अब तक मैंने अमर और विजय के बारे में बताया आज मैं मुर्तुजा के बारे में बताने जा रही हूँ।
उसका पूरा नाम मुर्तुजा अंसारी था और वो मुझे पुरी में मिला था। जब मैं अपने पति के साथ घूमने के लिए गई थी।
मैं उस वक़्त पति के तबादले की बात हो रही थी, तो मेरे पति ने मुझे और बच्चों को घुमाने के लिए पुरी ले गए। अमर से भी अब मैं दूर रहने लगी थी, क्योंकि वो पत्नी की बीमारी की वजह से ज्यादातर घर आने-जाने लगे थे।
अमर और मेरे बीच बातें तो रोज होती थीं, पर करीब एक महीने से शारीरिक मिलन नहीं हो रहा था। पति के तबादले के ठीक एक हफ्ते पहले हमने घूमने का विचार किया और मेरे पति मुझे और मेरे बच्चों को लेकर पुरी चले गए।
हम दो दिन घूमे, फिर जिस रात वापस आना था उसी शाम को हम खाना खाने एक रेस्टोरेन्ट में गए। तभी मैंने गौर किया एक 35-36 साल का आदमी जो ठीक हमारे सामने बैठा, अपनी बीवी और 3 बच्चों के साथ खाना खा रहा था, बार-बार मुझे घूर रहा है।
वो काफी लम्बा-चौड़ा, गोरा हल्की दाढ़ी, एकदम जवान, उसे देख कर लग रहा था जैसे कोई अँगरेज़ हो।
पहले तो मैंने नजरअन्दाज करने की कोशिश की, पर मुझे कुछ अजीब सा लगा। उसके देखने के तरीके से ऐसा लग रहा था, जैसे वो हमें जानता हो।
काफी देर देखने के बाद उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा।
मैंने तब अपने पति से कहा- वो हमें बार-बार देख रहा है।
जब मेरे पति ने उसकी तरफ देखा तो वो उठ कर हमारे पास आया और कहा- आप लोग अंगुल से हो न..?
मेरे पति ने जवाब दिया- हाँ, पर आपको कैसे पता चला?
उसने तब कहा- मैं भी वहीं से हूँ और मेरी एक कपड़ों की दुकान है।
तब मेरे पति ने पूछा- हाँ.. पर मैं तो कभी आपसे नहीं मिला।
फिर मेरे पति ने मेरी तरफ देखा तो मैंने भी कह दिया- मैं भी नहीं जानती!
तब उसने बताया- नहीं.. हम पहले कभी नहीं मिले, दरअसल आपकी पत्नी को मैंने अंगुल में बहुत बार देखा है। बच्चे को स्कूल से लेने जाती हैं तब..
फिर उसने कहा- आप लोगों को देखा तो बस यूँ ही सोचा कि पूछ लूँ कि घूमने आए होंगे!
यह कह कर उसने हम लोगों को अपने परिवार से मिलाया। फिर कुछ देर जान-पहचान की बातें हुईं और हम लोगों ने वापस अपने घर आने के लिए ट्रेन पकड़ ली।
मुझे ऐसा लगा जैसे आम मुलाकात होती है लोगों की राह चलते वैसी ही होगी, पर कहते है कि अगर नदी में बाढ़ आई है तो कहीं न कहीं बारिश हुई होगी।
मतलब कि हर चीज़ के पीछे कोई न कोई कारण होता है, हमारी मुलाकात भी बेवजह नहीं थी, इसका भी कारण था जो मुझे बाद में पता चला।
अगले दिन हम घर पहुँच गए।
मेरे पति का तबादला तो हो चुका था, पर हम इतनी जल्दी नहीं जा सकते थे क्योंकि दिसम्बर का महीना था और मार्च के शुरू में मेरे बच्चे का इम्तिहान शुरू होने वाला था।
इसलिए पति ने फैसला लिया कि उसके इम्तिहान के बाद ही हम यहाँ से जायेंगे ताकि नई जगह में जाकर बच्चे की पढ़ाई के लिए फिर से उसी क्लास में दाखिला न लेना पड़े।
इसलिए पति ने मुझे और बच्चों को यहीं छोड़ दिया और खुद रांची चले गए और हर हफ्ते छुट्टी में आने का फैसला किया।
पुरी से वापस लौटने के दो दिन बाद पति जाने वाले थे सो मैंने उनका सारा सामान बाँध दिया और रात को वो चले गए।
उसी रात अमर ने मुझे फोन किया और मेरा हाल-चाल पूछा। उससे बातें किए एक हफ्ता हो चुका था तो काफी देर तक हम बातें करते रहे।
उसने बताया कि उसकी बीवी की तबियत बहुत ख़राब है, सो अभी उसे महीने में हर बार आना जाना पड़ेगा। मैंने भी सोचा कि हाँ.. अब यहीं तक का साथ लिखा था हमारे नसीब में, सो उसे अपने दिल से निकालने की सोचने लगी क्योंकि जितना याद करती उतना ही दुःख होता। एक लम्बे समय तक किसी के साथ समय गुजार लेना कुछ कम नहीं होता।
खैर… मैं अगले दिन अपने बच्चे को लाने स्कूल गई।
ये मेरा दूसरा वाला बच्चा था। बड़े बेटे को लाने और ले जाने की अब जरुरत नहीं होती थी।
मैं जब उसे लेकर आ रही थी, तभी किसी ने मुझे आवाज दी। मैंने पलट कर देखा तो ये वही आदमी था जो हमें पुरी में मिला था।
मैंने कभी सोचा नही था कि इस आदमी से दुबारा मुलाकात होगी। पर किस्मत का खेल ही ऐसा होता है कि कब किससे मिला दे और कब किससे जुदा कर दे।
उसने मेरे पास आकर ‘सलाम’ कहा, फिर बताया कि वो हमारे पास के मोहल्ले से कुछ दूर ही रहता है। हम साथ बात करते हुए चलने लगे। फिर वो एक गली की तरफ मुड़ गया और हमें अलविदा कह चला गया।
उसने बातचीत के दौरान बताया कि उसका नाम मुर्तुजा अंसारी है, उसकी बीवी का नाम फरजाना है और 3 बच्चे हैं। उसकी बीवी की उम्र कुछ ज्यादा नहीं थी। महज 25 साल थी और बच्चों में भी कोई खास फर्क नहीं बस एक साल का था।
अगले दिन हम फिर मिले और बातें करते हुए जाने लगे।
तभी मैंने पूछा- आप अपनी दुकान छोड़ अपने बच्चों को लेने आते हैं, अपनी बीवी को क्यों नहीं भेजते?
