पलटी "वैसे अगर आप एक 100 का नोट मुझे दे दो तो घर मैं आपको खुद ही दिखा दूँगी"
"मेरी माँ मैं तुझे चुप रहने के 200 दूँगा. अब जाओ यहाँ से" मैने दरवाज़े की तरफ इशारा किया
"200 के लिए तो मैं कुच्छ भी कर सकती हूँ" वो खुश होते हुए बोली "और एक प्रेमी जोड़े को अकेला में छ्चोड़ने के लिए 200 मिले तो क्या बुरा है. वैसे ज़्यादा देर मत लगाना तुम दोनो. जल्दी काम ख़तम कर लेना"

उसकी ये बात सुनकर मैं जैसे शरम से ज़मीन में गड़ गया और रश्मि ने तो अपनी नज़र दूसरी तरफ फेर ली.
"बहुत हुआ" कहते हुए मैं श्यामला बाई की तरफ बढ़ा "दफ़ा हो जाओ यहाँ से"
उसको किचन की तरफ धकेल कर मैं वापिस रश्मि के पास पहुँचा जो उसकी कोने में खड़ी थी जहाँ उस नौकरानी ने इशारा किया था. घर की ब्लू कलर की कार्पेट पर एक जगह गहरा लाल रंग का निशान था और मैं जानता था के वो क्या है. रश्मि एकटूक उस निशान को देखे जा रही थी.
"रश्मि शायद इस घर में आने का आपका ख्याल इतना ठीक नही था. हमें चलना चाहिए यहाँ से" मैं उसके चेहरे को देखते हुए बोला जो पीला पड़ चुका था
"नही" कहते हुए रश्मि ने मेरी तरफ देखा "जब तक मैं इस घर का हर कोना नही देख लेती तब तक नही"

मैं उसको चाहता था. उस वक़्त अगर वो जान भी मांगती तो इनकार की कोई गुंज़ाइश ही नही थी. जब उसने घर की तलाशी लिए बिना वहाँ से ना जाने का फ़ैसला किया तो मैने भी हाँ में सर हिला दिया. खामोशी के साथ हम दोनो काफ़ी देर तेक एक कमरे से दूसरे कमरे तक जाते रहे और किसी ऐसी चीज़ को ढूँढते रहे जिससे हमें सोनी मर्डर केस में कुच्छ मादा मिल सके. हर कमरा खाली था और कुच्छ कमरो में तो अब तक धूल थी जिसको देखकर ये अंदाज़ा हो जाता था के श्यामला बाई यहाँ कितना अच्छा काम कर रही है.

रश्मि ने हर कमरे को अच्छी तरह तलाशा यहाँ तक की खिड़कियो का भी काफ़ी बारीकी से मुआयना किया पर कहीं कुच्छ नही मिला. हम लोग नीचे बस्मेंट में पहुँचे. बस्मेंट की और जाती सीढ़ियों के पास ही एक दरवाजा था जो बंगलो के पिछे की तरफ के लॉन में खुलता रहा. दरवाज़े को देखकर इस बात का अंदाज़ा होता था के वो काफ़ी दिन से बंद नही था और हाल फिलहाल में ही उसको खोला गया था. रश्मि ने फ़ौरन मेरा ध्यान दरवाज़े की तरफ खींचा पर मैने उसको बताया के ये दरवाज़ा मैने और मिश्रा ने खोला था जब हम इससे पहले एक बार घर की तलाशी लेने आए थे. मैने ये भी बताया के उस वक़्त इस दरवाज़े को खोलने में हम दोनो को ख़ासी परेशानी हुई थी क्यूंकी ये दरवाज़ा जाने कितने सालों से बंद था.

"तो फिर वो लोग आए कहाँ से थे मेरे डॅड को मारने के लिए?" रश्मि एक सोफे पर बैठते हुए बोली
"वो लोग?" मैं भी उसके सामने बैठ गया "मतलब एक से ज़्यादा?"
"क्यूंकी मुझे यकीन है के भूमिका और उसके आशिक़ हैदर रहमान ने मिलकर मेरे डॅड को मारा है" रश्मि हाँ में सर हिलाते हुए बोली
"मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ के जिस रात खून हुआ वो यहाँ नही थी" मैने कहा
"मैं जानती हूँ पर मैं ये भी जानती हूँ के उसी ने हैदर को भेजा था डॅड को मारने के लिए. और मैं एक से ज़्यादा लोग इसलिए कह रही हूँ क्यूंकी हैदर को भेजने के बाद वो भी तो खून की उतनी ही ज़िम्मेदार हुई जितना हैदर" रश्मि बोली
"हमारे पास इस वक़्त इस बात का कोई सबूत नही है रश्मि"

"मैं जानती हूँ" कहते हुए वो खड़ी हो गयी और किचन की तरफ बढ़ चली. मैं भी उठकर उसके पिछे पिछे किचन तक पहुँचा.

