अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:46

पर गौरी पर शिल्पा की अनुनय का कोई असर नही हुआ.. ज़बरदस्ती खींचने की वजह से इस आपा धापी में शिल्पा का टॉप उसकी नाभि तक उपर खींच गया.. एक दूसरे से खींचतान में लगी दोनो लड़कियाँ जैसे ही शेखर के सामने आई.. उसकी तो मानो धड़कन ही थम गयी..पहली ही नज़र में उसने शिल्पा को पहचान लिया... लंबे काले खुले हुए बालों में उसका चेहरा बादलों की आड़ में छिपे चाँद की सुंदरता को भी मात दे रहा था.. पूरा का पूरा बदन यौवन रस से लबरेज और एक दम लचीला था... शेखर का ध्यान उसके नाभि स्थल पर भी गया.. पेट इतना चिकना और पतला था कि उसकी नशें भी बारीक रेशों के रूप में बाहर द्रिस्तिगोचर हो रही थी.. वो तो पूरी की पूरी ही चिकनी थी.. एकदम मस्त!

जैसे तैसे खुद को छुड़ा कर शिल्पा वापस अंदर भाग गयी... गौरी हान्फ्ते हुए बाहर आई," पहचाना इसको?"

"हां.. शिल्पा थी ना?" शेखर ने जवाब देने के साथ ही उसका कन्फर्मेशन भी लेना चाहा...

"हूंम्म.. बाहर आओ ना.. शिल्पा.. ये क्या बचपाना है?" गौरी ने बाहर से ही उसको प्यार भरी फटकार लगाई...

"एक मिनिट.. अंदर आना गौरी.." शिल्पा ने आवाज़ लगाई...

अंदर जाते ही गौरी ने हुल्के स्वर में उसको डांटा," क्या है ये? क्या समझेगा वो.. तू कोई बच्चि नही है अब.. चल बाहर..."

"बच्ची नही हूँ, तभी तो!" शिल्पा ने मन ही मन कहा और बोली," एक मिनिट.. यहाँ तेरी कोई ब्रा है क्या? मैं जल्दी में पहन'ना भूल गयी.." उसने सकुचते हुए कहा...

"कुच्छ नही होता.. सब ठीक है.. तू आ ना.." गौरी ने उसका हाथ पकड़ा और बाहर खींच लाई...

शिल्पा का चेहरा देखने लायक था.. वह आकर बैठ तो गयी थी पर शेखर से नज़रें नही मिला पा रही थी... यूँ ही पलकें झुकाए वह अपनी दोनो छातियो के उपर से एक हाथ ले जाकर अपनी दूसरी बाजू को पकड़े रही...

"हेलो!" शेखर ने ही उसका मौन तोड़ने की कोशिश की...

"हाई!" बोलते हुए शिल्पा ने अपनी पलकों को उठाने की कोशिश की पर शेखर से नज़रें मिलते ही हया के बोझ से वापस झुक गयी," कैसे हो? शेखर!"

"नज़रें उठाकर खुद ही देख लो ना, कैसा हूँ! हा हा हा" शेखर ने मज़ाक किया...

"मैं एक मिनिट में आई.." कहकर गौरी वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गयी...

"तुम तो एकद्ूम बदल गयी हो शिल्पा.. ये सब कैसे हुआ..?" शेखर ने गौरी के जाते ही उसको छेड़ा....

शिल्पा को महसूस हुआ कि शेखर उसके उरजों में बदलाब की ही बात कर रहा है शायद.. वह ऐसा कहते ही और भी ज़्यादा सिकुड गयी," और सूनाओ! क्या करते हो आजकल.. काफ़ी स्मार्ट हो गये हो.. पहले जैसे नही रहे.. लल्लूराम!" कहते ही शिल्पा ने अपना चेहरा हाथों में छुपा लिया.. धीरे धीरे उसकी झिझक खुल रही थी...

"तुम भी तो शादी के लायक हो गयी हो.. कोई लड़का देखना है क्या?" शेखर की इस बात ने उसके जज्बातों को झनझणा दिया.. वह भड़कना चाहती थी.. पर भड़क नही पाई... पहले भी शेखर अक्सर यही मज़ाक उसके साथ किया करता था.. पर उस वक़्त तो वो कहने के साथ ही रफूचक्कर हो जाता था.. वरना उसको पता होता था कि शिल्पा रो रो कर.. सारे मोहल्ले को खड़ा कर लेगी....

"तुम बिल्कुल वैसे ही हो!" शिल्पा ने रूठने की आक्टिंग करते हुए अपने रसीले होंटो को बाहर निकाल लिया.. पर मुस्कान को अपने चेहरे से हटा नही पाई.. और ना ही नज़रें उठा पाई....

"पर तुम अब वैसी नही रही शिल्पा.. तुम तो शरमाने लगी हो... अब तो झगड़ा भी करना बंद कर दिया है शायद.. वरना इस बात पर तो मेरे उपर चढ़ कर बालों को नोचने लग जाती.." शेखर ने मुस्कुराते हुए कहा...

क्या कहती शिल्पा, उपर तो वो अब भी चढ़ना चाहती थी.. पर बदन पर यौवन का बढ़ा हुआ वजन उसको आगे बढ़ने से रोक रहा था...," कितने दिन हो अभी.. यहाँ पर...?"

"पता नही.. सोचकर तो हफ्ते भर की आया था.. देखते हैं... " शेखर ने बात पूरी भी नही की थी कि गौरी अपनी मम्मी के साथ अंदर आती हुई दिखाई दी.. ये दोनो की पुरानी यादों को ताज़ा करते हुए एक दूसरे के नज़दीक आने की कोशिशों पर विराम जैसा था.. दोनो सामान्य हो गये...

"नमस्ते आंटी जी..!" शेखर ने खड़े हो उसका अभिवादन किया...

"नमस्ते बेटा.. बड़े दीनो बाद याद किया अपना शहर.. अरे कुच्छ खाने पीने को भी दिया है कि नही तुम लोगों ने!" आंटी जी ने पूचछा....

"वो.. मैं ठंडा लेने ही गयी थी मम्मी.. अभी देती हूँ....

....................................................................

अमन की कोठी पर उपर बेडरूम में बैठी साना अमन को अंदर आते देख चौंक गयी और खड़ी होकर एक कोने में जा सिमटी...

"क्या हुआ साना, मेरी जान? तुम्हे मुझसे क्या नाराज़गी है?" अमन ने छक कर पी रखी थी... बिस्तेर पर बैठते ही उसने उंगली का इशारा कर साना को अपने पास बुलाया...

"पर.. पर तुमने कहा था कि तुम मेरे पास नही आओगे.. तुमने वादा किया था!" साना नज़रें झुकाए कोने में ही खड़ी रही....

"छ्चोड़ो ना ये वादे कस्में.. आओ ना डियर.. प्यार करते हैं.. लेट'स मेक लव, कम ऑन बेबी!" अमन अब भी बिस्तेर पर ही पसरा हुआ था....

"नही.. मुझे नही करना प्यार.. तुम प्लीज़ जाओ यहाँ से..." साना ने हाथ जोड़ लिए...

"कमाल है यार... प्यार नही करना तो रात को छुप कर घर से आने का ख़तरा क्यूँ मोल लिया.. वहीं सो जाती आराम से... बोलो?"

इस बात का साना के पास भी कोई जवाब नही था... ," ठीक है.. मुझे घर छ्चोड़ आओ.. सलमा कहाँ है? उसको बुला दो प्लीज़ एक बार.." साना लचर सी वहाँ खड़ी थी....