तब उसने कहा- मेरी बीवी पढ़ी-लिखी नहीं है और मुस्लिम संस्कार में पली-बढ़ी है सो ज्यादा घर से बाहर नहीं निकलना पसंद करती..
मैंने कहा- इस जमाने में भी ऐसी है वो!
तब उसने कहा- क्या करूँ बदलने की कोशिश करता हूँ पर बदलती नहीं और ज्यादा जोर देने पर माँ-बाप से कह देती है इसलिए खुद ही सब कुछ करता हूँ।
तब मैंने पूछा- आप कितने पढ़े-लिखे हैं?
उसने जवाब दिया- जी एम.ए. किया है इंग्लिश में!
मैंने कहा- फिर अनपढ़ लड़की से शादी क्यों की?
उसने जवाब दिया, जी शादी तो घरवालों ने करा दी और हमारे यहाँ तो शादियाँ नजदीक के रिश्तेदारों में ही हो जाती हैं।
मैंने कहा- फिर भी आपको तो सोचना चाहिए था कि अपने बच्चों का एक पढ़ी-लिखी औरत जैसा ख्याल रख सकती है वैसा एक अनपढ़ औरत नहीं रख सकती है!
तब उसने कहा- जी पढ़ी-लिखी तो है, पर सिर्फ उर्दू!
फिर मैंने कहा- आपने इतनी जल्दी-जल्दी बच्चे क्यों किए? क्या जल्दबाजी थी?
उसने हँसते हुए कहा- अब क्या कहूँ, रहने दीजिए!
सारिका कंवल की जवानी के किस्से
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से
मुझे पता नहीं क्या हुआ शायद अपने सामने एक अनपढ़ औरत की बातें सुन खुद पर नाज हुआ और कह बैठी- इस जमाने में भी आप ऐसे लोग है… इतने सारे तरीके हैं, कुछ भी कर सकते थे.. कुछ तो दिमाग लगाना चाहिए था!
अब उसे भी शायद अपनी बेइज्ज़ती सी लगी, सो उसने मुझे समझाते हुए कहा- देखिए हर इंसान का रहन-सहन अलग होता है और हर मजहब का भी… मेरी बीवी कट्टर मुस्लिम समाज में पली-बढ़ी है, इसलिए वो इससे दिल से जुड़ी है। मैं भी उसी मजहब का एक हिस्सा हूँ इसलिए उसकी इज्ज़त करता हूँ, पर मैं बस उसके लिए हूँ, मैं भी नए जमाने के बारे में जानता हूँ और घर के बाहर आम लोगों की तरह ही रहता हूँ।
तब मैंने जोर देकर कहा- अगर सोचते तो ऐसा नहीं करते.. औरत बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं होती!
उसे मेरी बात का शायद बुरा लगा और कहा- देखिए आप गलत समझ रही हैं.. कन्डोम और बाकी की चीजों का इस्तेमाल करना हमारे यहाँ सही नहीं माना जाता और न ही नसबंदी कराने को, सो जल्दी-जल्दी में हो गए क्योंकि मेरी बीवी इन सब बातों को सख्ती से मानती है।
तब मैंने कहा- मतलब आगे भी और बच्चे होंगे?
उसने कहा- इसी बात का तो डर है इसलिए बीवी से दूर ही रहता हूँ!
