सीता --गाँव की लड़की शहर में compleet

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The Romantic
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 18:09

सीता --एक गाँव की लड़की--19

सड़कों पर सभी आने-जाने वाले की आँखें मुझे ही घूर रही थी..पसीने से लथपथ शरीर, ब्लाउज के ऊपरी दो बटन टूटी जिसे अपने पल्लू से ढ़ंकने की कोशिश..आँखें पूरी चुदासी सी लग रही थी...मैं सूरज की खड़ी धूप के नीचे बढ़ी जा रही थी..

तभी मेरी नजरें मैदान के अंदर हमसे कुछ ही दूरी पर एक कुतिया अपने कुत्ते का लंड फंसा रखी थी; चली गई..वहीं पर 4-5 आवारा किस्म के लड़के खड़े हो इसका मजा ले रहा था...मेरी नजर उस कुत्ते के लंड पर चली गई जो चूत के अंदर कैद थी..

"देखऽ ना भऊजी..कइसन हाल कऽ देले बारऽन ईऽ कुतिया केऽ"ये शब्द जैसे ही मेरे कानों में पड़ी, मेरी नजर उठती उस लड़के पर चली गई..सब मुझे ही घूरते हुए हँसे जा रहे थे...मचलब सब मुझे ही कह रहे थे..

मैं मुंह नहीं लगना चाहती थी..चुपचाप एक आखिरी नजर कुत्ते के लऩ्ड पर डाली और तेजी से आगे बढ़ने लगी..तभी मुझे सामने कुछ ही दूरी पर शौचालय दिखी..मैं उस तरफ बढ़ गई..यहां अंदर जाने वाली मेनगेट पर ही रेट-तालिका की बोर्ड टंगी थी..

मेरी तो हंसी निकल सी गई कि इन सब के लिए भी पैसे...वैसे शहर होती ही है इतनी तंग कि मजबूरन ये सब कदम उठाने पड़ते हैं...

गेट के अंदर घुसते ही सामने कुर्सी पर बैठा एक मोटा सा आदमी पेपर पढ़ रहा था..उसके आगे टेबल लगी थी और पूरा शौचालय खाली पड़ा था सिवाए एक साफ सफाई करने वाली औरत को छोड़कर..वो औरत फर्श को पानी से धुल रही थी..

मैं समझ गई कि ये आदमी पैसे लेने के लिए ही बैठा है...मैं पैसे निकालने पर्स ब्लॉउज में ढ़ूढने की कोशिश की...पर अब मेरी होश ही गुम हो गई थी..वैसे मैं छोटी सी पर्स रखती हूँ वो भी हाथ में ही...पर कभी-2 जरूरत होने पर अंदर डाल लेती हूँ..

अंदर से कब पर्स गायब हुई, मालूम नहीं..कहीं गिर गई या बस में कोई खींच लिया जब ये बटन टूटे थे और आँखें मेरी बंद थी..या फिर चढ़ते वक्त ही उस कंडक्टर ने हाथ लगाया था तब...उसी ने लिया होगा तभी तो किराये भी नहीं मांगे...पर अब क्या करूँ..

आसपास तो क्या, यहां किसी को जानती तक नहीं...पर फ्रेश जल्द होना चाहती थी क्योंकि अंदर से अब गर्मी की वजह से घुटन सी हो रही थी और ऊपर कपड़े तो भींगे तो थी ही...मैं खड़ी खड़ी सोची पहले बाथरूम से आ जाती हूँ,फिर देखी जाएगी...

यही सोच मैं बिना कुछ पूछे उस आदमी को क्रॉस करती आगे की तरफ बढ़ी..कि उस आदमी ने रॉबीले तरीके से बरस पड़ा,"ऐ मैडम...उधर कहाँ...सरकारी है क्या जो आई और धड़धड़ती अंदर चली जा रही हो...पहले फीस दो इधर,,फिर जाना..."

उसके तेवर देख मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई..अंदर से अचानक तेज प्रेशर पेशाब की जोर मारने लगी..अब क्या कहती इसे कि पैसे तो गुम हो गए हैं..आप बाद में ले लेना..फिर भी हिम्मत कर एक कोशिश की..

"भाग थोड़ी ही जाऊंगी..जल्दी है इसलिए प्लीज जाने दो अभी.."मैं भी कड़क लहजों में बोलनी चाही पर शायद बोल नहीं पाई...जिसे सुनते ही वो आँखें बड़ी बड़ी किए उठा और मेरे निकट आने लगा..मैं डर सी गई कि पता नहीं क्यों आ रहा है..

"देख, वापसी में भी देनी ही है और अभी भी देनी ही है तो अभी ही क्यों नहीं दे देती...बेकार की क्यों प्रेशर बनवा रही होे.." उसने थोड़ा सा झुक अपना चेहरा मेरे चेहरे के निकट लाते बोला...

कह सही रहा था वो पर उसे क्या पता कि मेरे साथ कैसी प्रॉब्लम है इस वक्त...अब कुछ सूझ नहीं रही थी कि क्या जवाब दूँ...

"दरअसल बस में मेरे पर्स चोरी हो गए हैं जिसमें सारे पैसे थे..अब मेरे पास एक भी पैसे नहीं हैं..पर आप टेंशन मत लो मैं कल सुबह 10 बजे तक आपके पैसे लौटा दूँगी.पर अभी प्लीज जाने दो अंदर..."मैं अब सोच ली कि सच कह देती हूँ, थोड़ी नानुकर के बाद तो मान ही जाएगा..

पर शायद मैं गलत थी..उसने मेरी बाँह पकड़ी और सड़क के उस पार मैदान की तरफ दिखाते हुए बोला,"वो जो कचरा है ना जमा, वहां जा और आराम से सूसू कर...कल वापस इधर नहीं भी आएगी ना तो चलेगा...कोई पैसे नहीं लगते हैं ना वहां...भाग इधर से.." कहता हुआ वो बाहर की तरफ धक्का दे दिया...