"सलमा रवि के साथ ऐश कर रही है जानेमन.. उसने मुझे सब बता दिया है.. वो तुमको लाना नही चाहती थी..मैने भी तुम्हे नही बुलाया.. पर तुम ज़बरदस्ती करके आई हो.. अब प्राब्लम क्या है?" अमन खड़ा होकर उसके पास आ गया....

साना कोने में और ज़्यादा दुबक गयी.. वह नही चाहती थी की अमन उसको हाथ भी लगाए," हां.. पर मैने बोल दिया था कि तुम मेरे पास नही आओगे... पूच्छ लो उस'से....!"

"अब ये तो हद हो गयी यार.. मैं तुम्हारे पास आता भी नही.. पर वो सलमा ने बोला कि तुम सेक्स करना नही चाहती तो रवि उसी के बेडरूम में घुस गया.. तो फिर मैं क्या अपने हाथ में लेकर हिलाता रहता.. एक बात बताओ.. आज तक मैने तुम्हे हाथ लगाया है?"

साना ने अपना सिर झुकाकर इनकार में हिला दिया....

"मैने आज तक किसी के साथ ज़बरदस्ती नही की.. हालाँकि मुझे तुम पहले दिन से ही प्यारी लगती हो.. पर तुम्हे तुम्हारी मर्ज़ी के खिलाफ छ्छू कर भी नही देखा मैने.. सच तो ये है कि मैने सलमा से दोस्ती भी तुम्हारे ही कारण की थी.. ताकि तुम्हे हासिल कर सकूँ... पर देख लो.. आज 6 महीने के करीब हो गये हैं.. तुम यहाँ 3-4 बार आ चुकी हो... तुमने मुझे हाथ लगाने की इजाज़त नही दी और मैने कभी लगाया भी नही.. है ना...?" अमन अब भी उसके ठीक सामने खड़ा था...

"आ..हां!" साना सकुचती हुई बोली....

"पता है क्यूँ?" अमन ने फिर सवाल किया...

साना ने नज़रें उठाकर झुका ली.. पर कोई जवाब नही दिया....

अमन ने उसको अपनी गोद में उठा लिया.. वो च्चटपताई; पर बलिशट हाथों में कुच्छ और ना कर सकी.. अमन ने उसको बिस्तेर पर ले जाकर लिटा दिया.. पर उसके छ्चोड़ते ही वह उठ कर खड़ी हो गयी..

"क्यूंकी तुम्हारा नाम मुझे किसी की याद दिलाता है.. जो मेरे दिल में उतर गयी थी.. और जिसके चाहने के बावजूद मैं उसको कभी छ्छूकर नही देख पाया... हम यूँही जुदा हो गये.. एक दूसरे को देखते देखते.... मैं एक बार 'साना' को पाना चाहता हूँ.. पर ज़बरदस्ती नही..." अमन नशे में भावुक हो गया और उसकी तरफ कमर किए खड़ी साना को बिस्तेर पर बैठे बैठे ही अपनी बाहों में भर लिया.. साना के नितंब अमन की छाती से लगते ही थिरक उठे.. इस थिरकन को अमन ने भी महसूस किया और साना ने भी....

"पर... पर मैं तुम्हारी साना नही हूँ... सिर्फ़ नाम मिलने से क्या होता है...?" साना तड़प सी उठी और अपने आपको उसके बहुपाश से छुड़ाने की कोशिश में उसकी और ही घूम गयी..उसको अमन की आँखों में आँसू तैरते नज़र आए...

"ठीक कहती हो.. नाम मिलने से कुच्छ नही होता... पर कुच्छ भी ना मिलने से कुच्छ मिल ही जाए, तो बेहतर है.. और तुम्हारा नाम ही नही मिलता उस'से.. तुम्हारी आँखें भी मिलती हैं.. इनमें जो कशिश है वो मैने बहुत पहले साना की आँखों में देखी थी.. तुम्हारी आँखें मुझे अपनी और खींचती हैं.. जैसे कभी उसकी आँखें खींचती थी... मेरा जर्रा जर्रा उस पल को कोसता है जब वो अपने घर में अकेली थी.. और मुझे उसने इशारे भी किए.. पर मैं कभी उन इशारों को समझ नही पाया.. उसको कभी छ्छू नही पाया... मुझे एक बार साना को छ्छू कर देखने दो प्लीज़.. दोबारा कभी नही बोलूँगा...." अमन ने साना को अपनी और खींचा और उसकी चूचियो के बीच चेहरा घुसा दिया..

अमन की नशीली साँसों को अपने सीने में पेबस्त होता देख साना के शरीर में अजीब सी खलबली मच गयी.. पर वह अपने आपको संभाले हुए थी....," अब तो छ्छू लिया ना.. छ्चोड़ दो प्लीज़.. मैं और आगे बढ़ना नही चाहती....छ्चोड़ दो मुझे.." वह अपने आपको च्छुदाने के लिए छट-पटाने लगी.. और अपने हाथ अमन के चेहरे पर लगा उसको पिछे धकेलने लगी....

अमन उसकी इस हरकत पर बौखला उठा.. नशे का सुरूर तो था ही," तूने मुझे समझ क्या रखा है लड़की.. मैं 6 महीने से तेरा इंतजार कर रहा हूँ.. और तू नखरे करती जा रही है... रवि का तूने पहले ही दिन पूरा का पूरा अपनी चूत में उतरवा लिया.. और सलमा बता रही थी कि तू खूब मज़े से उच्छल रही थी.. मेरे साथ क्या दुश्मनी है तुझे..?" अमन उसकी कमर पर टिकाए हुए अपने हाथों को नीचे ले गया और उसके मदमस्त किसी तरबूज की तरह बाहर उभरे हुए उसके नितंबों को दोनो हाथों में पकड़ कर मसालने लगा....

साना सिसक उठी.. उसकी हालत खराब होती जा रही थी.. हालाँकि उसके पास अमन के सवाल का कोई जवाब नही था.. फिर भी वो यही चाहती थी की अमन उसको छ्चोड़ दे," प्लीज़... अया.. ऐसा मत करो.. छ्चोड़ दो मुझे...प्लीज़!"

पर अमन के हाथ नही थामे... नितंबों को हथेलियों से मसालते हुए अब उसकी उंगलियाँ दरार के बीचों बीच सलवार और पॅंटी के उपर से उसको काफ़ी अंदर तक कुरेदने लगी थी.... साना की सिसकियाँ अब उसके विरोध के साथ साथ सुनी जा सकती थी...," क्यूँ नही.... छोड़'ते हो मुझे.. जब मैं कुच्छ.. आआहह.. आअहह.. करना ही नही चाहती..... छ्चोड़ो ना..!" साना मचल उठी और उसके हाथ अब अपने गुदज नितंबों को अमन की क़ैद से मुक्त करवाने की कोशिश कर रहे थे....

"ना.. आज तुझे छोड़ूँगा नही बुल्की प्यार से चोदून्गा... आज या तो तू नही या मैं नही.. अगर तू कुँवारी होती तो मैं तुझे तेरी मर्ज़ी के खिलाफ कभी हाथ ना लगाता... पर जब रवि पहले ही दिन तेरी गांद मार सकता है तो फिर मुझसे तुझे क्या दिक्कत है..." अमन की भाषा भी उसकी हरकतों की तरह अश्लीलता की हदों को पार करती जा रही थी.. सब नशे का असर था....