और फिर ऐसी बातें करते हुए हम अपने अपने घर को चले गए।
घर पहुँच कर ऐसा लग रहा था जैसे हमारी मुलाकात दो दिन पहले नहीं बल्कि हम काफी दिनों से एक-दूसरे को जानते थे।
हम दो दिन के मुलाकात में ही इतने खुल कर बातें करने लगे थे, यह सोचना जायज था।
उससे खुल कर बातें करने का भी शायद कारण था कि वो दिखने और बातें करने में बहुत आकर्षक था।
अगले दिन हम फिर मिले, पर इस बार मेरे पति और और घर परिवार की बातें हुई।
फिर मैंने उसे बताया के मार्च में हम यहाँ से चले जायेंगे तो उसने मुझसे मेरा फोन का नंबर माँगा।
मैंने मना किया तो उसने मुझे अपना नंबर दे दिया कि अगर कभी बात करने की इच्छा हो तो फोन कर लेना।
मैं वापस अपने घर चली आई। शाम को पता नहीं मैंने क्या सोचा और उसे फोन किया। मेरी आवाज सुनते ही वो ऐसा खुश हुआ जैसे कोई खजाना मिल गया हो।
थोड़ी बहुत बातें करने के बाद मैंने फोन रख दिया और अपने काम में व्यस्त हो गई।
रात को पता नहीं मुझे नींद नहीं आ रही थी, फिर अचानक मेरे फोन की घंटी बजी, देखा तो उसका मैसेज था।
मैं कुछ देर तो सोचती रही, फिर मैंने भी सोचा कि कोई मुझे अच्छे सपनों का मैसेज कर रहा है, तो मैं भी कर दूँ, सो मैंने भी रिप्लाई कर दिया।
कुछ देर बाद उसका फोन आया, मैंने नहीं उठाया और मैं सोने की कोशिश करने लगी, पर नींद पता नहीं क्यों, मुझे आ नहीं रही थी।
मैं पेशाब करने के लिए उठी और बाथरूम से आकर फिर सोने की कोशिश करने लगी पर फिर भी नींद नहीं आ रही थी।
मैंने मोबाइल में समय देखा तो 12 बजने को थे। मैंने सोचा कि देखूँ मुर्तुजा सोया या नहीं, सो मैंने फोन करके तुरंत काट दिया।
दस सेकंड के बाद तुरंत उसका फोन आ गया। मैं कुछ देर तो सोचती रही कि क्या करूँ, पर तब तक फोन कट गया। मैंने राहत की सांस ली पर तब तक दुबारा घण्टी बजी, मैं अब सोच में पड़ गई कि क्या करूँ?
तब तक फिर फोन कट गया और मैंने सोचा कि शायद अब वो फोन नहीं करेगा, पर फिर से फोन रिंग हुआ। इस बार मैंने फोन उठा लिया।
उसने कहा- हैलो.. सोई नहीं.. अभी तक आप?
मैंने कहा- सो गई थी, पर अभी पानी पीने को उठी तो आपका ‘मिस कॉल’ था पर समय नहीं देख पाई थी, इसलिए कॉल कर दिया, आप सोये नहीं अभी तक?
मैं बस अनजान बन रही थी।
उसने कहा- मुझे आज नींद नहीं आ रही है।
मैंने कहा- आप इतनी रात मुझसे बातें कर रहे हो, आपकी बीवी नहीं है क्या?
उसने कहा- हम साथ नहीं सोते क्योंकि अब तीन बच्चे हो गए हैं।
मैंने तब पूछ लिया- मतलब आप लोग सम्भोग नहीं करते?
तब उसने बताया- हम करते हैं, पर बहुत कम.. बीवी को जब लगता है कि सब कुछ सुरक्षित है… तब..!
मैंने पूछा- आप लोग इतने जवान हो, फिर कैसे इतना कण्ट्रोल करते हो?
उसने बताया- क्या करूँ… बीवी ऐसी मिल गई है, तो करना पड़ रहा है।
मैं धीरे-धीरे उससे खुल कर बातें करने लगी और वो भी खुल कर बातें करने लगा।
उसने बताया कि उसे अपनी बीवी से उस तरह का सुख नहीं मिलता, जैसा उसे चाहिए था और कोई चाहेगा क्यों नहीं जवानी इसीलिए तो होती है।
फिर उसने बताया- मेरी बीवी पास के रिश्तेदार की बेटी है, जो रिश्ते में उसकी चाची की छोटी बहन है, पर मुस्लिम समाज में रहन-सहन होने की वजह से बहुत धार्मिक है। इसलिए वो खुले तौर पर सेक्स की और चीजों को पसंद नहीं करती।
मैंने भी सोचा कि शायद ऐसा होता होगा, सो ज्यादा जोर नहीं दिया।
हम ऐसे ही बातें करते हुए सो गए और अगले दिन मैं फिर उससे मिली।
वो मुझसे ऐसा मिला जैसे हर रोज मिलता था, पर आज रात की बात को लेकर मुझे थोड़ी शर्म सा महसूस हो रही थी।
फिर भी मैं उसे जाहिर नहीं होने देना चाहती थी, सो उससे उसी की तरह बात करने लगी।
उस दिन बच्चों को कुछ प्रोजेक्ट सा मिला था, तो मैंने सोचा कि यहीं से बाज़ार चली जाऊँ, तब उसने भी कहा- मैं भी चलता हूँ..!