मैं बाहर की तरफ हल्की सी दौड़ पड़ी ताकि गिरूं नहीं...और अपनी इस तरह की बेइज्जती देख रूआँसी सी हो गई...आँखों से अब लगती कि आँसूं छलक पड़ेगी...काफी घृणा हो रही थी खुद पर कि सब मुसीबत की जड़ तो मौैं खुद ही हूँ...

अब क्या करती..वापस फिर लटके हुए चेहरे ले अंदर घुसी और रिक्वेस्ट करने लगी..तभी वो जोर से चिल्लाया,"विमला, इधर आ..इस शाली की दिमाग मे मेरी बात नहीं जा रही है..समझा के बाहर का रास्ता दिखा नहीं तो...."

मैं उसकी चिल्लाहट सुन घबरा सी गई..मन ही मन कोई और जगह चलने की सोच ली थी..तब तक वो सफाई वाली औरत विमला आई और मुझे बाहर कर बोली,"इतना बुरा नहीं है मेरे साब पर वो क्या है कि धंधे के टाइम, कोई हमदर्दी नहीं..वही बात है...तू यहीं रूक, मैं कहती हूँ.."

मैं नम आँखों से हाँ में सिर हिला दी और इस विमला के वापस आने का इंतजार करने लगी..

कुछ ही पलों बाद विमला वापस आई और बोली,"आ जा अंदर.." मैं खुशी से फूला नहीं समाई और तेज कदम से अंदर घुस गई...

"ऐ...उधर कोने वाली में जा और हाँ पानी लेती जाना..उसका नल खराब है आज.."पीछे से वो आदमी चिल्लाते हुए बोला..मैं आगे बढ़ते हुए उसकी बात सुनी और कोने में बने बाथरूम में पानी की बाल्टी लिए घुस गई...

अंदर घुसते ही बाल्टी पटकी और धम्म से साड़ी उठा पेशाब करने बैठ गई..मेरी चूत हेलीकॉप्टर माफिक तेज साउण्ड करती पानी की नदी बहाने लगी..मेरे होंठ से रिलेक्स की आँहें निकल पड़ी..ढ़ेर सारी पानी बाहर करने के बाद मैंने कपड़े सारे खोल अच्छी से चूत साफ की और जांघ पर लगे पानी भी साफ की..

फिर सारे कपड़े पहनी और बाहर निकल गई..मुझे बाहर देख वो आदमी वहीं से गुर्राते हुए बोला,"ऐ, पानी मारी कि नहीं अच्छी से...रूक वहीं मैं आ रहा हूँ देखने..एक तो फोकट का उपयोग करने दो, दूसरी ढ़ंग से पानी भी नहीं मारेगा" इसी तरह भनभनाता वो उठा और मेरे निकट आ गया..

मेरी तरफ घूरा ,फिर बाथरूम में झाँका...तभी वो मेरी तरफ मुड़ते हुए बोला,"ऐ...ये क्या है??..."मैं सोच में पड़ गई कि क्या है वो जो वो बता रहा है...बस यही सोचती उसके बगल में से अंदर झाँकने लगी..पर कुछ नहीं था..मैं आश्चर्य से उसकी तरफ देखी तो बड़ी बड़ी आँखों से मेरी तरफ ही देखे जा रहा था...

अचानक से वो मेरी बाँह पकड़ा और अंदर करते हुए मुझे बाँहों में जकड़ लिया...मैं तो डर से थरथर कांपने लगी कि अब मैं तो गई...बड़ी शौक थी ना चूत मरवाने की ना...अब भुगत....

तभी उसने मेरे बाल पकड़े और नीचे खींचते हुए मेरे चेहरे को ऊपर करते हुए बोला,"देख शाली, मैं रंडी कभी नहीं चोदता हूँ...पर तेरी फिगर देख मैं खुद को रोक नहीं पाया और सोचा साथ में पैसे भी वसूल कर लूँ...अब चुपचाप मेरे लंड को शांत कर और हाँ...खबरदार जो अपनी बुर में डालने की कोशिश की तो...समझी...."

मैं उसके इस बर्ताव से तुरंत ही हामी भर दी क्योंकि मेरी चूत जो बच गई थी...अगर वो चोदने की कहता तो शायद कुछ जबरदस्ती भी करता..पर हां सुनते ही मेरे बाल को छोड़ मेरे कंधे पर जोर दे दिया...

जिससे मैं अपने घुटने पर उसके उसके लंड के सामने बैठी थी...फिर वो तेजी से अपना जिप खोला और काला नाग को बाहरमेरे होंठ के सामने कर दिया...उफ्फ...पेशाब की बू आ रही थी उसके लंड से..और काफी गंदा भी था...

अचानक से उसने लंड को पकड़ा और मेरे होंठो पर सटा अंदर करने की कोशिश करने लगा...मैं चाहती तो नहीं थी पर मेरे होंठ अनायास ही खुल गए...होंठ के खुलते ही बदबूदार और काला लंड मेरी गुलाबी होंठ को चीरती अंदर धँस गई..

मैं अपनी नाक-भौं सिकुराने लगी थी..तभी वो मेरे बाल को पकड़ मेरे सिर को कसते हुए स्थिर किया और दनादन करते हुए धक्के लगाने लगा...मैं तो चौंक सी गई कि ये क्या?इसने तो मेरी मुँह चूत समझ चोदना चालू कर दिया...

पर वो तो ताबड़तोड़ अपने लंड को मेरे गले में उतारे जा रहा था..वो तो समझ रहा था कि मुझे इन सब की तो आदत है...मैं गूं गूं करती हुई बैठी अंदर बाहर करती लंड को देखे जा रही थी..अंदर ही अंदर उबकाई हो रही थी...

इधर मेरी चूत एक बार और पानी छोड़ने लगी थी...मै एक हाथ चूत पर ले जाकर रगड़ने लगी और दुसरे हाथ जमीं पर रख अपनी मुँह चुदवाए जा रही थी...

अचानक से उसने कस के धक्के लगाने शुरू कर दिए और भद्दी गाली बके जा रहा था ..और फिर वो अपना अंतिम शॉट मेरे गले में उतारते हुए चीखने लगा...मैं हक्की बक्की सी छूटने की कोशिश कर रही थी पर....