साना ने अपने आपको च्छुदाने का भरसक प्रयास किया, पर सफल ना हो सकी.. ज़ोर लगाते हुए जब उसने महसूस किया की अमन की उंगलियों की पकड़ भी उसकी कोशिशों के साथ बढ़ती जा रही है तो उसने मजबूरन अपने आपको ढीला छ्चोड़ दिया..," मान जाओ ना.. अमन.. प्लीज़.." उसने अपने हाथ अमन के कंधों पर टीका लिए...

"पर क्यूँ साना? जब रवि कर सकता है तो मैं क्यूँ नही..?" अमन तड़प कर बोला.. उसने साना के नितंबों को छ्चोड़ कमर से उसको पकड़ लिया...

"एम्म..मुझे नही पता.. पर मैं तुमसे प्यार नही कर सकती.. सॉरी अमन.. तुम बहुत अच्छे हो.. पर.. प्लीज़.. समझने की कोशिश करो..!" साना ने उसको प्यार से बोलकर मनाने की कोशिश की...

"मैं ये थोड़े ही कह रहा हूँ कि मुझसे प्यार करो.. मैं तो.. मैं तो तुम्हारे बेपनाह हुश्न में बस एक बार उतर कर देखना चाहता हूँ.. और तुम्हारे हर इनकार के साथ मेरी लालसा और बढ़ जाती है.. एक बार मुझे मनमर्ज़ी करने दो.. फिर नही टोकंगा...." अमन ने तर्क दिया...

"मैं.. इसी प्यार की बात कर रही हूँ.. मैं तुम्हारे साथ ये सब नही कर.. करना चाहती.. समझने की कोशिश करो...!" साना जाने क्या समझाने की कोशिश कर रही थी....

"ठीक है.. मैं तुम्हारी आधी बात मान लेता हूँ.. आधी बात तुम मेरी मान लो.. बोलो मंजूर है?" अमन ने उसको छ्चोड़ दिया...

"क्क्या?" साना असमन्झस से उसकी आँखों में देखने लगी...

"मुझे तुम्हारा बदन देखने दो.. जी भर कर.. छ्छूने दो.. मैं आगे नही बढ़ूंगा.. अगर तुम्हारी मर्ज़ी नही होगी तो..!"

"नही!" साना इस बात के लिए भी तैयार नही थी....

"नही तो फिर मुझे दोष मत देना.. अब कुच्छ भी हो सकता है..!" अमन ने खड़ा हो अपनी शर्ट और बनियान उतार फैंकी..और उसकी और बढ़ा... गतीले बदन पर उसका फड़कता हुआ सीना साना को अहसास करा रहा था कि ज़बरदस्ती कुच्छ भी हो सकता है.. और वो कुच्छ नही कर पाएगी...

"एक.. मिनिट... ठीक है.. पर..." साना डरकर बोली...

"अब पर वर कुच्छ नही.. मंजूर है तो कपड़े निकालो.. वरना मैं इन्हे चीर दूँगा...!" अमन की आँखें गुस्से, ज़ज्बात और वासना में से लाल हो चुकी थी...

साना के पास विरोध करने के लिए अब कोई रास्ता बचा भी नही था.. 2 दिन पहले ही तो वो इसी रूम में रवि के साथ हुमबईस्तेर हुई थी.. एकद्ूम अंजान लड़के के साथ.. अब मना करती तो कैसे करती.. गनीमत थी कि अमन 'कम कीमत' पर राज़ी हो गया था.. वरना वह तो हिम्मत छ्चोड़ ही चुकी थी... उसने अपने कमीज़ के पल्लू पकड़े और आख़िरी बार अमन की आँखों में देखते हुए रहम की भीख सी माँगी...

"क्या सोच रही हो.. निकालो भी अब!" अमन तरस रहा था उसके अल्हड़ जिस्म को देखने के लिए...

साना ने एक लंबी साँस ली और घूम गयी.. अपनी लचीली कमर अमन की और करते हुए उसने अपना कमीज़ उतार कर अपनी छाती से लगा लिया...

"वाउ! सो नाइस... !" अमन उसके फिगर का दीवाना सा हो गया..गोरी और चिकनी उसकी कमर मुश्किल से 28" की होगी... अमन ने नंगी कमर को हाथों में पकड़ा.. और अपनी तरफ खींच लिया.. लड़खड़ाते हुए साना उसकी जांघों में जा बैठी.. अमन का तना हुआ लंड पाजामे के अंदर से ही साना के नितंबों के बीच फुफ्कारने लगा.. साना असहाय सी अपने दिमाग़ पर वासना के भूत सवार होने से रोकने की कोशिश करती हुई बोली," आ..तुमने सिर्फ़ देखने को बोला था...!"

अमन ने उसको और पिछे खींचते हुए उसकी नंगी कमर को अपने नंगे जिस्म से सटा लिया..," मैने देखने और छ्छूने की बात कही थी साना.. भूल गयी?" कहते हुए उसने अपने होन्ट साना की कमर पर चिपका दिए.. साना सिसक उठी..," आ.. नही प्लीज़.." बोलते हुए साना ने उचक कर अपने नितंबों को अमन के फड़फदते कहर से बचाने की कोशिश की.. पर दोबारा फिसल कर वहीं आ गयी...

अमन ने अपने हाथ आगे ले जाते हुए साना की चूचियो को पकड़ने की कोशिश की.. पर साना वहाँ अपने हाथों की कुंडली मारे बैठी थी...," अब क्या....?" साना बोलती बोलती रुक गयी....

"देखो.. बगैर छ्छूकर देखे तो मैं मान'ने वाला हूँ नही.. ज़बरदस्ती करनी पड़ी तो तुम्हारा ही नुकसान होगा... तुम्हारी मर्ज़ी है...!" अमन ने सपस्ट रूप से कहा..

"..... पर ऐसा वैसा कुच्छ नही करोगे ना!" साना ने अपनी गर्दन घूमकर प्रार्थना सी की.. और कुच्छ वह कर ही नही सकती थी....

" जब कह दिया कि छ्छूने से ज़्यादा कुच्छ नही करूँगा तो अब और पूच्छने वाली बात क्या है..." साना के नितंबों की गर्मी से अमन अपना धर्य खोता जा रहा था...

"सिर्फ़ उपर ही..." कहते हुए साना ने अपने हाथ ढीले छ्चोड़ दिए और उसके ऐसा करते ही अमन के हाथों ने उसकी चूचियो पर कब्जा सा कर लिया... और अमन के मर्दाने हाथों की गिरफ़्त में अपना यौवन सौंप कर साना छॅट्पाटा सी उठी....

दोनो हाथों में एक एक रसीली गोलाई थाम कर अमन सिसकियाँ लेते हुए उनका मर्दन करने लगा.. साना की आँखें बंद हो गयी.. पर अपनी साँसों पर काबू रखने की वह कोशिश करती ही रही...

अचानक साना को पकड़े पकड़े अमन बिस्तेर पर पिछे की और लुढ़क गया.. और बिना एक भी पल गँवाए उसको पलट कर अपने सामने कर लिया.. साना की आँखें बंद थी.. पर अपनी छलक्ति जवानी को शर्म से उसने अमन की निगाहों से बचाने के लिए अपने हाथों को वहाँ ले जाने की हुल्की सी कोशिश की... पर अमन ने हाथों को बीच में ही पकड़ लिया और साना को सीधी लिटाते हुए उसके उपर आ जमा...