सो हम बाज़ार चले गए।
हम लोगों ने बच्चों के लिए सामान ख़रीदा, फिर एक रेस्टोरेन्ट में उसने मुझे कुछ खाने के लिए बोला।
मुझे देर हो रही थी और बारिश जैसा मौसम भी था सो मैंने उसे जल्दी चलने को कहा और हम निकल गए।
मौसम को देखते हुए मैंने छाता ले लिया था।
पर जिस बात का डर था वही हुआ, बीच रास्ते में बारिश शुरू हो गई।
मैंने छाता खोला और हम चारों उसके नीचे आ गए। बारिश ज्यादा तो नहीं थी, इसलिए हमचलते रहे, पर थोड़ी दूर जाते ही तेज़ हो गई।
मैंने हल्के गुलाबी रंग का सलवार-कमीज पहना था और बारिश की वजह से वो भीगने लगा था।
करीब सलवार मेरी जाँघों तक पूरी भीग चुकी थी।
बारिश इतनी तेज़ हो चुकी थी कि 4 लोगों का एक छाता के नीचे बच पाना मुश्किल था पर आस-पास कोई जगह नहीं थी कि हम छुप सकें इसलिए हम जल्दी-जल्दी चलने लगे।
हमने बच्चों को आगे कर दिया और हम पीछे हो गए जिसके कारण उसका जिस्म मेरे जिस्म से चलते हुए रगड़ खाने लगा।
मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था। उसके जिस्म की खुशबू मुझे दीवाना सा करने लगी। मैं थोड़ी शरमाई सी थी, पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
मेरी अंतहीन प्यास की कहानी जारी रहेगी।
अब उसे भी शायद अपनी बेइज्ज़ती सी लगी, सो उसने मुझे समझाते हुए कहा- देखिए हर इंसान का रहन-सहन अलग होता है और हर मजहब का भी… मेरी बीवी कट्टर मुस्लिम समाज में पली-बढ़ी है, इसलिए वो इससे दिल से जुड़ी है। मैं भी उसी मजहब का एक हिस्सा हूँ इसलिए उसकी इज्ज़त करता हूँ, पर मैं बस उसके लिए हूँ, मैं भी नए जमाने के बारे में जानता हूँ और घर के बाहर आम लोगों की तरह ही रहता हूँ।
तब मैंने जोर देकर कहा- अगर सोचते तो ऐसा नहीं करते.. औरत बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं होती!
उसे मेरी बात का शायद बुरा लगा और कहा- देखिए आप गलत समझ रही हैं.. कन्डोम और बाकी की चीजों का इस्तेमाल करना हमारे यहाँ सही नहीं माना जाता और न ही नसबंदी कराने को, सो जल्दी-जल्दी में हो गए क्योंकि मेरी बीवी इन सब बातों को सख्ती से मानती है।
तब मैंने कहा- मतलब आगे भी और बच्चे होंगे?
उसने कहा- इसी बात का तो डर है इसलिए बीवी से दूर ही रहता हूँ!
और फिर ऐसी बातें करते हुए हम अपने अपने घर को चले गए।
घर पहुँच कर ऐसा लग रहा था जैसे हमारी मुलाकात दो दिन पहले नहीं बल्कि हम काफी दिनों से एक-दूसरे को जानते थे।
हम दो दिन के मुलाकात में ही इतने खुल कर बातें करने लगे थे, यह सोचना जायज था।
उससे खुल कर बातें करने का भी शायद कारण था कि वो दिखने और बातें करने में बहुत आकर्षक था।
अगले दिन हम फिर मिले, पर इस बार मेरे पति और और घर परिवार की बातें हुई।
फिर मैंने उसे बताया के मार्च में हम यहाँ से चले जायेंगे तो उसने मुझसे मेरा फोन का नंबर माँगा।
मैंने मना किया तो उसने मुझे अपना नंबर दे दिया कि अगर कभी बात करने की इच्छा हो तो फोन कर लेना।
मैं वापस अपने घर चली आई। शाम को पता नहीं मैंने क्या सोचा और उसे फोन किया। मेरी आवाज सुनते ही वो ऐसा खुश हुआ जैसे कोई खजाना मिल गया हो।
थोड़ी बहुत बातें करने के बाद मैंने फोन रख दिया और अपने काम में व्यस्त हो गई।
रात को पता नहीं मुझे नींद नहीं आ रही थी, फिर अचानक मेरे फोन की घंटी बजी, देखा तो उसका मैसेज था।
मैं कुछ देर तो सोचती रही, फिर मैंने भी सोचा कि कोई मुझे अच्छे सपनों का मैसेज कर रहा है, तो मैं भी कर दूँ, सो मैंने भी रिप्लाई कर दिया।
कुछ देर बाद उसका फोन आया, मैंने नहीं उठाया और मैं सोने की कोशिश करने लगी, पर नींद पता नहीं क्यों, मुझे आ नहीं रही थी।
मैं पेशाब करने के लिए उठी और बाथरूम से आकर फिर सोने की कोशिश करने लगी पर फिर भी नींद नहीं आ रही थी।
मैंने मोबाइल में समय देखा तो 12 बजने को थे। मैंने सोचा कि देखूँ मुर्तुजा सोया या नहीं, सो मैंने फोन करके तुरंत काट दिया।
दस सेकंड के बाद तुरंत उसका फोन आ गया। मैं कुछ देर तो सोचती रही कि क्या करूँ, पर तब तक फोन कट गया। मैंने राहत की सांस ली पर तब तक दुबारा घण्टी बजी, मैं अब सोच में पड़ गई कि क्या करूँ?
तब तक फिर फोन कट गया और मैंने सोचा कि शायद अब वो फोन नहीं करेगा, पर फिर से फोन रिंग हुआ। इस बार मैंने फोन उठा लिया।
उसने कहा- हैलो.. सोई नहीं.. अभी तक आप?
मैंने कहा- सो गई थी, पर अभी पानी पीने को उठी तो आपका ‘मिस कॉल’ था पर समय नहीं देख पाई थी, इसलिए कॉल कर दिया, आप सोये नहीं अभी तक?