वो अपने लंड का एक एक कतरा मेरे पेट तक पहुँचा कर ही छोड़ना चाहता था...उसके लंड से गर्म-2 पानी मेरे गले में उतर रही थी..ऊपर गर्म पानी की गरमी से मेरी चूत कुनबुनाई और वो भी नीचे फर्श को भिंगोने लगी...

जब वो पूरी तरह झड़ गया तो अपना लण्ड बाहर खींच लिया..झड़ने के बाद वो सिकुड़ गई थी..मैं अपने मुंह में आज मिली इस सौगात को अंदर करती खड़ी हुई...

"ये नीचे देख...क्या है?" उसने नीचे फर्श की तरफ इशारा करते हुए बोला...मैं जब नीचे देखी तो चूतरस को देख वापस उसकी तरफ गुस्से में आँख नचाती हुई देखी...

थैंक्स गॉड...कम से कम उसके होंठो पर हंसी तो आई...वो हँसता हुआ बाहर चला गया...पीछे मैं भी हंसती हुई पानी से भरी बाल्टी बाथरूम में उड़ेल दी...

फिर कपड़े ढ़ंग से ठीक की और बाहर निकल गई...


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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 18:10

सीता --एक गाँव की लड़की--20

घर से बाहर आज पहली बार किसी अन्जाने का लंड चूसने से मेरे शरीर में एक अलग ही उमंग थी...खुद पर एक वेश्या जैसी सलूक से मैं इस नई मोहजाल में लगभग फंस चुकी थी...काफी आनंदचित्त मुद्रा में बाहर निकल सोचने लगी कि अब घर कैसे जाऊँ...

अगर सच की वेश्या रहती तो इस लंड चुसाई के भी पैसे ले लेती..पर अगर चुप नहीं रहती तो शायद वो बिना चोदे छोड़ता भी नहीं..अच्छी भी लगी थी हमें उसकी भद्दी गाली सुनते...एक अलग ही नशा चढ़ जाती सेक्स की...

वो सब तो ठीक है पर अब घर कैसे जाऊं..क्या करूं...चलो वापस उस मोटे से ही मांगती हूँ..दो- चार और गाली ही देगा ना..सुन लूँगी..नहीं दिया तो लंड चुसाई के एवज में ही मांग लूँगी...तब तो देगा ना...

भला किसी की कमाई कैसे मार सकता है...मैं यही सोच जैसे ही पीछे मुड़ी कि विमला गेट से बाहर निकल मेरे निकट आ धमकी....

मैं कुछ कहती इससे पहले ही उसने मेरे हाथों में एक पाँच सौ नोट थमाते हुए बोली,"नई लगती है इस धंधे में वरना इस तरह पैसे के लिए बाहर रूक कर इंतजार नहीं करती.."

मैं उसकी बात सुनते ही मंद मुस्कान अपने होंठों पर बिखेर हां में सिर हिला दी...मुझे मुस्काते देख उसने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेती हुई धीमे स्वर में बोली...

"देख, तू इधर आ जाया कर रोज...मैं तेरे वास्ते ग्राहक फिट कर के रखूंगी...मैंने और भी कई लड़कियो को यहां से काम दिलवाती हूं..तुझे भी दिलवा दूँगी...समझी ना...कल से आ जाना.."विमला एकसुर में ही बोले जा रही थी..

"और हां कल सुबह ही आना यहीं..फिर तुम्हें सब चीज समझा दूंगी...ठीक है ना...ऐसे सड़क पर ग्राहक नहीं मिलने वाली...सीधी घर चली जा.."विमला मुझे अपनी टिप्स देती हुई विदा कर दी...

मैं मन ही मन हँसती हां में सिर हिलाई...तभी सामने आती ऑटो को रोकती मैं उसमेम बैठ गई...कोई आधे घंटे बाद मैं अपनी गली के मेन रोड पर खड़ी थी...

मैं अभी कुछ ही दूर बढ़ी थी कि पीछे से एक ऑटो आ रूकी...मैं नजर घुमाई तो ऑटोवाले को देखते ही मैं मुस्कुराते हुए ऑटो में घुस गई...

आज ये कुछ अलग जैसी ऑटो चला रहा था...एकदम धीमी धीमी...मानो किसी की मैय्यत में जा रहा हो...फिर मैं सोचने लगी कि ऐसा क्यों?

अचानक से मेरी नजर मिरर पर गई जिसमें अधढ़ँकी चुची बाहर निकलने को आतुर हो रही थी..दो बटन तो थे ही नहीं, तीसरी भी आधी टूट गई थी...अगर ठीक से सीधी होती तो वो भी टूट जाती...

वो मिरर में ही आँखें गड़ाए हुए था तो ऑटो खाक चलाता..मैं पल्लू से पूरी ढ़ँकने की सोची पर इरादे बदल दिए..फिर आगे की तरफ हल्की झुकती उससे बोली,"ऐ..कुछ देर आगे भी देख लो...कहीं ऐसा ना हो कि पीछे देखने के कारण आगे किसी से भिड़ जाओ..."

मेरी बात सुनते ही वो सकपका सा गया..फिर गौर किया तो पाया मैं उसकी इस हरकत से नाराज तनिक नहीं हूँ..वो अपने चेहरे पर हँसी लाते हुए पीछे मेरी तरफ पलटा...

"मेम साब,, आप इस वक्त इतनी कातिल लग रही हो कि मैं अपना ड्राइवरी करना भूल गया...कसम से किसी फिल्मी हिरोइन से कम नहीं लग रही हो." वो अपने दां दिखाते हुए तारीफ करने लगा...

मैं उसकी बात सुन हँसती हुई बोली,"अच्छा -2 ठीक है...फिलहाल तो हमें जल्दी से घर पहुँचा दो वरना ये बंद कर ली तो देखने से रहे.."