साना के होन्ट कंपकपा रहे थे... चेहरे पर अब विरोध के भाव नही थे.. पर हया की लाली अब भी उसको समर्पण करने से रोक रही थी.. अमन ने उसके दोनो हाथ पिछे करके उसकी मस्ती से तन गयी चूचियो और गुलाबी दानो को निहारा और झुक कर एक दाने को अपने मुँह में दबा लिया... साना तड़प उठी... वासना की एक तेज लहर उसके पूरे जिस्म में पसर गयी और कसमसाते हुए वो अपने हाथों को छुड़ाने का प्रयास करने लगी... उसकी हालत लगातार बद से बदतर होती जा रही थी.. पर अमन तो जैसे आज उसका कतरा कतरा पीने को व्याकुल था..

काफ़ी देर तक उसके अंगों को चूस्ते रहने के बाद जब अमन से ना रहा गया तो वह उस पर से उठ बैठा और अपना पाजामा उतार कर फैंक दिया... ," लो.. तुम तो छ्छू कर देखो इसे.. इसको क्यूँ तड़पा रही हो? कहते हुए आँखें बंद किए लेटी साना का हाथ अमन ने पकड़ा और अंडरवेर से बाहर निकाल कर अपना मोटा तना हुआ लिंग उसको पकड़ा दिया...

साना ने तुरंत अपना हाथ वापस खींच लिया.. हाथ लगते ही वह समझ गयी थी कि 'वो' क्या है..," नही.. मुझे नही छ्छूना कुच्छ..!" कहते हुए उसने फिर से अपनी चूचियो को ढक लिया....

"ये सब नही चलेगा देखो.. तुम्हे नही छ्छूना तो मत च्छुओ.. पर मुझे क्यूँ रोक रही हो.. बैठकर पाकड़ो इसको...!" अमन के सख़्त आवाज़ में कहते ही साना झट से उठ बैठी.. और काँपते हाथों से उसका लिंग हाथ में पकड़ कर चेहरा दूसरी और घूमा लिया....

"अब ये नाटक बाजी बंद करो यार.. ये तुम्हे खा नही जाएगा.. और ना ही तुमने इसको पहली बार देखा है.. अभी तो तुम्हे इसके साथ बहुत कुच्छ करना है..." अमन ने आवेग में अपने लिंग के उपर रखा साना का हाथ पकड़ कर मसल दिया....

"क्या?.. और क्या.. करना है..!" साना ने घबराकर उसकी आँखों में देखा...

"होन्ट खोलो अपने.. इनका रस तो लगा दो ज़रा इस पर याआअर.. कितनी कमसिन है तू.. सच्ची..!" अमन कहते ही घुटनो के बल सरक कर थोड़ा आगे हो गया.. अब लिंग साना की आँखों के सामने उसके होंटो के पास लहरा रहा था....

साना उसका इशारा समझ गयी.. हुल्की सी पिछे होकर उसने निगाहें झुकाई और लिंग को गौर से देखा.. उपर वाला हिस्सा किसी देशी टमाटर की तरह चमक रहा था.. और अंदर से निकल कर एक दो बूँद उसके मुँह पर रखी थी...

"क्या करूँ..?" साना ने बेचैनी से नज़रें उठाकर अमन की तरफ देखा.. हालाँकि उसको पता था कि अब क्या करना है...

"चूसो मेरी जान.. इसको चख कर देखो.. लगता है रवि ने तुम्हे पूरी ट्रैनिंग नही करवाई..." अमन सिसकते हुए उसके और ज़्यादा करीब हो गया...

साना ने अटपटे ढंग से अपने हाथ से सूपदे के मुँह पर लगी बूँदें पूछि और आँखें बंद करके अपने तपते होंठ खोल कर उस पर रख दिए.. अमन बुरी तरह सिसक उठा," इसस्सकॉ मुँह में ले लो ना.." और कहते ही साना का सिर पकड़ कर अपना लिंग अंदर थूस दिया.. सूपदे समेत करीब 3 इंच लिंग अंदर जाते ही साना का दम सा घुट गया.. उसने अपनी फटी हुई आँखें उठाकर अमन को देखा. अमन को उस पर रहम आ गया.. लिंग को वापस खींचते हुए वह बोला," सॉरी.. मुझे लगा तुम्हे लेना आता होगा.. मैं तुम्हे परेशान नही करना चाहता.. इसको बाहर से ही चाट लो..!"

अमन की बातों में हुम्दर्दि की महक आते ही साना की आँखों में आँसू आ गये.. पर उसने इस बार कोई शिकायत नही की और जीभ बाहर निकाल कर अपने काम में जुट गयी.. दरअसल वह भी अब तक नीचे से पूरी तरह गीली हो चुकी थी...

"ओके.. अब मेरी बारी.. सलवार निकाल दो.." जी भरकर आनंद के छणो को जी कर अमन वापस हट गया... और अपना हथियार अंडरवेर में छिपा लिया.. तना हुआ ही..

"साना ने सहमी हुई निगाहों से उसकी और देखा.. पर कुच्छ बोली नही.. शायद वह भी अब खुद पर काबू रखने की सीमा से काफ़ी आगे निकल चुकी थी.. नडे को खींचते हुए उसने सलवार को ढीला किया और उचक कर उसको घुटनो तक सरका, सिर झुका कर बैठ गयी.. बाकी काम अमन ने खुद ही पूरा कर दिया.. सलवार निकाल कर बेड पर रख दी और उसकी टाँगें फैलाकर उनके बीच आ गया..... साना अपना शरीर ढीला छ्चोड़ बेड पर लेट गयी.. उसकी साँसे धौकनी की तरह चल रही थी.. आँखें बंद थी और चूचिया तेज़ी से उपर नीचे हो रही थी....

"वाउ यार.. सो स्वीट.. सच कहूँ तो मैने ऐसी आज तक नही देखी..." पॅंटी के किनारों में उंगली डाल जैसे ही उसने साना की योनि को बेनकाब करके देखा.. उसके मुँह में पानी भर आया.. साना तो आनंद के मारे उच्छल ही पड़ी थी... अमन उसको बिल्कुल नंगी करने से खुद को रोक ना पाया और अगले ही पल पॅंटी भी बिस्तेर पर पड़ी नज़र आई...

अमन साना की जांघों पर हाथ फेरता हुआ मुँह खोले उसकी योनि को देखता ही रह गया.... मुलायम हुल्के बालों वाली उसकी योनि भी उतनी ही मुलायम थी.. मोटी मोटी फांकों के बीच पतली सी झिर्री और उसमें से झाँक रही योनि की पंखुड़ीयाँ रसीली और बहुत ही नाज़ुक सी थी... उसके गोरे शरीर की अपेक्षा योनि का रंग हूल्का भूरा सा था.. और बहुत ही मादक ढंग से साना की सिसकियों के साथ ही योनि भी धीरे धीरे फुदाक रही थी...

अमन ने टाँगों को पिछे किया और उनके बीच पूरा लेट गया... अब अमन की साँसों के योनि में मच रही खलबली से साना पागल सी हो उठी थी.. और जैसे ही अमन ने योनि की बंद फांकों को जीभ बाहर निकाल कर चाता.. साना ने पागलपन में ही अपने हाथ को काट खाया.. अपनी निकल रही सिसकियों पर काबू पाने के लिए...

अमन उसकी ये हालत देख कर फूला नही समा पा रहा था.. उत्साहित होकर उसने साना को और गरम करने के लिए योनि को पूरी तरह बाहर से अपने थूक से लथपथ कर दिया.. साना की मदहोश सिकियाँ अब पूरे कमरे में गूँज रही थी...

अचानक की गयी अमन की हरकत से तो वो पूरी तरह तिलमिला ही उठी... अपने हाथों की अंगुलियों से अमन ने योनि की फांकों को अलग किया और योनि के छेद में अपनी जीभ घुसेड दी... साना अधमरी हो गयी," जल्दी कर लो प्लीज़.. जो करना है.. मैं मरी जा रही हूँ...!"