मैं बस अनजान बन रही थी।
उसने कहा- मुझे आज नींद नहीं आ रही है।
मैंने कहा- आप इतनी रात मुझसे बातें कर रहे हो, आपकी बीवी नहीं है क्या?
उसने कहा- हम साथ नहीं सोते क्योंकि अब तीन बच्चे हो गए हैं।
मैंने तब पूछ लिया- मतलब आप लोग सम्भोग नहीं करते?
तब उसने बताया- हम करते हैं, पर बहुत कम.. बीवी को जब लगता है कि सब कुछ सुरक्षित है… तब..!
मैंने पूछा- आप लोग इतने जवान हो, फिर कैसे इतना कण्ट्रोल करते हो?
उसने बताया- क्या करूँ… बीवी ऐसी मिल गई है, तो करना पड़ रहा है।
मैं धीरे-धीरे उससे खुल कर बातें करने लगी और वो भी खुल कर बातें करने लगा।
उसने बताया कि उसे अपनी बीवी से उस तरह का सुख नहीं मिलता, जैसा उसे चाहिए था और कोई चाहेगा क्यों नहीं जवानी इसीलिए तो होती है।
फिर उसने बताया- मेरी बीवी पास के रिश्तेदार की बेटी है, जो रिश्ते में उसकी चाची की छोटी बहन है, पर मुस्लिम समाज में रहन-सहन होने की वजह से बहुत धार्मिक है। इसलिए वो खुले तौर पर सेक्स की और चीजों को पसंद नहीं करती।
मैंने भी सोचा कि शायद ऐसा होता होगा, सो ज्यादा जोर नहीं दिया।
हम ऐसे ही बातें करते हुए सो गए और अगले दिन मैं फिर उससे मिली।
वो मुझसे ऐसा मिला जैसे हर रोज मिलता था, पर आज रात की बात को लेकर मुझे थोड़ी शर्म सा महसूस हो रही थी।
फिर भी मैं उसे जाहिर नहीं होने देना चाहती थी, सो उससे उसी की तरह बात करने लगी।
उस दिन बच्चों को कुछ प्रोजेक्ट सा मिला था, तो मैंने सोचा कि यहीं से बाज़ार चली जाऊँ, तब उसने भी कहा- मैं भी चलता हूँ..!
सो हम बाज़ार चले गए।
हम लोगों ने बच्चों के लिए सामान ख़रीदा, फिर एक रेस्टोरेन्ट में उसने मुझे कुछ खाने के लिए बोला।
मुझे देर हो रही थी और बारिश जैसा मौसम भी था सो मैंने उसे जल्दी चलने को कहा और हम निकल गए।
मौसम को देखते हुए मैंने छाता ले लिया था।
पर जिस बात का डर था वही हुआ, बीच रास्ते में बारिश शुरू हो गई।
मैंने छाता खोला और हम चारों उसके नीचे आ गए। बारिश ज्यादा तो नहीं थी, इसलिए हमचलते रहे, पर थोड़ी दूर जाते ही तेज़ हो गई।
मैंने हल्के गुलाबी रंग का सलवार-कमीज पहना था और बारिश की वजह से वो भीगने लगा था।
करीब सलवार मेरी जाँघों तक पूरी भीग चुकी थी।
बारिश इतनी तेज़ हो चुकी थी कि 4 लोगों का एक छाता के नीचे बच पाना मुश्किल था पर आस-पास कोई जगह नहीं थी कि हम छुप सकें इसलिए हम जल्दी-जल्दी चलने लगे।
हमने बच्चों को आगे कर दिया और हम पीछे हो गए जिसके कारण उसका जिस्म मेरे जिस्म से चलते हुए रगड़ खाने लगा।
मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था। उसके जिस्म की खुशबू मुझे दीवाना सा करने लगी। मैं थोड़ी शरमाई सी थी, पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
मेरी अंतहीन प्यास की कहानी जारी रहेगी।
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से
बारिश इतनी तेज़ हो चुकी थी कि 4 लोगों का एक छाता के नीचे बच पाना मुश्किल था, पर आस-पास कोई जगह नहीं थी कि हम छुप सकें इसलिए हम जल्दी-जल्दी चलने लगे।
हमने बच्चों को आगे कर दिया और हम पीछे हो गए, जिसके कारण उसका जिस्म मेरे जिस्म से चलते हुए रगड़ खाने लगा।
मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था। उसके जिस्म की खुशबू मुझे दीवाना सा करने लगी। मैं थोड़ी शरमाई सी थी, पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
हम लोग लगभग पूरी तरह भीग ही चुके थे क्योंकि बारिश और तेज़ होती जा रही थी। बच्चे तो पूरे भीग ही चुके थे और दिसंबर का महीना था सो ठण्ड लगने लगी थी।
उसने कहा- जल्दी चलो कहीं छुपने की जगह देखो वरना बच्चे बीमार पड़ जायेंगे।
और हम तेज़ी से चलने लगे। ठण्ड की वजह से मैं काँपने लगी थी क्योंकि मैं पूरी भीग चुकी थी और सलवार-कमीज के ऊपर कुछ पहनी भी नहीं थी।
चलते समय उसका जिस्म मुझसे छुआ जा रहा था तो मुझे उसके जिस्म की गर्मी अच्छी लग रही थी।
शायद उसे भी अच्छा लग रहा था और वो जानबूझ कर शायद ऐसा कर रहा था।
अचानक तेज़ी में चलते हुए मेरा पैर फिसल सा गया तो उसने मुझे बचाने के लिए कमर से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचा, मैं खुद को उसके सहारे सँभालते हुए उसकी बाँहों में चली गई।
हम दोनों की नजरें दो पल के लिए मिलीं और मैंने शर्म से अपनी निगाहें नीची कर लीं। उसने मेरे जिस्म की खुशबू को सूंघते हुए एक लम्बी साँस ली और कहा- आराम से.. चलो उस दीवार के पास छिप जाते हैं कुछ देर…!