"नहीं नहीं मेमसाब...मैं अभी पहुँचाए दिए देता हूँ...पता नहीं फिर कभी दर्शन नसीब में है भी या नहीं." वो आगे मुड़ते ऑटो थोड़ी तेजी से चलाते हुए बोला..मैं अपनी बाहर आती चुची को थोड़ी और साड़ी से बाहर लाती हुई बोली..

"जैसे आज हो गए वैसे ही फिर कभी हो जाएंगे. बस थोड़े सब्र की जरूरत है .....वैसे तुम्हारा नाम नहीं पता मुझे...क्या नाम है?"

"केतन नाम है मेमसाब..मेमसाब आप से एक रिक्वेस्ट करूँ..प्लीज मना मत करना...मैं आपका कितना बड़ा दिवाना हूँ आपको यकीन नहीं होगा.."अपना नाम बताने के साथ गुजारिश भी करने लगा पर पता नहीं किसलिए...

मैं हाँ कहती हुई हँसते हुए पूछी कि कैसी रिक्वेस्ट है?अचानक से उसने ऑटो रोक दिया और पीछे पलटते हुए बोला,"मेम साब..मुझे गलत मत समझना...पर क्या करूं...बर्दाश्त नहीं कर पा रहा हूँ.."

मैं सोच में पड़ गई कि आखिर बात क्या है जो इसने ऑटो रोक दिया..और जहाँ पर रूकी थी वहाँ एक बड़ी गोदाम थी, जबकि दूसरी तरफ एक बड़ी सी बिल्डिंग बन रही थी..मतलब एक छोटी सी विरान जगह थी...

मैंने फिर से पूछी,"अब बोलोगे भी या बस ऐसे ही घुमाते रहोगे..?" डर तो अब होने वाली थी नहीं जो डरती...और खास कर उससे जिसे मैं खुद देखने की आजादी दे रही हूँ..

"मेमसाब, बस एक बार ये निप्पल दिखा दो..प्लीज मना मत करना..मैं सिर्फ देखूंगा.."उसने अपनी आँखें मेरी चुची की ओर करते हुए तेजी से बोल पड़ा..

मैं तो जानती थी कि कुछ इस तरह की ही बात होगी पर इस तरह यहां सड़को पर ऐसी रिक्वेस्ट की उम्मीद नहीं थी..मैं मना तो नहीं की कि नहीं दिखाऊंगी...वैसे भी कुछ देर पहले बस में मसलवा आई थी...

"पागल हो...यहां बीच सड़क पर वो भी इस खुली ऑटो में.." मैं राजी तो थी दिखाने की पर यहां मेरी गली की खुली सड़को पर...वो भी दिन में...साफ मना कर दी..

"प्लीज मेमसाब, अभी कुछ देर तक कोई नहीं यहां तक आने वाला है..जल्दी से दिखा दो..ताकि हमें कुछ शांति मिल जाएगी.."केतन गिड़गिड़ाते हुए सड़कों पक दिखाने लगा कि देखो, इस वक्त कोई नहीं आ रहा है...

मैं उसकी बेसब्री देख हंस पड़ी..फिर सड़को पर देखने लगी कि अगर सच में कोई नहीं है तो दिखा दूँगी...वरना बेचारा रात में सो भी नहीं पाएगा..सच में दूर तक कोई नहीं था...

मैं वापस उसकी तरफ सीधी हुई और बोली,"ओके पर सिर्फ एक का...और जल्दी से देखना होगा...अगर नहीं देख पाए तो दुबारा मत कहना क्योंकि मैं दुबारा नहीं दिखाऊंगी.."

मेरी बात सुनते ही वो चहकते हुए सीधे मेरी चुची पर नजर गड़ा दिया और हाँ-2 कह दिया कि मुझे मंजूर है एक का देखना और वो भी एक बार...इस दृश्य के एक पल भी खो ना दे कहीं..इस डर से उसने पलक भी झपकना बंद कर दिया और बगुले की तरह ध्यान लगा दिया....

मैं मुस्काती हुई साड़ी को ऑटो की सीट पर बगल में उतार कर रख दी..केतन की साँसें तो मेरी साड़ी के उतरने के साथ-2 उतरने लगी थी..उसकी आँखों के आगे डेढ़ बटन की ब्लॉउज में बड़ी सी चुची उभर आई...

मैंने उसे बोनस देने के इरादे से चुची को बाहर ना निकाल ब्लॉउज के बचे दो बटन ही खोलनी शुरू कर दी..अब तो उसकी साँसें थम सी गई और उसके मुँह खुल गए...

जैसे ही मेरी दोनों बटन खुली, उसके खुले मुँह से लार टपक कर नीचे गिर गई...मेरी तो हँसी निकल पड़ी...पर वो तो दूसरी दुनिया की सैर कर रहा था...एक बार मैंने फिर से तसल्ली के लिए सड़को पर नजर डाली तो दूर दो छोटे-2 बच्चे आते हुए दिखे...

ज्यादा टेंशन वाली बात नहीं थी..मैं उसकी तरफ देखते हुए ब्लॉउज के दोनों तरफ पकड़ अपनी बांहे फैला दी...इसके साथ दी मेरी लाल हुई चुची पर गहरी भूरी रंग की निप्पल केतन के आँखों के सामने छलक गई....

वो साँस रोक बड़ी बड़ी आँखें किए इस पल का आनंद लेने लगा..तभी मैंने ब्लॉउज को वापस बंद कर लिया..उसका चेहरा लटक सा गया किसी मुरझे हुए लंड की तरह...

पर वो कर भी क्या सकता था..वो मुँह बिचकाते हुए मेरी तरफ देखा...पर कुछ बोला नहीं...मैं जल्दी से बटन लगाई और साड़ी ठीक कर ली...

वापस उस आते हुए बच्चे की तरफ नजर दौड़ाई तो वो कहीं नजर नहीं आया..शायद उधर ही उसका घर होगा..

"मेमसाब, एक बार ऊपर से छूने दो ना...देखा दिखते वक्त सिर्फ देखा ही.."केतन अपनी दूसरी मांग करते हुए अपनी इमानदारी का सबूत याद दिलाने लगा...