उस घर में भले कोई रहता नही था पर इंसान की हर ज़रूरत की मॉडर्न चीज़ वहाँ पर थी. एक बड़ा ही स्टाइलिश गॅस स्टोव से लेकर ओवेन और एक किंगसिज़े फ्रिड्ज तक सब था. हमारे किचन में पहुँचते ही श्यामला बाई ने एक बार हमारी तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गयी. रश्मि खामोशी से किचन का जायज़ा लेने लगी.

"ये फ्रिड्ज खराब है क्या?" उसने श्यामला से पुचछा
"नही तो" श्यामला बाई ने इतनी जल्दी जवाब दिया जैसे उसपर फ्रिड्ज खराब करने का इल्ज़ाम लगा दिया गया हो "क्यूँ?"
"इसके ये सारी ट्रेस यहाँ बाहर क्यूँ रखी हैं?" रश्मि ने कहा

वो उस फ्रिड्ज के अंदर लगी ज़ालिया और ट्रेस की तरफ इशारा कर रही थी जिनपर फ्रिड्ज के अंदर समान रखा जाता है और जो इस वक़्त फ्रिज के उपेर रखी थी.
"वो मैं सफाई करने के बाद लगा दूँगी. आप लोगों को क्या चाहिए?" श्यामला बाई चिढ़ते हुए हमारी तरफ चेहरा करके खड़ी हो गयी.

उसका हमारी तरफ पलटा ही था के रश्मि ने एक पल के लिए तो उसको ऐसे देखा जैसे भूत देख लिया हो और फिर अगले ही पल तेज़ी से उसके करीब हो गयी.
"ये रिब्बन कहाँ से मिला तुम्हें?" उसने श्यामला के सर पर बँधे एक लाल रंग के रिब्बन की तरफ इशारा किया जिससे श्यामला ने अपने बॉल बाँध रखे थे.

"यहीं घर में ही पड़ा मिला" श्यामला थोडा पिछे होते हुए बोली "बेकार घर में पड़ा था तो मैने अपने सर पर बाँध लिया"

रश्मि ने तो जैसे उसकी बात सुनी ही नही. उसने अगले ही पल आगे बढ़कर श्यामला के सर से वो रिब्बन खोल लिया और मुझे दिखाने को मेरी तरफ बढ़ा दिया. वो एक लाल रंग का रिब्बन था जिसको देखने से ही पता चलता था के वो बहुत महेंगा था, वजह थी उसके उपेर की गयी कारिगिरी. उस पूरे रिब्बन पर जैसे एक डिज़ाइन सा बना हुआ था, एक नक्काशी की तरह जिसकी वजह से वो बहुत ही एलिगेंट और खूबसूरत लग रहा था.

"ये वही रिब्बन है इशान" वो मेरी और देखते हुए बोली "वही रिब्बन जो मैने कश्मीर में खरीदा था"
"और उससे क्या साबित होता है?" मैने पुचछा

"जिस दुकान से मैने ये रिब्बन लिया था वो एक आंटीक शॉप थी. उसी दुकान से मेरे डॅडी ने एक खंजर खरीदा था जो उन्हें बहुत पसंद आया था. जब उन्होने खंजर ले लिया तो मेरी नज़र इस रिब्बन पर पड़ी. मुझे लगा के ये उस खंजर के साथ अच्छा लगेगा इसलिए मैने खरीद कर उस रिब्बन के हॅंडल के पास बाँध दिया था. ये रिब्बन यहाँ है इसका मतलब ये के वो खंजर भी यहीं था. मेरे डॅड को उनके अपने ही खंजर से मारा गया इशान" कहते हुए वो रो पड़ी.

क्रमशः......................


raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 14:04


भूत बंगला पार्ट--13

गतान्क से आगे............

रश्मि ने जो कहा वो सुनकर कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा च्छा गया. ना वो खुद कुच्छ बोली, ना मैं और श्यामला बाई तो बस खड़े खड़े हम दोनो का चेहरा ही देख रही थी. आख़िर में वो चुप्पी श्यामला बाई ने ही तोड़ी.