मैंने देखा कि वो जगह इतनी बड़ी तो नहीं थी कि छुपा जा सकें, पर बच्चों को छुपाया जा सकता था, तो हम जल्दी से चले गए।
वो जगह ऐसी थी कि सर से कमर तक बारिश से बचा जा सकता था।
मैंने खुद के कपड़े देखे, एक झलक में तो मुझे बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हुई और मैं जल्द से जल्द बारिश बंद होने की प्रार्थना करने लगी। मेरे स्तनों के नीचे का पूरा हिस्सा बाईं तरफ से भीग चुका था और उसमें से मेरी ब्रा और पैन्टी साफ़ झलक रही थी। मुर्तुजा भी अपने दाईं तरफ से भीगा हुआ था।
हम जल्दी से उस आड़ के नीचे जाकर छिप गए और बच्चों को छाता थमा दिया ताकि वो बच सकें। बच्चे हमारे आगे थे और मैं और मुर्तुजा पीछे।
वहाँ इतनी तेज़ बारिश हो रही थी कि मैं न चाहते हुए भी उससे चिपकती चली जा रही थी। तभी मैंने गौर किया कि वो छुपी नजरों से मेरी जाँघों और स्तनों को देख रहा है।
मैंने उन्हें अपनी हाथों से छुपाने की कोशिश की, तो उसने अपनी नजरें घुमा लीं।
हम काफी देर तक वहीं बारिश बंद होने का इंतज़ार करते रहे। हम दोनों ही शर्म से एक-दूसरे से नजरें छिपा रहे थे और खामोशी से बारिश के थामने का इंतज़ार कर रहे थे।
उसने तभी मुझसे नजरें दूसरी तरफ कर धीरे से कहा- सारिका जी.. अपने कपड़े ठीक कर लीजिए!
मैंने तपाक से अपने कपड़ों की ओर देखा तो सब कुछ ठीक लगा, फिर भी मैंने उन्हें संवारने की कोशिश की।
तब उसने कहा- उधर नहीं पीछे!
मैंने तुरंत अपना हाथ पीछे किया तो मेरी कमीज ऊपर उठी हुई थी। शायद जब मैं गिरने वाली थी और उसने मुझे बचाया तब हो गया होगा।
मैंने उसे जल्दी से ठीक किया और दूसरी तरफ देखने लगी और सोचने लगी कि इसने तो मेरा सब कुछ देख लिया होगा पर मैं करती भी क्या..! मैं बस खामोशी से सोचने लगी कि कहाँ आकर फंस गई, कब ये बारिश रुकेगी..! तभी बारिश कुछ कम हुई और मुझे थोड़ी ख़ुशी हुई कि अब बारिश रुक जाएगी, पर अगले ही पल जोरों से हवा आई और फिर बारिश की और मोटी-मोटी बूँदें तेज़ी से बरसने लगीं।
मैं तुरंत पीछे हुई और मुर्तुजा से जा टकराई। बारिश तो ऐसे आ रही थी जैसे मुझे पूरा भीगा देना चाहती हो। मैं बारिश से बचने की कोशिश में थी, पर बचना तो दूर की बात मैं और बुरी तरह फंस गई।
मेरे पीछे मुर्तुजा था और मेरे आगे बारिश आगे होती तो बारिश से बच नहीं सकती थी। पीछे होती तो मुर्तुजा से बच नहीं सकती थी। ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी कि रहा नहीं जा रहा था।
मैं मुर्तुजा से चिपक सी गई थी। उसके बदन की गर्मी मुझे महसूस होने लगी थी और जैसे-जैसे समय बीत रहा था, मुझे ठण्ड और ज्यादा लगने लगी। जिसके कारण मैं उससे और भी ज्यादा सटने लगी। मैं सोचने लगी कि भगवान् कैसी मुसीबत में फंस गई हूँ।
तभी मुझे कुछ महसूस हुआ, मुझे लगा जैसे मुर्तुजा मेरे बदन को सूंघ रहा है। उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास झुका हुआ था और वो लम्बी-लम्बी साँसें ले रहा था।
मुझे भी उसके जिस्म की गर्मी बहुत अच्छी लग रही थी सो मैं भी ख़ामोशी से खड़ी रही।
तभी मुझे अपनी कमर पर कुछ सख्त चीज़ महसूस हुई, मैं समझ गई कि उसका लिंग है।
पहले तो मुझे लगा कि उसको डांट दूँ, पर पता नहीं, मैंने ऐसा क्यों नहीं किया। मुझे उस वक़्त कुछ भी समझ नहीं आया। शायद ये मेरी गलती ही थी, जिसकी वजह से उसकी हिम्मत बढ़ गई और उसने मेरा हाथ थाम लिया।
उसने जैसे ही मेरा हाथ थामा मुझे करंट सा लगा और मैं और उसके करीब चली गई।
मेरे इस तरह के व्यवहार को देख कर उसने एक हाथ से मेरी जाँघों को छुआ। मुझे ऐसा लगा कि शायद इसी की जरुरत थी मुझे क्योंकि ऐसी ठण्ड में कहीं से कोई गर्माहट मिल जाए, यही तो इंसान चाहता है।
मेरा कोई विरोध न देख, उसकी हिम्मत और भी बढ़ गई और उसने अपना लिंग मेरी कमर पर रगड़ना शुरू कर दिया। मैं तो जैसे सुध-बुध खो चुकी थी और उसे खुली छूट दे दी।