"बिल्कुल नहीं...अगली बार अगर मौका मिला तो छू लेना...पर इस तरह सड़क पर नहीं"मैं मुस्कुराती हुई साफ मना करती हुई न्यौता भी दे डाली..

वो इतने में ही खुश होता हुआ सीधा हुआ और ऑटो स्टॉर्ट कर दिया..मैं भी मुस्काती हुई एक नजर मिरर पर डाली तो इस बार मैं कुछ तिरछी लग रही थी...

मैंने खुद को सीधी करती हुई अपनी चुची को मिरर के ठीक सामने कर दी...जिसे देख केतन पीछे मुड़ कर मुस्कुरा दिया जिससे मैं भी मुस्कुरा दी...

"मेमसाब, आज हमारी गली में एक बारात आने वाली है..अगर आपको शादी देखना पसंद है तो शाम 8 बजे तक आ जाना...और शायद मौका भी मिल जाएगा छूने का.."केतन बात को कहते हुए हँस पड़ा..

"नहीं..मुझे कोई निमंत्रण भी नहीं है और किसी को जानती तक नहीं हूं तो कैसे आ सकती.." मैं अंदर से जाना चाहती थी इस मौके के लिए पर पहले जो समस्या थी उसे सामने रख दी...

"अरे मेमसाब..जिनकी बेटी की शादी हो रही है वो कोई बड़ी हस्ती नहीं है..वैसा तो बड़े हस्तियों में ही होता है कि बिना कॉर्ड दिखाए
आप शादी में नहीं जा सकती...इसे बस एक गाँव की शादी समझ आ जाना..आगे मैं हूँ ना, आपकी सेवा के लिए.."केतन एक ही सुर में समस्या का निदान कर डाला...

तब तक मैं अपने घर तक पहुँच गई..मैं ऑटो से उतरती हुई हँसती हुई बोली,"ओके ओके...सब तो ठीक है पर मैं नहीं आने वाली क्योंकि मेरे साहब कभी अनुमति नहीं देंगे.." और मैं उसके जाने का इंतजार करने लगी खड़ी होकर..

वो बोला कुछ नहीं पर मंद मंद मुस्काता हुआ अपनी जीभ से गाल को ऊंची करते हुए देख रहा था..पता नहीं उसके मन में क्या चल रहा था..फिर वो अपनी बांईं आंख दबाते हुए हँसता हुआ आगे बढ़ गया...

मैं भी हँसती हुई अपने रूम की तरफ चल दी और सीढ़ी चढ़ने लगी...पता नहीं आज पूजा कितनी गुस्सा करेगी मुझपर...एक तो बता कर नहीं गई थी...ऊपर से फोन भी नहीं ले गई थी...

गेट अंदर से लॉक थी..पूजा द्वारा पड़ने वाली गाली को ख्याल करते हुए बेल बजाई...दो-तीन बार बजाने के बावजूद भी पूजा नहीं आई...

काफी गुस्से में है शायद...तभी खटाक की आवाज से गेट खुली..सामने पूजा थी..उसकी हालत देख मैं सोचने पर मजबूर हो गई...मेरी हालत तो बस और पब्लिक बाथरूम में ऐसी हुई पर इसकी हालत घर में ही किसी रंडी से भी बदतर लग रही थी..

बदन पर सिर्फ तौलिया लपेटी थी..बाल अस्त व्यस्त..चेहरे पर दातं के कई निशान..मुख पर असीम सुख..उसके हालात बता रही थी कि इसकी दमदार चुदाई हुई है अभी-अभी...वो मुझे देखते ही मुस्कुराती हुई अंदर आने की जगह दे दी...

मेरी हैरान नजर उससे पूछ रही थी कि अंदर कौन है जिसने तेरी ये हालत की है..बंटी की चुदाई तो देखी थी उस दिन पर तुम्हारी ऐसी हालत नहीं हुई थी...

पर वो बिना कुछ बोले मेरे बेडरूम की तरफ इशारा कर दी...शाली अपने यार से चुदवाती है वो भी मेरे बेडरूम में...रूक पहले देखती हूँ कहाँ का साँड़ है जिसने तबीयत से तेरी खबर ली है, फिर तुझे बताती हूँ...

मैं तेजी से अपने बेडरूम की तरफ बढ़ गई..

मैं टिमटिमाती हुई जैसे ही बेडरूम में घुसी, मेरे चेहरे की सारी रंगत ही उड़ गई...मुझे तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रही थी..

सामने बेड पर भैया सिर्फ तौलिया लपेटे बैठे सिगरेट के कश लगा रहे थे..(वैधानिक चेतावनी: धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है..) मुझे देखते ही बेड से उतर गए...

और मुस्कुराते हुए मेरे पास आए..फिर एक लंबी कश लेते हुए मेरी आँखों में देखते हुए सारा धुआँ मेरे चेहरे पर छोड़ दिए..मैं धुएँ को बर्दाश्त नहीं कर पाई और मुँह दूसरी तरफ कर खाँसने लगी...

भैया : "क्या हुआ डार्लिंग, ऐसे क्या घूर रही हो..."

भैया के इस तरह के बर्ताव को बिल्कुल भी अंदर नहीं कर पा रही थी..कितने सलीके से पेश आने भैया को पता नहीं क्या हो गया...और आते ही पूजा के साथ....

मैं एकटक उन्हें निहारे ही जा रही थी...आखिर ये सब कैसे?भैया मेरी हालत को पढ़ते हुए कुछ बोलने से पहले अपनी सिगरेट बुझाई और बाहर कचरे के डिब्बे में फेंकने रूम से निकल गए...

मैं बुत बनी वहीं पर खड़ी थी..तभी पूजा अंदर आई मेरे पास आते हुए बोली,"अब समझी कि मेरी ऐसी हालत करने वाला कौन था..भाभी प्लीज बुरा मत मानना..कॉलेज से आई तो आप नहीं थी तो सोची कहीं गई होगी...सो मैं सारे कपड़े खोल कर नंगी आपका इंतजार कर रही थी कि आप जैसे ही आओगे एक राउण्ड कर लूँगी.."