"अगर आपको ये रिब्बन चाहिए तो एक 100 के नोट के बदले में मैं ये आपको दे सकती हूँ. इन साहब ने मुझे चुप रहने को जो 200 देने थे वो मिलके 300 हो जाएँगे"
"तू मेरी ही चीज़ मुझे बेचने की कोशिश कर रही है?" रश्मि अपने फिर से उस मा काली के रूप में आ गयी "तेरी हिम्मत कैसे हुई इसको अपने पास रखने की? अगर तू ये पोलीस को दिखा देती तो शायद अब तक वो खूनी पकड़ा जाता"

कहते हुए रश्मि श्यामला की तरफ ऐसे बढ़ी जैसे उसको थप्पड़ मारने वाली है और शायद मार भी देती अगर मैं उसको रोकता नही
"एक मिनट रश्मि" मैने बीचे में आते हुए कहा "अगर ये रिब्बन पोलीस को मिल भी जाता तो कुच्छ ना होता क्यूंकी सिर्फ़ आपको पता था के ये रिब्बन उस खंजर पर बँधा हुआ था और आप तो ऑस्ट्रेलिया में थी"

मेरी बात सुनकर वो चुप हो गयी और रिब्बन की तरफ देखने लगी
"अच्छा आपने आखरी बार वो खंजर कहाँ देखा था?" मैने सवाल किया
"मुंबई के घर में जो डॅड की लाइब्ररी है वहीं दीवार पर टंगा हुआ था" उसने जवाब दिया

"और आपको पूरा यकीन है के ये वही रिब्बन है" मैने कन्फर्म करना चाहा
"मेरी निगाहें धोखा नही खा सकती" वो रिब्बन की और इशारा करते हुए बोली "रंग वही है, पॅटर्न भी वही है. कहाँ मिला था तुझे ये?" रश्मि ने श्यामला से सवाल किया

"कहा तो किचन के घर में पड़ा मिला था" श्यामला बोली
"कुच्छ और मिला वहाँ" मैने पुचछा तो श्यामला ने इनकार में सर हिला दिया
"कोई खंजर नही मिला?" कहते हुए रश्मि ने रिब्बन अपनी जेब में रख लिया
"खंजर वंजर मुझे कुच्छ नही मिला" श्यामला रश्मि को घूरते हुए बोली "बस ये एक मेरा रिब्बन ही मिला था जो अब ये मेमसाहब अपना बताकर ले जा रही हैं"
"वो रिब्बन तेरा नही है" रश्मि ने कहा

"जो चीज़ जिसको मिलती है वो उसी की होती है" श्यामला भी पिछे हटने को तैय्यार नही थी
"मेरा ख्याल है के इसको नाराज़ नही करना चाहिए" मैने धीरे से रश्मि के कान में कहा "इससे कुच्छ और फयडे की बात भी मालूम ही सकती है"
मेरा बात शायद रश्मि को ठीक लगी. उसने एक नज़र श्यामला पर उपेर से नीचे तक डाली और अपने पर्स में हाथ डालकर 500 के दो नोट निकले और श्यामला की तरफ बढ़ा दिए.

"रिब्बन के लिए" उसने श्यामला से कहा तो वो खुशी से उच्छल पड़ी
"भगवान आपका भला कर मेमसाहब. मेरा आजा का दिन ही अच्छा है. एक दिन 1200 कमा लिए"
"वो 1200 नही 1000 हैं" मैने मुस्कुराते हुए कहा
"आअप भूल रहे हैं साहब" वो भी वैसे ही मुस्कुराते हुए बोली "आपने अभी मुझे चुप रहने के 200 भी तो देने हैं"

"काफ़ी होशियार हो तुम" कहते हुए रश्मि ने फिर अपने बॅग में हाथ डाला और खुद ही 200 और दे दिए "ये लो और अगर और चाहिए तो इस घर में कुच्छ भी तुम्हें सफाई करते हुए मिले तो फ़ौरन इन साहब के घर पर जाकर दे आना"

श्यामला ने फ़ौरन हाँ में सर हिला दिया. वो रिब्बन लेकर हम बंगलो से बाहर निकले.
"अजीब घर है" रश्मि कार की तरफ कदम बढ़ाती बोली "अंदर अजीब सा डर लगता है"
"कहते हैं के इसमें किसी औरत का भूत रहता है" मैने हस्ते हुए कहा "वैसे अब क्या इरादा है इस रिब्बन के लेकर?"

"फिलहाल मैं अगली फ्लाइट से मुंबई जा रही हूँ. अगर वो खंजर लाइब्ररी में ही है तो वो रिब्बन भी वहीं होगा और तब मैं मान लूँगी के मेरी नज़र धोखा खा रही है. पर अगर वो खंजर वहाँ ना हुआ तो ये प्रूव हो जाएगा के ये वही रिब्बन है"
"और अगर खंजर हुआ पर रिब्बन नही?" मैने सवाल किया

"फिर भी इससे ये तो साबित हो ही जाएगा के खंजर यहाँ लाया गया था तभी तो ये रिब्बन यहाँ पहुँचा. और अगर ऐसा हुआ तो मैं वापिस आकर आपसे बात करूँगी"
"मुझसे जो बन सका वो मैं करूँगा" मैने कहा.