वो अपनी कमर को झुका कर अपने लिंग को मेरे कूल्हों के बीच रगड़ने लगा, जैसे कि वो मेरी योनि को ढूँढ रहा हो।
उसका गर्म जिस्म मुझे बहाने लगा था और मैं भूल गई कि हम दोनों के आगे बच्चे हैं।
उसने अपना एक हाथ मेरे पेट पर रखा और मुझे अपनी ओर खींच लिया और लिंग को मेरे कूल्हों के बीच में घुसाने की कोशिश में रगड़ने लगा।
मुझे भी अच्छा लगने लगा और मेरी योनि भी गीली होने लगी थी। तभी उसने नीचे से अपना दूसरा हाथ मेरी कमीज के अन्दर डाल कर मेरे पजामे के ऊपर से मेरी योनि पर रख दिया।
मेरी हालत और भी बुरी हो गई।
उसने पजामे के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाते हुए पैंटी को खींच कर किनारे कर दिया। वो अपने लिंग को पूरी ताकत से मेरे कूल्हों के बीच दबाने लगा साथ ही मुझे जोरों से पकड़ अपनी और खींच रहा था और दूसरे हाथ से मेरी योनि को सहला रहा था।
उसने अपने मुँह से मेरे बालों को किनारे किया और गर्दन पर अपनी जीभ घुमाने लगा, जैसे कि मुझे चाट रहा हो।
तभी अचानक उसने मेरी योनि से हाथ हटाया और मेरे पजामे का नाड़ा खींच दिया।
हमने बच्चों को आगे कर दिया और हम पीछे हो गए, जिसके कारण उसका जिस्म मेरे जिस्म से चलते हुए रगड़ खाने लगा।
मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था। उसके जिस्म की खुशबू मुझे दीवाना सा करने लगी। मैं थोड़ी शरमाई सी थी, पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
हम लोग लगभग पूरी तरह भीग ही चुके थे क्योंकि बारिश और तेज़ होती जा रही थी। बच्चे तो पूरे भीग ही चुके थे और दिसंबर का महीना था सो ठण्ड लगने लगी थी।
उसने कहा- जल्दी चलो कहीं छुपने की जगह देखो वरना बच्चे बीमार पड़ जायेंगे।
और हम तेज़ी से चलने लगे। ठण्ड की वजह से मैं काँपने लगी थी क्योंकि मैं पूरी भीग चुकी थी और सलवार-कमीज के ऊपर कुछ पहनी भी नहीं थी।
चलते समय उसका जिस्म मुझसे छुआ जा रहा था तो मुझे उसके जिस्म की गर्मी अच्छी लग रही थी।
शायद उसे भी अच्छा लग रहा था और वो जानबूझ कर शायद ऐसा कर रहा था।
अचानक तेज़ी में चलते हुए मेरा पैर फिसल सा गया तो उसने मुझे बचाने के लिए कमर से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचा, मैं खुद को उसके सहारे सँभालते हुए उसकी बाँहों में चली गई।
हम दोनों की नजरें दो पल के लिए मिलीं और मैंने शर्म से अपनी निगाहें नीची कर लीं। उसने मेरे जिस्म की खुशबू को सूंघते हुए एक लम्बी साँस ली और कहा- आराम से.. चलो उस दीवार के पास छिप जाते हैं कुछ देर…!
मैंने देखा कि वो जगह इतनी बड़ी तो नहीं थी कि छुपा जा सकें, पर बच्चों को छुपाया जा सकता था, तो हम जल्दी से चले गए।
वो जगह ऐसी थी कि सर से कमर तक बारिश से बचा जा सकता था।
मैंने खुद के कपड़े देखे, एक झलक में तो मुझे बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हुई और मैं जल्द से जल्द बारिश बंद होने की प्रार्थना करने लगी। मेरे स्तनों के नीचे का पूरा हिस्सा बाईं तरफ से भीग चुका था और उसमें से मेरी ब्रा और पैन्टी साफ़ झलक रही थी। मुर्तुजा भी अपने दाईं तरफ से भीगा हुआ था।
हम जल्दी से उस आड़ के नीचे जाकर छिप गए और बच्चों को छाता थमा दिया ताकि वो बच सकें। बच्चे हमारे आगे थे और मैं और मुर्तुजा पीछे।
वहाँ इतनी तेज़ बारिश हो रही थी कि मैं न चाहते हुए भी उससे चिपकती चली जा रही थी। तभी मैंने गौर किया कि वो छुपी नजरों से मेरी जाँघों और स्तनों को देख रहा है।
मैंने उन्हें अपनी हाथों से छुपाने की कोशिश की, तो उसने अपनी नजरें घुमा लीं।
हम काफी देर तक वहीं बारिश बंद होने का इंतज़ार करते रहे। हम दोनों ही शर्म से एक-दूसरे से नजरें छिपा रहे थे और खामोशी से बारिश के थामने का इंतज़ार कर रहे थे।
उसने तभी मुझसे नजरें दूसरी तरफ कर धीरे से कहा- सारिका जी.. अपने कपड़े ठीक कर लीजिए!