तब तक भैया अंदर आ गए थे..आते ही वो पूजा के बगल में खड़े हो पूजा की बात सुनते हुए मुस्कुरा रहे थे...

"कुछ ही देर बाद आपके भैया बेल बजाई तो मैं समझी आप ही हो तो नंगी ही गेट खोली और बिना कुछ देखे लिपट गई..मुझे 1000 वोल्ट के झटके पड़े पर तब तक देर हो चुकी थी और ये मुझे स्मूच करते हुए आहहह सीता करने लगे...ये भी नहीं देखे कि मैं सीता नहीं, पूजा हूँ..जब किस रूकी तो इनका चेहरा देखने लायक था..गलती तो कर दिए थे आपका नाम लेकर..फिर क्या..आपकी सारी कहानी इन्हें शेयर करनी पड़ी और मुझसे भी आपकी पूरी कहानी उगलवा लिए...बस आज की मस्ती बची है आपकी कहनी..वो आप कह दो कि कहां से ब्लॉउज फड़वा के आ गई.."

मैं तो हैरान,परेशान दोनों को बारी-2 घूरे ही जा रही थी..ऊपर से पूजा के कमेंट..गाली से भी कहीं ज्यादा चुभ गई..तभी भैया मुझे अपने सीने से चिपकाते हुए बोले..

भैया : "देखो सीता,, जो हुआ अच्छा ही हुआ..प्लीज, गुस्सा मत करना... ये सब अचानक हो गया..और रही बात तुम्हारी मस्ती की तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है इन सब से..पर हाँ आगे से ऐसे बाहर किसी से भी कपड़े मत फड़वाना वर्ना जीना मुश्किल हो जाएगा..किसी सुरक्षित जगह और जिम्मेदार मर्द के साथ जो मन हो करना...समझी.."

भैया की बातें सुनते ही मेरी आँखें छलक पड़ी..सॉरी कहते हुए मैं रोने लगी...जिसे देख भैया हंसते हुए मुझे और कस के भींच लिए..पूजा भी हँसते हुए नम आँखों से मेरी बगल से चिपक गई...

कुछ देर बाद जब मेरी रोनी बंद हुई तो भैया मेरे होंठ पर किस करते हुए बोले,"अब जाओ...पहले फ्रेश हो के आ जाओ, फिर बात करते हैं और वो भी..."

भैया की वो भी सुनते ही मेरी मुस्कान शर्म के साथ बाहर आ गई..और मैं भैया से अलग हो बाथरूम में घुस गई...पीछे पूजा भैया से चिपकते हुए बोली,"भाभी, तब तक मैं एक राउण्ड कर लेती हूँ इनसे...पता नहीं बाद में इन्हें आप छोड़ोगे भी नहीं..."

"हाँ कर ले...वो तो आधी रात के बाद मालूम पड़ेगी कि कितना मजा आता है..."मैं कहते हुए बाथरूम में घुस गई..पीछे पूजा चौंकती हुई "आधी रात के बाद" को समझने की कोशिश करने लगी...

बाथरूम में मैं सभी कपड़े खोल नहाने लगी मल मल के...आज भैया के लिए साफ कर रबी थी रगड़ रगड़ के...कुछ ही पल में मुझे पूजा और भैया की सेक्सी आवाजें सुनाई पड़ने लगी...

मैं मुस्कुराते हुए खुद से बोली,"चुदवा ले रंडी..जब आधी रात को चूत में दर्द शुरू होगी ना देहाती लंड की, तब मालूम पड़ेगा..फिर आगे से चुदने के ख्याल से तू डर नहीं जाएगी तो मेरा नाम बदल देना..."

फिर मैं स्नान कर बाहर निकली और बेडरूम में आ गई...पूजा चुदाई का काम पूरा कर बेड पर नंगी ही पड़ी हुई थी..मैं पूजा को देख मुस्कुराते हुए भैया की तरफ मुड़ी तो भैया मेरी तरफ ही देख मुस्कुरा रहे थे...

फिर मैं अपने कपड़े एक-2 कर पहनने लगी..और इस दौरान हल्की फुल्की घर की बातें भैया से पूछे जा रही थी..कपड़े पहनने के बाद मैं पूजा को उठाती हुई बोली,"कॉफी लाती हूँ पूजा, तब तक कपड़े पहन के फ्रेश हो लो..फिर थोड़ी देर छत पर चलेंगे.."

कहते हुए मैं किचन की तरफ चल दी..पूजा कुनमुनाती हुई उठ के बैठ गई..कॉफी लेकर अंदर आई तो पूजा फ्रेश हो बैठी भैया से बातें कर रही थी..मैं मुस्काते हुए कॉफी बढ़ा दी दोनों को...

और खुद भी वहीं बैठ कॉफी पीने लगी..फिर हम तीनों बाहर निकल छत की तरफ बढ़ गए...


The Romantic
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 18:10

सीता --एक गाँव की लड़की--21

छत पर जैसे ही पहुँचे कि पूजा हमें पीछे से जकड़ती हुई बोली,"भाभी, अब तो कहो...आज कहाँ जाकर कुटाई करवा के आ गई."

मैं हँसते हुए पीछे गर्दन नचाई और बोली,"पागल है क्या? यहाँ किसी को ठीक से जानती नहीं फिर कैसे करवा लूँगी.."

भैया : "अच्छा, तो फिर बिना किए ही तुम्हारे चेहरे पर सेक्स की नशा चढ़ी हुई थी.."

"की नहीं थी पर मजे ले कर आई थी.."मैंने हंसी लाते हुए भैया की तरफ देखते हुए बोली..जिसे सुनते ही पूजा मेरी एक चुची को मसलते हुए बोली,"वॉव,,कौन है वो खुशनसीब जिस पर अपने जवानी के रस छिड़क के आ गई.."

"नाम नहीं पता और ना ही उसे जानती हूँ.."मैं भी सोची अब थोड़ी मजे ले ही लूँ बता कर..

"क्या? मतलब किसी अंजाने को मजे दे कर आई हो..ओफ्फ भाभी...देख रहे हैं ना अपनी लाडली बहन को जी कैसे गुल खिला रही है...ही..ही..ही.."पूजा भैया की तरफ मेरे चेहरे को दूसरे हाथ से करती हुई बोली..