वो अपनी कार में जा बैठी.
"आपको बेकार परेशान कर रही हूँ ना मैं" खिड़की का शीशा नीचे करते हुए उसने किसी छ्होटी बच्ची की तरह मुझसे कहा.
"आपको मुझे परेशान करने का पूरा हक है" ये कहते ही मैने अपनी ज़ुबान अपने ही दांतो के नीचे दबा ली और एक पल के लिए रश्मि के चेहरे पर जो एक्सप्रेशन आकर गया, उससे मुझे पता चल गया के वो समझ गयी के मैं क्या कह रहा हूं.

"मेरा मतलब है के मैं एक वकील हूँ और आपके पिता को मैं खुद भी जानता था इसलिए मेरा फ़र्ज़ है के आपकी मदद करूँ" मैने बात फ़ौरन संभालने की कोशिश की पर मेरे इस अंदाज़ ने मेरी पहले कही गयी बात को और साफ कर दिया
"आपकी फीस?" उसने सवाल किया
"जिस दिन आपके डॅड का खूनी पकड़ा गया उस दिन वो भी देख लेंगे" मैने हस्ते हुए कहा

"तो मैं चलती हूँ" कहते हुए उसने अपना हाथ पिछे को खींचा तो मुझे एहसास हुआ के मैं तबसे उसका हाथ पकड़े खड़ा था जबसे उसने मुझसे कार में बैठने के बाद जाने के लिए हाथ मिलाया था.

घर से मैं रुक्मणी को ये बताकर निकला था के मैं ऑफीस जा रहा हूँ पर उस दिन शाम को प्रिया के यहाँ डिन्नर था इसलिए डिन्नर की तैय्यारि का बहाना बनाकर वो ऑफीस आई नही. मेरी कोर्ट में कोई हियरिंग नही थी इसलिए मेरा भी ऑफीस में अकेले जाके बैठने का दिल नही किया. ऑफीस जाने के बजाय मैने गाड़ी वापिस घर के तरफ मोड़ दी.

घर पहुँचकर मैं डोर बेल बजाने ही वाला था के फिर इरादा बदलकर अपनी चाबी से दरवाज़ा खोलकर दाखिल हो गया.
घर में अजीब सी खामोशी थी वरना यूष्यूयली इस वक़्त ड्रॉयिंग रूम में रखा टीवी ऑन होता है और रुक्मणी और देवयानी सामने बैठी या तो गप्पे लड़ा रही होती हैं या पत्ते खेल रही होती हैं. रुक्मणी की कार घर के बाहर ही खड़ी थी इसलिए मुझे लगा था के वो दोनो घर पर ही होंगी. पर फिर ये सोचकर के शायद दोनो बिना कार के ही कहीं चली गयी मैं अपने कमरे की तरफ बढ़ा.

मैं अपने कमरे का दरवाज़ा कभी लॉक नही करता था. ज़रूरत ही नही थी. कमरे में कुच्छ भी ऐसा नही था जिसको छुपाने की कोशिश की जाए और ना ही घर में कोई ऐसा था जिससे छुपाया जाए. रुक्मणी तो वैसे भी देवयानी के आने से पहले मेरे एक तरह से मेरे ही कमरे में रहती थी.

जब मैं कमरे के सामने पहुँचा तो कमरे का दरवाज़ा हल्का सा खुला हुआ था और अंदर से किसी के बात करने की आवाज़ आ रही थी.
"ये दोनो मेरे कमरे में क्या कर रही हैं" ये सोचकर मुझे कुच्छ शक सा हुआ और अंदर दाखिल होने के बजाय मैने कान लगाकर सुनना शुरू किया और खुले हुए हिस्से से कमरे के अंदर झाँका.

अंदर मैने जो देखा वो देखकर मेरी आँखें फेल्ती चली गयी. कमरे में मेरे बिस्तर पर रुक्मणी और देवयानी दोनो लेटी हुई थी. उस वक़्त वो दोनो जिस हालत में थी वो देखकर मेरे जिस्म का हर हिस्सा में एक लहर सी दौड़ गयी. अपनी ज़िंदगी में पहली बार मैं 2 औरतों को काम लीला करते हुए देख रहा था.

रुक्मणी के जिस्म पर उपेर सिर्फ़ एक लाल रंग की ब्रा और नीचे एक सलवार थी और देवयानी तो पूरी तरह नंगी थी. रुकमी बिस्तर पर सीधी लेटी हुई थी और देवयानी उसके साइड में लेटी उसपर झुकी हुई उसके होंठ चूस रही थी. मुझे समझ नही आया के क्या हो रहा है और क्यूँ हो रहा है और काब्से हो रहा है. दोनो बहानो के बीच ये रिश्ता भी था इसका मुझे कोई अंदाज़ा नही था और अगर आज इस तरह अचानक घर ना आ जाता तो शायद पता भी ना लगता.