अमन अपना सिर उठाकर बोला..," सच्ची.. कुच्छ भी कर लूँ?"

साना ने अपने हाथ नीचे ले जाकर वापस उसका सिर दबा अपनी योनि से सटा दिया.. मतलब सॉफ था.. उसकी तिलमिलाहट में, उसकी च्चटपटाहत में अब उसकी सहमति साथ थी.. और साना पूरी तरह बेसबरा हो चुकी थी....

अब अमन ने भी देर करना उचित नही समझा.. एक बार और सखलन होने पर साना का मूड बदल सकता था... अपनी जांघों पर साना की गुदज जांघें चढ़ाते हुए अमन ने अपना लिंग योनि मुख पर रखा और साना की चूचियो को दबाता हुआ बोला," साना.. एक बार आँखें खोलो ना प्लीज़.."

साना ने एक पल के लिए अपनी अधखुली आँखों से अमन की और देखा और सिसकी के साथ हुल्की सी मुस्कुराहट उसकी और फैकते हुए आँखें फिर से बंद कर ली...

अमन उस पर झुका और उसके अंदर उतरता चला गया.. साना के होंटो से निलकली कामुक चीख को अमन ने अपने होंटो में ही क़ैद कर लिया...


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:46

अधूरा प्यार--10 एक होरर लव स्टोरी

अमन जब बाहर निकला तो रवि और सलमा बाल्कनी में एक दूसरे से अठखेलिया कर रहे थे.. सलमा भागते हुए जाकर उस'से लिपट गयी,"ओह डार्लिंग! आइ मिस्ड यू सो मच.." और फिर अचानक ही अमन के चेहरे पर शिकन देख उसके चेहरे के भाव बदल गये," क्या हुआ ? बात आज भी नही बनी क्या?"

अमन उसको दूर सा करते हुए बोला," जाओ संभाल लो उसको.. और आइन्दा मेरा नाम और नंबर. दोनो भूल जाना!"

सलमा उसकी बात सुनकर चौंक पड़ी," पर हुआ क्या? मैं तो कब से कह रही हूँ.. एक बार ज़बरदस्ती कर लो.. बाद में अपने आप दौड़ी चली आएगी.. आओ.. मैं बताती हूँ उसको!" सलमा ने अमन का हाथ पकड़ कर खींचा....

"हो गया यार.. सब कुच्छ हो गया.. रो रही है अब वो बैठी बैठी.. जाओ संभाल लो उसको और बाहर निकल लाओ.. छ्चोड़ आता हूँ तुम्हे.. सोना भी है फिर..!" अमन ने कहते हुए सलमा से मुँह फेर लिया..

सलमा अमन के पास ही खड़ी रही.. पर साना के रोने की बात सुनकर उत्सुकतावश रवि बिना कुच्छ कहे ही उसके रूम में चला गया.. साना ने कपड़े पहन लिए थे और बिस्तेर पर बैठी घुटनो में सिर देकर सूबक रही थी..

"क्या हुआ?" रवि बस यूँही उसके पास बैठ उसके बालों में हाथ फेरने लगा...

साना ने आवाज़ सुनते ही अपना चेहरा उपर उठा लिया.. रवि की आँखों में देखा और अचानक उसका सुबकना बिलखने में बदल गया.. छ्होटे बच्चे की तरह रवि की छाती से जा चिपकी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी.. रवि का मॅन द्रवित हो उठा," अगर तुम्हे ये सब पसंद नही है तो यहाँ आना ही नही चाहिए!"

ये बात का तो साना पर उल्टा ही असर हुआ.. कोई जानता ही नही था कि वा यहाँ आई क्यूँ थी.. किसके लिए आई थी.. साना ने अपने दोनो हाथ रवि की कमर पर चिपका लिए और अपनी छातियो को रवि की छाती में गाड़ा दिया.. वह अब भी रो रही थी.. लगातार...

तभी कमरे में सलमा ने प्रवेश किया," क्या नाटक है साना? ये सब क्या है? चलो उठो.. देर हो रही है..!"

साना की तरफ से तनिक भी हुलचल ना हुई.. वो रवि ही था जो उस'से जैसे तैसे अलग हुआ और बाहर चला गया...

"चलो भी अब! क्या हो जाता है तुम्हे? कल तो अपने आप ही बीच में कूद पड़ी थी और आज ऐसे रो रही हो.. चल आजा अब.. आजा यार.. अमन ने कह दिया है कि अब वो कभी तुम्हे हाथ नही लगाएगा.. सॉरी भी बोल रहा था.. आजा.. आजा मेरी सन्नो!" सलमा ने उसको बातों ही बातों में उठाया और नीचे गाड़ी में इंतजार कर रहे अमन के पास ले गयी.. रवि शायद नीचे जाकर लेट चुका था.....

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अगली दोपहर करीब 12:30 पर बतला हाइवे पर खड़े रोहन और शेखर नितिन के आने का इंतजार कर रहा थे. नितिन की कार को रोहन ने दूर से ही पहचान लिया.. और शेखर की कार से उतर कर उसको रुकने का इशारा किया.. नितिन ने कार रोक दी.. रोहन ने नितिन से हाथ मिलाया, साथ बैठी श्रुति को अटपटे ढंग से हेलो बोला और पिछे वाली सीट पर जा बैठा," अगली गाड़ी के पिछे पिछे चलाना भाई..."

"तो... आपका कहना ये है कि मेरे सपने की वजह आप ही हैं.." रोहन ने श्रुति से पूचछा.. वो और श्रुति कोठी के ड्रॉयिंग रूम में अकेले आमने सामने बैठे थे.. नितिन रवि को लेकर जानबूझ कर बाहर निकल गया था ताकि श्रुति भोले भाले रोहन को आसानी से उसके द्वारा रटाई गयी बातें बोल सके.. रवि नितिन के प्लान में अड़ंगा डाल सकता था...

श्रतु रोहन के सवाल पर कुच्छ देर चुप्पी साधे रही.. फिर पहले हाँ में सिर हिलाया और नज़रें उठाकर बोली," हाँ!"

श्रुति की शकल सूरत इतनी प्यारी और मासूम थी कि अगर रोहन ने नीरू को ना देखा होता तो शायद वो उसके इसी जवाब को 'आख़िरी जवाब' मान लेता.. पर अब दुविधा में उसके पास पूच्छने के लिए और भी बहुत सारी बातें थी," पर क्यूँ? मेरा मतलब है कि मैने तुम्हे पहली बार तुम्हारे घर ही देखा था.. और शायद तुमने भी.. फिर ऐसा क्यूँ कर रही थी.. और ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई जिंदा लड़की किसी के सपने में आकर जो कहना चाहती है वो कह सके, उसके अपने पास बुलाने के लिए बाध्य कर सके..? प्लीज़ मुझे सारी बातें डीटेल में समझाओ.. मैं बहुत कन्फ्यूषन में हूँ..."