जिसे सुन भैया आगे बढ़ ठीक मेरे सामने से सटते हुए बोले,"हाँ पूजा जी...पर आप भूल रही हैं कि मेरी बहन पहले थी..अब मेरी बहन से पहले आपकी भाभी और मि. श्याम की बीवी हैं..तो आप टेंशन लो..मैं नहीं"

कहते हुए भैया मेरी दूसरी चुची को अपनी चुटकी से रगड़ दिए जिससे मेरी चीख निकल गई...शुक्र है आसपास की छत बिल्कुल खाली थी वरना सभी तक मेरी चीख गूँजती...

"अच्छा तो आप अपनी बहन की नहीं, मेरी भाभी की बैंड बजाते हैं.."पूजा अपनी आँखें नचाती हुई व्यंग्य पूर्ण शब्दों में पूछी..जिसके जवाब में भैया "बिल्कुल" कह अपनी हामी भर दी...

जिसे सुन हम तीनों की हँसी छूट गई..तभी पूजा एक बार फिर से आज की रंगरलिया के बारे में पूछ बैठी..मैंने ओके कहते हुए पूजा को खुद से अलग की और छत की रेलिंग के सहारे पीठ करके खड़ी हो गई...

जिसे देख वो दोनों भी मेरे बाएं-दाएं सट के खड़े हो गए और शांत मुद्रा में मेरी हाल-ए-बयां सुनने का इंतजार करने लगे..

मैंने मुस्कुराते हुए सुबह घर से निकलने से लेकर ऑटो तक हुई हर एक पल का हाल सुनाने लगी..जिसे सुन दोनों की आँखें फटी की फटी रह गई...

उन्हें तो विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं सेक्स की आग में इतनी जल रही थी आज..बस में कई लोगों द्वारा रगड़ाई सुन वो दोनों अपनी सांसें रोक सुन रहे थे...और जब उस बाथरूम वाले की तरफ से दिए 500 रूपए की बात सुने तो हँस हँस के लोटपोट हो रहे थे...साथ ही लंड चुसाई, उसका पानी पीना, रंडी समझना ये सब बातें सुने तो गर्म भी हो रहे थे...

पूजा अपने चूत को ऊपर से ही सेंक रही थी जबकि भैया अपने पैंट के अंदर हाथ डाले हुए थे...मेरी चूत भी पानी के धार छोड़नी शुरू कर दी थी..मैं अपनी जांघों से ही चूत को दबाते हुए बोली जा रही थी..

फिर ऑटो वाले को बीच सड़क पर अपनी निप्पल दिखाई जिसे सुनते ही पूजा धम्म से नीचे बैठ गई और झड़-झड़ पानी बहाने लगी...भैया भी पूरे चरम सीमा पर थे..और जैसे ही मेरी बात पूरी हुई उन्होंने तेजी से अपना घोड़ा निकाल दिया...

और उनका घोड़ा एक पर एक लगातार कई पिचकारी छोड़ने लगा...खुली छत पर उनका 8 इंची लण्ड पूरे छत को गीला करनी शुरू कर दी थी...

अब जब दो ज्वालामुखी भड़क गई हैं तो मैं भला पीछे क्यों रहती...मैं खड़ी खड़ी ही रेलिंग पर सिर टिका झड़ रही थी...कुछ देर तक यूँ सब चुपचाप खड़े रहे...तभी पूजा उठी और हँसते हुए बोली..

पूजा : "भाभी, पता नहीं उन सब की हालत क्या हुई होगी...अभी भी कहती हूँ उनमें से किसी का पप्पू सोया नहीं होगा..ही..ही..ही.."

भैया : "एकदम सही पूजाजी...मेरी तो सिर्फ सुनने भर से ये हालत हो गई..उनके पप्पू पर तो हमला किया गया है...वैसे सीता एक बात बोलूँ.."

मैं अब तक सीधी हो चुकी थी..भैया की तरफ देख हाँ कह उन्हें बोलने का इंडार करने लगी..

भैया : "वो केतन ऑटो वाला 8 बजे तक आने बोला है ना तो तुम चली जाना.."

"नहीं भैया, आज तो आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगी.."मैंने साफ मना कर दी क्योंकि भैया आए हैं और इन्हें छोड़ बिना निमंत्रण कहीं जाने की सोच भी नहीं सकती...

भैया : "वही तो मैं कह रहा हूँ जान..8 बजे तक चली जाना तुम दोनों और 10 तक आ जाना..फिर पूरी रात तुम्हारे नाम जानू..."

मैं चौंक सी गई कि 8-8:30 तक श्याम आते हैं..फिर अगर मैं चोरी से भी करूँगी तो एक बार से ज्यादा नहीं कर पाती...हाँ दिन में कर लूँगी पर पूरी रात...

पूजा : " वॉव मतलब इन दो घंटों में उनका काम कर सुबह तक सूला दोगे फिर उनकी बीवी को रात भर बजाएंगे.."

भैया : " बिल्कुल पूजा जी...और बीच बीच में श्याम की बहन की भी...हा..हा...हा.."

मैं और पूजा उनका प्लान सुन शरमा सी गई कि मेरे पति की मौजूदगी में ही मुझे पेलेंगे...थोड़ी सी डर भी होगी कि अगर उन्हें नशा टूट गई तो....पर डर के बीच सेक्स का एक अलग ही मजा होता है..ये तो आज देख ही ली हूँ...

और केतन से भी कुछ करने का मिल जाएगा..मैं बिना कुछ बोले मुस्कुराए जा रही थी..जिसमें मेरी सहमति साफ झलक रही थी...

तभी पूजा की नजर उसी छत पर घूमी हुई दिखी जहां वो दोनों पति-पत्नी रोज शाम को सेक्स करते हैं...पूजा के साथ मैं भी देखी तो ओहह..वो दोनों स्मूच करने में लीन थे..