मैंने तपाक से अपने कपड़ों की ओर देखा तो सब कुछ ठीक लगा, फिर भी मैंने उन्हें संवारने की कोशिश की।
तब उसने कहा- उधर नहीं पीछे!
मैंने तुरंत अपना हाथ पीछे किया तो मेरी कमीज ऊपर उठी हुई थी। शायद जब मैं गिरने वाली थी और उसने मुझे बचाया तब हो गया होगा।
मैंने उसे जल्दी से ठीक किया और दूसरी तरफ देखने लगी और सोचने लगी कि इसने तो मेरा सब कुछ देख लिया होगा पर मैं करती भी क्या..! मैं बस खामोशी से सोचने लगी कि कहाँ आकर फंस गई, कब ये बारिश रुकेगी..! तभी बारिश कुछ कम हुई और मुझे थोड़ी ख़ुशी हुई कि अब बारिश रुक जाएगी, पर अगले ही पल जोरों से हवा आई और फिर बारिश की और मोटी-मोटी बूँदें तेज़ी से बरसने लगीं।
मैं तुरंत पीछे हुई और मुर्तुजा से जा टकराई। बारिश तो ऐसे आ रही थी जैसे मुझे पूरा भीगा देना चाहती हो। मैं बारिश से बचने की कोशिश में थी, पर बचना तो दूर की बात मैं और बुरी तरह फंस गई।
मेरे पीछे मुर्तुजा था और मेरे आगे बारिश आगे होती तो बारिश से बच नहीं सकती थी। पीछे होती तो मुर्तुजा से बच नहीं सकती थी। ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी कि रहा नहीं जा रहा था।
मैं मुर्तुजा से चिपक सी गई थी। उसके बदन की गर्मी मुझे महसूस होने लगी थी और जैसे-जैसे समय बीत रहा था, मुझे ठण्ड और ज्यादा लगने लगी। जिसके कारण मैं उससे और भी ज्यादा सटने लगी। मैं सोचने लगी कि भगवान् कैसी मुसीबत में फंस गई हूँ।
तभी मुझे कुछ महसूस हुआ, मुझे लगा जैसे मुर्तुजा मेरे बदन को सूंघ रहा है। उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास झुका हुआ था और वो लम्बी-लम्बी साँसें ले रहा था।
मुझे भी उसके जिस्म की गर्मी बहुत अच्छी लग रही थी सो मैं भी ख़ामोशी से खड़ी रही।
तभी मुझे अपनी कमर पर कुछ सख्त चीज़ महसूस हुई, मैं समझ गई कि उसका लिंग है।
पहले तो मुझे लगा कि उसको डांट दूँ, पर पता नहीं, मैंने ऐसा क्यों नहीं किया। मुझे उस वक़्त कुछ भी समझ नहीं आया। शायद ये मेरी गलती ही थी, जिसकी वजह से उसकी हिम्मत बढ़ गई और उसने मेरा हाथ थाम लिया।
उसने जैसे ही मेरा हाथ थामा मुझे करंट सा लगा और मैं और उसके करीब चली गई।
मेरे इस तरह के व्यवहार को देख कर उसने एक हाथ से मेरी जाँघों को छुआ। मुझे ऐसा लगा कि शायद इसी की जरुरत थी मुझे क्योंकि ऐसी ठण्ड में कहीं से कोई गर्माहट मिल जाए, यही तो इंसान चाहता है।
मेरा कोई विरोध न देख, उसकी हिम्मत और भी बढ़ गई और उसने अपना लिंग मेरी कमर पर रगड़ना शुरू कर दिया। मैं तो जैसे सुध-बुध खो चुकी थी और उसे खुली छूट दे दी।
वो अपनी कमर को झुका कर अपने लिंग को मेरे कूल्हों के बीच रगड़ने लगा, जैसे कि वो मेरी योनि को ढूँढ रहा हो।
उसका गर्म जिस्म मुझे बहाने लगा था और मैं भूल गई कि हम दोनों के आगे बच्चे हैं।
उसने अपना एक हाथ मेरे पेट पर रखा और मुझे अपनी ओर खींच लिया और लिंग को मेरे कूल्हों के बीच में घुसाने की कोशिश में रगड़ने लगा।
मुझे भी अच्छा लगने लगा और मेरी योनि भी गीली होने लगी थी। तभी उसने नीचे से अपना दूसरा हाथ मेरी कमीज के अन्दर डाल कर मेरे पजामे के ऊपर से मेरी योनि पर रख दिया।
मेरी हालत और भी बुरी हो गई।
उसने पजामे के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाते हुए पैंटी को खींच कर किनारे कर दिया। वो अपने लिंग को पूरी ताकत से मेरे कूल्हों के बीच दबाने लगा साथ ही मुझे जोरों से पकड़ अपनी और खींच रहा था और दूसरे हाथ से मेरी योनि को सहला रहा था।
उसने अपने मुँह से मेरे बालों को किनारे किया और गर्दन पर अपनी जीभ घुमाने लगा, जैसे कि मुझे चाट रहा हो।
तभी अचानक उसने मेरी योनि से हाथ हटाया और मेरे पजामे का नाड़ा खींच दिया।