देवयानी रुक्मणी पर झुकी हुई कुच्छ देर राक उसके होंठ चूस्ति रही. दूसरे हाथ से वो रुक्मणी की दोनो चूचिया ब्रा के उपेर से ही दबा रही थी. दोनो औरतों को देखकर ही पता चलता था के वो बुरी तरह से गरम थी.

"फिर?" देवयानी ने रुक्मणी के होंठ से अपने होंठ हटाकर कहा.
रुक्मणी ने जवाब में कुच्छ ना कहा. बस तेज़ी से साँस लेती रही. देवयानी का एक हाथ अब भी लगातार उसकी चूचिया मसल रहा था.
"बता ना" देवयानी ने फिर पुचछा
"फिर धीरे धीरे नीचे जाना शुरू करता है" रुक्मणी ने लंबी साँसे लेते कहा. उसकी बात मुझे समझ नही आई.
"साइड लेटके या उपेर चढ़के?" देवयानी ने सवाल किया
"उपेर चढ़के" रुक्मणी ने जवाब दिया
"ऐसे?" कहते हुए देवयानी रुक्मणी के उपेर चढ़ गयी और अपनी दोनो टाँगें उसके दोनो तरफ करके झुक कर दोनो चूचिया फिर दबाने लगी.
"नही मेरे उपेर लेट जाता है और मेरी टाँगो के बीच होता है" रुक्मणी ने फिर आँखें बंद किए हुए ही कहा
उसकी ये बात सुनकर मुझे दूसरा झटका लगा. वो मेरी बात कर रही थी और रुक्मणी देवयानी को ये बता रही थी के मैं उसको चोदता कैसे हूँ.

मैं खामोश खड़ा कमरे के अंदर जो भी हो रहा था उसको देख रहा था. आँखों पर यकीन नही हो रहा था के 2 बहनो में ऐसा भी रिश्ता हो सकता है.
देवयानी अब रुक्मणी के उपेर चढ़ि हुई उसके गले को चूम रही थी और दोनो हाथों से उसकी चूचिया ऐसे दबा रही थी जैसे आटा गूँध रही हो. रुक्मणी की दोनो टांगे फेली हुई हल्की सी हवा में थी.

"ऐसे ही करता है वो?" देवयानी ने रुक्मणी की छातियो पर ज़ोर डालते हुए कहा
"नही और ज़ोर से दबाता है" रुक्मणी ने उखड़ी हुई सांसो के बीच कहा. उसकी दोनो आँखें बंद थी और अपने हाथों से वो उपेर चढ़ि हुई देवयानी का जिस्म सहला रही थी.

"ऐसे?" देवयानी ने उसकी छातियो पर ज़ोर बढ़ाते हुए कहा
"और ज़ोर से" रुक्मणी ने जवाब दिया
"ऐसे?" देवयानी ने इस बार पूरे ज़ोर से रुक्मणी की चूचिया मसल दी.
"आआहह" रुक्मणी के मुँह से आह निकल गयी "हाँ ऐसे ही"

देवयानी ने उसी तरह से ब्रा के उपेर से ही देवयानी की चूचियो को बुरी तरह मसलना शुरू कर दिया. कभी वो उसके होंठ चूस्ति तो कभी गले के उपेर जीभ फिराती. खुद रुक्मणी के हाथ देवयानी की नंगी गांद पर थे और वो उसको और अपनी तरह खींच रही थी, ठीक उसी तरह जैसे वो मेरी गांद पकड़कर मुझे आगे को खींचती थी जब मेरा लंड उसकी चूत में होता था.

"और वो नीचे से कपड़ो के उपेर से ही लंड नीचे को दबाता रहता है" रुक्मणी ने देवयानी के चेहरे को चूमते हुए कहा.
देवयानी उसकी बात सुनकर मुस्कुराइ और अपने घुटने अड्जस्ट करके रुक्मणी की टाँगो को मॉड्कर और हवा में उठा दिया. फिर उसके बाद जो हुआ वो देखकर मेरे जिस्म जैसे सिहर सा उठा. वो रुक्मणी के उपेर लेटी हुई अपनी गांद हिलने लगी और उसकी चूत पर ऐसे धक्के मारने लगी जैसे उसको चोद रही हो.