बोलने के लिए मुँह खोलते हुए श्रुति के चेहरे पर शिकन उभर आई. वह जानती थी कि अब जो कुच्छ भी वह बोलेगी, झूठ ही बोलेगी.. नितिन के कहे अनुसार.. जो कुच्छ उसने याद कर रखा था.. वह एक स्वर में बोलती चली गयी.. बिना रुके

"दरअसल जो कुच्छ भी हुआ है, वो आधा मैने किया है और आधा भगवान ने.. पहले मेरे सपनों में तुम दिखने लगे थे.. मैं बेचैन रहने लगी.. तुम भी अक्सर वही बातें कहा करते थे जो मैने तुम्हे सपनो में कही हैं अभी तक.. ये सिलसिला जब महीनो तक चलता रहा तो हार कर में अपने गाँव के पास एक तांत्रिक के पास गयी.. इन्न सपनों की वजह जान'ने के लिए.. उस ने मुझे बताया की हमारा पिच्छले जन्मों का कोई संबंध है.. और इसीलिए मुझे ऐसे सपने आते हैं. साथ ही उन्होने कहा कि वो 21 दिन का अखंड यग्य करके हमारी आत्माओ को एक दूसरे से अलग कर सकते हैं ताकि फिर कभी मुझे ऐसे सपने ना आयें...." कहते हुए श्रुति अचानक चुप हो गयी.. नितिन ने उसको ऐसा ही करने के लिए बोला था..

"फिर?" रोहन बड़ी लगन से उसके हर शब्द पर विस्वास करता हुआ सुन रहा था.. श्रुति के रुकते ही वा बेचैन हो गया," आगे बताओ ना!"

"उन्होने तुम्हे हमेशा के लिए मेरी जिंदगी से दूर करने का आसवसन दिया था.. पर.." श्रुति फिर चुप हो गयी.. इस बार नितिन की मर्ज़ी के मुताबिक नही.. पर जो उसको बोलने को कहा गया था.. श्रुति उसकी हिम्मत नही जुटा पा रही थी...

"पर क्या? बोलो ना!" रोहन विचलित होते हुए बोला....

"पर.. मुझे तब तक तुमसे.. प्यार हो गया था.. रात को ही नही.. मैं दिन में भी तुम्हारे सपने देखने लगी थी.. मुझे पता नही चला की कब ऐसा हुआ.. पर जब तांत्रिक ने मेरी जिंदगी से तुम्हे निकाल देने की बात कही तो मैने मना कर दिया.." श्रुति ने कहा...

"तुम रुक क्यूँ रही हो बीच बीच में.. सारी बात बताओ ना.. आगे क्या हुआ?" रोहन खुद ऐसा सपने देख चुका था इसीलिए श्रुति की बातों पर विस्वास ना करने का कोई मतलब ही नही था...

"मैने उनको बताया की मैं आपसे प्यार करने लगी हूँ.. और अगर हमारा पिच्छले जन्मों का कोई संबंध है तो हम इस जनम में क्यूँ नही मिल सकते..? उन्होने कहा मिल सकते हो! मैने ज़रिया पूचछा तो उन्होने एक ही रास्ता बताया.. उन्होने कहा कि वो मुझे सपनो में आपके पास भेज सकते हैं.. उन्होने कहा की मैं जो चाहो सपने में कह सकती हूँ.. बाकी आप पर निर्भर करता है कि आप सपने को कैसे लेते हैं... फिर मेरे कहने पर उन्होने यग्य शुरू कर दिया.. और मैं आपके सपनो में आने लगी.." श्रुति की आँखों से आँसू लुढ़क गये.. रोहन के प्यार में नही.. एक निहायत ही शरीफ लड़के के सामने झूठ पर झूठ बोलते हुए....

"श! आप ऐसे रो क्यूँ रही हैं..?" रोहन ने उसके रोने को उसके बे-इंतहा प्यार का परिणाम माना.. सच में! रोहन का दिल पिघल गया था उसकी बात सुनकर.. श्रुति ने रुमाल निकाला और अपने आँसुओं को पोंच्छ लिया.. पर पुराने आँसू अभी सूखे भी नही थे कि श्रुति अचानक फुट पड़ी.. अपने पैर सोफे पर चढ़ाए और सिर घुटनो में दे लिया...

रोहन उसके पास आया और उसके सिर पर हाथ रख कर समझाने लगा," प्लीज़.. आप रोइए मत.. मैं आपकी हालत समझ सकता हूँ.. दरअसल मैं भी प्यार का मतलब कुच्छ दिन पहले ही समझा हूँ, नीरू.. सॉरी.. तुम्हारे सपने में आने के बाद.. आप रोइए मत प्लीज़.. मेरा भी दिल दुख रहा है आपको रोते देख कर..."

'कितना फ़र्क था रोहन और नितिन में; एक तो वो इंसान की खाल में छिपा भेड़िया, जिसके लिए ना तो दोस्ती के मायने हैं और ना ही ज़ज्बात की कोई कद्र.. एक तरफ रोहन, इंसान के रूप में देवता! कितनी शराफ़त और इंसानियत भरी हुई है इसके दिल में..'

ये सब सोचती हुई श्रुति ने अपने शरीर को ढीला छ्चोड़ सिर उसके कंधे पर टीका दिया.. आँखें यूँही बरसती रही...

रोहन ने उसके हाथ से रुमाल लिया और उसके गालों पर आँसुओं की बनी कतार को सॉफ करते हुए रोकने की कोशिश करने लगा.. श्रुति को उसकी नज़रों में वासना का कतरा भी दिखाई नही दिया.. उसके दिल में तो सिर्फ़ प्यार ही प्यार भरा हुआ था.. धीरे धीरे श्रुति की सुबाकियाँ बंद हो गयी और अपने हाथ का सहारा लेकर वह सीधी बैठ गयी...

श्रुति के सामान्य होते ही रोहन अपने मन में उपजे कुच्छ अनसुलझे सवालों का जवाब जान'ने की कोशिश करने लगा," अगर आप नॉर्मल हों तो एक बार पूच्छू.."

श्रुति उसको सब कुच्छ सच सच बता देना चाहती थी.. पर उसका मतलब सिर्फ़ उसकी जिंदगी बर्बाद होना ही होता.. थोड़ी देर चुप रहकर उसने संभालते हुए उन्न संभावित सवालों को याद किया और रोहन की आँखों में आँखें डाल बोली," हां.. मैं ठीक हूँ..!"

"आपने मुझे टीले पर क्यूँ बुलाया? घर क्यूँ नही..?" रोहन वापस उठकर सामने चला गया...

"वो मुझे उस तांत्रिक ने ही ऐसा करने के लिए बोला था.. दरअसल 'यग्य' वहीं चल रहा था.. और यग्य संपन्न करने के लिए एक बार आपकी उपस्थिति ज़रूरी थी... इसीलिए उन्होने आपको वहाँ बुलाया था..." इस सवाल का जवाब श्रुति पहले ही याद किए हुए थी.. इसीलिए बोलते हुए वह कहीं नही अटकी...

"श.. इसका मतलब जब हम वहाँ गये तो और कोई भी वहाँ आसपास था.. गाड़ी की हवा भी उसने ही निकाली होगी.. क्या नाम है तांत्रिक का?" रोहन ने यूँही पूच्छ लिया...

"पता नही...लोग उनको अग्यात बाबा कहते हैं.. !" श्रुति ने पहले से ही याद किया हुआ नाम भी बता दिया...

"एक बात मेरी समझ में अभी तक नही आई.. जब आप ही मेरे सपनो में आती थी.. और आप ही मुझे बुलाना चाहती थी.. तो ये 'नीरू' नाम का क्या चक्कर है?" रोहन को ये सवाल सबसे अधिक कचोट रहा था...

"वो बाबा ने ही मुझे ऐसा करने को बोला था.. दरअसल उन्होने मुझे बताया था कि मेरा नाम पिच्छले जनम में नीरू था.. इस नाम के कारण आप ना चाहते हुए भी खींचे चले आएँगे.. इसीलिए.."