हम दोनों की नजर का पीछा भैया भी कर दिए..उनकी नजर पड़ते ही वे चौंकते हुए "ओह साला" कह पड़े..

हम दोनों हंस पड़े उनकी बात पर...शायद ये उनका पहला अवसर था किसी को ऐसे खुले में देखने का...मैं बिना भैया की तरफ देखे बोली,"ये दोनों रोज शाम को छत पर खुले में मस्ती करने आते हैं..."

पूजा : " मस्ती बोले तो खुल्लम खुल्ला चुदाई..कुछ ही देर में दोनों भिड़ जाएंगे..देखते रहिएगा बस.."

तभी भैया को पता नहीं क्या सूझी..एक पल में ही मुझे जकड़े और पलक झपकते ही उनके होंठ मेरे होंठ से चिपक गए..मैं सोच भी नहीं पाई थी कुछ...जिसे देख पूजा खिलखिला कर हँस पड़ी...

मैं छूटना चाहती थी पर कुछ ही पल में शां हो गई और किस का साथ देने लगी..करीब 5 मिनट तक लगातार किस करती रही जिससे मेरी चूत एक बार फिर पानी बहाने लगी थी...

और भैया का लंड तो कब से मेरी चूत पर ठोंकरे मार रहा था...किस के बाद भैया मुझे नीचे बैठने के लिए दबाव देने लगे..मैं बैठती हुई भैया से बोली,"भैया प्लीज, अब कुछ नहीं करो ना...अंदर चलो फिर करना.."

पर भैया कुछ सुने बिना ही अपना देहाती गबरू लण्ड बाहर निकाला और मेरे सिर को पकड़ एक ही बार में पूरा लंड ठूस दिया...मैं उबकाई लेती किसी तरह खुद पर काबू पाई और लंड को धीरे धीरे चूसने लगी...

अगले ही पल पूजा ठीक मेरे बगल में खड़ी हुई...लंड मुंह में रखे ही ऊपर नजर की तो देखी भैया अब पूजा को स्मूच किस करते हुए मेरे मुंह में लंड डाले मजे ले रहे थे...

भैया के हाथ मेरे बालों पर महसूस हुई जो अगले पल ही पकड़ में तब्दील हो गई और फिर चला दिए अपनी रेलगाड़ी नो इंट्री वाले क्षेत्र में...

पूजा के होंठो का रसपान करते हुए मेरे मुँह में लंड अंदर बाहर करने लगे...अगले कुछ ही पल में उनकी स्पीड बढ़ने लगी..मेरी सांस उखड़ने लगी थी पर भैया बिना रूके और तेज शॉट मारने लगे थे...

मेरे मुंह से लार बहने लगी थी जिसमें भैया के रस की दुर्गंध आ रही थी..माथे से पसीना टपकती हुई पूरे चेहरे को भिंगों रही थी..अब मेरी मुँह दुखने लगी थी..मैंने पीछे हटने के लिए हल्की दबाव उनके पैर पर डाली तो अगले ही पल पूजा मेरी बगल में बैठी दिखी...

फिर अचानक से लंड बाहर निकला और सीधा पूजा के गले में उतर गई..जो कि इस हमले से पूरी तरह वाकिफ थी..मैं हांफते हुए नीचे सिर झुकाए मुंह से लार जमीन पर गिरा रही थी..बगल में पूजा गूं-गूं करती हुई लंड के तेज धक्के अपने मुख में ले रही थी...

तभी भैया मेरे बाल पकड़े और लंड की तरफ करते हुए बोले,"अण्डे चूस शाली...इतनी जल्दी कोई राण्ड नहीं थकती.." भैया से गाली सुनते ही मेरी जोश दुगनी हो गई और अगले ही पल मेरी जीभ उनके अण्डों से टकराने लगी...

और 8 इंच में से 5 इंच तक लंड पूजा के मुंह में जा रही थी जिससे हमें भी ज्यादा परेशानी नहीं हो रही थी अण्डे को चूसने में...पूरा लण्ड हम दोनों के थूक-लार से भींगी चमक रही थी...

कुछ देर बाद ही भैया अपने सर को आसमान की तरफ कर चीखने लगे और लंड को बाहर खींच अपने हाथों से पकड़ बारी बारी से हम दोनों के चेहरे को भिंगोने लगे...लंड के गर्म पानी महसूस होते ही हम दोनों भी चीखती हुई झड़ रही थी...

उनका लंड इतनी बार झड़ने के बाद भी इतना वीर्य छोड़ा कि हम दोनों के चेहरे कहीं से खाली नहीं बची थी...झड़ने के बाद भी उनका लंड दूसरे लंड की तरह सिकुड़ा नहीं थी...मैंने लंड को मुंह में भर चंद मिनटों में ही साफ कर दी...

फिर भैया मेरी साड़ी से ही अपना लंड पोंछे और लंड अंदर कर रिलेक्स मूड में दूसरे छत पर नजर दौड़ाए...उनकी हंसी निकल गई वहां देख कर...हम दोनों भी झट से खड़ी हो वीर्य से चमकते चेहरे उस छत की तरफ घुमा दी...

ये क्या...वो दोनों आज चुदाई ना कर आँखें फाड़े हमारी तरफ देखे जा रहे थे..हम तीनों हँस पड़े उसे देख..वो दोनों हमारे चेहरे पर पड़ी ढ़ेर सारी वीर्य देख एक-दूसरे की तरफ आश्चर्य से देखे जा रहा था...शायद उन्हें यकीं नहीं हो रहा था कि इतना पानी कैसे निकला एक लंड से...

तभी पूजा मुझे बांहों में जकड़ी और चेहरे की एक एक वीर्य के कतरे को खाने लगी..वो भी उन दोनों को दिखा दिखा कर...उसके बाद मैं भी पूजा के चेहरे पर पड़ी सारी वीर्य को खा कर चट कर दी...

फिर पूजा उन दोनों की तरफ हाथ हिला कर बॉय की और हम तीनों हँसते हुए नीचे आ गए..फिर फ्रेश हुई साथ ही और शादी में जाने के लिए किचन का सारा काम निपटाने घुस गई...


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