"ऐसे?" उसने रुक्मणी से पुचछा तो रुक्मणी ने हाँ में सर हिला दिया
अजीब मंज़र था. मेरे सामने एक नंगी औरत अपनी आधी नंगी बहेन पर चढ़ि हुई उसकी टाँगो के बीच धक्के मार रही थी.
"फिर क्या करता है?" देवयानी ने पुचछा

"मुझे उल्टी कर देता है और मेरी कमर पर चूमता है और फिर ब्रा खोल देता है. और जैसे तू आगे से कमर हिला रही है वैसे ही पिछे लंड रगड़ता है" रुक्मणी ने कहा.

मेरे देखते ही देखते देवयानी ने रुक्मणी को उल्टा कर दिया और उसकी कमर को उपर से नीचे तक चूमने लगी. उसके दोनो हाथ रुक्मणी की कमर को सहलाते हुए उसके ब्रा के हुक्स तक पहुँचे जिनको खोलने में एक सेकेंड से भी कम का वक़्त लगा. हुक्स खुलने के बाद देवयानी रुक्मणी के उपेर उल्टी लेट गयी और उसकी गांद पर अपनी कमर हिलाकर ऐसे धक्के मारने लगी जैसे अपनी बहेन की गांद मार रही हो.
"फिर सीधी लिटाकर तेरे निपल्स चूस्ता होगा" इस बार देवयानी ने खुद ही पुचछा तो रुक्मणी ने हाँ में सर हिला दिया.

देवयानी हल्की सी उपेर को हुई और रुक्मणी को अपने नीचे सीधा कर दिया. रुक्मणी का खुला हुआ ब्रा उसकी बड़ी बड़ी चूचियो पर ढीला सा पड़ा हुआ था जिसको देवयानी ने एक झटके में हटाकर एक तरफ फेंक दिया. अपनी बहेन की दोनो चूचिया खुलते ही वो उनपर ऐसे टूट पड़ी जैसे ज़िदगी में पहली बार किसी औरत की चूचिया देख रही हो. जैसे उसके खुद के पास तो चूचिया हैं ही नही. वो एक एक करके रुक्मणी के दोनो निपल्स कभी चूस्ति तो कभी ज़ुबान से चाटने लगती. दोनो हाथ अब भी बुरी तरह से चूचिया दबा रहे थे और खुद रुक्मणी के हाथ भी अपने उपेर चढ़ि हुई अपनी बहेन की छातियो से खेल रहे थे. उसकी दोनो टाँगो के बीच देवयानी के झटके वैसे ही चालू थे जैसे वो उसको चोद रही हो.

raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 14:05


काफ़ी देर तक एक दूसरे की चूचियो से खेलने के बाद देवयानी अपना मुँह रुक्मणी की चूचियो से हटाकर धीरे धीरे नीचे जाने लगी. अपनी बहेन का पेट चूमते हुए वो नीचे उसकी सलवार के नाडे तक पहुँची और एक हाथ से वो जैसे ही उसे खोलने को हुई, रुक्मणी ने उसका हाथ पकड़कर उसको रोक दिया.

"फिर आती है मेरी बारी" कहते हुए रुक्मणी उठी और देवयानी को नीचे धकेल कर खुद उसके उपेर चढ़ गयी.
"सबसे पहले मैं उसके होंठ चूस्ति हूँ" कहते हुए रुक्मणी देवयानी के उपेर झुक गयी और उसके होंठ चूमने लगी.
"फिर धीरे से नीचे आती हूँ" कहते हुए वो देवयानी के गले तक पहुँची और उसके गले पर अपनी जीभ फिराने लगी.

"फिर उसके निपल्स" रुक्मणी ने कहा और देवयानी के दोनो निपल्स चूसने लगी.
"दबा ना" देवयानी ने आह भरते हुए कहा तो रुक्मणी मुस्कुरा उठी
"उसकी छाती पर दबाने के लिए कुच्छ नही है. तेरे तो इतने बड़े बड़े हैं पर उसके निपल्स ऐसे नही है इसलिए ज़्यादा देर नही लगती. फिर मैं नीचे को सरक्ति हूँ" कहते हुए रुक्मणी देवयानी के पेट को चूमते हुए नीचे तक पहुँच और उसकी नंगी चूत तक पहुँच कर सर उठाकर हस्ने लगी.

"फिर मैं यहाँ कुच्छ चूस्ति हूँ जो तेरे पास नही है" रुक्मणी ने कहा
"इंतज़ाम हो जाएगा" कहते हुए देवयानी ने अपना एक हाथ अपनी चूत पर उल्टा रखा और अपनी बीच की उंगली उपेर को उठा दी, जैसे उसकी टाँगो के बीच कोई लंड खड़ा हो.

उसकी इस हरकत पर रुक्मणी मुस्कुराइ और उसकी उंगली को ऐसे चूसने लगी जैसे मेरा लंड चूस रही हो. मेरा खुद का लंड तो कबका खड़ा हो चुका था और मेरा दिल कर रहा था के कपड़े उतारकर अभी इसी वक़्त दोनो बहनो के बीच पहुँच जाऊं पर खामोशी से खड़ा सब देखता रहा.