"फिर आपने सपने में ये क्यूँ कहा की मैं नीरू नही हूँ.. नीरू तो बतला में रहती है.. !" एक और सवाल श्रुति के सामने मुँह बाए खड़ा था...


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:47

कमाल की तैयारी कर रखी थी नितिन ने.. अपने कपटी तेज दिमाग़ का इस्तेमाल करते हुए उसने छ्होटी से छ्होटी बात पर गौर किया था.. श्रुति को मिशन पर लगाने से पहले.. श्रुति के पास हर सवाल का जवाब था; पहले ही तैयार किया हुआ," ऐसा भी मैने अग्यात बाबा के कहने पर ही किया था.. उन्होने कहा था कि यग्य के दौरान मुझे आपके पास नही जाना है.. आपको छ्छूना नही है.. इसीलिए.. इसीलिए उस दिन मैने आपको देखा तक नही.. सिर झुकाए ही रही हर वक़्त.. और रात को सपने में कहीं आप मुझे छ्छू ना लें.. इसीलिए ऐसा कहा था..!"

"ओह्ह.. पर यहाँ भी मुझे नीरू मिल गयी.. बिल्कुल जैसा आपने सपने में बताया था.. और सपने में जैसे घर के बाहर आप मुझे खड़ी दिखाई देती थी.. बिल्कुल वैसा ही घर है उनका.. मैं तो हैरान हो गया था देख कर.. आपकी बात पर मुझे पूरा विस्वास है.. पर मेरी समझ में ये नही आ रहा की ये संयोग कैसे हुआ.. या इसके पिछे भी अग्यात बाबा का ही हाथ है...? रोहन के दिमाग़ में अब भी सवालों का अतः भंडार उथल पुथल मचाए हुए था...

रोहन के बात पूरी करने से पहले ही नीरू बोलना शुरू हो गयी थी.. नितिन को विस्वास था कि ये सवाल भी ज़रूर किया जाएगा..," हां.. उन्होने ही अपनी मन्त्र सक्ति से 'किसी नीरू' का पता लगाया था.. यग्य की सफलता के लिए मुझे पिच्छले जनम के नाम का प्रयोग करना ज़रूरी था.. और मेरी कही हुई बात यग्य के नियमों के अनुसार सच होनी भी आवस्याक थी.. इसीलिए उन्होने 'मन्त्र शक्ति' से यहाँ वाली नीरू का पता लगाया और मुझे सपने में इसी जगह का प्रयोग करने को बोला था..."

"हुम्म.. " नीरू के आख़िरी जवाब का मतलब उसको पूरी तरह समझ नही आया था.. पर क्यूंकी वह उस की किसी बात पर शक नही कर रहा था इसीलिए पचाने में कोई दिक्कत नही हुई.. बतला की नीरू पूरी तरह उसके दिमाग़ से निकल चुकी थी," अब तो मुझे सपनो में आकर नही डरा-ओगी ना!" रोहन उसकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा....

बेचारी श्रुति रोहन की मुस्कुराहट का भी जवाब अपनी मर्ज़ी से नही दे पाई," बाबा ने कहा है कि जब तक हम.. वो.. शादी नही कर लेते, आपको ऐसे ही सपने आते रहेंगे.. मैं यूँही आपको टीले पर बुलाती रहूंगी.. और यूँही कहती रहूंगी कि मैं बतला मैं हूँ.. मैं श्रुति नही हूँ.. नीरू हूँ.. " नीरू ने 'सेक्स' शब्द की जगह 'शादी' शब्द का इस्तेमाल किया.. इतने सभ्या इंसान के सामने 'सेक्स' वो बोल ही नही पाई...

"पर ऐसा क्यूँ?" रोहन ने उत्सुकता से पूचछा...

यहाँ श्रुति हड़बड़ा गयी.. ये पहला ऐसा सवाल था जो उसके सामने पहले नही आया था.. पर जल्द ही वह संभालते हुए बोली," हुम्म.. पता नही.. शायद यग्य का असर तभी तक रहेगा, जब तक हम मिल नही जाते... वो.. मैं थोड़ी देर आराम कर लूँ क्या? मुझे थकान सी महसूस हो रही है..." श्रुति ने पिच्छा छुड़ाने के लिए कहा..

"ओह शुवर! सॉरी.. मुझे आपसे एकद्ूम इतने सवाल नही करने चाहियें थे.. नीचे 3 बेडरूम हैं.. पहले वाले को छ्चोड़ आप कहीं भी जाकर आराम कर लें.. तब तक मैं खाने पीने का बंदोबस्त करवाता हूँ...

"थॅंक्स!" श्रुति थके हारे कदमों से उठी और गॅलरी की तरफ बढ़ने लगी.. अचानक पीछे से उसको रोहन की आवाज़ सुनाई दी..,"श्रुति!"

"हां..?" श्रुति एकद्ूम पलट गयी...

"कुच्छ नही.. बस ऐसे ही.. एक बार और तुम्हारा चेहरा देखने का दिल कर रहा था.." रोहन के चेहरे पर मुस्कान तेर गयी..

श्रुति ने फीकी मुस्कान के साथ उसकी मुस्कुराहट का स्वागत किया और मुड़कर अंदर चली गयी...

रात के करीब 11 बज चुके थे... सभी को अपने अपने रूम में गये आधे घंटे से उपर हो चुका था.. बिस्तेर पर लेटी हुई श्रुति की आँखों में नींद का नामोनिशान तक नही था. वह रोहन के बारे में ही सोच रही थी.. दोपहर में बेडरूम की और जाते हुए रोहन का उसको रोकना और फिर मुस्कुराते हुए कहना कि 'एक बार सिर्फ़ तुम्हारा चेहरा देखना चाह रहा था..' ये बात उसके दिल को छ्छू गयी थी.. यक़ीनन एक बात तो सपस्ट हो ही चुकी थी.. रोहन एक सच्चा प्यार करने वाला था.. नितिन की तरह उसमें छल कपट या किसी तरह का लालच लेशमात्रा को भी नही था.. उसको महसूस हुआ कि रोहन उसके दिल में उतर चुका है.. ना उतरने की कोई वजह भी तो नही थी.. रोहन जैसा पति तो किस्मत वालियों को ही मिलता है..

करवट लेते हुए श्रुति तड़प उठी जब उसको ख़याल आया कि रोहन के प्रति उसका लगाव सिर्फ़ एक छलावा है.. वह तो नितिन के हाथों की कठपुतली बन चुकी है और शायद जिंदगी भर भी उस'से निजात नही पा सकती.. रोहन के साथ शादी तो उसकी खुसकिस्मती ही होगी.. पर आगे क्या होगा? श्रुति ने गहरी साँस ली...

अचानक उसका फोन बज उठा.. जो आज ही नितिन ने उसको खरीद कर दिया था.. उसके अलावा किसी और की कॉल हो ही नही सकती थी.. उठकर उसने अपने पर्स में से फोन निकाल और कान से लगा लिया,"हेलो!"

"सो तो नही गयी हो ना जाने मन?" नितिन की आवाज़ फोन पर उभरी...

"हां.. सो ही गयी थी.. फोन की आवाज़ पर उठी हूँ..!" श्रुति ने जान बूझ कर नींद में होने का नाटक किया...

" ये सोने के दिन नही हैं ईडियट! कुच्छ करने के दिन हैं.. फिर तो सारी उमर ही चैन से सोना है.. जल्दी मेरे रूम में आओ!" नितिन ने आदेश सा देते हुए कहा..

"पर.. इस वक़्त.. यहाँ..." श्रुति तड़प सी उठी...

"तुम किंतु परंतु बहुत करती हो.. चुप चाप जल्दी बाहर निकल कर बीच वाले बेडरूम में आ जाओ.. सब सो चुके हैं..!" कहते ही नितिन ने फोन काट दिया...

अपने गुस्से को फोन पटक कर उतारने की कोशिश करती हुई श्रुति उठी और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर अपने कपड़ों और बालों को दुरुस्त करने के बाद बाहर निकल गयी...

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"आओ मेरी जान.. ज़रा दरवाजा बंद कर लो!" नितिन अंडरवेर में ही बैठा था.. देखते ही ग्लानि में श्रुति ने मुँह फेर लिया..," मुझसे ये सब नही होगा.. प्लीज़!"

"अरे.. मैं कब कुच्छ करने को कह रहा हूँ अपने साथ.. हा हा हा.. ये बताओ, सब ठीक से लपेट लिया ना रोहन को...!" नितिन ने पूचछा...

"नही.. उन्हे मेरी किसी बात का विस्वास नही हुआ मुझे लगता है.. तुम ये कोशिश छ्चोड़ ही दो तो अच्च्छा है...!" श्रुति ने जानबूझ कर ऐसा कहा....

"पर.. मेरे सामने तो ऐसी कोई बात नही कही उसने.. इस बारे में कोई जिकर तक नही किया.. ना ही कोई और सवाल पूचछा.. तुम ये कैसे कह रही हो कि उसको विस्वास नही हुआ?" नितिन विचलित सा होता हुआ बोला...

"हो सकता है उन्हे तुम पर भी शक हो गया हो.. इसीलिए ना कहा हो तुमसे.. पर उन्होने ऐसे बहुत से सवाल किए थे जिनका में जवाब नही दे पाई.. और तुम भी नही दे सकोगे.. आख़िर में देख लेना.. ना तुम कहीं के रहोगे और ना ही मैं.. प्लीज़.. ये नाटक बंद करो अब.. अभी तो हम ये भी कह सकते हैं कि तुम मज़ाक कर रहे थे.. अपने साथ मुझे भी ग्लानि के दलदल में मत घसीतो प्लीज़.. जो होना था हो चुका.. मेरी इज़्ज़त से तुम खेल ही चुके हो.. क्यूँ मुझे जान देने पर मजबूर कर रहे हो..." श्रुति एक ही साँस में बोलती चली गयी...

"तुम्हे ग़लतफहमी है.. वो बातों को परख कर देखने के नज़रिए से नही सुनता... वो सबको अपने जैसा ही समझता है.. वैसे ऐसा कौनसा सवाल किया था उसने.. जिसका जवाब तुम नही दे पाई..." नितिन ने पूचछा...

"मुझे याद नही है.. प्लीज़ मुझे जाने दो वापस.. अपने घर.. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ.." श्रुति गिड़गिडती हुई घुटनो के बल बैठ गयी.. और सुबकने लगी...

"तुम ऐसे हार मान गयी तो मेरा क्या होगा..? बोलो.."नितिन ने उठकर उसके कंधे पकड़े और खड़ी कर दिया.. श्रुति पूरी तरह टूट चुकी थी," मैं अपनी जान दे दूँगी..!"

"तुम्हारे अकेले के जान देने से काम चल जाता तो मैं तुम्हे पहले ही मरने की सलाह दे देता... पर अगर तुमने ऐसा किया तो तुम्हारी मूवी सबसे पहले में तुम्हारे ही इलाक़े में बेचूँगा.. सोचो तुम्हारे बापू पर क्या गुज़रेगी.. वो ना जी पाएँगे और ना मर पाएँगे.. उनकी भी तो कुच्छ सोचो!" नितिन के चेहरे पर कुत्सित मुस्कान उभर आई...

श्रुति का अंतर्मन बिलबिला उठा," बापू के बारे में ऐसा क्यूँ कह रहे हो.. ? मैं कर तो रही हूँ सब कुच्छ.."

"शाबाश! इसी हौंसले से काम करोगी, तभी बात बनेगी.." नितिन अलमारी के पास गया और वापस मुड़ते हुए बोला," लो! ये पहन लो!" कहते हुए उसने गाढ़े नीले कलर की एक झीनी सी नाइटी उसकी और उछाल दी.. नाइटी का कपड़ा बहुत ही हूल्का और पतला था..

उसको देखते ही श्रुति बिलखती हुई बोली," पर तुमने वादा किया था कि दोबारा तुम मेरे साथ ये सब नही करोगे... क्यूँ मुझे जिंदा लाश बनाने पर तुले हुए हो.."

"जब तक तुम मेरा कहा मानती रहोगी, मैं अपना वादा नही तोड़ूँगा.. हां.. तुम्हारे सवाल और शिकायतें अगर यूँही बढ़ती रही तो एक बात बता देता हूँ.. 'वादे' मेरे लिए कोई खास मायने नही रखते.. मैं किसी भी वादे को तोड़ने से नही हिचकूंगा अगर तुमने मेरी एक भी बात नही मानी तो... जाओ बाथरूम में जाकर इसको पहन लो.. हाँ.. ब्रा नही होनी चाहिए बदन पर!" नितिन ने कहा और दरवाजा बंद करने लगा....

आँखों में आँसुओं का समंदर समेटे श्रुति बाथरूम में चली गयी....

श्रुति बाहर आई तो उसके हुश्न का जलवा देखते ही बन रहा था.. नाइटी उसके बदन चिपकी हुई हर हिस्से को उजागर सी करती हुई उसके नितंबों से कुच्छ ही नीचे तक थी.. बिना ब्रा के मस्त छतियो का सौंदर्या नाइटी में से उभर कर अलग ही दिख रहा था... शर्मिंदगी और ज़िल्लत से तार तार हो चुकी श्रुति सिर झुकाए बार बार अपनी नाइटी को नीचे खींचने की कोशिस करती पर उसकी चूचियों का उठान नाइटी को वापस उपर खींच लेता... और उसकी लगभग नंगी चिकनी जांघें फिर से देखने वाले को पिघलने के लिए मजबूर सा करने लगती...

वह सूबक रही थी...

"हाए.. इस जवानी पर कौन नही मार मिटेगा.. मैं तो फाँसी पर भी चढ़ने को तैयार हूँ.." नितिन ने अचानक उभर आए अपने अंडरवेर के 'उस' हिस्से को सहलाते हुए कहा..," एक बार और बस!"

"नही.. मुझे हाथ भी मत लगाना प्लीज़.. मैं पहले ही टूट चुकी हूँ.. मुझे मरने पर मजबूर मत करो!" श्रुति बिलखते हुए बोली...

"मैं मज़ाक कर रहा था.. अब ये रोना धोना छ्चोड़ो.. और रोहन के कमरे में जाओ!" नितिन अचानक सीरीयस हो गया....

"क्या? ऐसे?" श्रुति चौंक पड़ी.. और आस्चर्य से नितिन की आँखों में देखा...

"हाँ.. ऐसे.. आओ, बिस्तेर पर आकर बैठ जाओ.. मैं समझाता हूँ की तुम्हे क्या करना है...आज मैने तुम्हे रोहन के लिए ही तैयार किया है.. अब ये मत कहना कि उसके साथ भी नही करूँगी कुच्छ.. मैं पहले ही बहुत सब्र कर चुका हूँ.. अब ज़्यादा सहन नही होगा मुझसे.. और ध्यान रखना ये हमारे प्लान का सबसे ज़रूरी हिस्सा है.." कहते हुए नितिन उसको सारी बात समझाने लगा... श्रुति निस्तब्ध सी वहीं खड़ी खड़ी उसकी बातें सुनती रही...


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