थोड़ी देर तक देवयानी के उंगली चूसने के बाद रुक्मणी सीधी हुई और अपनी सलवार उतारने लगी.

"और फिर वक़्त आता है फाइनल आक्षन का" कहते हुए रुक्मणी ने अपनी सलवार और पॅंटी एक साथ उतार कर फेंक दिए. दोनो बहने पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी और मैं उन दोनो के जिस्म पर नज़र दौड़ाने लगा. दोनो में ज़्यादा फरक नही था. बिल्कुल एक जैसे जिस्म थे सिवाय इसके के देवयानी की गांद रुक्मणी से ज़्यादा भारी थी.

रुक्मणी के अपने एक हाथ पर थोड़ा सा थूक लेकर अपनी चूत पर लगाया और दोनो टांगे नीचे लेटी हुई देवयानी के दोनो तरफ रखकर उसके उपेर खड़ी हो गयी. एक आखरी बार अपनी चूत को सहला कर वो नीचे हुई और धीरे से अपनी बहेन की उंगली अपनी चूत में लेकर उसके उपेर बैठ गयी. चूत के अंदर जैसे ही उंगली दाखिल हुई, दोनो बहनो ने एक लंबी आह भरी.

मैं उन दोनो का ये खेल देखने में इतना बिज़ी हो चुका था के मुझे वक़्त का अंदाज़ा ही नही रहा. जब मेरी जेब में रखा हुआ मेरा सेल वाइब्रट हुआ तो मैं जैसे एक नींद से जागा. दिल ही दिल में उपेरवाले का शुक्र अदा करते हुए के फोन साइलेंट मोड पर था इसलिए बजा नही, मैं जल्दी से घर के बाहर आया.

कॉल मिश्रा की थी.
"क्या कर रहा है तू आजकल?" उसने फोन उठाते ही सवाल किया
"क्या मतलब" मैने पुचछा
"कहाँ इन्वॉल्व्ड है?" मिश्रा ने कहा
"कहीं नही, क्यूँ?" मुझे उसकी बात समझ नही आ रही थी पर इतना शक हो गया था के कुच्छ गड़बड़ है.

"हमें 2 डेड बॉडीस मिली हैं, लावारिस. एक तो कोई टॅक्सी ड्राइवर है और दूसरे की पहचान होनी बाकी है" कहकर वो चुप हो गया
"हाँ तो?" मैने पुचछा
"देख इशान मुझसे कुच्छ च्छुपाना मत" मिश्रा बोला "सबसे पहले तो तेरा उस सोनी मर्डर केस में नाम आना, फिर अचानक तेरा उस अदिति मर्डर केस में किताब लिखने के बहाने गाड़े मुर्दे उखाड़ना, उस दिन शाम को तुझे बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल में लाया जाना, ये सब कुच्छ पहले से ही काफ़ी अजीब था और अब ये?"

"ये क्या?" मुझे अब भी कुच्छ समझ नही आया
"जो 2 डेड बॉडीस मिली हैं, उनके पास ही मर्डर वेपन भी पड़ा हुआ था. एक लंबा सा चाकू. उसी चाकू से दोनो को बड़ी बेरहमी से मारा गया है" मिश्रा बोला
"ह्म्‍म्म्म" मैं बस इतना ही कह सका
"अभी अभी लॅब से रिपोर्ट मेरे पास आई है. इत्तेफ़ाक़ से वो डेड बॉडीस भी और मर्डर वेपन भी उसी हॉस्पिटल में ले जाया गया था जहाँ उस रात तू बेहोश होकर पहुँचा था" उसने कहा
"ओके" मैने हामी भरी

"रिपोर्ट की मुताबिक उस चाकू पर तीन लोगों का खून के सॅंपल्स मिले हैं. एक तो उस टॅक्सी ड्राइवर के, दूसरे उस आदमी के जिसकी आइडेंटिटी अब भी हमें पता नही और जानता है तीसरे आदमी के खून के सॅंपल्स किससे मॅच करते हैं?"
"किससे?" मैने पुचछा
"तुझसे" मिश्रा बोला "उस चाकू पर तेरा भी खून था"

उसकी ये बात सुनकर एक पल के लिए चुप्पी च्छा गयी. ना वो कुच्छ बोला ना ही मैं.
"तुझे मेरा ब्लड सॅंपल कहाँ से मिला?" मैने खामोशी तोड़ी
"मुझे नही मिला. पर उस रात उस डॉक्टर ने तेरा चेक अप करते हुए ब्लड सॅंपल लिया था जो उनके हॉस्पिटल रेकॉर्ड्स में अब भी है. टॅक्सी ड्राइवर की पहचान तो हो गयी थी पर उस दूसरे आदमी की पहचान के लिए जब उसने अपने रेकॉर्ड्स पर नज़र डाली तो कंप्यूटर ने उस आदमी का तो कोई मॅचिंग सॅंपल नही दिखाया पर उस तीसरे खून के निशान को तेरे ब्लड सॅंपल से मॅच कर दिया" कहकर वो फिर खामोश हो गया.

अगले एक मिनिट तक फिर फोन पर खामोशी रही.
"ठीक है यार मैने कुच्छ च्छुपाया है तुझसे" मैने फिर से खामोशी तोड़ी
"गुड. बोलता रह मैं सुन रहा हूँ" मिश्रा ने कहा
"यहाँ नही. तू पोलीस स्टेशन में ही रुक मैं वहीं आ रहा हूँ" कहते हुए मैने फोन रख दिया

अपनी गाड़ी निकालकर मैं पोलीस स्टेशन की तरफ चला. मैं समझ गया था के अब वक़्त आ गया है के मैं मिश्रा से कुच्छ भी ना च्छूपाऊँ वरना खुद ही फस जाऊँगा. जो बात मेरी समझ में नही आ रही थी के उन दो आदमियों को किसने मार दिया. ये तो सॉफ था के ये वही 2 लोग थे जिन्होने उस रात मुझपर हमला किया था और क्यूंकी उसी चाकू से उन्होने मुझपर भी वार किया था इसलिए मेरा ब्लड अब भी थोड़ा बहुत चाकू पर लगा रह गया था. पर बड़ा सवाल ये था के जो मुझे मारने आए थे उनको किसने मार दिया?

पर फिर जवाब भी मैने खुद ही दे दिया. गुंडे थे साले, कोई भी मार सकता है ऐसे लोगों को. इनके दुश्मनो की कमी थोड़े ही ना होती है.

लड़की की कहानी जारी है ..................................




"हमें यहाँ से जल्दी निकलना होगा" वो लड़का कह रहा था
"मतलब?" उसने पुचछा
"मतलब के यहाँ से भागना पड़ेगा" लड़के ने कहा तो वो हैरत से उसको देखने लगी
"कहाँ" उसने पुचछा
"शहेर और कहाँ" लड़के ना कहा
"पर चाचा चाची" उसका इशारा अपने घरवालो की तरफ था
"भागना तो पड़ेगा वरना तुम और मैं साथ नही रह सकते" लड़के ने कहा.

उसकी बात सुनकर वो सोच में पड़ गयी. ये सच था के वो खुद भी वहाँ से भाग जाना चाहती थी. अपने चाचा चाची से वो बहुत नफ़रत करती थी पर आज तक कभी सच में भाग जाने के बारे में उसने सोचा नही था.
"और तुम्हारे घरवाले" उसने पुचछा
"उनकी फिकर मत करो. उनका होना ना होना एक ही बात है" लड़के ना कहा
"पर शहेर जाके करेंगे क्या?" लड़की ने पुचछा
"मैं कोई नौकरी कर लूँगा. मैने सुना है के शहेर में काम ढूँढना मुश्किल नही है" लड़का बोला
"और मैं क्या करूँगी?" उसने अपना शक जताया
"तुम्हें कोई काम आता है?" लड़के ने पुचछा तो उसने इनकार में सर हिला दिया
उसके बाद दोनो थोड़ी देर चुप बैठे रहे.

"अगर तुम यहाँ रहती तो क्या करती?" लड़के ने थोड़ी देर बाद पुचछा
"पढ़ाई करती और फिर गाती" उसने जवाब दिया
"तुम गाती हो?" लड़के ने पुचछा
"हाँ और मैं जानती हूँ के मैं बहुत अच्छा गाती हूँ" वो भरोसे के साथ बोली
फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही.

"तुम क्यूँ भागना चाहते हो?" उसने लड़के से पुचछा
"यहाँ कुच्छ ठीक नही है" लड़के ने कहा "और तुमने देखा ही था के वो लड़के भी कैसे मुझे परेशान करते हैं"
"कौन थे वो लोग" उसने पुचछा
"गाओं के ही हैं. साले जब भी मिलते हैं मुझे परेशान करते हैं" लड़के ने ज़मीन की तरफ देखते हुए कहा

"तुम अपने माँ बाप को क्यूँ नही बता देते?" उसने पुचछा
"मेरे माँ बाप इस दुनिया में नही है" लड़ने ने वैसे ही ज़मीन की ओर देखते हुए कहा
फिर कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.
"मेरे भी" थोड़ी देर बाद वो बोली
"जानता हूँ" लड़के ने कहा

क्रमशः.............................

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